अंतरराष्ट्रीय
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने शनिवार को एक कार्यक्रम में बोलते हुए अपनी सरकार में मीडिया पर लगी पाबंदियों और लोगों के लापता होने से ख़ुद को अलग कर लिया. उन्होंने कहा कि ये कार्रवाई उनके निर्देशों पर नहीं हुई थी.
इमरान ख़ान मीडिया की स्वतंत्रता पर आयोजित एक सेमिनार में संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा, ''मैं जब प्रधानमंत्री बना तो मुझे कभी मीडिया से कोई ख़तरा नहीं था. मैंने तो कभी कोशिश नहीं की मीडिया को पैसे ख़िलाने की. मैंने नजम सेठी के अलावा किसी मीडियाकर्मी पर कार्रवाई नहीं की. नजम ने मेरी जाति पर अटैक किया था. उसके ऊपर अदालत में गया. तीन चार ऐसा हुआ कि हमें कैबिनेट बैठक में पता चला कि किसी पत्रकार को उठा लिया है. मेरे निर्देशों पर कभी किसी को नहीं उठाया. समस्या कुछ और थी.''
उन्होंने कहा कि लोगों को उठाने और उनके ग़ायब होने का मसला आंतकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई के जुड़ा था जिनके ख़िलाफ़ उन्होंने आवाज़ उठाई थी.
इमरान ख़ान ने बताया, ''आतंक के ख़िलाफ़ युद्ध में उन्होंने लोगों को उठाना शुरू कर दिया. लोग लापता होने शुरू हो गए. जब तक मैं सरकार में नहीं आया तो मुझे फौज का नज़रिया नहीं पता था तो मैं तब तक इसके ख़िलाफ़ हमेशा बोलता रहा. मेरे पास लापता लोगों के परिजन आते थे. मैंने इससे ज़्यादा तकलीफ़देह चीज़ें नहीं देखी हैं कि औरत आ रही है कि पति ग़ायब हैं, माँ आ रही हैं कि बेटे ग़ायब हैं.''
''सरकार में आने पर पता चला कि जो लोगों को उठाया जाता था वो राष्ट्रीय सुरक्षा के तहत आता था. मेरी जब जनरल बाजवा से इस पर बात हुई, एक तो उन्होंने काफ़ी लोग छोड़े लेकिन वो कहते थे समस्या ये है कि अगर एक आतंकवादी का मामला हम अदालत ले जाते हैं तो उसे साबित करना बड़ा मुश्किल है.चश्मदीद कहाँ से आएंगे.
उन्होंने कहा, ''अमेरिका की मिसाल दी जाती थी कि आंतक के ख़िलाफ़ युद्ध में उन्होंने कैसे लोगों को पकड़ा. ये और बात है कि वो ज़्यादातर मुसलमानों को ही पकड़ते थे. फौज उधर से डरती थी कि अगर हम इन्हें छोड़ देंगे तो वो फिर हमारे ख़िलाफ़ एक्टिविटी करेंगे. इसके ऊपर भी एक विधेयक आना वाला था कि किसी लापता व्यक्ति के रिश्तेदारों को तो पता हो कि वो कहाँ है.
इमरान ख़ान ने कहा कि पाकिस्तान जिस जगह खड़ा है वो निर्णायक दौर है. इस समय सही फ़ैसले करने ज़रूरी हैं.(bbc.com)