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भूटान में एलजीबीटीक्यू समुदाय के लिए कैसे बेहतर हुई स्थिति
09-Jul-2022 12:09 PM
भूटान में एलजीबीटीक्यू समुदाय के लिए कैसे बेहतर हुई स्थिति

भूटान में समलैंगिकता कभी अपराध हुआ करता था. हालांकि, अब स्थिति काफी बदल गई है. यहां 2021 से एलजीबीटीक्यू समुदाय के लोगों को कई अधिकार मिलने शुरू हो गए, लेकिन कार्यकर्ताओं का कहना है कि अभी काफी कुछ और करने की जरूरत है.

(dw.com)

                  
2021 में भूटान के राजा यानी ड्रुक ग्यालपो ने देश की दंड संहिता में संशोधन करने वाले कानून पर हस्ताक्षर किया. इसके बाद हिमालय की गोद में बसे छोटे से देश भूटान में समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया. इससे पहले इस दंड संहिता के तहत, ‘सोडोमी यानी किसी भी तरह के अप्राकृतिक यौन संबंध' को अपराध घोषित किया गया था. इसमें समलैंगिक यौन संबंध भी शामिल था.

समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी में रखने वाली धारा को निरस्त करने की सिफारिश करने वाले वित्त मंत्री नामगे शेरिंग ने कहा कि ये धाराएं देश की प्रतिष्ठा पर "दाग" बन गई थीं. उन्होंने कहा, "हमारे समाज में एलजीबीटीक्यू समुदाय को बड़े स्तर पर स्वीकृति मिल चुकी है.”
पिछले महीने, ताशी चोडेन चोंबल ने मिस भूटान 2022 का ताज अपने नाम किया था. वह मिस यूनिवर्स 2022 की प्रतियोगिता में भूटान का प्रतिनिधित्व करने वाली पहली समलैंगिक महिला होंगी.

चोंबल ने साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट अखबार को दिए एक इंटरव्यू में बताया, "शुरुआत में, मेरे परिवार को मेरे यौन रुझान यानी सेक्सुअल ओरिएंटेशन के बारे में समझाना थोड़ा मुश्किल था, क्योंकि मैं एक बहुत ही 'सीधे' और रूढ़िवादी परिवार से आती हूं. अब चीजें बदल गई हैं. उन्होंने अब मुझे उस रूप में स्वीकार कर लिया है जैसी मैं हूं.”
एलजीबीटीक्यू के अधिकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाना

भूटान की आबादी करीब 770,000 है. यहां की 75 फीसदी आबादी बौद्ध धर्म का पालन करती है. संविधान में इसे राजधर्म के तौर पर मान्यता दी गई है. बौद्ध दर्शन समलैंगिकता का विरोध नहीं करता है. हालांकि, समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के एक साल बाद, एलजीबीटीक्यू कार्यकर्ताओं का कहना है कि समुदाय के सदस्यों और उनकी चुनौतियों के बारे में अभी भी बहुत कम जागरूकता है.

क्वीर वॉयस भूटान से जुड़े कार्यकर्ता ताशी शेटेन ने डीडब्ल्यू को बताया, "एलजीबीटीक्यू समुदाय को लेकर कई तरह की गलतफहमियां हैं, जैसे कि समलैंगिकता एक विकल्प है. साथ ही, समुदाय से जुड़े अलग-अलग शब्दों के बारे में भी काफी कम जागरूकता है. लोगों को इनसे जुड़े शब्दों का मतलब नहीं पता है. लोग अभी भी इसके बारे में सीख रहे हैं. हालांकि, अपराध की श्रेणी से बाहर होने के बाद, अब वे खुले तौर पर इसके बारे में चर्चा कर रहे हैं और जानकारी पाने की कोशिश कर रहे हैं.”
उन्होंने आगे कहा, "समुदाय के लोग अक्सर उस हिंसा या उत्पीड़न के बारे में बात नहीं करते हैं जिसका वे सामना करते हैं.” इसके अलावा, भूटान में समलैंगिक विवाह को अभी तक कानूनी रूप से मान्यता नहीं मिली है.

2008 से पहले तक भूटान में पूरी तरह राजशाही थी. इसके बाद, देश संवैधानिक राज्य में बदल गया. हालांकि, 2004 में ही दंड संहिता तैयार कर ली गई थी. कानून के जानकार डेमा लाम और स्टेनली येओ के शोध के मुताबिक, दंड संहिता का निर्माण अमेरिकी कानून प्रणाली के मुताबिक किया गया था. भूटान में सेक्स और "अप्राकृतिक सेक्स" पर रोक लगाने वाली धाराएं कुछ अन्य दक्षिण एशियाई देशों के कानूनों के मुताबिक बनाई गई थीं.
काफी ज्यादा प्रगति

समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर किए जाने से काफी समय पहले वर्ष 2015 में फिजियोथेरेपिस्ट पासंग दोरजी ने टीवी पर इंटरव्यू दिया था. उन्होंने 2016 में साल्ल्सबुर्ग ग्लोबल एलजीबीटी फोरम के दौरान कहा था, "टीवी पर आकर अपनी कहानी बताते हुए, मुझे लगा कि युवा पीढ़ी प्रेरित थी. मुझे मुख्य रूप से यह बताना था कि हमारा एलजीबीटी समुदाय हमारे खूबसूरत हिमालयी देश में मौजूद है, जहां हम सकल आर्थिक उत्पाद से ज्यादा खुशी को तवज्जो देते हैं. वह भूटान के एलजीबीटी समुदाय के लिए चुप्पी तोड़ने वाला क्षण था.”

क्वीयर से जुड़े मुद्दों के बारे में बोलना अब आसान हो गया है, क्योंकि कानून में बदलाव होने की वजह से अब इसकी वकालत करने और इसे लेकर जागरूकता बढ़ाने का मंच मिल गया है.

शेटेन ने कहा, "सरकारी स्तर पर अब हमारे समुदाय की स्वीकार्यता बढ़ गई है. नागरिक समाज खुल रहा है. इसलिए, काफी ज्यादा प्रगति हुई है. अपराध की श्रेणी से बाहर होने के बाद, युवा पीढ़ी अब खुलकर समलैंगिकता पर बातें कर रही है. वे एलजीबीटी मुद्दों के बारे में बात करते हैं और खुलकर अपनी बात रखते हैं.”

उन्होंने आगे कहा, "हालांकि, पुरानी पीढ़ी के क्वीयर लोगों के लिए ऐसा नहीं कहा जा सकता, जिन्होंने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर किए जाने से पहले ही अपनी पहचान जाहिर की थी. उन्हें काफी ज्यादा समस्याओं का सामना करना पड़ा. समाज में उन्हें कलंक के तौर पर माना गया. हर किसी के लिए उसका अनुभव अलग है.” 

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