ताजा खबर

‘निष्क्रिय इच्छामृत्यु’ की अनुमति से जुड़े मामले को चिकित्सा बोर्ड को सौंपने से अदालत का इनकार
08-Jul-2024 7:55 PM
‘निष्क्रिय इच्छामृत्यु’ की अनुमति से जुड़े मामले को चिकित्सा बोर्ड को सौंपने से अदालत का इनकार

नयी दिल्ली, 8 जुलाई। दिल्ली उच्च न्यायालय ने 30 वर्षीय युवक के उस मामले को चिकित्सा बोर्ड को सौंपने से इनकार कर दिया है जिसमें ‘निष्क्रिय इच्छामृत्यु’ (पैसिव यूथेनेशिया) की अनुमति देने का अनुरोध किया गया है। यह युवक वर्ष 2013 में सिर में चोट लगने के बाद से बिस्तर पर निष्क्रिय स्थिति में पड़ा है।

‘निष्क्रिय इच्छामृत्यु’ से आशय जानबूझकर वेंटिलेटर या ‘फीडिंग ट्यूब’ जैसे कृत्रिम जीवन रक्षक उपकरणों को हटाकर एक मरीज को मरने के लिए छोड़ देना है।

उच्च न्यायालय ने कहा कि इस मामले के तथ्य इंगित करते हैं कि इस युवक को यंत्रों के जरिये जिंदा नहीं रखा गया है और वह बिना किसी अतिरिक्त बाहरी सहायता के खुद से जिंदा रहने में सक्षम है।

न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा, ‘‘याचिकाकर्ता किसी भी जीवन रक्षक प्रणाली पर नहीं है और याचिकाकर्ता बिना किसी बाहरी सहायता के जीवित है। यद्यपि अदालत माता-पिता के प्रति सहानुभूति रखती है। लेकिन याचिकाकर्ता असाध्य रूप से बीमार नहीं है, इसलिए यह अदालत हस्तक्षेप नहीं कर सकती है और उस अनुरोध पर विचार करने की अनुमति नहीं दे सकती है जो कानूनी रूप से मानने योग्य नहीं है।’’

उच्च न्यायालय ने उच्चतम न्यायालय के कई फैसलों का भी हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि ‘सक्रिय इच्छामृत्यु’ कानूनी रूप से अस्वीकार्य है।

उसने कहा, ‘‘इस प्रकार याचिकाकर्ता जीवित है और चिकित्सक सहित किसी भी व्यक्ति को कोई घातक दवा देकर किसी अन्य व्यक्ति को मौत देने की अनुमति नहीं है, भले ही इसका उद्देश्य रोगी को दर्द और पीड़ा से राहत देना हो।’’

अदालत ने कहा कि वह याचिकाकर्ता के इस अनुरोध को स्वीकार करने के प्रति इच्छुक नहीं है कि उसे मेडिकल बोर्ड के पास भेजा जाए ताकि यह विचार किया जा सके कि उसे ‘निष्क्रिय इच्छामृत्यु’ की अनुमति दी जा सकती है या नहीं। अदालत ने याचिका खारिज कर दी।

उच्च न्यायालय एक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई कर रहा था जिसमें ‘निष्क्रिय इच्छामृत्यु’ के लिए उसकी स्वास्थ्य स्थिति की जांच के वास्ते एक मेडिकल बोर्ड गठित करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।

याचिका के अनुसार, 30 वर्षीय याचिकाकर्ता पंजाब विश्वविद्यालय का छात्र था और वर्ष 2013 में अपने ‘पेइंग गेस्ट हाउस’ की चौथी मंजिल से गिरने के बाद उसके सिर में गंभीर चोट लगी थी।

याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता के परिवार ने उसका इलाज करने की पूरी कोशिश की है, लेकिन वह 2013 से स्थायी तौर पर बिस्तर पर पड़ा है क्योंकि ‘डिफ्यूज एक्सोनल’ चोट के कारण वह 100 फीसदी अपंग हो गया है।

याचिका में कहा गया है कि युवक के परिवार ने कई चिकित्सकों से संपर्क किया लेकिन उन्हें बताया गया कि उसके ठीक होने की कोई संभावना नहीं है। याचिका में कहा गया है कि 11 साल से बिस्तर पर पड़े रहने के कारण उसके शरीर में कई गहरे घाव हो गए हैं जिससे संक्रमण और बढ़ गया है। (भाषा)

अन्य पोस्ट

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news