खेल
नोज चतुर्वेदी
भारत ने आखिरी 16 मिनट में दिखाए शानदार प्रदर्शन के बूते एशियाई चैंपियंस हॉकी ट्रॉफी पर चौथी बार कब्ज़ा जमा लिया.
भारत को जीत दिलाने वाला गोल आकाशदीप सिंह ने जमाया. भारत की इस जीत से मलेशिया की पहली बार ट्रॉफ़ी जीतने का सपना टूट गया.
मलेशिया भले ही ट्रॉफ़ी पर कब्ज़ा नहीं जमा सकी पर उसने अपने से पांच रैंकिंग ऊपर वाली भारतीय टीम का एक समय पसीना निकाल दिया था. पर शायद अनुभव की कमी ने उन्हें चैंपियन नहीं बनने दिया.
दो मिनट में दो गोलों ने करा दी वापसी
मलेशियाई टीम ने पहले हाफ़ में जिस तरह की हॉकी खेली, उससे भारतीय टीम की वापसी होती नहीं दिख रही थी. लेकिन हाफ़ टाइम तक 3-1 की बढ़त बना लेने के बाद मलेशिया का बढ़त को सुरक्षित रखने के लिए हमलों के बजाय बचाव पर ज़ोर देने की रणनीति ने भारत को लय में खेलने का मौका दे दिया.
इसकी वजह से भारतीय टीम के तीसरे क्वार्टर में हमलों का सिलसिला तेज़ हुआ. पर फिर भी सफलता उनसे रूठी रही. पर मुश्किल से इस क्वार्टर का डेढ़ मिनट का खेल बाकी रहने पर भारत ने दो गोल जमाकर 3-3 की बराबरी करके खेल में अपनी वापसी कर ली.
भारत के लिए दूसरा गोल हरमनप्रीत सिंह ने पेनल्टी स्ट्रोक से किया और बराबरी दिलाने वाला गोल शमशेर द्वारा बनाए हमले पर गुरजंत सिंह ने किया.
मलेशिया ने इसके बाद अपना स्वाभाविक आक्रामक खेल खेलने का प्रयास किया पर तब तक काफ़ी देर हो चुकी थी, क्योंकि भारतीय टीम पूरी रंगत में खेलने लगी थी.
विजयी गोल नायाब हॉकी का नमूना
भारतीय टीम बराबरी पर आने के बाद आख़िरी क्वार्टर में पूरी जान लगाकर खेली. सही मायनों में पूरे मैच में यह पहला मौका था, जब वह स्वाभाविक खेल खेलती नज़र आई. भारत के ताबड़तोड़ हमले बोलने से उसे गोल जमाने के तमाम मौक़े मिले पर इन मौकों को वह गोल में नहीं बदल पा रही थी.
भारत के पेनल्टी कॉर्नर खराब करने के अगले ही मिनट में कार्ति सेलवम ने गेंद को बढ़ाकर मनदीप को दिया और उन्होंने सर्किल में अंदर जाकर ख़ुद शॉट लेने के लिए सही स्थिति नहीं देखकर अपने पीछे आ रहे आकाशदीप को पीछे गेंद सरका दी और उन्होंने दनदनाते शॉट से गोल भेद दिया.
यह सब इतनी तेज़ी से हुआ कि मलेशिया के डिफेंस को बचाव के लिए तैयार होने का मौका ही नहीं मिल सका.
एशियाई खेलों के लिए बढ़ा है मनोबल
भारतीय उप-कप्तान हार्दिक सिंह ने मैच के बाद कहा कि यह खिताबी जीत अगले महीने होने वाले एशियाई खेलों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. हार्दिक की यह बात इसलिए मायने रखती है कि भारत को एशियाई खेलों में यहां खेली टीमों से ही खेलना है. भारत यहां सभी टीमों को हराने में कामयाब रहा है, इसलिए वह एशियाई खेलों में गोल्ड जीतने का प्रयास करेगा. वहां गोल्ड जीतना इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि वहां के विजेता को सीधे 2024 के पेरिस ओलंपिक खेलों में खेलने का मौका मिल जाएगा.
भारत को यह याद रखना होगा कि इस चैंपियनशिप के दौरान उसे दो टीमें जापान और मलेशिया परेशान करने में सफल रहीं.
एशियाई खेल चीन के हांगझू में होंगे, इसलिए समर्थन के लिए घरेलू दर्शक भी नहीं होंगे. इसलिए टीम को और मज़बूत तैयारी के साथ जाना होगा.
हरमनप्रीत के रंगत में नहीं होने से बढ़ी मुश्किलें
भारतीय कप्तान और दुनिया के सर्वश्रेष्ठ ड्रेग फ्लिकरों में शुमार रखने वाले हरमनप्रीत सिंह सही मायनों में फाइनल के दौरान रंगत में नहीं दिखे. वह आमतौर पर अपने दाहिने तरफ़ ड्रेग फ्लिक लगाते हैं पर गेंद गोल से बाहर जा रही थी. इस स्थिति से बचने के लिए बाएं फ्लिक लगाने का प्रयास किया तो उसमें इतनी तेज़ी नहीं दिखी, जो विपक्षी डिफेंस और गोलकीपर को गच्चा दे पाता. पेनल्टी कॉर्नरों को गोल में नहीं बदल पाने ने भारतीय मुश्किलों को बढ़ाने में अहम योगदान किया.
भारतीय मुश्किलें बढ़ाने में मलेशिया के गोलकीपर ओथमैन हफ़ीजुद्दीन के शानदार बचाव भी अहम भूमिका निभाई. यही वजह है कि भारत के कम से कम छह निश्चित गोल के मौकों विफल कर दिया गया.
जब आनंद के चेहरे पर दिखी मुस्कराहट
भारत के इकलौते विश्व शतरंज चैंपियन विश्वनाथन आनंद भी अन्य भारतीय प्रशंसकों की तरह अपनी टीम के पिछड़ने पर शांत बैठे थे. मेयर राधाकृष्ण हॉकी स्टेडियम में इस चैंपियनशिप के दौरान भारतीय मैच के दौरान इतनी शांति इससे पहले कभी नहीं देखी गई थी. भारत के तीसरे क्वार्टर के आखिरी समय में दो गोल जमाने से भारतीय समर्थकों में खुशी लौट आई. लेकिन जब आकाशदीप सिंह ने भारत के लिए विजयी गोल जमाया तो टेलीविजन स्क्रीन पर विश्वनाथन आनंद का खिलखिलाता चेहरा छा गया.
दवाब में बिखरता नज़र आया खेल
भारतीय हॉकी टीम ने फाइनल से पहले जिस खेल का प्रदर्शन किया था, उसके आसपास भी वह पहले हाफ़ में खेलती नज़र नहीं आई. सही मायने में युवा खिलाड़ियों वाली मलयेशिया टीम ने पहले दो क्वार्टर में जिस तरह के खेल का प्रदर्शन किया, उससे भारतीय टीम पर पूरी तरह से दवाब नजर आया.
भारतीय हॉकी कुछ सालों पहले तक दवाब में बिखरती नज़र आती थी. पर ग्राहम रीड के कोच रहते इस कमी में सुधार दिखने लगा था. लेकिन फाइनल में मलेशिया द्वारा बनाए दवाब में टीम की पुरानी कमी फिर से दिखने लगी.
हैरत इस बात की थी कि क्रेग फुलटोन के भारतीय टीम के मुख्य कोच बनने के बाद यह कहा जाने लगा था कि अब टीम को मुख्य फोकस डिफेंस पर रहेगा और विपक्षी डिफेंस में दरारें बनाकर उनका फायदा उठाया जाएगा. लेकिन मलेशियाई हमलों में भारतीय डिफेंस में पहले हाफ में ऐसी हड़बड़ाहट दिखी, जिसका मलेशियाई हमलावरों ने भरपूर फायदा उठाया.
गोल जमाकर भी पहल नहीं ले पाया भारत
मलयेशिया के आक्रामक अंदाज़ में शुरुआत करने से भारत पर बने दवाब से लग ही नहीं रहा था कि यह वही टीम है जो सेमीफाइनल तक अजेय रही है और विश्व में चौथी रैंकिंग की टीम है.
भारतीय खिलाड़ियों के बीच तालमेल दिख ही नहीं रहा था और वह जब भी हमला बनाने का प्रयास करते तो पास पर खिलाड़ी गेंद पर नियंत्रण ही नहीं बना पा रहे थे. इस कारण टीम पर से दवाब हटने के बजाय बढ़ता चला जा रहा था.
इसी बीच भारत को पहला पेनल्टी कार्नर मिला और इस पर जुगराज सिंह के ड्रेग फ्लिक पर गोल जमा देने से लगा कि इस सफलता के बाद भारत दबदबा बनाने में सफल हो जाएगा. पर मलेशिया के खेलने के अंदाज़ से लग रहा था कि वह आज हार मानने को तैयार ही नहीं है. उसने पिछड़ने के बाद भी हमलावर रुख जारी रखा और भारत को खेल पर नियंत्रण बनाने का मौका ही नहीं दिया.
मलेशिया के मैच में सुनहरे क्षण
मलेशिया ने पहले क्वार्टर के 14वें मिनट में एक शानदार हमले में अबु कमल अजराई के गोल से भारत से बराबरी करने के बाद खेल पर पूरा नियंत्रण बना लिया. इस बराबरी का उनके खेल पर यह असर हुआ कि उनके हमलों में पैनापन आ गया और हमलों की रफ्तार भी बढ़ गई.
मलेशिया ने दूसरे क्वार्टर में राजी रहीम और मुहम्मद अमीनुद्दीन के गोलों से 3-1 की बढ़त बनाकर पहली बार इस ट्रॉफी पर कब्ज़ा जमाने की उम्मीद बंधा ली. सही मायनों में इस मौके पर उनकी टीम का इतना बेहतरीन तालमेल चल रहा था, जिसे देखकर भारतीय टीम के खेल में वापसी करने की उम्मीदें कमज़ोर पड़ने लगीं थीं. (bbc.com)