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शिंज़ो आबे: दो दशक तक जापान की सियासत पर छाने वाला 'प्रिंस'
08-Jul-2022 8:29 PM
शिंज़ो आबे: दो दशक तक जापान की सियासत पर छाने वाला 'प्रिंस'

जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंज़ो आबे पर शुक्रवार को देश के पश्चिमी हिस्से नारा में तब हमला हुआ जब वह एक सड़क पर भाषण दे रहे थे. उसके बाद अस्पताल में उनका निधन हो गया.

वो जापान के अपर हाउस के लिए होने वाले चुनावों का प्रचार कर रहे थे. ऐसी ख़बरें थीं कि गोली लगने के बाद आबे को कार्डियक अरेस्ट भी हुआ था. गोली लगने के कारण आबे की गर्दन ज़ख़्मी हुई थी और उनके सीने के भीतर भी ब्लीडिंग हुई थी.

जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा ने शिंज़ो आबे पर बयान देते हुए आज सुबह कहा था, "मैं दिल से दुआ कर रहा हूँ कि आबे ठीक हो जाएं. मैं इस हमले की कड़े शब्दों में निंदा करता हूँ. लोकतंत्र में ऐसी हिंसा की कोई जगह नहीं है."

लेकिन उसके बाद जापान के सरकारी मीडिया ने सूचना दी कि आबे की अस्पताल में मौत हो गई है.

जापानी सियासत के प्रिंस
जापान के पूर्व विदेश मंत्री शिनतारो आबे के पुत्र शिंज़ो आबे को वहां की राजनीति में प्रिंस कहा जाता था. वो एक तरह से जापान की सियासत में छाए रहने वाले परिवार से आते थे. उनके दादा नोबुसुके किशी जापान के प्रधानमंत्री रह चुके हैं.

आबे पहली बार 1993 में सांसद बने थे. साल 2005 में वे प्रधानमंत्री जुनिचिरो कोइज़ुमी की कैबिनेट में मंत्री बनाए गए थे. उन्हें चीफ़ कैबिनेट सचिव जैसा बहुत ही अहम रोल दिया गया था.

साल 2006 में वे दूसरे विश्व युद्ध के बाद जापान के सबसे युवा प्रधानमंत्री बने. लेकिन एक के बाद एक स्कैंडल उनकी सरकार का पीछा करते रहे. इसके बाद जुलाई 2007 में उनकी पार्टी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी को अपर हाउस में काफ़ी नुक़सान उठाना पड़ा था.

और उसी साल सितंबर में उन्होंने बीमारी की वजह से अपना पद छोड़ दिया था. साल 2012 में आबे प्रधानमंत्री की गद्दी पर दोबारा लौटे. उन्होंने घोषणा की कि इलाज के बाद अब वे पूरी तरह से स्वस्थ हैं.

इसके बाद साल 2014 और 2017 में वे फिर प्रधानमंत्री पद के लिए चुने गए. जापान में सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहने का रिकॉर्ड उन्हीं के नाम था.

पीएम की कुर्सी पर रहने के दौरान शिज़ो आबे की लोकप्रियता में कई उतार-चढ़ाव आए. लेकिन लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी पर आबे की मज़बूत पकड़ की वजह से उनकी गद्दी को चुनौती देने वाला कोई नहीं था.

इतना ही नहीं पार्टी ने अपने संविधान में संशोधन कर, उन्हें पार्टी प्रमुख के तौर पर तीसरे कार्यकाल का अवसर दिया था.

आबे की ज़िंदगी पर एक नज़र
जापान के पूर्व विदेश मंत्री शिनतारो आबे के पुत्र थे शिंज़ो आबे.
उनको वहां की राजनीति में प्रिंस कहा जाता था. उनके दादा नोबुसुके किशी जापान के प्रधानमंत्री रह चुके हैं.
आबे पहली बार 1993 में सांसद बने. साल 2005 में वे प्रधानमंत्री जुनिचिरो कोइज़ुमी की कैबिनेट में मंत्री बने.
साल 2006 में वे दूसरे विश्व युद्ध के बाद जापान के सबसे युवा प्रधानमंत्री बने.
साल 2012 में आबे प्रधानमंत्री की गद्दी पर दोबारा लौटे.
साल 2014 और 2017 में वे फिर प्रधानमंत्री पद के लिए चुने गए.
जापान में सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहने का रिकॉर्ड उन्हीं के नाम था.
आबे के जीवन का सबसे बड़ा मक़सद जापान की मिलिट्री ताक़त को पुनर्स्थापित करना था.
शिंज़ो आबे जिस तरह से अर्थव्यस्था पर नीति अपनाते थे उसे दुनिया ने 'आबेनॉमिक्स' का नाम दिया था.
स्वास्थ्य कारणों से 28 अगस्त 2020 को आबे ने त्यागपत्र देने की घोषणा की.
8 जुलाई 2022 को जापान के नारा शहर में उन पर हमला हुआ जिसके बाद उनकी मौत हो गई.
जापान के प्रधानमंत्री शिंज़ो आबे ने स्वास्थ्य कारणों से दिया इस्तीफ़ा

शिंज़ो आबे रक्षा और विदेश मामलों में काफ़ी आक्रामक रुख़ के लिए जाने जाते थे. आबे चाहते थे कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद लागू हुए जापान के शांतिवादी संविधान को संशोधित किया जाए.

उनके राष्ट्रवादी विचार अक्सर चीन और दक्षिण कोरिया के साथ जापान के संबंधों में तनाव पैदा करते थे.

वर्ष 2013 में उन्होंने टोक्यो स्थित यासुकुनी मंदिर का दौरा किया था. ये मंदिर दूसरे विश्व युद्ध से पहले और उसके दौरान जापान के सैन्यीकरण का प्रतीक रहा है. यही कारण था कि उनका ये दौरा विवादों में घिर गया था.

साल 2015 में आबे ने आत्मरक्षा के अधिकार की वकालत की ताकि जापानी सेना को अपने देश और अन्य सहयोगी देशों की रक्षा के लिए तैनात किया जा सके.

जापान की जनता और पड़ोसी देशों ने इस सैन्यीकरण का मज़बूत विरोध किया. लेकिन विरोध को दरकिनार करते हुए जापानी संसद ने इस विवादास्पद परिवर्तन पर मुहर लगा दी.

आबे के जीवन का सबसे बड़ा मक़सद जापान की मिलिट्री ताक़त को पुनर्स्थापित करना था. उनका ये ख़्वाब अब भी अधूरा ही है. और वैसे भी ये विषय जापान की सियासत में एक बेदह विभाजक मुद्दा है.

अर्थव्यवस्था की चुनौतियां
लेकिन आबे सिर्फ़ जापान की सैनिक ताक़त को पुनर्जीवित करने के प्रयासों के लिए ही नहीं जाने जाएंगे, वे अर्थव्यस्था पर अपनी अलग फ़िलॉसफ़ी के लिए भी जाने जाएंगे.

शिंज़ो आबे जिस तरह से अर्थव्यस्था पर नीति अपनाते थे उसे दुनिया ने 'आबेनॉमिक्स' का नाम दिया था. आबेनॉमिक्स के सिंद्धात में अर्थव्यस्था को अतिरिक्त मदद देना और ढांचागत सुधार करना शामिल है.

उनके इन्हीं क़दमों के ज़रिए, पहले कार्यकाल में जापान की विकास दर बढ़ी लेकिन इसके बाद अर्थव्यस्था धीमी पड़ गई. कई जानकार आबेनॉमिक्स के प्रभावी होने पर सवाल उठाते रहे हैं.

अर्थव्यवस्था को संभालने की उनकी कोशिश 2020 में विफल होती दिखी. साल 2015 के बाद पहली बार जापान ने आर्थिक मंदी के दौर प्रवेश किया.

इसके बाद सारी दुनिया कोविड की चपेट में आ गई. आबे पर कोविड से कारगर तरीके से न निपट पाने के आरोप लगे.

कोविड से बचाव के लिए जापान की सरकार ने देश भर में फ़ेस मास्क बाँटे थे जिन्हें आबेनॉमास्क्स कहा जाता था. मास्क छोटे होने और इनके देरी से जनता के बीच पहुँचने के कारण इनकी ख़ूब आलोचना हुई.

उनके आलोचक ये भी कहते रहे हैं कि घरेलू पर्यटन को बढ़ावा देने के अभियानों के कारण जापान में कोविड की हालत और बदतर हुई है.

अफ़वाहें और इस्तीफ़ा
अगस्त 2020 से ही शिंज़ो आबे की सेहत के बारे में कई तरह की अफ़वाहें उड़नी शुरू हो गई थीं. एक पत्रिका ने दावा किया था कि आबे को अपने दफ़्तर में ही ख़ून की उल्टी आई थी.

शुरू में जापान के चीफ़ कैबिनेट सचिव योशिहीदे सुगा ने इन रिपोर्टों का खंडन किया लेकिन 17 अगस्त को शिंज़ो आबे के टोक्यो के केइयो यूनिवर्सिटी अस्पताल में भर्ती होने के बाद अटकलें और तेज़ होती गईं.

आख़िरकार 28 अगस्त को आबे ने त्यागपत्र देने की घोषणा की. लेकिन उन्होंने अपनी पार्टी एडीपी में किसी उत्तराधिकारी की घोषणा नहीं की.

इस वजह से पार्टी के भीतर, नेतृत्व के लिए एक आंतरिक संघर्ष छिड़ गया. इस संघर्ष में विजयी हुए योशिहिदे सुगा.

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