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विंबलडन के 146 साल पुराने सख़्त ड्रेस कोड में बदलाव, क्या कह रही हैं महिला खिलाड़ी
15-Jul-2023 10:13 PM
विंबलडन के 146 साल पुराने सख़्त ड्रेस कोड में बदलाव, क्या कह रही हैं महिला खिलाड़ी

विंबलडन ने 146 साल लंबे अपने इतिहास में पहली बार, महिला टेनिस खिलाड़ियों के ड्रेस कोड में बदलाव किया है.

हालांकि, ये कोई क्रांतिकारी बदलाव नहीं बल्कि सांकेतिक ही हैं. महिला खिलाड़ियों को अब गहरे रंगों के अंडरशॉर्ट या अंडरपैंट पहनने की इजाज़त है.

ये कहा जा रहा है कि ये क़दम उन खिलाड़ियों की चिंताओं को दूर करने के लिए उठाया गया है, जिनके पीरियड टूर्नामेंट के दौरान चल रहे होंगे.

ऑल इंग्लैंड क्लब की सीईओ सैली बोल्टन ने एक बयान में कहा है कि उन्हें उम्मीद है कि नए नियम से ‘खिलाड़ियों को चिंता की एक वजह से छुटकारा मिलेगा और वो पूरी तरह अपने खेल पर ध्यान लगा सकेंगीं.’

कई खिलाड़ियों ने इस फ़ैसले का स्वागत किया है.

अमेरिका की टेनिस स्टार कोको गॉफ ने पिछले हफ़्ते स्काई न्यूज़ से कहा, “मुझे लगता है कि इससे निश्चित रूप से मेरा और लॉकर रूम में मौजूद दूसरी लड़कियों का तनाव काफ़ी हद तक कम हो जाएगा.”

महिला खिलाड़ियों को मामूली छूट
रोजर फेडरर और नोवाक जोकोविच की जीवनी लिखने वाले टेनिस इतिहासकार क्रिस बॉवर्स की नज़र में विंबलडन ने अपने नियमों में ये बदलाव सामाजिक दबाव में किया है.

बीबीसी कल्चर से हुई बातचीत में उन्होंने कहा, “विंबलडन काफ़ी असहज स्थिति में था. मुझे लगता है कि कई मायनों में उनके पास ये बदलाव करने के सिवा कोई और विकल्प नहीं था.”

महिला खिलाड़ियों को अपनी सहूलियत और ज़रूरत के हिसाब से कपड़े पहनने देने के बजाय टेनिस कोर्ट में उन पर ख़ास तरह के कपड़े पहनने की शर्त लादना न सिर्फ़ अजीब और बीते ज़माने का ख़याल लगता है, बल्कि ये पुरातनपंथी और लैंगिक भेदभाव वाला विचार भी है.

वैसे विंबलडन ने महिला खिलाड़ियों को भले थोड़ी सी छूट दे दी हो, लेकिन बाक़ी का ड्रेस कोड पहले जैसा ही है.

इस मुक़ाबले में हिस्सा लेने वाली खिलाड़ियों को बता दिया गया कि ‘उन्हें टेनिस खेलने वाला ऐसा लिबास पहनना होगा, जो लगभग सफ़ेद हो.’ इसमें ये शर्त भी जुड़ी हुई है कि, ‘सफ़ेद रंग में ऑफ़ व्हाइट या क्रीम कलर शामिल नहीं है.’

टेनिस की ड्रेस में वैसे दूसरे रंग की पट्टियों की इजाज़त है, जैसे- नेकलाइन, कफ, टोपी, हेडबैंड, दुपट्टा, कलाई नारा, मोज़े, शॉर्ट, स्कर्ट या अंडरगारमेंट आदि के साथ.

हालांकि कोई खिलाड़ी रंग-बिरंगे कपड़े पहनने की सोचें, उससे पहले उन्हें शर्त बता दी जाती है कि सफ़ेद रंग के कपड़ों पर दूसरे रंग की पट्टियों की चौड़ाई एक सेंटीमीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए.

इससे पहले कि खिलाड़ी ड्रेस कोड से अलग हटकर कुछ करें, उन्हें याद दिला दिया जाता है कि ‘पैटर्न के दायरे में दिखने वाली रंगीन पट्टी को इस तरह मापा जाएगा कि ये ठोस रंग है और इसे एक सेंटीमीटर वाले नियम के दायरे में रहना चाहिए.’

इसके साथ साथ ‘खिलाड़ी की ड्रेस पर कपड़े के मैटीरियल या पैटर्न से अलग रंग के लोगो मंज़ूर नहीं किए जाएंगे.’

वक़्त के साथ आए बदलाव
अ सोशल हिस्ट्री ऑफ़ टेनिस इन ब्रिटेन के लेखक रॉबर्ट लेक बीबीसी कल्चर को बताते हैं, “पूरी तरह सफ़ेद कपड़ों वाला ये ड्रेस कोड विंबलडन में हमेशा से ऐसा ही रहा है.”

वो कहते हैं, “सफ़ेद रंग में पसीना सबसे अच्छे से छुप जाता है. ये साफ़ सुथरा और चटख दिखता है और देखने में भी अच्छा माना जाता है. चूंकि टेनिस का क्रिकेट से भी रिश्ता रहा है, तो ये ऐतिहासिक रूप से उच्च-मध्य वर्ग के आराम की नुमाइंदगी करता है.”

हालांकि वो कहते हैं कि विंबलडन की टेनिस ड्रेस में समय के साथ कुछ बदलाव आया है.

विक्टोरिया युग के उत्तरार्ध में महिलाओं से उम्मीद की जाती थी कि वे ‘उचित पहनावे की सांस्कृतिक अपेक्षाओं के मुताबिक़ कपड़े पहनें. सीधी ज़बान में कहें तो उनसे लाज-लज्जा का ख़याल रखने की उम्मीद की जाती थी.’

रॉबर्ट लेक बताते हैं कि दोनों विश्व युद्धों के बीच के दौर में, टेनिस कोर्ट के पहनावे में फ़ैशन पर बहुत ज़ोर दिया जाता था.

1950 के दशक में टेनिस कोर्ट के लिबास में, ‘उपयोगिता, आराम और सहजता’ को तरज़ीह दी जाने लगी और खुलेपन के दौर में, महिलाओं के दिलकश होने के पारंपरिक मानकों या फिर सेक्सी दिखने की चाहत खिलाड़ियों के पहनावे तय करने लगी.

ऐसा नहीं है कि सिर्फ़ विंबलडन में ड्रेस कोड लागू किया जाता हो. किसी बड़ी खिलाड़ी के नियम तोड़ने की एक मिसाल 2018 में दिखी थी. तब अमेरिका की टेनिस सुपरस्टार सेरेना विलियम्स ने वकांडा से प्रेरित कैटसूट पहनकर फ्रेंच ओपन जीता था.

मां बनने के बाद ये उनका पहला ग्रैंड स्लैम मुक़ाबला था. हालांकि, भविष्य के टूर्नामेंट में सेरेना के ऐसी ड्रेस पहनने पर रोक लगा दी गई थी.

उस वक़्त एक समीक्षक ने इस बारे में लिखा था: “असल में ये मामला औरतों के शरीर पर नज़र रखने का है. ख़ास तौर से अश्वेत औरतों के शरीर को अमानवीय, यौन और दूसरी नज़र से देखने का उदाहरण है.”

दूसरे टूर्नामेंट में ड्रेस कोड भले लागू होता हो, लेकिन नियमों की सख़्ती के मामले में विंबलडन बिल्कुल अलग खड़ा दिखता है.

फैशन इतिहासकार और 'शी हैज़ गॉट लेग्स: ए हिस्ट्री ऑफ हेमलाइंस ऐंड फ़ैशन' की सह-लेखिका केरेन बेन-होरिन बीबीसी कल्चर से कहती हैं, “टेनिस कोर्ट हमेशा से ही ऐसा अखाड़ा रहा है, जहां महिलाओं ने समाज की लगाई बंदिशों और उनकी तय की हुई सरहदों को चुनौती दी है और उनका दायरा बढ़ाया है. चूंकि विंबलडन हमेशा से ही अमरीकी या फ्रेंच ओपन से ज़्यादा पारंपरिक और रूढ़िवादी टूर्नामेंट रहा है. इसलिए यहां किसी इंसान की मामूली सी भी निजी अभिव्यक्ति को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है.”

नियमों को तोड़ने वाले
क्रिस बॉवर्स कहते हैं, “जो बात पसंद नहीं की जाती, वो ये कि 80 के दशक से महिलाएँ ही नहीं, पुरुष खिलाड़ियों पर भी पाबंदियां बहुत ज़्यादा सख़्त होती गई.”

क्रिस कहते हैं, “ड्रेस कोड को ‘मुख्य रूप से सफ़ेद से बदलकर पूरी तरह सफ़ेद लिबास वाला किया गया... 90 के दशक में आयोजक और भी सख़्त हो गए और यह सिलसिला पिछले कुछ दशकों से बदस्तूर जारी है.”

“पहले स्टेफी ग्राफ और बोरिस बेकर जैसे खिलाड़ी, जिस तरह के कपड़े पहनकर सेंटर कोर्ट में उतरते थे, उसकी इजाज़त तो आज क़तई नहीं मिल सकती.”

तो, क्या वजह है कि विंबलडन वक़्त के साथ आगे बढ़ने के बजाय उल्टी दिशा में चल रहा है?

क्रिस बॉवर्स मानते हैं, “ये सारा मामला इस बात का है कि विंबलडन अपने ब्रांड को लेकर कुछ ज़्यादा ही सजग है... विंबलडनको इस बात पर ज़ोर देने की बिल्कुल ज़रूरत नहीं है कि आप रॉयल बॉक्स में जैकेट और टाई पहनकर ही बैठें. लेकिन, वो ऐसा करते हैं.”

क्रिस बॉवर्स सेंटर कोर्ट में घास की बारीक़ी से तैयार की गई परत की ओर भी इशारा करते हैं.

वो कहते हैं, “ये सफ़ेद पोशाक का सख़्त नियम विंबलडन ब्रांड का ही हिस्सा है, जिस पर हम आँख मूंदकर विश्वास करते हैं. जिस तरह हम इसे टेनिस का बड़ा ब्रांड मानते हैं, उसी तरह वहां की स्ट्रॉबेरी और क्रीम को भी उसी ब्रांड का हिस्सा समझते हैं.”

हालांकि, ऐसा नहीं कि इस रूढ़िवादी व्यवस्था को चुनौती नहीं दी गई.

बॉवर्स एक खिलाड़ी मे सटन का उदाहरण देते हुए कहते हैं, “उन्होंने 1905 में अपने बदन की थोड़ी सी नुमाइश क्या की कि लोग बेहोश होने लग गए थे.”

1919 में फ्रांस की एक खिलाड़ी सुज़ेन लेंगलेन ने अपने ‘अश्लील’ लिबास से प्रेस में हंगामा मचा दिया था. सुज़ेन बिना ब्रा और बिना पेटीकोट वाली ड्रेस पहनकर कोर्ट में उतरी थीं. उनकी ड्रेस खुले गले और छोटी आस्तीन वाली थी. उनकी स्कर्ट से आधी टांग दिख रही थी और रेशमी जुराबें, घुटने से बस ज़रा सी ऊपर थीं.

सुज़ेन ने उस साल का विंबलडन खिताब भी जीता था.

1934 में जब एईलीन बेनेट सेंटर कोर्ट पर शॉर्ट्स पहनकर उतरने वाली पहली खिलाड़ी बनीं, तो हंगामा मच गया था.

1949 में गेरट्रूड ‘गसी’ मोरैन, डिज़ाइनर टेड टिंगलिंग की बनाई ड्रेस पहनकर टेनिस कोर्ट में उतरी थीं. टिंगलिंग 1920 के दशक में विंबलडन में काम किया करते थे.

केरेन बेन-होरिन कहती हैं, “अमरीका में मोरैन शॉर्ट्स पहनकर खेला करती थीं और उन्हें चटख़ रंग पसंद थे.”

हाल में, केरेन की निगरानी में टिंगलिंग के बारे में एक ख़ास सिरीज़ प्रकाशित की गई थी.

क्या होगा अगला कदम?
वो कहती हैं, “टिंगलिंग को पता था कि विंबलडन में रंगीन कपड़े पहनने की इजाज़त नहीं थी. तो उन्होंने मोरैन के अंडरगारमेंट में एक लेस लगा दिया, जिससे एक बड़ा स्कैंडल बन गया. उसके बाद आयोजकों ने टिंगलिंग को बर्ख़ास्त कर दिया.”

केरेन कहती हैं, “टिंगलिंग अपने संस्मरण में लिखते हैं कि उनकी बर्ख़ास्तगी की वजह यह स्कैंडल नहीं बल्कि उनका ख़ुद का रंगीन मिज़ाज बर्ताव था, जिससे आयोजक नाराज़ हो गए थे.”

1985 में अमरीका की खिलाड़ी एन व्हाइट ने अपने बिल्कुल सफ़ेद कैटसूट से हंगामा बरपा दिया था. उनसे कहना पड़ा कि वो इसे दोबारा न पहनें.

2017 में वीनस विलियम्स को ग़ुलाबी स्ट्रैप वाली ब्रा के के कारण बारिश के कारण मैच रोके जाने के समय कपड़े बदलने को कहा गया था.

एक वक़्त में विंबलडन का सख़्त ड्रेस कोड तोड़ने वाली एन व्हाइट अब दूसरे रंग के शॉर्ट पहनने की इजाज़त दिए जाने के बारे में क्या सोचती हैं?

एन व्हाइट कहती हैं, “यह सारा मामला खिलाड़ी की ड्रेस और विंबलडन ब्रांड के बीच रिश्ते का है.”

वो कहती हैं, “विंबलडन के ये सारे नियम ही तो उसे पेशेवर खिलाड़ियों के लिए ख़ास और चुनौती भरा टूर्नामेंट बनाते हैं. मैं तो सदमे में हूं कि ऑल इंग्लैंड क्लब ने महिला खिलाड़ियों की ड्रेस में कुछ रंग भरने की इजाज़त दे दी है. मैं सोच रही हूं कि अब उनका अगला क़दम क्या होगा?” (bbc.com/hindi)

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