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आईपीएल 2021 की नीलामी, कैसे ख़रीदे जाते हैं क्रिकेटर
17-Feb-2021 7:43 PM
आईपीएल 2021 की नीलामी, कैसे ख़रीदे जाते हैं क्रिकेटर

आईपीएल यानी इंडियन प्रीमियर लीग के 14वें सीज़न के लिए खिलाड़ियों की नीलामी 18 फरवरी को चेन्नई में होगी.

इस बार नीलामी के लिए 1097 खिलाड़ियों ने पंजीकरण कराया है. इनमें 814 भारतीय और 283 विदेशी खिलाड़ी हैं.

ये एक तरह से मिनी नीलामी होगी, क्योंकि ज़्यादातर टीमों ने अपने प्रमुख खिलाड़ियों को टीम में बनाए रखा है. इसलिए कोई बड़ा उलटफेर होने की संभावना नहीं है.

हालांकि किंग्स XI पंजाब और रॉयल चैलेंजर्स बैंगलुरु ने ज़्यादातर खिलाड़ियों को हटा दिया है. इसलिए ये टीमें एक नई टीम बनाना चाहती हैं. ये नीलामी इन दोनों टीमों के लिए महत्वपूर्ण है.

इनमें से 207 खिलाड़ी राष्ट्रीय टीम के लिए खेल चुके हैं. 863 खिलाड़ी फर्स्ट-क्लास और लोकल क्रिकेट से हैं, जबकि 27 खिलाड़ी सहयोगी देशों से हैं.

आईपीएल नीलामी एक इवेंट है, जिसके ज़रिए आठ आईपीएल टीमें आगामी टूर्नामेंट के लिए नए खिलाड़ियों को चुनती हैं. बीसीसीआई इस निलामी का आयोजन करवाता है.

आईपीएल निलामी का आयोजन पहली बार 2008 में हुआ था. इसके बाद से हर साल इसका आयोजन हो रहा है.

एक टीम अधिकतम 25 खिलाड़ी रख सकती है, जिसमें 8 विदेशी क्रिकेटर हो सकते हैं.

नीलामी कैसे होती है?

हर खिलाड़ी का बेस प्राइस तय होता है. इसी बेस प्राइस से उनकी बोली लगनी शुरू होती है. कोई भी टीम उस रकम से ज़्यादा की बोली लगाकर उस खिलाड़ी को ख़रीद सकती है.

अगर एक से ज़्यादा फ्रेंचाइज़ी उस खिलाड़ी को अपनी टीम में रखना चाहते हैं तो नीलामी शुरू होती है. अगर सबसे ज़्यादा बोली लगाने वाले को दूसरी टीमें चुनौती नहीं देतीं तो वो खिलाड़ी आख़िरी बोली लगाने वाली टीम में शामिल हो जाता है.

अगर किसी खिलाड़ी पर कोई भी बोली ना लगाए तो वो अनसोल्ड हो जाता है. सभी खिलाड़ियों के लिए बोली लगने के बाद, अनसोल्ड खिलाड़ियों का नाम फिर से लिया जाता है. टीमें उन्हें दूसरे दौर में ख़रीद सकती हैं.

आईपीएल में हर फ्रेंचाइज़ी यानी टीम के मालिक के पास टीम बनाने के लिए 80 करोड़ रुपये होते हैं.

ऐसा ज़रूरी नहीं है कि किसी आईपीएल फ्रेंचाइज़ी को अपना पूरा बजट खर्च करना होगा. हालांकि नए नियमों के मुताबिक़, उन्हें 75% पैसा खर्च करना ही होगा जो 60 करोड़ रुपये के क़रीब होता है.

फ्रेंचाइज़ी 80 करोड़ रुपये तक खर्च कर सकता है. हाल में सीएसके ने खिलाड़ियों की तनख्वा पर 79.85 करोड़ रुपये खर्च किए, जिसके बाद उसके पास सिर्फ 15 लाख रुपये बचे.

फ्रेंचाइज़ी इस हिसाब से रणनीति बनाते हैं कि उन्हें कौन-सा खिलाड़ी चाहिए और उनके पास कितना पैसा है. अक्सर ये देखने में आया है कि फ्रेंचाइज़ी सही समय पर इस्तेमाल करने के लिए कुछ पैसा बचाकर रखते हैं.

आईपीएल टीम में मुख्य तौर पर तीन तरह के खिलाड़ी होते हैं. कैप्ड भारतीय खिलाड़ी, अनकैप्ड भारतीय खिलाड़ी और विदेशी खिलाड़ी.

कैप्ड खिलाड़ी वो खिलाड़ी भारतीय खिलाड़ी होते हैं जिन्होंने खेल के किसी भी फॉर्मेट में कम से कम एक बार भारत की सीनियर टीम का प्रतिनिधित्व किया हो. यानी टेस्ट, वनडे और टी-20 में से किसी एक में भी अपने देश के लिए खेला हो.

वहीं अनकैप्ड का मतलब ऐसे भारतीय खिलाड़ी, जो अपने देश के लिए इन तीनों में से किसी भी फॉर्मेट में न खेले हों. वो इंडियन फर्स्ट-क्लास सर्किट के घरेलू खिलाड़ी होते हैं जिन्होंने कभी भारत का प्रतिनिधत्व नहीं किया.

सभी नॉन-इंडियन खिलाड़ी विदेशी खिलाड़ी की श्रेणी में आता है. वो कैप्ड, अनकैप्ड या सहयोगी क्रिकेट देश के खिलाड़ी हो सकते हैं.

अंडर-19 के खिलाड़ी को अनकैप्ड श्रेणी में नहीं रखा जा सकता, जबतक कि उसने कोई फर्स्ट-क्लास या लिस्ट-ए क्रिकेट ना खेला हो.

तीनों तरह के खिलाड़ियों की आईपीएल नीलामी में कोई अंतर नहीं होता है. सिर्फ ये नियम है कि किसी भी टीम में विदेशी खिलाड़ी 8 से ज़्यादा नहीं हो सकते.

नीलामी के लिए आने वाले खिलाड़ियों की संख्या तय नहीं है. हर नीलामी में खिलाड़ियों की संख्या अलग-अलग रही है.

ये संख्या इस पर निर्भर करती है कि कितने खिलाड़ियों ने अपने क्रिकेट बोर्ड से एनओसी लेकर नीलामी के लिए अपना नाम दिया है.

इसके बाद खिलाड़ियों को कई फेक्टर को ध्यान में रखते हुए शॉर्टलिस्ट किया जाता है. ये फेक्टर इस पर निर्भर करते हैं कि अलग-अलग तरह के कितने खिलाड़ी उनके पास हैं. खिलाड़ियों को खेलने के तरीक़े के आधार पर अलग-अलग पूल में डाला जाता है, जैसे विकेटकीपर, गेंदबाज़, बल्लेबाज़, अनकैप्ड आदि.

बेस प्राइस वो मूल्य होता है जिसके ऊपर बोली लगना शुरू होती है. बोली की रक़म बेस प्राइस से शुरू होती है. कोई भी खिलाड़ी बेस प्राइस से नीचे की रकम पर नहीं बिक सकता.

बेस प्राइस बीसीसीआई तय करता है, लेकिन खिलाड़ी ख़ुद भी अपना बेस प्राइस तय कर सकते हैं, लेकिन वो 10 लाख रुपये से कम नहीं होना चाहिए और दो करोड़ रुपये से ज़्यादा नहीं होना चाहिए.

कैप्ड और विदेशी खिलाड़ी आम तौर पर अपना बेस प्राइस अधिकतम सीमा तक रखते हैं वहीं अनकैप्ड भारतीय खिलाड़ी मुक़ाबलन कम बेस प्राइस रखते हैं.

बेस प्राइस तय करते वक़्त खिलाड़ियों की परफॉर्मेंस हिस्ट्री, हालिया फॉर्म, सोशल मीडिया फॉलोविंग आदि का ख़ास ख्याल रखना पड़ता है, नहीं तो बेस प्राइस बहुत कम या बहुत ज़्यादा हो जाने का जोखिम रहता है.

कई बार ऐसा हुआ है कि कई खिलाड़ी इसलिए नहीं बिक पाए क्योंकि उन्होंने अपना बेस प्राइस बहुत ज़्यादा रख दिया था.

हर फ्रेंचाइज़ी अपनी टीम में कम से कम 18 और ज़्यादा से ज़्यादा 25 खिलाड़ी रख सकता है. टीम में 8 से ज़्यादा विदशी खिलाड़ी नहीं हो सकते.

मिसाल के तौर पर, अगर एक टीम में 25 खिलाड़ी हैं तो उनमें से 17 भारतीय खिलाड़ी होंगे (कैप्ड और अनकैप्ड) और 8 विदेशी खिलाड़ी.

ऐसा भी हो सकता है कि किसी टीम में सभी 25 भारतीय खिलाड़ी हों और एक भी विदेशी खिलाड़ी ना हो. ये संभव तो है, लेकिन आम तौर पर फ्रेंचाइज़ी विदेशी खिलाड़ियों को लेते ही हैं, क्योंकि विदेशी खिलाड़ी वैश्विक मंच पर खेल चुके होते हैं और फ्रेंचाइज़ी को लगता है कि इसका फायदा टीम को मिलेगा.

फ्रेंचाइज़ी के पास पैसा होता है तो वो विदेशी खिलाड़ियों पर भारी बोली भी लगाते हैं.

वो टीम के लिए अधिकतर 8 विदेशी खिलाड़ी ख़रीद सकते हैं, लेकिन मैच के दिन, 11 खिलाड़ियों की टीम में सिर्फ 4 विदेशी खिलाड़ियों को रखने का नियम है.

नीलामकर्ता कौन होता है?
नीलामीकर्ता वो शख़्स होता है जो निलामी की प्रक्रिया का प्रबंधन करता है. निलामी के वक़्त निलामीकर्ता खिलाड़ी के नाम और बेस प्राइस की घोषणा करता है. जब बोली लगनी शुरू हो जाती है तो बढ़ी हुई क़ीमत वही सबको बताता जाता है.

वो सभी फ्रेंचाइज़ी पर नज़र रखता है कि किसने बोली पहले लगाई और कोई विवाद होने की स्थिति में मामला सुलझाता है.

सीधे शब्दों में बोलें तो निलामीकर्ता ये सुनिश्चित करता है कि निलामी की पूरी प्रक्रिया ठीक से और निष्पक्ष तरीक़े से हो.

जब नीलामीकर्ता घोषणा करता है - "एंड सोल्ड!" तब खिलाड़ी सबसे ज़्यादा बोली लगाने वाली फ्रेंचाइज़ी को बिक जाता है.

आयोजन की शुरुआत से दस साल तक रिचर्ड मेडले आईपीएल के नीलामीकर्ता रहे. 2018 में बीसीसीआई ने उनका कॉन्ट्रेक्ट ख़त्म कर दिया और उनकी जगह ब्रिटेन के ह्यू एडमीड्स ने ले ली. ह्यू एक इंडिपेंडेंट फाइन आर्ट, क्लासिक कार और चैरेटी नीलामकर्ता रहे हैं.

कौन-से खिलाड़ी सबसे ज़्यादा क़ीमत पर बिके?

ये देखना दिलचस्प होगा कि इस नीलामी में सबसे ज्यादा बोली किसकी लगती है. आइए जानें कि नीलामी में अब तक की सबसे महंगी बोली किसकी लगी.

2008-एमएस धोनी (6 करोड़)

2009 - एंड्रयू फ्लिंटॉफ और केविन पीटरसन (7.35 करोड़ प्रत्येक)

2010 - किरन पोलार्ड और शेन बॉन्ड (3.4 मिलियन प्रत्येक)

2011- गौतम गंभीर (11.4 करोड़)

2012-रवींद्र जडेजा (9.72 करोड़)

2013-ग्लेन मैक्सवेल (5.3 करोड़)

2014-युवराज सिंह (14 करोड़)

2015-युवराज सिंह (16 करोड़)

2016- शेन वॉटसन (9.5 करोड़)

2017-बेन स्टोक्स (14.5 करोड़)

2018-बेन स्टोक्स (12.50 करोड़)

2019-जयदेव उनादकट और वरुण चक्रवर्ती (8.4 करोड़ प्रत्येक)

2020-पैट कमिंस (15.5 करोड़)   (bbc.com)

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