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'इंडिया लॉकडाउन': बंद देश में क़ैद ज़िंदगियों की 'कैमरा देखी' दास्तां
30-Nov-2022 10:38 AM
'इंडिया लॉकडाउन': बंद देश में क़ैद ज़िंदगियों की 'कैमरा देखी' दास्तां

MADHUR BHANDARKAR

-मधुपाल

पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित फ़िल्म निर्देशक मधुर भंडारकर की नई फ़िल्म 'इंडिया लॉकडाउन' की स्क्रीनिंग गोवा में चल रहे भारत के अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म समारोह (आईएफ़एफ़आई) में की गई.

स्क्रीनिंग के बाद मिली प्रतिक्रिया से उत्साहित मधुर भंडारकर ने कहा, "मैं बहुत ख़ुश हूँ कि मुझे मेरी फ़िल्म के लिए सकारात्मक प्रतिकिया मिल रही है. यहाँ आए सभी लोगों को फ़िल्म पसंद आई."

मधुर भंडारकर कहते हैं, "फ़िल्म महामारी और लॉकडाउन के प्रभावों को दर्शाती है."

लॉकडाउन के दौरान कितने लोग बेरोज़गार हो गए, प्रवासी मज़दूरों को अपने मूल स्थानों पर वापस लौटने के दौरान कितनी यातनाएं झेलनी पड़ीं और हज़ारों सेक्स वर्कर्स किस तरह अपनी नियमित आय के स्रोतों से वंचित हो गए, ये फ़िल्म इन तमाम पहलुओं पर रोशनी डालती है.

फ़िल्म की कहानी के ज़रिए उन्होंने लॉकडाउन की हक़ीक़त को पर्दे पर उतारने की कोशिश की है.

नेशनल अवॉर्ड से सम्मानित मधुर भंडारकर बीबीसी हिंदी से बातचीत में कहते हैं, "मेरी फ़िल्म 'इंडिया लॉकडाउन' शुरुआत के 25 से 30 दिनों की कहानी है. लॉकडाउन में क्या परिस्थिति थी लोगों की, किस तरह से लोगों का दूसरे लोगों को देखने का नज़रिया बदला. किस तरह से हर वर्ग का इंसान इस बीमारी से जूझ रहा था."

मधुर के मुताबिक़, साल 2020 में जब पहली बार लॉकडाउन घोषित हुआ था, उसी दौरान उन्होंने फ़िल्म का खाका तैयार कर लिया था.

मधुर कहते हैं, "जब हम घर पर बैठे थे तो मैंने दो स्क्रिप्टें लिखी थीं, 'बबली बाउंसर' और 'इंडिया लॉकडाउन.' मेरे लिए आसान नहीं था इस फ़िल्म को बनाना. जब मैंने 'इंडिया लॉकडाउन' लिखने की सोची, तो पहले लगा कि हम इस पर सिरीज़ बना सकते हैं.

क्योंकि मैंने जितनी कहानियां देखीं, जितनी कहानियां पढ़ीं और महसूस कीं, उसमें मैंने 12 कहानियां तलाशी थीं. लेकिन फिर लगा 12 कहानियां बहुत ज़्यादा हो जाएंगी."

इस तरह सिरीज़ से बात एक फ़िल्म के खाके में आई जिसमें सिर्फ़ चार कहानियां रखी गईं. इसमें दो स्टोरी मिडल क्लास फ़ैमिली की और दो लोअर इनकम ग्रुप से आने वाले लोगों की रखी गई, जैसे प्रवासी मज़दूर और सेक्स वर्कर.

मधुर भंडारकर बताते हैं कि सेक्स वर्कर के किरदार के लिए उन्होंने श्वेता बसु का चुनाव किया.

इसके साथ प्रकाश भीलवाड़ी को नॉर्मल मिडिल क्लास फ़ैमिली से दिखाया गया है जो हैदराबाद में रह रही अपनी प्रेग्नेंट बेटी से मिलना चाहते हैं.

फ़िल्म में एक क़िरदार आहाना कुमरा का है जो पेशे से पायलट हैं. वो उस वक़्त अकेली हैं और पड़ोसी से उनकी दोस्ती हो जाती है जो उनसे काफ़ी यंग है.

मधुर भंडारकर कहते हैं, "मुझे यह डायनमिक्स बड़ा अच्छा लगा. मेरी फ़िल्म में 70 फ़ीसदी रियलिटी है और 30 फ़ीसदी फ़िक्शन ऐड किया है."

'लॉकडाउन का दर्द भूलना मुश्किल'

लॉकडाउन के दौरान हुई तकलीफ़ों पर मधुर भंडारकर कहते हैं कि लोग आज तक इसे नहीं भूल पाए हैं.

वे बताते हैं, "इस फ़िल्म को लिखने के लिए सबसे ज़्यादा प्रेरित मुझे दो वर्गों ने किया. पहला प्रवासी मज़दूर और दूसरे सेक्स वर्कर. जिस तरह से उनके रोज़गार और धंधे पर गाज गिरी, उनकी तो पूरी ज़िंदगी ही पलट गई. मज़दूर भाई अपने गाँव जाने को मजबूर हुए. कितने मीलों चले वे, भूखे प्यासे, तब जाकर अपने घर पहुंच पाए. कुछ लोगों ने तो रास्ते में ही दम तोड़ दिया."

मधुर बताते हैं, "लॉकडाउन के दौरान मैंने जो लाचारी महसूस की, वो पहले कभी नहीं सोची थी. आप कितने भी अमीर हों, कितने भी रईस हों, कितनी भी आपके पास शोहरत हो, नाम हो, इस बीमारी के आगे सब बौने साबित हुए. हम लाइफ़ में कितना कुछ सोचते हैं कि हम ये करेंगे, वो करेंगे, ऐसा करेंगे, वैसा करेंगे और एक जो बीमारी आ जाती है, उसके साथ पूरी दुनिया थम जाती है."

'इमेज में बांधकर नहीं रहना'

मधुर भंडारकर बॉलीवुड में रियलिस्टिक फ़िल्म मेकर की तरह देखे जाते हैं. लेकिन मधुर कहते हैं वो ऐसी किसी एक इमेज में बंधकर नहीं रहना चाहते.

वो कहते हैं, "निर्देशक के तौर पर मुझे लगता है कि मुझे हर तरह की फ़िल्में करनी चाहिए. मैं एक ही इमेज में बंध कर नहीं रहना चाहता हूं. मैं इस बात को मानता हूँ कि मेरे करियर में मुझे जो छलांग मिली है वह मुझे 'चांदनी बार' से मिली है. मधुर का सिनेमा हमेशा से ही बहुत रीयल रहा है, अपनी बात मैं बहुत बेबाकी से रखता हूं."

मधुर हमेशा ऐसा विषय उठाते हैं जो अलग होता है. वो चाहे 'चांदनी बार' हो या 'फ़ैशन' या फिर 'हीरोइन' जैसी फ़िल्म जिसमें एक ऐसी नायिका की कहानी है जो अपने सुपर स्टारडम से जूझती है. इसी तरह 'पेज 3' की बात करें या 'कॉरपोरेट' की दुनिया की या फिर 'ट्रैफ़िक सिग्नल' की तो मधुर की हर फ़िल्म में समाज का कोई न कोई स्याह सच सामने आता है.

मधुर कहते हैं, "मुझे अच्छा लगता है ये सब दिखाने में. मैं ऐसी ही फ़िल्में बनाता हूं जो मुझे समझ में आती हैं. चाहे उसका बजट छोटा हो या बड़ा हो. मैं पहले जो ऐक्टर मिल सकता है, उसे ही अप्रोच करता हूं."

वो कहते हैं, "चांदनी बार में मैंने तब्बू के सामने न्यू कमर अतुल कुलकर्णी को कास्ट किया था, 'सत्ता' में भी मैंने अतुल कुलकर्णी को रिपीट किया था, कोंकणा सेन को हिंदी सिनेमा में मैंने 'पेज 3' से ब्रेक दिया था. जहां स्टार चाहिए मैंने वहां स्टार को भी अप्रोच किया है जैसे- करीना कपूर, बिपाशा बासु, प्रियंका चोपड़ा."

हाल ही में तमन्ना भाटिया, मधुर भंडारकर की फ़िल्म 'बबली बाउंसर' से हिंदी सिनेमा में फिर से दिखीं.

मधुर कहते हैं, "मैं कैरेक्टर के लिहाज से ऐक्टर को अप्रोच करता हूं. मैं ऐसा नहीं करता कि चलो ऐक्टर मेरे पास है तो इसके आसपास स्क्रिप्ट लिख लिया जाए."

'मैं किसी कैंप का हिस्सा नहीं'
मधुर कहते हैं कि वो बॉलीवुड की कैंपबाजी से दूर ही रहते हैं. वो अपनी कहानी और काम की धुन में लगे रहते हैं, "जब काम नहीं है तो मैं 3-3 साल का ब्रेक भी ले लेता हूँ. मैं अपनी दुनिया में खुश हूं. मेरी ना कोई लॉबी है, ना मैं किसी के अंडर काम करता हूं, मैं फ़िल्म के माध्यम से ही बोलता हूं."

वो कहते हैं, "21 साल हो गए फ़िल्में बनाते हुए. इस दौरान अपनी प्रतिभा से अपना ख़ुद का एक मुकाम बनाया, एक ब्रांड बनाया, अपने अंदाज़ का सिनेमा गढ़ा.''

"आज मुझे लोग पहचानते हैं और मेरे काम को सराहते हैं. मुझे लगता है कि मुझे जो स्टोरीज़ दिखानी हैं, वह मैं अपने अंदाज़ में दिखाता हूं. और इसी तरह से आगे भी करता रहूंगा."

हालांकि मधुर भंडारकर का ये भी कहना है कि वो भले ही अपने टाइप की फ़िल्म बनाते हैं, लेकिन इसमें बंधना नहीं चाहते.

वो कहते हैं, "ऐसा नहीं कि मुझे दूसरी टाइप की फ़िल्में पसंद नहीं हैं. मुझे 'कंटारा' भी बहुत अच्छी लगी. मैंने हाल ही में 'पुष्पा' तीन बार थिएटर में जाकर देखी. मुझे बहुत अच्छी लगी."

'इंडिया लॉकडाउन' में श्वेता बसु प्रसाद, प्रतीक बब्बर, अहाना कुमरा, साई तम्हनकर और प्रकाश बेलावाड़ी मुख्य भूमिकाओं में हैं. यह फ़िल्म 2 दिसंबर से ओटीटी प्लेटफ़ार्म ज़ी5 पर स्ट्रीम होगी.

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