राजनांदगांव
नांदगांव लोकसभा के नतीजों पर सियासी जगत में गुणा-भाग
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 2 मई। प्रदेश के सबसे हाईप्रोफाइल राजनांदगांव लोकसभा सीट में मतदान के बाद चुनावी नतीजों से पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की राजनीतिक साख जहां दांव पर है, वहीं मौजूदा सांसद व भाजपा प्रत्याशी संतोष पांडे की किस्मत ईवीएम में लॉक है।
शुरूआती चुनाव प्रचार से लेकर मतदान तक दोनों राजनीतिक दल ने अपने -अपने प्रत्याशी की जीत की राह को आसान बनाने पूरी जोर आजमाईश की। तुलनात्मक रूप से देखें तो भाजपा संतोष पांडे के लिए पूरी तरह एकजुट रही। जबकि कांग्रेस प्रत्याशी भूपेश बघेल ने प्रचार से लेकर मैनेजमेंट तक का जिम्मा अपने खास सिपाहसलारों के हवाले कर दिया था। बघेल ने प्रचार के लिए खुद ही मोर्चा सम्हाला।
राजनंादगांव संसदीय क्षेत्र के 5 कांग्रेसी विधायकों ने चुनावी रण में खुद को सीमित कर रखा। बघेल ने शहरी इलाकों के बजाय ग्रामीण क्षेत्र में पसीना बहाया। अंदरूनी स्तर पर बघेल के ताबड़तोड़ दौरे से भाजपा की रणनीति पर प्रतिकूल असर पड़ा।
भाजपा के रणनीतिककारों ने बघेल के दौरे का तोड़ निकालने के लिए पांडे को भी ग्रामीण इलाकों में सभाएं और प्रचार करने के लिए भेजा। बघेल के लिए यह चुनाव जीवन-मरन के समान है। इस चुनाव के नतीजे बघेल की राजनीतिक भविष्य तय करेंगे।
पूर्व मुख्यमंत्री ने कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में समूचे संसदीय क्षेत्र में धुआंधार दौरा किया। बघेल ने अपने दौरों में मुख्यमंत्री के रूप में किए गए किसान, मजदूर और गरीब तबके की योजनाओं को लेकर वोट मांगा।
ग्रामीण इलाकों में बघेल की मजबूत धमक रही। कांग्रेस प्रत्याशी बघेल अकेले लड़ाई लड़ते नजर आए। पार्टी के कई दिग्गज नेता चुनावी प्रचार में चुप्पी साधे रहे, वहीं कुछ नेताओं ने औपचारिकता दिखाते प्रचार का हिस्सा बने। बघेल राजनांदगांव की अंदरूनी राजनीति को समझकर अपने समर्थकों और करीबियों के बदौलत प्रचार में डटे रहे।
इधर, भाजपा की स्थिति भी कांग्रेस की तुलना में कमतर नहीं थी। मौजूदा सांसद पांडे को आम लोगों के बीच कोरोनाकाल से गायब रहने से लेकर पूरे पांच साल निष्क्रिय रहने के सवालों का जवाब देना पड़ा।
कांग्रेस ने पांडे की निष्क्रियता को चुनावी मुद्दा भी बनाया। पांडे ने केंद्र सरकार की योजनाओं को आधार बताकर अपनी सफलता गिनार्इं। भाजपा में कई बड़े नेता पांडे के राजनीतिक लड़ाई में हिस्सा लेने से बचते रहे।
भाजपा के भीतर पांडे को दोबारा प्रत्याशी बनाए जाने को लेकर सवाल भी उठता रहा, लेकिन यह भी सच है कि राष्ट्रीय नेतृत्व और प्रदेश संगठन के आंख तरेरने के बाद घर बैठे पार्टी नेता प्रचार के लिए सामने आए। भाजपा ने अलग-अलग नेताओं को रणनीति के तहत जिम्मा सौंपा था।
राजनीतिक तौर पर कांग्रेस प्रत्याशी ने अकेले लड़ाई लड़ी तो भाजपा के भीतर देर से एकजुट होकर चुनावी जंग जीतने के जोर लगाया गया। बहरहाल 4 जून को चुनावी नतीजे आने से पहले बघेल और पांडे की सियासत की अगली पारी को लेकर राजनीतिक गलियारे में चर्चाएं और गुणा-भाग चल रही है।