ताजा खबर
रायपुर, 22 जून। कर्मचारी फेडरेशन के 29 जून को आयोजित धरना प्रदर्शन में छत्तीसगढ़ ब्याख्याता संघ अवकाश लेकर शामिल होंगे।संघ के प्रदेश अध्यक्ष राकेश शर्मा प्रवक्ता जितेंद्र शुक्ला महामंत्री राजीव वर्मा ने बताया कि केन्द्र के सामान लंबित महंगाई भत्ता तथा सातवें वेतनमान के अनुरूप गृह भाड़ा भत्ता प्रदान करने की मांग को लेकर फेडरेशन आंदोलन कर रहा है जिसके प्रथम चरण में ज्ञापन सौंपा गया और कार्यवाही नहीं होने पर द्वितीय चरण में 29 जून को एकदिवसीय अवकाश लेकर शासन का ध्यान आकृष्ट कराया जाएगा।तीसरे चरण में 25 से 29 जुलाई तक अवकाश लेकर कलम बंद काम बंद हड़ताल किया जाएगा। इसके बाद भी मांगे पूरी नहीं हुई तो अनिश्चितकालीन हड़ताल की जाएगी। आंदोलन में व्याख्याता संघ के अभय मिश्रा , लखन लाल साहू , गोर्वधन झा रामचन्द्र नामदेव ,मोती चंद राय,व्ही एन वैष्णव, नरेन्द पर्वत , नीरज वर्मा , संजय चन्द्राकर , वेद राम पात्रे , प्रदीप शर्मा , रमाकांत पांडे , सुरेश चंद्र अवस्थी , अरुण साहू , राजेश पांडे , अनंत कुमार साहू सहित अन्य ने की है।
-अनिल अश्विनी शर्मा
यूनियन कार्बाइड के आसपास की 42 बस्तियों में पेयजल की अनियमित आपूर्ति के चलते लोग ट्यूबवेल का दूषित पानी पीने पर मजबूर है, जबकि इसपर नौ साल पहले ही कोर्ट ने रोक लगा दी थी
बीसवीं सदी की सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटना का असर भोपाल पर पिछले 38 सालों से बना हुआ है। और यह नहीं मालूम कि आगे कब तक बना रहेगा। लेकिन इसके असर से बचने के लिए बनाई गई सुरक्षा की दीवारों को आए दिन सरकारी महकमा तो तोड़ता ही है, साथ ही यह महकमा ऐसी स्थिति पैदा कर देता है कि इससे पीड़ित स्वयं भी इसमें शामिल हो जाते हैं।
भोपाल के यूनियन कार्बाइड कारखाने के आसपास बसी 42 बस्तियों में, जहां अदालती आदेश के बावजूद पीने का स्वच्छ जल नसीब नहीं हो पा रहा है और वे उस भूजल को पीने को मजबूर हैं, जिसके उपयोग पर अदालत ने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टॉक्सिकोलॉजी रिसर्च लखनऊ की रिपोर्ट के आधार पर उपयोग पर रोक लगा रखी है।
पीड़ित संगठनों द्वारा यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे की वजह से इसके आसपास की बस्तियों में लगातार फैल रहे भूजल प्रदूषण और साफ पानी मुहैया कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित निगरानी समिति को पत्र लिखा है। पत्र में समिति के चेयरमैन जस्टिस शील नागु और सदस्य सचिव राजीव कारमाहे से जल्द बैठक बुलाने और निरीक्षण करने के लिए आग्रह किया गया है।
ध्यान रहे कि यूनियन कार्बाइड की दुर्घटना के बाद यहां के भूजल में घातक रसायन बड़ी मात्रा में जमीन के नीचे चले गए हैं और लगातार समय बीतने के साथ और भी यहां के भूजल को प्रदूषित कर रहे हैं। ऐसे में यहां का पानी किसी जहर से कम नहीं है।
हालांकि राज्य सरकार ने यहां पेयजल की आपूर्ति के लिए अपने बजट में 50 करोड़ रुपए का प्रावधान रखा था। यूनियन कार्बाइड कारखाने के आसपास की 42 बस्तियों के भूजल को पेयजल के रूप में उपयोग करने पर सुप्रीम कोर्ट ने नौ साल पहले ही रोक लगा दी थी। आदेश दिया था कि इन बस्तियों के लिए राज्य सरकार बकायदा पाइप लाइन बिछा कर स्वच्छ जल मुहैय्या कराए।
यही नहीं आदेश में यह भी कहा गया कि अदालत द्वारा बनाई निगरानी कमेटी हर चार माह में इस पाइप लाइन से सप्लाई होने वाले पानी की जांच कर इसकी गुणवत्ता की रिपोर्ट देगी। लेकिन निगरानी कमेटी मार्च, 2019 से अब तक कभी जांच नहीं की। पिछले एक हफ्ते से पाइप लाइन से आने वाला पानी की आपूर्ति भी अनियमित हो गई है।
यह पहली बार नहीं हुआ है। ऐसा पिछले डेढ़ सालों में कई बार हो चुका है। ऐसे हालात में बस्तिवासी यहां ट्यूब वेल का पानी पीने पर मजबूर हैं। भोपाल ग्रुप फॉर इंफोर्मेशन एंड एक्शन की अध्यक्ष रचना ढींगरा ने बताया कि 2021 में तो यूनियन कार्बाइड कारखाने के पास के इंद्रा नगर में लोक यांत्रिकी विभाग द्वारा विधायक निधि से एक बोरवेल तक खुदवाया जा रहा था, यह जानते हुए भी कि इस बस्ती का भूजल यूनियन कार्बाइड कारखाने के जहरीले कचरे के कारण प्रदूषित है और अदालती रोक है।
भूजल प्रदूषण से संबंधित सर्वोच्च न्यायालय में लंबित मामले में पहले से ही आदेश है कि इन क्षेत्रों में पाइपलाइन से स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराया जाए और सारे सरकारी बोरवेल को सील कर बंद किए जाने के आदेश हैं ताकि स्थानीय रहवासी प्रदूषित भूजल का सेवन ना करें। इसके बावजूद क्षेत्र में विभाग की तरफ से बोरवेल का खनन किया जा रहा था जो कि सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन का खुला उल्लंघन था।
उन्होंने कहा कि विभागों को यूनियन कार्बाइड कारखाना के जहरीले कचरे से आसपास की बस्तियों में फैल रहे जल प्रदूषण पर गंभीर होना चाहिए जो कि नहीं हैं। उनका कहना था कि यदि हम बोर खनन की जानकारी और सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन के बारे में विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों को न बताते तो विभाग और अधिकारी क्षेत्र में बोरवेल का खनन कर चुके होते।
उन्होंने बताया कि राज्य सरकार के विधायक तक सात-आठ माह पूर्व लोगों के घरों में हैंडपंप लगवा रहे थे। यही नहीं उनका कहना है कि कोर्ट के आदेश के बाद भी नगर निगम ने कई सरकारी ट्यूब वेल इलाके के बंद ही नहीं किए हैं अब तक।
इलाके में पाइप लाइन से अनियमित पेयजल की सप्लाई होने के कारण लोग चोरीछुपे अपने-अपने घरों में हैंडपंप लगवा रहे हैं और इस काम में सरकारी महकमा भी मदद कर रहा है। भोपाल इफरमेशन एक्शन की अध्यक्ष रंजना धींगरा ने तो यहां तक बताया कि इस इलाके में स्थानीय विधायकों ने भी हैंडपंप लगवाने में मदद की है।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा यहां ग्राउंट वाटर से पानी की आपूर्ति पर रोक लगाने के बाद यहां बस्तियों में नर्मदा का पानी पाइप लाइन के माध्यम से आ रहा था, लेकिन नर्मदा का पानी नगर निगम ने डेढ़ साल पहले बंद कर दिया था और इसकी जगह कोलार बांध और बड़े तालाब का पानी सप्लाई किया जाने लगा।
यह पानी भी पूरी तरह से स्वच्छ नहीं है। लेकिन अब तो इस पानी को भी निगम सप्लाई करने में सक्षम नहीं हो पा रहा है। गैस पीड़ित संगठनों ने बताया कि घातक रसायनों का असर 29 अन्य बस्तियों तक जा चुका है।
रचना ढींगरा ने डाउन टू अर्थ को बताया कि यहां संभावना ट्रस्ट ने अब तक पानी की जांच में पाया है कि 42 बस्तियों में भूजल पेयजल के लिए उपयुक्त नहीं है। साथ ही उन्होंने लखनऊ स्थित इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टॉक्सीकॉलिजिकल रिसर्च सेंटर से आग्रह किया है कि वह यहां आकर एक बार फिर से इस पानी की जांच करें। (downtoearth.org.in)
भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजित डोभाल ने माना है कि बीजेपी की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा और दिल्ली बीजेपी से जुड़े नवीन जिंदल की ओर से पैग़बंर मोहम्मद पर दी गई विवादित टिप्पणी ने भारत की प्रतिष्ठा को नुक़सान पहुँचाया है.
मंगलवार को समाचार एजेंसी एएनआई को दिए इंटरव्यू में अजित डोभाल ने कहा कि इस बयान ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की ऐसी छवि बना दी, जो हक़ीकत से कोसों दूर है.
एनएसए से पूछा गया था कि क्या पैग़ंबर विवाद पर देश भर में हुए विरोध प्रदर्शनों ने भारत की प्रतिष्ठा को नुक़सान पहुँचाया है?
इस पर उन्होंने जवाब दिया, "हाँ (इससे भारत की प्रतिष्ठा पर आँच आई है). ये इस अर्थ में कि भारत को इस तरह दिखाया गया या भारत के ख़िलाफ़ ऐसी कुछ भ्रामक जानकारियाँ फैलाई गईं, जो सच्चाई से कोसो दूर है. ज़रूरत थी कि हम उनसे बात करें उन्हें मनाएं और आप पाएंगे कि जहाँ भी हमने संबंधित पक्ष से बात की फिर वो देश में हो या देश के बाहर, हम उन्हें मनाने में कामयाब रहे. जब लोग भावनात्मक तौर पर उत्तेजित हो जाते हैं, तब उनका व्यवहार थोड़ा असंगत सा हो जाता है."
बीजेपी की पूर्व नेता नूपुर शर्मा ने एक टीवी डिबेट के दौरान पैग़ंबर मोहम्मद पर विवादित बयानबाज़ी की थी. इस बयान को लेकर मुस्लिम देशों ने भारत के सामने आधिकारिक तौर पर विरोध जताया था.
भारतीय जनता पार्टी ने नूपुर शर्मा को पार्टी से निलंबित कर दिया था और नवीन जिंदल को निष्कासित. हालाँकि, इसके बावजूद देश के अंदर भी बयान का भारी विरोध हुआ और नूपुर शर्मा की गिरफ़्तारी की माँग को लेकर अलग-अलग हिस्सों में हिंसक प्रदर्शन भी हुए.
कश्मीर में टारगेट किलिंग्स पर क्या कहा
जम्मू-कश्मीर में लगातार आम नागरिकों को निशाना बनाकर की जा रही हत्याओं पर डोभाल ने कहा कि सरकार इससे निपटने की कोशिश कर रही है.
उन्होंने कहा, "2019 के बाद से लोगों का मिजाज़ बदला है. अब वो पाकिस्तान और आतंकवाद के पक्ष में नहीं हैं. आज हुर्रियत कहाँ है? शुक्रवार को होने वाले बंद कहाँ हैं? कुछ लोग हैं, जो भ्रमित हैं और अब भी इसमें शामिल हैं. हम उन्हें समझाने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं. उनके परिवार प्रयासरत हैं. कुछ तंज़ीम (आतंकी गुट) समस्या पैदा कर रहे हैं. हम उनके साथ पूरे दमख़म से लड़ रहे हैं. हम आतंकवाद से नहीं लड़ रहे. हमें आतंकवादियों से लड़ना है. हमें उम्मीद है कि अगले कुछ महीनों के अंदर स्थिति को नियंत्रित कर लिया जाएगा."
नूपुर शर्मा मामले में डच सांसद की टिप्पणी को लेकर चर्चा
कश्मीरी पंडितों के अंदर असुरक्षा की भावना और सरकार की ओर से ध्यान न दिए जाने के सवाल पर डोभाल ने कहा, "मुझे नहीं लगता कि ये सारे कश्मीरी पंडितों की भावना है. हाँ, वो ख़तरे में हैं. उन्हें सुरक्षा की ज़रूरत है. सरकार ने पहले भी कई क़दम उठाए हैं. संभवतः आगे भी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है और वो भी हो रहा है. कोई भी सरकार एक-एक व्यक्ति को सुरक्षा देने में सक्षम नहीं है. सबसे अच्छा ये है कि हम आतंकवादियों पर चोट करें और ये सुनिश्चित करें कि ये लोग जो कश्मीरी पंडितों की जान और संपत्ति के लिए ख़तरा हैं, उनकी ज़िम्मेदारी तय हो."
हिंदू-मुसलमान वाले भड़काऊ भाषण देकर लोग बच कैसे जाते हैं?
डोभाल ने ये भी कहा कि भारत पाकिस्तान के साथ वार्ता को तैयार है लेकिन केवल अपनी शर्तों पर. उन्होंने कहा, "हमारे विरोधी की पसंद के हिसाब से हम शांति या युद्ध नहीं कर सकते. अगर हमें अपने हितों की रक्षा करनी है, तो हमें तय करना होगा कि कब, किसके साथ और किन शर्तों पर शांति स्थापित की जाए."
उन्होंने कहा, "शांति होनी चाहिए और हमारे पड़ोसियों के साथ हमारे बहुत अच्छे संबंध हैं, जिसमें पाकिस्तान भी शामिल है. हम उनके साथ अच्छे संबंध बनाना चाहेंगे. लेकिन, निश्चित रूप से, आतंकवाद के प्रति हमारी सहनशीलता की सीमा बहुत कम है. हम अपने नागरिकों को आतंकवादियों के लिए नहीं छोड़ सकते. पिछले आठ सालों में जम्मू-कश्मीर के अलावा देश में कहीं कोई आतंकी हमला नहीं हुआ है. कश्मीर में छद्म युद्ध चल रहा है."
अजित डोभाल ने कहा, बिल्कुल वापस नहीं होगी अग्निपथ योजना
अजित डोभाल ने अग्निपथ योजना को सेना और राष्ट्र की सुरक्षा के अहम बताया और कहा कि इसे वापस नहीं लिया जाएगा.
अजीत डोभाल ने कहा, ''ये योजना बिल्कुल वापस नहीं होगी. इस पर दशकों से बात हो रही है और नौजवान सेना की मांग हो रही है. हर किसी ने इसकी ज़रूरत महसूस की लेकिन उनमें इसे लागू करने की राजनीतिक इच्छा शक्ति और हिम्मत नहीं थी. 2007 में विदेश मंत्री ने इसे पूरी तरह नंज़रअंदाज किया.''
उन्होंने कहा कि इस योजना को लेकर भ्रम फैला हुआ है.
उन्होंने कहा, ''ये बिल्कुल भ्रम है कि अग्निवीरों का सम्मान नहीं होगा. इनका गाँव में ही नहीं बल्कि वहाँ से बाहर भी उतना ही सम्मान होगा. ये देश की बहुत बड़ी निधि होंगे. वो परिवर्तन को एक नई दिशा देंगे. कई लोगों को निजी कारणों से सेना को छोड़कर आना पड़ता है. क्या उनको सम्मान नहीं मिलता था. इन्हें तो और ज़्यादा मिलेगा क्योंकि उनके लिए आगे भी संभावनाएँ हैं.''
''जब भी कोई परिवर्तन आता है, उसके साथ जुड़े हुए डर, चिंताएँ और आकाक्षाएँ आती हैं. जैसे-जैसे लोगों को अधिक सूचना और बातों का पता चल रहा है वैसे-वैसे लोग इसे समझ रहे हैं. ये तो हमारी पुरानी आवश्यकता थी. वो राष्ट्र के प्रति समर्पित हैं और धीरे-धीरे उनकी चिंताएँ कम हो रही हैं.''
चार साल बाद सेवानिवृत्त होने वाले अग्निवीरो को लेकर उन्होंने कहा, ''इसे लेकर ग़लतफ़हमी है. हम एक नौजवान व्यक्ति की बात करते हैं तो 22-23 साल का है जिसने सेना में काम किया है और आप बाज़ार में है. वह अनुशासित होगा, उसमें टीम में काम करने क्षमता, कौशल और आत्मविश्वास होगा. उसके लिए सारे रास्ते खुले होंगे. उनके पास 11 लाख रुपए भी हैं जिनसे वो आगे पढ़ सकते हैं और टेक्निकल कौशल भी हासिल कर सकते हैं.''
''इस देश के हर उस युवा को अवसर मिलता है जिसमें देश की रक्षा के लिए इच्छा और प्रेरणा है और प्रतिबद्धता की भावना है. उनकी ऊर्जा और प्रतिभा का इस्तेमाल इस देश को मजबूत बनाने में किया जाता है.''
उन्होंने कहा, ''सेना में जो लोग जाते हैं वो पैसे के लिए नहीं जाती उनमें देशप्रेम, राष्ट्रभक्ति और यौवन की शक्ति होती है. अगर वो भावना नहीं तो आप इसके लिए नहीं बने हैं. शारीरिक क्षमताओं के साथ-साथ देश, नेतृत्व और समाज पर भरोसा रखें.'' (bbc.com)
सऊदी की सरकारी समाचार एजेंसी एसपीए ने मंगलवार को बताया कि अभी तक दुनिया भर से मदीना आने के लिए एक लाख 72 हज़ार 562 तीर्थ यात्रियों का पंजीकरण किया गया है.
हज और उमराह मंत्रालय ने मदीना में आने वाले और लौटने वाले लोगों का आंकड़ा जारी किया है. इन आंकड़ों के मुताबिक़, क़रीब 1,56, 828 लोग प्रिंस मोहम्मद बिन अब्दुलअज़ीज़ अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से मदीना पहुंचे.
लैंड-इमिग्रेशन सेंटर पर 13,097 लोगों का रजिस्ट्रेशन हुआ. ये वो लोग हैं जो लैंड बॉर्डर के ज़रिए सऊदी अरब पहुँचे हैं.
ये आंकड़े मदीना में रह रहे तीर्थ-यात्रियों की राष्ट्रीयता भी बताता है. इसमें इंडोनेशिया से मदीना पहुंचे तीर्थ-यात्रियों की संख्या सबसे अधिक (24,478) है. इसके अलावा भारत, बांग्लादेश, इराक़ और ईरान के हज-यात्री भी शामिल हैं.
कोरोना महामारी के बाद से लगे प्रतिबंधों के बाद इस महीने की शुरुआत में सऊदी अरब ने तीर्थ-यात्रियों के पहले जत्थे का स्वागत किया है. हज यात्रियों के लिए कोरोना वायरस संक्रमण को लेकर जारी ग्लोबल हेल्थ गाइडलाइन्स के दिशा-निर्देशों का सख़्ती से पालन किया जा रहा है.
देश के हज मंत्रालय के मोहम्मद अल-बिजावी ने एक चैनल से बातचीत में कहा कि आज हमने इस साल के तीर्थ-यात्रियों के पहले जत्थे, जो कि इंडोनेशिया से है, उसका स्वागत किया है. दूसरे देशों से जैसे भारत और मलेशिया से विमान आना जारी रहेंगे.
साल 2019 में सबसे बड़ी संख्या में क़रीब 25 लाख लोगों ने दुनिया की इस सबसे बड़ी तीर्थ यात्रा में हिस्सा लिया था. कोरोना महामारी के कारण 2020 में कई तरह के प्रतिबंध लगाते हुए तीर्थ-यात्रियों की संख्या को सीमित कर दिया गया था.
शिव सेना के अपने ही घर में संग्राम छिड़ा हुआ है और ऐसे में शिव सेना हर उस विकल्प पर विचार कर रही है, जिससे महाराष्ट्र में सरकार बचाई जा सके.
एक ओर जहाँ बीजेपी का मानना है कि शिव सेना में फूट उसके हित में काम कर सकती है, वहीं इस पूरे घटनाक्रम पर नज़र रखने वाले बीजेपी के नेताओं का मानना है कि उन्हें पूरी सावधानी से आगे बढ़ने की ज़रूरत है.
उन्हें इस बात की आशंका है कि एक भी ग़लत क़दम से साल 2019 में सरकार बनाने की नकाम कोशिश का दोहराव हो सकता है.
बीजेपी के एक नेता ने मीडिया को बताया कि हम सिर्फ़ एक प्लान पर काम नहीं कर रहे हैं. हम प्लान ए और प्लान बी दोनों लेकर चल रहे हैं.
उन्होंने बताया, “हमारे पहले प्लान के मुताबिक़, अगर शिव सेना सीधे तौर पर विभाजित हो जाती है, तो बाजेपी के पास एक अच्छा मौक़ा होगा कि वो बाग़ी नेताओं के साथ गठबंधन करके सरकार बना ले. यहाँ मामला ये है कि शिव सेना के बाग़ी नेता एकनाथ शिंदे को अपने पास दो-तिहाई बहुमत बनाए रखना होगा. वैकल्पिक तौर पर हम शिव सेना में पड़ी फूट का फ़ायदा विधानसभा और लोकसभा चुनावों में चुनावी लाभ के लिए लेने की योजना बना रहे हैं.”
पार्टी नेताओं ने यह भी कहा कि राज्य विधानमंडल का मॉनसून सत्र 18 जुलाई से शुरू होगा इसलिए बीजेपी महाविकास अघाड़ी सरकार के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव लाएगी.
मीडिया रिपोर्ट्स की ख़बर के अनुसार, उम्मीद जताई जा रही है कि शिंदे अपने साथ शिवसेना के 30-35 विधायकों को बनाए रखने में कामयाब रहेंगे.
एक सूत्र ने बताया, "अगर शिंदे ऐसा करने में कामयाब रहते हैं तो इससे बीजेपी के साथ जाने की उम्मीद भी प्रबल बनी रहेगी. हालांकि अंतिम फ़ैसला क्या होगा यह अभी तय होना बाक़ी है."
106 विधायकों वाली बीजेपी राज्य में सबसे बड़ी पार्टी है. कुछ छोटे दल और निर्दलीय उम्मीदवार मिलाकर उसके पास 27 अतिरिक्त विधायकों का समर्थन है. इस तरह बीजेपी के 133 विधायक और शिव सेना के 37 बाग़ी विधायक मिलकर इस संख्या को 170 कर देंगे. सरकार बनाने के लिए 145 विधायक ही चाहिए. (bbc.com)
महाराष्ट्र का राजनीतिक संकट बढ़ता ही जा रहा है. ख़बर है कि शिव सेना के क़रीब 30 विधायक, एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में सूरत में अपना होटल छोड़कर तड़के सुबह असम के गुवाहाटी के लिए रवाना हुए.
न्यूज़ एजेंसी पीटीआई के के मुताबिक़, बाग़ी नेताओं का ये दल गुवाहाटी पहुुँच चुका है.
महाराष्ट्र के बाग़ी नेता एकनाथ शिंदे और शिवसेना के लगभग 30 बाग़ी विधायक गुजरात के सूरत शहर में डुमास रोड पर स्थित एक होटल में रुके हुए थे. ये लोग सोमवार रात से ही सूरत के इस होटल में ठहरे हुए थे.
हालांकि एकनाथ शिंदे का दावा है कि उनके साथ 40 विधायक हैं.
अभी इन विधायकों के गुवाहाटी जाने का कारण बहुत अधिक स्पष्ट नहीं है.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़, बुधवार तड़के सुबह ही ये विधायक होटल में एक लग्ज़री बस में बैठकर हवाई अड्डे ले जाए गए. पहले गुजरात और अब उन्हें आनन-फानन में एक और बीजेपी शासित राज्य में शिफ़्ट किया गया है.
हालांकि मंगलवार को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने शिवसेना के नेता मिलिंद नार्वेकर और रवींद्र फाटक को इन बाग़ी नेताओं से चर्चा करने के लिए भेजा था. लेकिन बातचीत से संभवत: कोई हल नहीं निकल सका है.
बीजेपी के एक नेता ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया है कि टकराव की स्थिति से बचने के लिए इन नेताओं को गुवाहाटी ले जाया गया है.
इन बाग़ी नेताओं का नेतृत्व एकनाथ शिंदे कर रहे हैं.
शिंदे के क़रीबी सूत्रों का दावा है कि उनके साथ क़रीब 30 बाग़ी विधायक हैं.
महाराष्ट्र के एक वरिष्ठ बीजेपी नेता ने सोमवार देर रात न्यूज़ एजेंसी पीटीआई को बताया, "सुरक्षा कारणों से विधायकों को गुवाहाटी स्थानांतरित किया जा रहा है. सूरत, मुंबई से काफी नज़दीक है, इसलिए शिवसेना कार्यकर्ताओं की ओर से कुछ टकराव की स्थिति पैदा हो सकती है." (bbc.com)
रायपुर, 22 जून। उरला पुलिस ने बलात्कार के आरोपी को पत्थलगांव जशपुर से गिरफ्तार किया। उस पर बालतसंग के अलावा जबरदस्ती गर्भपात कराने का भी था आरोप। घटना के बाद से लगातार फरार था ।
पुलिस के मुताबिक 2019 में पीड़िता सम्बलपुर उड़ीसा कांसाबेल से रॉयल बस में सवार होकर रायपुर आ रही थी। उसी दौरान पीड़िता का परिचय रॉयल बस सर्विस के परिचालक रतनमणी साहू निवासी घरसिया बथान हीरापुर पत्थलगांव जशपुर से हुआ । यात्रा के दौरान बातचीत में एक-दूसरे को मोबाईल नंबर दिया। उसके बाद से लगातार बातचीत के दौरान आरोपी ने पीड़िता को शादी करने का झांसा दिया और आरोपी द्वारा अपने किराये के मकान धनीराम प्लाईवुड कंपनी बेन्द्री के लेबर क्वॉटर उरला रायपुर में लाकर रखा। झांसा देकर लंबे समय तक बलात्संग करता रहा । इस बीच दो बार जबरन गर्भपात कराने का आरोप भी है ! । प्रार्थिया रिपोर्ट दर्ज कराने पश्चात आरोपी का पता तलाश लगातार पुलिस कर रही थी । उरला पुलिस ने विशेष टीम भेजकर उनके गृह ग्राम घरसिया बथान हीरापुर थाना पत्थलगांव के पास से लंबे प्रयास के बाद पकड़ा गया। उसके खिलाफ़ धारा - 376(2)एन, 506बी,312 भादवि के तहत अपराध दर्ज किया गया है।
-रवि प्रकाश
भारत के राष्ट्रपति चुनाव में 29 जून तक नामांकन, 18 जुलाई को मतदान और 21 जुलाई को नतीजा आएगा. सत्ताधारी बीजेपी के अगुआई वाला गठबंधन एनडीए और विपक्ष ने राष्ट्रपति उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है.
पिछली बार के राष्ट्रपति चुनाव में बीजेपी ने बिहार के तत्कालीन राज्यपाल रामनाथ कोविंद को अपना उम्मीदवार बनाया था और इस बार झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को प्रत्याशी बनाया है.
द्रौपदी मुर्मू झारखंड की पहली महिला और आदिवासी राज्यपाल थीं. यहां से सेवानिवृति के बाद वे अपने गृह राज्य ओड़िशा के मयूरभंज जिले के रायरंगपुर में रहती हैं. यह उनके पैतृक गांव बैदापोसी का प्रखंड मुख्यालय है. वे झारखंड में सबसे लंबे वक़्त (छह साल से कुछ अधिक वक़्त) तक राज्यपाल रहीं.
द्रौपदी मुर्मू भारत की पहली आदिवासी और दूसरी महिला राष्ट्रपति बन सकती हैं. वह एनडीए की उम्मीदवार हैं और एनडीए मतों के मामले में जीत के क़रीब है.
विपक्षी पार्टियों ने यशवंत सिन्हा को इस पद के लिए चुनाव मैदान में उतारा है. भारतीय प्रशासनिक सेवा (आइएएस) के पूर्व अधिकारी यशवंत सिन्हा झारखंड की हजारीबाग सीट से बीजेपी के लोकसभा सांसद रह चुके हैं और केंद्र सरकार के मंत्री भी. वे लंबे वक्त तक बीजेपी के ही नेता रहे, लेकिन हाल के वर्षो में वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ लगातार मुखर होते चले गए और अंततः बीजेपी से अलग होना पड़ा.
इन दिनों वे ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस से जुड़े थे. उनके बेटे और हजारीबाग के मौजूदा लोकसभा सांसद जयंत सिन्हा अब भी बीजेपी में हैं. जयंत सिन्हा के लिए पसोपेश की स्थिति होगी कि वह मतदान पिता के पक्ष में करें या पार्टी के पक्ष में.
यह पहला मौक़ा है, जब भारत के राष्ट्रपति के चुनाव में दोनों प्रमुख उम्मीदवारों का नाता झारखंड से है. इस कारण यह छोटा-सा राज्य अचानक सुर्खियों में आ गया है.
क्यों ख़ास हैं द्रौपदी मुर्मू
21 जून की देर शाम बीजेपी के अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने जब राष्ट्रपति चुनाव के लिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के प्रत्याशी के तौर पर द्रौपदी मुर्मू के नाम की घोषणा की, तो वह नई दिल्ली से करीब 1600 किलोमीटर दूर रायरंगपुर (ओड़िशा) के अपने घर में थीं.
इससे ठीक एक दिन पहले 20 जून को उन्होंने अपना 64 वां जन्मदिन बड़ी सादगी से मनाया था. तब उन्हें यह विश्वास नहीं रहा हो कि महज़ 24 घंटे बाद वे देश के सबसे बड़े पद के लिए सत्ता पक्ष की तरफ़ से उम्मीदवार बनाई जाने वाली हैं. लेकिन, ऐसा हुआ और अब सारे कयासों पर विराम लग चुका है.
अपनी उम्मीदवारी की घोषणा के बाद उन्होंने स्थानीय मीडिया से कहा : "मैं आश्चर्यचकित हूँ और ख़ुश भी क्योंकि मुझे राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बनाया गया है. मुझे टेलीविजन देखकर इसका पता चला. राष्ट्रपति एक संवैधानिक पद है और मैं अगर इस पद के लिए चुन ली गई, तो राजनीति से अलग देश के लोगों के लिए काम करूंगी. इस पद के लिए जो संवैधानिक प्रावधान और अधिकार हैं, मैं उसके अनुसार काम करना चाहूंगी. इससे अधिक मैं फ़िलहाल और कुछ नहीं कह सकती."
हालांकि, सियासी गलियारे और मीडिया में उनके नाम की चर्चाएं पहले से चल रही थीं. साल 2017 में हुए राष्ट्रपति चुनाव में भी उनके नाम की चर्चा जोर-शोर से चली थी, लेकिन अंतिम वक़्त में बीजेपी ने तब बिहार के राज्यपाल रहे रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बना दिया था. वे चुनाव जीते भी और बतौर राष्ट्रपति अगामी 24 जुलाई को उनका कार्यकाल ख़त्म हो रहा है.
कभी क्लर्क भी रहीं द्रौपदी मुर्मू
साल 1979 में भुवनेश्वर के रमादेवी महिला कॉलेज से बीए पास करने वाली द्रौपदी मुर्मू ने अपने पेशेवर करियर की शुरुआत ओड़िशा सरकार के लिए क्लर्क की नौकरी से की. तब वह सिंचाई और ऊर्जा विभाग में जूनियर सहायक थीं. बाद के सालों में वह शिक्षक भी रहीं.
उन्होंने रायरंगपुर के श्री अरविंदो इंटिग्रल एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर में मानद शिक्षक के तौर पर पढ़ाया. नौकरी के दिनों में उनकी पहचान एक मेहनती कर्मचारी के तौर पर थी.
सियासी करियर
द्रौपदी मुर्मू ने अपने सियासी करियर की शुरुआत वार्ड काउंसलर के तौर पर साल 1997 में की थी. तब वे रायरंगपुर नगर पंचायत के चुनाव में वॉर्ड पार्षद चुनी गईं और नगर पंचायत की उपाध्यक्ष बनाई गईं.
उसके बाद वे राजनीति मे लगातार आगे बढ़ती चली गईं और रायरंगपुर विधानसभा सीट से बीजेपी के टिकट पर दो बार (साल 2000 और 2009) विधायक भी बनीं. पहली दफ़ा विधायक बनने के बाद वे साल 2000 से 2004 तक नवीन पटनायक के मंत्रिमंडल में स्वतंत्र प्रभार की राज्यमंत्री रहीं.
उन्होंने मंत्री के बतौर क़रीब दो-दो साल तक वाणिज्य और परिवहन विभाग और मत्स्य पालन के अलावा पशु संसाधन विभाग संभाला. तब नवीन पटनायक की पार्टी बीजू जनता दल (बीजेडी) और बीजेपी ओड़िशा मे गठबंधन की सरकार चला रही थी.
साल 2009 में जब वे दूसरी बार विधायक बनीं, तो उनके पास कोई गाड़ी नहीं थी. उनकी कुल जमा पूंजी सिर्फ़ 9 लाख रुपये थी और उन पर तब चार लाख रुपये की देनदारी भी थी.
उनके चुनावी शपथ पत्र के मुताबिक़, तब उनके पति श्याम चरण मुर्मू के नाम पर एक बजाज चेतक स्कूटर और एक स्कॉर्पियो गाड़ी थी. इससे पहले वे चार साल तक मंत्री रह चुकी थीं. उन्हें ओड़िशा में सर्वश्रेष्ठ विधायकों को मिलने वाला नीलकंठ पुरस्कार भी मिल चुका है.
साल 2015 में जब उन्हें पहली बार राज्यपाल बनाया गया, उससे ठीक पहले तक वे मयूरभंज जिले की बीजेपी अध्यक्ष थीं. वह साल 2006 से 2009 तक बीजेपी के एसटी (अनुसूचित जाति) मोर्चा की ओड़िशा प्रदेश अध्यक्ष रह चुकी हैं.
वह दो बार बीजेपी एसटी मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य भी रह चुकी हैं. साल 2002 से 2009 और साल 2013 से अप्रैल 2015 तक इस मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य रहीं. इसके बाद वह झारखंड की राज्यपाल मनोनीत कर दी गईं और बीजेपी की सक्रिय राजनीति से अलग हो गईं.
झारखंड की पहली महिला राज्यपाल
18 मई 2015 को उन्होंने झारखंड की पहली महिला और आदिवासी राज्यपाल के रूप में शपथ ली थी. वह छह साल, एक महीना और 18 दिन इस पद पर रहीं. वह झारखंड की पहली राज्यपाल हैं, जिन्हें अपने पाँच साल के टर्म को पूरा करने के बाद भी उनके पद से नहीं हटाया गया.
वह यहाँ की लोकप्रिय राज्यपाल रहीं, जिनकी प्रतिष्ठा सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों खेमों में थी.
अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने कई महत्वपूर्ण फ़ैसले लिए. हाल के सालों में जब कुछ राज्यपालों पर पॉलिटिकल एजेंट की तरह काम करने के आरोप लगने लगे हैं, द्रौपदी मुर्मू ने राज्यपाल रहते हुए ख़ुद को इन विवादों से दूर रखा.
उन्होंने इस दौरान लिए गए अपने कुछ फ़ैसलों से बीजेपी गठबंधन की पूर्ववर्ती रघुबर दास सरकार और झारखंड मुक्ति मोर्चा गठबंधन की मौजूदा हेमंत सोरेन की सरकारों को उनके कुछ फ़ैसलों पर पुनर्विचार की भी नसीहत दी. ऐसे कुछ विधेयक उन्होंने बगैर लाग-लपेट लौटा दिए.
वह साल 2017 के शुरुआती महीने थे. झारखंड में बीजेपी के नेतृत्व वाली रघुबर दास सरकार थी और उनके संबंध प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से काफ़ी मज़बूत माने जाते थे.
उस सरकार ने अदिवासियों की ज़मीनों की रक्षा के लिए ब्रिटिश हुकूमत के वक़्त बने छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (सीएनटी एक्ट) और संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम (एसपीटी एक्ट) के कुछ प्रावधानों में संशोधन का प्रस्ताव तैयार कराया.
विपक्ष के हंगामे और वॉकआउट के बावजूद रघुबर दास की सरकार ने उस संशोधन विधेयक को झारखंड विधानसभा से पारित करा दिया. फिर इसे राज्यपाल की स्वीकृति के लिए भेजा गया. तब राज्यपाल रहीं द्रौपदी मुर्मू ने मई 2017 में यह विधेयक बगैर दस्तखत सरकार को वापस कर दिया और पूछा कि इससे आदिवासियों को क्या लाभ होगा. सरकार इसका जवाब नहीं दे पाई और यह विधेयक क़ानूनी रूप नहीं ले सका.
तब बीजेपी के ही नेता और लोकसभा के पूर्व उपाध्यक्ष कड़िया मुंडा और पूर्व मुख्यमंत्री (मौजूदा केंद्रीय मंत्री) अर्जुन मुंडा ने इस विधेयक का विरोध किया था और राज्यपाल को चिट्ठी लिखी थी. उसी दौरान जमशेदपुर मे पत्रकारों से बात करते हुए द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि इस संशोधन विधेयक के खिलाफ राजभवन को क़रीब 200 आपत्तियां मिली थीं.
ऐसे में इस पर दस्तख़त करने का कोई सवाल ही नहीं था. तब उन्होंने बताया कि मैंने सरकार से कुछ बातें स्पष्ट करने के लिए कहा है.
उसी दौरान वह दिल्ली गईं और वहाँ प्रधानमंत्री समेत कुछ महत्वपूर्ण मंत्रियों से भी मिलीं. इससे पहले तत्कालीन मुख्य सचिव राजबाला वर्मा ने तीन जून को और तब के मुख्यमंत्री रघुबर दास ने 20 जून को राज्यपाल से मुलाक़ात की लेकिन द्रौपदी मुर्मू पर कोई असर नहीं हुआ. वे अपने फ़ैसले पर अडिग रहीं.
उसी सरकार के कार्यकाल के दौरान जब पत्थलगड़ी विवाद हुआ, तो द्रौपदी मुर्मू ने आदिवासी स्वशासन व्यवस्था के तहत बने ग्राम प्रधानों और मानकी, मुंडाओं को राजभवन में बुलाकर उनसे बातचीत की और इस मसले के समाधान की कोशिशें की.
दिसंबर 2019 में रघुबर दास सरकार के पतन के बाद जेएमएम नेता हेमंत सोरेन झारखंड के मुख्यमंत्री बने. कुछ महीने बाद उनी सरकार ने जनजातीय परामर्शदात्री समिति (टीएसी) के गठन में संशोधन से संबंधित एक विधेयक राज्यपाल की मंजूरी के लिए भेजा लेकिन द्रैपदी मुर्मू ने उसे भी सरकरा को लौटा दिया. वह विधेयक टीएसी के गठन में राज्यपाल की भूमिका को ख़त्म करता था.
राज्यपाल रहते हुए वे स्कूलों-कॉलेजों का लगातार भ्रमण करती रहीं. इस कारण कस्तूरबा स्कूलों की हालत सुधरी. उन्होंने साल 2016 में विश्वविद्यालयों के लिए लोक अदालत लगवायी और विरोध के बावजूद चांसलर पोर्टल को शुरू कराया.
इससे विश्वविद्यालयों में नामांकन समेत बाक़ी प्रक्रियाएं ऑनलाइन किए जाने का रास्ता खुला. वे वीडियो कांफ्रेसिंग के माध्यम से भी विभिन्न कुलपतियों से संवाद करती रहीं. उन्होंने जनजातीय भाषाओं की पढ़ाई को लेकर लगातार निर्देश दिए. इसके कारण विश्वविद्यालयों में लंबे वक़्त से बंद पड़ी झारखंड की जनजातीय और क्षेत्रीय भाषाओं के शिक्षकों की नियुक्ति फिर से होने लगी.
राज्यपाल रहते हुए द्रौपदी मुर्मू ने सभी धर्मो के लोगों को राजभवन में एंट्री दी. उनसे मिलने वालों में अगर हिंदू धर्मावलंबी शामिल रहे, तो उन्होंने मुस्लिम, सिख और ईसाई धर्मावलंबियों को भी राजभवन में उतनी ही इज़्ज़त दी.
संघर्षों से भरा रहा जीवन
रायरंगपुर (ओड़िशा) से रायसीना हिल्स (राष्ट्रपति भवन) पहुँचने की होड़ में शामिल द्रौपदी मुर्मू का शुरुआती जीवन संघर्षों से भरा रहा. उनका जन्म भारत की आज़ादी के क़रीब 11 साल बाद 20 जून 1958 को मयूरभंज जिले के बैदापोसी गाँव में बिरंची नारायण टुडू की पुत्री के रुप में हुआ. वह संथाल आदिवासी हैं और उनके पिता अपनी पंचायत के मुखिया रहे हैं. अगर वह राष्ट्रपति चुनी जाती हैं, तो वे आज़ादी के बाद जन्म लेने वाली पहली राष्ट्रपति होंगी.
उनके व्यक्तिगत जीवन के बारे में कई बातें सार्वजनिक नहीं हैं. उनकी शादी श्याम चरण मुर्मू से हुई थी लेकिन कम उम्र में ही उनका निधन हो गया. उनकी तीन संतानें थीं लेकिन इनमें से दोनों बेटों की मौत भी असमय हो गई.
उनके एक बेटे लक्ष्मण मुर्मू की मौत अक्टूबर 2009 में संदिग्ध परस्थितियों में हो गई थी. तब वह सिर्फ़ 25 साल के थे. तब की मीडिया रिपोर्टों के अनुसार अपनी मौत से एक रात पहले वह भुवनेश्वर में अपने दोस्तों के साथ एक होटल में डिनर के लिए गए थे.
वहाँ से लौटने के बाद उनकी तबीयत ख़राब हो गई. तब वह अपने चाचा के घर में रहते थे. उन्होंने घर लौटकर सोने की इच्छा ज़ाहिर की और उन्हें सोने दिया गया. सुबह बहुत देर उनके तक कमरे का दरवाज़ा नहीं खुला तो घरवाले उन्हें पहले एक निजी अस्पताल और बाद में वहाँ के कैपिटल हॉस्पिटल ले गए, जहाँ डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया.
उनकी एकमात्र जीवित संतान उनकी बेटी इतिश्री मुर्मू हैं, जो रांची में रहती हैं. उनकी शादी गणेश चंद्र हेम्बरम से हुई है. वह भी रायरंगपुर के रहने वाले हैं और इनकी एक बेटी आद्याश्री हैं. राज्यपाल रहते हुए द्रौपदी मुर्मू ने अपनी बेटी-दामाद और नतिनी के साथ कुछ पारिवारिक कार्यक्रमों में हिस्सा लिया. वे ज़्यादातर मंदिरों में गए, जिससे जुड़ी तस्वीरें तब मीडिया में आईं. इसके अलावा उनके परिवार वालों के बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है. (bbc.com)
गुवाहाटी, 22 जून। शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में महाराष्ट्र के 40 बागी विधायकों का एक समूह बुधवार सुबह गुवाहाटी पहुंचा। यहां उन्हें कड़ी सुरक्षा के बीच शहर के बाहरी इलाके में एक लग्ज़री होटल में ले जाया गया है।
हवाई अड्डे पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद पल्लब लोचन दास और सुशांत बोरगोहेन ने इन बागी विधायकों का स्वागत किया।
शिंदे ने पहले हवाई अड्डे के बाहर इंतजार कर रहे पत्रकारों से बात करने से इनकार कर दिया था, हालांकि बाद में उन्होंने कहा कि उनके पास ‘‘40 विधायकों का समर्थन’’ है।
ये विधायक सूरत से यहां पहुंचे हैं और उन्हें असम राज्य परिवहन निगम की तीन बसों में होटल ले जाया गया है।
ऐसी अटकले हैं कि मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा इन बागी विधायकों से दिन में मुलाकात कर सकते हैं। हालांकि, भाजपा या मुख्यमंत्री कार्यालय ने इस बैठक की अभी तक पुष्टि नहीं की है।
भाजपा से जुड़े सूत्रों के अनुसार, विधायकों को मंगलवार को मुंबई से सूरत लाया गया और सुरक्षा कारणों के चलते उन्हें गुवाहाटी ले जाने का फैसला किया गया।
विधायकों की बगावत से महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास आघाड़ी (एमवीए) सरकार संकट में आ गयी है। (भाषा)
नयी दिल्ली, 22 जून। केंद्र ने राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मू को केन्द्रीय रिज़र्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के जवानों से लैस ‘जेड प्लस’ सुरक्षा प्रदान की है। अधिकारियों ने बुधवार को यह जानकारी दी।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि सशस्त्र दस्ते ने बुधवार तड़के मुर्मू (64) की सुरक्षा का जिम्मा संभाल लिया।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे. पी. नड्डा ने पार्टी की संसदीय बोर्ड की बैठक के बाद एक संवाददाता सम्मेलन में झारखंड की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू की राजद की ओर से राष्ट्रपति पद की प्रत्याशी होने की घोषणा की थी। इस बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित पार्टी के कई वरिष्ठ नेता शामिल हुए थे।
अधिकारियों ने बताया कि इस घोषणा के तुरंत बाद, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सीआरपीएफ को मुर्मू की सुरक्षा की जिम्मेदारी संभालने के लिए अपने ‘वीआईपी’ सुरक्षा दल को तैनात करने का निर्देश दिया था। (भाषा)
गुवाहाटी/मुंबई, 22 जून। शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे ने बुधावार को दावा किया कि उनके पास 40 विधायकों का समर्थन है।
पार्टी के खिलाफ जाने के बाद पहली बार शिंदे ने गुवाहाटी हवाई अड्डे पर पहुंचने पर पत्रकारों से बात की।
शिंदे शिवसेना के कुछ विधायकों के साथ सोमवार देर रात मुंबई से निकले थे और वहां से गुजरात के सूरत शहर में एक होटल में ठहरे थे। हालांकि, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेताओं से बातचीत करने के बाद उन्होंने गुवाहाटी जाने का फैसला किया।
गुवाहाटी हवाई अड्डे के बाहर शिंदे ने पत्रकारों से कहा, ‘‘ यहां 40 विधायक मेरे साथ हैं। इनके अलावा 10 और विधायक जल्द मेरे साथ आएंगे। मैं किसी की आलोचना नहीं करना चाहता। हम उस शिवसेना को बनाए रहने के इच्छुक हैं जिसे दिवंगत बाला साहेब ठाकरे ने बनाया था।’’
मुख्यमंत्री पद साझा करने के मुद्दे को लेकर 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद शिवसेना ने अपने दीर्घकालिक सहयोगी भाजपा के साथ गठबंधन तोड़ लिया था। शिवसेना ने तब राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) और कांग्रेस के साथ मिलकर राज्य में महा विकास आघाड़ी (एमवीए) सरकार का गठन किया था।
शिवसेना के विधानसभा में अभी 56 विधायक हैं। (भाषा)
मथुरा (उत्तर प्रदेश), 22 जून। पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ कथित रूप से अपमानजनक टिप्पणी करने के आरोप में भाजपा से निलंबित पूर्व पार्टी प्रवक्ता नूपुर शर्मा का समर्थन करने के चलते दल से निष्कासित किए गए नवीन जिंदल ने मंगलवार को कहा कि उन्हें दुनिया भर से जान से मारने की धमकी मिल रही है।
जिंदल मंगलवार को सपरिवार वृन्दावन में बांकेबिहारी के दर्शन करने पहुंचे। दर्शन के बाद संवाददाताओं से बातचीत में उन्होंने कहा कि उनका इरादा कभी किसी भी धर्म या पंथ के लोगों की आस्था को ठेस पहुंचाने का नहीं था, मगर अब उन्हें दुनिया भर से जान से मारने की धमकियां मिल रही हैं। इसी कारण उनके परिवार ने तो दिल्ली में रहना ही छोड़ दिया है।
जिंदल ने कहा कि धमकियों के बारे में सूचना दिल्ली पुलिस को दे दी गई है, वह अपना काम कर रही है।
उन्होंने सफाई देते हुए कहा, "वास्तविकता यह है कि हमारे हिन्दू देवी-देवताओं के बारे में जिस मानसिकता के लोगों ने अभद्र भाषा का उपयोग किया था, मैंने बस उसी मानसिकता के लोगों से सवाल पूछा था। मेरा किसी धर्म या पंथ की आस्था को ठेस पहुंचाने का उद्देश्य कभी नहीं रहा। हम तो सर्व धर्म सम्भाव में विश्वास रखते हैं।"
गौरतलब है कि टीवी चैनल पर बहस के दौरान भारतीय जनता पार्टी की तत्कालीन राष्ट्रीय प्रवक्ता नूपुर शर्मा ने कथित रूप से पैगम्बर मुहम्मद के संबंध में विवादित बयान दिया था। उसके बाद दिल्ली भाजपा के नेता रहे नवीन जिन्दल भी उनके समर्थन में उतर आए थे और उन्होंने ट्वीट कर अपने विचार साझा किए थे।
इसके बाद पार्टी ने उनके विचारों को पार्टी की विचार धारा से इतर मानते हुए जहां नूपुर शर्मा को प्रवक्ता एवं पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित कर दिया था, वहीं पांच जून को नवीन जिन्दल को पार्टी से बर्खास्त कर दिया था। (भाषा)
नयी दिल्ली, 22 जून। दिल्ली पुलिस ने मंगलवार को कांग्रेस के 197 कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया जिसमें 18 सांसद शामिल हैं। अधिकारियों ने बताया कि प्रवर्तन निदेशालय द्वारा राहुल गांधी को समन करने के विरोध में कार्यकर्ताओं ने निषेधाज्ञा का उल्लंघन करते हुए जुलूस निकाला जिसके लिए उन्हें हिरासत में लिया गया।
अधिकारियों ने कहा कि इस दौरान महिला कांग्रेस की कार्यवाहक अध्यक्ष नेटा डिसूजा ने हिरासत में लिए जाने के दौरान पुलिसकर्मियों पर कथित तौर पर थूका जिसके लिए उनके विरुद्ध एक आपराधिक मामला दर्ज किया जा रहा है।
पुलिस के अनुसार, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने जंतर मंतर पर ‘सत्याग्रह’ करने की अनुमति मांगी थी और एक हजार कार्यकर्ताओं को प्रदर्शन की इजाजत दी गई थी।
विशेष पुलिस आयुक्त (कानून व्यवस्था) सागर प्रीत हुड्डा ने कहा कि जंतर मंतर पर धरना देने की बजाय कांग्रेस कार्यकर्ता 24 अकबर रोड पर पार्टी मुख्यालय पर एकत्र हुए और निषेधाज्ञा का उल्लंघन करते हुए जुलूस निकाला। (भाषा)
मुंबई, 22 जून। शिवसेना के एक वरिष्ठ नेता ने दावा किया है कि पार्टी के बागी नेता एकनाथ शिंदे ने सोमवार को मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से आग्रह किया कि वह भारतीय जनता पार्टी के साथ फिर से गठबंधन कर लें।
नेता ने कहा कि ठाकरे ने अपने विश्वस्त मिलिंद नारवेकर और शिंदे के साथी रवींद्र फाटक को बागी नेता से बात करने के लिए सूरत भेजा था। उन्होंने कहा कि सूरत से ठाकरे को एक कॉल की गई थी। गौरतलब है कि शिंदे सोमवार रात से पार्टी के कुछ अन्य विधायकों के साथ सूरत में हैं।
नेता ने कहा, ‘‘मुख्यमंत्री ने शिंदे से फोन पर बात भी की जिस दौरान शिंदे ने ठाकरे से कहा कि वह भाजपा के साथ गठबंधन कर लें और कांग्रेस एवं राकांपा के साथ गठबंध तोड़ लें।’’
नेता ने कहा कि इस पर ठाकरे ने क्या जवाब दिया यह ज्ञात नहीं है। (भाषा)
नयी दिल्ली, 22 जून। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के वरिष्ठ नेता इंद्रेश कुमार ने मंगलवार को यशवंत सिन्हा को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाये जाने को लेकर विपक्षी दलों पर कटाक्ष किया और कहा कि सिन्हा पूर्व में भाजपा के साथ रहे हैं।
कुमार ने कहा कि विपक्षी दलों ने सिन्हा को ‘‘जल्दबाजी’’ में इसलिए चुना क्योंकि उन्हें अपने खेमे से कोई उम्मीदवार नहीं मिल पा रहा था।
आरएसएस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य कुमार ने एक ऑडियो संदेश में कहा, ‘‘बेहतर होता कि सरकार और विपक्षी दल देश के (अगले) राष्ट्रपति के लिए आम सहमति पर पहुंच जाते। लेकिन, विपक्षी दलों ने अपने संयुक्त उम्मीदवार को उतारने का फैसला किया है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘जिस व्यक्ति को उन्होंने (विपक्षी दलों ने) राष्ट्रपति चुनाव के लिए अपने संयुक्त उम्मीदवार के रूप में चुना है, उनकी जड़ें भाजपा, जनसंघ से जुड़ी हैं।’’
कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी सहित कई प्रमुख विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए मंगलवार को पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा को अपना उम्मीदवार चुना।
राष्ट्रपति पद के लिए 18 जुलाई को चुनाव होने हैं। राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार पर फैसला करने के लिए राकांपा प्रमुख शरद पवार द्वारा बुलाई गई बैठक के लिए विपक्षी दलों के नेता संसद भवन में एकत्र हुए और बैठक में सिन्हा के नाम पर सर्वसम्मति बनी। (भाषा)
नयी दिल्ली, 22 जून। बीजू जनता दल (बीजद) प्रमुख एवं ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने द्रौपदी मुर्मू को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत राजग द्वारा राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार बनाये जाने पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए मंगलवार को कहा कि यह उनके राज्य के लोगों के लिए गर्व का क्षण है।
पटनायक ने मुर्मू को उनकी उम्मीदवारी पर बधाई देते हुए ट्वीट किया, ‘‘माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने मेरे साथ इस पर चर्चा की तो मुझे खुशी हुई। यह वास्तव में ओडिशा के लोगों के लिए गर्व का क्षण है।’’
पटनायक ने कहा कि उन्हें यकीन है कि मुर्मू ‘‘देश में महिला सशक्तिकरण के लिए एक उदाहरण स्थापित करेंगी।’’
पिछले राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा ने दलित नेता रामनाथ कोविंद को अपना उम्मीदवार बनाया था और इस बार एक आदिवासी नेता को इस पद के लिए उम्मीदवार बनाकर समाज में एक संदेश देने की कोशिश की है।
भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा ने पार्टी के संसदीय बोर्ड की बैठक के बाद एक संवाददाता सम्मेलन में मुर्मू के नाम की घोषणा की, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य वरिष्ठ नेता शामिल थे।(भाषा)
रायरंगपुर (ओडिशा), 22 जून। सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की ओर से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू ने मंगलवार को कहा कि उन्हें ओडिशा के सभी दलों के सांसदों और विधायकों का समर्थन मिलने की उम्मीद है क्योंकि वह उस प्रदेश की बेटी हैं।
जनजातीय नेता से राज्यपाल तक का सफर तय करने वाली मुर्मू ने कहा कि उन्हें टीवी के जरिये जानकारी मिली कि उन्हें राजग की ओर से देश के सर्वोच्च पद का प्रत्याशी घोषित किया गया है।
मुर्मू ने रायरंगपुर में अपने आवास पर संवाददाताओं से कहा, “मैं आश्चर्यचकित और खुश हूं। मयूरभंज जिले से आने वाली एक आदिवासी महिला के रूप में मैंने कभी नहीं सोचा था कि मुझे इस पद का उम्मीदवार बनाया जाएगा।” उन्होंने कहा कि राजग सरकार ने आदिवासी महिला का चयन कर के भाजपा के नारे “सबका साथ सबका विश्वास” को सिद्ध कर दिया है।
यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें बीजू जनता दल (बीजद) का समर्थन मिलेगा, मुर्मू ने कहा, “मुझे आशा है कि मुझे ओडिशा के सभी विधायकों और सांसदों का समर्थन प्राप्त होगा।” राष्ट्रपति चुनाव के लिए इलेक्टोरल कॉलेज में बीजद के पास 2.8 प्रतिशत से ज्यादा मत हैं। उन्होंने कहा, “मैं इस प्रदेश की बेटी हूं। मुझे एक ओड़िया होने के नाते सबसे यह अनुरोध करने का अधिकार है कि मेरा समर्थन करें।”
संथाल समुदाय में जन्मी मुर्मू ने अपने राजनीतिक करियर की शुरूआत 1997 में रायरंगपुर नगर पंचायत के सदस्य के रूप में की थी और आगे बढ़ते-बढ़ते 2000 में बीजद-भाजपा गठबंधन सरकार में मंत्री बनीं और 2015 में झारखंड की पहली महिला राज्यपाल बनीं।
रायरंगपुर सीट से दो बार विधायक रह चुकीं मुर्मू 2009 में उस वक्त भी अपनी सीट से जीती थीं जब बीजद ने चुनाव से कुछ ही सप्ताह पहले भाजपा से गठबंधन तोड़ लिया था। इस चुनाव में बीजद को भारी जीत मिली थी।
मुर्मू ने कहा, ‘‘मुझे इस अवसर की आशा नहीं थी। मैं पड़ोसी राज्य झारखंड की राज्यपाल बनने के बाद छह साल से भी ज्यादा वक्त से राजनीतिक कार्यक्रमों में हिस्सा नहीं ले रही थी। आशा करती हूं सभी मेरा साथ देंगे।’’
द्रौपदी की उम्मीदवारी की घोषणा के बाद उनके पैतृक मयूरभंज जिले में खुशी का माहौल है। बड़ी संख्या में लोग उन्हें बधाई दे रहे हैं।
वहीं, बारगढ़ से भाजपा सांसद सुरेश पुजारी ने कहा, ‘‘आदिवासी महिला को राष्ट्रपति चुनाव के लिए उम्मीदवार बनाने के पार्टी के फैसले से हम सभी बहुत खुश हैं। ऐसी पहली बार हुआ है कि इस धरती की बेटी को इस पद के चुना जाएगा।’’
आदिवासी मामलों के केन्द्रीय मंत्री बिशीस्वर तुदु ने कहा, ‘‘मैं खास तौर से खुश हूं क्योंकि मुर्मू मेरे लोकसभा क्षेत्र और मेरे आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखती हैं।’’
संकेत हैं कि मुर्मू के नाम की घोषणा से पहले भाजपा ने मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से चर्चा की है। (भाषा)
चेन्नई, 22 जून। मद्रास उच्च न्यायालय ने मंगलवार को पुलिस अधिकारियों को विपक्षी दल अन्नाद्रमुक की आम परिषद और कार्यकारिणी समिति की बैठक के मद्देनजर पुलिस सुरक्षा प्रदान करने को लेकर कदम उठाने का निर्देश दिया। यह बैठक 23 जून को चेन्नई के वनगरम में एक मैरिज हॉल में आयोजित होने वाली है।
न्यायमूर्ति एन सतीश कुमार ने पार्टी के तिरुवल्लूर जिले के सचिव पी बेंजामिन की रिट याचिका पर इस आशय का निर्देश दिया। आम परिषद ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम (अन्नाद्रमुक) की निर्णय लेने वाली सर्वोच्च संस्था है। पिछले कुछ दिनों में ‘एक नेतृत्व’ के मुद्दे पर पार्टी में मतभेद गहरा गया है। अन्नाद्रमुक के कार्यकर्ताओं और नेताओं का खेमा समन्वयक ओ पनीरसेल्वम और संयुक्त समन्वयक के पलानीस्वामी के बीच बंट चुका है।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील विजय नारायण ने न्यायाधीश को बताया कि पार्टी ने 8 और 15 जून को थिरुवेरकाडु पुलिस निरीक्षक को पुलिस सुरक्षा के लिए आवेदन किया था, लेकिन कोई जवाब नहीं आया। नारायण ने कहा कि जब यह सूचित किया गया कि 23 जून को पूर्व विधायकों, सांसदों और मंत्रियों सहित 2,500 से अधिक सदस्य बैठक में भाग लेंगे, तो अधिकारियों को इस मुद्दे को गंभीरता से लेना चाहिए था और सुरक्षा प्रदान करने के संबंध में जवाब देना चाहिए था।
राज्य के लोक अभियोजक हसन मोहम्मद जिन्ना ने न्यायाधीश को बताया कि पुलिस ने बैठक के संबंध में 26 प्रश्नों का एक सेट दिया था लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं आया है। इसे जमा करने के बाद, पुलिस आदेश देने में देर नहीं करेगी। न्यायाधीश ने याचिकाकर्ता को पुलिस द्वारा मांगे गए विवरण प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। (भाषा)
नयी दिल्ली, 22 जून। ओडिशा में सिंचाई और बिजली विभाग में एक कनिष्ठ सहायक से लेकर भाजपा के नेतृत्व वाले राजग की ओर से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार नामित होने तक का सफर आदिवासी नेता द्रौपदी मुर्मू के लिए बेहद लंबा और मुश्किल सफर रहा है।
निर्वाचित होने पर मुर्मू आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली भारत की पहली राष्ट्रपति होंगी।
झारखंड की पूर्व राज्यपाल और आदिवासी नेता द्रौपदी मुर्मू आगामी राष्ट्रपति चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की उम्मीदवार होंगी। भाजपा की सर्वोच्च नीति निर्धारक संस्था, संसदीय बोर्ड की बैठक के बाद मंगलवार को पार्टी अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने उनकी उम्मीदवारी की घोषणा की।
संथाल समुदाय में जन्मीं मुर्मू ने 1997 में रायरंगपुर नगर पंचायत में एक पार्षद के रूप में अपना राजनीतिक जीवन शुरू किया और वह वर्ष 2000 में ओडिशा सरकार में मंत्री बनीं। बाद में उन्होंने 2015 में झारखंड के राज्यपाल पद की जिम्मेदारी भी संभाली।
रायरंगपुर से दो बार विधायक रहीं मुर्मू ने 2009 में तब भी अपनी विधानसभा सीट पर कब्जा जमाया था, जब बीजद ने राज्य के चुनावों से कुछ हफ्ते पहले भाजपा से नाता तोड़ लिया था, जिसमें मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की पार्टी बीजद ने जीत दर्ज की थी।
बीस जून 1958 को जन्मीं मुर्मू झारखंड की पहली महिला राज्यपाल बनने का गौरव भी रखती हैं।
बेहद पिछड़े और दूरदराज के जिले से ताल्लुक रखने वालीं मुर्मू ने गरीबी और अन्य समस्याओं से जुझते हुए भुवनेश्वर के रमादेवी महिला कॉलेज से कला में स्नातक किया और ओडिशा सरकार के सिंचाई और बिजली विभाग में एक कनिष्ठ सहायक के रूप में अपना करियर शुरू किया था।
मुर्मू को 2007 में ओडिशा विधानसभा द्वारा वर्ष के सर्वश्रेष्ठ विधायक के लिए नीलकंठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उनके पास ओडिशा सरकार में परिवहन, वाणिज्य, मत्स्य पालन और पशुपालन जैसे मंत्रालयों को संभालने का अनुभव है।
मुर्मू भाजपा की ओडिशा इकाई की अनुसूचित जनजाति मोर्चा की उपाध्यक्ष और बाद में अध्यक्ष भी रहीं। उन्हें 2013 में भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी (एसटी मोर्चा) के सदस्य के रूप में भी नामित किया गया था।
मुर्मू का विवाह श्याम चरण मुर्मू से हुआ और दंपती के तीन संतान... दो बेटे और एक बेटी हुईं। मुर्मू का जीवन व्यक्तिगत त्रासदियों से भरा रहा है क्योंकि उन्होंने अपने पति और दोनो बेटों को खो दिया है। उनकी बेटी इतिश्री का विवाी गणेश हेम्ब्रम से हुआ है। (भाषा)
-अनंत प्रकाश
कांग्रेस, टीएमसी और एनसीपी समेत अन्य विपक्षी दलों ने मंगलवार दोपहर राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए विपक्ष के साझे उम्मीदवार के रूप में यशवंत सिन्हा के नाम की घोषणा कर दी है.
यशवंत सिन्हा ने इस बारे में आधिकारिक घोषणा होने से पहले ही ट्वीट करके संकेत दे दिए थे.
मंगलवार सुबह टीएमसी छोड़ने से पहले ममता बनर्जी का शुक्रिया अदा करते हुए सिन्हा ने लिखा है - "टीएमसी में उन्होंने मुझे जो सम्मान और प्रतिष्ठा दी, उसके लिए मैं ममता जी का आभारी हूं. अब एक समय आ गया है जब एक बड़े राष्ट्रीय उद्देश्य के लिए मुझे पार्टी से हटकर अधिक विपक्षी एकता के लिए काम करना होगा. मुझे यकीन है कि वह इस कदम को स्वीकार करती हैं"
इससे पहले विपक्षी दलों के बीच शरद पवार, गोपालकृष्ण गांधी और फ़ारूक़ अब्दुल्ला के नामों पर चर्चा हुई थी. लेकिन इन लोगों ने राष्ट्रपति पद के चुनाव में भाग लेने से इनकार कर दिया.
इसके बाद कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने मंगलवार को शरद पवार के घर पर हुई विपक्षी दलों की बैठक के बाद आख़िरकार यशवंत सिन्हा के नाम का एलान कर दिया.
लेकिन सवाल उठता है कि कुछ साल पहले तक बीजेपी नेता रहे यशवंत सिन्हा को विपक्ष ने अपने साझा उम्मीदवार के रूप में क्यों चुना.
विपक्ष ने यशवंत सिन्हा को क्यों चुना
सिन्हा के राजनीतिक सफर को पिछले तीन दशकों से देख रहीं वरिष्ठ पत्रकार स्मिता गुप्ता मानती हैं कि विपक्ष ने सिन्हा को उनके प्रशासनिक रिकॉर्ड की वजह से चुना है.
वे बताती हैं, "विपक्ष के पास ऐसा कोई शख़्स नहीं था जिसे वह आगे ला सकते. क्योंकि उन्हें एक ऐसा चेहरा चाहिए था जो इस चुनाव के लिए दमदार उम्मीदवार लगे. पहले गोपालकृष्ण गांधी का नाम आया था. उनके प्रति पूरे देश में सम्मान है. लेकिन उनका नाम हर बार आता है. और उनके जीतने का सवाल नहीं है. इसके बाद फ़ारूक़ अब्दुल्ला का नाम काफ़ी दमदार था लेकिन उन्होंने मना कर दिया. इसके बाद विपक्ष ने यशवंत सिन्हा पर विचार किया.
उनके मामले में विपक्ष ने सिन्हा की विचारधारा को किनारे रखते हुए एक प्रशासन के रूप में उनके काम और अनुभव को तरजीह दी. वह इस पद के लिए एक दमदार नाम और चेहरा हैं, विदेश नीति आदि की उन्हें समझ है. मुझे लगता है कि इसी आधार पर ही विपक्ष में उनके नाम पर सहमति बनी."
यशवंत सिन्हा को भारतीय राजनीति के उन चुनिंदा राजनेताओं में गिना जाता है जिन्होंने राजनीति में आने से पहले प्रशासक के रूप में काम किया.
सन् 1960 में आईएएस बनने वाले यशवंत सिन्हा ने अपने चालीस साल से ज़्यादा लंबे राजनीतिक करियर में अलग-अलग सरकारों में विदेश मंत्री और वित्त मंत्री स्तर के शीर्ष पद संभाले हैं.
स्मिता गुप्ता बताती हैं कि वित्त मंत्री के तौर पर भी यशवंत सिन्हा को नियम-कायदों को मानने वाले सख़्त प्रशासक के रूप में देखा जाता था.
बीबीसी संवाददाता रेहान फ़ज़ल ने साल 2019 में यशवंत सिन्हा से बात करते हुए उनके राजनीतिक जीवन के दिलचस्प पहलुओं पर प्रकाश डाला था.
यशवंत सिन्हा 1960 में आईएएस के लिए चुने गए और पूरे भारत में उन्हें 12वाँ स्थान मिला. आरा और पटना में काम करने के बाद उन्हें संथाल परगना में डिप्टी कमिश्नर के तौर पर तैनात किया गया.
उस दौरान बिहार के मुख्यमंत्री महामाया प्रसाद सिन्हा ने वहाँ का दौरा किया और यशवंत सिन्हा की उनसे झड़प हो गई.
इसी बातचीत में यशवंत सिन्हा ने बताया था कि 'वहाँ खड़े कुछ लोग मुख्यमंत्री से अपनी शिकायत करने लगे. हर शिकायत के बाद मुख्यमंत्री मेरी तरफ़ मुड़ते और मुझसे स्पष्टीकरण माँगते.'
'मैं हर संभव उन्हें संतुष्ट करने की कोशिश करता. लेकिन उनके साथ आए सिंचाई मंत्री जो कि कम्युनिस्ट पार्टी से थे, मेरे प्रति आक्रमक होते चले गए. आखिरकार मेरा धैर्य जवाब दे गया और मैंने मुख्यमंत्री की तरफ़ देख कर कहा, 'सर मैं इस व्यवहार का आदी नहीं हूँ.'
यशवंत सिन्हा आगे बताते हैं, 'मुख्यमंत्री मुझे दूसरे कमरे में ले गए और स्थानीय एसपी और डीआईजी के सामने मुझसे कहा कि मुझे इस तरह बर्ताव नहीं करना चाहिए था.'
'मैंने जवाब दिया कि आपके मंत्री को भी मेरे साथ इस तरह व्यवहार नहीं करना चाहिए था. इस पर महामाया प्रसाद सिन्हा गर्म हो गए और उन्होंने मेज़ पर ज़ोर से हाथ मार कर कहा कि 'आपकी बिहार के मुख्यमंत्री से इस तरह बात करने की हिम्मत कैसे हुई?' आप दूसरी नौकरी की तलाश शुरू कर दीजिए.'
'मैंने कहा, 'मैं शरीफ़ आदमी हूँ और चाहता हूँ कि मुझसे शराफ़त से पेश आया जाए. जहाँ तक दूसरी नौकरी ढूंढने की बात है, मैं एक दिन मुख्यमंत्री बन सकता हूँ, लेकिन आप कभी आईएस अफ़सर नहीं बन सकते. मैंने अपने कागज़ उठाए और कमरे से बाहर निकल आया.'
राजनीतिक जीवन में प्रवेश
मुख्यमंत्री के साथ झड़प के बाद यशवंत सिन्हा ने जर्मनी में भारतीय दूतावास में फर्स्ट सेक्रेटरी से लेकर दिल्ली ट्रांसपोर्ट ट्रांसपोर्ट कार्पोरेशन के अध्यक्ष जैसे पदों पर बिताया.
इसके बाद यशवंत सिन्हा ने 1984 में आईएएस के रूप में अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया और जनता पार्टी में शामिल हो गए. इसके कुछ समय बाद ही वह पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के क़रीबियों में शुमार होने लगे.
लेकिन जब वीपी सिंह भारत के प्रधानमंत्री बने और उन्होंने अपनी सरकार में यशवंत सिन्हा को राज्यमंत्री का पद दिया तो इससे सिन्हा नाराज़ हो गए.
रेहान फ़ज़ल के साथ बातचीत में यशवंत सिन्हा ने बताया कि, 'जब मैं राष्ट्रपति भवन में घुसा तो मुझे कैबिनेट सचिव टीएन सेशन का लिखा एक पत्र दिया गया. उसमें लिखा था कि राष्ट्रपति ने मेरी राज्य मंत्री के तौर पर नियुक्ति की है. पढ़ते ही मेरा दिल बैठ गया.'
'मैंने 10 सेकेंड के अंदर फ़ैसला किया कि मैं इस पद को स्वीकार नहीं करूँगा. मैं तुरंत पलटा. अपनी पत्नी का हाथ पकड़ा और उससे दृढ़ आवाज़ में कहा, 'तुरंत वापस चलो.'
'पार्टी में मेरी वरिष्ठता को देखते हुए और चुनाव प्रचार में मैंने जिस तरह का काम किया था, वी पी सिंह ने मेरे साथ न्याय नहीं किया था. सबसे बड़ी बात ये थी कि मुझे जूनियर मंत्री का पद दे कर उन्होंने मेरे नेता चंद्रशेखर का भी अपमान किया था.'
लेकिन इसके बाद समय का चक्का घूमा और यशवंत सिन्हा को भारत सरकार में बड़ी ज़िम्मेदारी दी गयी.
स्मिता गुप्ता कहती हैं, "जनता पार्टी में शामिल होने के बाद यशवंत सिन्हा चंद्रशेखर के निकटतम सहयोगियों में गिने जाने लगे थे. और जब चंद्रशेखर की सरकार बनी तो ये कयास लगाए गए कि उन्हें कोई अहम पद मिल सकता है."
और चंद्रशेखर सरकार में यशवंत सिन्हा भले ही मात्र सात महीने के लिए वित्त मंत्री रह पाए हों लेकिन इस अल्पावधि में भी उन्होंने उस फाइल पर दस्तखत किए जिससे भारतीय रिज़र्व बैंक में रखे 20 टन सोने को बैंक ऑफ़ इंग्लैंड में गिरवी रखा गया.
इसके बाद जब चंद्रशेखर सरकार की नैय्या डोलती नज़र आई तो यशवंत सिन्हा ने बीजेपी का दामन थाम लिया.
बीजेपी में शामिल क्यों हुए यशवंत सिन्हा
यशवंत सिन्हा के बीजेपी में शामिल होने का किस्सा भी काफ़ी दिलचस्प है.
स्मिता गुप्ता बताती हैं, "यशवंत सिन्हा के मामले में ये कहा जा सकता है कि उनकी राजनीति के मामले में विचारधारा की बड़ी समस्या नहीं हैं. बाबरी मस्जिद ध्वंस के बाद यशवंत सिन्हा ने इसके ख़िलाफ़ बयान दिया था. लेकिन इसके कुछ समय बाद वह बीजेपी में शामिल हो गए. इस पर लोगों ने सवाल उठाया कि बीजेपी की राजनीति का विरोध करने वाले यशवंत सिन्हा बीजेपी में कैसे शामिल हो सकते हैं."
इस सवाल का जवाब खुद यशवंत सिन्हा ने बीबीसी के साथ इंटरव्यू के दौरान दिया है.
यशवंत सिन्हा बताते हैं, "चंद्रशेखर की समाजवादी जनता पार्टी समाप्ति की तरफ़ थी. उस समय मेरे पास दो विकल्प थे. एक था कांग्रेस और दूसरी भारतीय जनता पार्टी. नरसिम्हा राव बहुत चाहते थे कि मैं कांग्रेस में आऊँ. उनसे कई बार मुलाकात भी हुई. लेकिन मुझे कांग्रेस पार्टी में जाना अच्छा नहीं लगा.
एक 'कॉमन' मित्र ने मेरी मुलाकात आडवाणी जी से करवाई लेकिन पार्टी में जाने की कोई बात उनसे नहीं हुई. उसी ज़माने में जनता दल के सभी घटकों को एक करने की मुहिम भी चल रही थी."
यशवंत सिन्हा आगे बताते हैं, 'एक दिन मैं और मेरी पत्नी हवाई जहाज़ से राँची से दिल्ली आ रहे थे. पटना में विमान में लालू प्रसाद यादव सवार हुए. मैंने उन्हें प्रणाम किया लेकिन उन्होंने प्रणाम का जवाब देना तो दूर मुझे पहचानने तक से इनकार कर दिया. दिल्ली में जब जहाज़ उतरा तो मेरे बगल में खड़े रहने के बावजूद उन्होंने मुझसे कोई बात नहीं की.
मेरी पत्नी ने मुझसे कहा कि लालू ने आपकी बहुत उपेक्षा की है. लालूजी की इस हरकत को देखते हुए मैंने घर पहुंच कर तुरंत आडवाणीजी को फ़ोन कर कहा कि मैं आपसे तुरंत मिलना चाहता हूँ. कुछ दिनों बाद आडवाणी ने मुझे भारतीय जनता पार्टी में शामिल कर लिया और उन्होंने एक प्रेस कान्फ़्रेंस करके एलान किया कि मेरा बीजेपी में जाना पार्टी के लिए दीवाली गिफ़्ट है.'
वाजपेयी से मोदी तक यशवंत सिन्हा
इसके बाद यशवंत सिन्हा को साल 1998 में एक बार फिर वाजपेयी सरकार में वित्त मंत्रालय की ज़िम्मेदारी दी गई जिसे उन्होंने 2002 तक निभाया. और इसके बाद उन्होंने 2002 से लेकर 2004 तक भारत के विदेश मंत्री का पद भार संभाला.
लेकिन वाजपेयी और आडवाणी का दौर जाने के बाद यशवंत सिन्हा की बीजेपी से दूरियां बढ़ती चली गयीं.
साल 2009 के आम चुनाव में यशवंत सिन्हा ने जीत दर्ज की. लेकिन 2014 में उन्हें टिकट नहीं दिया गया. और उनकी जगह उनकी सीट से उनके बेटे जयंत सिन्हा चुनाव लड़े और जीते.
इसके बाद नरेंद्र मोदी से बढ़ती दूरियों के चलते 2018 में उन्होंने बीजेपी के साथ 21 साल लंबा सफर ख़त्म कर दिया.
कुछ समय पहले वह टीएमसी में शामिल हुए थे और 21 जून, 2022 को उन्होंने टीएमसी से भी इस्तीफ़ा दे दिया है.
आने वाले दिनों में यशवंत सिन्हा राष्ट्रपति पद के चुनाव में विपक्ष के उम्मीदवार के रूप में अपना नामांकन पेश करेंगे. (bbc.com)
एकनाथ शिंदे के विद्रोह के बाद भाजपा ने महाराष्ट्र में 'ऑपरेशन लोटस' शुरू किया या नहीं, इस पर चर्चा हो रही है.
भाजपा ने पहले कुछ राज्यों में ये प्रयोग किया था.
बीजेपी पर इस तरह के आरोप कर्नाटक में 'ऑपरेशन लोटस' से शुरू हुए थे.
साल 2008 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बाद भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आई.
हालांकि, बहुमत तक पहुंचने के लिए उनके पास तीन सीटें कम थीं.
उन्हें कुछ विधायकों का समर्थन मिला.
लेकिन सरकार स्थिर रहने के लिए एक और विधायक को पार्टी के साथ जोड़ना पड़ा. वो ऑपरेशन लोटस की शुरुआत थी.
1. कर्नाटक
कांग्रेस और धर्मनिरपेक्ष जनता दल (जेडीएस) के विधायकों ने एक के बाद एक इस्तीफा देना शुरू कर दिया.
इस तरह कुल आठ विधायकों ने इस्तीफा दिया और इन विधायकों ने बीजेपी से उपचुनाव लड़ा. इनमें से भाजपा के पांच विधायक चुने गए.
इसके बाद भाजपा को स्थिर सरकार के लिए जरूरी ताकत मिली.
कर्नाटक के वरिष्ठ पत्रकार इमरान कुरैशी कहते हैं, "ऑपरेशन लोटस बीजेपी द्वारा किया गया एक नया प्रयोग था."
ऑपरेशन लोटस दल-बदल विरोधी कानून से बचने के लिए एक बचाव का रास्ता है. इस कानून के अनुसार, यदि कोई विधायक निर्वाचित होने के बाद किसी अन्य पार्टी में शामिल हो जाता है, तो उसकी सदस्यता रद्द कर दी जाती है.
3. मध्य प्रदेश
साल 2018 में मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए थे. इसमें भाजपा के 109 विधायक चुने गए, जबकि कांग्रेस के 114 विधायक निर्वाचित हुए.
कांग्रेस ने कमलनाथ के नेतृत्व में निर्दलीय विधायकों के समर्थन से सरकार बनाई.
लेकिन डेढ़ साल के भीतर ही कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच सत्ता संघर्ष शुरू हो गया.
आखिरकार मार्च 2020 में ज्योतिरादित्य 22 विधायकों के साथ बीजेपी में शामिल हो गए.
बागी विधायकों में तत्कालीन कमलनाथ सरकार के 14 मंत्री शामिल थे. उसके बाद भाजपा के शिवराज सिंह चौहान एक बार फिर मुख्यमंत्री बने.
2. गोवा
कर्नाटक ही नहीं बल्कि कई अन्य राज्यों में भी बीजेपी समय-समय पर विधायकों का इस तरह से इंतज़ाम करती रही है.
गोवा में कांग्रेस के 15 विधायकों में से 10 विधायक बीजेपी में शामिल हो गए.
चूंकि यह संख्या दो तिहाई से अधिक है, भाजपा दल-बदल विरोधी कानून से प्रभावित नहीं हुई.
4. उत्तराखंड
साल 2016 में उत्तराखंड में कांग्रेस सरकार को नौ विधायकों के विद्रोह में उलझा दिया गया था.
इन विधायकों के ख़िलाफ़ विधानसभा अध्यक्ष द्वारा अयोग्य ठहराए जाने के बाद, कांग्रेस सरकार को बर्खास्त कर दिया गया और उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाया गया.
उस वक्त कांग्रेस ने बगावत के पीछे बीजेपी का हाथ होने का आरोप लगाया था. बागी विधायक बाद में भाजपा में शामिल हो गए.
या बंडखोरीला भाजपची फूस असल्याचा आरोप त्यावेळी काँग्रेसनं केला होता. कालांतराने हे बंडखोर आमदार नंतर भाजपमध्ये सामील झाले.
5. अरुणाचल प्रदेश
अरुणाचल प्रदेश में भी 2016 में बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन में कांग्रेस विधायक चले गए थे जिसके बाद वहां सत्ता में बदलाव आ गया था.
इस में कांग्रेस के 42 विधायक भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन 'पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल' में शामिल हो गए थे.
दल-बदल विरोधी क़ानून क्या है?
साल 1985 में संविधान में 10वीं अनुसूची जोड़ी गई. ये संविधान में 52वां संशोधन था.
इसमें विधायकों और सांसदों के पार्टी बदलने पर लगाम लगाई गई.
इसमें ये भी बताया गया कि दल-बदल के कारण इनकी सदस्यता भी ख़त्म हो सकती है.
कब-कब लागू होगा दल-बदल क़ानून
1. अगर कोई विधायक या सांसद ख़ुद ही अपनी पार्टी की सदस्यता छोड़ देता है.
2. अगर कोई निर्वाचित विधायक या सांसद पार्टी लाइन के ख़िलाफ़ जाता है.
3. अगर कोई सदस्य पार्टी ह्विप के बावजूद वोट नहीं करता.
4. अगर कोई सदस्य सदन में पार्टी के निर्देशों का उल्लंघन करता है.
विधायक या सांसद बनने के बाद ख़ुद से पार्टी सदस्यता छोड़ने, पार्टी व्हिप या पार्टी निर्देश का उल्लंघन दल-बदल क़ानून में आता है.
अगर किसी पार्टी के दो तिहाई विधायक या सांसद दूसरी पार्टी के साथ जाना चाहें, तो उनकी सदस्यता ख़त्म नहीं होगी.
वर्ष 2003 में इस क़ानून में संशोधन भी किया गया. जब ये क़ानून बना तो प्रावधान ये था कि अगर किसी भूल पार्टी में बँटवारा होता है और एक तिहाई विधायक एक नया ग्रुप बनाते हैं, तो उनकी सदस्यता नहीं जाएगी.
लेकिन इसके बाद बड़े पैमाने पर दल-बदल हुए और ऐसा महसूस किया कि पार्टी में टूट के प्रावधान का फ़ायदा उठाया जा रहा है. इसलिए ये प्रावधान ख़त्म कर दिया गया.
इसके बाद संविधान में 91वाँ संशोधन जोड़ा गया. जिसमें व्यक्तिगत ही नहीं, सामूहिक दल बदल को असंवैधानिक करार दिया गया.
विधायक कुछ परिस्थितियों में सदस्यता गँवाने से बच सकते हैं. अगर एक पार्टी के दो तिहाई सदस्य मूल पार्टी से अलग होकर दूसरी पार्टी में मिल जाते हैं, तो उनकी सदस्यता नहीं जाएगी.
ऐसी स्थिति में न तो दूसरी पार्टी में विलय करने वाले सदस्य और न ही मूल पार्टी में रहने वाले सदस्य अयोग्य ठहराए जा सकते हैं.
तो इन परिस्थितियों में नहीं लागू होगा दल बदल क़ानून:
1. जब पूरी की पूरी राजनीतिक पार्टी अन्य राजनीति पार्टी के साथ मिल जाती है.
2. अगर किसी पार्टी के निर्वाचित सदस्य एक नई पार्टी बना लेते हैं.
3. अगर किसी पार्टी के सदस्य दो पार्टियों का विलय स्वीकार नहीं करते और विलय के समय अलग ग्रुप में रहना स्वीकार करते है.
4. जब किसी पार्टी के दो तिहाई सदस्य अलग होकर नई पार्टी में शामिल हो जाते हैं.
स्पीकर के फ़ैसले की हो सकती है समीक्षा
10वीं अनुसूची के पैराग्राफ़ 6 के मुताबिक़ स्पीकर या चेयरपर्सन का दल-बदल को लेकर फ़ैसला आख़िरी होगा.
पैराग्राफ़ 7 में कहा गया है कि कोई कोर्ट इसमें दखल नहीं दे सकता.
लेकिन 1991 में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने 10वीं अनुसूची को वैध तो ठहराया लेकिन पैराग्राफ़ 7 को असंवेधानिक क़रार दे दिया.
सुप्रीम कोर्ट ने ये भी स्पष्ट कर दिया कि स्पीकर के फ़ैसले की क़ानूनी समीक्षा हो सकती है. (bbc.com)
नई दिल्ली, 21 जून। राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा की अगुवाई वाले एनडीए गठबंधन के उम्मीदवार के नाम पर मंथन के लिए मंगलवार को यहां पार्टी मुख्यालय में भाजपा की सर्वोच्च नीति निर्धारक संस्था, संसदीय बोर्ड की बैठक हुई. बैठक के बाद जेपी नड्डा ने ऐलान किया कि झारखंड की पूर्व गवर्नर द्रौपदी मुर्मू एनडीए की ओर से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार होंगी. नड्डा ने बताया कि संसदीय बोर्ड की बैठक में करीब 20 नामों पर चर्चा हुई और आदिवासी महिला नेता मुर्मू पर मुहर लगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गड़करी और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित संसदीय बोर्ड के अन्य सदस्य बैठक में मौजूद हैं.
आईएएनएस के अनुसार झारखंड में राज्यपाल के तौर पर कुल 6 साल एक माह 18 दिन का उनका कार्यकाल निर्विवाद तो रहा ही, राज्य के प्रथम नागरिक और विश्वविद्यालयों की कुलाधिपति के रूप में उनकी पारी यादगार रही है। कार्यकाल पूरा होने के बाद वह 12 जुलाई 2021 को झारखंड से राजभवन से उड़ीसा के रायरंगपुर स्थित अपने गांव के लिए रवाना हुई थीं और इन दिनों वहीं प्रवास कर रही हैं।
विपक्षी दलों के बीच राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार के तौर पर झारखंड के हजारीबाग निवासी कद्दावर नेता यशवंत सिन्हा के नाम पर मंगलवार को सहमति बन गयी है। अब अगर सत्ताधारी एनडीए की ओर से झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू उम्मीदवार बनायी जाती हैं तो यह भी एक अनूठा संयोग ही माना जायेगा। यशवंत सिन्हा के बाद चचार्ओं में द्रौपदी मुर्मू का नाम सामने आने से झारखंड के सियासी हलकों में भी कौतूहल और उत्साह का माहौल है।
रांची से प्रकाशित एक हिंदी दैनिक के प्रधान संपादक हरिनारायण सिंह कहते हैं कि वर्ष 2017 में भी राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी के लिए द्रौपदी मुर्मू के नाम की चर्चा हुई थी। दरअसल एनडीए के नेता नरेंद्र मोदी चौंकाने वाले सियासी निर्णयों के लिए जाने जाते हैं और ऐसे में निर्विवाद राजनीतिक करियर वाली आदिवासी नेत्री द्रौपदी मुर्मू का नाम आगे आना कतई अप्रत्याशित नहीं माना जाना चाहिए। द्रौपदी मुर्मू के पास राज्यपाल के तौर पर छह साल से भी ज्यादा के कार्यकाल का बेहतरीन अनुभव है। ऐसे में संभव है कि उनकी उम्मीदवारी से एनडीए पूरे देश को कई मायनों में प्रतीकात्मक संदेश देने की कोशिश कर सकती है।
द्रौपदी मुर्मू का नाम देश में जनजातीय समाज के बीच पैठ बनाने की भाजपा की रणनीति का भी हिस्सा हो सकता है। इससे गुजरात के आगामी विधानसभा चुनाव और 2024 में होनेवाले आम चुनाव के मद्देनजर जनजातीय समाज के बीच एक संदेश तो दिया ही जा सकता है।
18 मई 2015 को झारखंड की राज्यपाल के रूप में शपथ लेने के पहले द्रौपदी मुर्मू उड़ीसा में दो बार विधायक और एक बार राज्यमंत्री के रूप में काम कर चुकी थीं। राज्यपाल के तौर पर पांच वर्ष का उनका कार्यकाल 18 मई 2020 को पूरा हो गया था, लेकिन कोरोना के कारण राष्ट्रपति द्वारा नयी नियुक्ति नहीं किये जाने के कारण उनके कार्यकाल का स्वत: विस्तार हो गया था। अपने पूरे कार्यकाल में वह कभी विवादों में नहीं रहीं।
झारखंज के जनजातीय मामलों, शिक्षा, कानून व्यवस्था, स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों पर वह हमेशा सजग रहीं। कई मौकों पर उन्होंने राज्य सरकारों के निर्णयों में संवैधानिक गरिमा और शालीनता के साथ हस्तक्षेप किया। विश्वविद्यालयों की पदेन कुलाधिपति के रूप में उनके कार्यकाल में राज्य के कई विश्वविद्यालयों में कुलपति और प्रतिकुलपति के रिक्त पदों पर नियुक्ति हुई।
विनोबा भावे विश्वविद्यालय के वरिष्ठ शिक्षक प्रो. डॉ शैलेश चंद्र शर्मा याद करते हैं कि उन्होंने राज्य में उच्च शिक्षा से जुड़े मुद्दों परखुद लोक अदालत लगायी थी, जिसमें विवि शिक्षकों और कर्मचारियों के लगभग पांच हजार मामलों का निबटारा हुआ था। राज्य के विश्वविद्यालयों में और कॉलेजों में नामांकन प्रक्रिया केंद्रीयकृत कराने के लिए उन्होंने चांसलर पोर्टल का निर्माण कराया।
20 जून 1958 को ओडिशा में एक साधारण संथाल आदिवासी परिवार में जन्मीं द्रौपदी मुर्मू ने 1997 में अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत की थी। वह 1997 में ओडिशा के रायरंगपुर में जिला बोर्ड की पार्षद चुनी गई थीं। राजनीति में आने के पहले वह मुर्मू राजनीति में आने से पहले श्री अरविंदो इंटीग्रल एजुकेशन एंड रिसर्च, रायरंगपुर में मानद सहायक शिक्षक और सिंचाई विभाग में कनिष्ठ सहायक के रूप में काम कर चुकी थीं। वह उड़ीसा में दो बार विधायक रह चुकी हैं और उन्हें नवीन पटनायक सरकार में मंत्री पद पर भी काम करने का मौका मिला था। उस समय बीजू जनता दल और बीजेपी के गठबंधन की सरकार थी। ओडिशा विधान सभा ने द्रौपदी मुर्मू को सर्वश्रेष्ठ विधायक के लिए नीलकंठ पुरस्कार से भी नवाजा था।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
अंबिकापुर, 21 जून। अपने पक्ष में हाईकोर्ट से आदेश होने के बाद राज्यपाल से पत्र लेकर डॉ रोहणी प्रसाद ने संत गहिरा गुरु विश्वविद्यालय सरगुजा के कुलपति पद का प्रभार ग्रहण कर लिया।
आज जब वे विश्व विद्यालय पहुंचे, तब कुलपति कक्ष में ताला लगा हुआ था। उन्हें जानकारी मिली कि अब तक कुलपति रहे अशोक सिंह अपने साथ कक्ष का ताला लगाकर चाबी ले गए हैं। जब अशोक सिंह से संपर्क का प्रयास किया गया तो उनका मोबाइल कवरेज क्षेत्र से बाहर मिला। इस पर प्रो. प्रसाद ने रजिस्ट्रार के कक्ष में कुलपति पद का प्रभार ग्रहण किया और कुलपति कक्ष में अपना ताला लगाकर आ गए।
मालूम हो कि प्रदेश सरकार ने विश्वविद्यालय की विश्वसनीयता में गिरावट आने को आधार बनाकर छत्तीसगढ़ विश्वविद्यालय अधिनियम 1973 की धारा 68,52 और अन्य प्रावधानों का पहली बार इस्तेमाल करते हुए जनवरी 2020 में उन्हें पद से हटा दिया था। उनकी जगह पर तत्कालीन कमिश्नर ई लकड़ा को प्रभार दिया गया था। बाद में प्रोफेसर अशोक सिंह को कुलपति पद का प्रभार दिया था। राज्य सरकार के इस फैसले को प्रोफेसर प्रसाद ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। बीते 13 जून को हाईकोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला दिया। हाईकोर्ट के फैसले की कॉपी लेकर प्रोफेसर प्रसाद कुलाधिपति, राज्यपाल अनुसुइया उइके से मिले। इसके बाद उन्हें कुलपति पद का प्रभार दोबारा ग्रहण करने के संबंध में राज्यपाल की ओर से पत्र जारी किया गया। इस पत्र के आधार पर प्रो. प्रसाद में आज प्रभार ग्रहण कर लिया। प्रो प्रसाद का कार्यकाल 30 जुलाई तक ही सीमित है। उनकी नियुक्ति पिछली भाजपा सरकार के दौरान की गई थी।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 21 जून। राज्य में आज रात 09.00 बजे तक 88 कोरोना पॉजिटिव मिले हैं। इनमें सबसे अधिक 31 रायपुर जिले से हैं। राज्य के स्वास्थ्य विभाग के इन आंकड़ों के मुताबिक आज रात तक किसी भी जिले में 35 से अधिक कोरोना पॉजिटिव नहीं मिले हैं। आज कुल 12 जिलों मेें एक भी पॉजिटिव नहीं मिले हैं।
आज कोई मौत नहीं हुई है।
राज्य शासन के स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक दुर्ग 12, राजनांदगांव 1, बालोद 3, बेमेतरा 0, कबीरधाम 4, रायपुर 31, धमतरी 0, बलौदाबाजार 8, महासमुंद 0, गरियाबंद 0, बिलासपुर 8, रायगढ़ 2, कोरबा 0, जांजगीर-चांपा 1, मुंगेली 0, जीपीएम 0, सरगुजा 2, कोरिया 6, सूरजपुर 2, बलरामपुर 0, जशपुर 3, बस्तर 1, कोंडागांव 0, दंतेवाड़ा 2, सुकमा 0, कांकेर 4, नारायणपुर 0, बीजापुर 0, अन्य राज्य 0 कोरोना पॉजिटिव मिले हैं।
‘रंबल इन द जंगल‘ के साथ रायपुर से ओलंपियन बॉक्सर विजेंदर सिंह करेंगे अपनी नई पारी की शुरूआत
रायपुर, 21 जून। छत्तीसगढ़ सरकार के सहयोग से ‘रंबल इन द जंगल‘ नाम के इवेंट के साथ प्रोफेशनल बॉक्सिंग पहली बार रायपुर पहुंचेगी। यह आयोजन अगस्त में होने वाला है और इसमें अंतर्राष्ट्रीय पेशेवर मुक्केबाज और ओलंपिक पदक विजेता विजेंदर सिंह शामिल होंगे।
विजेंदर सिंह छत्तीसगढ़ में इस आयोजन को लेकर काफी उत्सुक हैं। वे कहते हैं कि ‘‘मैं रायपुर शहर में अपना अगला पेशेवर मुकाबला आयोजित करने की सहमति देने के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का बहुत आभारी हूं। यह इवेंट छत्तीसगढ़ के लोगों को इस खेल से परिचित कराने का एक शानदार अवसर है। उम्मीद है कि इससे नई पीढ़ी के युवा मुक्केबाजों को आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलेगी।’’ विजेंदर सिंह ने बताया कि वे वर्तमान में मैनचेस्टर में प्रशिक्षण ले रहे हैं और इस अगस्त में फिर से नई शुरूआत के लिए काफी उत्सुक हैं।
गौरतलब है कि विजेंदर सिंह ने 8 जून को मुख्यमंत्री श्री बघेल से मुलाकात कर छत्तीसगढ़ में बॉक्सिंग के खेल को बढ़ावा देने की संभावनाओं पर विचार-विमर्श किया था और उनसे छत्तीेसगढ़ में प्रोफेशनल बॉक्सिंग इवेंट कराने का आग्रह किया था, जिस पर मुख्यमंत्री ने सहमति दी थी।
विजेंदर सिंह वर्ष 2008 में ओलंपिक का कांस्य पदक जीतने वाले पहले भारतीय मुक्केबाज हैं। वे वर्ष 2015 में पेशेवर मुक्केबाज बने विजेंदर सिंह ने 8 नॉकआउट सहित 12 मुकाबले जीते हैं, एक मुकाबले में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। दुर्भाग्य से 12 मुकाबले जीतने के बाद उनकी जीत का सिलसिला गोवा में उनके आखिरी मुकाबले में टूट गया था। ‘‘रंबल इन द जंगल’’ भारत में उनके पेशेवर मुक्केबाजी करियर के दौरान उनका छठा मुकाबला होगा। इस इवेंट का आयोजन पर्पल गोट स्पोर्टेनमेंट एलएलपी द्वारा किया जाएगा।
श्री बघेल का कहना है कि वर्तमान और अगली पीढ़ी के लिए खेलों को बढ़ावा देना छत्तीसगढ़ के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। विजेंदर सिंह के कद का कोई व्यक्ति, जिसने ओलंपिक में देश को गौरवान्वित किया है, उनका आना पूरे राज्य में युवा एथलीटों को प्रेरित करेगा।
यह प्रो-बॉक्सिंग इवेंट बलबीर सिंह जुनेजा इंडोर स्टेडियम, रायपुर में आयोजित की जाएगी। जिसमें विजेंदर सिंह के मुकाबले (हेडलाइन बाउट) के साथ अन्य अंतर्राष्ट्रीय पेशेवर मुक्केबाजों के मुकाबले भी होंगे।