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आरसीपी सिंह: नीतीश कुमार ने अपने ही नंबर 2 को राष्ट्रीय अध्यक्ष क्यों बनाया
28-Dec-2020 9:37 AM
आरसीपी सिंह: नीतीश कुमार ने अपने ही नंबर 2 को राष्ट्रीय अध्यक्ष क्यों बनाया

JDU

नीतीश कुमार समय समय पर अपनी राजनीति से लोगों को चौंकाते आए हैं. पटना के कर्पूरी भवन में रविवार को जनता दल (यूनाइटेड) के राष्ट्रीय अधिवेशन में उन्होंने एक बार फिर से सबको चौंकाते हुए आरसीपी सिंह को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की कमान थमा दी.

जनता दल यूनाइटेड के अंदर आरसीपी की स्थिति लंबे समय से नीतीश कुमार के नंबर दो रही है, ऐसे में इस बदलाव को लेकर लोगों को बहुत अचरज नहीं है. ये भी कहा जा रहा है कि आरसीपी भले ही राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए हों लेकिन पार्टी की कमान सीधे नीतीश कुमार के हाथों में ही रहेगी.

इस बदलाव पर जनता दल यूनाइडेट के प्रवक्ता प्रगति मेहता ने बताया, "आरसीपी जी पार्टी के संगठन महासचिव की भूमिका पहले से ही निभा रहे थे. वे एक कुशल संगठनकर्ता हैं. ऐसे में नीतीश जी ने उन्हें पार्टी की ज़िम्मेदारी अधिकारिक तौर पर सौंपा है, इससे वे सरकार को कहीं ज़्यादा वक्त दे पाएंगे और आरसीपी जी संगठन को ज़्यादा मज़बूती दे पाएंगे."

लेकिन नीतीश कुमार के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद छोड़ने और आरसीपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने की कहानी इतनी सपाट नहीं होगी, इस ओर इशारा करते हुए पटना के वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार मणिकांत ठाकुर ने बताया, "लोगों को ध्यान होगा मई, 2019 में केंद्र सरकार में जेडीयू के शामिल होने पर आरसीपी सिंह के मंत्री बनने की चर्चा सबसे ज़्यादा थी, लेकिन बाद में कोटे से केवल एक मंत्री बनाए जाने के विरोध में नीतीश कुमार ने मंत्रिमंडल में शामिल नहीं होने का फ़ैसला लिया. उनकी प्रतिक्रिया थी कि वे केवल भागीदारी के लिए भागीदारी नहीं चाहते. लेकिन इसके बाद बिहार सरकार ने अपने मंत्रिमंडल का विस्तार किया जिसमें बीजेपी का कोई मंत्री नहीं बनाया गया."

मणिकांत ठाकुर के मुताबिक, "इसके बाद से लेकर बिहार विधानसभा चुनाव तक आरसीपी सिंह बहुत सक्रिय नहीं देखे गए. नीतीश जी के आस पास अशोक चौधरी, ललन सिंह जैसे नेता ज़्यादा दिखे लेकिन आरसीपी की सक्रियता कम रही. वे नीतीश के साथ किसी समारोह में भी नहीं दिखे. कहीं ना कहीं उनकी नाराज़गी थी."

RCP SINGH

आरसीपी नीतीश के लिए कोई दूसरे नहीं

वैसे आरसीपी सिंह नीतीश कुमार से कभी नाराज़ हुए हों, ये बात सार्वजनिक तौर पर कभी सामने नहीं आई. हालांकि इससे पहले भी एक मौका ऐसा ज़रूर आया था जब पार्टी में उनके दूसरे नंबर के हैसियत को चुनौती मिली थी.

ये मौका आया था सितंबर, 2018 में जब नीतीश कुमार प्रशांत किशोर को पार्टी उपाध्यक्ष के तौर पर लेकर आए थे. उस प्रेस कॉन्फ्रेंस की तस्वीरों को याद कीजिए, नीतीश कुमार की दाहिनी ओर प्रशांत किशोर बैठे थे और बायीं ओर वशिष्ठ नारायण सिंह. तब तक दाहिनी ओर आरसीपी सिंह ही बैठते आए थे.

पार्टी उपाध्यक्ष के तौर पर प्रशांत किशोर का पार्टी के अंदर भी नीतीश कुमार के बाद वाली स्थिति में आ गए थे. ऐसे में ही मीडिया ने आरसीपी सिंह से वो सवाल पूछ लिया था, जिसका अंदाजा हर किसी को हो रहा था, आरसीपी सिंह से तब पूछा गया था क्या प्रशांत किशोर को उनका कद कम करने के लिए लाया गया है?

आरसीपी सिंह ने इसका मंजे हुए राजनेता की तरह जवाब दिया था, "मैं तो महज़ पाँच फुट चार इंच लंबा हूँ. आप मुझे कितना छोटा कर सकते हैं?"

ये जवाब राजनीति को अच्छी तरह से समझने वाला ही दे सकता है. आरसीपी सिंह के इस जवाब के मायने का अंदाज़ा आज की स्थितियों में देखकर लगाइए- प्रशांत किशोर जनता दल यूनाइटेड से बाहर हैं और अपने इलेक्शन मैनेजमेंट का काम कर रहे हैं और आरसीपी सिंह पार्टी के अध्यक्ष बन गए हैं.

हालांकि अध्यक्ष बनने से काफी पहले ही आरसीपी सिंह ने नागरिकता संशोधन विधेयक के मुद्दे पर प्रशांत किशोर को अलग राह चुन लेने की सलाह दे दी थी. तब प्रशांत किशोर नीतीश कुमार से मिलने भी गए लेकिन कहा गया कि नीतीश कुमार ने उन्हें दूसरों की बातों पर ध्यान नहीं देने को कहा. हालांकि प्रशांत किशोर को यह अंदाज़ा ज़रूर हो गया था कि आरसीपी सिंह नीतीश कुमार के लिए कोई दूसरे नहीं हैं.

जेएनयू से आईआर और आईएएस अधिकारी का टैग

यह स्थिति तब है कि जब आरसीपी सिंह कोई जनाधार वाले नेता नहीं हैं. वे नौकरशाही के रास्ते से नीतीश कुमार के भरोसे से राजनीति में आए हैं और अब नीतीश कुमार की राजनीति को बढ़ाने की ज़िम्मेदारी भी उन पर आ गई है. यह आरसीपी सिंह ने क़दम क़दम हासिल किया है. उनका राजनीतिक जीवन भी उनके नौकरशाही के करियर की तरह ही धीरे धीरे जमा है.

जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी से इंटरनेशनल रिलेशन में एमए करने के बाद आरसीपी सिंह 1984 में यूपी कैडर के आईएएस अधिकारी बने. इस दौरान वे रामपुर, बाराबंकी, हमीरपुर और फतेहपुर के ज़िलाधिकारी रहे. इस दौरान उनकी नज़दीकी समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता रहे बेनी प्रसाद वर्मा से बढ़ी.

साल 1996 में बेनी प्रसाद वर्मा केंद्रीय दूर संचार मंत्री थे तब आरसीपी सिंह उनके निजी सचिव थे. बेनी प्रसाद वर्मा ने ही आरसीपी सिंह की मुलाक़ात नीतीश कुमार से कराई थी. आरसीपी सिंह एक तो नीतीश कुमार के ही गृह ज़िले नालंदा के थे और स्वजातीय भी थे.

इन दो बातों के अलावा आरसीपी की कुशलता ने भी नीतीश कुमार को अपना मुरीद बनाया होगा तभी उन्होंने रेल मंत्री के तौर पर आरसीपी सिंह को अपना निजी सचिव बनाया और जब 2005 में बिहार के मुख्यमंत्री बने तो यूपी कैडर के अधिकारी को अपने राज्य में पदस्थापित कराने के लिए उन्होंने पूरा जोर लगाया.

आरसीपी सिंह प्रधान सचिव के तौर पर पटना चले आए और देखते देखते वे नीतीश कुमार के आंख और कान बन गए.

शासन के कामकाज के साथ साथ वे जनता दल यूनाइटेड में अहम होते गए. चूंकि पार्टी एक तरह से नीतीश कुमार के इर्दगिर्द ही घूम रही थी लिहाजा किसी के लिए भी नीतीश कुमार तक पहुंचने का रास्ता आरसीपी सिंह से होकर गुजरता था.

आरसीपी का कद कितना बड़ा?

आरसीपी सिंह की पकड़ इतनी मुस्तैद हुई कि उनके बारे में बिहार विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने सार्वजनिक तौर पर आरोप लगाया कि बिहार में हर नियुक्ति-तबादले में एक आरसीपी टैक्स देना होता है.

इसी दौर में जनता दल यूनाइटेड के अंदर संसाधनों के इंतजाम का जिम्मा भी आरसीपी सिंह के इर्द गिर्द सिमटता गया. 2010 में उन्होंने आईएएस से इस्तीफ़ा दिया और नीतीश कुमार ने उन्हें राज्य सभा भेजा. 2016 में वे पार्टी की ओर से दोबारा राज्यसभा पहुंचे और शरद यादव की जगह राज्यसभा में पार्टी के नेता भी मनोनीत किए गए.

जनता दल यूनाइटेड के प्रवक्ता प्रगति मेहता कहते हैं, "आरसीपी सिंह एक नौकरशाह थे, लेकिन पार्टी के कार्यकर्ताओं तक वे कार्यकर्ता के तौर पर ही पहुंचते रहे हैं. कार्यकर्ता भी उनसे जुड़ते चले गए. वे सहजता से सबके लिए उपलब्ध रहते हैं. जिस शख्स के बारे में कहा जाता है कि वे पूरा बिहार चलाते हैं, वे आज भी सैंट्रो कार में चलते हैं, बिना किसी ताम झाम के."

कार्यकर्ताओं के साथ इसी जुड़ाव के चलते आरसीपी सिंह जनता दल यूनाइटेड के लिए सबसे महत्वपूर्ण शख्स बनकर उभरे हैं.

मणिकांत ठाकुर कहते हैं, "बिहार की राजनीति में ये कयास भी लगने लगे थे कि जनता दल यूनाइटेड में विभाजन हो जाएगा और बहुत सारे लोग आरसीपी के साथ चले जाएंगे. ऐसी किसी स्थिति से बचने के लिए भी नीतीश कुमार ने आधिकारिक तौर पर उन्हें ज़िम्मेदारी देने का मन बनाया होगा."

हालाँकि यह देखना भी दिलचस्प होगा कि जनता दल यूनाइटेड के लिए भी स्थितियां बहुत अनुकूल नहीं रह गई हैं. बिहार विधानसभा चुनाव में तीसरे नंबर की पार्टी बनने के बाद पार्टी के सामने खुद को सशक्त बनाए रखने की चुनौती है.

एक ओर बीजेपी की कोशिश भी जनता दल यूनाइटेड के वोट बैंक को अपने पाले में करने की दिख रही है वहीं दूसरी ओर तेजस्वी यादव के नेतृत्व में विपक्ष भी दम साधने का मौका नहीं देना चाहता.

ऐसे में सरकार और पार्टी दोनों को एक साथ संभालने की चुनौती ने भी नीतीश कुमार को अपना बोझ कम करने और आरसीपी सिंह को सामने करने के लिए मज़बूर किया होगा.

नीतीश-आरसीपी की केमिस्ट्री

दरअसल आरसीपी सिंह ने जनता दल यूनाइटेड के अंदर कई तरह के प्रकोष्ठ और बूथ कमिटी तक बनाकर पार्टी के अंदर एक संगठन को मूर्त रूप देने की जो कोशिश की है, उसके चलते भी विपरीत हालात के बावजूद पार्टी इस बार सरकार में आने में कामयाब हुई है.

मणिकांत ठाकुर जनता दल यूनाइटेड में आरसीपी सिंह की ताजपोशी और नीतीश कुमार की मौजूदा स्थिति को एक पुराने उदाहरण से जोड़ते हैं.

उन्होंने कहा, "मुझे एक तरह से जनता दल यूनाइटेड का वह दौर याद आता है जब अध्यक्ष तो शरद यादव थे लेकिन वहां से नीतीश कुमार के सामने उनकी स्थिति बिगड़ती चली गई. आशंका यही है कि कहीं नीतीश कुमार उस स्थिति की ओर तो नहीं बढ़ रहे हैं?"

हालाँकि नीतीश कुमार और शरद यादव के बीच वैसी ट्यूनिंग शायद ही कभी रही हो जो नीतीश और आरसीपी के बीच दो दशक से भी लंबे समय से बनी हुई है. दोनों की आपसी केमिस्ट्री कुछ ऐसी है कि एक के बिना दूसरे का काम भी नहीं चल सकता.

आरसीपी कभी जनाधार वाले नेता नहीं हो सकते, लिहाजा नीतीश कुमार को उस तरह की चुनौती कभी नहीं दे सकते जैसा कोई जनाधार वाला नेता दे सकता था. दूसरी तरफ नीतीश कुमार के चेहरे के बिना आरसीपी अपने दम पर संगठन के बूते कोई करिश्मा नहीं दिखा सकते.

लेकिन दोनों मिलकर पार्टी को उन चुनौतियों से निकाल ज़रूर सकते हैं जिसका सामना पार्टी इन दिनों कर रही है, लिहाजा हो सकता है कि दोनों ने मिलकर काम करने का लक्ष्य बनाया हो.

पार्टी के प्रवक्ता प्रगति मेहता कहते हैं, "राजनीतिक दलों में अध्यक्ष का पद कोई छोड़ता है क्या, बताइए. लेकिन नीतीश जी ने पार्टी के हितों को देखते हुए यह क़दम उठाकर दिखाया है कि वे परिवार और सगे संबंधियों के लिए राजनीति नहीं कर रहे हैं और आरसीपी सिंह इस ज़िम्मेदारी के लिए सबसे उपयुक्त नेता हैं, ये स्थिति उन्होंने सालों साल संगठन में काम करके हासिल की है."

आरसीपी की आईपीएस बेटी भी चर्चित रही हैं

आरसीपी सिंह की सबसे बड़ी ख़ासियत पर्दे के पीछे चुपचाप अपने काम करने वाले शख़्स की रही है. वे अब तक नीतीश कुमार के लिए ट्रब्यूल शूटर की ज़िम्मेदारी निभाते आए हैं, पार्टी अध्यक्ष के तौर पर उन्हें पर्दे से बाहर आकर भी ज़िम्मेदारी निभानी होगी.

अब तक उनके अच्छे और ख़राब काम नीतीश कुमार के साये में ढके रहे हों, अब उनके फ़ैसलों का सार्वजनिक असर भी देखने को मिलेगा.

वैसे हाल के सालों में आरसीपी सिंह नीतीश से नज़दीकी की वजह से नहीं बल्कि अपनी बेटी के लिए चर्चा में रहे हैं. उनकी बेटी लिपी सिंह 2016 बैच की आईपीएस अधिकारी हैं. बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान 26 अक्तूबर को मुंगेर में पुलिस और आमलोगों की झड़प और पुलिस फायरिंग को लेकर सवाल उठे थे.

तब मुंगेर की एसपी लिपी सिंह ही थीं, बाद में चुनाव आयोग के निर्देश लिपि सिंह और ज़िलाधिकारी को ज़िले से हटाना पड़ा था.

इससे पहले लिपी सिंह कभी नीतीश कुमार के नज़दीकी रहे बाहुबली नेता अनंत सिंह पर कार्रवाई के लिए भी चर्चा में रही थीं. आरसीपी सिंह के दामाद और लिपि सिंह के पति सुहर्ष भगत बिहार कैडर के आईएस अधिकारी हैं और इन दिनों बांका के ज़िलाधिकारी हैं. आरसीपी सिंह की दूसरी बेटी लता सिंह ने क़ानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद वकालत को अपना पेशा बनाया है. (bbc)

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