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![उम्र बढ़ने पर आईवीएफ़ से बच्चा पैदा करना कितना मुश्किल? उम्र बढ़ने पर आईवीएफ़ से बच्चा पैदा करना कितना मुश्किल?](https://dailychhattisgarh.com/uploads/article/1701861133mages_(1).jpg)
“यह चमत्कार है.”
युगांडा की राजधानी कंपाला में 29 नवंबर को आईवीएफ़ तकनीक की मदद से जुड़वा बच्चों को जन्म देने के बाद 70 वर्षीय सफ़िना नामुकवाया के मुंह से सबसे पहले यही वाक्य निकला.
सफ़िना इस अफ्रीकी देश में बच्चे को जन्म देने वाली सबसे उम्रदराज महिलाओं में एक हैं.
उन्होंने विमेंस हॉस्पिटल इंटरनेशनल एंड फर्टिलिटी सेंटर (डब्ल्यूएचआईएंडएफसी) में सिजेरियन ऑपरेशन से एक लड़की और एक लड़के को जन्म दिया.
डब्ल्यूएचआईएंडएफसी के फर्टिलिटी स्पेशलिस्ट डॉ. एडवर्ड तामले सालि ने बीबीसी को बताया कि सफ़िना ने एक डोनर एग (अंडाणु) और अपने पति के स्पर्म की मदद से इन बच्चों को जन्म दिया.
सफ़िना नामुकवाया ने तीन साल पहले 2020 में भी इसी तरह एक बच्ची को जन्म दिया था. इतनी बड़ी उम्र में मां बनने की वजह सिर्फ यही है कि वह निसंतान होने के तानों से परेशान हो गई थी.
सफ़िना की तरह बनासकांठा (गुजरात) की रहने वाली गीता बेन (बदला हुआ नाम) को भी बच्चे नहीं होने की वजह से समाज के खूब ताने सहने पड़े.
आखिरकार, उन्होंने आईवीएफ़ का सहारा लिया और 2016 में एक बच्चे की मां बनीं.
बच्चे ना होने का दर्द मिटा रही तकनीक
गीता बेन ने बीबीसी की सहयोगी आर. द्विवेदी को बताया कि वह शादी के 25 साल बाद मां बन पाईं. उस समय उनकी उम्र करीब 42 वर्ष थी.
अब अपने सात साल के बेटे के साथ वह और उनके पति मनोज कुमार (बदला हुआ नाम) काफी खुश हैं.
मनोज कुमार बताते हैं कि शादी के इतने सालों के बाद भी बच्चा न होने पर लोग बार-बार टोकते थे. इससे परेशान होकर उन लोगों ने परिचितों-रिश्तेदारों से बात करना छोड़ दिया और यहां तक कि शादी-समारोहों में जाना भी बंद कर दिया.
आईवीएफ़ यानी इन विट्रो फर्टिलाइजेशन तकनीक आख़िर होती क्या है?
इसे समझाते हुए डॉ. नयना पटेल ने बीबीसी की सहयोगी आर. द्विवेदी को बताया कि इसकी शुरुआत 1978 में हुई, जब लेस्ली ब्राउन टेस्ट ट्यूब बेबी को जन्म देने वाली दुनिया की पहली महिला बनीं.
गुजरात के आणंद स्थित आकांक्षा हॉस्पिटल एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट में मेडिकल डायरेक्टर डॉ. पटेल बताती हैं, ''आईवीएफ का इस्तेमाल उन महिलाओं के मामले में किया जाता है, जिनकी ट्यूब इंफेक्शन या किसी अन्य वजह से ख़राब हो जाती हैं.”
उन्होंने आगे बताया, “इसमें हम एग और स्पर्म को लैब में फर्टिलाइज़ करते हैं. जब भ्रूण तैयार हो जाता है तो उसे महिला के गर्भाशय में डाल दिया जाता है. इस तकनीक ने कई कपल को माता-पिता होने का सुख दिया है और महिलाओं के माथे से बांझ होने का कलंक मिटाया है.”
वह 1991 में आई इंट्रासाइटोप्लाज्मिक स्पर्म इंजेक्शन (आईसीएसआई) तकनीक को इस क्रांति का दूसरा चरण बताती हैं.
उनके मुताबिक, ''आईसीएसआई से उन कपल के लिए माता-पिता बनना आसान हो गया है, जिनमें पुरुषों के स्पर्म कम होने या फिर गुणवत्ता अच्छी न होने की वजह से दिक्कत आती थी. इसने डोनर स्पर्म की जरूरत को भी खत्म कर दिया.” यही वजह है कि लोग अब बेझिझक इसे अपना रहे हैं.''
क्या ये इतना आसान होता है?
लेकिन सब कुछ इतना आसान नहीं होता
आईवीएफ का चलन पिछले कुछ सालों में काफी बढ़ा है लेकिन हर बार इस प्रक्रिया से कोई माता-पिता बन जाए ऐसा नहीं होता. कई बार इसके मामले विफल भी होते हैं.
डॉ. पटेल कहती हैं, ''कई बार कपल को पहली बार में खुशी मिल जाती है और कई बार प्रक्रिया काफी लंबी साबित होती है.''
गीता बेन बताती हैं कि उन्होंने आईवीएफ़ से पहले भी काफ़ी इलाज कराया था. फिर, आईवीएफ का सहारा लिया और इसमें भी तकरीबन दो साल बाद जाकर सफलता मिली.
आठ साइकिल नाकाम होने के बाद नौवीं बार उन्होंने गर्भधारण किया लेकिन कुछ महीनों बाद गर्भपात हो गया. फिर, दसवें साइकिल में वह बच्चे को जन्म दे पाईं.
गीता बेन इतने धैर्य के साथ इलाज करा पाईं तो इसकी वजह पति मनोज कुमार का हर कदम पर साथ था. कई मामलों में इस तरह मां बनने की इच्छुक महिलाओं को परिवार का ही साथ नहीं मिल पाता है.
क्या यह सफलता की गारंटी है?
इस पर डॉ. नयना पटेल कहती हैं कि 35 वर्ष की आयु से कम महिलाओं के मामले में तो 80 फीसदी सफलता हासिल होती है. महिलाओं की उम्र 35 से 40 साल के बीच हो तो बच्चे होने की संभावना 60 फीसदी तक रहती है. 40 से ऊपर आयु होने पर 18 से 20 फीसदी मामलों में ही सफलता मिलती हैं.
भावनात्मक उतार-चढ़ाव एक बड़ी चुनौती
दिल्ली स्थित ब्लूम आईवीएफ़ सेंटर में आईवीएफ़ स्पेशलिस्ट डॉ. सुनीता अरोड़ा ने बीबीसी को बताया कि इसके लिए आने वाले कपल कई बार भावनात्मक तौर पर काफी टूट चुके होते हैं.
बच्चा न होने पर लोग किस तरह का दबाव झेलते हैं, इसका अंदाजा मनोज कुमार की इस टिप्पणी से ही लगाया जा सकता है कि एक बार तो उन्होंने ज़हर खाकर जान देने तक की सोच ली थी.
डॉ. अरोड़ा बताती हैं,''उनके दिलो-दिमाग पर यह बात हावी होती है कि यह प्रक्रिया पूरी तरह नेचुरल नहीं है. इलाज करते समय हमें सबसे ज्यादा ख्याल यही रखना होता है कि मरीज सकारात्मक भावना रखे.''
वह कहती हैं, ''वैसे भी गर्भावस्था के समय शारीरिक बदलावों की वजह से महिलाओं का मनोबल बढ़ाने की जरूरत होती है. ऐसे मामलों में डॉक्टर अपने स्तर पर काउंसिलिंग तो करते ही हैं. भावनात्मक जरूरतों को देखते हुए कानूनन हर आईवीएफ़ सेंटर पर काउंसलर का होना अनिवार्य है.''
भारत में भी ऐसे कई मामले सुर्खियों में रहे.
पंजाब में 2016 में 72 वर्षीय दलजिंदर कौर ने एक बच्चे को जन्म दिया.
आंध्र प्रदेश में 2019 में 74 साल की महिला ने जुड़वा बच्चों को जन्म दिया
राजस्थान में 2022 में 75 साल के बुजुर्ग और 70 वर्षीय पत्नी को 54 साल बाद बच्चे का सुख मिला.
कानून बनाकर तय की गई उम्र सीमा
भारत में 2021 में एक नया कानून असिस्टेंट रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी (एआरटी) अधिनियम, 2021 लागू हुआ.
डॉ. सुनीता अरोड़ा इस कानून के तहत आईवीएफ़ का सहारा लेने वाली मां की उम्र अधिकतम 50 साल और पिता की 55 साल किए जाने का पुरजोर समर्थन करती हैं.
डॉ. अरोड़ा कहती हैं, ''अधिकतम उम्र तय करने की एक वजह तो बच्चे के पालन-पोषण से जुड़ी है. मान लीजिए जब तक बच्चा 15-20 साल का होता है, तब तक माता-पिता की उम्र 70 साल से ऊपर हो जाती है तो वे उसकी देखभाल का ज़िम्मा कैसे संभालेंगे. लेकिन सबसे बड़ा कारण यह है कि 50 के बाद स्वास्थ्य के लिहाज से मां बनना आसान नहीं होता.''
वह कहती हैं, ''45 साल के ऊपर आईवीएफ़ के मामलों में हम मेडिकल हेल्थ पर बहुत ध्यान देते हैं. क्योंकि गर्भावस्था के दौरान हार्ट प्रेशर बढ़ता है और ब्लड प्रेशर भी ऊपर-नीचे होता है. कई बार महिलाएं ऐसे बदलाव झेलने की स्थिति में नहीं होती हैं.''
डॉ. पटेल भी अधिक उम्र में आईवीएफ का सहारा लेने के ख़िलाफ़ हैं. लेकिन उनका कहना है कि कुछ मामलों में साल-दो साल की छूट पर विचार करने का प्रावधान होना चाहिए.
बतौर उदाहरण वह कहती हैं, ''अगर पत्नी की उम्र 40-45 साल के बीच है लेकिन पति 56 वर्ष का हो चुका है या पत्नी 51 साल की और पति की उम्र 53 साल ही है, तो ऐसे मामलों में मेडिकल फिटनेस के आधार पर आईवीएफ़ की अनुमति देने पर विचार किया जा सकता है.''
बड़ी उम्र में माता-पिता बनने की चुनौतियां
डॉक्टरों के मुताबिक, अधिक उम्र में महिलाओं का शरीर बच्चे को जन्म देने के लिहाज से पूरी तरह फिट नहीं होता.
गर्भावस्था के दौरान हार्ट प्रेशर और बीपी बढ़ता है. कई बार महिलाएं इसे झेल पाने की स्थिति में नहीं होती हैं
उम्र अधिक होने पर शारीरिक और आर्थिक रूप से बच्चे के पालन-पोषण की जिम्मेदारी भी कम बड़ी चुनौती नहीं है.
ख़र्च भी एक अहम फैक्टर
डॉ. सुनीता अरोड़ा बताती हैं कि आईवीएफ़ के एक साइकिल पर डेढ़ से दो लाख रुपए का ख़र्च आता है. अगर महिला की उम्र 21 से 35 वर्ष के बीच है तो एक-दो साइकिल में बच्चे होने की संभावना ज्यादा होती है.
उम्र ज्यादा होने पर कई बार आईवीएफ़ के बाद ही सफलता मिलती है, ऐसे में जितने ज्यादा साइकिल उतना ही ज्यादा ख़र्च आता है.
डॉ. पटेल कहती हैं कि आईवीएफ का सहारा लेने वाली महिलाएं आर्थिक के अलावा मानसिक, शारीरिक और सामाजिक स्तर पर मुश्किलों का सामना करती है. लेकिन एक बार बच्चा गोद में आते ही वो सारे दुख-दर्द भूल जाती हैं. (bbc.com)