अंतरराष्ट्रीय
पाकिस्तान में टीवी जगत की मशहूर हस्ती और कराची से पीटीआई के नेशनल असेंबली के सदस्य डॉक्टर आमिर लियाक़त हुसैन का कराची में निधन हो गया है.
पाकिस्तानी मीडिया के मुताबिक़ तबीयत ख़राब होने पर उन्हें अस्पताल ले जाया गया था, लेकिन डॉक्टरों के मुताबिक अस्पताल पहुँचने से पहले ही उनकी मौत हो चुकी थी.
सूचना मिलते ही पुलिस अधिकारी उनके घर पहुंच गए. अधिकारियों का कहना है, कि उनकी मौत की सही वजह तो अभी नहीं बताई जा सकती है, इसके लिए पोस्टमार्टम कराया जाएगा.
याद रहे कि पिछले कुछ दिनों में वह अपनी तीसरी शादी को लेकर विवादों में घिरे हुए थे, जिसके बाद उन्होंने देश छोड़ने का भी ऐलान किया था.
उनके निधन के कारण नेशनल असेंबली का आज होने वाला सत्र कल शाम 5 बजे तक के लिए स्थगित कर दिया गया है.
आमिर लियाक़त का राजनीतिक सफ़र
नई सदी की शुरुआत में धार्मिक टीवी कार्यक्रम 'आलिम ऑनलाइन' से मशहूर होने वाले डॉक्टर आमिर लियाक़त हुसैन ने साल 2018 में पीटीआई के टिकट पर चुनाव लड़कर नेशनल असेंबली की सीट जीती थी.
आमिर लियाक़त हुसैन ने साल 2002 के आम चुनावों में भी एमक्यूएम के टिकट पर नेशनल असेंबली की सीट जीती थी और परवेज़ मुशर्रफ़ के शासनकाल में उन्हें धार्मिक मामलों का मंत्री बनाया गया था.
जुलाई 2007 में, आमिर लियाक़त हुसैन ने नेशनल असेंबली की सदस्य्ता से इस्तीफ़ा दे दिया था. उनका यह इस्तीफ़ा उस समय सामने आया, जब उन्होंने एक टीवी कार्यक्रम में भारतीय लेखक सलमान रुश्दी के बारे में कहा था कि उनकी हत्या कर देनी चाहिए. अगले साल, यानी साल 2008 में, एमक्यूएम ने आमिर लियाक़त को पार्टी से निकलने की घोषणा कर दी थी.
आमिर लियाक़त हुसैन एक लंबे समय तक राजनीति से दूर रहे और साल 2016 में एमक्यूएम प्रमुख अल्ताफ़ हुसैन के विवादित भाषण से कुछ दिन पहले वह फिर से सक्रिय हो गए.
22 अगस्त 2016 को जब रेंजर्स ने डॉक्टर फ़ारूक़ सत्तार और ख़्वाजा इज़हारुल हसन को गिरफ़्तार किया तो आमिर लियाक़त को भी उसी दिन गिरफ़्तार किया गया था और रिहा होने के बाद डॉक्टर फ़ारूक़ सत्तार की पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में वो भी मौजूद थे, लेकिन बाद में फिर से राजनीति से दूर हो गए.
आमिर लियाक़त हुसैन के पीटीआई में शामिल होने की ख़बर साल 2017 में सामने आई थी. उनके अपने ट्वीट्स के बावजूद, घोषणा नहीं की गई थी, लेकिन आख़िरकार वह पार्टी में शामिल हो गए थे. पार्टी में शामिल होने के समय भी कुछ पीटीआई समर्थकों ने आमिर लियाक़त की आलोचना की थी.
साल 2018 में, आमिर लियाक़त हुसैन ने इमरान ख़ान के साथ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में पार्टी में शामिल होने की घोषणा की थी, तब उन्होंने कहा था, कि "मेरी आख़िरी मंज़िल पीटीआई थी." वो साल 2018 के चुनाव में एनए 225 असेंबली सीट से असेंबली के सदस्य चुने गए थे.
आमिर लियाक़त हुसैन पाकिस्तान के लगभग हर प्रमुख समाचार चैनल से जुड़े रहे हैं और उनके कार्यक्रम ज़्यादातर विवादों से भरे रहे हैं, जिससे उनके राजनीतिक करियर पर भी असर पड़ा.
जब पाकिस्तानी मीडिया समूह जंग पब्लिकेशंस ने अपना न्यूज़ चैनल जियो लॉन्च किया तो आमिर लियाक़त उसके न्यूज़ कास्टर के रूप में सामने आये थे, जिसके बाद उन्होंने आलिम ऑनलाइन नाम से एक धार्मिक कार्यक्रम शुरू किया था.
एक कार्यक्रम में उन्होंने अहमदी समुदाय को गै़र-मुसलमान क़रार देते हुए उनकी हत्या को सही ठहराया था. उसी सप्ताह, सिंध में अहमदी समुदाय के दो लोग मारे गए थे. उनके इस बयान की मानवाधिकार संगठनों ने कड़ी आलोचना की थी.
जिहाद और आत्मघाती हमलों के बारे में उनके विवादित बयानों को लेकर कुछ धार्मिक वर्ग भी उनसे नाराज़ थे. साल 2005 में जामिया बनूरिया के एक शिक्षक की मृत्यु पर जब वो शोक व्यक्त करने के लिए पहुंचे थे, तो छात्रों ने उन्हें बंधक बना लिया था.
जियो के अलावा, आमिर लियाक़त एआरवाई, एक्सप्रेस, बोल टीवी और 24 न्यूज़ से भी जुड़े रहे. रमज़ान के विशेष प्रसारणों के दौरान उन्हें एक हॉट प्रॉपर्टी समझा जाता था. जियो पर रमज़ान ट्रांसमिशन के एक कार्यक्रम में उन्होंने छीपा फ़ाउंडेशन के प्रमुख रमज़ान छीपा से एक अनाथ बच्चे को ले कर एक जोड़े को दिया था, जिस वजह से उन्हें आलोचना का सामना करना पड़ा था.
डॉक्टर आमिर लियाक़त हुसैन
रमज़ान ट्रांसमिशन के कार्यक्रम 'इनाम घर' में भी उनके कुछ वाक्य और हावभावों को नापसंद किया गया था, साल 2016 में पाकिस्तान इलेक्ट्रॉनिक मीडिया प्राधिकरण (पीईएमआरए) ने इस कार्यक्रम पर तीन दिन तक रोक लगा दी थी.
उन्होंने बोल चैनल पर अपने कार्यक्रम 'ऐसा नहीं चलेगा' में मानवाधिकार संगठनों, पत्रकारों और ब्लॉगर्स पर व्यक्तिगत हमले भी किए. पीईएमआरए ने नागरिकों की शिकायतों पर इस कार्यक्रम को बंद कर दिया और उन्हें जनता से माफ़ी मांगने का निर्देश दिया. (bbc.com)