खेल

अल्फ़िया पठान को क्यों कहा जा रहा भारतीय बॉक्सिंग की नई सनसनी
17-Jul-2022 10:10 AM
अल्फ़िया पठान को क्यों कहा जा रहा भारतीय बॉक्सिंग की नई सनसनी

इमेज स्रोत,INDIAN BOXING ASSOCIATION

-दीप्ति पटवर्धन

खेल की दुनिया में जूनियर वर्ग के किसी खिलाड़ी का सीनियर वर्ग में भी शानदार प्रदर्शन जारी रखना आसान नहीं होता है.

लेकिन नागपुर की मुक्केबाज़ अल्फ़िया पठान किसी और ही मिट्टी की बनी हैं. उन्होंने इस महीने की शुरुआत में कज़ाख़्स्तान के नूर सुल्तान में खेले गए सीनियर कैटिगरी के अपने डेब्यू टूर्नामेंट में 81 किलोग्राम फ़ाइनल मुक़ाबले में वर्ल्ड चैंपियन लज़्ज़त कुनगेबायवा को 5-0 को हराकर गोल्ड मेडल जीता.

19 साल की अल्फ़िया पठान के लिए ये कामयाबी बेहद अहम है. ख़ासकर उस मुक्केबाज़ के लिए जिसका मुक्केबाज़ी के प्रति लगाव अपने बड़े भाई साक़िब को ट्रेनिंग रिंग में मुक्केबाज़ी करते हुए देख कर परवान चढ़ा हो.

मुक्केबाज़ी से पहले अल्फ़िया ने दूसरे खेलों में भी दिलचस्पी ली थी. उन्होंने स्केटिंग, शॉटपुट, डिस्कस थ्रो और बैडमिंटन तक में हाथ आजमाया.

दो साल तक वह अपने भाई साक़िब के साथ नागपुर के मानकपुर स्थिति डिविजनल स्पोर्ट्स कांप्लैक्स में ट्रेनिंग करने के लिए जाती थीं.

अल्फ़िया याद करती हैं, "हम स्टेडियम साथ में जाते और साथ ही लौटते थे तो बैडमिंटन का अपना अभ्यास करने के बाद मैं उन्हें बॉक्सिंग करते देखा करती थी."

ऐसे ही किसी दिन नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ स्पोर्ट्स के सर्टिफ़ाइड बॉक्सिंग कोच गणेश पुरोहित की नज़र अल्फ़िया पर पड़ी और उन्होंने कहा कि तुम बॉक्सिंग को एक बार ट्राई करके देखो.

पुरोहित याद करते हैं, "वह लंबी थी और अच्छी कद काठी भी थी. तो मुझे लगा कि ये लड़की तो बॉक्सिंग में बहुत अच्छा करेगी."

ये 2014 के उन दिनों की बात जब महिला बॉक्सर मैरीकॉम के जीवन पर बनी फ़िल्म रिलीज़ हुई थी. अल्फ़िया पर कोच पुरोहित के भरोसे और इस फ़िल्म का गहरा असर हुआ.

अल्फ़िया ने बताया, "जब मैंने अपने माता-पिता को बताया कि मैं मुक्केबाज़ी करूंगी, तो उन्हें यह बहुत उत्सुक नहीं हुए. मैंने उन्हें मनाने की हरसंभव कोशिश की. मुस्लिम परिवारों में महिलाओं को खेल कूद में भेजने का उत्साह नहीं होता है और ख़ासकर मुक्केबाज़ी जैसी पुरुष प्रधान खेल में."

वो कहती हैं, "हमेशा की तरह रिश्तेदारों को भी यह पसंद नहीं था और वे मेरे माता-पिता को खेलने से रोकने के लिए कहते थे. हर जगह यही होता है. लेकिन दस-बारह दिनों की कोशिश के बाद माता-पिता मान गए."

अल्फ़िया मुक्केबाज़ी को चुनने की एक वजह बड़े भाई का खेल से जुड़ा होना भी बताती है. उन्होंने कहा, "यह मूर्खतापूर्ण लगता है लेकिन जब आप छोटे होते हैं तो जो भाई बहन कर रहे होते हैं, उसे करना चाहते हैं."

अल्फ़िया के पिता अकरम पठान नागपुर में पुलिस विभाग में अस्सिटेंट सब इंस्पेक्टर के पद पर तैनात थे. उन्होंने जब अपनी बेटी को बॉक्सिंग खेलने की अनुमति दे दी, उसके बाद वे उसे हर जगह, ट्रेनिंग से लेकर टूर्नामेंट तक, सब जगह लेकर जाने लगे.

परिवार उनकी नौकरी पर ही निर्भर था, लिहाजा वे नाइट शिफ्ट में नौकरी करने लगे. गणेश पुरोहित कहते हैं, "अल्फ़िया के करियर के शुरुआती दिनों में उनके पिता की प्रतिबद्धता ने अहम भूमिका निभाई."

उनके अनुसार, "अल्फ़िया में काफ़ी दमखम था और प्रतिभा भी. वह सीखने को भी काफ़ी उत्सुक थीं. जो भी काम उन्हें दिया जाता था, वह उसे ठीक ढंग से पूरा करती और अगला काम मांगती थीं. एक और बात उनके फ़ेवर में थीं, वह बाएं हाथ से मुक्केबाज़ी करती थीं जो भारत में आम बात नहीं है."

बाएं हाथ से बॉक्सिंग करने के अलावा अल्फ़िया की एक और ख़ासियत थी, वह था उनका वज़न. वह 81 किलोग्राम में मुक्केबाज़ी करती हैं. भारत की जिन महिला मुक्केबाज़ों को कामयाबी मिली हैं, आम तौर पर वे लाइट वेट वर्ग के मुक्केबाज़ हैं, चाहे मैरीकॉम हों या फिर वर्ल्ड चैंपियनशिप में कमाल दिखाने वाले निख़त ज़रीन हों.

पिछले साल हुए टोक्यो ओलंपिक में, महिला मुक्केबाज़ी में वजन के हिसाब से पाँच कैटिगरी में मुक़ाबले खेले गए, जिसमें सबसे ज़्यादा वजन का मुक़ाबला मिडिलवेट 75 किलोग्राम वर्ग का था.

5 फ़ीट 8 इंच लंबी अल्फ़िया बताती हैं, "भारत में इस वेट कैटिगरी में ट्रेनिंग जितने मुक्केबाज़ भी नहीं हैं. इस कैटिगरी में लाइटवेट की तुलना में बहुत अंतर दिखेगा. मेरा वजन आम तौर पर 83-84 किलोग्राम है. लेकिन मुझे 95-96 किलोग्राम वर्ग के मुक्केबाज़ से मुक़ाबला करना होता है, क्योंकि यह ओपन कैटिगरी जैसा हो जाता है. इस लिहाज से देखें तो ताक़त के साथ तेजी की भी ज़रूरत होती है."

बेहतर अभ्यास के लिए अल्फ़िया को शुरुआती दिनों से ही पुरुष मुक्केबाज़ों से भिड़ना पड़ा है. इतना ही नहीं, शुरू-शुरू में अल्फ़िया को अपने से कहीं ज़्यादा आयु वर्ग के मुक़ाबलों में हिस्सा लेना होता था. ज़्यादा वजन के चलते वह अपने आयु वर्ग में फ़िट नहीं हो पाती थीं.

पिछले साल एक टीवी इंटरव्यू में अल्फ़िया के पिता ने बताया था कि जब वह अंडर-14 वर्ग में हिस्सा लेने लायक हुई तो उसे अंडर-17 वर्ग में खेलना पड़ा था.

तब, कोच पुरोहित ने परिवार वालों को भरोसा दिलाया था कि अल्फ़िया कहीं ज़्यादा अनुभवी मुक्केबाज़ों से भिड़ सकती हैं. 2016 में अल्फ़िया ने पहली बार जूनियर नेशनल में हिस्सा लिया. अल्फ़िया ने बताया, "पहले नेशनल गेम्स में मैं सिल्वर मेडल जीतने में कामयाब रही थी."

नागपुर की खेल सुविधाओं का ज़िक्र करते हुए अल्फ़िया कहती हैं, "नागपुर में बेसिक बॉक्सिंग जिम तो हैं लेकिन इस खेल को लेकर यहाँ हरियाणा की तरह कोई क्रेज नहीं है. हरियाणा की लड़कियों के ख़िलाफ़ मुक़ाबले से पहले मैं नर्वस थी. मेरे लिए तो यह बड़ी चीज़ थीं. बिना किसी अनुभव के मैंने कामयाबी हासिल की थी, तब मुझे लगा था कि मैं खेल में अच्छा कर सकती हूँ और मैं अच्छा करना चाहती हूं."

नेशनल स्तर पर लगातार बेहतर प्रदर्शन करने वाली अल्फ़िया ने इंटरनेशनल स्तर पर पहली बार 2019 की एशियाई जूनियर चैंपियनशिप में अपनी चमक बिखरते हुए गोल्ड मेडल हासिल किया. इसका बाद पिछले साल अप्रैल में खेले गए वर्ल्ड यूथ चैंपियनशिप का गोल्ड मेडल भी अल्फ़िया के नाम रहा.

अल्फ़िया बताती हैं, "इस वेट कैटिगरी में इतने सारे इंटरनेशनल मेडल जीतने वाली पहली भारतीय मुक्केबाज़ होना अच्छा लगता है."

अल्फ़िया इन दिनों हरियाणा के रोहतक स्थित नेशनल सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस में प्रशिक्षण ले रही हैं. उन्होंने बताया, "मेरे पास ट्रेंड बदलने का मौक़ा है और मैं भारत के लिए हैवीवेट वर्ग में अच्छा करना चाहती हूँ."

कज़ाख़स्तान के नूर सुल्तान में एलोरेडा कप में गोल्ड मेडल जीतकर अल्फ़िया ने लक्ष्य की ओर अपने क़दम बढ़ा दिए हैं.

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news