राष्ट्रीय

ब्रज के मंदिरों में फूलों की होली का खुमार
11-Oct-2020 6:31 PM
ब्रज के मंदिरों में फूलों की होली का खुमार

मथुरा 11 अक्टूबर अधिक मास के अवसर पर मथुरा समेत समूचे ब्रजमंडल में हिलोरें मार रही कृष्ण भक्ति की गंगा के बीच मन्दिरों में श्रद्धालु फूलों की होली तक का आनन्द ले रहे हैं।

मथुराधीश मन्दिर एवं मदनमोहन मन्दिर के मुखिया ब्रजेश जी ने रविवार को यूनीवार्ता को बताया कि बल्लभकुल सम्प्रदाय के मन्दिरों में अधिकमास में वर्ष भर के प्रमुख उत्सव जैसे जन्माष्टमी, दधिकाना, होली, दीपावली , झूलन उत्सव आदि मनोरथ के रूप में मनाए जाते हैं। इसकी परंपरा की शुरूवात महाप्रभु बल्लभाचार्य जी ने की थी। इसके अन्तर्गत दो प्रकार के उत्सव होते हैं जिनमें जो उत्सव मन्दिर की ओर से निर्धारित किये जाते हैं उनमें कोई परिवर्तन नही होता लेकिन जो मनोरथ भक्त के द्वारा होते हैं उनमें परिवर्तन हो जाता है।

उन्होंने बताया कि भक्त द्वारा निर्धारित मनोरथ भक्त की इच्छा के अनुरूप होते हैं अन्तर इतना है कि जैसे होली रंग की भी होती है मगर मनोरथ में होली फूलों की ही होती है। यह बात दीगर है कि उस समय वातावरण इतना भावमय हो जाता है कि भक्त और दर्शकों को यह अनुभव होने लगता है कि ठाकुर की कृपा की वर्षा हो रही है। विख्यात द्वारकाधीश मन्दिर में अब तक होली के कई उत्सव हो चुके हैं जबकि वृन्दावन के राधाश्यामसुन्दर मन्दिर और राधा दामोदर मन्दिर में कोरोनावायरस के कारण उत्सव में भक्तों को शामिल नही किया जा रहा है तथा भक्त केवल दर्शन कर अपनी तृष्णा बुझा रहे हैं।

गोवर्धन की परिक्रमा से लेकर चौरासी कोस की परिक्रमा तक, मथुरा की परिक्रमा से बरसाना की गहवर वन की परिक्रमा तक अथवा वृन्दावन की परिक्रमा आदि में जिस प्रकार से अपार जनसमूह परिक्रमा कर रहा है,उससे लगता है कि कन्हैया की नगरी से कोरोनावायरस का प्रकोप समाप्त हो गया है। गोवर्धन परिक्रमा में रात के समय परिक्रमा इतनी सघन हो जाती है कि परिक्रमा मार्ग में तिल भी रखने की जगह नही होती है। परिक्रमार्थियों के बढ़ने से बन्दरों की चांदी हो गई है। उन्हें खाने के लिए इतने फल मिल रहे हैं कि उनसे खाया नही जा रहा है तथा बचे खुचे फल या तो गाय खा रही है अथवा सुअर खा रहे हैं। देश के विभिन्न प्रांतों के लोग न केवल अपने अपने प्रांतों के गीत गाते हुए जब परिक्रमा करते हैं तो परिक्रमा मार्ग लघु भारत सा दिखाई पड़ने लगता है।

किसी समय दिन में गोवर्धन की तीन परिक्रमा करने वाले कृष्णदास बाबा ने बताया कि गोवर्धन में तो दण्डौती,ठढ़ेसुरी , लोटन परिक्रमा करने की होड़ सी लगी हुई है। सन्तजन परिक्रमा करने में पीछे नही हैं। उन्होंने बताया कि कुछ स्वास्थ्य खराब हो जाने के कारण वे वर्तमान में प्रतिदिन तीन परिक्रमा तो नही कर पा रहे हैं मगर एक परिक्रमा रोज कर रहे हैं हालांकि संत सुन्दरदास ने तो परिक्रमा करने का रेकार्ड ही तोड़ दिया है और वे गोवर्धन की नित्य चार परिक्रमा कर रहे हैं।

उन्होंने बताया कि इतिहास साक्षी है कि सनातन गोस्वामी यद्यपि एक दिन में गोवर्धन की एक परिक्रमा ही करते थे लेकिन वे वृन्दावन से मथुरा होते हुए गोवर्धन आते थे और एक परिक्रमा करके फिर वापस चले जाते थे और इस प्रकार उन्हें लगभग 85 किलोमीटर रोज पैदल चलना पड़ता था। जब वे बहुत वृद्ध हो गए तो एक बार परिक्रमा करते करते वे थककर बैठ गए । उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर ठाकुर जी बालस्वरूप में आए और उनसे कहा कि वे अधिक वृद्ध हो गए हैं इसलिए वे अब गोवर्धन की परिक्रमा न किया करें पर सनातन उस बालक की बात को अनसुना करके परिक्रमा शुरू करने ही वाले थे कि भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अपने विराट रूप के दर्शन कराए और उनसे इस प्रकार परिक्रमा न करने को कहा तो सनातन की अश्रुधारा बह निकली।

ठाकुर ने इसके बाद पास से ही एक शिला उठाई और उस पर जैसे ही अपने चरणकमल रखे शिला मोम की तरह पिघल गई। इसके बाद उन्होंने वंशी बजाकर सुरभि गाय को बुलाया और उस शिला पर उसके खुर का निशान बनवा दिया। इसके बाद उन्होंने उस पर अपनी लकुटी और वंशी भी रख दी जिससे उसका चिन्ह भी बन गया । इसके बाद उन्होंने उस शिला को सनातन को दिया और कहा कि वे जहां पर रह रहे हो वहीं पर इस शिला को रखकर यदि इसकी चार परिक्रमा कर देंगे तो उनकी एक परिक्रमा पूरी हो जाएगी। यह शिला आज भी राधादामोदर मन्दिर में रखी है तथा सामान्य दिनों में तड़के तीन बजे से इस शिला की परिक्रमा वृन्दावनवासी तथा अधिक वृद्ध तीर्थयात्री करते हैं। दण्डौती परिक्रमा इस भाव से की जाती है कि यदि कान्हा के चरणकमल की रज का एक कण मस्तक पर लग जाय तो मोक्ष की प्राप्ति हो जाएगी।

कोरोनावायरस के कारण गोवर्धन में इस बार अधिक भण्डारे नही लगे हैं लेकिन जितने भंण्डारे लगे हैं उनसे तीर्थयात्रियों की भोजन की आवश्यकता की पूर्ति हो रही है।

उधर, चौरासी कोस की परिक्रमा मे अपार जनसमूह उमड़ पड़ा है । इस परिक्रमा में जहां अधिकांश लोग अपने दैनिक उपयोग का सामान एक बोरी में रखकर बोरी को सिर पर रखकर परिक्रमा कर रहे हैं वहीं जो साधन सम्पन्न हैं वे अपने दैनिक उपयोग का सामान किसी वाहन में रखकर ठढ़ेसुरी परिक्रमा कर रहे हैं। कुछ ऐसे भक्त भी है जो चौरासी कोस की दण्डौती परिक्रमा कर रहे हैं।

यही हाल वृन्दावन , मथुरा, क्षीरसागर बल्देव, गहवरवन बरसाना आदि की परिक्रमा का है। कुल मिलाकर अधिक मास श्रीकृष्ण का माह होने के कारण ब्रज का वातावरण कृष्णमय हो गया है तथा तीर्थयात्री कोरोनावायरस के संक्रमण की परवाह किये बिना गोवर्धन की ओर चुम्बक की तरह खिंचे आ रहे हैं।

वार्ता

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news