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कॉमनवेल्थ गेम्स 2022: हॉकी टीम के निशाने पर इस बार सोने का तमगा
24-Jul-2022 9:11 AM
कॉमनवेल्थ गेम्स 2022: हॉकी टीम के निशाने पर इस बार सोने का तमगा

इमेज स्रोत,@THEHOCKEYINDIA

-मनोज चतुर्वेदी

भारतीय पुरुष हॉकी टीम की कोई चाहत है तो वह है कॉमनवेल्थ गेम्स में सोने के तमगे के साथ पोडियम पर चढ़ना.

पर उसके इस सपने की राह में सबसे बड़ी बाधा कोई है तो वह है ऑस्ट्रेलिया.

वैसे तो ऑस्ट्रेलिया के विश्व हॉकी में दबदबे को हम सभी जानते हैं और इन खेलों में 1998 में हॉकी के शामिल होने के बाद से हर बार ऑस्ट्रेलिया चैंपियन बनकर ही लौटी है.

भारत ने अब तक दो बार ही 2010 और 2014 में ही फ़ाइनल तक चुनौती पेश की है और दोनों बार उसे ऑस्ट्रेलिया से हारकर रजत पदक से संतोष करना पड़ा.

इसके अलावा टीम दो बार चौथे स्थान पर रही है. इससे यह तो साफ़ है कि भारत का अभियान बहुत चमकदार तो नहीं रहा है.

इसमें कोई दो राय नहीं कि पिछले साल हुए टोक्यो ओलंपिक में भारत के कांस्य पदक जीतने के बाद से इस टीम की एकदम से कायापलट हो गई है.

अब हमारी टीम दुनिया की किसी भी टीम को फतह करने का माद्दा रखती है. यह उसने इस बार एफआईएच प्रो लीग में शानदार प्रदर्शन करके दिखाया भी है. इसमें तीसरे स्थान पर रहना भारत की ताक़त को तो दर्शाता है.

इस लीग में भारत ने स्पेन, अर्जेंटीना, इंग्लैंड, जर्मनी और बेल्जियम पर कम से एक जीत पाकर यह तो जताया ही है कि वह अब बिग लीग की टीम है और अपना दिन होने पर किसी भी टीम को धता बता सकती है.

भारतीय टीम इस लीग में अगर फ़्रांस के ख़िलाफ़ जीत हासिल कर लेती या कुछ और मैच जीतती तो लीग में टॉप करता या दूसरे स्थान पर ज़रूर रहती.

टोक्यो ओलंपिक के बाद लगातार शानदार प्रदर्शन करने से टीम के हौसले में भी बढ़ोतरी हुई. यही वजह है कि इस बार वो ऑस्ट्रेलिया की मौजूदगी में भी सोने का तमगा हासिल करने की सोच रही है.

भारतीय उपकप्तान हरमनप्रीत सिंह ने कहा... हमने एफ़आईएच प्रो लीग में अच्छी हॉकी खेली है और हम इस बार कॉमनवेल्थ गेम्स में स्वर्ण पदक जीतने का हरसंभव प्रयास करेंगे. हमने बेंगलुरु शिविर में फिनिशिंग और डिफेंस में सुधार के लिए कड़ी मेहनत की है. हमारी टीम सही दिशा में आग बढ़ रही है.

हरमनप्रीत की इस सोच को बनाने में भारत की पिछले कुछ सालों के दौरान पेनल्टी कार्नरों को लेने में विशेषज्ञता हासिल करने ने भी निभाई है. हम सभी जानते हैं कि पहले पेनल्टी कॉर्नरों को गोल में बदलना हमारी प्रमुख कमज़ोरी हुआ करती थी. लेकिन अब हमारे पास विश्व स्तरीय ड्रैग फ्लिकर हैं. पिछली एफ़आईएच प्रो लीग में हरमनप्रीत ने सबसे ज़्यादा 16 गोल जमाकर भारत की ताक़त का अहसास कराया है.

इसमें कोई दो राय नहीं कि पिछले कुछ सालों में हमारी टीम ने फिटनेस पर बहुत मेहनत की है और अब हम बाकी टीमों की तरह ही फिटनेस रखते हैं. इसका ही परिणाम है कि हमारी टीम अब अंतिम क्षणों तक जमकर संघर्ष करती है. पिछले कुछ सालों में भारत ने आखिरी क्षणों में कई मैचों पर परिणामों को पलटा है. पहले हमारी टीम एक बार पिछड़ने के बाद खेल पर से पकड़ खो देती थी पर अब ऐसा नहीं है.

पिछले दिनों प्रो लीग में ओलंपिक चैंपियन बेल्जियम से खेलने भारतीय टीम एंटवर्प गई तो पहले ही मैच में एक समय 1-3 से पिछड़ गई और खेल खत्म होने में मात्र आठ मिनट बचे थे. पर भारतीय टीम हार माने बगैर जूझती रही और हरमनप्रीत के 52वें मिनट और जर्मनप्रीत के 57वें मिनट में जमाए गोल से बराबरी ही नहीं प्राप्त की बल्कि टाईब्रेकर में मुक़ाबला जीत दिखाया.

कोच ग्राहम रीड की अहम भूमिका
भारतीय टीम के कोच ग्राहम रीड ने खिलाड़ियों का कौशल मांजने के साथ उन्हें मानसिक तौर पर भी मजबूत बनाने में अहम भूमिका निभाई है. यही वजह है कि अब टीम हमले पर हो या बचाव में, उसमें हड़बड़ाहट नजर नहीं आती है. साथ ही उन्होंने खिलाड़ियों को सफ़ाई के साथ टैकलिंग करना भी सिखाया और इसकी वजह से भारतीय टीम ने अब पेनल्टी कॉर्नर कम देने शुरू कर दिए हैं.

भारतीय टीम के लगातार अच्छे प्रदर्शन की वजह टीम की कमान लंबे समय से एक ही कोच के हाथ में रहना भी है. ग्राहम रीड के कोच बनने से पहले हमारे यहां किसी भी कोच का टिकना बेहद मुश्किल काम था. इसकी वजह कोच के काम में हस्तक्षेप करने की वजह से टकराव बनता था और कोच को जाने की राह दिखा दी जाती थी. लेकिन ग्राहम रीड ने अपने व्यवहार से तो देश के हॉकी के कर्ताधर्ताओं का शिकार बनने से अपने को बचाए रखा है. पर इतना ज़रूर है कि ग्राहम रीड के बने रहने का टीम को फ़ायदा मिला है.

भारत को कॉमनवेल्थ गेम्स की पुरुष हॉकी में इंग्लैंड, कनाडा, वेल्स और घाना के साथ पूल 'बी' में रखा गया है. वहीं पूल 'ए' में पिछली चैंपियन ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, दक्षिण अफ्रीका और पाकिस्तान को रखा गया है. इससे यह तो साफ़ है कि भारत का ग्रुप थोड़ा आसान है.

लिहाजा भारत के लिए अपने ग्रुप में पहले दो स्थानों पर रहकर सेमीफ़ाइनल में जगह बनाना मुश्किल नहीं है. मुश्किल तो सेमीफ़ाइनल में ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड या पाकिस्तान में से किसी भी टीम से साथ सामना होने पर, उसे जीतने में होगी.

ऑस्ट्रेलिया से पार पाकर ही चैंपियन बन सकेंगे
भारत यदि ग्रुप में टॉप पर रहकर सेमीफ़ाइनल में पहुंचता है तो उसके फ़ाइनल खेलने की संभावनाएं बढ़ सकती हैं. इससे वह सेमीफ़ाइनल में ऑस्ट्रेलिया से खेलने से बच सकता है. पर चैंपियन बनने के लिए भारत को ऑस्ट्रेलिया को फतह करना ही होगा. यह काम किसी भी सूरत में आसान नहीं है.

ऑस्ट्रेलियाई टीम की दिक्कत यह ज़रूर है कि इस बार उसने देश में फैले कोविड की वजह से एफ़आईएच प्रो लीग में भाग नहीं लिया था, जिसकी वजह से टीम को अंतरराष्ट्रीय अनुभव की कमी खल सकती है. लेकिन ऑस्ट्रेलिया का इन खेलों में रिकॉर्ड ज़रूर उसकी बादशाहत को बताता है.

मुझे याद है कि भारतीय टीम कॉमनवेल्थ गेम्स 2010 के घर में आयोजन होने पर बहुत अच्छा खेल रही थी, तो लगा था कि इस बार सोने के तमगे का सपना साकार कर सकते हैं. इस सोच की वजह इंग्लैंड को टाईब्रेकर में 5-4 से फतह कर लेना था. लेकिन फ़ाइनल में उतरते ही ऑस्ट्रेलियाई टीम ने भारत की कलई खोल कर रख दी. ऑस्ट्रेलिया ने भारत पर आठ गोल ठोककर मैच का स्कोर टेनिस जैसा बना दिया.

यह सही है कि हम भले ही गोल्ड कोस्ट में हुए पिछले खेलों में पदक से मरहूम रहे थे. लेकिन पिछले चार सालों में भारत ने ग्राहम रीड के प्रशिक्षण में खासी प्रगति की है और इसकी झलक पहले टोक्यो ओलंपिक और फिर एफआईएच प्रो लीग में देखने को मिली है. इसलिए इस बार टीम यदि सोने के तमगे का सपना देख रही है तो उसके साकार होने की संभावना भी दिखती है.

आखिरी समय में मजबूत टीम भेजने का फैसला
बर्मिघम कॉमनवेल्थ गेम्स और चीन में होने वाले एशियन गेम्स के आयोजन के बीच कम दिनों का अंतर होने पर पहले हॉकी इंडिया ने इन खेलों में युवा खिलाड़ियों की टीम भेजने का फ़ैसला किया था. इसकी वजह, एशियन गेम्म में गोल्ड जीतने का मौका होना था. ऐसा करने पर 2024 के पेरिस ओलंपिक के लिए भारतीय टीम सीधे क्वालिफ़ाइ कर जाती.

लेकिन चीन में कोविड की स्थिति ख़राब होने पर एशियाई खेलों के 2023 के लिए स्थगित हो जाने पर भारत ने इन खेलों में पूरी ताक़त वाली टीम भेजने का फ़ैसला किया. इसलिए इस टीम में टोक्यो ओलंपिक में भाग लेने वाले ज़्यादातर खिलाड़ी शामिल हैं.

इन खेलों में प्रदर्शन से टीम प्रबंधन को उसकी ताक़त का सही अहसास करने में मदद भी मिलेगी. असल में भारत को अगले साल जनवरी में अपने घर में होने वाले विश्व कप तक इसके बाद किसी मेजर टूर्नामेंट में नहीं खेलना है. इसलिए कॉमनवेल्थ गेम्स उसके लिए बहुत अहम रहने वाले हैं. (bbc.com)

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