राष्ट्रीय
कृषि क़ानून को लेकर कांग्रेस के वर्तमान रुख़ की भी आलोचना हो रही है. कहा जा रहा है कि जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे तो उनकी सरकार भी इसी तरह के सुधार की वकालत कर रही थी. लेकिन ये क़ानून अब बन गया और किसान संगठन सड़क पर विरोध करने लगे तो कांग्रेस ने भी अपना रुख़ बदल लिया.
मोदी सरकार के कृषि क़ानून का समर्थन करते हुए योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया ने कांग्रेस समर्थित अर्थशास्त्रियों पर सवाल उठाए हैं. उनका कहना है कि राजनीतिक पार्टियों का रुख़ तो समझ में आता है लेकिन जिन अर्थशास्त्रियों ने यूपीए सरकार में मुख्य आर्थिक सलाहकार रहते हुए कृषि में नए बदलावों का समर्थन किया था वो भी अब कृषि क़ानून का विरोध कर रहे हैं.
हालाँकि कांग्रेस नेता इस पर कई बार सफ़ाई दे चुके हैं. पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम भी कह चुके हैं कि उनकी सरकार इस तरह के कृषि क़ानून के पक्ष में कभी नहीं थी.
अरविंद पनगढ़िया ने मनमोहन सिंह सरकार में मुख्य आर्थिक सलाहकार रहे कौशिक बासु और रघुराम राजन पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा कि सरकार में रहते हुए इन दोनों अर्थशास्त्रियों ने नए कृषि क़ानून की वकालत की थी.
अरविंद पनगढ़िया को अर्थशास्त्री कौशिक बासु ने जवाब दिया है. इन्होंने लिखा है कि भारतीय कृषि में सुधार की ज़रूत है लेकिन छोटे किसानों की आजीविका की क़ीमत पर नहीं. कौशिक बासु ने ट्वीट कर कहा है, ''हमें राजनीति किनारे रख देनी चाहिए और नए सिरे से क़ानून बनाने पर विचार करना चाहिए, जिसमें व्यापक पैमाने पर विमर्श हो.''
अरविंद पनगढ़िया के जवाब में कौशिक बासु ने टाइम्स ऑफ इंडिया में लिखा है, ''ये सही बात है कि मैंने और रघुराम राजन ने कहा था कि भारत के कृषि क़ानून पुराने पड़ गए हैं और एपीएमसी एक्ट में सुधार की ज़रूरत है. किसानों को विकल्प देने की ज़रूरत है लेकिन उससे पहले हमें ये सुनिश्चित करने की ज़रूरत है कि छोटे किसानों को शोषण से बचाया जा सके. मुक्त बाज़ार में छोटे किसानों की जो मुश्किलें हैं उनको गंभीरता से देखने की ज़रूरत है.''
''सरकार ने इसकी कोई मुकम्मल व्यवस्था नहीं है जिससे किसानों के शोषण को रोका जा सकेगा. एपीएमसी एक्ट में वर्तमान संशोधन बहुत प्रभावी नहीं है. इस सुधार में बड़े कॉर्पोरेट घरानों को व्यापक पैमाने पर स्टोर करने की अऩुमति दे दी गई है. इससे बड़े कॉर्पोरेट घराने सामने आएंगे और स्टोर व्यापक पैमाने पर करेंगे. इसके मार्केट पर इनका नियंत्रण बढ़ेगा. अगर कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में किसानों के साथ किसी भी तरह का कोई विवाद होता है कि उनके मसले को सुलझाने के लिए कोई प्रभावी व्यवस्था है.'' (bbc.com)