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जर्मनी में होली के रंगों से सराबोर समर पार्टी
15-Jul-2022 8:07 PM
जर्मनी में होली के रंगों से सराबोर समर पार्टी

दक्षिण एशिया खासतौर पर भारत में वसंत के दिनों का रंग भरा त्यौहार होली, जर्मनी में गर्मियों में मनाया जाता है. इसमें थोड़ा त्यौहारी रस्मो-रिवायत भी शामिल रहती है. बता रही हैं डॉयचे वेले की शबनम सुरिता.
   डॉयचे वैले पर शबनम सुरिता का लिखा

होली दक्षिण एशिया का संभवतः सबसे रंग भरा त्यौहार है. सर्दियों की विदाई और वसंत के आगमन का त्यौहार. हर साल मार्च में भारत भर में लाखों लोग होली मनाते हुए एक दूसरे के चेहरे रंगों-गुलाल से भर देते हैं. खास किस्म के पेय बनाए जाते हैं, मिठाइयां बनाई जाती हैं. भांग की मस्ती भी घुली रहती है. दूसरे त्यौहारों की तरह होली के साथ कई कहानियां जुड़ी हैं, हरेक की अपनी क्षेत्रीय महक है.

भारत के पूर्वी हिस्से में होली को "डोल " कहा जाता है जिसमें राधा-कृष्ण की प्रेम कहानी गुंथी हुई है. डोल में आमतौर पर रंग और गुलाल की मस्ती होती है जबकि उत्तरी भारत में मनाई जाने वाली होली सूखे रंगों के साथ साथ गीले रंगो से भी सराबोर रहती है. इसे अक्सर होलिका या धुलेटी भी कहा जाता है.

'देसी' होली और 'अन्य'

जर्मनी में इस समय करीब 171000 भारतीय रहते हैं. और वे दो किस्म की होलियों में शामिल होते हैं. पहली तो है देसी या विशुद्ध रूप से दक्षिण एशियाई होली जो हिंदू कैलेंडर के हिसाब से आती है और मार्च में मनाई जाती है. इन समारोहों का आयोजन मुख्य रूप से दक्षिण एशियाई लोग करते हैं. और वही उनमें भाग लेते हैं. समारोह में देसी खाने, संगीत और रंगों की बहार रहती है.

इंडीशे गेमाइन्डे ड्युसेलडॉर्फ इ.वी उन कुछ संगठनों में से है जो जर्मनी में दुर्गा पूजा या दिवाली जैसे त्योहारों का नियमित रूप से आयोजन करता है. इस संगठन के एक सदस्य अर्पण घोष बताते हैं, "जर्मनी में मार्च का महीना भारत की अपेक्षा यूं तो ठंडा रहता है इसके बावजूद हम उस दौरान होली मनाने की कोशिश करते हैं. छोटा ही आयोजन करते हैं ताकि हमारे बच्चे भारतीय संस्कृति का सार महसूस कर सकें. उसके पीछे लाभ कमाने का इरादा नहीं होता है."

लेकिन जर्मनी में होली की दूसरी किस्म यानी होली का जर्मनीकरण, लोगों में ज्यादा लोकप्रिय है. देश में होने वाली समर पार्टियों में इसका बोलबाला है.

क्या है 'जर्मनीकृत' होली?

जर्मनी की दावतों के कैलेंडर में होली को जगह दिलाने वाले उद्यमी यास्पर हेलमान ने 2012 में होली कंसेप्ट जीएमबीएच की स्थापना की थी. तबसे पूरे जर्मनी में गर्मियो के दौरान वो होली की थीम वाली पार्टियों का आयोजन करते आ रहे हैं. संगठन की प्रोडक्शन टीम की मेंबर योहाना शम के मुताबिक "ये दावतें भारत की पारंपरिक त्यौहारी समारोह की तरह नहीं होती है, वे जर्मन टेक्नो संगीत के साथ रंगों की फुहार का एक मस्ती भरा संस्करण होती हैं. "

हजारों लोग जर्मनी की होली दावतों में शामिल होते हैं. योहाना के मुताबिक हाम्बुर्ग और बर्लिन की पार्टियों में तो 10,000 से 15,000 लोग तक जुट जाते हैं. 2012 में सफल शुरुआत के बाद ये आयोजन सिर्फ जर्मनी तक महदूद नहीं रह गया है. संगठन ने सुदूर मेक्सिको सिटी और जोहान्सबर्ग तक में होली दावतें कर डाली हैं.

होली से मिलती प्रेरणा और बदला हुआ रूप

मैं डॉर्टमुंड के गैलपरेनबाह्न रेस कोर्स में ऐसी ही एक दावत में शामिल हुई थी. वहां एक प्रतिभागी मेरे पास आई और मुझसे पूछने लगी, "आपने तो रंग लगाया ही नहीं?" एक अजनबी की ये भाव-भंगिमा मुझे फौरन, भारत में अपने बचपन में ले गई जहां अंजान लोग मुझे अपनी होली की मस्तियों में कुछ इसी तरह शामिल होने का जोर डालते थे. उस वक्त और डॉर्टमुंड में, रंग लगाए बिना दिखना अपवाद ही हो सकता था.

लेकिन भारतीय पृष्ठभूमि की जर्मन लड़की अर्पिता (बदला हुआ नाम) मानती हैं कि रंग और गुलाल ही तो हैं जो इन समारोहों को भारतीय होली से जोड़ पाते हैं. इस तरह की दो पार्टियों में भागीदारी के बाद उन्हें लगता है कि उन्हें "होली" कहना शायद उचित नहीं होगा, हालांकि "ग्लोब्लाइजेशन की बदौलत लोग फायदे के लिए किसी भी संस्कृति के हिस्से चुन लेते हैं. "

बॉन यूनिवर्सिटी के दक्षिण एशियाई अध्ययन विभाग में जूनियर प्रोफेसर कार्मन ब्रांट जर्मनीकृत होली दावतों से जुड़ी सांस्कृतिक विनियोग की बहस की बारीकियों को सामने रखती हैं. वो कहती हैं, "किसी विशिष्ट मूल की तह तक होली की शिनाख्त कर पाना क्योंकि काफी मुश्किल है, लिहाजा होली को लेकर सुरक्षात्मक या बचाव का रवैया अर्थहीन है. खासतौर पर ये देखते हुए कि होली एक तयशुदा, स्थिर सांस्कृतिक रिवायत नहीं है. आखिरकार समय के साथ उसमें बदलाव हुए हैं और क्षेत्र के लिहाज से अलग अलग ढंग से मनाई जाती रही है."

कार्मन ब्रांट के मुताबिक, "आज होली मनाने से जुड़े जो भी तत्व हैं, जैसे कि रंगों का इस्तेमाल, वे सब होली शब्द के आने से पहले के हैं." और इसीलिए समकालीन भारतीय होली समारोहों की इस संदर्भ में "मौलिक" होली के रूप में ब्रांडिंग, समस्याजनक हो सकती है.

होली के प्रति जर्मनों का आकर्षण

डॉर्टमुड के होली समारोह में शामिल होने वाली सारा (बदला हुआ नाम) के मुताबिक रंगों की बदौलत वो नये लोगों से मिलती हैं और उनके करीब जा पाती हैं. फ्लोरेन्टीन सिमरमान, होली कन्सेप्ट जीएमबीएच में इंटर्न के रूप में काम करती हैं. वो इस आयोजन को उन बंदिशों से मिली एक राहत के रूप में देखती है जो कोविड महामारी की वजह से लोगों पर लाद दी गई थीं.

दक्षिण एशिया में होली समारोहों में यौन उत्पीड़न, छेड़छाड़ या बदसलूकी की रिपोर्टे भी आती हैं. लेकिन सारा और फ्लोरेन्टीन, दोनों ने ऐसी किसी घटना का अनुभव नहीं किया है. सारा के लिए ये "जर्मनी में एक और पार्टी जैसी बात है." कार्मन ब्रांट का ख्याल है कि "भारत में खासतौर पर हाल की नकारात्मक खबरों के बीच ऐसे समारोहों की "पॉजिटिव वाइब" (सकारात्मक अनुभूति) ही देश को एक नयी रोशनी में दिखाने में मदद कर सकती है.

वो ये रेखांकित करती हैं, "रोजमर्रा के झंझटों और माथापच्चियों से खुद को अलग करने का एक अस्थायी मौका देने वाला ये वही सकारात्मक अहसास है जिसमें रंग भरे हैं और उसी की बदौलत जर्मन युवा और दूसरे लोग इन समारोहों में उमड़ आते हैं.

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