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- भारत के लिए ललित मोदी को नया नाम नहीं है. टी 20 क्रिकेट का जो आज क़द बना है उसके पीछे उनका योगदान कोई नहीं भूल सकता.
- गुरुवार को ललित मोदी ने बॉलीवुड अभिनेत्री सुष्मिता सेन के साथ अपने संबंधों पर पोस्ट किया तो एक बार फिर वे सुर्ख़ियों में आ गए.
- साल 2015 में जब आईपीएल विवादों में घिरा और ललित मोदी की भूमिका पर प्रश्न उठे थे. वरिष्ठ पत्रकार नारायण बारेठ ने बीबीसी हिंदी के लिए 21 जून, 2015 उन पर ये लेख लिखा था. एक बार फिर पढ़िए वही लेख.
उस दायरे में वो बेताज बादशाह थे लेकिन ललित मोदी की सल्तनत का सिक्का जयपुर के सवाई मानसिंह (एसएमएस) स्टेडियम के बाहर तक चलता था. वक्त बदला तो वे उसी खेल मैदान की चारदिवारी की दुनिया के लिए ना काबिले कुबूल हो गए.
हाल में उठे विवादों के बीच कोई राजस्थान में उनके आगमन का आकांक्षी है तो कोई कह रहा है अच्छा हो उन्हें यहाँ से दूर ही रखा जाए.
मगर खुद उनकी रूह गोया इसी परिधि में उन अच्छे दिनों को याद करती हुई अब भी मुसाफिरी कर रही है.
कोई उनका प्रबल प्रशंसक है तो कोई प्रखर विरोधी. मोदी क़रीब चार साल तक (2005-2009) तक राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे हैं.
झुंझुनू जिला क्रिकेट संघ के सचिव राजेंद्र सिंह राठौर मोदी की तारीफ करते हैं. वो कहते हैं कि मोदी के आगमन से क्रिकेट को बहुत कुछ मिला, वो तुरंत फ़ैसला करते थे और अंजाम की परवाह नहीं करते थे.
राठौर कहते हैं, "अगर एक बार उन्होंने अपना क़दम बढ़ा दिया तो फिर परिणाम की चिंता नहीं करते थे. आज जो भी इस स्टेडियम में आधुनिक सुविधाएं हैं उनकी ही देन हैं."
कोटा क्रिकेट संघ के सचिव अमीन पठान कभी उनके प्रमुख सिपहसालार रहे हैं. अब वे मोदी के धुर विरोधी हैं.
पठान कहते हैं, "वो बहुत ज़िद्दी इंसान है. उन्होंने क्रिकेट को बदनाम किया है. आज उनकी वजह से यह पूरा खेल बदनाम हो कर रह गया है.''
पठान बताते हैं, "शुरू में वो आए तो लगा कि वे शायद क्रिकेट का भला करेंगे. लेकिन उन्होंने इसे व्यापार बना लिया. लिहाजा हमें विरोध करना पड़ा. क्योंकि वे सिर्फ पैसे के लिए काम कर रहे थे."
कोटा क्रिकेट एसोसिएशन के पठान का संबध सत्तारूढ़ बीजेपी से है. उन्हें सत्तापक्ष के निकट समझा जाता है. पठान कहते हैं उनके विरोध को राजनीति से जोड़कर नहीं देखना चाहिए.
क्रिकेट संघ में लंबे समय तक काम कर चुके एक पूर्व पदाधिकारी की नज़र में ललित मोदी एक नितांत अविश्वसनीय व्यक्ति हैं.
रियासतकाल में बने इस स्टेडियम पर यूँ तो राज्य क्रीड़ा परिषद का कानूनी नियंत्रण है. लेकिन मोदी के क्रिकेट संघ का अध्यक्ष बनने के बाद परिषद अपने ही आँगन में बेगानी हो गई. परिषद के 53 साल के कार्यकाल में पहली बार ऐसा हुआ कि उसकी हैसियत घट गई है.
गणतंत्र दिवस और स्वाधीनता दिवस, लोकतंत्र के सबसे पावन और प्रमुख पर्व माने जाते हैं. पहले ये दोनों उत्सव इसी स्टेडियम में आयोजित किए जाते थे.
शायद ये क्रिकेट का ही प्रभाव था, ये दोनों उत्सव तीन साल तक स्टेडियम से निर्वासित हो गए. राठौर कहते हैं इसमें कोई बुराई नहीं है.
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इस स्टेडियम ने न केवल दो वर्ल्ड कप में मुकाबले देखे हैं, बल्कि 1983 में हिन्दुस्तान और पाकिस्तान का एक दिवसीय मुकाबला भी देखा, जिसे देखने पाकिस्तान के तत्कालीन हुक़्मरान ज़िया-उल-हक़ भी आए थे.
ललित मोदी के कार्यकाल में इस खेल प्रांगण ने बहुत कुछ देखा. कई बार क्रिकेटरों के साथ मॉडल्स और सेलेब्रिटीज का जमघट लगा. बॉलीवुड सितारे थे तो चीयरलीडर्स ने भी अपने जलवे बिखेरे.
ललित मोदी के खेल में योगदान पर क्रिकेट संघ के एक पूर्व अधिकारी कहते हैं, ''मैंने उन्हें बॉलीवुड सितारों के कंधे पर हाथ रखते तो देखा है लेकिन किसी नवोदित खिलाड़ी को प्रोत्साहित करते नहीं देखा. क्या वे किसी जिले में क्रिकेट को बढ़ावा देने गए?"
पूर्व अधिकारी कहते हैं, "वर्ष 2004 से पहले शायद ही राजस्थान में कोई ललित मोदी से वाकिफ हो. बीजेपी के सत्तारूढ़ होने के साथ ही उनका क्रिकेट संघ में अवतरण हुआ. लोगों को यकायक पता लगा कि मोदी नागौर के रहवासी के बतौर वहां जिला संघ के अध्यक्ष चुने गए है. लेकिन वे नागौर में कभी दिखाई नहीं दिए."
ललित मोदी
नागौर क्रिकेट संघ के सचिव राजेन्द्र नांदु कहते हैं, ''उन्होंने नागौर में सम्पति खरीदी. यही उनके नागौर का निवासी होने का आधार है. इसमें कुछ भी गलत नहीं है."
नांदु की नजर में ललित मोदी एक दरियादिल इंसान हैं. लेकिन उनके विरोधी कहते हैं सरकार मेहरबान थी लिहाजा स्पोर्ट्स एक्ट में ऐसा बदलाव किया गया कि सत्ता के दम पर उनकी ताजपोशी हो गई.
उस दौर में क्रिकेट संघ में रह चुके एक पदाधिकारी कहते हैं, "उनमें प्रतिभा है लेकिन कान के कच्चे हैं."
लोगों ने देखा मोदी सत्ता के शीर्ष स्थानों पर बैठ कुछ लोगों को उनके पहले नाम से पुकारते थे. कई सरकारी अधिकारी उनके कोपभाजन बने और कुछ से उनका विवाद हुआ.
वर्ष 2009 में जब वे दूसरे कार्यकाल के लिए क्रिकेट संघ के चुनावी अखाड़े में उतरे तो तत्कालीन केंद्रीय मंत्री सीपी जोशी से मात खा गए. तब से जयपुर का एसएमएस स्टेडियम उनकी पहुंच से दूर बना हुआ है.
राजस्थान में डेढ़ साल पहले जब बीजेपी वापस सत्ता में लौटी तो आमख्याल था कि क्रिकेट संघ में फिर से मोदी की ताजपोशी होना निश्चित है.
मोदी ने पूर्व मंत्री जोशी के कई समर्थकों को अपने खेमे में शामिल भी कर लिया. लेकिन शायद इस बार उनके अपने ही या तो रूठ गए या टूट गए.
इसीलिए जिस क्रिकेट मैदान ने उनके जलवों की गवाही दी, वो अब उनकी पहुँच से बहुत दूर होता चला गया है. (bbc.com)