अंतरराष्ट्रीय

शहबाज़ शरीफ़ के प्रधानमंत्री बनने के बाद फ़र्स्ट लेडी कौन होगी?
18-Apr-2022 12:59 PM
शहबाज़ शरीफ़ के प्रधानमंत्री बनने के बाद फ़र्स्ट लेडी कौन होगी?

इमेज स्रोत,TEHMINA DURRANI

-हुमैरा कंवल

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने इस्लामाबाद में स्थित प्रधानमंत्री हाउस में अपना काम तो शुरू कर दिया है, लेकिन प्रधानमंत्री हाउस ने अभी तक इस बात की पुष्टि नहीं की है, कि इस समय देश की फ़र्स्ट लेडी कौन है.

पाकिस्तान में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री, दोनों की ही पत्नियों को फ़र्स्ट लेडी कहा जाता है.

शहबाज़ शरीफ़ जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री चुने गए तो उनके बेटे हमज़ा शहबाज़ शरीफ़ और भतीजी मरियम नवाज़ तो मेहमानों की गैलरी में मौजूद थे, लेकिन उनकी पत्नी कहीं नज़र नहीं आईं. और उस दिन भी प्रेस कॉरिडोर में सब लोग इस बारे में ही बात कर रहे थे कि फ़र्स्ट लेडी का टाइटल किसे मिलेगा?

इस बारे में दुविधा की वजह शहबाज़ शरीफ़ की तीन शादियां हैं, जिनमें से दो अब भी बरक़रार हैं.

बतौर एमएनए शहबाज़ शरीफ़ ने नेशनल असेंबली की डायरेक्टरी में अपनी डिटेल में मॉडल टाउन लाहौर का पता लिखवाया है, वहां संपर्क करने पर जवाब मिला कि 'फ़र्स्ट लेडी और प्रोटोकॉल के बारे में हमें नहीं पता हैं इसलिए प्रधानमंत्री हाउस से संपर्क करें."

हालांकि स्टॉफ़ ने यह ज़रूर कहा कि "जब से इस्लामाबाद में राजनीतिक गतिविधियां शुरू हुई हैं, तब से यहां घर का कोई भी व्यक्ति नहीं है."

यही बात प्रधानमंत्री हाउस में भी सामने आई है, जो अब शहबाज़ शरीफ़ का आवास है, और प्रोटोकॉल और पीएसओ दोनों कार्यालयों के स्टाफ़ ने एक-दूसरे पर ज़िम्मेदारी डालते हुए कहा, कि "हमें अभी कुछ नहीं पता कि फ़र्स्ट लेडी कौन है."

हालांकि, पूर्व की कई सरकारों में फ़र्स्ट लेडी के स्क्वाड का हिस्सा रहने वाली एक ऑफ़िसर ने नाम न छापने की शर्त पर बीबीसी को बताया, कि इस समय शहबाज़ शरीफ़ तो प्रधानमंत्री हाउस में रह रहे हैं, लेकिन फ़र्स्ट लेडी अभी तक यहां नहीं आई हैं.

उन्होंने कहा कि फ़र्स्ट लेडी के लिए एक अलग टीम रिज़र्व होती है, जो उन्हें प्रोटोकॉल और सुरक्षा प्रदान करती है और जब भी वह कहीं जाती हैं, तो वह टीम उनके साथ होती है. उन्होंने बताया कि इस टीम में पुरुष और महिला दोनों शामिल हैं जो दैनिक आधार पर प्रधानमंत्री हाउस में मौजूद रहते हैं.

इस अफ़सर ने यह भी कहा कि सभी फ़र्स्ट लेडीज़ का सार्वजनिक और निजी कार्यक्रमों में भाग लेने का अनुपात एक-दूसरे से अलग रहा है, जैसे कि पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान की पत्नी बहुत ही कम समारोहों में शामिल हुई हैं. शरीफ़ परिवार को अच्छी तरह से जानने वाले पत्रकार और विश्लेषक सलमान ग़नी ने बीबीसी को बताया, कि "शहबाज़ शरीफ़ की तीन पत्नियां हैं, लेकिन कभी भी उनकी किसी पत्नी को उनके साथ सार्वजनिक कार्यक्रमों में जाते नहीं देखा गया है.'

शहबाज़ शरीफ़ की पहली पत्नी नुसरत शहबाज़ हैं जिनके हमज़ा शहबाज़ समेत तीन बच्चे हैं. वह शहबाज़ शरीफ़ की फ़र्स्ट कज़िन भी हैं. नुसरत शहबाज़ को कभी भी राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर सक्रिय नहीं देखा गया है और न ही उन्हें किसी सार्वजनिक समारोह में देखा गया है. हां, लेकिन उनकी संपत्ति का मूल्य चुनाव आयोग द्वारा सार्वजनिक स्तर पर तब तब सामने आता रहा है, जब शहबाज़ शरीफ़ अपनी संपत्ति की घोषणा करते हैं.

शहबाज़ से ज़्यादा अमीर नुसरत शहबाज़
यहां तक कि साल 2018 में भी डॉन अख़बार ने अपनी रिपोर्ट में चुनाव आयोग के बयानों और संपत्ति के ब्योरे का हवाला देते हुए लिखा था कि नुसरत शहबाज़ अपने पति शहबाज़ शरीफ़ से ज़्यादा अमीर हैं.

"उनकी संपत्ति में स्पिनिंग मिलें, पोल्ट्री फ़ार्म, ट्रेडिंग कंपनियां, टेक्सटाइल मिलें, डेयरी फ़ार्म्स और प्लास्टिक उद्योग सहित अन्य संपत्तियां शामिल हैं."

सलमान ग़नी कहते हैं, कि "ज़ाहिरी तौर पर ऐसा लगता है कि शरीफ़ परिवार को अपने घर की महिलाओं का सार्वजनिक तौर पर सामने आना पसंद नहीं है. लेकिन जब भी मुश्किल समय आया तो हमने देखा कि पहले नवाज़ शरीफ़ की पत्नी क़ुलसुम नवाज़ उनकी जिलावतनी के दौर में बहार निकल कर सामने आई और फिर नवाज़ शरीफ़ के अयोग्य घोषित होने पर, मरियम नवाज़ ने राजनीति में क़दम रखा और शायद अगर ये दोनों महिलाएं खड़ी नहीं होती, तो आज शहबाज़ शरीफ़ प्रधानमंत्री नहीं बन पाते और न पीएमएल-एन की राजनीति होती.

हालांकि इस दौरान भी शहबाज़ शरीफ़ के बेटे के अलावा न तो उनकी पत्नी और न ही उनकी कोई बेटी सार्वजनिक तौर पर सामने नज़र आई.

कौन हैं तहमीना दुर्रानी
उनकी एक दूसरी पत्नी आलिया है, जिनसे उनकी एक बेटी ख़दीजा है, हालाँकि ये दोनों अब अलग हो चुके हैं.

नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री की तीसरी पत्नी सामाजिक कार्यकर्ता और लेखिका तहमीना दुर्रानी हैं, जो चारसद्दा की रहने वाली हैं. तहमीना की किताब 'माई फ्यूडल लॉर्ड' काफ़ी चर्चित हुई थी. यह उनकी आत्मकथा है जिसमें उन्होंने अपने बीते हुए जीवन और पहली शादी के अनुभवों को लिखा है.

इस की वजह से उन्हें अपने माता-पिता की नाराज़गी का भी सामना करना पड़ा था. तहमीना दुर्रानी ने अब्दुल सत्तार एधी की जीवनी 'ए मिरर टू दि ब्लाइंड' भी लिखी है. उनकी अन्य दो किताबें, 'ब्लासफ़मी' और 'हैप्पी थिंग्स इन सॉरो टाइम्स' भी बहुत लोकप्रिय हुईं.

तहमीना ने 19 साल पहले शहबाज़ शरीफ़ से शादी की थी, लेकिन सलमान ग़नी के मुताबिक़ वह सार्वजनिक रूप से उतनी एक्टिव नहीं रहीं, जितनी एक्टिव पहले रहती थीं.

तहमीना के बारे में यही कहा जाता है कि वह सार्वजनिक तौर पर सामने नहीं आती हैं. चाहे वह शहबाज़ शरीफ़ के मुख्यमंत्री के कार्यकाल के दौरान हो या उनके निर्वासन के दौरान, उन्हें सार्वजनिक तौर पर किसी भी कार्यक्रम में नहीं देखा गया. लेकिन अगर उनके ट्विटर अकाउंट पर जाएं, तो आपको उनकी सामाजिक गतिविधियों और एधी साहब के मिशन के प्रोमोशन के अलावा शहबाज़ शरीफ़ को शुभकामनाएं और कभी-कभी उनके साथ कुछ तस्वीरें दिखाई देंगी.

वह लाहौर में दस मरले के घर में रहती है. ट्विटर पर अपनी एक फ़ोटो में उन्होंने लिखा, "आज़ादी क्या है? दस मरला घर, रात के बारह बजे, कमरे में वह (शहबाज़ शरीफ़) के साथ बैठी मुस्कुरा रही हैं और दीवार पर बहुत सी तस्वीरें दिखाई देती हैं. "

शहबाज़ शरीफ़ के प्रधानमंत्री चुने जाने के बाद तहमीना दुर्रानी ने न तो कोई ट्वीट किया और न ही वह शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुईं थी.

तहमीना ने ख़ुद को बताया फर्स्ट लेडी
हालांकि, एंकर मुबश्शिर लुक़मान के साथ उनके यूट्यूब चैनल पर एक संक्षिप्त इंटरव्यू में, उन्होंने ख़ुद को फ़र्स्ट लेडी कहा और फिर तीन दिन बाद तहमीना दुर्रानी ने बिल्क़िस एधी का हाल चाल लेते हुए उनके साथ एक तस्वीर पोस्ट की.

उन्होंने लिखा, कि "आज बिल्क़िस और मैं अस्पताल के इस कमरे में बहुत रोए. वह एधी साहब के लिए रोई और मैं उनके लिए रोई. वह बहुत बीमार है और जब उन्होंने मुझे फ़र्स्ट लेडी कहा तो मैं नर्वस हो गई."

बिलकिस एधी से मिलते हुए उन्होंने उनकी तस्वीर के साथ एक ट्वीट किया और अपने लिए फ़र्स्ट लेडी का टाइटल भी इस्तेमाल किया. "बेशक, कोई भी फ़र्स्ट लेडी बिल्क़िस एधी की महानता की बराबरी नहीं कर सकती."

जब एंकर पर्सन मुबश्शिर लुक़मान ने अपने कार्यक्रम के दौरान बातचीत में उनसे पूछा कि आप शपथ ग्रहण समारोह में नहीं आईं, तो उन्होंने जवाब दिया, कि इतने सारे लोगों में मेरे जाने की ज़रुरत नहीं थी, जहां ज़रुरत होती है वहां मैं होती हूं, मैं कहूंगी कि आपने बधाई दी, बधाई के साथ बहुत सारी दुआएं भी दी. क्योंकि जिस मोड़ पर हमारा देश खड़ा है, उस मोड़ पर शहबाज़ शरीफ़ को जो काम मिला है, वह सिर्फ़ उनके कंधों पर ही पहाड़ नहीं है, बल्कि मेरे कंधों पर भी है, क्योंकि अब हम जवाबदेह हैं. क्या काम होगा चाहे थोड़ी देर हो या ज़्यादा देर हो."

तहमीना दुर्रानी ने कहा कि शहबाज़ शरीफ़ बहुत 'ग़रीब नवाज़' हैं. हर चीज़ को देखते हैं एक पल के लिए भी आराम नहीं करते हैं. "दस साल तक जब वह मुख्यमंत्री थे, मैंने उन्हें देखा ही नहीं. यह कोई बादशाहत नहीं है, उन्हें यह एक बहुत बड़ी नौकरी मिल गई है. अल्लाह करे वह इस नौकरी को निभा सकें और ग़रीब और शोषित जनता के लिए कुछ कर सकें. वे अपनी तरफ़ से करेंगे और मैं अपनी तरफ से करुंगी, लेकिन मैं तहमीना दुर्रानी ही रहूंगी.

कैप्शन- तहमीना दुर्रानी सामाजिक कार्यों में अब्दुल सत्तार एधी को अपना गुरु मानती हैं

मुबश्शिर लुक़मान ने उनसे पूछा कि वह महल छोड़कर दस मरले के घर में क्यों रह रही है. तहमीना दुर्रानी ने जवाब दिया, "दस मरले के घर में मध्यम वर्गीय रहता है, मैं मध्यम वर्गीय हूं और अब आपका प्रधानमंत्री भी मध्यम वर्गीय है." मैं तीन तीन साल एधी साहब के घर पर रह कर आती हूँ. मेरी औक़ात और शुरुआत वही है."

तहमीना ने, जो बहुत ही कम इंटरव्यू देती हैं मुबश्शिर लुक़मान से कहा, कि ''मैं दस मरले के घर में रहती हूं और मैं इसकी इज़्ज़त बनाना चाहती हूं. आपकी फ़र्स्ट लेडी एक मध्यम वर्गीय घर में रह रही है. मैं एक उदाहरण बना रही हूं."

शादी के बाद भी नहीं बदला नाम
कुछ साल पहले सुहैल वड़ैच को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, कि ''मैं कभी भी एमएनए या एमपीए नहीं बनना चाहती. उन्होंने यह भी कहा था कि अगर सार्वजनिक तौर पर सामने रही, तो फिर काम नहीं हो सकता.''

यह पूछे जाने पर कि नाम क्यों नहीं बदला, तो उन्होंने कहा कि यह एक ऐसा नाम था जिसकी पहचान उनके काम से होती है और इसे बदलना अनुचित था, यह मेरी पहचान है जिसे मैंने संघर्ष के ज़रिये हासिल किया है.''

वह कहती हैं, कि "समय कोई उतना ही दे सकता है जितना उसके पास है. यह पूछे जाने पर कि क्या शहबाज़ शरीफ़ से शादी के बाद कोई बदलाव आया, तो उनका जवाब था कि ज़्यादा नहीं."

दिल तो करता होगा कि फ़र्स्ट लेडी के रूप में चैरिटी का काम करें? तो उनका जवाब था, इसकी ज़रुरत नहीं है. "ऐसे कितने लोग हैं जो सरकारी हैसियत से काम करते हैं, चैरिटी का काम मैं दुनिया के नागरिक की हैसियत से कर रही हूँ."

जब एधी साहब जीवित थे तो 69 वर्षीय तहमीना दुर्रानी तब भी उनके काम को आगे बढ़ाने की कोशिश करती रही और उनकी मृत्यु के बाद, उन्होंने साल 2017 में तहमीना दुर्रानी फाउंडेशन की स्थापना की.

इन दिनों वह बिल्क़िस एधी के साथ राजधानी से दूर कराची में रह रही थी. बिलकिस एधी का शुक्रवार को निधन हो गया. वह पीएम हाउस आती हैं या लाहौर में अपने दस मरले के घर में. उन्हें फ़र्स्ट लेडी का प्रोटोकॉल मिलेगा या नहीं, ये तो आने वाले कुछ दिनों में ही पता चल पाएगा. (bbc.com)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news