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राजस्थान: गहलोत सीएम की कुर्सी छोड़ना नहीं चाहते, और पायलट सीएम से कम किसी चीज़ पर तैयार नहीं
28-Nov-2022 12:52 PM
राजस्थान: गहलोत सीएम की कुर्सी छोड़ना नहीं चाहते, और पायलट सीएम से कम किसी चीज़ पर तैयार नहीं

-इक़बाल अहमद

राजस्थान, 28 नवंबर । राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच विवाद दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है. बात यहां तक पहुंच गई है कि नाकारा, निकम्मा के बाद ग़द्दार जैसे शब्द इस्तेमाल किए जा रहे हैं.

जुलाई 2020 में सचिन पायलट ने जब अपने क़रीब 20 विधायकों के साथ बग़ावत की थी तो उस समय अशोक गहलोत ने उन्हें नाकारा और निकम्मा कहा था.

हाल ही में एक निजी चैनल को दिए इंटरव्यू में अशोक गहलोत ने सचिन पायलट को ग़द्दार तक कह डाला.

सचिन पायलट ने गहलोत के बयान पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए इतना ही कहा कि अशोक गहलोत जैसे वरिष्ठ नेता को इस तरह की भाषा का इस्तेमाल करना शोभा नहीं देता.

इस बीच कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल 29 नवंबर को जयपुर का दौरा करने वाले हैं.

भारत जोड़ो यात्रा और राजस्थान की राजनीति

आधिकारिक तौर पर उनकी यात्रा का मक़सद कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा की राजस्थान में तैयारियों का जायज़ा लेना है. राहुल गांधी दिसंबर के पहले हफ़्ते में राजस्थान में दाख़िल होंगे.

मीडिया में इस तरह की अटकलें लगाया जाना बहुत ही स्वाभाविक है कि क्या वेणुगोपाल कांग्रेस हाईकमान का कोई संदेश या फ़ॉर्मूला लेकर जयपुर आ रहे हैं?

वेणुगोपाल कुछ लेकर जयपुर जा रहे हैं या नहीं यह बताना तो मुश्किल है लेकिन एक सवाल जो हर किसी की ज़ुबान पर है वो यही है कि आख़िर कांग्रेस इस समस्या का समाधान क्यों नहीं कर पा रही है.

कांग्रेस की राजनीति पर गहरी नज़र रखने वाले वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक रशीद क़िदवई इसे कांग्रेस हाईकमान की नाकामी बताते हैं.

जयपुर स्थित वरिष्ठ पत्रकार अवधेश आकोदिया का कहना है कि कांग्रेस हाईकमान इसका हल इसलिए नहीं कर पा रहा है क्योंकि अशोक गहलोत मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ना नहीं चाहते हैं और सचिन पायलट मुख्यमंत्री से कम किसी चीज़ पर तैयार नहीं हैं.

रशीद क़िदवई के अनुसार कांग्रेस के नव-निर्वाचित राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे इस समस्या के समाधान के लिए गांधी परिवार की तरफ़ देखते हैं.

कुछ हद तक वो सही भी है क्योंकि पिछली बार जब संकट आया था तो गांधी परिवार और ख़ासकर प्रियंका गांधी ने अहमद पटेल के साथ मिलकर मसले का हल निकाला था.

सचिन पायलट वापस आ गए, गहलोत ना केवल मुख्यमंत्री बने रहे बल्कि सचिन पायलट को ना ही दोबारा उप-मुख्यमंत्री बनाया गया और ना ही उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया.

कांग्रेस का असमंजस

जुलाई 2020 की बग़ावत के बाद अशोक गहलोत ने उन्हें उप-मुख्यमंत्री के पद से बर्ख़ास्त कर दिया था और कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने उन्हें प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटा दिया था.

उनकी वापसी के लिए प्रियंका गांधी और कांग्रेस हाईकमान ने उस समय उनको क्या आश्वासन दिया था इसकी कोई आधिकारिक जानकारी नहीं है.

रशीद क़िदवई के अनुसार मल्लिकार्जुन खड़गे के लिए यही दिक़्क़त है कि 2020 के संकट के समय वो इस पूरे मामले से बिल्कुल दूर थे.

लेकिन रशीद क़िदवई इसके लिए कांग्रेस की कार्यशैली को भी ज़िम्मेदार ठहराते हैं.

वो कहते हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष अगर ग़ैर-गांधी रहा भी है तो वो महत्वपूर्ण फ़ैसलों के लिए परिवार से किसी इशारे का इंतज़ार करता है.

मौजूदा संकट में गांधी परिवार की तरफ़ से कोई इशारा मिल नहीं रहा है.

इसकी वजह बताते हुए रशीद क़िदवई कहते हैं, "सोनिया गांधी ने अब सक्रिय राजनीति से ख़ुद को लगभग अलग कर दिया है. राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा कर रहे हैं और उनको लगता है कि वो विचारधारा की एक बड़ी लड़ाई लड़ रहे हैं. राज्य में मुख्यमंत्री कौन होगा अब इन सब चीज़ों में उनका कोई इंट्रेस्ट नहीं है."

रशीद क़िदवई के अनुसार प्रियंका गांधी चाहती हैं कि राजस्थान में नेतृत्व संकट ख़त्म किया जाए लेकिन उनकी दिक़्क़त यह है कि वो अकेले कुछ कर नहीं सकती हैं.

कांग्रेस के पास समाधान का क्या विकल्प है?

रशीद क़िदवई के अनुसार कांग्रेस हाईकमान चाहे तो मसले का हल निकाला जा सकता है क्योंकि हाईकमान के पास कई विकल्प हैं. उनके विकल्पों का ज़िक्र करते हुए रशीद कहते हैं-

-पहला रास्ता तो यह है कि 25 सितंबर, 2022 को विधायकों की राय लेने का काम जो नहीं हो पाया था, उसे पूरा किया जाए और उस आधार पर कोई निर्णय लिया जाए.

- दूसरा रास्ता यह है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष खड़गे कह सकते हैं कि फ़िलहाल कोई बदलाव नहीं होगा और गहलोत के नेतृत्व में ही अगला चुनाव लड़ा जाएगा

-तीसरा रास्ता यह है कि पार्टी यह घोषणा कर दे कि 2023 के विधानसभा चुनाव में सचिन पायलट मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे

रशीद क़िदवई के अनुसार राजस्थान संकट के लिए विकल्पों की कमी नहीं है क्योंकि कांग्रेस की राजनीतिक सोच अभी भी पुराने ढर्रे पर चल रही है.

कांग्रेस महासचिव और मीडिया प्रमुख जयराम रमेश ने शुक्रवार को मीडिया से बात करते हुए कहा था कि विवाद का समाधान निकाल लिया जाएगा और कांग्रेस पार्टी इससे मज़बूत होगी. जयराम रमेश ने कहा था कि पार्टी को गहलोत और पायलट दोनों की ज़रूरत है.

इस पर रशीद क़िदवई कहते हैं कि कांग्रेस पार्टी को इस समय सर्जरी की ज़रूरत है और जयराम रमेश होम्योपैथी की दवा दे रहे हैं.

तो सवाल यह है कि कांग्रेस हाईकमान सर्जरी क्यों नहीं कर पा रही है और अशोक गहलोत के तेवर अचानक इतने सख़्त क्यों हो गए हैं.

इसके जवाब में रशीद क़िदवई कहते हैं कि अशोक गहलोत को लगता है कि कांग्रेस हाईकमान इस समय कमज़ोर है.

हाईकमान को चुनौती दे रहे हैं गहलोत?

गहलोत ने हाल में एक निजी चैनल को दिए इंटरव्यू में सचिन पायलट के बारे में जो कुछ कहा, क़िदवई के अनुसार दरअसल वो कांग्रेस हाईकमान को आईना दिखाना चाह रहे हैं और उसके विवेक को चुनौती दे रहे हैं.

कांग्रेस पार्टी के संविधान के अनुसार अगर किसी विधायक पर अनुशासनहीनता और पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगता है तो उस पर कार्रवाई करने का अधिकार सिर्फ़ और सिर्फ़ कांग्रेस हाईकमान ही ले सकता है, मुख्यमंत्री के पास कार्रवाई करने का कोई अधिकार नहीं होता है.

रशीद क़िदवई के अनुसार अशोक गहलोत कांग्रेस हाईकमान से पूछ रहे हैं कि सचिन पायलट ने खुलेआम बग़ावत की, बीजेपी के साथ मिलकर उनकी सरकार गिराने की कोशिश की, तो फिर ऐसे व्यक्ति को मुख्यमंत्री कैसे बनाया जा सकता है.

ऐसे में सचिन पायलट क्या करेंगे, इसके जवाब में रशीद क़िदवई कहते हैं कि सचिन पायलट अब अपने आप को अशोक गहलोत के प्रतिद्वंद्वी के रूप में पेश नहीं कर रहे हैं, सचिन ने सबकुछ कांग्रेस हाईकमान पर छोड़ दिया है.

रशीद क़िदवई का मानना है कि पायलट कभी भी ज्योतिरादित्य सिंधिया के रास्ते पर नहीं जाएंगे. सचिन पायलट को पता है कि जब भी कांग्रेस हाईकमान राजस्थान में नेतृत्व परिवर्तन का फ़ैसला करेगा तो सारे विधायक पार्टी के फ़ैसले के साथ होंगे. पंजाब में भी यही हुआ था. जब पार्टी ने मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाने का फ़ैसला किया तो एक भी विधायक कैप्टन साहब के साथ नहीं गया.

अशोक आकोदिया के अनुसार राजस्थान संकट को सुलझाने का एक रास्ता निकला था जब यह तय हुआ कि अशोक गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष बनकर दिल्ली चले जाएं और सचिन पायलट मुख्यमंत्री बन जाएं.

लेकिन अशोक गहलोत किसी भी हालत में सचिन पायलट को मुख्यमंत्री के रूप में देखना नहीं चाहते हैं और उन्होंने कांग्रेस राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के चुनाव से भी ख़ुद को अलग कर लिया.

लेकिन क्या सचिन पायलट फिर कोई बड़ा क़दम उठाने की स्थिति में हैं, इसके जवाब में अवधेश आकोदिया कहते हैं कि अधितर विधायक अभी भी अशोक गहलोत के साथ हैं और सचिन पायलट फ़िलहाल अपने दम पर विधायकों को अपने पाले में लाने में सक्षम नहीं हैं.

आकोदिया के अनुसार राजस्थान में चुनाव (नवंबर-दिसंबर 2023) में अब ज़्यादा समय नहीं है इसलिए पायलट को बीजेपी से भी किसी तरह की मदद मिलने की कोई उम्मीद नहीं है.

अवधेश आकोदिया के अनुसार 2020 में कांग्रेस हाईकमान गहलोत के साथ दिख रही थी लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस हाईकमान चाहती है कि पायलट मुख्यमंत्री बन जाएं लेकिन अशोक गहलोत ने इसे अपनी प्रतिष्ठा का मुद्दा बना लिया है.

तो ऐसे में गहलोत क्या करेंगे?

रशीद क़िदवई कहते हैं कि अगर कांग्रेस हाईकमान ने सचिन पायलट के पक्ष में निर्णय ले लिया तो गहलोत की पूरी कोशिश होगी कि सरकार ही गिर जाए.

लेकिन अवधेश आकोदिया कहते हैं कि ऐसी स्थिति में अशोक गहलोत के पास इतने विधायक हर हालत में रहेंगे कि वो सरकार को गिरा दें, लेकिन वो ऐसा नहीं करेंगे.

इसका कारण बताते हुए अवधेश आकोदिया कहते हैं, "अशोक गहलोत, कैप्टन अमरिंदर सिंह की तरह एग्ज़िट नहीं करना चाहेंगे. वर्षों से अशोक गहलोत ने अपनी जो छवि बनाई है वो कभी नहीं चाहेंगे कि वो मिथक साबित हो जाए और उनकी राजनीतिक प्रतिष्ठा धूमिल हो जाए."

तो फिर वेणुगोपाल के दौरे से कुछ हासिल हो सकेगा या नहीं, इसके जवाब में अवधेश आकोदिया कहते हैं, "केसी वेणुगोपाल के दौरे से कोई समाधान तो नहीं निकलेगा लेकिन इसकी संभावना ज़रूर है कि पार्टी गहलोत और पायलट दोनों नेताओं को इस बात के लिए मना ले कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के दौरान दोनों नेता एक दूसरे के ख़िलाफ़ बयानबाज़ी ना करें और कोई नया विवाद ना खड़ा हो." (bbc.com/hindi)

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