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पाकिस्तान पहुंचने की रीना वर्मा की कहानी से टूट पाएगी नफ़रत की दीवार?
22-Jul-2022 10:01 AM
पाकिस्तान पहुंचने की रीना वर्मा की कहानी से टूट पाएगी नफ़रत की दीवार?

-शुमाइला जाफ़री

महाराष्ट्र के पुणे की रहने वाली 90 वर्षीय रीना वर्मा आख़िरकार मंगलवार 18 जुलाई को पाकिस्तान के शहर रावलपिंडी की हवा में सांस ले पाईं. वो बीते 75 साल से पाकिस्तान के इस शहर में लौटने के लिए तड़प रही थीं.

उनकी ये तीर्थयात्रा उस घर में जाकर पूरी हुई जो रीना वर्मा के मुताबिक उनके पिता ने अपनी सारी ज़िंदगी की जमा पूँजी ख़र्च कर बनवाया था. रीना वर्मा हमेशा इस घर को फिर से देखने का सपना देखती रहीं थीं.

रावलपिंडी लौटने पर उनका शानदार स्वागत हुआ. जब उन्होंने गली में क़दम रखा तो उन पर गुलाब के फूलों की बारिश की गई.

स्थानीय लोगों ने 90 वर्षीय रीना वर्मा के साथ ढोल नगाड़ों पर डांस किया. वो इस स्वागत से अभिभूत थीं.

1947 में भारत-पाकिस्तान के बंटवारे से कुछ दिन पहले ही रीना वर्मा का परिवार रावलपिंडी के 'प्रेम निवास' इलाक़े को छोड़कर भारत पहुंचा था. अब इसे कॉलेज रोड कहा जाता है.

1947 में बंटवारे के दौरान ज़बरदस्त हिंसा हुई थी. ख़ासकर पंजाब प्रांत में लाखों लोगों को अपने घर छोड़कर इधर से उधर जाना पड़ा. जगह-जगह दंगे भड़क गए और लाखों लोग मारे गए.

दर-बदर हुए लाखों परिवारों में रीना वर्मा का परिवार भी एक था.

वापसी की कहानी
साल 2021 में पाकिस्तान के एक सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर जब रीना वर्मा का साक्षात्कार हुआ तो वो रातों-रात सोशल मीडिया पर सनसनी बन गईं.

'इंडिया पाकिस्तान हेरिटेज क्लब' फ़ेसबुक ग्रुप से जुड़े लोगों ने रावलपिंडी में उनके पैतृक घर की तलाश शुरू कर दी और आख़िरकार एक महिला पत्रकार ने इस घर को खोज लिया. रीना वर्मा पाकिस्तान जाना चाहती थीं लेकिन कोविड महामारी की वजह से वो जा नहीं सकीं.

हालांकि इस साल मार्च में उन्होंने अंततः पाकिस्तान के वीज़ा के लिए आवेदन दिया, और फिर बिना कोई कारण बताए खारिज कर दिया गया.

रीना कहती हैं, "मैं टूट गई थी. मैंने ये उम्मीद नहीं की थी कि एक 90 वर्षीय महिला, जो सिर्फ़ अपने घर को देखना चाहती है, उसका वीज़ा रद्द कर दिया जाएगा. मैं ऐसा सोच भी नहीं सकती थी, लेकिन ऐसा हुआ."

रीना वर्मा
रीना कहती हैं कि पाकिस्तान तब राजनीतिक अस्थिरता से गुज़र रहा था वो ये नहीं जान पा रहीं थीं कि आख़िर कैसे वीज़ा के लिए आवेदन करें.

हालांकि वो ये ज़रूर कहती हैं कि वो फिर से वीज़ा के लिए आवेदन देने की योजना बना चुकी थीं, लेकिन उनके दोबारा आवेदन करने से पहले ही उनकी कहानी पाकिस्तान की विदेश मंत्री हिना रब्बानी ख़ार तक पहुंच गई जिन्होंने दिल्ली में पाकिस्तान के दूतावास को रीना के वीज़ा की प्रक्रिया पूरी करने के निर्देश दिए.

रीना बताती हैं, "जब पाकिस्तान के दूतावास से मेरे पास फ़ोन आया तो मेरी खु़शी का ठिकाना ही नहीं रहा. उन्होंने मुझसे आने और वीज़ा हासिल करने के लिए कहा. कुछ ही दिन में ये सब हो गया."

लेकिन फिर एक और चुनौती उनके सामने थी. गर्मी बहुत थी. और हाल ही में रीना ने अपने बेटे को खोया था. ऐसे में उन्हें अकेले ही यात्रा करना था. उन्हें कुछ और महीने इंतज़ार करने की सलाह दी गई.

वो कहती हैं कि इंतज़ार करना बहुत थकाने वाला था लेकिन वो बीमार पड़ने का ख़तरा नहीं उठा सकती थीं. इसलिए उन्होंने सब्र किया और आख़िरकार 16 जुलाई को पाकिस्तान पहुँचीं.

20 जुलाई को रीना आख़िरकार अपने पैतृक घर पहुंची. मैंने सुबह उनसे मुलाक़ात की थी जब वो होटल की लॉबी में बैठी थीं.

उन्होंने इस मौके के लिए ख़ास पोशाक पहनी थी. उन्होंने रंग बिरंगी बसंती सलवार कमीज़ के साथ हरी चुन्नी पहनी थी. वो शांत और ख़ूबसूरत लग रहीं थीं. उन्होंने नेल पेंट लगाया था, जब वो चेहरा घुमातीं तो चमकते हुए कानों के कुंडल नज़र आते.

लेमन जूस पीते हुए उन्होंने मुझसे कहा कि इस यात्रा को लेकर उनकी भावनाएं मिश्रित हैं. वो बोलीं, "ये कड़वी भी हैं और मीठी भी."

"मैं इस पल को अपने परिवार के साथ साझा करना चाहती थी. लेकिन वो सब जा चुके हैं. मैं यहां आकर ख़ुश हूं लेकिन बहुत अकेला भी महसूस कर रही हूं."

रीना बताती हैं कि 1947 की गर्मियों में उन्होंने रावलपिंडी में अपना घर छोड़ा था. उन्होंने और उनकी बहनों ने कभी ये नहीं सोचा था कि वो वापस नहीं लौट पाएंगी.

"मेरी एक बहन की शादी अमृतसर में हुई थी, मेरे बहनोई अप्रैल 1947 में हमसे मिलने आए थे और मेरे पिता से मुझे अपने साथ वापस भेजने को कहा था. वो जानते थे कि हालात ख़राब होने वाले हैं. इसलिए, उस साल गर्मियों में हमें शिमला भेज दिया गया था. हम मरी नहीं गए थे जहां आमतौर पर हम छुट्टियां मनाने जाते थें. मरी एक पहाड़ी रिसॉर्ट है जो रावलपिंडी से 55 किलोमीटर दूर है."

"मेरे माता पिता ने शुरू में आनाकानी की थी लेकिन कुछ सप्ताह बाद वो भी हमारे पास आ गए थे. धीरे-धीरे हम सबने बंटवारे को स्वीकार कर लिया था, हालांकि मेरी मां इसे स्वीकार नहीं कर पाईं थीं. वो कभी भी बंटवारे को समझ नहीं पाईं और हमेशा ये ही कहा करती थीं कि इससे हमें क्या ही फ़र्क पड़ेगा, पहले हम ब्रितानी राज में रहते थे, अब मुस्लिम राज में रह लेंगे. लेकिन हमें हमारे घर को छोड़ने के लिए मजबूर कैसे किया जा सकता है."

रीना बताती हैं कि उनकी मां ने उस घर को कभी स्वीकार नहीं किया जो उन्हें शरणार्थी के तौर पर दिया जा रहा था क्योंकि उन्हें लगता था कि अगर वो इस घर को ले लेंगी तो पाकिस्तान में उस घर पर उनका दावा छूट जाएगा जिसे वो छोड़कर आई हैं.

वापस घर लौटना
जब रीना ने अपने बुज़ुर्गों की गली में क़दम रखा स्थानीय लोगों की भीड़ ने उनका स्वागत किया. उन्होंने रीना को गोद में उठा लिया, गले लगाया और उन पर गुलाब के फूलों की बारिश की.

कुछ लोगों ने ढोल की आवाज़ पर उनके साथ डांस भी किया. रीना बहुत ख़ुश नज़र आ रहीं थी. फिर उन्हें घर के भीतर ले जाया गया जहां मीडिया को जाने की अनुमति नहीं थी.

इमारत के हरे रंग के अगवाड़े पर ताज़ा रंग किया गया था. घर बाहर से कुछ नयापन लिए था लेकिन उसका ढांचा पुराना था. इसी बीच गली में लोगों की भीड़ बढ़ती जा रही थी. वो सब रीना को देखना और उनके साथ सेल्फी लेना चाहते थे.

रीना कुछ घंटों तक घर के भीतर रहीं. जब वो दोबारा बाहर निकलीं तो दर्जनों कैमरे उनकी तस्वीर लेने का इंतज़ार कर रहे थे.

मौसम में नमी थी और गली में भीड़ थी. लेकिन रीना शांत दिख रहीं थीं. उन पर अपने इर्द गिर्द इकट्ठा पत्रकारों का कोई असर नहीं था.

उन्होंने मीडिया को बताया कि घर अधिकतर अब भी पहले जैसा ही है. टाइलें, छत, आग की जगह सबकुछ वैसा ही है और ये देखकर उन्हें अपनी ज़िंदगी के उस ख़ूबसूर दौर की याद आ रही है जो उन्होंने यहां बिताया. उन्हें अपने उन रिश्तेदारों की भी याद आई जिन्हें अब वो गंवा चुकी हैं.

रीना ने कहा कि उनका दिल रो रहा है लेकिन वो शुक्रगुज़ार हैं कि वो अपने घर को दोबारा देखने के लिए ज़िंदा रहीं.

जब उनसे पूछा गया कि वो दोनों देशों की सरकारों को क्या संदेश देना चाहती हैं तो उन्होंने राजनीति में पड़ने से इनकार करते हुए सिर्फ़ इतना ही कहा कि जिन लोगों के परिवार और जड़ें बॉर्डर के आरपार हैं उन्हें इस तरह से पीड़ा नहीं झेलनी चाहिए जैसे उन्हें झेलनी पड़ीं.

भारत और पाकिस्तान में बहुत से लोगों को लगता है कि दिल को छू जाने वाली उनकी कहानी इस क्षेत्र को नई उम्मीद देगी जो जहां दूसरे समुदायों के प्रति नफ़रत की राजनीति हर चीज़ पर हावी हो रही है. (bbc.com)

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