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लोकसभा चुनाव: युवा वोटरों के मन में क्या चल रहा है
18-Apr-2024 12:48 PM
लोकसभा चुनाव: युवा वोटरों के मन में क्या चल रहा है

भारत के लोकसभा चुनाव में 21 करोड़ से ज्यादा युवा मतदाता अपने वोट का इस्तेमाल करेंगे. इस वजह से युवा मतदाताओं की लोकसभा चुनावों में निर्णायक भूमिका रहेगी.

   (dw.com)  

भारत में लोकसभा चुनाव के लिए 97 करोड़ मतदाता अपना मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे. सबसे अहम बात यह है कि चुनाव में पहली बार वोट देने वाले यानी 18-19 साल के मतदाताओं की संख्या 1.82 करोड़ है. इसके अलावा 20 से 29 साल के युवा वोटरों की संख्या 19.74 करोड़ है. ये युवा मतदाता किसी भी हार जीत में अहम भूमिका निभा सकते हैं

समाचार एजेंसी एएफपी ने ऐसे चार युवा मतदाताओं से बात की जो पहली बार वोट डालने जा रहे हैं. उनके माध्यम से यह जानने की कोशिश है कि वे किसका समर्थन करेंगे. इसके साथ ही यह भी पता लगाने की कोशिश हुई कि कौन से ऐसे मुद्दे हैं जो उन्हें प्रभावित करते हैं.

मुंबई यूनिवर्सिटी के 22 साल के छात्र अभिषेक धोत्रे ने कहा कि वह सरकार के सशक्त हिंदू राष्ट्रवाद के परिणामस्वरूप "पूरे भारत में दिख रहे सांप्रदायिक मनमुटाव" से नाखुश हैं.

ऐसा कहा जाता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने भारत की बहुसंख्यक हिंदू आस्था को राजनीतिक जीवन में सबसे आगे खड़ा कर दिया है. इससे मुसलमानों और दूसरे अल्पसंख्यकों के मन में धर्मनिरपेक्ष देश में अपने भविष्य को लेकर चिंता पैदा हो गई है. 

फिर भी, भारत की अर्थव्यवस्था बहुत तेज गति से बढ़ रही है और वह 2022 में पूर्व औपनिवेशिक शासक ब्रिटेन को पछाड़कर दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गई. धोत्रे चाहते हैं कि मोदी और उनकी भारतीय जनता पार्टी फिर से जीत हासिल करे.

उन्होंने एएफपी से कहा, "जिस तरह से विकास हो रहा है. इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ रहा है और जो कुछ भी चल रहा है, मैं चाहूंगा कि मौजूदा सरकार बनी रहे."

कितने उत्साहित हैं युवा वोटर
तमिलनाडु की रहने वाली 20 साल की त्रिशालिनी द्वारकनाथ सॉफ्टवेयर डेवलपर हैं और वह भारत के आर्थिक बदलावों का प्रतीक हैं. अब वह अपने गृह राज्य से टेक हब बेंगलुरु ट्रांसफर ले रही हैं.

पहली बार वोट देने जा रही द्वारकनाथ कहती हैं, "मैं भारतीय लोकतंत्र का हिस्सा बनने और पहली बार अपनी राय जाहिर करने को लेकर उत्साहित हूं. मुझे खुशी है कि मेरी आवाज मायने रखती है."

वह मोदी सरकार के कार्यकाल में हासिल उपलब्धियों की तारीफ करती हैं लेकिन कहती हैं कि लाखों बेरोजगार युवा भारतीयों को काम खोजने में मदद करने के लिए और अधिक कोशिश करने की जरूरत है.

नौकरी है बड़ा मुद्दा
पिछले साल अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में भारत की जीडीपी ग्रोथ रेट 8.4 फीसदी थी जबकि, सितंबर तिमाही में भारत ने 7.6 फीसदी की जीडीपी ग्रोथ दर्ज की थी. लेकिन अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन का अनुमान है कि 2022 में देश में 29 प्रतिशत यूनिवर्सिटी ग्रेजुएट बेरोजगार थे. यह दर उन लोगों की तुलना में लगभग नौ गुना अधिक है जिनके पास कोई डिप्लोमा नहीं है और आमतौर पर कम वेतन वाली नौकरियों या कंस्ट्रक्शन सेक्टर में काम करते हैं.

पहली बार वोट डालने वाले 22 वर्षीय गुरप्रताप सिंह निश्नित तौर पर बीजेपी को सपोर्ट नहीं करेंगे. गुरप्रताप एक किसान हैं और उनका नाता पंजाब से है. साल 2021 में पंजाब के किसानों ने तीन कृषि कानून के खिलाफ साल भर विरोध प्रदर्शन किया था जिसके बाद सरकार ने उन तीनों कृषि कानूनों को वापस ले लिया था. इसे एक तरह से प्रधानमंत्री मोदी की हार के तौर पर देखा गया.

किसानों का कहना है कि उनकी मांगें अभी तक पूरी नहीं हुई है. गुरप्रताप कहते हैं, "कई किसान विरोध प्रदर्शन के दौरान मारे गए. उन्हें इंसाफ नहीं मिला है."

देश के किसान चुनाव के दौरान अहम भूमिका निभाते हैं और उनका वोट सभी पार्टियों के लिए बहुत मायने रखता है. गुरप्रताप ने कहा, "जो सरकार किसानों, युवाओं के बारे में सोचती है...वही सरकार सत्ता में आनी चाहिए." उन्होंने कहा कि बीजेपी उस टेस्ट में फेल हो चुकी है.

अधिकार के लिए आवाज उठाते ट्रांसजेंडर
देश की करीब 1.4 अरब आबादी अलग-अलग पृष्ठभूमियों से आती है, जिसमें ट्रांसजेंडर समुदाय भी शामिल है. इनकी संख्या कई लाख होने का अनुमान है. हिंदू आस्था में "तीसरे लिंग" के कई संदर्भ हैं.

2014 में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर को पुरूष या महिला के बजाए एक तीसरे लिंग का दर्जा दिया था. कोर्ट ने अपने ऐतिसाहिक आदेश में सरकार से कहा था कि ट्रांसजेंडर को सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा समुदाय माना जाए और उन्हें नौकरी और शिक्षा के क्षेत्र में आरक्षण दिया जाए. इससे भारत के करीब तीस लाख से अधिक ट्रांसजेंडर को फायदा हुआ और उन्हें भी आम नागरिकों की तरह हर अधिकार मिलने लगे.

चुनाव आयोग के मुताबिक देश में इस वक्त 48,044 थर्ड जेंडर मतदाता पंजीकृत है. वहीं साल 2019 में यह संख्या 39,075 थीं.

हालांकि इन सबके बावजूद ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्यों को आज भी भेदभाव का सामना करना पड़ता है. वाराणसी की एक ट्रांसजेंडर मुस्लिम महिला सलमा ने कहा कि उन्हें उम्मीद नहीं है कि बीजेपी सरकार के एक और कार्यकाल में यह बदलाव आएगा. 

सलमा ने कहा, "जब से यह सरकार सत्ता में है, उसने हमारे लिए कुछ भी अच्छा नहीं किया." उन्होंने यह कहने से इनकार कर दिया कि वह किस पार्टी को वोट देंगी. उन्होंने कहा, "हमें समान अधिकार मिलना चाहिए."

एए/एनआर (एएफपी)

 

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