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कविताओं में इश्क को उतारने की कोशिश है 'मिसरा मिसरा गजल आशिकाना हुई'
09-Mar-2021 7:22 PM
कविताओं में इश्क को उतारने की कोशिश है 'मिसरा मिसरा गजल आशिकाना हुई'

प्रमोद कुमार झा

नई दिल्ली, 9 मार्च | इश्क महज महबूब और महबूबा की मिल्कियत ही नहीं, बल्कि खुदा और बंदे के बीच का रिश्ता भी है। इश्क की इसी परिभाषा से प्रेरित भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी शुभ चिंतन ने इश्क को अपनी कविताओं में उतारने की कोशिश की है। कविता संकलन 'मिसरा मिसरा गजल आशिकाना हुई' कवि की इसी प्रकार की एक कोशिश है।

बकौल कवि व गजलकार शुभ चिंतन इश्क, मोहब्बत, प्रेम और प्यार ये चार पर्याय सबसे ज्यादा बोले और गाने वाले शब्द होने के साथ-साथ सबसे अधिक महसूस करनेवाली भावना भी है। साथ ही, लोकप्रियता में ईश्वर से भी अव्वल प्रेम की मांग किशोरावस्था, युवावस्था ही नहीं बल्कि प्रौढ़ावस्था और वृद्धावस्था में भी बनी रहती है।

प्रयोगधर्मी विज्ञान के छात्र के होने के चलते प्रयोग के जरिए इश्क के इस रहस्य को जानने की कोशिश में कवि इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि प्रेम या इश्क एक ऐसा मटका है जो कभी भरता नहीं है।

इश्क में ज्वार भी होता है तो दर्द भी और दर्द के बिना कोई इश्क नहीं होता। इस बात को कवि ने 'मिसरा मिसरा गजल आशिकाना हुई' की पंक्तियों में बयां की है-

जो कभी दर्द न झेले,

वो इश्क कैसे करें।

पद्य शीर्षक 'एक महबूब और एक खुदा' में इश्क को डगमगाने का धंधा बताया गया है-

इश्क में तो संभलना ही मुझको नहीं,

इश्क धंधा सिर्फ डगमगाने का है।

कवि कहते हैं-

मुझको तुम तैरना क्यों सिखाने लगे,

मेरा मकसद तो बस डूब जाने का है।

इश्क के अनगिनत रंग हैं और राम, सीता, कृष्ण, राधा, रजिया, मीरा, सलीम और अनारकली प्रेम के चर्चित पुजारी हैं। कवि ने प्रेम के अनगिनत रंगों में से कुछ रंग छांटकर उन्हें सरल शब्दों के जरिए अनोखे अंदाज में कविताओं के रूप में प्रस्तुत किया है जो लाजवाब है।

कवि परिचय : कविता संकलन 'मिसरा मिसरा गजल आशिकाना हुई' के रचनाकार शुभचिंतन भारतीय राजस्व सेवा के 1993 बैच के अधिकारी हैं और संप्रति आयुक्त (जीएसटी), गुरुग्राम के पद पर कार्यरत हैं। आईआईटी दिल्ली में एमटेक के छात्र रह चुके शुभ चिंतन को बचपन से ही कविताओं का अनुशीलन करने का शौक रहा है। कविता लिखने की प्रेरणा उन्हें अपने पिता स्वर्गीय ज्ञानेंद्र अग्रवाल से मिली जो एक उत्कृष्ट कवि थे।

पुस्तक का नाम : मिसरा मिसरा गजल आशिकाना हुई

रचनाकार : शुभ चिंतन

प्रकाशन : नोशन प्रेस, चेन्नई

कीमत : 250 रुपये

(आईएएनएस)

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