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महिला खिलाड़ियों का प्रदर्शन जरूरी या सेक्सी लुक?
21-Jan-2023 1:24 PM
महिला खिलाड़ियों का प्रदर्शन जरूरी या सेक्सी लुक?

घाना में महिला फुटबॉलर इस दिशा में काम कर रही हैं कि ज्यादा से ज्यादा प्रशंसकों को कैसे आकर्षित किया जाए. ऐसे में सवाल यह है कि बेहतर खेलना ज्यादा जरूरी है या सेक्सी लुक?

   डॉयचे वैले पर एस्थर ओवुसुआ अपियाह-फाय की रिपोर्ट-

घाना की ज्यादातर महिला फुटबॉल खिलाड़ी कट्टर रूढ़िवादी संस्कृति में पली-बढ़ी हैं, जहां लिंग के आधार पर उनकी भूमिकाओं को गंभीरता से लिया जाता है. अब ये महिला खिलाड़ी इस बात पर ज्यादा ध्यान दे रही हैं कि उन्हें क्या करना चाहिए और कैसा दिखना चाहिए.

ये लड़कियां अपना फिगर मेंटेन करने, बेहतर एथलीट बनने और सेक्सी दिखने का प्रयास कर रही हैं, ताकि अपने प्रशंसक बढ़ा सकें. ऐसे में सवाल यह है कि क्या सेक्सी दिखने से महिलाओं के खेल के प्रशंसकों की संख्या में इजाफा होगा?

रूढ़िवादी धारणाएं
परंपरागत तौर पर फुटबॉल मनोरंजन का साधन रहा है. इस खेल के प्रति प्रशंसकों को आकर्षित करने के लिए दुनिया भर में कई कदम उठाए गए हैं. इन सब के बावजूद घाना में महिला फुटबॉल के क्षेत्र में धीमी गति से प्रगति हुई है. इसके प्रति दिलचस्पी बढ़ाने के लिए इसके प्रसारण को लेकर समझौता किया गया और खेल के प्रायोजक बनाए गए. इनके बावजूद अधिकांश फुटबॉल क्लबों के प्रशंसकों की संख्या में कमी आई है.

घाना में महिला फुटबॉल के प्रति ज्यादा दिलचस्पी न होने के लिए कई चीजों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. इनमें सबसे प्रमुख है इन फुटबॉल खिलाड़ियों को मर्दाना लक्षणों वाली महिलाओं के तौर पर देखना.

डीडब्ल्यू से बात करते हुए घाना की राष्ट्रीय महिला टीम की गोलकीपर पेट्रीसिया मांटे ने इस बात की पुष्टि की है कि लोग यह मानते हैं कि वह पुरुष है क्योंकि वह फुटबॉल खेलती है. उन्होंने कहा, "हमारी सामाजिक संरचना ऐसी है कि अगर आप युवा महिला हैं और फुटबॉल खेलती हैं, तो वे आपको पुरुष के तौर पर देखते हैं."

भारत में गोकुलम एफसी और घाना की राष्ट्रीय टीम की स्ट्राइकर विवियन कोनाडु ने भी डीडब्ल्यू को ऐसी ही समान कहानी बताई कि किस तरह घाना की अधिकांश महिला फुटबॉल खिलाड़ी आए दिन रूढ़िवादी सोच का सामना करती हैं. उन्होंने कहा, "लोग मुझे सड़क पर बेतरतीब ढंग से रोकते थे और पूछते थे कि मैं पुरुष हूं या महिला. इससे मुझे काफी परेशानी होती थी."

खेल में सेक्स अपील मायने रखती है?
टकर सेंटर फॉर रिसर्च ऑन गर्ल्स एंड विमन इन स्पोर्ट्स की निदेशक डॉ. मैरी जो केन के अध्ययन के मुताबिक, सेक्सुअल अपील वाले शरीर ने महिलाओं को बड़ी हस्ती बना दिया, लेकिन यह जरूरी नहीं है कि उनके प्रशंसकों की उस खेल में गहरी रुचि हो जिसे वह खेलती हैं. टकर इंस्टीट्यूट की एक सदस्य निकोल लावोई कहती हैं, "सेक्स, सेक्स को बेचता है, खेल को नहीं."

घाना का एक बड़ा दर्शक वर्ग अब भी यही मानता है कि पुरुष ही बेहतर एथलीट हो सकते हैं, लेकिन महिला फुटबॉल खिलाड़ी इस नजरिये को बदलने की कोशिश कर रही हैं. पेट्रीसिया मेंटे ने कहा, "हर किसी का शरीर अलग होता है. मेरा शरीर पुरुष की तरह विकसित हुआ है, लेकिन मैं पुरुष नहीं हूं. हां, मैं एक अच्छी एथलीट हूं."

कई खिलाड़ियों को यह चिंता सताती है कि मैदान के बाहर लोग उन्हें पुरुष के तौर पर देख सकते हैं और उन्हें कई ब्रांडों के विज्ञापन नहीं मिल सकते क्योंकि वे पारंपरिक सौंदर्य मानकों पर खरा नहीं उतरती हैं. घाना की सिर्फ कुछ ही महिला फुटबॉल खिलाड़ियों को बड़े ब्रैंड के विज्ञापन मिले हैं और उनमें से अधिकांश कंपनियां अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापार करती हैं.

विवियन कोनाडू ने बताया, "जब मैं छोटी थी, तो महिलाओं के कपड़े पहनती थी लेकिन जब मैंने फुटबॉल खेलना शुरू किया, तो मैंने ये कपड़े पहनने बंद कर दिए. इसका मुख्य कारण यह था कि महिलाओं के कपड़े पहनने पर मैं अजीब दिखती थी. यहां तक कि जब मैं उन्हें पहनती थी, तो मेरी बहनें भी मुझ पर हंसती थीं. इसलिए, मैंने महिलाओं वाले कपड़े पहनना बंद कर दिया."

मौजूदा समय के हिसाब से मार्केटिंग
पारंपरिक और रूढ़िवादी बाधाओं से निजात पाने के लिए सिर्फ महिला खिलाड़ी ही संघर्ष नहीं कर रही हैं. घाना महिला प्रीमियर लीग क्लब 'रिज सिटी एफसी' की सीईओ क्लियोपेट्रो एन नकेतिया ने कहा, "क्लब के सीईओ के तौर पर यह कहना मेरे लिए काफी दुर्भाग्यपूर्ण है कि महिला फुटबॉल में वाकई सेक्स बिकता है."

उन्होंने बताया कि महिलाएं लंबे समय से फुटबॉल खेल रही हैं लेकिन प्रशंसक सिर्फ उन्हीं की ओर आकर्षित हो रहे हैं जो यह दिखाती हैं कि वे कितनी सेक्सी हैं, "दुर्भाग्य की बात यह है कि खेल से ज्यादा सेक्सी दिखना काम करता है."

वह कहती हैं कि कि सोशल मीडिया पर वे पोस्ट ज्यादा लोकप्रिय हुए हैं जिनका मैदान से कोई लेना-देना नहीं है, "इन पोस्ट में लड़कियां या तो पोज दे रही हैं, मजाकिया मूड में हैं या सेक्सी दिख रही हैं. लोग भी इस तरह की चीजों को देखना ज्यादा पसंद करते हैं."

नकेतिया का मानना है कि पुरुषों की वजह से ही महिला फुटबॉल की लोकप्रियता बढ़ सकती है. इन पुरुष प्रशंसकों के आकर्षित होने से ही महिला फुटबॉल के समर्थक बढ़ेंगे, "अगर हम सिर्फ महिला प्रशंसकों के भरोसे रहें, तो यह खेल लोकप्रियता हासिल नहीं कर पाएगी."

उनके अनुसार महिला फुटबॉल में सेक्स अपील की जरूरत को खत्म करने का एक ही तरीका है कि महिलाओं की दिलचस्पी बढ़ाई जाए, "इसका मुख्य कारण यह है कि अगर महिलाएं खेल देखने बाहर जाती हैं, तो वे यह नहीं देखती हैं कि खिलाड़ी कितनी सेक्सी हैं.”

खेल को और आकर्षक बनाने की जरूरत
घाना के ज्यादातर पुरुष प्रशंसकों ने डीडब्ल्यू से बातचीत के दौरान खेल को ज्यादा आकर्षक बनाने की जरूरत पर जोर दिया. नेल्सन नाम के एक प्रशंसक ने अपनी राय जाहिर करते हुए कहा कि अगर खेल को अच्छी तरह से बढ़ावा दिया जाए और महिलाओं के खेल में कड़ी प्रतिस्पर्धा या रोमांचक मुकाबला देखने को मिले, तो इसे देखने में कोई समस्या नहीं होगी.

नेल्सन ने कहा, "अगर वे पुरुषों की तरह खेलती हैं, तो मेरे हिसाब से गेंद पर उनकी पकड़ मजबूत होगी. मुझे लगता है कि उनके लुक की वजह से खेल के प्रति पुरुषों की दिलचस्पी बढ़ाने में मदद मिल सकती है, लेकिन खेल के दौरान रोमांचक मुकाबला होने पर हमारी दिलचस्पी ज्यादा बढ़ेगी."

फीफा के पूर्व अध्यक्ष सेप ब्लैटर ने 2004 में कई बातों के अलावा यह भी कहा था कि महिलाओं को शॉर्ट्स पहनकर ज्यादा से ज्यादा प्रशंसकों को आकर्षित करना चाहिए. उन्होंने कहा था कि महिला फुटबॉल को लोकप्रिय बनाने के लिए खिलाड़ियों को टाइट शर्ट्स और शरीर से चिपकी हुई शॉर्ट्स पहनना चाहिए. इस बात को लेकर उनकी तीखी आलोचना की गई थी.

हाल के समय में, महिला फुटबॉल के क्षेत्र में बेहतर प्रगति देखने को मिली है. हाल ही में आयोजित महिला अफ्रीका कप ऑफ नेशंस और महिला यूरो ने अपने ड्रेस कोड में बदलाव किए बिना रिकॉर्ड तोड़ उपस्थिति के आंकड़े पेश किए. घाना को उम्मीद है कि वहां भी महिला फुटबॉल के प्रति लोगों की दिलचस्पी बढ़ेगी लेकिन पहले उसे रूढ़िवादी सोच से लड़ाई जीतनी होगी. (dw.com)
 

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