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ऑस्कर की होड़ में आरआरआर: नए शिखर की ओर दक्षिण भारत का सिनेमा
23-Jan-2023 11:59 AM
ऑस्कर की होड़ में आरआरआर: नए शिखर की ओर दक्षिण भारत का सिनेमा

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-प्रदीप सरदाना

तेलुगू फिल्म 'आरआरआर' कई बड़े अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार जीतते हुए जिस तरह सफलता पा रही है, उससे सभी हैरत में हैं. इससे अंतरराष्ट्रीय पटल पर भारतीय सिनेमा का मान सम्मान तो बढ़ा ही, साथ ही दक्षिण भारत की फ़िल्मों का दबदबा भी अब बहुत तेज़ी से बढ़ने लगा है.

निर्देशक एस एस राजामौली की तेलुगू में बनी 'आरआरआर' यूं तो बीते मार्च से तभी से सुर्खियां बटोर रही है, जब ये प्रदर्शित हुई थी.

बॉक्स ऑफिस पर अपार सफलता पाने के साथ बीते वर्ष ही इस फ़िल्म ने कुछ पुरस्कार अपनी झोली में समेटने शुरू कर दिए थे.

अब जब 'आरआरआर' को पहले अपने गीत 'नाटू नाटू' के लिए 'गोल्डन ग्लोब अवार्ड' मिला तो इसके ऑस्कर अवार्डस के लिए नॉमिनेशन की संभावनाएं प्रबल हो गई हैं.

गोल्डन ग्लोब अवार्ड के बाद 'आरआरआर' को 'क्रिटिक्स चॉइस मूवी अवार्ड' मिलना तो सोने पे सुहागा जैसा है क्योंकि ऑस्कर नॉमिनेशन की बात हो या ऑस्कर अवार्ड्स में जूरी के फ़ैसले की, सभी में क्रिटिक्स अवार्ड्स की भी अहम भूमिका रहती है.

इसी 28वें क्रिटिक्स चॉइस अवार्ड्स में 'आरआरआर' को 'नाटू नाटू' गाने के लिए तो पुरस्कार मिला ही. उससे बढ़कर विदेशी भाषा की सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का पुरस्कार भी 'आरआरआर' को मिलना, फ़िल्म के लिए बड़ी उपलब्धि है.

इसके बाद अब सिएटल क्रिटिक्स अवार्ड्स में भी 'आरआरआर' को बेस्ट एक्शन कोरियोग्राफ़ी का पुरस्कार मिलना, यह बताता है कि क्रिटिक्स अवार्ड्स में 'आरआरआर' को अलग अलग श्रेणियों में पसंद किया जा रहा है.

इससे यह फ़िल्म ऑस्कर नॉमिनेशन की रेस में सशक्त हो जाती है. यूं पिछले वर्ष से अभी तक के अलग-अलग क्रिटिक्स अवार्ड्स को देखें तो 'आरआरआर' अब तक क़रीब 20 क्रिटिक्स अवार्ड्स प्राप्त कर चुकी है.

उधर इस फ़िल्म की प्रशंसा विदेश के कुछ बड़े फ़िल्मकार भी कर रहे हैं. हॉलीवुड की 'अवतार' जैसी फ़िल्मों से विश्व में अपनी एक बड़ी पहचान बना चुके निर्देशक जेम्स कैमरून को तो 'आर आर आर' इतनी पसंद आई कि इस फ़िल्म को उन्होंने दो बार देखा.

इधर अपनी देसी गर्ल प्रियंका चोपड़ा भी फ़िल्म को अपना समर्थन दे रही है. प्रियंका ने अमेरिका में हुई इस फ़िल्म की स्पेशल स्क्रीनिंग में तो हिस्सा लिया ही. साथ ही फ़िल्म और इसकी टीम की तारीफ़ करने के साथ अपनी शुभकामनाएँ भी दीं.

हालांकि यह आश्चर्य ही है कि जो फ़िल्म देश-विदेश में विभिन्न मोर्चों पर सराही जा रही है. उस फ़िल्म को भारत की ओर से अधिकृत रूप से ऑस्कर के लिए नामांकन नहीं मिला.

इधर 'आरआरआर' के लिए कई सफलताओं के बीच एक असफलता यह भी है कि 19 फ़रवरी 'बाफ्टा अवार्ड्स के नॉमिनेशन में भी यह फ़िल्म नामांकित नहीं हो सकी.

क़रीब 450 करोड़ रुपये बजट की यह भव्य फ़िल्म अभी तक दुनियाभर में क़रीब 1100 करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार कर चुकी है. इन दिनों जापान में भी इसे अच्छा खासा पसंद किया जा रहा है. लेकिन फ़िल्म फेडरेशन ऑफ़ इंडिया ने 'आरआरआर' को ऑस्कर के लिए योग्य नहीं समझा.

चर्चित गुजराती फिल्म 'छेल्लो शो' उर्फ़ 'आखिरी फ़िल्म शो' को भारत की तरफ़ से ऑस्कर के लिए ऑफिसियल एंट्री दी गई.

यह देख एसएस राजमौली ने ख़ुद ही ऑस्कर के लिए 'आपके विचार के लिए' अपना अभियान शुरू कर दिया. जिसके चलते ऑस्कर अवार्ड्स के लिए शॉर्ट लिस्टेड होने वाली 300 फ़िल्मों में 'आरआरआर' को ले लिया गया लेकिन अभी इसका फ़ाइनल नॉमिनेशन होना है.

यदि यह अंततः नामांकित हो जाती है तो 12 मार्च को होने वाले ऑस्कर समारोह के लिए फ़िल्म प्रतियोगिता में आगे बढ़ेगी.

क्षेत्रीय फ़िल्मों का बढ़ता दबदबा
फ़िल्म 'आरआरआर' ऑस्कर की रेस में आगे बढ़ पाती है या नहीं ये तो आगे ही पता चलेगा, लेकिन ऑस्कर में भारत की यहाँ तक भी एक तेलुगू और दूसरी गुजराती यानी दो क्षेत्रीय फ़िल्मों का पहुँचना बताता है कि क्षेत्रीय सिनेमा का दबदबा विदेशों में भी बराबर बढ़ रहा है.

हम चाहे व्यावसायिक दृष्टि से देखें या पुरस्कार और लोकप्रियता की दृष्टि से सभी ओर क्षेत्रीय सिनेमा आगे चल रहा है. इसमें कोई शक नहीं कि अभी तक भारतीय सिनेमा को विश्व में जो बड़ी लोकप्रियता मिली है वह हिन्दी फ़िल्मों के कारण ज़्यादा मिली थी.

विश्व में भारतीय सिनेमा का पहला परचम 1946 में हिन्दी फ़िल्म 'नीचा नगर' ने फहराया था. फ़िल्मकार चेतन आनंद और अभिनेत्री कामिनी कौशल की 'नीचा नगर' को कान फ़िल्म समारोह में 'पाम डी ओर' (सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का) अवार्ड मिला था. यहाँ तक फ़िल्मकार राज कपूर की 'आवारा' भी 1951 के बाद रूस के साथ दुनिया के कई देशों में इतनी लोकप्रिय हुई कि राज कपूर तब दुनिया भर में भारत के 'सांस्कृतिक दूत' बनकर उभरे.

यूं फ़िल्म 'नीचा नगर' के क़रीब 10 साल बाद सत्यजित रे ने अपनी बांग्ला फ़िल्म 'पाथेर पांचाली' से विश्व सिनेमा में भारत के क्षेत्रीय सिनेमा को महत्व दिलाना शुरू कर दिया था. फिर भी भारतीय फ़िल्मों को विदेशों में अपार ख्याति हिन्दी फ़िल्मों से ही अधिक मिलती आई है. हालांकि राजामौली की ही 2015 में प्रदर्शित तेलुगू फ़िल्म 'बाहुबली' के बाद देश विदेश में समीकरण तेज़ी से बदल रहे हैं.

इससे अब हिन्दी सिनेमा धीरे-धीरे नेपथ्य में जाता दिख रहा है और क्षेत्रीय सिनेमा नित नए शिखर छू रहा है.

बॉक्स ऑफिस पर भी पीछे हिन्दी फ़िल्में
हम कुछ बरस पहले के सिनेमा की भारतीय तस्वीर देखें तो अमिताभ बच्चन पहले ऐसे अभिनेता रहे जिनकी फिल्में हिन्दी बेल्ट के साथ साथ दक्षिण के सभी राज्यों के और पश्चिम बंगाल सहित पूरे देश में खूब व्यापार करती थीं. तो विदेशों में भी.

बाद में आमिर ख़ान, शाहरुख ख़ान और सलमान ख़ान की तिगड़ी ने देश-विदेश में अपनी फ़िल्मों से खूब धूम मचाई. यहाँ तक देश में बरसों से सफलता की माप दंड बने रहे सिल्वर जुबली-गोल्डन जुबली फ़िल्मों के युग को करोड़ी युग में आमिर ने ही बदला. जब उनकी 'गजनी' ने चंद दिनों में 100 करोड़ रुपये का बिजनेस कर सफलता के नए मापदंड स्थापित कर दिए.

इन तीन ख़ान सितारों के साथ अक्षय कुमार, ऋतिक रोशन, अजय देवगन, रणबीर कपूर बॉक्स ऑफिस के ऐसे बादशाह बन गए कि क्षेत्रीय सिनेमा हाशिए पर जाता दिखाई देने लगा. पहले हिन्दी क्षेत्र में रजनीकान्त और कमल हासन जैसे सितारों की फ़िल्में खूब चलती थीं. लेकिन बाद में इनकी फ़िल्में की भी लोकप्रियता उत्तर भारत में कम होने लगी.

2022 की 10 शिखर फ़िल्में
लेकिन अब कोरोना काल के बाद तो हालात ऐसे हो गए हैं कि दक्षिण भारत की फ़िल्में धमाल कर रही हैं और हिन्दी फ़िल्में धूल चाट रही हैं. इससे अब दक्षिण फ़िल्मों को नहीं, हिन्दी सिनेमा को अपना अस्तित्व बचाना मुश्किल हो गया है.

2022 में बॉक्स ऑफिस पर सर्वाधिक कमाई करने वाली 10 फ़िल्मों को देखें तो दक्षिण फ़िल्मों की पूरे भारत में सफलता की गूंज सातवें आसमान तक है. इस साल जिन 10 फ़िल्मों ने सर्वाधिक कमाई की उनमें टॉप -3 में तीनों फ़िल्में दक्षिण की ही हैं. जबकि कुल 10 शिखर फ़िल्मों में 6 फ़िल्में दक्षिण भारत की हैं.

आईएमडीबी के आंकड़ों के अनुसार पहले पायदान पर कन्नड़ मूल की फ़िल्म 'केजीएफ़ चैप्टर- 2' है. कुल 205 करोड़ रुपये बजट की इस फ़िल्म ने टिकट खिड़की पर विश्व भर में कुल 1235 करोड़ रुपये का संकलन किया. दूसरे पायदान पर तेलुगू मूल की 'आरआरआर' है जिसने पूरे विश्व में 1135 करोड़ रुपये एकत्र किए. इनके बाद 165 करोड़ रुपये में बनी तमिल फ़िल्म 'पोन्नियिन सेलवन पार्ट- 1' है, जिसने 500 करोड़ एकत्र किए.

हिन्दी फ़िल्मों की बात करें तो चौथे पायदान पर 'ब्रह्मास्त्र' है. यह 400 करोड़ रुपये की फ़िल्म दुनिया भर में 430 करोड़ का बिजनेस का दावा कर रही है.

इसके बाद सातवें नंबर पर अजय देवगन की 'दृश्यम- 2' है. अपने 65 करोड़ रुपये की लागत से बनी यह फ़िल्म 342 करोड़ रुपये का कुल व्यापार करने में सफल रही.

टॉप-10 की अन्य फ़िल्मों में पांचवें नंबर पर तमिल फ़िल्म 'विक्रम' है. जिसका बजट 120 करोड़ रुपये बताया जा रहा है और इसका वर्ल्डवाइड बॉक्स ऑफिस कलेक्शन 424 करोड़ रुपये है.

फिर छठे क्रमांक पर साल की बेहद चर्चित कन्नड़ फ़िल्म 'कांतारा है. मात्र 16 करोड़ रुपये के लागत वाली 'कांतारा' पूरे संसार में 404 करोड़ रुपये टिकट खिड़की पर संग्रहीत करके सबसे कम बजट में अत्याधिक कमाई करके शानदार फ़िल्म बन गई.

दक्षिण के सितारे भी अब सभी जगह लोकप्रिय
बड़ी बात यह भी है कि दक्षिण की फ़िल्में ही नहीं वहाँ के कलाकार भी उत्तर भारत सहित देश के दूर दराज क्षेत्रों तक पसंद किए जा रहे हैं. हालिया दक्षिण भारतीय फ़िल्मों के कलाकारों की लोकप्रियता का प्रमाण यह भी है कि वहाँ के कलाकार अब हिन्दी विज्ञापन फ़िल्मों में भी ब्रांड एम्बेसडर बनने लगे हैं.

'आरआरआर' के अभिनेता राम चरण को तो अब हीरो मोटोकॉर्प ने अपने नए हिन्दी विज्ञापन फ़िल्म में ले लिया है. जबकि पहले यह विज्ञापन रणबीर कपूर कर रहे थे.

ऐसे ही 'पुष्पा' फ़िल्म के नायक अल्लु अर्जुन को रेड बस ने अपना ब्रांड एम्बेसडर बना लिया है.

फ़िल्म पुष्पा से ही लोकप्रिय हुईं अभिनेत्री रश्मिका मंदाना तो अब कई हिन्दी विज्ञापनों में दिख रही हैं.

'पुष्पा' से बदली तस्वीर
दक्षिण के फ़िल्मों की सफलता को बड़ी दस्तक 'बाहुबली' और 'बाहुबली -2' के बाद दिसंबर 2021 में तब मिली, जब फ़िल्म 'पुष्पा' ने दक्षिण के साथ उत्तर भारत, यहां तक पूरे भारत में बड़ी सफलता दर्ज की.

इस फ़िल्म ने लोकप्रियता की ऐसी मिसाल लिखी कि इसके बाद दक्षिण की फ़िल्मों ने उत्तर भारत में सफलता का नया अध्याय जोड़ दिया.

इसे संयोग कहें या कुछ और कि जहां दक्षिण भारत की फ़िल्में सफलता के झंडे पर झंडे लगा रही हैं, वहाँ बड़े सितारों की बड़ी से बड़ी हिन्दी फ़िल्में धराशाई हो रही हैं.

पिछले बरस को ही लें तो आमिर ख़ान की हिन्दी फ़िल्म 'लाल सिंह चड्ढा' साल की सुपर फ्लॉप साबित हुई. 180 करोड़ रुपये में बनी यह फ़िल्म टिकटों के ज़रिए महज 59 करोड़ रुपये ही वापस ला सकी.

बीते वर्ष अक्षय कुमार की हिन्दी फ़िल्में बच्चन पांडे, पृथ्वीराज, रक्षा बंधन और रामसेतु चारों खाने चित हो गईं.

वहीं रणबीर कपूर की 'शमशेरा', रणवीर सिंह की 'ज्येष्ठभाई जोरदार' जैसी हिन्दी फ़िल्मों ने इन सितारों के आभा मण्डल को ध्वस्त कर दिया.

राष्ट्रीय पुरस्कारों में भी क्षेत्रीय सिनेमा की धूम
हिन्दी सिनेमा सिर्फ़ व्यावसायिक रूप से ही नहीं राष्ट्रीय पुरस्कारों में भी क्षेत्रीय सिनेमा से बुरी तरह पिछड़ रहा है. जबकि पहले हिन्दी सिनेमा का पलड़ा अधिकतर पुरस्कारों में भारी रहता था.

सर्वश्रेष्ठ फ़िल्मों के राष्ट्रीय पुरस्कारों के मामले में बांग्ला फ़िल्में पहले और हिन्दी फ़िल्में दूसरे नंबर पर रहीं. सर्वश्रेष्ठ फ़िल्मों के स्वर्ण कमल के सर्वाधिक 22 पुरस्कार बांग्ला फ़िल्मों को मिले. जबकि हिन्दी फ़िल्में 14 स्वर्ण कमल ही पा सकी हैं.

हालांकि अब राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कारों में बांग्ला फ़िल्में पुरस्कार पाने में असफल हो रही हैं. उधर दक्षिण और मराठी फ़िल्में इस मामले में आगे बढ़ रही हैं. लेकिन सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और अभिनेत्री के राष्ट्रीय पुरस्कार पाने में हिन्दी सिनेमा सबसे आगे रहा. अब तक सर्वाधिक 25 अभिनेता और 22 अभिनेत्री हिन्दी फ़िल्मों के लिए अभिनय का पुरस्कार जीतकर सभी को पीछे करते रहे हैं. लेकिन अब इस मामले में भी हिन्दी सिनेमा संकट में है.

पिछले बरस आयोजित राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कारों में दक्षिण सिनेमा का ही वर्चस्व रहा. जिसमें तमिल की एक फ़िल्म 'सूरारई पोटरु' ही अपने नाम 5 बड़े पुरस्कार ले गई. जिसमें सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म, अभिनेता, अभिनेत्री, पटकथा और संगीत के पुरस्कार हैं. यूं सर्वाधिक 8 राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार भी तमिल फ़िल्मों को मिले.

यहाँ ये बता दें कि दक्षिण भारतीय फ़िल्मों की धूम के बीच अजय देवगन को (2012 के बाद) बीते वर्ष सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार पाने का मौका मिला तो सही लेकिन उन्हें इसे दक्षिण के अभिनेता सूर्या के साथ साझा करना पड़ा. इसके अलावा हिन्दी सिनेमा को सिर्फ़ 3 पुरस्कार और मिले. राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कारों में हिन्दी सिनेमा की दयनीय स्थिति इससे भी स्पष्ट दिखती है.

क्षेत्रीय सिनेमा की ताक़त राष्ट्रीय पुरस्कारों में मराठी और मलयालम फ़िल्मों के रूप में भी दिख रही है. मलयालम फ़िल्मों को इस बार कुल 7 पुरस्कार और मराठी फ़िल्मों को कुल 6 पुरस्कार मिले.

बात बॉक्स ऑफिस की व्यावसायिक सफलता की हो या राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंच पर पुरस्कारों की, हिन्दी सिनेमा इस समय अपने बेहद बुरे दौर से गुज़र रहा है. जबकि दक्षिण फ़िल्मों का जादू सभी जगह चल रहा है. (bbc.com/hindi)

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