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अनूपा दास: केबीसी जीतने के बाद कितनी बदली है बस्तर की महिला टीचर की ज़िंदगी
28-Nov-2020 6:42 PM
अनूपा दास: केबीसी जीतने के बाद कितनी बदली है बस्तर की महिला टीचर की ज़िंदगी

PHOTO CREDIT- sony

-आलोक प्रकाश पुतुल

छत्तीसगढ़ के बस्तर की चर्चा आम तौर पर माओवादी हिंसा के लिए होती है लेकिन इन दिनों केबीसी सीज़न 12 में करोड़पति बनने वाली अनूपा दास के कारण बस्तर चर्चा में है.

अनूपा दास कहती हैं, "मैं पिछले 20 सालों से किसी प्रतियोगी की तरह कौन बनेगा करोड़पति की तैयारी कर रही थी और मैं न केवल केबीसी में पहुंची बल्कि मैंने एक करोड़ रुपये भी जीते. यह मेरे सपनों के सच होने की तरह है."

बस्तर के एक स्कूल में शिक्षिका के पद पर कार्यरत अनूपा दास केबीसी सीज़न 12 में एक करोड़ रुपये जीतने वालीं तीसरी महिला प्रतिभागी हैं.

इससे पहले केबीसी सीज़न 12 में दिल्ली की नाज़िया नसीम और हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा की रहने वालीं आईपीएस अधिकारी मोहिता शर्मा ने एक करोड़ रुपये जीते हैं.
बस्तर ज़िले के मुख्यालय जगदलपुर में पली-बढ़ीं 42 साल की अनूपा दास बचपन से ही पढ़ने-लिखने में कुशल रही हैं. उनके घर के पास ही स्कूल था और पास में ही लाइब्रेरी भी थी, जहां वे अक्सर जाया करती थीं.

सिविल सर्विस परीक्षा की तैयारी

अनूपा ने भौतिक विज्ञान में स्नातकोत्तर की पढ़ाई की है और वे पिछले 13 सालों से आसना के हायर सेकेंडरी स्कूल में भौतिक विज्ञान की शिक्षिका के बतौर काम कर रही हैं.

उनके पिता दिनेश चंद्र दास ज्योतिषाचार्य हैं और मां सरस्वती दास कुछ समय पहले ही बैंक से सेवानिवृत्त हुई हैं.

जगदलपुर में अपने माता-पिता के साथ रहने वालीं तीन बहनों में सबसे बड़ी अनूपा बताती हैं कि उन्होंने पहले सिविल सर्विस परीक्षा की तैयारी की थी लेकिन उसमें उन्हें सफलता नहीं मिली.

वे कहती हैं, "शिक्षक का पेशा मेरे लिये बहुत सम्मानजनक था. इसके अलावा मुझे बच्चों से गहरा लगाव रहा है. इसलिये मैंने बतौर शिक्षक काम करना शुरू किया."

जब टूट गई शादी

2009 में अनूपा दास की अरेंज मैरिज़ हुई लेकिन महीने भर के भीतर ही यह शादी टूट गई.

अनूपा कहती हैं, "वह मेरे लिये बहुत बुरा दौर था. उस समय हमें बहुत कम लोगों का सहारा मिला. मुझे और मेरे परिवार को ही कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की गई. मेरे माता-पिता, परिवार के दूसरे सदस्यों और स्कूल के बच्चों के कारण मैं फिर से सामान्य जिंदगी में लौट पाई. मुझे समझ में आया कि शादी के अलावा भी ज़िंदगी होती है. उस बुरे दौर को हमने जिया और कई कठिन परीक्षाएं दीं. शायद उन परीक्षाओं ने ही मुझे केबीसी तक पहुंचने और जीतने का हौसला दिया."

उनका कहना है कि सिविल सर्विस परीक्षा की पढ़ाई के दौरान ही केबीसी की ओर उनका झुकाव हुआ और फिर उन्होंने इसके लिये कड़ी मेहनत की.

अनूपा का कहना है कि जब केबीसी के लिये उनका चयन हुआ तो पूरा घर ख़ुशियों से भर गया. पिता ने कहा कि तुम्हारे चयन ने ही हमें करोड़पति बना दिया. लेकिन चयन के बाद हॉट सीट तक पहुंचना इतना आसान नहीं था.

प्रतियोगिता में अपनी बारी आने तक अनूपा दास को दो दिन का इंतज़ार करना पड़ा.

वे कहती हैं, "मैं केबीसी की तैयारी पिछले 20 सालों से कर रही थी लेकिन इंतज़ार के ये दो दिन उन 20 सालों पर भारी पड़े."

अमिताभ बच्चन के साथ हॉट सीट पर पहुंचने से पहले फास्टेस्ट फिंगर राउंड के पहले दौर में अनूपा दूसरे नंबर पर रहीं और दूसरे दौर में तो उनका उत्तर ही ग़लत हो गया.

वे कहती हैं, "दूसरे दौर के बाद जो प्रतियोगी हॉट सीट पर पहुंची थीं, वे सवालों का जवाब देने में बहुत वक़्त लगा रही थीं. वे लंबी बातचीत कर रही थीं और मुझे लग रहा था कि हमारा अवसर कहीं कम न हो जाए. थर्ड फास्टेस्ट फिंगर राउंड हुआ तो मैं तो सिर झुका कर ही बैठी थी लेकिन जब अमित जी ने मेरा नाम पुकारा, तब जा कर मैंने ऊपर देखा. मैं सच में यकीन नहीं कर पा रही थी."

सात करोड़ के लिए नहीं की कोशिश

अनूपा दास ने अमिताभ बच्चन के सवालों का लगातार सही जवाब दिया लेकिन दसवें प्रश्न के उत्तर में उन्हें पहली बार दो लाइफ़लाइन का उपयोग करना पड़ा. जब उनसे पूछा गया कि स्कीट और ट्रैप किस ओलंपिक खेल की स्पर्धाएं हैं. इसके अनुमान में उन्होंने उत्तर के तौर पर निशानेबाजी को चुना. यह बिल्कुल सही जवाब था.

एक करोड़ रुपये जीतने के बाद जब उनसे सात करोड़ रुपये के लिये सवाल पूछा गया तो उन्होंने सही जवाब को लेकर आशंका जताते हुये खेल छोड़ने का विकल्प चुना.

वे कहती हैं, "सात करोड़ के सवाल पर कोई अफ़सोस नहीं है. मैंने जो जवाब सोचा, वही सही जवाब था, इस बात को लेकर मुझे अफ़सोस नहीं है. मैं थोड़ी हड़बड़िया हूं. लेकिन पूरा शो मैंने बहुत तसल्ली के साथ खेला. सात करोड़ के सवाल का जो जवाब मैंने सोचा था, उसे लेकर मैं निश्चित नहीं थी. इसलिये मैंने शो से क्विट करने का फ़ैसला किया."

अनूपा कहती हैं, "शो के बाद मुझे कई लोगों ने कहा कि सात करोड़ रुपये के सवाल का जवाब मुझे देना चाहिये था. लेकिन मुझे बार-बार यही लग रहा था कि एक करोड़ से सात करोड़ के बीच की दूरी तो बहुत कम है लेकिन एक करोड़ और तीन लाख बीस हज़ार रुपये के बीच की दूरी बहुत ज़्यादा है. जितना मुझे मिलने का सुख नहीं मिलता, उससे कहीं बड़ा दुख खोने का हो सकता था. इस दुख को उठाने के लिये मैं तैयार नहीं थी. मुझे इस बात की खुशी हुई कि मैंने जो उत्तर सोचा था, वही सही निकला."

केबीसी की शूटिंग से बस्तर लौटने के बाद अनूपा, गॉल ब्लॉडर के कैंसर से जूझ रहीं अपनी मां के इलाज के लिए मुंबई लौट चुकी हैं.

वो अपने स्कूल की उन बच्चियों की मदद करना चाहती हैं, जिनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है. उन्हें पढ़ना-पढ़ाना और बच्चों के साथ समय गुजारना अच्छा लगता है. लेकिन अभी वो अपना पूरा ध्यान अपनी मां के इलाज में लगा रही हैं.

'बस्तर पहचान नक्सल हिंसा नहीं'

अनूपा दास कहती हैं, "अभी मेरी मां की तबीयत ख़राब है और मां मेरी पहली प्राथमिकता हैं. आने वाले पांच या दस साल, या जितने भी साल लगें, मैं उनके पूरी तरह स्वस्थ होने तक उनकी सेवा करना चाहती हूं. इसके अलावा मेरे स्कूल के बच्चे और मेरी दोनों बहनों के बच्चे भी मेरी प्राथमिकता में हैं."

केबीसी में एक करोड़ रुपये जीतने के बाद अनूपा की ज़िंदगी में क्या बदलाव आया है? इस सवाल के जवाब में वो कहती हैं, "पहले ऐसा होता था कि मैं मौजूद होती थी तो भी लोग नज़रअंदाज़ करते थे. अब मैं अगर वहां नहीं हूं तो भी मेरी उपस्थिति दर्ज़ हो रही है. ये अब की सबसे बड़ी उपलब्धि है."

अनूपा दास का कहना है कि उनका भरोसा कर्म पर है. कर्म करेंगे तो किस्मत साथ देगी. वे मानती हैं कि जीवन के हर क्षेत्र में ईमानदारी से किया हुआ प्रयास आपको शीर्ष पर ले जाता है. इस प्रयास में ईमानदारी होनी चाहिये और धैर्य होना चाहिये. भले ही देर हो सकती है लेकिन ईमानदारी और धैर्य से किये गये श्रम के बाद सफलता तय है.

अनूपा चाहती हैं कि देश भर में बस्तर की जो नकारात्मक छवि बनी हुई है, उसे बदलने की ज़रुरत है.

अनपूा कहती हैं, "नक्सल हिंसा बस्तर का एक ग़लत विज्ञापन है. जबकि मेरा बस्तर माओवादी हिंसा से जूझ रहे बस्तर की धारणा से अलग है. मुझे बस्तर का नाम लेते ही ठंडी हवाएं याद आने लगती हैं. खूबसूरत प्राकृतिक वातावरण है, बेहद शांत और ख़ुश रहने वाले लोग हैं. कुछ क्षेत्र विशेष में हिंसा है लेकिन वह बस्तर की पहचान नहीं हो सकते. इसे बदलना ज़रूरी है."(https://www.bbc.com/hindi)

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