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बिहार चुनाव: दुश्मन से साझेदार बने राजद-माले की दोस्ती आख़िर सिवान में क्या रंग लाएगी?
02-Nov-2020 1:24 PM
बिहार चुनाव: दुश्मन से साझेदार बने राजद-माले की दोस्ती आख़िर सिवान में क्या रंग लाएगी?

सीटू तिवारी
सिवान से, 2 नवंबर| 31 मार्च 1997 को सिवान के जेपी चौक पर जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे चन्द्रशेखर के साथ भाकपा (माले) की ज़िला कमिटी के एक सदस्य श्याम नारायण यादव की भी हत्या हुई थी.

बिहार के सिवान ज़िले के जीरादेई के ठेपहां बारी टोला के श्याम नारायण यादव की पत्नी ज्ञानती देवी 23 साल बाद भी वो दिन याद करके सिहर उठती हैं.
दुबली पतली ज्ञानती देवी, अपने ही घर के सोफ़े पर बहुत सिमट पर बैठी थीं.

मैंने उनसे पूछा कि राजद और भाकपा (माले) के गठबंधन को वो किस नज़र से देखती हैं, तो उन्होंने जवाब दिया, "तकलीफ़ तो बहुत है, लेकिन क्या कर सकते हैं. हत्या के वक़्त रमेश सिंह कुशवाहा (उस वक़्त भाकपा माले के प्रभावी नेता, अभी जेडीयू से मौजूदा विधायक) ने सरकार से मिल रहे दस हज़ार रुपये नहीं लेने दिए. कहा कि हम लोग हत्या का केस लड़ेंगे. लेकिन वो ख़ुद माले छोड़कर दूसरी पार्टी में निकल लिए."

Situ Tiwari

ठेपहां बारी टोला मे श्याम नारायण यादव के घर से तक़रीबन 20 किलोमीटर दूर सिवान शहर के खुरमाबाद इलाक़े में भाकपा (माले) का कार्यालय है. यहाँ 106 'शहीद साथियों' के नाम पर बैनर बना है, तो कुछ 'शहीदों' की तस्वीर दीवार पर लगी है.

ज्ञानती देवी

'सामंती ताकतों ने लड़वाया'

ज्ञानती देवी से इतर 40 साल की माया कुशवाहा के पास अपने तर्क हैं.
वे अमरजीत कुशवाहा की पत्नी हैं जो जीरादेई विधानसभा से भाकपा माले के उम्मीदवार हैं.
इंक़लाबी नौजवान सभा (इनौस) के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे अमरजीत कुशवाहा चिलमरवा काण्ड में बीते पाँच साल से जेल में हैं.
ऐसे में उनके प्रचार की कमान माया कुशवाहा ने संभाल रखी है.

माया बीबीसी से कहती हैं, "हमारी पार्टी बड़े लक्ष्य को सामने लेकर चल रही है. हमे रोज़गार, स्वास्थ्य, शिक्षा, राशन-किरासन की व्यवस्था और भूमि-सुधार करना है. वैसे भी राजद और माले के बीच जो लड़ाई थी, वो सामंती ताकतों ने लड़वाई थी. जो सब बीजेपी के लोग थे."

माया कुशवाहा के ठीक पीछे खड़े 'सम्राट अशोक क्लब' के मंटू कहते हैं, "इन दोनों का 'जुरडरार' (छोटा-मोटा) झगड़ा था, कोई राजनीतिक झगड़ा नहीं था."
लेकिन प्रचार के लिए आये वामपंथी नौजवानों में से कई दबी ज़ुबान में कहते हैं, "समझौता ऊपर के स्तर पर हुआ है. हम कैसे भूल जाएं कि कॉमरेड चंदू समेत हमारे लोगों को शहाबुद्दीन ने मरवाया. उनको माफ़ करने का सवाल ही नहीं."

शहाबुद्दीन (फ़ाइल फ़ोटो)

राजद और माले की अदावत

भाकपा (माले) की वेबसाइट पर छपे लेख 'सिवान, शहाबुद्दीन और सीपीआई (एमएल)' के मुताबिक़, "80 के दशक के आख़िरी वर्षों और 90 के दशक के शुरुआती वर्षों में पार्टी का उभार सिवान के दरौली ब्लॉक में शुरू हुआ. पार्टी दलित, पिछड़े भूमिहीनों की लड़ाई सामंती ताकतों के ख़िलाफ़ लड़ रही थी."

1990 के विधानसभा चुनाव में शहाबुद्दीन जीरादेई से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीते थे. बाद के विधानसभा चुनाव में शहाबुद्दीन जहाँ जनता दल के टिकट पर जीरादेई से विधायक बने, वहीं माले के अमरनाथ यादव और सत्यदेव राम, जीरादेई के बगल की ही विधानसभा दरौली और मैरवा से जीते. बाद में शहाबुद्दीन ने 1996 में एमपी का चुनाव लड़ा और उनका संसद जाने का रास्ता साफ़ हो गया.

बिहार अराजपत्रित प्रारंभिक शिक्षक संघ के ज़िला अध्यक्ष और वाम राजनीति से जुड़े राकेश कुमार सिंह बताते हैं कि "सिवान के पश्चिमी क्षेत्र में भाकपा (माले) का जनाधार मज़बूत हो रहा था और शहाबुद्दीन का आतंक बढ़ रहा था जिसकी अवधि 1996 से 2005 तक मानी जा सकती है. शहाबुद्दीन ने डॉक्टर को फ़ीस कम रखने का दबाव बनाकर, ख़ुद दरबार लगाकर उसमें आने वाले 'फ़रियादियों' की समस्या सुलझाकर ख़ुद को 'रॉबिनहुड' के तौर पर स्थापित किया. साथ ही माले के भूमि संघर्ष से परेशान अगड़ी जातियों को भी मदद करके अपना आधार बनाया."

माले और राजद की इसी अदावत में पार्टी कार्यकर्ताओं की हत्या हुई. यही वजह है कि सिवान में कभी 'कट्टर दुश्मन' रहे इन दोनों दलों की 'नई-नई दोस्ती' को बहुत दिलचस्पी से देखा जा रहा है.

Situ Tiwari

'जिनके यहाँ हत्या हुई, वो हमारे साथ'

कुशवाहा बहुल जीरादेई विधानसभा में अमरजीत कुशवाहा को जेडीयू की कमला कुशवाहा और बीजेपी से लोजपा में गए विनोद तिवारी टक्कर दे रहे हैं. दिलचस्प है कि जेडीयू ने अपने मौजूदा विधायक रमेश सिंह कुशवाहा का टिकट काटकर कमला कुशवाहा को टिकट दिया है.

जेडीयू के प्रखंड अध्यक्ष राजकुमार ठाकुर बीबीसी से कहते हैं, "आरसीपी सर ने शायद ये सोचकर उन्हें टिकट दिया क्योंकि वो शहीद चंद्रशेखर की दूर की रिश्तेदार और उसी गाँव बिंदूसर की हैं. बाकी पूरे बिहार में माले और राजद की दोस्ती और सिवान में दोस्ती दो अलग-अलग ध्रुव हैं."

वहीं बीबीसी से बातचीत में विनोद तिवारी और कमला कुशवाहा, दोनों ने ही राजद-माले गठबंधन पर तंज़ कसा. दोनों ने ही जीत का दावा करते हुए कहा, "जिन परिवार के लोगों की हत्या इन दोनों पार्टियों की दुश्मनी में हुई, वो हमें वोट करेंगे."

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अंधेरे में डूबा राजेन्द्र प्रसाद का पैतृक आवास

जीरादेई गाँव: विकास से दूर

जीरादेई भारत के पहले राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद का गाँव है. गाँव तक जाने के लिए अच्छी सड़क है, मगर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित राजेन्द्र प्रसाद के पैतृक आवास में दो महीने से बिजली नहीं है.

इस जगह की देखभाल कर रहे स्थानीय निवासी अरविन्द कुमार ने बीबीसी से कहा, "शिक़ायत गई हुई है, पर कुछ हुआ नहीं."
वहीं, इस गाँव के साव टोला जहाँ ज़्यादातर लोग मछली पकड़कर जीवन यापन करते हैं, वो राशन-कार्ड, शौचालय, स्वास्थ्य केन्द्र, पानी की कमी, नाली, स्कूल में पढ़ाई के अभाव की परेशानी झेल रहे हैं.

बीबीसी से बातचीत में साव टोला की कांति देवी, राम रति देवी, सुशीला देवी, टुनटुन साव ने कहा, "वोट आ गया है तो इस घड़ी नेता आ रहे हैं. मोटर गाना बजाते हुए आ रहे हैं. लेकिन हमको किसी तरह की सुविधा नेता लोगों ने नहीं दिलवाया. उलटा कोरोना में तो हमारी स्थिति और ख़राब हो गई."

जीरादेई के ही मुस्लिम बहुल गाँव के आदिल ख़ाँ ने 2014 में अपना ग्रैजुएशन पूरा कर लिया था.

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आदिल ख़ाँ

वे कहते हैं, "हमारे मुस्लिम समाज ने अपना नेता शहाबुद्दीन को चुना है. अब वो जहाँ रहेंगे, वोट भी हमारा वहीं जाएगा. बाकी तेजस्वी यादव ने कहा है कि सरकार बनने पर वो रोज़गार देंगे."

जीरादेई विधानसभा समेत पूरे इलाके की एक समस्या स्वास्थ्य सुविधा भी है.
राजद के कार्यकर्ता और रेपुरा गाँव के तस्लीम सिद्दीकी बताते हैं, "ज़्यादा बीमार होने पर या तो हम गोरखपुर मेडिकल कॉलेज जाते हैं या फिर पटना मेडिकल कॉलेज. दोनों ही हालत में मरीज़ जाते-जाते दम तोड़ देता है."

हालांकि सिवान के मैरवा में मेडिकल कॉलेज खुलने को मंजूरी मिल चुकी है.
सिवान ज़िले में आठ विधानसभा सीट हैं, जहाँ तीन नवंबर को चुनाव होना है.
इन आठ सीटों में से चार सीट राजद, तीन माले और एक कांग्रेस के खाते में आई है.
देखना होगा कि साहेब के नाम से इलाके में मशहूर, तिहाड़ जेल में बंद शहाबुद्दीन की अनुपस्थिति में राजद और भाकपा (माले) का ये राजनीतिक गठबंधन चुनावी जीत में तब्दील हो पाता है या नहीं?  (bbc.com)

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