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शहर के लेखक शरद की कहानी पर बनी फिल्म धूम मचा रही ओटीटी पर
20-Sep-2023 7:48 PM
शहर के लेखक शरद की कहानी पर बनी फिल्म धूम मचा रही ओटीटी पर

कवि व लेखक शरद कोकास की कहानी काउंटर के पीछे मुस्कुराता चेहरा पर शॉर्ट फिल्म पासबुक एमएक्स प्लेयर पर

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

दुर्ग, 20 सितंबर। ट्विनसिटी के चर्चित कवि व लेखक शरद कोकास की कहानी काउंटर के पीछे मुस्कुराता चेहरा पर बनी फिल्म पासबुक एमएक्स प्लेयर पर धूम मचा रही हैं। शरद बताते हैं कि यह उन दिनों की कहानी है जब बैंक इंटरनेट से नहीं जुड़े थे और एमटी यानी मेल ट्रांसफर से पैसे भेजे जाते थे। फिल्म में एक जरूरतमंद युवक के खाते में आए पैसे के कथानक के इर्द-गिर्द प्रेमकथा है।

शरद कोकास ने बताया कि उनकी कहानी काउंटर के पीछे मुस्कुराता चेहरा का पाठ उत्तराखंड की साहित्यकार स्मिता कर्नाटक ने किया था और उसका ऑडियो भी रिलीज हुआ था। स्मिता का बेटा कार्तिक कर्नाटक एक सिनेमैटोग्राफर है और उसने यह कहानी अपने फिल्म निर्माण से संबंधित मित्रों को बताई और उन्होंने इस कहानी पर फिल्म बनाने का विचार किया। शरद कहते हैं अपनी कहानी पर फिल्म बनने से वह बेहद खुश हैं।

शरद ने बताया कि यहां गाँव के एक युवक सौरभ की कहानी है। इस फिल्म का अंत आपको आश्चर्य और करुणा से भर देगा। शायद एक अनुत्तरित प्रश्न का उत्तर आप दे सकें कि सौरभ के खाते में पैसा कहाँ से आया?

 इस फिल्म के निर्देशक विकास ठाकुर, निर्माता वी एंड के फिल्मस हैं। नायक सौरभ की भूमिका में प्रतीक श्रीवास्तव और नायिका गौरी शर्मा की भूमिका में नायरा हैं। वहीं फिल्म के  सिनेमेटोग्राफर कार्तिकेय स्मिता कर्नाटक, एडिटर- विकास ठाकुर, सह कलाकारों में राजन त्रिपाठी, सुधांशु राणा, सहायक निर्देशक भारद्वाज महिदा और प्रकाश प्रधान, पोस्टर एंड वीएफएक्स आरबीआर फिल्म्स एंड एंटरटेनमेंट, क्रिएटिव डायरेक्टर प्रमोद कंडेल, आर्ट डायरेक्टर प्रकाश प्रधान और नेरेशन स्मिता कर्नाटक का है।

किसान के बेटे की कहानी है पासबुक

शरद कोकास ने बताया कि फिल्म में गांव का एक किसान का बेटा शहर में कॉलेज में पढ़ाई करने के लिए आता है और एक किराए की खोली में रहता है और ढाबे में खाना खाता है। उसके पिता एम टी यानी मेल ट्रांसफर के माध्यम से उसे बैंक में पैसा भेजते हैं। उसके पास जब पैसा खत्म हो जाता है और उधार बढ़ जाता है तो वह बैंक जाकर पता करता है कि उसका एक हज़ार रुपये का मेल ट्रांसफर आया या नहीं। कई बार बैंक जाने के बावजूद बैंक में काम करने वाली लडक़ी बताती है कि नहीं उसका पैसा नहीं आया है। इस बीच मकान मालिक और ढाबे के मालिक द्वारा उसे दुत्कारे जाने की दृश्य भी है उसके मन में आत्महत्या का ख्याल भी आता है। वह लडक़ी उसे लडक़े के प्रति आकर्षित होने लगती है। दोनों के बीच संवेदना से भरे संवाद फिल्म में है। लेकिन वह लडक़ी बताती है कि उसका पैसा आ गया और उसे 1000 उसके खाते से निकाल कर दे देती है। इतने में उसके पिता का पत्र उसे मिलता है कि इस बार फसल नहीं बिकी है इसलिए वह पैसा नहीं भेज पाया है। वह सोचता रह जाता है कि जब उसके पिता ने पैसा भेजा ही नहीं है तो उसके खाते में पैसा किसने जमा किया होगा? उस लडक़ी के मन में इस युवा के प्रति प्रेम का अंकुर उगता है। करुणा और संवेदना से भरे हुए प्रेम के सुंदर दृश्य फिल्म में है।

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