अंतरराष्ट्रीय

वो लोग जो सिर्फ़ इंटरनेट सर्फिंग करके पैसा कमा रहे हैं
19-Jun-2022 7:56 AM
वो लोग जो सिर्फ़ इंटरनेट सर्फिंग करके पैसा कमा रहे हैं

AMINAH AL-NOOR

-कैथरीन काइट

इंटरनेट पर हम लोग जो कुछ भी देखते हैं, पढ़ते हैं, सुनते हैं, वो सब कुछ किसी के लिए बेशकीमती संसाधन बन जाता है.

गूगल और फेसबुक जैसी कंपनियां इसी डेटा के ज़रिए हर साल अरबों रुपया कमा रही है.

इन कंपनियों की ये कमाई एडवरटिज़मेंट रेवेन्यू या विज्ञापन राजस्व के ज़रिए होती है क्योंकि वे इस डेटा का इस्तेमाल हम तक टारगेटेड विज्ञापन पहुंचाने के लिए करते हैं.

उदाहरण के लिए, आप नई जींस खरीदने की सोच रहे हैं और इसके लिए फ़ैशन स्टोर्स के ईशॉप पर ऑनलाइन नए प्रोडक्ट और डिजाइन चेक रहे हैं तो जल्द ही आप को अपने कम्प्यूटर स्क्रीन पर हर तरफ़ डेनिम ट्राउज़र्स के विज्ञापन दिखने लगेंगे.

हम चाहे कुछ भी खरीदने का प्लान बना रहे हों, ये हमेशा होता है और हमने अपने कम्प्यूटर स्क्रीन पर ये बार-बार देखा है.

इंटरनेट पर गूगल और फेसबुक जैसी कंपनियां जिस तरह से हम पर नज़र रखे हुए हैं, वो कभी-कभी बेचैन कर देने वाला एहसास देता है.

हाल ही में किए गए एक अध्ययन में ये बात सामने आई कि यूरोप के लोग इंटरनेट पर क्या देखते हैं, इससे जुड़ा डेटा दिन भर में 376 बार शेयर किया जाता है.

अमेरिकी लोगों के मामले में ये डेटा लगभग दोगुने की हद तक बढ़ जाता है. औसत अमेरिकियों के इंटरनेट यूसेज की जानकारी 747 बार साझा की जाती है.

लेकिन ज़रा रुकिए. अगर तस्वीर का रुख बदला जा सके तो कैसा रहेगा? आपका जो डेटा शेयर किया जाता है, उस पर न केवल आपका कंट्रोल बढ़ जाए बल्कि आप उससे कुछ पैसा भी कमा सकें.

कमाई का वादा
कनाडा की एक टेक कंपनी 'सर्फ़' ने कुछ ऐसा ही वादा किया है. 'सर्फ़' ने इसी नाम से पिछले साल एक ब्राउज़र एक्सटेंशन लॉन्च किया था.

इंटरनेट सर्फिंग करने वाले लोगों को ये पैसे कमाने का मौका देता है.

हालांकि 'सर्फ़' अभी अमेरिका और कनाडा में काफी सीमित रूप से ही उपलब्ध है. आप बस ये समझिए कि ये गूगल को चकमा देकर काम करता है और आपका डेटा रीटेल कंपनियों को सीधे ही बेचता है.

बदले में 'सर्फ़' आपको प्वॉयंट्स ऑफ़र करता है जिसे आप इकट्ठा कर सकते हैं और गिफ़्ट कार्ड या डिस्काउंट के बदले इसे खर्च कर सकते हैं.

इसके लिए 'सर्फ़' ने अभी तक फुट लॉकर, द बॉडी शॉप, क्रॉक्स और डायसन जैसी कंपनियों के साथ करार भी किया है.

'सर्फ़' का कहना है कि यूज़र के डेटा में उसकी पहचान पूरी तरह से गोपनीय रखी जाती है, न तो यूज़र का ईमेल अड्रेस और न ही उसके टेलीफोन नंबर शेयर किए जाते हैं और न ही साइन अप करने के लिए अपना नाम ही बताना होता है.

हालांकि 'सर्फ़' अपने यूज़र से उनकी उम्र, जेंडर और एड्रेस जैसी जानकारी मांगती है लेकिन यूज़र को ये करना ही होगा, ऐसी कोई शर्त नहीं होती है.

कंपनी का विचार है कि उसके यूज़र का डेटा ब्रैंड्स इस्तेमाल कर पाएंगे. जैसे कि किसी शहर में 18 से 24 साल के नौजवान कौन सी वेबसाइट ज़्यादा देखते हैं. इस जानकारी के आधार पर कंपनियाँ इन कस्टमर तक अपना विज्ञापन पहुंचा सकेंगी.

वैसे 'सर्फ़' ने अभी तक ये नहीं बताया है कि उसका ब्राउज़र एक्सटेंशन इंस्टॉल करने वाला यूज़र सर्फिंग करके कितना पैसा कमा सकता है. हालांकि कंपनी ने ये ज़रूर बताया है कि उसके यूज़र्स को कुल मिलाकर 1.2 मिलियन डॉलर की रकम कमाने का मौका मिला.

'सर्फ़' के यूजर्स को एक सहूलियत ये भी है कि वो किस तरह का डेटा शेयर करना चाहते हैं, इसकी लगाम भी अपने हाथ में रख सकते हैं. जैसे कि कुछ वेबसाइट्स जो वो विज़िट करते हैं, लेकिन उसे गोपनीय रखना चाहते हैं तो वो ऐसा कर सकते हैं.

कनाडा के टोरंटो में यॉर्क यूनिवर्सिटी की छात्रा अमीना अल-नूर 'सर्फ़' की एक यूजर हैं. अमीना को लगता है उनके ऑनलाइन डेटा पर उनका नियंत्रण फिर से स्थापित हो गया है.

21 वर्षीय अमीना कहती हैं, "आप सर्फ़ के साथ क्या शेयर करना चाहती हैं, इसका फ़ैसला आप कर सकती हैं. कई बार मैं अपने प्वॉयंट्स चेक करना भूल जाती हूं लेकिन हफ़्ते भर बाद जब देखती हूं तो पाती हूं कि मेरे प्वॉयंट्स लगातार बढ़ रहे हैं. सभी टेक कंपनियां हमारी जानकारियां इकट्ठा करती हैं लेकिन जो बात मायने रखती है कि टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल के अनुभव को बेहतर कैसे बनाया जा सकता है."

यूज़र्स को इनाम
सर्फ़ के सह-संस्थापक और चीफ़ एग़्जिक्यूटिव स्विश गोस्वामी कहते हैं कि उनकी कंपनी इंटरनेट ब्राउंज़िंग करने वाले यूज़र्स को लगातार इनाम देते रहना चाहती है.

वो कहते हैं, "पहले दिन से ही ये बात स्पष्ट थी कि यूज़र्स के डेटा पर उनका नियंत्रण रहेगा, वे खुद ये तय करेंगे कि वे क्या शेयर करना चाहते हैं और क्या नहीं."

"मुझे लगता है कि अगर आप लोगों के सामने स्पष्ट रहें, और उन्हें ये बताएँ कि अगर आप ब्रांड्स के साथ डेटा शेयर कर रहे हैं, और गुमनाम रहकर कर रहे हैं, यानी कि कभी वो लपेट में नहीं आएँगे क्योंकि हमारे पास ना उनका नाम है ना सरनेम, तो लोग सहज होकर हामी भरेंगे और हमारे साथ ज़्यादा से ज़्यादा शेयर करेंगे."

सर्फ़ एक ऐसे बड़े होते अभियान का हिस्सा है जिसे कई विश्लेषक "ज़िम्मेदार तकनीक" का नाम दे रहे हैं, जिसका कुछ मक़सद लोगों को अपने डेटा का और ज़्यादा नियंत्रण देना है.

और भी हैं कंपनियाँ
इस क्षेत्र में ऐसी ही एक अन्य टेक कंपनी है कनाडा की ही स्टार्ट अप कंपनी वेवरली. ये लोगों को अपना न्यूज़ फ़ीड जमा करने की सुविधा देती है. इससे लोग गूगल न्यूज़ और ऐप्पल न्यूज़ और ऐसी सेवाओं पर निर्भर नहीं रहते जहाँ विज्ञापनों के हिसाब से तैयार फ़ीड मिलती है.

वेवरली पर, आप अपनी रुचि के टॉपिक डालते हैं, और उसका आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस का सॉफ़्टवेयर ऐसे आर्टिकल खोज लेता है जो उसे लगता है कि आप पढ़ना चाहेंगे.

इसके संस्थापक हैं मॉन्ट्रियल स्थित फ़िलिप ब्यूदों जो पहले गूगल में इंजीनियर थे.

इस ऐप के यूज़र अपनी पसंद को नियमित रूप से बदल सकते हैं और उन्हें जो आर्टिकल भेजे जा रहे हैं उनके आधार पर फ़ीडबैक दे सकते हैं.

फ़िलिप ब्यूदों कहते हैं कि यूज़र्स को थोड़ा प्रयास करना होगा, उन्हें ऐप को बताना होगा कि उनकी पसंद क्या है, और इसके बदले में वो "विज्ञापनों के जाल में उलझने से" बच जाएँगे.

वो कहते हैं, "ज़िम्मेदार तकनीक को यूज़र्स को अधिकार संपन्न होने का अहसास देना चाहिए, मगर साथ ही उन्हें उनको ये कहने से भी नहीं हिचकिचाना चाहिए कि वो उनके बदले में कुछ काम करें."

रॉब शैवेल की अमेरिकी कंपनी अबाइन दो ऐप बनाती है जिनसे यूज़र को अपनी प्राइवेसी बढ़ाने की सुविधा मिलती है. इनके नाम हैं - ब्लर और डिलीट मी.

ब्लर ये सुनिश्चित करता है कि आपके पासवर्ड और पेमेंट डिटेल को ट्रैक नहीं किया जा सकता. वहीं डिलीट मी सर्च इंजिन्स से आपने निजी डेटा को डिलीट कर देता है.

शैवेल कहते हैं कि उनके हिसाब से इंटरनेट पर कुछ भी सर्फ़ करने में "अपने आप प्राइवेसी" होनी चाहिए.

ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में इंस्टीट्यूट फ़ॉर एथिक्स इन आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस में एसोसिएट प्रोफ़ेसर कैरिसा वेलिज़ कहती हैं कि टेक कंपनियों को "ऐसे बिज़नेस मॉडल्स को प्रलोभन देना चाहिए जो निजी डेटा के शोषण पर निर्भर नहीं होते".

वो कहती हैं,"ये बात चिंताजनक है कि हमारी ज़िंदगी को चलानेवाले ज़्यादातर ऐल्गोरिदम निजी कंपनियाँ बना रही हैं जिनके ऊपर ना कोई निगरानी है ना जिन्हें कोई गाइडेंस है कि कैसे ये सुनिश्चित किया जाए कि ये ऐल्गोरिदम जनहित और मूल्यों का पालन करें."

"मुझे नहीं लगता कि पारदर्शिता हर चीज़ का समाधान है, या आधे का भी है, मगर नीति निर्माताओं की ऐल्गॉरिदम्स तक पहुँच होनी चाहिए."

वहीं गूगल अपने नए "प्राइवेसी सैंडबॉक्स" प्रयास की ओर ध्यान दिलाता है, जिसका "उद्देश्य नए, ज़्यादा निजी विज्ञापन समाधानों को सामने लाना है".

गूगल के एक प्रवक्ता कहते हैं- "इसलिए हम रेगुलेटर्स और वेब कम्युनिटी के साथ मिलकर काम कर रहे हैं जिससे कि प्राइवेसी सैंडबॉक्स के ज़रिये ऐसी तकनीकों को तैयार किया जा सके और साथ ही ऑनलाइन सामग्री और सेवाओं को सबके लिए निशुल्क उपलब्ध कराया जा सके."

"इस साल के अंत में, हम माई ऐड सेंटर लॉन्च करेंगे, जो हमारे प्राइवेसी कंट्रोल को बढ़ाएगा ताकि लोगों को जो विज्ञापन दिखाए जाते हैं, उसे वे लोग और ज़्यादा नियंत्रित कर सकें ."(bbc.com)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news