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यूकेन युद्धः वो तीन हालात जो नेटो को युद्ध में खींच सकते हैं
12-Apr-2022 8:30 AM
यूकेन युद्धः वो तीन हालात जो नेटो को युद्ध में खींच सकते हैं

-फ्रैंक गार्डनर

ब्रसेल्स में बीते सप्ताह नेटो रक्षा मंत्रियों की बैठक हुई. ये तय किया जा रहा है कि यूक्रेन को सैन्य मदद देने में नेटो किस हद तक जाएगा.

रूस-यू्क्रेन युद्ध में नेटो के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही रही है कि वो रूस के ख़िलाफ़ संघर्ष में शामिल हुए बिना कैसे अपने सहयोगी यूक्रेन को हथियारों की पर्याप्त आपूर्ति कर पाए ताकि वो रूस के ख़िलाफ़ लड़ सके और अपनी सुरक्षा कर सके.

इस दौरान यूक्रेन की सरकार खुलकर नेटो से सैन्य मदद मांगती रही है.

यूक्रेन का कहना है कि अपने पूर्वी डोनबास क्षेत्र में रूस का आक्रमण रोकने के लिए उसे तुरंत पश्चिमी देशों के हथियारों की ज़रूरत है. यूक्रेन ने कहा है कि उसे तुरंत जेवलिन एनएलएडब्ल्यू (नेक्स्ट जेनरेशन एंटी टैंक वेपन यानी अगली पीढ़ी के टैंक रोधी हथियार), स्टिंगर और स्टारस्ट्रीक एंटी टैंक और एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइलों की ज़रूरत है. यूक्रेन की सेनाएं पहले से ही पश्चिमी देशों में बने इन हथियारों का इस्तेमाल कर रही हैं.

यूक्रेन को अब तक ये हथियार तो मिलते रहे हैं, लेकिन उसे अब और अधिक हथियार चाहिए.

यूक्रेन को टैंक चाहिए, लड़ाकू विमान चाहिए और अति उन्नत एयर डिफेंस मिसाइल डिफेंस सिस्टम चाहिए ताकि वो रूस के लगातार बढ़ रहे हवाई हमलों और लंबी दूरी की मिसाइलों से किए जा रहे हमलों का जवाब दे सके. रूस के ये हमला यूक्रेन के ईंधन भंडारों और हथियार भंडारों को भारी नुक़सान पहुंचा रहे हैं.

पश्चिमी नेताओं के दिमाग़ में ये डर है कि कहीं रूस यूक्रेन में टेक्टिकल न्यूक्लियर वेपन का इस्तेमाल न कर दे या यूक्रेन का संघर्ष बड़े यूरोपीय युद्ध में ना बदल जाए. इन हालात में दांव पर बहुत कुछ लगा है.

अब तक पश्चिमी देशों ने यूक्रेन को क्या-क्या दिया है?

अब तक तीस से अधिक पश्चिमी देश यूक्रेन को सैन्य मदद दे चुके हैं. इनमें यूरोपीय यूनियन की एक अरब यूरो और अमेरिका की 1.7 अरब डॉलर की मदद शामिल है.
अभी तक ये मदद हथियारों तक सीमित रही है. गोला बारूद और रक्षात्मक उपकरण दिए हैं जैसे टैंक रोधी और मिसाइल रोधी डिफेंस सिस्टम
इनमें कंधे पर रखकर मार करने वाली जेवलिन मिसाइलें शामिल हैं. ये हथियार गर्मी को पहचानने वाले रॉकेट दागते हैं.
स्टिंगर मिसाइलें भी यूक्रेन को दी गई हैं. इन्हें सैनिक आसानी से ले जा सकते हैं. अफ़ग़ानिस्तान सोवियत युद्ध में इनका इस्तेमाल सोवियत विमानों को गिराने के लिए किया जाता था.
स्टारस्ट्रीक पोर्टेबल एयर डिफेंस सिस्टम. ब्रिटेन में बना ये सिस्टम आसानी से लाया ले जाया सकता है.
नेटो सदस्यों को ये डर है कि अगर यूक्रेन को टैंक और लड़ाकू विमान दिए गए तो इससे संघर्ष में नेटो के शामिल होने का ख़तरा है.
हालांकि इस सबके बावजूद, चेक गणराज्य ने यूक्रेन को टी-72 टैंक भेज दिए हैं.

रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरुआत में ही राष्ट्रपति पुतिन ने ये चेतावनी दे दी थी कि रूस एक परमाणु संपन्न देश है और रूस के परमाणु हथियार तैयार और तैनात हैं.

अमेरिका ने इसकी प्रतिक्रिया में कुछ नहीं किया. अमेरिका का अनुमान है कि रूस ने अपने टेक्टिकल परमाणु हथियारों को अभी बंकरों से नहीं निकाला है. लेकिन पुतिन ने अपनी बात कह दी. वास्तव में वो ये कह रहे थे कि, "रूस के पास भारी मात्रा में परमाणु हथियार हैं, इसलिए ये मत सोचना कि तुम हमें डरा दोगे."

रूस की सेना कम क्षमता वाले टेक्टिकल परमाणु हथियारों के पहले इस्तेमाल की नीति पर चलती है. रूस ये जानता है कि पश्चिमी देशों में परमाणु हथियारों के प्रति नफ़रत है. बीते 77 सालों में परमाणु हथियारों का इस्तेमाल नहीं हुआ है.

यूक्रेन में बर्बाद हुआ रेलवे स्टेशन
नेटो के रणनीतिकारों की चिंता ये है कि एक बार परमाणु हथियार इस्तेमाल करने का भय टूट गया. भले ही नुकसान यूक्रेन के रणक्षेत्र में स्थानीय निशाने तक ही सीमित हो, तो रूस और पश्चिमी देशों के बीच विनाशकारी परमाणु युद्ध शुरू हो जाने का ख़तरा बढ़ जाएगा.

और फिर भी, जाहिरा तौर पर रूसी सैनिकों की ओर से किए गए हर अत्याचार के साथ, नेटो का संकल्प सख्त होता है और उसके अवरोध दूर हो जाते हैं. चेक गणराज्य पहले ही टैंक भेज चुका है, माना जाता है कि सोवियत युग के टी72s पुराने हैं, लेकिन वो यूक्रेन को टैंक भेजने वाला पहले नेटो देश हैं. स्लोवाकिया अपनी S300 वायु रक्षा मिसाइल प्रणाली भेज रहा है. जब यह युद्ध शुरू हुआ तो इस तरह के दोनों क़दम असंभव रूप से जोखिम भरे लगते थे.

संसद की रक्षा समिति के प्रमुख सांसद टोबियास एलवुड को लगता है कि रूस जब परमाणु हमले का डर दिखाता है तो वो गीदड़ भभकी दे रहा होता है और नेटो को यूक्रेन की मदद के लिए अधिक क़दम उठाने चाहिए.

एलवुड कहते हैं, "हम जो हथियार देने के इच्छुक हैं उन्हें लेकर अधिक सावधानी बरत रहे हैं. हमें और मजबूत रवैये की जरूरत है. हम यूक्रेनियन लोगों को जीवित रहने के लिए तो पर्याप्त दे रहे हैं लेकिन युद्ध जीतने लायक नहीं, और इसे बदलना होगा."

ऐसे में सवाल ये है कि रूस-यूक्रेन युद्ध कैसे उस स्थिति में पहुंच सकता है कि ये समूचे यूरोप में फैल जाए और नेटो को भी इसमें शामिल होना पड़े?

ऐसे कई संभावित परिदृश्य हैं जो निस्संदेह पश्चिमी रक्षा मंत्रियों को परेशान कर रहे होंगे.

1- यूक्रेन ओडेसा से नेटो से मिली एंटी-शिप मिसाइल को काले सागर में डेरा डाले रूसी युद्ध पोत पर दागता है, जिसमें क़रीब सौ नाविक और दर्जनों मरीन मारे जाते हैं. एक ही हमले में इस पैमाने पर हुई मौतें अभूतपूर्व होंगी और पुतिन पर इसी तरह की बदले की कार्रवाई का दबाव होगा.

2- रूस की स्ट्रेटजिक मिसाइलें नेटो देशों, जैसे की स्लोवाकिया या पोलैंड, से यूक्रेन की तरफ आ रहे आपूर्ति काफ़िले पर हमला करती हैं. यदि इस तरह के हमले में नेटो के लोग मारे जाते हैं तो इससे नेटो के संविधान का अनुच्छेद 5 प्रभावी हो सकता है, इससे हमले का शिकार बने देश की रक्षा के लिए समूचे नेटो गठबंधन को सामने आना पड़ सकता है.

3- डोनबास में भीषण लड़ाई में किसी औद्योगिक ठिकाने पर बड़ा धमाका होता है जिससे ज़हरीली रासायनिक गैसें निकलती है. ऐसा अभी तक के युद्ध में हो चुका है लेकिन उस मामले में कोई मौत नहीं हुई थी. लेकिन अगर सीरिया के घूटा इलाक़े में हुए रासायनिक हमले की तरह ही यदि यूक्रेन में भी मौतें होती हैं और अगर ये पता चलता है कि रूस ने जानबूझकर ऐसा किया है तब नेटो को दख़ल देना ही होगा.

ऐसा भी हो सकता है कि इस तरह की तीनों परिस्थितियों हो ही ना.

लेकिन जहां पश्चिमी देशों ने रूस के आक्रमण के जवाब में दुर्लभ स्तर की एकजुटता दिखाई है, ऐसे भी संकेत हैं कि नेटो देश सिर्फ़ प्रतिक्रिया ही कर रहे हैं और ये नहीं सोच रहे हैं कि ये युद्ध समाप्त कैसे होगा.

ब्रिटेन के सबसे अनुभव सैन्य अफ़सरों में से एक अपना नाम न ज़ाहिर करते हुए कहते हैं, "बड़ा रणनीतिक सवाल ये है कि क्या हमारी सरकार संकट के समाधान में जुटी है या उसके पास कोई वास्तविक रणनीति है."

वो कहते हैं कि इस सवाल के जवाब के लिए अंत के बारे में भी सोचना होगा.

"हम यहां ये हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं कि हम यूक्रेन को हर संभव मदद दें, लेकिन तीसरे विश्व युद्ध से पीछे रहें. लेकिन सच ये है कि पुतिन हमसे बड़े दांव लगाने वाले शख्स हैं."

वहीं सांसद एलवुड सहमत होते हुए कहते हैं, "रूस ये काम (युद्ध को बढ़ाने की चेतावनी) बहुत प्रभावी तरीक़े से करता है. और हम झांसे में आ जाते हैं. हमने संघर्ष को बढ़ाने की सीढ़ी को नियंत्रित करने की क्षमता को गंवा दिया है." (bbc.com)

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