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बिहार: जमीन सर्वे के नाम पर क्यों मचा है हंगामा
31-Aug-2024 12:37 PM
बिहार: जमीन सर्वे के नाम पर क्यों मचा है हंगामा

बिहार के करीब 45,000 गांवों में इन दिनों जमीन का सर्वेक्षण हो रहा है. कई चरणों में संपन्न होने वाली प्रक्रिया को जुलाई 2025 तक पूरा होना है. लेकिन, रोजी-रोटी कमाने के लिए राज्य से बाहर रहने वाले लोग इससे काफी परेशान हैं.

  डॉयचे वैले पर मनीष कुमार की रिपोर्ट-

बिहार सरकार ने इसके लिए भू-स्वामियों को जमीन का मालिक होने के लिए सबूत के तौर पर कुछ दस्तावेज दिखाने को कहा है. और, इन्हीं दस्तावेजों को जुटाने में कई लोगों को कई तरह की परेशानी हो रही है. खास तौर पर रोजी-रोटी के लिए राज्य से बाहर रहने वाले लोग काफी पसोपेश में हैं. लोगों में यह डर भी है कि अगर वांछित दस्तावेज नहीं दिखा सके तो उनकी जमीन कहीं सरकार की तो नहीं हो जाएगी. हालांकि, सरकार सर्वेक्षण के संबंध में पूरी प्रक्रिया का सोशल मीडिया समेत विभिन्न प्लेटफॉर्म पर प्रचार-प्रसार कर रही है.

ग्राम सभा में अधिकारी दे रहे सर्वे की जानकारी
सर्वे शुरू होने से पहले सभी पंचायतों में ग्राम सभाएं हो रही हैं. अधिकारी लोगों को यह बता रहे कि जमीन पर दावा करने के लिए उन्हें कौन-कौन से दस्तावेज जमा करने होंगे. ये दस्तावेज इस बात पर निर्भर होंगे कि जमीन किस श्रेणी की है तथा किसके नाम पर है. अगर यह पूर्वजों के नाम पर है तो उनकी मृत्यु का प्रमाण पत्र देना होगा, मालगुजारी रसीद और खतियान (ऐसा अधिकार अभिलेख जिसमें रकबा समेत जमीन की पूरी जानकारी होती है) की कॉपी दिखानी होगी. यदि दान की है या जमींदार द्वारा बंदोबस्त की गई है तो फिर दान पत्र या बंदोबस्त से संबंधित दस्तावेज दिखाना होगा. स्व-घोषणा पत्र के साथ वंशावली या आपसी बंटवारा से संबंधित कागजात भी देना होगा. जिस जमीन पर दावा किया जा रहा है, उस भूखंड की चौहद्दी भी दर्ज करनी होगी.

जरूरत के अनुसार इन दस्तावेजों को गांवों में लगने वाले शिविर में या ऑनलाइन जमा किया जा सकता है. इसके बाद सर्वे कर्मी भूखंड पर जाकर ऑन स्पॉट जांच करेंगे, उस वक्त जमीन मालिक या उसके प्रतिनिधि का होना अनिवार्य है. अगर, उस वक्त किसी और ने दावा कर दिया तो उसे भी दर्ज किया जाएगा, जिसकी बाद में सक्षम प्राधिकार द्वारा जांच की जाएगी. तय अवधि के बीच किसी तरह की आपत्ति नहीं होने पर प्रारूप प्रकाशन के बाद अंत में जमीन उसके वर्तमान मालिक के नाम पर दर्ज हो जाएगा. इससे जुड़ी विशेष जानकारी बिहार सरकार के भू-राजस्व विभाग की अधिकारिक वेबसाइट पर जाकर ली जा सकती है. इसके अलावा राज्य सरकार ने सर्वे के चरणबद्ध प्रावधानों या प्रक्रियाओं की अपडेट स्थिति जानने के लिए बिहार सर्वे ट्रैकर ऐप भी बनाया है.

इसके पहले जमीन का सर्वे कब-कब हुआ
बिहार में आजादी के पहले जमीन का सर्वे किया गया था, बाद में साठ के दशक में रिवाइज्ड सर्वे किया गया. हालांकि, यह पूरा नहीं हो पाया. सरकार के पास कोई अपडेट रिकॉर्ड नहीं है कि उसका वर्तमान मालिक कौन है. लोगों के दादा-परदादा के नाम से जमीन है और उन्हीं के नाम से भू-लगान की रसीद कट रही है.

अवकाश प्राप्त अधिकारी राजशेखर शरण कहते हैं, "बिहार में अब भी जो खतियान इस्तेमाल में है, वह काफी पुराना है. अधिकतर जगहों पर यह 1910 तक का बना हुआ है. जब यह पुराना हो जाता है तो इसके कई दावेदार हो जाते हैं क्योंकि तब तक परिवार कई हिस्सों में बंट चुका होता है. किंतु उनके नाम पर कुछ होता नहीं है. दिक्कत यहीं से शुरू हो जाती है."

खतियान जिसके नाम से है, वहां से लेकर अब तक की वंशावली बनाने से समाधान निकल सकता है किंतु अगर किसी पक्ष को आपत्ति हुई तो मामला अदालत तक पहुंच सकता है. कई जमीनें ऐसी हैं, जिनका खाता-खेसरा तक गायब है. बिहार जैसे राज्य में बड़ी आबादी बाढ़ से प्रभावित है. गोपालगंज के किसान देवेंद्र राय कहते हैं, "मेरे पास तो दादा के नाम वाली रसीद है. पिता जी के पास भी कुछ नहीं था. बाढ़ आने पर जान बचाना मुश्किल होता है, पहले लोग जान बचाए कि सामान की चिंता करें. पता नहीं किस बक्से में कौन-कौन कागज कब बह गया होगा."

इसके अलावा टोपोलैंड अर्थात नदियों के किनारे की वैसी जमीन जो धारा बदलने के कारण बाहर आ गई और किसान उस पर फसल उगाने लगे. इसे वे अपने पूर्वजों की जमीन बताते हैं, जो समय के साथ नदी में समा गई और कालांतर में फिर बाहर आ गई. दियारे की ऐसी जमीनों का अब तक सर्वेक्षण नहीं हुआ है. इन किसानों को समझ नहीं आ रहा कि वे क्या करें. 

चिंता की बड़ी वजह मौखिक बंटवारा
बिहार में बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं, जिनकी पुश्तैनी जमीन का मौखिक बंटवारा हुआ है. आशय यह कि परिवार के सदस्यों की संख्या के अनुरूप कागज पर उनके बीच पैतृक जमीन का बंटवारा नहीं किया गया है. उनके पास कोई लिखित दस्तावेज नहीं है. सर्वे के लिए मौखिक बंटवारा मान्य नहीं है. अब इसके लिए सभी भाइयों व बहनों के हस्ताक्षर वाला कागजात (पेपर) तैयार करना होगा. यदि किसी भाई या बहन की मौत हो चुकी है तो उसके सभी बच्चे बंटवारे के उस पेपर पर हस्ताक्षर करेंगे. जाहिर है, ऐसे लोगों के लिए यह परेशानी का सबब बन गया है.

इसके साथ एक और भी समस्या है. मान लीजिए किसी व्यक्ति ने अपने तीन बेटों के बीच जमीन का मौखिक बंटवारा किया था और अब उसकी मौत हो चुकी है. कालांतर में दो भाइयों ने अपने हिस्से की जमीन बेच दी तो तीसरे भाई को बंटवारा के पेपर पर उन दोनों भाइयों के हस्ताक्षर भी लेने होंगे. सर्वे अधिकारी यह नहीं देखेंगे कि किस भाई ने जमीन बेची और किसने नहीं. पिता के नाम पर जितनी जमीन बची होगी, उसके संयुक्त खतियान में तीनों भाइयों का नाम डाल दिया जाएगा. जाहिर है, यह फसाद की जड़ बनेगा. 

इस सर्वे से कैसे फायदों की आशा है
एक बार अगर सर्वे का काम पूरा हो जाता है तो डिजिटल होने के कारण जमीन का रिकॉर्ड यथासंभव पारदर्शी हो जाएगा तथा यह पता चल सकेगा कि जमीन का असली मालिक कौन है. इससे खरीद-बिक्री में धोखाधड़ी की आशंका भी कम हो जाएगी, साथ ही प्रदेश में अपराध के ग्राफ और अदालतों में मुकदमों के बोझ में खासी कमी आ जाएगी.

राज्य सरकार का मानना है कि इस सर्वे के पूरा होने के बाद जमीन से जुड़े विवाद के 95 प्रतिशत मामले कम हो जाएंगे. इसमें कोई दो राय नहीं कि बिहार में सर्वाधिक हत्या भूमि विवाद में होती हैं. इसके पीछे मुख्य कारण जमीन की नाप-जोख की तथा कागजातों की गड़बड़ी है. इसके साथ ही सरकार अपनी जमीन यानी गैरमजरूआ आम (खतियान के आधार पर जिसका निजी स्वामित्व नहीं है) की पहचान कर उसे अतिक्रमण मुक्त करा सकेगी. सही, स्पष्ट और अपडेट रिकॉर्ड होने से सरकार को कृषि, सिंचाई, पशुपालन व अन्य योजनाओं को बेहतर तरीके से लागू करने में मदद मिलेगी. विकास योजनाओं के लिए भू-अधिग्रहण में भी आसानी होगी.

बड़ी आबादी डिजिटल दुनिया से दूर
भू-राजस्व विभाग का अधिकतर कामकाज ऑनलाइन हो चुका है. लेकिन यह भी सच है कि एक बड़ी आबादी आज भी डिजिटल दुनिया से अपरिचित हैं. ऐसे लोगों के लिए दाखिल-खारिज, जमीन का नक्शा प्राप्त करने व भू-लगान की रसीद कटवाने जैसे काम दुरूह साबित हो रहे. बकाया लगान जमा करने पर सरकार ने किसी तरह का अर्थदंड नहीं लगाया है, किंतु साइबर कैफे वाले जुर्माना के नाम पर वसूली कर रहे.

अधिवक्ता राजेश के सिंह कहते हैं, "सर्वे की पूरी प्रक्रिया जितनी आसान कही जा रही है, उतनी है नहीं. प्रोसेस भी काफी लंबा है. कई तरह की अन्य समस्याएं हैं. भू-राजस्व विभाग की सच्चाई सभी जानते हैं, ऐसे में कागजात जुटाने में लोगों को कितनी मदद मिलेगी, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है." 

आम बिहारी कागजातों के लिए ब्लॉक कार्यालयों का चक्कर लगाने तथा भू-राजस्व विभाग के कर्मियों से साक्षात्कार को किसी सजा से कमतर नहीं मानता. इस विभाग के मंत्री ने भी कुछ दिनों पहले यह स्वीकार किया था कि उनका विभाग भ्रष्टाचार में आकंठ डूबा हुआ है और यहां बिना पैसे के कोई काम नहीं होता. फिलहाल, सुकून की बात है कि भू-राजस्व मंत्री डा. दिलीप जायसवाल ने कहा है कि सर्वे में कहीं भ्रष्टाचार की बात दिखे तो सीधे उन्हें फोन या मेल पर सूचित करें. (dw.com)

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