खेल
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-मनोज चतुर्वेदी
हम सभी जानते हैं कि क्रिकेट को भद्रजनों का खेल माना जाता है लेकिन फिर भी अक्सर इसे शर्मसार करने वाली घटनाएं होती रहती हैं. ऐसी ही एक घटना भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच सिडनी टेस्ट मैच के दौरान देखने को मिली है.
इस टेस्ट में दूसरे और तीसरे दिन के खेल के दौरान नशे में धुत दर्शकों के एक समूह ने जसप्रीत बुमराह और मोहम्मद सिराज पर फील्डिंग के दौरान नस्ली टिप्पणियां करने के साथ लगातार गालियां भी दीं.
इन खिलाड़ियों के टीम प्रबंधन को इसकी जानकारी देने पर इस घटना की रिपोर्ट आईसीसी मैच रेफरी डेविड बून को दर्ज करा दी गई है.
अजिंक्य रहाणे और आर अश्विन ने तीसरे दिन का खेल ख़त्म होने पर इस घटना के संबंध में अंपायर पॉल रीफिल और पॉल विल्सन को बताया था.
लेकिन रविवार को एक बार फिर मोहम्मद सिराज ने अंपायर पॉल रीफिल को बताया कि उनकी फील्डिंग वाली जगह पीछे बैठे दर्शकों ने उन पर नस्ली टिप्पणी की.
क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया ने इन घटनाओं पर अपना आधिकारिक बयान भी जारी किया है और मेज़बान होने के नाते भारतीय क्रिकेट टीम से माफ़ी मांगी है.
"शनिवार को सिडनी क्रिकेट ग्राउंड में दर्शकों के एक ग्रुप के भारतीय टीम के सदस्यों पर नस्लवादी टिप्पणी की घटना के बाद क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया दोहराता है कि हर तरह के भेदभाव को लेकर हमारी नीति स्पष्ट है. हम इसे क़तई बर्दाश्त नहीं करेंगे.''
क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया के इंटेग्रिटी एंड सिक्यॉरिटी विभाग के प्रमुख शॉन केरोल ने कहा है कि अपमान और उत्पीड़न करने वाले किसी के लिए भी ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट में जगह नहीं है.
उन्होंने कहा, "क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया हर भेदभावपूर्ण व्यवहार की कड़े शब्दों में निंदा करता है. अगर आप नस्ली गालियां देते हैं तो ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट में आपकी कोई ज़रूरत नहीं."
अपने आधिकारिक बयान में क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया ने कहा है कि वे शनिवार की घटना पर आईसीसी की जांच का इंतज़ार कर रहे हैं. जैसे ही दोषी लोगों की पहचान होती है, तो क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया उत्पीड़न विरोधी कोड के तहत कड़ा क़दम उठाएगा. इसमें लंबा प्रतिबंध और एनएसडबल्यू पुलिस को रेफर करना भी शामिल है.
भारतीय टीम के 2018-19 के दौरे के बॉक्सिंग डे टेस्ट के दौरान भी ऐसी ही घटना हुई थी. उस समय मेलबर्न टेस्ट में कुछ दर्शक भारतीय खिलाड़ियों से कह रहे थे कि 'अपना पासपोर्ट दिखाओ'. इन दर्शकों को मैच से निकाल दिया गया था.
पर सवाल यह है कि इस तरह की घटनाओं को रोका कैसे जाए?
घटना ने मंकी गेट की दिला दी याद
इस घटना ने 13 साल पहले इसी मैदान पर ही हुई नस्ली टिप्पणी की एक घटना की यादों को तरोताज़ा कर दिया है. उस दौरान एंड्रयू सायमंड्स ने यहां खेले गए टेस्ट के दौरान आरोप लगाया था कि भारतीय खिलाड़ी हरभजन सिंह ने उन्हें मंकी कहकर नस्ली टिप्पणी की है.
इसके बाद मैच के रेफरी माइक प्रोक्टर ने हरभजन सिंह पर तीन मैच का बैन लगा दिया था. यहां तक कि भारत का दौरा तक रद्द करने के हालात बन गए थे.
लेकिन बीसीसीआई ने इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ अपील की जिस पर आईसीसी अपील कमिश्नर ने फ़ैसला पलट दिया था.
मौजूदा समय में स्टेडियम में कोरोना के भय की वजह से कम ही दर्शकों को प्रवेश दिया जा रहा है. इसलिए कैमरों की सीसीटीवी फुटेज देखकर आसानी से दर्शकों को चिन्हित करके कार्रवाई की जा सकती है.
जोफ्रा ऑर्चर भी हो चुके हैं शिकार
इसी तरह की घटना पिछले साल इंग्लैंड के क्रिकेटर जोफ्रा आर्चर के साथ न्यूज़ीलैंड दौरे पर हुई थी. वह इस दौरे के पहले टेस्ट के आख़िरी दिन का खेल ख़त्म होने पर मैदान में लौट रहे थे, तब किसी दर्शक ने उनके ऊपर नस्ली टिप्पणी कर दी थी.
इस पर न्यूज़ीलैंड क्रिकेट बोर्ड ने उस दर्शक पर 2022 तक के लिए घरेलू और अंतरराष्ट्रीय मैचों में प्रवेश पर रोक लगा दी थी.
पिछले कुछ सालों में दुनिया भर के खिलाड़ियों के आईपीएल जैसे टूर्नामेंट में लंबे समय तक साथ खेलने की वजह से उनके बीच दूरियां कम हुई हैं और इस तरह की टिप्पणियां कम सुनने को मिलने लगी हैं.
लेकिन दर्शकों की नस्लीय टिप्पणियां अक्सर देखने को मिल ही जाती हैं.
पहले भी होती रहीं नस्लीय टिप्पणियां
हम सभी जानते हैं कि क्रिकेट में माइंड गेम की परंपरा लंबे समय से बरक़रार है. यह सामने वाले खिलाड़ी पर मनोवैज्ञानिक दवाब बनाने के लिए किया जाता है.
इस दौरान की गई टिप्पणियां नस्लीय रूप भी ले लेती हैं. ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी डेरेन लीमेन ने 2002-03 में श्रीलंका के साथ वनडे सीरीज के दौरान नस्लीय टिप्पणी कर दी थी. इस पर श्रीलंका टीम की शिकायत पर उनके ऊपर पाँच मैचों का प्रतिबंध लगा दिया गया था.
बाद में उन्होंने अपनी ग़लती मानी थी और इसे अपनी जि़ंदगी की सबसे बड़ी भूल क़रार दिया था. इस तरह 2019 में पाकिस्तान और दक्षिण अफ्ऱीकी वनडे सीरीज के दूसरे मैच में भी नस्लीय टिप्पणी देखने को मिली.
पाकिस्तान के कप्तान सरफ़राज़ ख़ान ने दक्षिण अफ्रीकी क्रिकेटर फेहलुकवायो पर अपनी भाषा में रंगभेदी टिप्पणी की थी. उनकी यह बात स्टंप माइक में कैद हो गई थी. इस पर मैच रेफरी ने उनके ऊपर चार मैच की पाबंदी लगा दी थी.
नस्लीय हिंसा की भी घटनाएं
इस तरह की नस्लीय घटनाओं को समाज को शिक्षित करके ही रोका जा सकता है. पर समाज में भी तो नस्लीय हिंसा की घटनाएं आज भी हो रहीं हैं तो टिप्पणियों वाली घटनाएं रुकना आसान नहीं लगता है.
पिछले दिनों अमेरिका में एक ब्लैक शख़्स जॉर्ज फ्लॉयड की पुलिस के हाथों हत्या के बाद दुनियाभर में नस्लीय हिंसा के ख़िलाफ़ माहौल बना था. हम यदि भारतीय समाज की बात करें तो यहां लोगों की कमज़ोरियों को निशाना बनाना आम बात है. भले ही यह सब किसी ख़राब भावना से नहीं किया जाता है पर यह आता तो नस्लीय टिप्पणियों की श्रेणी में ही है.
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छोटे शहरों और गांवों में लंबाई, रंग, विकलांगता पर नाम तक रख दिए जाते हैं.
भारत में भी विदेशी खिलाड़ियों को सुननी पड़ी रंगभेदी टिप्पणी
जब लोग इसी तरह की हरकत किसी बड़े मंच पर कर देते हैं तो यह अलग रूप ले लेती है. इसी तरह की नस्लीय टिप्पणी का शिकार कुछ सालों पहले वेस्ट इंडीज के क्रिकेटर डेरेन सैमी आईपीएल में खेलने के दौरान हुए थे.
उन्होंने पिछले साल बताया था कि आईपीएल में हैदराबाद सनराइज़र्स के साथ खेलते समय साथी खिलाड़ी उन्हें और श्रीलंकाई खिलाड़ी तिषारा परेरा को कालू कहकर बुलाते थे.
उन्होंने कहा, "उस समय मैं समझता था कि इसका मतलब घोड़ा है. लेकिन जब मैंने हसन मिनहाज़ के कॉमेडी शो को देखा तो 'कालू' का सही मतलब समझ में आया."
उन्होंने यह कहने वाले खिलाड़ियों को माफ़ी मांगने को कहा था. पर जब उस खिलाड़ी ने कहा कि इसके पीछे भावना गलत नहीं थी तो उन्होंने इस मामले को तूल नहीं दिया.
भारतीय खेलों में भी है यह आम
भारत को 1980 के मास्को ओलंपिक में आख़िरी हॉकी स्वर्ण पदक दिलाने वाले कप्तान वासुदेवन भास्करन बताते हैं कि वह जब पटियाला वगैरह खेलने आते थे, तो उनके पास गेंद आने पर दर्शक अक्सर चिल्लाते थे कि 'कालिया पास दे'.
भास्करन कहते हैं, "हमें नस्लीय अंदाज़ की शुरू से आदत थी. मैं जब चेन्नई के लोयोला कालेज में पढ़ता था, तब मेरे साथ विजय अमृतराज और जयकुमार रोयप्पा भी पढ़ते थे. उस समय हमारे प्रोफेसर हम तीनों को डार्क, डार्कर और डार्केस्ट नाम से बुलाते थे. इसी तरह पूर्वोत्तर और दक्षिणी प्रदेशों से आने वाले खिलाड़ियों को ऐसी टिप्पणियों का सामना अक्सर ही करना पड़ता है."
भारत की अंतरराष्ट्रीय बॉक्सर सरिता देवी कहती हैं कि उन्हें एक कोच हमेशा जंगली कहते थे. वह कहती हैं कि पूर्वोत्तर राज्यों के नागरिकों का चेहरा थोड़ा भिन्न होने पर उन्हें चिंकी या मोमो कहा जाता रहा है.
बैडमिंटन खिलाड़ी ज्वाला गुट्टा भी अपने साथ हुए इस तरह के व्यवहार के बारे में बताती हैं. यही नहीं इन लोगों को ट्रेनों और बसों में सफ़र करते समय तंग किए जाने की भी शिकायतें आती रही हैं. (bbc.com)