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क्या इस साल भी एक महीने फुरसत?
पटवारियों ने आज 8 जुलाई से बेमियादी हड़ताल का ऐलान किया है। ऐसे समय में यह घोषणा की गई है जब राजस्व मंत्री टंकराम वर्मा ने पेंडिंग राजस्व आवेदनों को निपटाने के लिए एक पखवाड़े तक विशेष अभियान चलाने का निर्देश दिया है। वर्मा की घोषणा मुख्यमंत्री के दूसरे जनदर्शन के बाद हुई, जहां बेमेतरा की एक किसान की पटवारी के खिलाफ शिकायत पहुंची थी और उस पर कार्रवाई के लिए कलेक्टर को निर्देश दिया गया था। इस बीच एंटी करप्शन ब्यूरो की रेड में भी राजस्व विभाग के एक एसडीएम और कुछ पटवारी, नायब तहसीलदार और बाबू गिरफ्तार हुए हैं।
इस समय खेती-किसानी का काम चल रहा है। हाईस्कूल और कॉलेजों में प्रवेश के लिए बहुत से ऐसे दस्तावेजों की जरूरत है, जिन्हें पटवारी ही बनाते हैं। लगातार विधानसभा और लोकसभा चुनाव के कारण कई महीनों तक सारी फाइलें रुकी रहीं। राजस्व में भी पेंडिंग अर्जियों की भरमार है। ऐसे मौके पर की जा रही अनिश्चितकालीन हड़ताल लोगों की परेशानी का कारण बनेगी।
आपको याद होगा, पिछले साल करीब इन्हीं दिनों में पटवारियों ने एक महीने से अधिक लंबी हड़ताल की थी। राजस्व का पूरा कामकाज ठप पड़ गया था। सरकार और आंदोलनकारियों के बीच संवादहीनता की स्थिति बनी रही, फिर उन पर एस्मा लगा दिया गया। हालांकि, एस्सा के बाद भी किसी पटवारी पर कार्रवाई नहीं हुई। फिर एक दिन अचानक तत्कालीन राजस्व सचिव एक्का ने संघ के पदाधिकारियों को तब के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मिलवाया और हड़ताल समाप्त हो गई। पटवारियों का कहना है कि उनकी मांगों पर विचार कर शीघ्र निर्णय लेने का आश्वासन दिया गया था। वरिष्ठता के आधार पर पदोन्नति, मुख्यालय में रहने की बाध्यता खत्म करने, स्टेशनरी आदि का भत्ता देने, विभागीय जांच के बिना एफआईआर दर्ज नहीं करने जैसी मांगें थीं। साल भर बीत जाने के बाद भी उनकी शिकायतें दूर नहीं हुई हैं।
हर बार विभिन्न विभागों में कर्मचारी अपनी मांगों के लिए हड़ताल करते हैं। सरकार तब तक नहीं सुनती जब तक व्यवस्था बिगडऩे नहीं लगती। बहुत कम बार ऐसा हुआ है कि कर्मचारियों पर सख्ती बरती गई हो। आखिरकार उन्हें आश्वासन देकर ही काम पर लौटा लिया जाता है। इन हड़ताल के दिनों में आम लोगों को होने वाली परेशानी की कोई भरपाई नहीं होती। मगर, कर्मचारी लडक़र हड़ताल के दिनों का वेतन जरूर हासिल कर लेते हैं। सरकार के पास वक्त होता है कि वह कर्मचारियों को दिए गए आश्वासन को पूरा करे, पर इस ओर ध्यान तब जाता है, जब वे फिर उसी मांग को लेकर दोबारा हड़ताल करते हैं। क्या हमें फिर एक बार पटवारियों की एक माह लंबी हड़ताल देखने के लिए तैयार रहना चाहिए?
बीएसएनएल की याद आ रही
मोबाइल रिचार्ज टैरिफ जब से महंगा कर दिया गया है लोगों को निजी टेलीकॉम ऑपरेटरों के प्रति नाराजगी दिखाई दे रही है। पहले जियो ने दाम बढ़ाए, फिर एक के बाद एक एयरटेल, वोडाफोन-आइडिया और दूसरी कंपनियों ने भी बढ़ा दिए। पहले-भीतर से नहीं लगता, कहकर मजाक उड़ाया जाता था। अब लोगों को वही बीएसएनएल फिर याद आने लगा है। याद दिला रहे हैं कि यह सरकारी कंपनी है, इसे बचाना चाहिए। लोग इस बात के लिए जागरूक करने सडक़ पर उतरने लगे हैं। मगर, यह संयोग ही है कि टैरिफ बढऩे के कुछ पहले ही पोर्टेबिलिटी के नियम कड़े कर दिए गए हैं। पहले आप सीधे दूसरे ऑपरेटर के पास जाकर पुराने नंबर पर नया सिम ले सकते थे। यह 72 घंटे में एक्टिव हो जाता था। पर अब एक सप्ताह का समय लगेगा, और कुछ दूसरी औपचारिकताएं भी पूरी करनी होगी। आपको जानकारी तो होगी ही कि भारत में सबसे बाद में आई जिओ का अब 40 प्रतिशत मोबाइल नेटवर्क पर कब्जा है। यानि पोर्टेबिलिटी के नियम तब आसान थे, जब आप जियो की ओर जाना चाहते थे। अब जियो रखा है तो वहां से निकलना मुश्किल है। एयरटेल के 37 फीसदी ग्राहक भी उसी के दायरे में रहेंगे। ([email protected])