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इस्लामिक स्टेट के जुर्मों के लिए क्या सोशल मीडिया कंपनियां मुआवजा देंगी
18-Feb-2022 12:29 PM
इस्लामिक स्टेट के जुर्मों के लिए क्या सोशल मीडिया कंपनियां मुआवजा देंगी

चरमपंथी गुट इस्लामिक स्टेट ने इराक की यजीदी औरतों और लड़कियों की फेसबुक और व्हाट्सऐप जैसे प्लेटफार्मों पर खरीद-बिक्री की थी. अब पीड़ित यजीदी चाहते हैं कि ये कंपनियां अपनी गलती मान कर उन्हें मुआवजा दें.

(dw.com) 

वहाब हासू के परिवार ने 80 हजार डॉलर की फिरौती दी ताकि उनकी भतीजी को इस्लामिक स्टेट के चंगुल से छुड़ाया जा सके. चरमपंथियों ने 2014 में उनकी भतीजी का अपहरण कर लिया और फिर उसे व्हाट्सऐप ग्रुप में "बेचने के लिए" पेश किया. अब हासू चाहते हैं कि इसके लिए सोशल मीडिया कंपनियों को जिम्मेदार ठहरा कर उनसे मुआवजा वसूला जाए.

हासू अकेले नहीं हैं. इराक में अल्पसंख्यक यजीदी समुदाय के दर्जनों दूसरे लोग भी चाहते हैं कि सोशल मीडिया कंपनियों को यजीदी महिलाओं और लड़कियों की तस्करी और खरीद-फरोख्त में मदद का दोषी माना जाए.

हासू और उनके साथी यजीदी सामाजिक कार्यकर्ताओं ने वकीलों के साथ मिल कर एक रिपोर्ट तैयार की है. यह रिपोर्ट अमेरिका और दूसरे देशों को सौंप कर यजीदियों के खिलाफ अपराध में फेसबुक और यूट्यूब जैसी सोशल मीडिया कंपनियों की भूमिका की जांच करने की मांग की जाएगी.

26 साल के हासू का कहना है, "इससे यजीदी पीड़ितों को न्याय मिलेगा." हासू 2012 में नीदरलैंड्स आ गए. उनके पिता को अमेरिकी सैनिकों के साथ काम करने की वजह से धमकियां मिल रही थीं.

सोशल मीडिया कंपनियों की नाकामी
120 पन्नों की ये रिपोर्ट कहती है कि बड़ी तकनीकी कंपनियों ने अपने प्लेटफार्मों का महिलाओं और लड़कियों के कारोबार के लिए इस्तेमाल होने से रोकने के लिए कुछ नहीं किया. इस्लामिक स्टेट ने आठ साल पहले यजीदियों के गढ़ समझे जाने वाले सिंजार पर तब हमला कर बड़ी संख्या में लड़कियों और औरतों का अपहरण किया था.

रिपोर्ट में कहा गया है कि कंपनियां अपने प्लेटफॉर्म पर यजीदियों के खिलाफ नफरती भाषणों की पहचान कर उन्हें हटाने में भी नाकाम रहीं. कंपनियों को कंटेंट मॉडरेशन में उनकी कमजोरियों के लिए जिम्मेदार ठहराने के साथ ही सरकार से सख्त दिशानिर्देश बनाने की मांग रिपोर्ट में की गई है.

संयुक्त राष्ट्र की एक जांच टीम ने हिंसा के इस अभियान को जनसंहार माना है. इसमें इस्लामिक स्टेट के लड़ाकों ने यजीदी पुरुषों की हत्या की, बच्चों को बाल सैनिक बनाया और महिलाओं के साथ साथ लड़कियों को यौन दासी बना कर उनकी खरीद बिक्री की. हासू का कहना है, "हम सरकार से जांच की मांग कर रहे हैं क्योंकि इन प्लेटफार्मों ने जनसंहार में योगदान किया है."

सोशल मीडिया के प्लेटफार्मों ने कुछ कंटेंट हटाए और ऐसे कुछ अकाउंट सस्पेंड भी किए जिनमें महिलाओं और लड़कियों की तस्करी समेत इस्लामिक स्टेट से जुड़ी सामग्री थी. हालांकि कार्यकर्ताओं का कहना है कि कंपनियों का रवैया पैबंद लगाने जैसा और बहुत अत्यंत धीमा था.

रिपोर्ट में ऑनलाइन तस्करी के करीब दर्जन भर उदाहरण हैं. इनमें फेसबुक पोस्ट के स्क्रीनशॉट हैं जहां एक युवा यजीदी महिला की कीमत लगाई जा रही है. साथ ही यूट्यूब वीडियो का स्क्रीनशॉट भी है जिसमें इस बात पर चर्चा हो रही है कि महिलाओं की किस खूबी पर ज्यादा पैसा मिलेंगे.

सोशल मीडिया कंपनियों का रवैया
यूट्यूब ने रिपोर्ट में लगाए आरोपों पर प्रतिक्रिया देने से मना कर दिया हालांकि एक प्रवक्ता ने कहा है कि साइट ने जुलाई से सितंबर 2021 के बीच करीब ढाई लाख ऐसे वीडियो हटाए हैं जिनमें हिंसक चरमपंथ को लेकर यूट्यूब की नीतियों का उल्लंघन हुआ.

मेटा यानी भूतपूर्व फेसबुक ने भी रिपोर्ट की कॉपी दखने के बाद इस पर कोई प्रतिक्रिया देने से मना कर दिया. इसी तरह ट्वीटर के प्रवक्ता ने कहा कि धमकी देना या आतंकवाद को बढ़ावा देना हमारे नियमों के खिलाफ है, हालांकि यजीदियों के मामले में खासतौर से ट्वीटर की तरफ से भी कोई बयान नहीं दिया गया.

सोशल मीडिया कंपनियां हाल के वर्षों में कंटेंट मॉडरेशन की नीतियों को लेकर लगातार आलोचना झेल रही हैं. कुछ कार्यकर्ता उन्हें अभिव्यक्ति को दबाने का आरोप लगाते हैं तो कुछ मुद्दों पर अत्यधिक नरमी बरतने के भी आरोप हैं.

कहीं नरम तो कहीं गरम रवैया
पिछले साल म्यांमार के रोहिंग्या शरणार्थियों ने मेटा से 150 अरब अमेरिकी डॉलर के हर्जाने की मांग करते हुए मुकदमा ठोका. उनका आरोप है कि समुदाय के खिलाफ नफरती भाषणों के खिलाफ कुछ नहीं किया गया और समुदाय के खिलाफ हिंसा हुई.

2021 में फेसबुक के आंतरिक दस्तावेज व्हिसलब्लोअर फ्रांसिस हाउगेन ने सार्वजनिक किए गए थे. इन दस्तावेजों से पता चला कि कंपनी को इन कमियों के बारे में जानकारी थी.

इसी तरह 2020 का एक दस्तावेज जो थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन ने देखा है उसमें कहा गया कि प्लेटफॉर्म गलत तरीके से अरबी भाषा में 77 फीसदी बार काउंटर टेररजिज्म सामग्री को आगे बढ़ा रहा था. रिपोर्ट में कहा गया है, "औरतों से द्वेष रखने वाले बहुत सारे दुष्प्रचार" मौजूद हैं और कंपनी ने इराक के अरबी बोलने वाले लोगों के पोस्ट्स की "ना के बराबर समीक्षा" की.

सच्चाई सामने आनी चाहिए
अगवा की गईं कुछ यजीदी औरतें और लड़कियां भागने में कामयाब हो गईं. हासू की भतीजी जैसी कुछ लड़कियों को उनके परिवारों ने पैसा देकर छुड़ाया. सैकड़ों दूसरी लड़कियां आज भी लापता हैं. डच यजीदियों की मदद करने वाले एक गुट के साथ काम करने वाली कैथरीन कांपेन वकील हैं.

कांपेन ने बताया कि अमेरिका और नीदरलैंड के अधिकारियों को पहले ही इस रिपोर्ट की कॉपी दी जा चुकी है. उनका कहना है, "अगर एक जांच से आपराधिक प्रक्रिया का पता चलता है और आरोप साबित होता है तो होने दीजिए. अगर यह एक दीवानी मुकदमा बनता है तो यही होने दीजिए, हम चाहते हैं कि सच्चाई सामने आए."

अमेरिका से चलने वाली वेबसाइटों को उनके यूजरों की डाली गई अवैध सामग्री की जिम्मेदारी से 1996 के कम्युनिकेशन डीसेंसी एक्ट की धारा 230 के तहत संरक्षण मिला हुआ है. हालांकि बाद की धाराएं कहती हैं कि यह तस्करी जैसी चीजों पर लागू नहीं होगा. यानी दोषी होने पर उनके खिलाफ कार्रवाई हो सकती है.

रिपोर्ट का मानना है कि अमेरिकी अधिकारी इस मामले की जांच कर कंपनी पर मुकदमा चला सकते हैं. इसके लिए टेक्सस में फेसबुक के खिलाफ 2021 के आए फैसले का हवाला दिया गया है.

कोई न्याय नहीं
संयुक्त राष्ट्र की एक टीम इस्लामिक स्टेट के खिलाफ जांच कर रही है. उसने बहुत सारे सबूत जमा किए हैं और इराक की जजों को ट्रेनिंग दी है हालांकि अब तक इसका कोई नतीजा सामने नहीं आया है.  यजीदियों के लिए काम करने वाले संगठन याजदा के सह संस्थापक मुराद इस्माइल कहते हैं, "मैंने यजीदी बच्चों को इस प्लेटफॉर्म पर बिकते हुए अपनी आंखों से देखा है. किसी को कुछ करना होगा."

हासू को उम्मीद है कि विदेशी सरकारें सोशल मीडिया कंपनियों पर उनकी कमियों के लिए और आखिरकार पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए दबाव बनाएंगी. हासू को 2019 के एक मुकदमे में आए फैसले से प्रेरणा मिली है. इसमें डच नेशनल रेल कंपनी एनएस को यहूदी नरसंहार के उन पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए कहा गया जो इस कंपनी की ट्रेन में भर कर दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान कंसंट्रेशन कैंप तक लाए गए थे.

एनआर/एके (रॉयटर्स)

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