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इमरान ख़ान गए, पाकिस्तान में इस वक़्त फ़ैसले का अधिकार किसके पास है?
11-Apr-2022 8:38 AM
इमरान ख़ान गए, पाकिस्तान में इस वक़्त फ़ैसले का अधिकार किसके पास है?

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शनिवार की रात पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव 174 वोटों से कामयाब हो गया. इसके साथ ही प्रधानमंत्री के तौर पर उनका कार्यकाल समय से पहले ही ख़त्म हो गया.

अब देश के नए प्रधानमंत्री के चुनाव के लिए सोमवार का दिन तय किया गया है. लेकिन सत्ता हस्तांतरण के इस अंतराल के दौरान देश को कौन चला रहा है?

पाकिस्तान के इतिहास में यह पहला मौका है जब किसी प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव सफल हुआ है. सदन में इमरान ख़ान सरकार की हार के साथ ही उनके मंत्रिमंडल को भी भंग कर दिया गया है. यानी अब देश में कोई कैबिनेट नहीं है.

ऐसे में सवाल ये है कि एक प्रधानमंत्री के जाने और दूसरे के आने के बीच के अंतराल में पाकिस्तान का चीफ़ एग्ज़ीक्यूटिव कौन है, देश के महत्वपूर्ण फ़ैसले लेने का अधिकार किसके पास होता है और किस तरह के फ़ैसलों का अधिकार है.

हालांकि कैबिनेट भंग कर दी गई है, लेकिन राष्ट्रपति आरिफ़ अल्वी अभी भी अपने पद पर मौजूद हैं, तो क्या राष्ट्रपति देश चला रहे हैं? क्या देश की सत्ता किसी एक व्यक्ति के पास है या ऐसी स्थिति में किसी समिति का गठन होता है?

और इस अंतराल में जब देश में कोई प्रधानमंत्री नहीं है, युद्ध या आपदा के मामले में, अगर आपात निर्णय लेने पड़ जाएं, तो ये निर्णय कौन लेगा और उसके अधिकारों का दायरा क्या है?

बीबीसी ने पाकिस्तान में संवैधानिक और संसदीय मामलों के विशेषज्ञ और पीएलडीएटी के प्रमुख अहमद बिलाल महबूब और मुस्लिम लीग (नवाज़) की पिछली सरकार में संसदीय मामलों के संघीय मंत्री मोहसिन शाहनवाज़ रांझा से बात करके इन सवालों के जवाब जानने की कोशिश की हैं.

वे कहते हैं, "संविधान इस पर पूरी तरह से ख़ामोश है."

इस समय पाकिस्तान का चीफ़ एग्ज़ीक्यूटिव कौन हैं? अहमद बिलाल महबूब का कहना है कि हमारा संविधान इस पर पूरी तरह ख़ामोश है.

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मोहसिन शाहनवाज़ रांझा ने कहा कि प्रधानमंत्री के इस्तीफ़े या कार्यकाल की समाप्ति या असेंबली भंग होने की सूरत में, हमारे पास विकल्प हैं और अविश्वास के मामले में, संविधान के अनुच्छेद 94 में स्पष्ट रूप से कहा गया है, कि "जब तक नया प्रधानमंत्री अपना पद न संभाल ले, राष्ट्रपति प्रधानमंत्री को कार्य जारी रखने के लिए कह सकते हैं, लेकिन अगर राष्ट्रपति ने ऐसा कोई नोटिफ़िकेशन जारी नहीं किया है, तो इस बारे में संविधान में कोई प्रावधान नहीं है.

(अभी तक राष्ट्रपति की ओर से ऐसा कोई नोटिफ़िकेशन जारी नहीं किया गया है, जिसमें जाने वाले प्रधानमंत्री (इमरान ख़ान) को काम जारी रखने के लिए कहा गया हो... )

अहमद बिलाल महबूब के अनुसार, "हो सकता है कि राष्ट्रपति ने इमरान ख़ान को काम जारी रखने के लिए कह दिया हो, लेकिन यह बात मीडिया में रिपोर्ट न की गई हो.

उनके अनुसार, यह हमारे संविधान में एक ख़ामी है. संविधान हर बात का जवाब नहीं देता. जब स्थिति बनती है, तो उसके लिए रास्ते खोजे जाते हैं.

अहमद बिलाल का कहना है कि पाकिस्तान के इतिहास में यह पहली बार है, जब किसी प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव सफल हुआ है. इससे पहले किसी प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव पास ही नहीं हुआ है, इसलिए यह सवाल भी पहले नहीं आया है. अब यह सवाल उठा है तो कोई रास्ता निकाला जाएगा.

कार्यवाहक प्रधानमंत्री की धारणा ही नहीं
अहमद बिलाल महबूब के अनुसार, अगर किसी कारण से राष्ट्रपति अपने कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ है या देश से बाहर हैं, तो शपथ लेने के बाद, सीनेट के अध्यक्ष के पास कार्यवाहक राष्ट्रपति की शक्ति होती है, लेकिन चीफ़ एग्ज़ीक्यूटिव के अधिकार न अध्यक्ष के पास हैं, न स्पीकर के पास हैं.

उनका कहना है कि हमारे देश में कार्यवाहक राष्ट्रपति की धारणा तो है, लेकिन कार्यवाहक प्रधानमंत्री की धारणा नहीं है. अगर राष्ट्रपति देश के बाहर होते हैं, तो सीनेट का अध्यक्ष शपथ लेने के बाद कार्यवाहक राष्ट्रपति बन जाता है, लेकिन प्रधानमंत्री के जाने की स्थिति में, हमारे देश में कोई कार्यवाहक प्रधानमंत्री नहीं होता है.

'राष्ट्रपति बड़े एग्ज़ीक्यूटिव निर्णय नहीं ले सकते'
अहमद बिलाल महबूब का कहना है कि मान लें कि अगर ऐसा न भी हुआ हो, तो हमारे देश के राष्ट्रपति देश की व्यवस्था को चलाते हैं, लेकिन वह कोई बड़े एग्ज़ीक्यूटिव निर्णय नहीं ले सकते हैं. लेकिन क्योंकि सब कुछ उनके नाम पर होता है, इसलिए राज्य के मुखिया वही हैं.

राष्ट्रपति के बाद, देश का स्थायी प्रशासन, जिसमें विभिन्न मंत्रालयों के सचिव शामिल होते हैं, अपने-अपने विभागों के चीफ़ एग्ज़ीक्यूटिव होते हैं.

इस दौरान अगर युद्ध छिड़ जाए तो क्या होगा?
ऐसी स्थिति में जब देश में कोई चीफ़ एग्ज़ीक्यूटिव नहीं है और राष्ट्रपति के अधिकार सीमित हैं, अगर कोई आपदा आ जाये या युद्ध छिड़ जाए, तो क्या होता है?

अहमद बिलाल महबूब के अनुसार युद्ध की स्थिति में कमांडर-इन-चीफ़ देश का राष्ट्रपति होता है और कमांडर-इन-चीफ़ के रूप में उनके पास सेना को आदेश देने का अधिकार होता है और ऐसी युद्ध की स्थिति में सेना ख़ुद भी प्रतिक्रिया देने का अधिकार रखती है.

"इन परिस्थितियों में, राष्ट्रपति संबंधित विभागों के पदाधिकारियों को बुला कर कॉर्डिनेटर की भूमिका निभाएंगे, लेकिन उनके पास प्रमुख नीतिगत निर्णय लेने का अधिकार नहीं है."

इसका उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा, कि अगर सुरक्षा से संबंधित कोई मामला होता है, तो राष्ट्रपति सशस्त्र सेना के चीफ़ और चेयरमैन ज्वाइंट चीफ्स ऑफ़ दि स्टाफ़ कमिटी को बुलाते हैं और भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदा होने पर डिज़ास्टर मैनेजमेंट कमिटी के प्रमुख को तलब करेंगे.

अहमद बिलाल महबूब का कहना है कि राष्ट्रपति को अगले प्रधानमंत्री के आने तक कोई बड़ा नीतिगत निर्णय नहीं लेना होगा, लेकिन यह हमारे संविधान में एक ख़ामी है और वर्तमान स्थिति को देखते हुए, हमारे क़ानूनविदों को भविष्य में इसके लिए कोई विकल्प निकाल कर रखना होगा, कि ऐसी स्थिति में देश का चीफ़ एग्ज़ीक्यूटिव कौन होगा.

इमरान ख़ान कार्यवाहक प्रधानमंत्री भी नहीं बनाए गए
सत्ता हस्तांतरण के इस अंतराल में देश को कौन चला रहा है, इसके जवाब में, मुस्लिम लीग की पिछली सरकार में संसदीय मामलों के संघीय मंत्री मोहसिन शाहनवाज़ रांझा ने बीबीसी को बताया, कि देश को राष्ट्रपति चला रहे हैं और इस स्थिति में, राष्ट्रपति के पास वही अधिकार हैं, जो चीफ़ एग्ज़ीक्यूटिव के पास होते हैं और वह छोटे बड़े सभी प्रकार के निर्णय ले सकते हैं.

मोहसिन शाहनवाज़ रांझा इसे संविधान में ख़ामी मानने से इनकार करते हैं.

उन्होंने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 94 राष्ट्रपति को यह अधिकार देता है कि वह प्रधानमंत्री का कार्यकाल समाप्त होने के बाद, दूसरा प्रधानमंत्री चुने जाने तक, निवर्तमान प्रधानमंत्री को काम जारी रखने को कह सकते हैं. हालांकि वो कहते हैं कि शनिवार की रात प्रधानमंत्री ने जिस तरह की गतिविधियां की हैं उसके बाद ऐसी स्थिति पैदा हो गई है कि राष्ट्रपति उन्हें (इमरान ख़ान को) एक दिन का भी समय नहीं दे सके.

मोहसिन शाहनवाज़ रांझा ने कहा, कि "शनिवार रात की घटनाएं सबके सामने हैं, और इस बात का ख़तरा था कि अगर उन्हें अधिकार मिल गए तो वो कोई भी ऐसा क़दम उठा सकते हैं जिससे देश हित को ख़तरा हो सकता है."

वे कहते हैं, "चूंकि इमरान ख़ान प्रधानमंत्री के रूप में अपनी संवैधानिक ज़िम्मेदारियों को पूरा नहीं कर सके, शायद यही वजह है कि राष्ट्रपति ने इमरान ख़ान को एक दिन के लिए भी कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनाने का रिस्क नहीं लिया और उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 94 के तहत अधिकार अपने पास ही रखे हुए हैं." (bbc.com)

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