अंतरराष्ट्रीय
-जोएल गुंटर
यूक्रेन के बंदरगाह शहर मारियुपोल में शनिवार की सुबह संघर्ष विराम का ऐलान किया गया. यहां फंसे नागरिकों के बाहर निकलने का यह अच्छा मौका था. शहर पर रूसी सेना की भारी बमबारी हो रही थी और यहां लगभग दो लाख लोगों के फंसे होने का अंदेशा था.
जैसे ही संघर्ष विराम का ऐलान हुआ, नगर प्रशासन ने लोगों को निकालने लिए फ़टाफ़ट 50 बसों का इंतज़ाम कर लिया. लोग भी अपने घरों से निकल कर सिटी सेंटर पहुंचने लगे. बसों को यहीं से रवाना होना था.
लेकिन इसके दो घंटे से भी कम समय में रूसी सेना ने फिर से आवासीय इलाकों पर गोले बरसाने शुरू कर दिए. बाद में रूस ने कहा कि यह संघर्ष विराम उसने नहीं यूक्रेनियों ने तोड़ा है.
दादा-दादी की देखभाल कर रहे नौजवान की आपबीती
मारियुपोल में पिछले पांच दिन से ना पानी है और ना बिजली और ना सफाई की व्यवस्था. खाना और पानी तेज़ी से खत्म हो रहा है.
अपने दादा-दादी की देखभाल कर रहे 27 साल के आईटी डेवलपर मैक्सिम ने बीबीसी को बताया कि किस तरह शनिवार का दिन उनके लिए पहले उम्मीद की तरह आया और फिर निराशा में खत्म हो गया.
उन्होंने कहा, ''हमने आज यहां से निकलने की कोशिश की थी. हमें संघर्ष विराम के दौरान निकलना था, जब गोलीबारी न हो रही हो. हमने सुना कि इस दौरान हम यहां से निकल सकते हैं.''
मैक्सिम ने कहा, ''जितनी जल्दी हो सके मैंने अपने और दादा-दादी के लिए चार बैग में गर्म कपड़े और खाना भर लिया. घर में जितना पानी बचा हुआ था उसे भी ले लिया. मैंने सारी चीजों को अपनी कार में रख दिया.''
''मेरे दादा-दादी उम्र के आठवें दशक में हैं इसलिए उनके लिए यह सब करना मुश्किल था. मैं ही यह सारा सामान छह मंज़िली इमारत की सीढ़ियों से लेकर उतरा. सारी चीज़ें कार में रखीं. अभी इमारत में लिफ्ट नहीं चल रही है. ''
''लेकिन जैसे ही मैं कार स्टार्ट करने वाला था, बमबारी दोबारा शुरू हो गई. मैंने नज़दीक ही विस्फोट की आवाज़ सुनी. जितनी जल्दी हो सके मैं सारी चीज़ें लेकर ऊपर भागा. अपने अपार्टमेंट में पहुंच कर मैंने देखा कि शहर से धुएं के गुबार उठ रहे हैं. यह धुआं हाईवे से जेपोरिझिया की ओर बढ़ रहा था. माना जा रहा था कि लोग इधर ही भागेंगे.''
निकलने की आस में सिटी सेंटर पहुंचे लोग बमबारी में फंसे
मैक्सिम के मुताबिक वह अब भी अपने दादा-दादी के अपार्टमेंट में ही हैं. उन्होंने बताया, ''शनिवार को दिन-भर बमबारी और विस्फोट होते रहे. लेकिन अब अपार्टमेंट में हम तीनों के अलावा और 20 लोग आ चुके हैं.''
मैक्सिम ने बताया, ''कई लोग यह सुन कर सिटी सेंटर पहुंचे थे कि संघर्ष विराम का ऐलान हो चुका और यहां से बसें उन्हें सुरक्षित जगहों की ओर ले जाएंगी. रूसी बमबारी से वे बच जाएंगे. लेकिन जब दोबारा बमबारी शुरू हुई तो वे फंस गए. रूसी सेना के दोबारा हमला शुरू करने की वजह से वे अपनी छिपने की जगहों पर नहीं लौट सके. '
मैक्सिम ने कहा, ''इन हालात को देखते हुए हमने कई लोगों को अपने अपार्टमेंट में बुला लिया. ये सभी लोग शहर के उत्तरी इलाके के रहने वाले हैं. उन्होंने बताया कि उनका इलाका हमले में बुरी तरह ध्वस्त हो चुका है. मकानों में आग लगी हुई है. आग बुझाने वाला भी कोई नहीं है. शहर की सड़कों पर लाशें बिखरी हुई हैं और उन्हें वहां से हटाने वाला भी कोई नहीं है.''
''मैं पड़ोस के तीन लोगों को तो जानता हूं लेकिन बाकियों के बारे में नहीं जानता. इनमें सबसे बुजुर्ग एक महिला हैं. उनकी उम्र 70 साल की है. सबसे कम उम्र का एक बच्चा है. दो बिल्लियां, एक तोता और एक कुत्ता भी साथ है. ''
''हम लोगों ने फर्श पर महिलाओं और बच्चों के सोने का इंतज़ाम किया है. अतिरिक्त गद्दे नहीं थे इसलिए हमने कुछ कालीनों और कपड़ों को ही फर्श पर बिछा दिया. ''
मैक्सिम ने कहा, ''हम लोगों के पास बोतलबंद पानी खत्म हो गया है. नलों का पानी भी बंद हो गया है. एक मात्र गैस की सप्लाई चालू है. नहाने का पानी गर्म कर इसे पीने लायक बना सकते हैं.''
मैक्सिम ने बताया, ''आज पुलिस ने स्टोर खोल दिए और लोगों को कहा कि यहां से सारी चीजें ले जाएं. हमारे पड़ोसी किसी तरह वहां से कुछ कैंडी, मछली और कोल्ड ड्रिंक ला सके.''
'संघर्ष विराम एक धोखा था'
मैक्सिम कहते हैं, ''संघर्ष विराम एक धोखा था. एक पक्ष ने कभी भी फायरिंग रोकने की प्लानिंग नहीं की थी. अगर वह कहते हैं कि कल (रविवार) को संघर्ष विराम है तो हमें यहां से निकलने की कोशिश करनी होगी लेकिन हमें यह पता नहीं क्या वास्तव में ऐसा होगा. कहीं दोबारा गोलाबारी न होने लगे. अच्छा है हम यह यहां छिपे रह कर अच्छी स्थिति में हैं.''
मैक्सिम ने कहा, ''जब तक मेरे फोन में बैटरी है, तब तक आप मुझे कॉल कर सकते हैं. लेकिन मुझे पता नहीं यह बैटरी कब तक चलेगी. मैं निराश हो गया हूं. आज के बाद मुझे हर दिन खुद को और पड़ोसियों को बचाए रखने के लिए संघर्ष करना होगा.''
''इसके बाद मुझे पता नहीं कि क्या होगा. हम बहुत थक गए हैं और हमें बाहर निकलने का रास्ता भी नज़र नहीं आ रहा है. '' (bbc.com)