ताजा खबर

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : संगठित भ्रष्टाचार से बचने के लिए देश के तरीके बदलना जरूरी
05-May-2024 6:14 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय :  संगठित भ्रष्टाचार से  बचने के लिए देश के तरीके बदलना जरूरी

छत्तीसगढ़ में पिछली भूपेश सरकार के दौरान हुए कई किस्म के बड़े-बड़े भ्रष्टाचार में से एक अभी सामने आया है जिसमें केन्द्र सरकार की भारतीय संचार सेवा से प्रतिनियुक्ति पर आए एक अफसर को गिरफ्तार किया गया है। छत्तीसगढ़ सरकार किसानों से धान खरीदती है, और फिर राईस मिलों से उसकी मिलिंग करवाकर उसे एफसीआई को देती है, या केन्द्र और राज्य की किसी दूसरी योजना में इस्तेमाल करती है। अभी दो बरस पहले तक यह मिलिंग रेट 40 रूपए क्विंटल था, और कहा जाता था कि राज्य सरकार की संस्था मार्कफेड इस काम में 20 रूपए क्विंटल का कमीशन लेती थी। इसके बाद भूपेश मंत्रिमंडल ने एक दिन अचानक राईस मिल एसोसिएशन की एक चिट्ठी के आधार पर 40 रूपए की इस रेट को तीन गुना बढ़ा दिया, और 120 रूपए कर दिया। इसके बाद मार्कफेड के एमडी रहे मनोज सोनी नाम के भारतीय संचार सेवा से आए अफसर ने 60 रूपए क्विंटल की वसूली की। जाहिर है कि एक अफसर अपने खुद के भ्रष्टाचार के लिए न तो राज्य में चले आ रहे किसी रेट को कैबिनेट में तीन गुना करवा सकता था, और न ही सौ-दो सौ करोड़ जैसी बड़ी रकम वसूल सकता था। पिछली सरकार के वक्त सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी के कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल थे, जो पुराने राईस मिल कारोबारी हैं, और कारोबारियों के संगठन में बड़े पदाधिकारी भी रहे हैं। अभी वे साल भर से ईडी के शिकंजे से बचने के लिए फरार चल रहे हैं, लेकिन उनके कोषाध्यक्ष रहते यह तो हो भी नहीं सकता था कि उनके धंधे से उनकी पार्टी की सरकार में उनकी जानकारी के बिना इतनी संगठित उगाही हो जाए। साधारण समझबूझ तो यही कहती है कि रामगोपाल अग्रवाल जैसे जानकार व्यक्ति ने ही ऐसी योजना बनाई होगी क्योंकि पार्टी फंड आना तो उन्हीं के पास था। आज हालत यह है कि मार्कफेड के एमडी रहे दो-दो लोग जेल में हैं। यह एक अलग बात है कि इन दोनों के ठीक पहले किरण कौशल नाम की जो आईएएस अफसर इस कुर्सी पर थी, उन्होंने सत्ता के अंधाधुंध दबाव के बाद भी गलत भुगतान करने से मना कर दिया था, और भूपेश सरकार ने उन्हें तुरंत वहां से हटाया था। अगले दो एमडी उगाही में जुट गए, और अब ईडी की गिरफ्तारी के बाद जेल में पड़े हुए हैं। 

कारोबारियों से सत्तारूढ़ पार्टी और सरकार के लोग उगाही करें, इसमें कुछ भी नया या असाधारण नहीं है। ऐसा हमेशा ही होता है। लेकिन सरकार के खर्च को जिस तरह तीन गुना करके चावल की कस्टम मिलिंग से उगाही की गई थी, वह छुपने लायक जुर्म नहीं था। सत्ता के लिए किसी भी हद तक गिरकर, और भागीदारी की वजह से भ्रष्टाचार करने वाले अफसरों की जो मिसालें छत्तीसगढ़ में सामने आई हैं, वैसा इस प्रदेश में तो पहले कभी नहीं हुआ था। यह एक अलग बात हो सकती है कि केन्द्र सरकार की जांच एजेंसियां सिर्फ कांग्रेस सरकारों और नेताओं के भ्रष्टाचार पकड़ रही हैं, लेकिन इनमें किसी मासूम या ईमानदार के फंसने की आशंका अभी भी नहीं लगती है। लोगों को पहली नजर में यह दिखता है, और मालूम है कि यह सब भ्रष्टाचार सचमुच ही हुआ था। चावल हो, शराब, या कोयला ट्रांसपोर्ट, इन सबमें जो संगठित भ्रष्टाचार हुआ था, उसने आईएएस-आईपीएस अफसरों की साख को चौपट कर दिया क्योंकि वे खुलकर इस माफिया-कारोबार में भागीदार हो गए थे। यही वजह है कि साल भर बाद भी ऐसे बड़े अफसरों को जमानत भी नहीं मिल पा रही है। कारोबारियों से राजनीतिक चंदा शिष्टाचार के दायरे में हमेशा से चले आ रहा था, लेकिन उसे चाकू की नोंक पर, कारखाने बंद करवा देने की धमकी देकर, या गिरफ्तारी का डर दिखाकर इस भयानक अंदाज में कभी नहीं वसूला गया था। इसलिए अब जब ईडी दिलचस्पी लेकर भूपेश सरकार के वक्त के जाने कितने ही मामलों में कार्रवाई कर रही है, तो संबंधित कारोबारियों से प्रदेश के प्रमुख और जानकार लोगों को तो यह जानकारी मिल ही रही है कि सचमुच ही ऐसा भ्रष्टाचार हुआ था। 

यूपीएससी के चुने हुए ऐसे अफसरों का संगठित माफिया की तरह नेताओं के साथ मिलकर जबरिया उगाही का धंधा चलाना बताता है कि भारत में ऐसी अखिल भारतीय सेवाएं भ्रष्टाचार का एक ढांचा बन चुकी है। इन सेवाओं के अफसर अंधाधुंध ताकत के ओहदे पाते हैं, और उनके सौ किस्म के गलत काम जांच से परे रह जाते हैं। अब भारत सरकार और राज्यों के सामने विचार-विमर्श का एक यह मुद्दा रहना चाहिए कि अखिल भारतीय सेवाओं का क्या बेहतर विकल्प हो सकता है, या किस तरह उनके कामकाज को बदला जाए ताकि वे केन्द्र और राज्य सरकारों के नाजायज दबाव झेल सकें। आज देश भर में इंकम टैक्स विभाग ने जिस तरह करदाताओं के मामले कम्प्यूटर से बिना पसंद-नापसंद छांटकर पर्ची निकालने के अंदाज में देश में किसी भी राज्य में भेज देना चालू किया है, और करदाता और अफसर एक-दूसरे का चेहरा भी नहीं देख पाते, क्या उसी तरह का कुछ काम अखिल भारतीय सेवाओं के अफसरों की राज्यों में तैनाती को लेकर हो सकता है? या राज्यों के भीतर अफसरों को अलग-अलग जिम्मेदारी मिलने के वक्त कुछ ऐसा किया जा सकता है कि नेताओं की पसंद पर किसी अफसर को कोई कुर्सी न मिले? हमारी समझ इस मामले में बड़ी सीमित है, और इसलिए सत्ता के संगठित भ्रष्टाचार को रोकने की कौन सी तरकीबें हो सकती है, इस पर और अधिक जानकार लोग शायद कुछ बेहतर सुझा सकते हैं। देश के बेदाग भूतपूर्व अफसरों से भी राय लेनी चाहिए कि यह देश नौकरशाही के संगठित भ्रष्टाचार, और नेताओं से भागीदारी से छुटकारा कैसे पा सकता है? जब टेलीफोन सेवा का कोई अफसर राज्य में धान की मिलिंग का बहुत बदनाम और बहुत कमाऊ दफ्तर पा सकता है, और वहां बैठकर लूटमार कर सकता है, तो फिर इस व्यवस्था को सुधारने या बदलने की जरूरत है। और बात सिर्फ छत्तीसगढ़ की भूपेश सरकार की नहीं है, बहुत से प्रदेशों में दूसरी पार्टियों की भी बहुत सी सरकारें कमोबेश इसी तरह का काम करती हैं, और पूरे देश को जनता के पैसों की इस लूटमार को रोकने का रास्ता तलाशना चाहिए।  (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news