ताजा खबर
भूपेश सहित मंत्री-विधायक जुटे
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
नई दिल्ली/रायपुर, 22 जून । सीएम भूपेश बघेल कांग्रेस मुख्यालय में सभी राज्यों के विधायकों की बैठक में शामिल हुए। इस मौके पर ईडी की कार्रवाई को लेकर आगे की रणनीति पर चर्चा हुई।
बैठक में श्री बघेल ने खाद्य मंत्री अमरजीत भगत का परिचय कराया है। इसके साथ ही सभी ने उन्हें जन्मदिन की शुभकामनाएं दी। इस मौके पर पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम, केसी वेणुगोपाल सहित अन्य नेता मौजूद थे।
पश्चिमी यूपी के सहारनपुर में 10 जून को हुई हिंसा के बाद स्थिति भले ही सामान्य है लेकिन हिंसा का असर फर्नीचर मार्केट पर अब भी दिख रहा है. विदेशों से ऑर्डर मिलने बंद हो गए हैं और कारीगर डर के मारे काम पर नहीं आ रहे हैं.
डॉयचे वैले पर समीरात्मज मिश्र की रिपोर्ट-
सहारनपुर की जामा मस्जिद में गत दस जून को जुमे की नमाज के बाद हुई हिंसा का असर यहां के मशहूर फर्नीचर व्यवसाय पर पड़ा है. हर दिन करोड़ों रुपये के टर्नओवर वाले इस बाजार में व्यवसायी अब हर दिन कुछ लाख रुपयों का व्यापार भी नहीं कर पा रहे हैं. हिंसा के बाद लोगों ने मार्केट से दूरी बना ली है तो दूसरी ओर तमाम कारीगर भी खौफ के कारण काम पर नहीं आ रहे हैं.
सहारनपुर उत्तर भारत के सबसे बड़े फर्नीचर बाजार में से एक है और यह लकड़ी पर नक्काशी के लिए दुनिया भर में मशहूर है. कोरोना संकट के बाद बाजार की स्थिति सुधर रही थी लेकिन हिंसा की वजह से व्यापार ठप पड़ गया है.
सहारनपुर के पुराने शहर में ज्यादातर लोग इसी व्यवसाय से जुड़े हैं और यहां के करीब 80 फीसद कारीगर भी लकड़ी से ही संबंधित कामों में लगे हैं. 10 जून को इसी इलाके में हिंसा हुई थी. स्थानीय सभासद और सहारनपुर टिंबर एसोसिएशन के सचिव मंसूर बदर कहते हैं कि न सिर्फ लकड़ी की नक्काशी की चीजों का व्यापार ठप हो गया है बल्कि लकड़ी की सप्लाई भी ठप हो गई है और लकड़ियां खराब हो रही हैं.
बीजेपी की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा के पैगंबर मोहम्मद पर कथित आपत्तिजनक टिप्पणी के बाद उनके खिलाफ कार्रवाई और गिरफ्तारी को लेकर 10 जून को यूपी के कई शहरों में हिंसा हुई थी. कानपुर, प्रयागराज और सहारनपुर में हिंसा का असर सबसे ज्यादा रहा. इन जगहों पर आगजनी और पत्थरबाजी के अलावा गोली चलने की भी घटनाएं हुई थीं. हिंसा में शामिल सैकड़ों लोगों को अब तक गिरफ्तार किया जा चुका है और कई लोगों के घर भी बुलडोजर से ढहाए गए हैं.
करोड़ों के ऑर्डर अटके
डीडब्ल्यू से बातचीत में मंसूर बदर कहते हैं, "यहां के वुडेन आइटम्स की मांग न सिर्फ खाड़ी देशों में है बल्कि यूरोप और अमेरिका में भी है. कोरोना की वजह से दो साल से पूरा व्यापार ठप पड़ा था लेकिन पिछले कुछ समय से स्थिति सुधर रही थी. लेकिन यूक्रेन-रूस युद्ध और अब जुमे के बाद हुई हिंसा ने तो व्यापार बिल्कुल ठप कर दिया है. जहां हर दिन विदेशों से 8-10 ऑर्डर आया करते थे, वहीं पिछले दस दिन से एक भी ऑर्डर नहीं आया है. करोड़ों रुपये के ऑर्डर भी स्टैंड बाई पर चले गए हैं.”
मंसूर बदर कहते हैं कि ऑर्डर स्टैंड बाई होने की वजह से लकड़ी की बिक्री पर भी असर हुआ है. मंसूर बदर बताते हैं कि पुराने शहर से ज्यादातर व्यापार अब नई मार्केट में आ गया है जो खाताखेड़ी में है. इसी मार्केट में लकड़ी से जुड़ी हुई ज्यादातर चीजों की दुकानें आ गई हैं और कई एक्सपोर्टर्स ने अपने दफ्तर भी यहां बना लिए हैं. हिंसा के बाद इसी इलाके में सबसे ज्यादा प्रशासन ने कार्रवाई भी की है.
मंसूर बदर कहते हैं, "यहां दो मकान टूटे हैं, कई लोग गिरफ्तार भी हुए हैं. इसीलिए अभी भी डर का माहौल है. हालांकि प्रशासन काफी सहयोग कर रहा है और स्थिति भी अब बिल्कुल शांत हो गई है लेकिन बाहर के लोगों को अभी भी बहुत भरोसा नहीं है. दूसरी ओर, कारीगर डर के मारे काम पर नहीं आ रहे हैं.”
डरे हुए हैं लोग
सहारनपुर हिंसा में सौ से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया है. उनमें से ज्यादातर लोग इसी इलाके के हैं, सभी मजदूर हैं और लकड़ी के ही काम से जुड़े हुए हैं. मंसूर बदर भले ही कह रहे हों कि स्थिति शांत है लेकिन काम करने वाले मजदूरों का खौफ उन्हें दोबारा काम पर जाने से रोक रहा है.
खाताखेड़ी में ही एक दुकान पर काम करने वाले रमेश कुमार बताते हैं, "लोगों को लग रहा है कि पुलिस अभी भी तलाश कर रही है और यदि काम पर लौट आए तो किसी को भी पकड़ सकती है. लोगों के सामने भुखमरी का संकट है, लेकिन पुलिस के डर के मारे काम पर नहीं आ रहे हैं. जितने लोग पकड़े गए हैं वो सब के सब यहीं काम करने वाले मजदूर हैं, इसीलिए और भी ज्यादा डरे हुए हैं.”
सहारनपुर में फर्नीचर मार्केट की तमाम दुकानों पर पिछले दस दिन से सन्नाटा पसरा हुआ है. स्थानीय दुकानदारों की मानें तो कई दिनों तक दुकानें बंद ही रहीं लेकिन अब खुल भी रही हैं तो न तो ग्राहक आ रहे हैं और न ही कारीगर या फिर काम करने वाले अन्य मजदूर. मार्केट की सबसे पुरानी दुकानों में से एक नेशनल हैंडीक्राफ्ट के मालिक रईस अहमद कहते हैं, "लकड़ी की चीजें कोई रोजमर्रा की जरूरत वाली चीजें तो हैं नहीं. आदमी सोचता है कि अभी माहौल नहीं ठीक है जब ठीक होगा तब चलेंगे. हालांकि माहौल अब ठीक है लेकिन बाहर के आदमी को इतनी जल्दी भरोसा नहीं होता है."
अहमद को उम्मीद है कि आने वाले दिनों में सब ठीक हो जाएगा. वह कहते हैं, "बाहर के ऑर्डर भी नहीं मिल रहे हैं. हालांकि आजकल मार्केट में बहुत सा काम ऑनलाइन होता है और हमारे पास भी ऑनलाइन ऑर्डर आता है लेकिन कारीगर न होने के कारण हम ऑर्डर भी डिलीवर नहीं कर पा रहे हैं.”
दूर दूर तक है मांग
फर्नीचर मार्केट में व्यापार ठप होने का असर स्थानीय कामगारों पर भी पड़ा है क्योंकि ज्यादातर लोग इसी व्यवसाय से किसी न किसी रूप में जुड़ हैं. रिक्शे से सामान की ढुलाई करने वालों पर भी रोजी-रोटी का संकट मंड़रा रहा है क्योंकि जब बिक्री ही नहीं हो रही है तो उसकी ढुलाई यानी ट्रांसपोर्टेशन कैसे होगा.
पूरी दुनिया में लकड़ी पर नक्काशी के लिए मशहूर सहारनपुर का वुड कार्विंग उद्योग से यहां पर घर-घर में लोग जुड़े हैं. शहर के खाताखेड़ी, शाहजी की सराय, पुरानी मंडी, कमेला कालोनी, पीरवाली गली, आजाद कॉलोनी, पुल कम्बोहान सहित गली मोहल्लों तक में लकड़ी पर हाथ से नक्काशी का काम किया जाता है. यहां लकड़ी के पेंसिल बॉक्स, मोमबत्ती स्टैंड से लेकर बेड, सोफे और लकड़ी के पर्दे तक तैयार किए जाते हैं. इस काम में यहां लाखों लोग जुड़े हैं और हर साल सैकड़ों करोड़ रुपये का राजस्व सरकार को मिलता है.
यहां का बना लकड़ी का सामान न सिर्फ भारत के तमाम हिस्सों में जाता है बल्कि खाड़ी देशों के अलावा अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, कनाडा, रूस, यूक्रेन जैसे दुनिया के कई देशों में भी निर्यात होता है. (dw.com)
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
धमतरी, 22 जून। आज सुबह सडक़ हादसे में एक युवक की मौत हो गई। मृतक रायपुर के एक मीडिया संस्थान में पेजमेकर का काम करता था। यह हादसा कुरूद स्थित नेशनल हाईवे पर मरौद बीज निगम के पास की है।
कुरूद पुलिस के मुताबिक मृतक महेश यादव मूल रूप से धमतरी के नगरी निवासी है, जो अपने परिवार के साथ रायपुर में रहता था। रायपुर से प्रकाशित दैनिक अखबार में पेजमेकर का काम करता था। आज सुबह कहीं जाने के लिए बाइक से निकला था, तभी नेशनल हाईवे पर मरौद के पास सडक़ दुर्घटना में उसकी मौत हो गई। पुलिस मौके पर आकर शव का पंचनामा किया। पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भेजा। परिजनों को सूचना दी गई है।
आशंका है कि बाइक से गिरने की वजह से उसकी मौत हुई है। मृतक मीडियाकर्मी के सिर से बहुत ज्यादा खून बहने से उसकी मौत हुई है।
जर्मनी को अपना गैस भंडार भरने में दिक्कत हो रही है, क्योंकि यूक्रेन युद्ध के कारण रूस ने गैस की सप्लाई में कटौती कर दी है. इन हालात से निपटने के लिए कई विकल्पों पर विचार हो रहा है. इनमें से एक कोयले से बिजली बनाना भी है.
जर्मनी के आर्थिक नीति मंत्री रॉबर्ट हाबेक ने हाल में अपनी मौजूदा ऊर्जा नीति को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ एक तरह की रस्साकशी करार दिया था. उन्होंने कहा कि ऊर्जा के मामले में पुतिन का दबदबा हो सकता है, लेकिन कोशिश करें, तो "हम भी ऐसा कर सकते हैं".
हाबेक का संबंध जर्मनी की ग्रीन पार्टी से है, जिसके लिए पर्यावरण संरक्षण सबसे अहम मुद्दों में शामिल है. ग्रीन पार्टी अक्षय ऊर्जा संसाधनों पर जोर देती है, इसीलिए हाबेक के लिए मौजूदा हालात कहीं ज्यादा चुनौतीपूर्ण हैं. यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद पश्चिमी देशों ने रूस पर प्रतिबंध लगाए. जवाब में रूस ने यूरोप को गैस की आपूर्ति धीमी कर दी. इसी वजह से जर्मनी की ऊर्जा सुरक्षा खटाई में पड़ गई.
जर्मनी 1 अक्टूबर तक अपने गैस भंडारों को 80 फीसदी तक भर देना चाहता है और नवंबर तक 90 फीसदी, ताकि वह सर्दी के महीनों में गैस की मांग को पूरा कर सके. अभी ये गैस स्टोर 57 प्रतिशत भरे हैं. हाबेक चाहते हैं कि जितना संभव हो, गैस की बचत की जाए और उसका इस्तेमाल बिजली बनाने में हो सके.
कोयले से बिजली
जर्मनी में अभी जितनी बिजली बनाई जाती है, उसमें से 16 प्रतिशत गैस से बनती है. इसमें अक्षय ऊर्जा स्रोतों, खासकर पवन और सौर ऊर्जा से मिलने वाली बिजली 42 प्रतिशत है, जिसे अचानक बढ़ाना संभव नहीं है. कोयले से चलने वाले मौजूदा पावर प्लांट भी एक विकल्प है, जिनकी संख्या देशभर में 151 है. ये अभी भी चालू अवस्था में हैं. हालांकि, सरकार उन्हें 2038 तक बंद करना चाहती है.
यूक्रेन पर रूस के हमले से पहले जर्मनी की नई गठबंधन सरकार ने तय किया था कि वह 2030 तक ही कोयले का इस्तेमाल बंद करना चाहती है. लेकिन, अब ऊर्जा नीति पर उसे यू टर्न लेने को विवश होना पड़ रहा है. फिर भी सरकार जोर देकर कह रही है कि इसका यह मतलब नहीं है कि वह कोयले का इस्तेमाल बंद नहीं करना चाहती.
अब संसद में एक नया बिल लाने की तैयारी हो रही है, जिसमें बिजली बनाने के लिए ज्यादा कोयला इस्तेमाल करने की बात शामिल है, ताकि रिजर्व पावर प्लांट्स की उत्पादन क्षमता बढ़ाई जा सके. ये प्लांट आमतौर पर ग्रिड को स्थिर बनाने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं और इन्हें अगले कुछ सालों में बंद किया जाना था.
जर्मनी ने अपनी आखिरी कोयला खदान 2018 में बंद कर की थी. उसके बाद से वह अपनी जरूरत के लगभग आधे जीवाश्म ईंधनों के लिए रूस पर ही निर्भर है. कोयला आयातक संघ के बोर्ड चेयरमैन आलेक्जांडर बेथे ने एक बयान में कहा, "रूस से आने वाले कोयले की जगह कुछ ही महीनों के भीतर दूसरे देशों से आने वाला कोयला ले सकता है. खासकर अमेरिका, कोलंबिया और दक्षिण अफ्रीका से आने वाला कोयला."
जर्मन संसद में कोयले के बिल पर 8 जुलाई को मतदान होगा, लेकिन जर्मन सरकार ने साफ किया है कि जर्मनी में जीवाश्म ईंधनों के फिर से इस्तेमाल की अनुमति सिर्फ मार्च 2024 तक ही होगी. तब तक जर्मनी रूसी गैस की सप्लाई घटाकर 10 प्रतिशत पर लाना चाहता है, जो युद्ध शुरू होने से पहले 55 प्रतिशत थी और अभी लगभग 35 प्रतिशत.
परमाणु ऊर्जा की वापसी नहीं
लेकिन सिर्फ कोयले के इस्तेमाल से जर्मनी की ऊर्जा समस्याएं दूर नहीं होंगी. ऐसे में एक विकल्प है परमाणु ऊर्जा. कोयले के मुकाबले कहीं ज्यादा ईको फ्रेंडली मानी जाने वाली परमाणु ऊर्जा के इस्तेमाल से जर्मन अधिकारी भी इनकार कर रहे हैं और न्यूक्लियर ऑपरेटर भी. जर्मनी अपने बाकी बचे तीन परमाणु प्लांट्स को इस साल के आखिर तक बंद करना चाहता है. आरडब्ल्यूई एनर्जी कंपनी के सीईओ मारकुस क्रेबर ने कहा है कि वापस परमाणु ऊर्जा की तरफ नहीं लौटा जाएगा.
हाबेक का कहना है कि फिर से कोयले का इस्तेमाल 'एक कड़वा फैसला' है, लेकिन उन्होंने कहा कि यह मौजूदा हालात में जरूरी हो गया है, ताकि गैस का इस्तेमाल घटाया जा सके. इसके लिए जर्मनी गैस के इस्तेमाल में भी कटौती करना चाहता है. इससे जो भी गैस बचेगी, उसे लंबे समय के लिए स्टोर किया जा सकता है. यही नहीं, सरकार ने लोगों से अपने घरों में गैस बचाने को भी कहा है. जैसे वे आने वाले महीनों में अपने घरों में हीटिंग बंद कर सकते हैं और ज्यादा गर्म पानी से न नहाएं. हालांकि, इस तरह के कदम को लेकर विवाद भी हुआ.
जर्मनी ऊर्जा की किल्लत को दूर करने के लिए कई कदम उठा रहा है. हालांकि, इतना साफ है कि रूस की तरफ से की गई कटौती का विश्वसनीय विकल्प तलाशना आसान काम नहीं है. रूसी गैस अभी भी जर्मनी में आ तो रही है, लेकिन इसकी आपूर्ति जरूर कम हुई है.
भारत ने बायोफ्यूल एथेनॉल की पेट्रोल में मात्रा को साल 2025 तक 20 फीसदी करने का फैसला किया है. लेकिन सिर्फ पेट्रोल में मिलाया जाने वाला एथेनॉल तब भी यहां इस्तेमाल होने वाले कुल पेट्रोलियम उत्पादों का 2-3 फीसदी ही होगा.
डॉयचे वैले पर अविनाश द्विवेदी की रिपोर्ट-
वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की ऊंची कीमतों का भारत पर असर कम करने के लिए भारत सरकार ने पिछले महीने 'ई-20 बाई 2025' योजना की शुरुआत की है. इसके तहत भारत में पेट्रोल में मिलाए जाने वाले बायोफ्यूल एथेनॉल की मात्रा साल 2025 तक बढ़ाकर 20 फीसदी की जानी है. फिलहाल भारत में पेट्रोल में 10 फीसदी एथेनॉल मिलाया जाता है.
भारत में ज्यादातर पेट्रोल आयात किया जाता है, जिसपर बहुत खर्च होता है. एथेनॉल की मिलावट के जरिए सरकार आयात खर्च में करीब 400 अरब रुपये की बचत करना चाहती है. लेकिन जब रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच दुनिया गंभीर खाद्य संकट का सामना कर रही है, तब खाने की चीजों से बनने वाले बायोफ्यूल के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के भारत के कदम ने दुनियाभर में फिर बायोफ्यूल पर बहस शुरू कर दी है.
कारों में रोज जलता है 10,000 टन गेहूं
भारत से उलट यूरोपीय संघ के जर्मनी और बेल्जियम जैसे देश युद्ध से उपजे खाद्य संकट से निपटने के लिए बायोफ्यूल की पेट्रोल में मिलावट को कम करने पर विचार कर रहे हैं. ब्रसेल्स स्थित पर्यावरण कैंपेन समूह ट्रांसपोर्ट एंड एनवायरमेंट से जुड़े माइक मारारेंस का कहना है, यूरोपीय संघ के देशों में एक दिन में कार में जल जाने वाला बायोफ्यूल करीब 10 हजार टन गेहूं के बराबर होता है. इस तथ्य पर दुनियाभर में काफी बहस हुई.
वॉशिंगटन स्थित थिंकटैंक वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट का भी कहना है कि यूरोप और अमेरिका में बायोफ्यूल के लिए इस्तेमाल होने वाले अनाजों में 50 फीसदी की कमी कर दें तो यूक्रेन से आयात होने वाले कुल गेहूं की भरपाई की जा सकती है. हालांकि कई अर्थशास्त्रियों ने ऐसी तुलनाओं को अतार्किक करार दिया है. फिर भी युद्ध से बायोफ्यूल का उत्पादन कम होना तय है. इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी ने इस साल के लिए बायोफ्यूल की अनुमानित विकास दर को 20 फीसदी घटा दिया है.
65 फीसदी उत्पादन गन्ने से
फिर भी दुनियाभर में बायोफ्यूल की मांग इस साल भी पांच फीसदी बढ़ेगी. वजह है अमेरिका और भारत सहित दुनिया के ज्यादातर बड़े वाहन बाजारों में पेट्रोल में बायोफ्यूल मिलावट के नियम. इंडोनेशिया में तो 30 फीसदी बायोडीजल की मिलावट का प्रावधान है. वहीं ब्राजील में यह दर 27 फीसदी है.
बायोफ्यूल अधिक स्टार्च वाली फसलों जैसे गन्ना, मक्का, आलू, चावल, अंगूर और गेहूं आदि से बनाया जाता है. भारत में गन्ना, अमेरिका में मक्का और इंडोनेशिया में यह पाम तेल से बनाया जाता है. भारत के कुल एथेनॉल का करीब 65 फीसदी गन्ने से आता है.
एस एंड पी ग्लोबल में बायोफ्यूल के विशेषज्ञ सम्यक पांडेय बताते हैं, "भारत में गन्ने का इस्तेमाल, गुड़-शक्कर, एथेनॉल और शराब तीनों के उत्पादन में होता है. ऐसे में देखना होगा कि एथेनॉल की मांग में बढ़ोतरी के बाद भी तीनों में संतुलन बना रह सकेगा या नहीं. ज्यादा सही रास्ता यही होगा कि भारत गन्ने के बजाए अमेरिका की तरह मक्के के इस्तेमाल से एथेनॉल निर्माण की कोशिश करे. सरकार इसके लिए कोशिशें भी कर रही है."
अभी अनाजों का विकल्प नहीं
फूड बनाम फ्यूल की लड़ाई के बीच जानकार यह भी सुझाते हैं कि बायोफ्यूल बनाने के लिए उन्हीं फसलों का इस्तेमाल किया जाए, जो खाने योग्य न हों. लेकिन सिर्फ खराब हुई फसल से औद्योगिक स्तर पर बायोफ्यूल का उत्पादन कर पाना नामुमकिन है. ऐसे में गैर अनाज विकल्प जैसे बांस, पराली और काई से भी बायोफ्यूल बनाने के प्रयोग चल रहे हैं लेकिन अभी औद्योगिक स्तर पर उनका उत्पादन नहीं हो रहा है.
भारत भी अभी वैश्विक औसत से कम ही एथेनॉल का उत्पादन करता है. भारत दुनिया के 19 फीसदी गन्ने का उत्पादन करता है, जबकि वैश्विक एथेनॉल उत्पादन में उसका हिस्सा 2 फीसदी ही है. भारत को अपने 2025 के लक्ष्य को पूरा करने के लिए एक हजार करोड़ लीटर से ज्यादा एथेनॉल का प्रति वर्ष उत्पादन करना होगा, जो फिलहाल उपलब्ध उत्पादन क्षमता का करीब डेढ़ गुना होगा. यानी तेजी से और अधिक फसलें इस काम में लाई जाएंगीं.
वाकई पर्यावरण बचाएंगे बायोफ्यूल?
सम्यक कहते हैं, "गन्ना और चावल दोनों की ही खेती में भारी मात्रा में पानी की जरूरत होती है. ऐसे में इनसे एथेनॉल बनाने की जिद भारत में ग्राउंडवाटर की स्थिति को प्रभावित कर सकती है. इसलिए ध्यान देना होगा कि एथेनॉल से होने वाले लाभ के मुकाबले कहीं इसे बनाने की प्रक्रिया पर्यावरण को ज्यादा नुकसान न पहुंचाए."
बहरहाल एथेनॉल युक्त पेट्रोल की कीमत आम पेट्रोल से 8 से 10 रुपये प्रति लीटर कम होती है. लेकिन इसके लिए ऐसे इंजन वाली गाड़ियों की जरूरत भी होगी, जो आसानी से 20 फीसदी एथेनॉल वाले पेट्रोल से चल सकें. एक अनुमान के मुताबिक ऐसे दोपहिया वाहनों के दाम आम दोपहिया गाड़ियों से डेढ़ हजार रुपये से 3 हजार रुपये तक ज्यादा होंगे. लेकिन वाहन निर्माता ऐसी गाड़ियां बनाने पर कितना जोर दे रहे हैं, यह अभी साफ नहीं है. (dw.com)
बीजेपी ने झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद के लिए एनडीए का उम्मीदवार बनाया है. कौन हैं द्रौपदी मुर्मू और बीजेपी ने उन्हें क्यों चुना?
डॉयचे वैले पर विवेक कुमार की रिपोर्ट-
झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को एनडीए ने राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार के तौर पर चुना है. ओडिशा की आदिवासी मूल की मुर्मू का सामना पूर्व बीजेपी नेता यशवंत सिन्हा से होगा जिन्हें विपक्ष ने अपना साझा उम्मीदवार बनाया है. अगर राष्ट्रपति चुनी जाती हैं तो द्रौपदी मुर्मू इस पद पर पहुंचने वालीं देश की पहली आदिवासी महिला होंगी.
चुनाव आयोग की घोषणा के मुताबिक राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव 18 जुलाई को होना है. 21 जुलाई को मतदान होगा और 25 जुलाई को नये राष्ट्रपति शपथ लेंगे.
द्रौपदी मुर्मू के नाम का ऐलान बीजेपी संसदीय दल की बैठक के बाद किया गया. बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने बताया कि संसदीय दल ने 20 नामों पर विचार किया और फिर यह फैसला किया गया कि इस पद के लिए पूर्वी भारत से किसी महिला आदिवासी को चुना जाए.
मुर्मू के नाम की घोषणा होने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्विटर पर कहा कि द्रौपदी मुर्मू ने जीवन की कठिनाइयां देखी हैं. उन्होंने कहा, "वे करोड़ों लोग जिन्होंने अत्याधिक गरीबी देखी है और मुश्किलें सही हैं, वे श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी से प्रेरणा पाते हैं. नीतिगत मामलों की उनकी समझ और करुणामयी स्वभाव से देश को लाभ होगा."
कौन हैं द्रौपदी मुर्मू?
64 वर्षीय द्रौपदी मुर्मू 2017 में भी राष्ट्रपति पद के लिए मजबूद दावेदार थीं लेकिन तब बिहार के तत्कालीन राज्यपाल और दलित नेता राम नाथ कोविंद को प्राथमिकता दी गई. मुर्मू का राजनीति करियर लंबा और संघर्षपूर्ण रहा है. उन्होंने एक पार्षद के तौर पर राजनीति की शुरुआत की थी. ओडिशा से दो बार भारतीय जनता पार्टी की विधायक रहीं मुर्मू को बीजेडी-बीजेपी सरकार में नवीन पटनायक ने मंत्री भी बनाया था.
मयूरभंज जिले की रहने वालीं मुर्मू ने ओडिशा में वाणिज्य, परिवहन और पशुपालन व मत्स्य मंत्रालय संभाले थे. 2000 के बाद 2009 में भी मुर्मू विधायक चुनी गई थीं, जबकि बीजेपी की हालत काफी खराब थी. 2015 में उन्हें झारखंड की पहली महिला राज्यपाल बनाया गया. मुर्मू का निजी जीवन त्रासद रहा है. उन्होंने अपने पति और दोनों बेटों को खोया है.
मुर्मू ने बीजेपी की मयूरभंज जिला इकाई की अध्यक्षता करने से लेकर रायरंगपुर सीट से विधायकी जीतने तक कई तरह की जिम्मेदारियां निभाई हैं. नवीन पटनायक ने भी उन्हें राष्ट्रपति पद की उम्मीवारी के लिए बधाई दी. ट्विटर पर पटनायक ने कहा, "देश के सर्वोच्च पद के लिए एनडीए का उम्मीदवार बनने पर बधाई. जब प्रधानमंत्री ने मुझसे इस बारे में बात की तो मुझे खुशी हुई थी. ओडिशा के लोगों के लिए यह गर्व का पल है."
ऐसी अटकलें लगाई जा रही हैं कि चुनाव में बीजेपी को नवीन पटनायक की मदद की उम्मीद है. उनके अलावा एक आदिवासी को उम्मीदवार बनाकर बीजेपी झारखंड मुक्ति मोर्चा से भी समर्थन की उम्मीद कर रही है. बीजेडी और जेएमएम के समर्थन से एनडीए की स्थिति मजबूत हो जाएगी.
यशवंत सिन्हा विपक्ष के उम्मीदवार
इससे पहले विपक्षी दलों ने यशवंत सिन्हा को अपना साझा उम्मीदवार घोषित किया. पूर्व बीजेपी नेता यशवंत सिन्हा गैर-बीजेपी दलों के उम्मीदवार होंगे. उनके नाम पर सहमति बनने से पहले तीन नेताओं ने उम्मीदवारी के लिए मना कर दिया था. इनमें एनसीपी प्रमुख शरद पवार, जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला और पूर्व राज्यपाल गोपाल कृष्ण गांधी शामिल हैं.
भारत में राष्ट्रपति का चुनाव इलेक्टोरल कॉलेज के जरिए होता है, यानी संसद के दोनों सदनों के सदस्य, सभी राज्यों की विधानसभाओं के सदस्य और केंद्रशासित प्रदेशों व राजधानी क्षेत्र दिल्ली की विधानसभाओं के सदस्य इस चुनाव में मतदान करते हैं. मुर्मू का जीतना तय माना जा रहा हैक्योंकि बीजेपी के पास 48 प्रतिशत इलेक्टोरल वोट है और एक आदिवासी को उम्मीदवार बनाकर उसने आदिवासी विधायकों के वोट पाने की संभावना भी बढ़ा ली है. (dw.com)
आर्थिक रूप से कमजोर देश श्रीलंका ने युवा महिलाओं को विदेश में काम करने की इजाजत दे दी है. कोलंबो ने 2013 में विदेश में काम करने वाली महिलाओं की आयु सीमा तय की थी.
श्रीलंका में आर्थिक मंदी के कारण महिलाओं के विदेश जाने और काम करने की उम्र अब 23 साल पहले की तुलना में 21 साल कर दी गई है. बिगड़ती आर्थिक स्थिति को देखते हुए यह फैसला लिया गया ताकि विदेशों से आने वाले डॉलर श्रीलंका की गिरती अर्थव्यवस्था को सहारा दे सकें.
कोलंबो ने 2013 में विदेशों में काम करने वाली महिलाओं पर उम्र प्रतिबंध लगाया था. उस साल सऊदी अरब में बच्चे की देखभाल करने वाली 17 साल की आया का सिर कलम कर दिया गया था क्योंकि उसकी देखरेख के दौरान एक बच्चे की मौत हो गई थी.
आया की सजा पर नाराजगी के बाद सिर्फ 23 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं को विदेश जाकर काम करने की अनुमति दी गई थी, जबकि सऊदी अरब के लिए न्यूनतम आयु 25 वर्ष निर्धारित की गई थी.
लेकिन श्रीलंका ने सबसे खराब आर्थिक संकट से निपटने के लिए अपने कानूनों में संशोधन किया है. नए नियम सऊदी अरब पर भी लागू होते हैं.
श्रीलंका के युवा प्रदर्शनकारी पारंपरिक राजनीति से क्यों खफा हैं?
पत्रकारों से बात करते हुए प्रवक्ता बांडुला गुणावर्धने ने कहा कि विदेश में रोजगार के अवसर बढ़ाने की जरूरत को देखते हुए कैबिनेट ने सभी देशों में काम करने वाली महिलाओं की न्यूनतम उम्र 21 साल करने के फैसले को मंजूरी दे दी है.
विदेश जाकर काम करने वाले श्रीलंकाई लंबे समय से देश के लिए विदेशी मुद्रा का एक प्रमुख स्रोत रहे हैं, ऐसे कामगारों से देश को हर साल लगभग सात अरब डॉलर मिलते हैं.
कोरोना वायरस महामारी के दौरान 2021 में विदेश से आना वाला पैसा घटकर 5.4 अरब डॉलर हो गया और आर्थिक संकट के कारण इस साल अनुमान है कि यह 3.5 अरब डॉलर से भी कम हो जाएगा.
दक्षिण एशियाई देश का विदेशी मुद्रा भंडार इतना कम है कि सरकार ने भोजन, ईंधन और दवा समेत आवश्यक चीजों के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है.
श्रीलंका साल 1948 के बाद से अपने सबसे खराब वित्तीय संकट से जूझ रहा है. देश पर कुल विदेशी कर्ज 51 अरब डॉलर है.
इस संकट के लिए कर में कटौती के लिए गलत समय का चुनाव और ऐतिहासिक रूप से कमजोर सरकारी वित्त प्रबंधन को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है. पर्यटन पर निर्भर श्रीलंका की अर्थव्यवस्था पर पहले ही कोविड के दौरान पर्यटन बंद रहने से मार पड़ी थी. अब देश में विदेशी मुद्रा की भारी कमी हो गई जिसकी वजह से सरकार आम जरूरत के सामान के आयात की कीमत नहीं चुका पा रही है.
फरवरी तक श्रीलंका के पास 2.31 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार बचा था, जिसके बाद सरकार को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, भारत और चीन समेत अन्य देशों से मदद लेने के लिए मजबूर होना पड़ा.
एए/वीके (एएफपी, रॉयटर्स)
रायपुर, 22 जून। मुजगहन थाना क्षेत्र में धुसेरा गांव युवक की लाश मिली है। पुलिस मामले की तफ्तीश शुरू कर दी है। पुलिस को हत्या की आशंका है।
-विष्णु नारायण
केंद्र सरकार की ‘अग्निपथ योजना’ को लेकर जहाँ बिहार में सत्ता पक्ष के अहम दलों के बीच तल्खियां बढ़ गई हैं वहीं विपक्ष (महागठबंधन) में शामिल राजद और वामपंथी दलों के तमाम विधायकों ने आज बिहार विधान सभा से राजभवन तक मार्च किया.
नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के साथ पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी, सदन में भाकपा (माले) के नेता व विधायक महबूब आलम, राज्यसभा सांसद मनोज कुमार झा, हसनपुर विधायक तेज प्रताप यादव के साथ कुल 11 लोगों के प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल फागू चौहान से मुलाकात की.
हालांकि कांग्रेस इस मार्च में साथ नहीं दिखी.
इससे पहले बिहार के वामपंथी छात्र व युवा संगठनों के आह्वान पर बीते 18 मार्च को बुलाए गए ‘बिहार बंद’ को भी बिहार के तमाम विपक्षी दलों ने अपना समर्थन दिया था.
नेता प्रतिपक्ष ने मीडिया से बातचीत में कहा, ‘कई लोगों की सिर्फ़ ज्वाइनिंग रह गई थी, उन्हें फिर से पूरी प्रक्रिया से गुज़रना होगा. लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि चार साल बाद नौजवान क्या करेंगे? जैसा कि भाजपा के नेता कह रहे हैं कि वे उन्हें अपने दफ़्तर में चौकीदार बनाकर नौकरी पर रखेंगे, क्या यह बात सही है? हम किसी भी हालत में नौजवानों के साथ खिलवाड़ नहीं होने देंगे.’ (bbc.com)
शिवसेना नेता संजय राउत ने महाराष्ट्र में जारी घमासान पर कहा है कि ज़्यादा से ज़्यादा क्या होगा, सत्ता ही तो जाएगी.
पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने कहा, “एकनाथ शिंदे हमारे बहुत पुराने पार्टी मेंबर हैं, हमारे दोस्त हैं. हमने दशकों तक साथ काम किया है. एक-दूसरे को छोड़ना ना तो उनके लिए आसान है और ना ही हमारे लिए. मैंने आज सुबह उनसे बात की है और पार्टी प्रमुख को इसके बारे में सूचित किया है.”
इस बीच संजय राउत ने एक और ट्वीट किया है और लिखा है कि महाराष्ट्र में राजनीतिक घटनाक्रम विधानसभा भंग होने की ओर.
राउत ने दावा किय कि एकनाथ शिंदे के साथ जो भी विधायक हैं उनके साथ बातचीत चल रही है. हर कोई शिवसेना में ही रहेगा.
राउत ने कहा, “हमारी पार्टी एक योद्धा पार्टी है, हम लगातार संघर्ष करेंगे. ज़्यादा से ज़्यादा यही होगा कि हम सत्ता खो देंगे लेकिन हम लड़ना जारी रखेंगे.”
एकनाथ शिंदे का दावा, उनके साथ हैं 40 विधायक
शिवसेना के बाग़ी नेता एकनाथ शिंदे अपने साथ शिवसेना के अन्य विधायकों के साथ गुवाहाटी के एक होटल पहुंच चुके हैं.
मीडिया रिपोर्ट्स में जहां शिंदे के साथ शिवसेना के 30 विधायकों के होने की संभावना जताई जा रही है, वहीं एकनाथ शिंदे ने दावा किया है कि उनके साथ 40 विधायक हैं.
महाराष्ट्र में शहरी विकास मंत्री और शिवसेना के बड़े नेता एकनाथ शिंदे के बागी सुर अपनाने के बाद महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार मुश्किल में है.
महाराष्ट्र विधानसभा में 288 सीटें हैं. शिवसेना विधायक रमेश लटके के निधन के बाद एक सीट ख़ाली है जिसका मतलब है कि अभी महाराष्ट्र विधानसभा में 287 विधायक हैं.
किसी पार्टी या गठबंधन सरकार को सत्ता में रहने के लिए 144 विधायकों की जरूरत है. इस वक्त महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी गठबंधन की सरकार है जिसमें शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस शामिल है.
गठबंधन सरकार ने 30 नवंबर 2019 को विधानसभा में विश्वास मत जीतकर सरकार बनाई थी. तब 169 विधायकों ने गठबंधन के पक्ष में मतदान किया था.
शिवसेना के पास वर्तमान में 55 विधायक, एनसीपी के 53 और कांग्रेस के पास 44 विधायक हैं.
बीजेपी ने 2019 विधानसभा चुनाव में 105 सीटें जीती थीं लेकिन एक पंढरपुर विधानसभा के उपचुनाव में ये सीट बीजेपी ने एनसीपी से जीत ली थी जिसके बाद बीजेपी के 106 विधायक हैं.
सदन में 13 निर्दलीय हैं. इनमें से तीन विधायक शिवसेना कोटे से गठबंधन सरकार में मंत्री हैं. जिसमें राजेंद्र पाटिल येड्रावकर, शंकरराव गडाख और बच्चू कडू शामिल हैं.
13 निर्दलीय उम्मीदवारों में से 6 बीजेपी के समर्थक हैं, जबकि पांच ने शिवसेना को और एक एक कांग्रेस और एनसीपी को अपना समर्थन दिया हुआ है.
इसके अलावा जनसुराज्य शक्ति पार्टी के विनय कोरे और राष्ट्रीय समाज पक्ष के रत्नाकर गुट्टे भी भाजपा के समर्थक हैं. वहीं स्वाभिमानी पक्ष के देवेंद्र भुयार और पीडब्ल्यू के श्यामसुंदर शिंदे एनसीपी की तरफ हैं.
एआईएमआईएम और समाजवादी पार्टी के दो-दो विधायक हैं जो गठबंधन सरकार की तरफ हैं. जबकि बहुजन विकास अघाड़ी के तीन विधायक बीजेपी की तरफ हैं.
वहीं माकपा के पास एक, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के पास एक और प्रहार जनशक्ति पक्ष पार्टी के पास एक विधायक है. (bbc.com)
(योषिता सिंह)
संयुक्त राष्ट्र, 22 जून। भारत ने कहा है कि हिंसा को बढ़ावा देना शांति, सहिष्णुता और सद्भाव की भावना के खिलाफ है तथा संवैधानिक दायरे के भीतर विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का वैध प्रयोग लोकतंत्र को मजबूत करने तथा असहिष्णुता का मुकाबला करने में महत्वपूर्ण और सकारात्मक भूमिका निभाता है।
संयुक्त राष्ट्र में भारत के उप स्थायी प्रतिनिधि आर रवींद्र ने मंगलवार को यूक्रेन पर आयोजित, सुरक्षा परिषद की बैठक में यह बात कही। उन्होंने कहा कि निस्संदेह आतंकवाद सभी धर्मों और संस्कृतियों का विरोधी है।
सुरक्षा परिषद की इस बैठक का विषय 'हिंसा को उकसावे से अत्याचार अपराध को बढ़ावा’ था।
रवींद्र ने कहा, ‘‘हमें कट्टरपंथ और आतंकवाद दोनों का ही सामूहिक रूप से मुकाबला करना चाहिए।’’
भारतीय राजदूत ने कहा कि संवैधानिक दायरे के भीतर विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का वैध प्रयोग लोकतंत्र को मजबूत करने, बहुलवाद को बढ़ावा देने तथा असहिष्णुता का मुकाबला करने में महत्वपूर्ण और सकारात्मक भूमिका निभाता है।
आर रवींद्र ने कहा, ” हिंसा को बढ़ावा देना शांति, सहिष्णुता और सद्भाव की भावना के खिलाफ है। भारत हमेशा से यह मानता रहा है कि लोकतंत्र और बहुलवाद के सिद्धांतों पर आधारित समाज विविध समुदायों को एक साथ रहने के लिए एक बेहतर माहौल प्रदान करता है।”
उन्होंने कहा कि यह सुनिश्चित करना संयुक्त राष्ट्र की जिम्मेदारी है कि नफरत फैलाने वाले भाषणों और भेदभाव के खिलाफ अभियान कुछ चुनिंदा धर्मों और समुदायों तक ही सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि इसके दायरे में सभी प्रभावित लोगों को शामिल करना चाहिए।
उन्होंने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि यूक्रेन संकट ने न केवल यूरोप बल्कि पूरी दुनिया को प्रभावित किया है, और साथ ही यह युद्ध व्यापक क्षेत्रीय और वैश्विक प्रभाव तथा अस्थिरता पैदा कर रहा है।
रवींद्र ने कहा, “भारत यूक्रेन में गंभीर रूप से दिन-प्रतिदिन बिगड़ते हालात को लेकर बेहद चिंतित है तथा हिंसा को तत्काल समाप्त करने और शत्रुतापूर्ण भावना को समाप्त करने के अपने आह्वान को दोहराता है। हम इस युद्ध को समाप्त करने के लिए सभी राजनयिक प्रयासों का समर्थन करते हैं, हम विशेष रूप से यूक्रेन और रूस के बीच बातचीत का समर्थन करते हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘जैसा कि हमने पहले भी कहा है, हम यूक्रेन में अत्याचारों की स्वतंत्र रूप से जांच के लिए संयुक्त राष्ट्र महासचिव के आह्वान का समर्थन करते हैं।’’
उन्होंने खाद्य सुरक्षा पर विवाद के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने के लिए रचनात्मक रूप से काम करने की भारत की प्रतिबद्धता को भी दोहराया। (भाषा)
नयी दिल्ली, 22 जून। देश में एक दिन में कोविड-19 के 12,249 नए मामले सामने आने से कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या बढ़कर 4,33,31,645 हो गई, वहीं 13 और मरीजों की मौत होने से मृतक संख्या बढ़कर 5,24,903 हो गई है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के बुधवार को सुबह आठ बजे तक के अद्यतन आंकड़ों के अनुसार, उपचाराधीन मरीजों की संख्या में 2,300 की बढ़ोतरी होने से उपचाराधीन मरीजों की संख्या बढ़कर 81,687 हो गयी है।
मंत्रालय के अनुसार उपचाराधीन मामले संक्रमण के कुल मामलों का 0.19 प्रतिशत है। कोविड-19 से स्वस्थ होने की राष्ट्रीय दर 98.60 प्रतिशत है। संक्रमण से अब तक 4,27,25,055 लोग उबर चुके हैं। संक्रमण से मृत्यु दर 1.21 प्रतिशत है।
देशव्यापी कोविड-19 रोधी टीकाकरण अभियान के तहत अभी तक लोगों को 196.45 करोड़ खुराकें दी गयी है।
गौरतलब है कि देश में सात अगस्त 2020 को संक्रमितों की संख्या 20 लाख, 23 अगस्त 2020 को 30 लाख और पांच सितंबर 2020 को 40 लाख से अधिक हो गई थी। संक्रमण के कुल मामले 16 सितंबर 2020 को 50 लाख, 28 सितंबर 2020 को 60 लाख, 11 अक्टूबर 2020 को 70 लाख, 29 अक्टूबर 2020 को 80 लाख और 20 नवंबर को 90 लाख के पार चले गए थे।
देश में 19 दिसंबर 2020 को ये मामले एक करोड़ से अधिक हो गए थे। पिछले साल चार मई को संक्रमितों की संख्या दो करोड़ और 23 जून 2021 को तीन करोड़ के पार पहुंच गई थी। इस साल 26 जनवरी को मामले चार करोड़ के पार हो गए थे। (भाषा)
मुंबई, 22 जून। शिवसेना के एक बागी मंत्री ने बुधवार को कहा कि उन्हें पार्टी नेतृत्व से कोई शिकायत नहीं है, लेकिन वह राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) और कांग्रेस के काम करने के तरीकों से खुश नहीं हैं।
महाराष्ट्र में शिवसेना नीत महा विकास आघाड़ी (एमवीए) सरकार है, जिसमें राकांपा और कांग्रेस भी शामिल हैं।
शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में महाराष्ट्र के बागी विधायकों का एक समूह बुधवार को सुबह गुवाहाटी पहुंच गया।
बागी विधायकों में से एक महाराष्ट्र के मंत्री संदीपन भूमरे ने एक टीवी चैनल से फोन पर बातचीत में कहा, ‘‘ हमें शिवसेना के नेतृत्व से कोई शिकायत नहीं है। हमने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के समक्ष हमारी शिकायतें रखी थीं कि राकांपा और कांग्रेस के मंत्रियों के साथ काम करना मुश्किल होता जा रहा है। हमारे लिए उनके मंत्रियों से प्रस्तावों और काम संबंधी मंजूरी लेना बहुत मुश्किल हो गया है।’’
भूमरे ने एक सवाल के जवाब में कहा कि उन्हें जो विभाग दिया गया है, उससे वह संतुष्ट हैं। उन्होंने कहा, ‘‘ मुझे जीवन में और क्या चाहिए, लेकिन एक जन प्रतिनिधि के रूप में, मुझे अपने लोगों की शिकायतों को दूर करना होगा। इन दो गठबंधन सहयोगियों के कारण मैं ऐसा नहीं कर पा रहा हूं।’’
इस बीच, शिवसेना के एक अन्य बागी विधायक संजय शिरष्ठ ने एक टीवी चैनल को बताया कि पार्टी के 35 विधायक गुवाहाटी में हैं। उन्होंने कहा, ‘‘ आज शाम तक कुछ और विधायक हमारे साथ आएंगे। हमें तीन निर्दलीय विधायकों का भी समर्थन हासिल है।’’
शिरष्ठ ने राज्य के राकांपा और कांग्रेस के मंत्रियों पर भी निशाना साधा और दावा किया कि उनके ‘‘शत्रुतापूर्ण व्यवहार’’ ने शिवसेना विधायकों को विद्रोह करने के लिए मजबूर कर दिया है। (भाषा)
नालों को रिचार्ज करने के लिए संचालित कार्यों के सुचारू संचालन के लिए गठित किया गया है ‘नरवा मिशन’
अपर मुख्य सचिव सुब्रत साहू की अध्यक्षता में गठित किया गया है सात सदस्यीय ‘नरवा मिशन’
रायपुर, 22 जून। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के निर्देश पर प्रदेश में नरवा कार्यक्रम के सुचारू संचालन, अनुश्रवण एवं नरवा विकास के कार्यों को गति प्रदान करने तथा पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग एवं जलवायु परिवर्तन विभाग द्वारा नरवा विकास के किए जा रहे कार्यों में समन्वय स्थापित करने के लिए वन एवं जलावायु परिवर्तन विभाग के अपर मुख्य सचिव श्री सुब्रत साहू की अध्यक्षता में सात सदस्यीय ‘नरवा मिशन’ का गठन किया गया है।
पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के सचिव श्री आर. प्रसन्ना, प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं वन बल प्रमुख श्री राकेश चतुर्वेदी, अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं मुख्य कार्यपालन अधिकारी कैम्पा श्री व्ही. श्रीनिवास राव, अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक (संयुक्त वन प्रबंधन) श्री अरूण कुमार पाण्डेय, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार मिशन के आयुक्त श्री मोहम्मद अब्दुल कैसर हक, नरवा-गरवा-घुरवा-बाड़ी एवं छत्तीसगढ़ गोधन न्याय योजना के नोडल अधिकारी डॉ. तंबोली अय्याज फकीर भाई और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार मिशन के मुख्य अभियंता श्री नारायण निमजे नरवा मिशन के सदस्य होंगे।
गौरतलब है कि प्रदेश में ‘नरवा कार्यक्रम’ मुख्यतः पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग तथा वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग द्वारा संचालित किया जा रहा है। ‘नरवा कार्यक्रम’ में छोटे-छोटे भूमिगत डाइक जैसे संरचनाओं की मदद से नालों को निरंतर बहने वाला सदानीरा नाला बनाते हुए नालों के जल द्वारा भूमिगत जल को रिचार्ज करने का लक्ष्य रखा गया है।
इस कार्यक्रम से छत्तीसगढ़ में सिंचित क्षेत्र बढ़ेगा और अधिकांश जगह कृषि के लिए जल उपलब्ध होगा। निस्तार के लिए भी पानी की कमी की समस्या काफी हद तक दूर हो सकेगी। साथ ही जैव विविधता (बायो डायवर्सिटी) का संवर्धन होगा।
पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग द्वारा अपने विभागाध्यक्ष कार्यालय के माध्यम से संचालित ‘नरवा कार्यक्रम’ की अपर मुख्य सचिव पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग मॉनिटरिंग-समीक्षा करेंगे तथा वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग की ओर से किए जा रहे नरवा विकास के कार्यों की समीक्षा एवं कार्यक्रम का क्रियान्वयन पूर्ववत प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं वन बल प्रमुख द्वारा ही किया जाएगा।
नरवा विकास कार्यक्रम के तहत प्रदेश के लगभग 30 हजार नालों को रिचार्ज करने के लिए चयनित किया गया है। प्रथम चरण में 9541 नरवा के उपचार की स्वीकृति दी गई है। नालों का उपचार करने के लिए नरवा विकास कार्यक्रम के तहत नालों में वर्षा के जल को रोकने हेतु लूज बोल्डर चेक, चेकडेम, गली प्लग, कंटूर ट्रेंच, स्टाप डेम सहित अन्य संरचनाओं का निर्माण किया जा रहा है। उपचारित नालोें में अब गर्मी के दिनों में भी पानी रहता है। इससे निस्तार, पेयजल और सिंचाई के लिए जल की उपलब्धता बढ़ी है और क्षेत्र में भू-जल स्तर में भी बढ़ोत्तरी हो रही है।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर, 22 जून। बीते 14 जून से अपोलो अस्पताल में भर्ती राहुल साहू अब खतरे से बाहर है। उसे फिजियोथैरेपी दी जा रही है और जल्द ही उसके पूरी तरह स्वस्थ हो जाने की उम्मीद की जा रही है।
मालखरौदा के पिहरीद गांव के खुले बोरवेल के गड्ढे में गिरकर लगभग 60 फीट नीचे 105 घंटे तक फंसे रहे 11 वर्षीय राहुल को एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, राज्य पुलिस व नगर सेना के जवानों ने मिलकर सुरक्षित निकाल लिया था। निकालने के तुरंत बाद 14 जून को उसे अपोलो हॉस्पिटल में दाखिल कराया गया था।
डॉ.इंदिरा मिश्रा और अन्य डॉक्टरों की टीम उनकी लगातार देखभाल कर रहे हैं। डॉ. मिश्रा ने बताया कि घंटों पानी और मिट्टी में फंसे रहने के कारण राहुल को इंफेक्शन हो गया था। इसके लिए इंजेक्शन देने का कोर्स पूरा हो चुका है। आज से उसे दवाइयां दी जा रही है। इंफेक्शन पूरी तरह से खत्म हुआ है या नहीं इसके लिए आज ही पीसी टेस्ट कराया गया है। मांसपेशियों में आई जकड़न को ठीक करने के लिए फिजियोथैरेपिस्ट उपचार कर रहे हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अस्पताल पहुंचकर उसके स्वास्थ्य का हाल जाना था। लगातार प्रशासनिक अधिकारी भी राहुल के इलाज की प्रगति की जानकारी लेने वहां पहुंच रहे हैं। राहुल के लिए ड्राइंग शीट और खेल के कुछ सामान भी दिए गए हैं, ताकि उसका मन लगा रहे। मंगलवार को फिजियोथैरेपिस्ट ने उसे अपने पैरों पर चला कर देखा। राहुल कुछ दूरी तक चल भी सका। उसके पैर घंटों बोरवेल में जकड़े रहने के कारण पूरी तरह से सीधा अभी नहीं हो पाया है। उसके कुछ दिन में पूरी तरह स्वस्थ हो जाने की संभावना है।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 22 जून। जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ जे के अध्यक्ष पूर्व विधायक अमित जोगी ने द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाए जाने का स्वागत किया है। उन्होंने ट्वीट कर कहा है कि मुर्मू ने पार्षद पद से लेकर राज्यपाल तक का लंबा सफर तय किया है। सभी राजनैतिक दलों से अपील की है वे दलगत राजनीति से ऊपर उठकर पहली आदिवासी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को समर्थन करें।
-दीपक मंडल
महाराष्ट्र में राजनीतिक संकट गहरा गया है. शिव सेना के विधायक और उद्धव ठाकरे सरकार में मंत्री एकनाथ शिंदे के पार्टी के दर्जनों विधायकों के साथ महाराष्ट्र छोड़ने के बाद महाराष्ट्र में बीजेपी और महाविकास अघाड़ी सरकार के बीच रस्साकशी और तेज हो गई है.
मंगलवार की सुबह शिंदे के सूरत में होने की ख़बर आई थी. लेकिन बुधवार तड़के वह विधायकों के साथ बीजेपी शासित राज्य असम के गुवाहाटी में पहुँच गए.
महाराष्ट्र में शिवसेना-एनसीपी और कांग्रेस की गठबंधन सरकार का भविष्य अब ख़तरे में दिख रहा है. लोगों के बीच ये बहस तेज़ हो गई है कि क्या महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की सरकार के दिन अब गिनती के रह गए हैं?
कहा जा रहा है कि ढाई साल पहले सत्ता का निवाला मुँह से छिनने के बाद महाविकास अघाड़ी सरकार को गिराने की बीजेपी की कोशिश अब चरम पर पहुंच गई है.
पिछले ढाई साल के दौरान देवेंद्र फडणवीस उद्धव ठाकरे पर लगातार हमले करते रहे हैं. कभी भ्रष्टाचार के आरोप, कभी कोविड के कुप्रबंधन और कभी 'सांप्रदायिक ध्रुवीकरण' को हवा देकर वे उद्धव का संकट बढ़ाते रहे.
बीजेपी की रणनीति
2019 के चुनाव में बीजेपी और शिव सेना साथ चुनाव लड़े थे और बहुमत हासिल किया था. बीजेपी का कहना है कि गठबंधन इस शर्त पर हुआ था कि देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा.
लेकिन शिव सेना का कहना था कि दोनों पार्टियों के बराबर मंत्री बनाए जाएंगे और मुख्यंमत्री पद का बँटवारा भी ढाई-ढाई साल के लिए होगा. बीजेपी इससे मुकर गई. लिहाजा उसने एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिल कर सरकार बना ली.
तब से देवेंद्र फडणवीस बोल रहे हैं कि उनके साथ धोखा हुआ है.
एक इंटरव्यू में उन्होंने यहां तक कहा कि उन्हें लगता ही नहीं है कि वे मुख्यंमत्री नहीं रहे. तब से उन्होंने सत्ता में वापसी की कई कोशिश की है. इनमें से एक कोशिश एनसीपी के अजित पवार के एक गुट के साथ सरकार बनाने की थी.
लेकिन ये सरकार दो-ढाई दिन तक ही चल पाई. इसके बाद भी उन्होंने कुछ और प्रयास किए.
उन्होंने ये कहना शुरू किया कि बीजेपी को महाविकास अघाड़ी सरकार को गिराने की कोशिश करने की कोई ज़रूरत नहीं है. ये सरकार अपने अंतर्विरोधों से ख़ुद गिर जाएगी.
लेकिन पार्टी के कुछ विधायकों को लेकर शिवसेना के एकनाथ शिंदे के साथ होने के मामले से संकेत मिल रहे हैं कि बीजेपी उद्धव ठाकरे सरकार के ख़ुद-ब-ख़ुद गिरने का इंतज़ार नहीं कर रही है.
ठाकरे सरकार के ख़िलाफ़ बेहद आक्रामक रुख़
बीबीसी मराठी सेवा के संपादक आशीष दीक्षित कहते हैं, ''इसमें बीजेपी की भूमिका हो सकती है क्योंकि शिंदे विधायकों को लेकर गुजरात गए हैं, जहाँ बीजेपी की सरकार है. वहाँ के बीजेपी के नेता इस मामले पर बोल रहे हैं. इन विधायकों को वहां गुजरात पुलिस का समर्थन मिल रहा. ये सारी चीज़ें बताती हैं निश्चित तौर पर इसमें बीजेपी की भूमिका है.''
दीक्षित कहते हैं, ''लोगों को यह दिखाने की कोशिश हो रही है कि यह शिव सेना के अंदर उद्धव ठाकरे के ख़िलाफ़ नाराज़गी का नतीजा है. पार्टी के अंदर अंतर्विरोध बढ़ रहा है. साफ़ है कि बीजेपी काफ़ी सेफ गेम खेल रही है. दरअसल, उद्धव ठाकरे सरकार को अस्थिर करने की बीजेपी की तैयारी काफ़ी दिनों से चल रही है. वरना एक साथ शिवसेना जैसी कैडर आधारित पार्टी के इतने विधायकों को इकट्ठा करना आसान काम नहीं है. ऐसा लगता है कि बीजेपी इस रणनीति पर काफ़ी दिनों से काम कर रही थी. ''
विश्लेषकों का कहना है कि बीजेपी ने पिछले दो-ढाई साल के दौरान महाराष्ट्र में अपना ऑपरेशन बहुत ही सोची-समझी रणनीति के तहत चलाया. उन्होने यहाँ कर्नाटक, मध्य प्रदेश या राजस्थान जैसा 'ऑपरेशन लोटस' चलाने की कोशिश नहीं की क्योंकि यहाँ तीन-तीन पार्टियों से विधायकों को तोड़ना मुश्किल काम था.
महाराष्ट्र में 30-35 विधायकों को तोड़ना मुश्किल है क्योंकि यहाँ तीन-तीन पार्टियां सरकार में शामिल हैं. बीजेपी अगर ये रणनीति अपनाती तो वह सत्ता के लिए बेचैन दिखती. बीजेपी को अपनी छवि की चिंता थी इसलिए उसने ये रणनीति छोड़ दी.
उसने दूसरी रणनीति अपनाई और वह थी आक्रामकता के साथ सरकार की कमियों का उजागर करना है. चाहे कोविड को काबू करने में उद्धव सरकार की कथित नाकामी का मामला हो या फिर गैस सिलिंडर का सवाल या फिर रैलियों के ज़रिये सरकार को घेरना,असेंबली के बाहर और भीतर बीजेपी बेहद आक्रामक रही.
ईडी,सीबीआई और इनकम टैक्स डिपार्टमेंट का डर
विश्लेषकों के मुताबिक़ इस दौरान दूसरी रणनीति के मुताबिक़ ईडी, सीबीआई, इनकम टैक्स या नारकोटिक्स डिपार्टमेंट जैसी एजेंसियों के दौरान एनसीपी और शिव सेना के नेताओं के ख़िलाफ़ छापे की कार्रवाई चलती रही.
हर हफ़्ते किसी न किसी नेता के ख़िलाफ़ कार्रवाई हो रही थी. दो मंत्रियों को ईडी की कार्रवाई के बाद जेल जाना पड़ा. एक अनिल देशमुख और दूसरे नवाब मलिक.
इससे शिव सेना के विधायकों में डर बैठने की बात कही जा रही है. उन्हें लगा कि अगला नंबर उनका हो सकता है. एक विधायक प्रताप सरनाईक ने उद्धव ठाकरे को चिट्ठी लिख कर ईडी सीबीआई बचाने और बीजेपी के साथ हाथ मिला लेने की गुहार लगाई थी.
बेहद सधी रणनीति
बीजेपी की इस रणनीति पर वरिष्ठ पत्रकार हेमंत देसाई ने बीबीसी से कहा, ''बीजेपी बड़ी सावधानी से चाल चल रही है. अजित पवार गुट के साथ बनी सरकार के दो दिनों में गिर जाने से उसकी जो किरकिरी हुई थी, वैसी स्थिति वो दोबारा नहीं चाहती थी. ''
''फ़िलहाल शिंदे के पास 30 विधायकों के होने की बात कही जा रही है. लेकिन इसमें दम नहीं लगता. बीजेपी की ये रणनीति रही है कि वह सरकार गिराने वाली पार्टी की तरह न दिखे. लेकिन वह उद्धव ठाकरे सरकार को कमज़ोर करने की रणनीति पर लगातार काम कर रही है. ''
देसाई आगे कहते हैं, ''बीजेपी यह दिखाना चाहती है कि ये शिव सेना की अंदरूनी लड़ाई है. इसमें उसका कोई हाथ नहीं है. महाराष्ट्र में बीजेपी के प्रमुख चंद्रकांत पाटिल ने कहा कि एकनाथ शिंदे न जो क़दम उठाया है, उसमें हमारी कोई भूमिका नहीं है. लेकिन ये मानी हुई बात है कि बीजेपी अंदर ही अंदर अपना काम कर रही थी. ''
देसाई के मुताबिक़, ''पिछले कुछ दिनों से फडणवीस ये कहते आ रहे हैं कि गठबंधन के अंदर बीजेपी और शिव सेना के विधायक संतुष्ट नहीं हैं. एकनाथ का अपना गुट है और उद्धव ठाकरे से उनका टकराव भी रहा है. कुछ अरसा पहले उन्होंने ठाकरे के ख़िलाफ़ शक्ति प्रदर्शन भी किया था. लेकिन बीजेपी शिंदे की नाराज़गी को अपने पक्ष में इस्तेमाल करना चाहती है. बीजेपी नेता नारायण राणे ने ट्ववीट कर शिंदे का स्वागत किया है.''
राज्यपाल के ज़रिये भी लगाया ज़ोर
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि एनसीपी के अजित पवार गुट के साथ बनाई गई सरकार के दो दिनों में गिरने के बाद फडणवीस ने उद्धव ठाकरे सरकार के ख़िलाफ़ घेरेबंदी शुरू कर दी थी. उनका मक़सद था सीधे हमला न करके सरकार को धीरे-धीरे बदनाम किया जाए.
कोविड के दौरान जब उद्धव ठाकरे लोगों से संवाद कर रहे थे उनकी लोकप्रियता बढ़ने लगी थी. इससे बीजेपी और सतर्क हो गई और उसने उद्धव ठाकरे सरकार को भ्रष्ट और नाकारा साबित करने के लिए ज़ोरदार अभियान चलाए.
वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार अदिति फडणीस कहती हैं, ''महाराष्ट्र में बीजेपी किसी भी तरह उद्धव ठाकरे सरकार को गिराना चाहती थी. वो चाहती थी उसकी कोशिशों से नहीं तो कम से कम राष्ट्रपति शासन लगा कर सरकार बर्खास्त कर दिया जाए. इसके लिए राज्यपाल को भी इस्तेमाल किया गया. जब उद्धव ठाकरे को एमएलसी चुनाव जीत कर सदन में आना था तो राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने एमएलसी चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग को चिट्ठी लिखने में काफ़ी देर लगाई. ''
''आख़िरकार उद्धव ठाकरे को पीएम से मिलना पड़ा. इसके बाद राज्यपाल ने एमएलसी चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग को चिट्टठी लिखी और राज्य का राजनीतिक संकट टला.''
अदिति फडणीस का भी कहना है कि बीजेपी एक-डेढ़ साल के दौरान लगातार अंदर ही अंदर उद्धव ठाकरे की सरकार गिराने की कोशिश करती रही है लेकिन एकनाथ शिंदे मामले से ऐसा लगता है कि अब वह सरकार गिराने के अपने एजेंडे को खुल कर रफ्तार देने में लग गई है.
अचानक नहीं ठहर कर हमला
आशीष दीक्षित कहते हैं कि कोविड के दौरान लोगों से संवाद और उनसे लगातार संपर्क में रहने के वजह से जब उद्धव ठाकरे की छवि लोगों के बीच निखरने लगी थी तो बीजेपी को लगा कि उसका दांव उल्टा पड़ रहा है. उद्धव की छवि अच्छी होने से बीजेपी की छवि ख़राब न होने लगे. लिहाजा सरकार को बदनाम करने का अभियान शुरू हो गया.
वह कहते हैं, ''इतना करने के बाद भी बीजेपी ये दिखाने की कोशिश कर रही है कि उसने कुछ नहीं किया है. ये शिव सेना और एनसीपी और उसके सहयोगी दलों के टकराव का नतीजा है. आरएसएस के एक बड़े नेता ने मुझसे बातचीत में 'बफर' शब्द का इस्तेमाल किया. उन्होंने कहा कि हम बफर जाने देंगे. कुछ भी जल्दबाजी में नहीं होगा. कुछ दिनों के बाद हम सरकार बनाने की दावेदारी ठोकेंगे. लोगों को ऐसा लगना चाहिए कि उद्धव ठाकरे अपने अंतर्विरोधों से गिरी है. बीजेपी की यह रणनीति अब साफ़ दिख रही है. ''
इस तरह से बन सकती है बीजेपी की सरकार
महाराष्ट्र विधानसभा में 288 सीटें हैं. शिव सेना विधायक रमेश लटके के निधन की वजह से एक सीट ख़ाली है.
शिव सेना के 55, एनसीपी के 53, कांग्रेस के 44 और बीजेपी के 106 के विधायक हैं. बहुजन विकास अघाड़ी के तीन और समाजवादी पार्टी, एआईएमआईएम और प्रहर जनशक्ति के दो-दो विधायक हैं.
एमएनएस, सीपीएम, पीडब्ल्यूपी, स्वाभिमानी पार्टी, राष्ट्रीय समाज प्रकाश जनसूर्या शक्ति पार्टी, क्रांतिकारी शेतकारी पार्टी के एक-एक विधायक हैं. तेरह निर्दलीय विधायक हैं.
बीजेपी के 106 विधायक हैं और पार्टी को बहुमत के लिए 144 विधायकों की ज़रूरत है. अगर एकनाथ शिंदे 37 विधायकों का समर्थन जुटा लेते हैं तो बीजेपी उनकी मदद से सरकार बना सकती है. यह संख्या शिव सेना के विधायकों की संख्या 55 का दो तिहाई है.
ऐसी स्थिति में वह दल विरोधी क़ानून से बच जाएंगे और उनके गुट को मान्यता मिल जाएगी. ऐसी स्थिति में वह बीजेपी के साथ मिल कर सरकार बना सकते हैं.
इससे कम विधायक उनके पास हुए तो वे सारे अयोग्य क़रार दिए जाएंगे. अब सवाल ये है कि शिंदे के पास 37 विधायकों का समर्थन है या नहीं. इस बारे में फ़िलहाल कोई पुख्ता जानकारी नहीं मिल रही है.
2019 में क्या हुआ था?
2019 में बीजेपी और शिव सेना ने मिल कर चुनाव लड़ा था. लेकिन मुख्यमंत्री किसका होगा इस सवाल पर दोनों दलों के रास्ते अलग-अलग हो गए.
शिव सेना एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिल कर सरकार बनाने के लिए बातचीत करने लगी.
उद्धव ठाकरे को सीएम बनाने पर सहमति थी. लेकिन बातचीत लंबी खिंच गई और महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लग गया.
इस बीच, एनसीपी प्रमुख शरद पवार के भतीजे अजित पवार अपने साथ पार्टी कुछ विधायकों को साथ लेकर तड़के ही राजभवन पहुँच गए.
23 नवंबर की सुबह देवेंद्र फडणवीस को आनन-फानन में सीएम पद की शपथ दिला दी गई अजित पवार उप मुख्यमंत्री बन गए.
लेकिन शरद पवार इस पारिवारिक झगड़े में भारी पड़े और अजित पवार के साथ गए विधायक एनसीपी में लौट आए.
इसके बाद 26 नवंबर को फडणवीस ने विश्वास मत का सामना किए बगैर इस्तीफ़ा दे दिया.
शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी के गठबंधन वाली महाविकास अघाड़ी की सरकार बनी और उद्धव ठाकरे का सीएम बनने का सपना सच हुआ. (bbc.com)
रायपुर, 22 जून। कर्मचारी फेडरेशन के 29 जून को आयोजित धरना प्रदर्शन में छत्तीसगढ़ ब्याख्याता संघ अवकाश लेकर शामिल होंगे।संघ के प्रदेश अध्यक्ष राकेश शर्मा प्रवक्ता जितेंद्र शुक्ला महामंत्री राजीव वर्मा ने बताया कि केन्द्र के सामान लंबित महंगाई भत्ता तथा सातवें वेतनमान के अनुरूप गृह भाड़ा भत्ता प्रदान करने की मांग को लेकर फेडरेशन आंदोलन कर रहा है जिसके प्रथम चरण में ज्ञापन सौंपा गया और कार्यवाही नहीं होने पर द्वितीय चरण में 29 जून को एकदिवसीय अवकाश लेकर शासन का ध्यान आकृष्ट कराया जाएगा।तीसरे चरण में 25 से 29 जुलाई तक अवकाश लेकर कलम बंद काम बंद हड़ताल किया जाएगा। इसके बाद भी मांगे पूरी नहीं हुई तो अनिश्चितकालीन हड़ताल की जाएगी। आंदोलन में व्याख्याता संघ के अभय मिश्रा , लखन लाल साहू , गोर्वधन झा रामचन्द्र नामदेव ,मोती चंद राय,व्ही एन वैष्णव, नरेन्द पर्वत , नीरज वर्मा , संजय चन्द्राकर , वेद राम पात्रे , प्रदीप शर्मा , रमाकांत पांडे , सुरेश चंद्र अवस्थी , अरुण साहू , राजेश पांडे , अनंत कुमार साहू सहित अन्य ने की है।
-अनिल अश्विनी शर्मा
यूनियन कार्बाइड के आसपास की 42 बस्तियों में पेयजल की अनियमित आपूर्ति के चलते लोग ट्यूबवेल का दूषित पानी पीने पर मजबूर है, जबकि इसपर नौ साल पहले ही कोर्ट ने रोक लगा दी थी
बीसवीं सदी की सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटना का असर भोपाल पर पिछले 38 सालों से बना हुआ है। और यह नहीं मालूम कि आगे कब तक बना रहेगा। लेकिन इसके असर से बचने के लिए बनाई गई सुरक्षा की दीवारों को आए दिन सरकारी महकमा तो तोड़ता ही है, साथ ही यह महकमा ऐसी स्थिति पैदा कर देता है कि इससे पीड़ित स्वयं भी इसमें शामिल हो जाते हैं।
भोपाल के यूनियन कार्बाइड कारखाने के आसपास बसी 42 बस्तियों में, जहां अदालती आदेश के बावजूद पीने का स्वच्छ जल नसीब नहीं हो पा रहा है और वे उस भूजल को पीने को मजबूर हैं, जिसके उपयोग पर अदालत ने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टॉक्सिकोलॉजी रिसर्च लखनऊ की रिपोर्ट के आधार पर उपयोग पर रोक लगा रखी है।
पीड़ित संगठनों द्वारा यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे की वजह से इसके आसपास की बस्तियों में लगातार फैल रहे भूजल प्रदूषण और साफ पानी मुहैया कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित निगरानी समिति को पत्र लिखा है। पत्र में समिति के चेयरमैन जस्टिस शील नागु और सदस्य सचिव राजीव कारमाहे से जल्द बैठक बुलाने और निरीक्षण करने के लिए आग्रह किया गया है।
ध्यान रहे कि यूनियन कार्बाइड की दुर्घटना के बाद यहां के भूजल में घातक रसायन बड़ी मात्रा में जमीन के नीचे चले गए हैं और लगातार समय बीतने के साथ और भी यहां के भूजल को प्रदूषित कर रहे हैं। ऐसे में यहां का पानी किसी जहर से कम नहीं है।
हालांकि राज्य सरकार ने यहां पेयजल की आपूर्ति के लिए अपने बजट में 50 करोड़ रुपए का प्रावधान रखा था। यूनियन कार्बाइड कारखाने के आसपास की 42 बस्तियों के भूजल को पेयजल के रूप में उपयोग करने पर सुप्रीम कोर्ट ने नौ साल पहले ही रोक लगा दी थी। आदेश दिया था कि इन बस्तियों के लिए राज्य सरकार बकायदा पाइप लाइन बिछा कर स्वच्छ जल मुहैय्या कराए।
यही नहीं आदेश में यह भी कहा गया कि अदालत द्वारा बनाई निगरानी कमेटी हर चार माह में इस पाइप लाइन से सप्लाई होने वाले पानी की जांच कर इसकी गुणवत्ता की रिपोर्ट देगी। लेकिन निगरानी कमेटी मार्च, 2019 से अब तक कभी जांच नहीं की। पिछले एक हफ्ते से पाइप लाइन से आने वाला पानी की आपूर्ति भी अनियमित हो गई है।
यह पहली बार नहीं हुआ है। ऐसा पिछले डेढ़ सालों में कई बार हो चुका है। ऐसे हालात में बस्तिवासी यहां ट्यूब वेल का पानी पीने पर मजबूर हैं। भोपाल ग्रुप फॉर इंफोर्मेशन एंड एक्शन की अध्यक्ष रचना ढींगरा ने बताया कि 2021 में तो यूनियन कार्बाइड कारखाने के पास के इंद्रा नगर में लोक यांत्रिकी विभाग द्वारा विधायक निधि से एक बोरवेल तक खुदवाया जा रहा था, यह जानते हुए भी कि इस बस्ती का भूजल यूनियन कार्बाइड कारखाने के जहरीले कचरे के कारण प्रदूषित है और अदालती रोक है।
भूजल प्रदूषण से संबंधित सर्वोच्च न्यायालय में लंबित मामले में पहले से ही आदेश है कि इन क्षेत्रों में पाइपलाइन से स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराया जाए और सारे सरकारी बोरवेल को सील कर बंद किए जाने के आदेश हैं ताकि स्थानीय रहवासी प्रदूषित भूजल का सेवन ना करें। इसके बावजूद क्षेत्र में विभाग की तरफ से बोरवेल का खनन किया जा रहा था जो कि सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन का खुला उल्लंघन था।
उन्होंने कहा कि विभागों को यूनियन कार्बाइड कारखाना के जहरीले कचरे से आसपास की बस्तियों में फैल रहे जल प्रदूषण पर गंभीर होना चाहिए जो कि नहीं हैं। उनका कहना था कि यदि हम बोर खनन की जानकारी और सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन के बारे में विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों को न बताते तो विभाग और अधिकारी क्षेत्र में बोरवेल का खनन कर चुके होते।
उन्होंने बताया कि राज्य सरकार के विधायक तक सात-आठ माह पूर्व लोगों के घरों में हैंडपंप लगवा रहे थे। यही नहीं उनका कहना है कि कोर्ट के आदेश के बाद भी नगर निगम ने कई सरकारी ट्यूब वेल इलाके के बंद ही नहीं किए हैं अब तक।
इलाके में पाइप लाइन से अनियमित पेयजल की सप्लाई होने के कारण लोग चोरीछुपे अपने-अपने घरों में हैंडपंप लगवा रहे हैं और इस काम में सरकारी महकमा भी मदद कर रहा है। भोपाल इफरमेशन एक्शन की अध्यक्ष रंजना धींगरा ने तो यहां तक बताया कि इस इलाके में स्थानीय विधायकों ने भी हैंडपंप लगवाने में मदद की है।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा यहां ग्राउंट वाटर से पानी की आपूर्ति पर रोक लगाने के बाद यहां बस्तियों में नर्मदा का पानी पाइप लाइन के माध्यम से आ रहा था, लेकिन नर्मदा का पानी नगर निगम ने डेढ़ साल पहले बंद कर दिया था और इसकी जगह कोलार बांध और बड़े तालाब का पानी सप्लाई किया जाने लगा।
यह पानी भी पूरी तरह से स्वच्छ नहीं है। लेकिन अब तो इस पानी को भी निगम सप्लाई करने में सक्षम नहीं हो पा रहा है। गैस पीड़ित संगठनों ने बताया कि घातक रसायनों का असर 29 अन्य बस्तियों तक जा चुका है।
रचना ढींगरा ने डाउन टू अर्थ को बताया कि यहां संभावना ट्रस्ट ने अब तक पानी की जांच में पाया है कि 42 बस्तियों में भूजल पेयजल के लिए उपयुक्त नहीं है। साथ ही उन्होंने लखनऊ स्थित इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टॉक्सीकॉलिजिकल रिसर्च सेंटर से आग्रह किया है कि वह यहां आकर एक बार फिर से इस पानी की जांच करें। (downtoearth.org.in)
भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजित डोभाल ने माना है कि बीजेपी की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा और दिल्ली बीजेपी से जुड़े नवीन जिंदल की ओर से पैग़बंर मोहम्मद पर दी गई विवादित टिप्पणी ने भारत की प्रतिष्ठा को नुक़सान पहुँचाया है.
मंगलवार को समाचार एजेंसी एएनआई को दिए इंटरव्यू में अजित डोभाल ने कहा कि इस बयान ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की ऐसी छवि बना दी, जो हक़ीकत से कोसों दूर है.
एनएसए से पूछा गया था कि क्या पैग़ंबर विवाद पर देश भर में हुए विरोध प्रदर्शनों ने भारत की प्रतिष्ठा को नुक़सान पहुँचाया है?
इस पर उन्होंने जवाब दिया, "हाँ (इससे भारत की प्रतिष्ठा पर आँच आई है). ये इस अर्थ में कि भारत को इस तरह दिखाया गया या भारत के ख़िलाफ़ ऐसी कुछ भ्रामक जानकारियाँ फैलाई गईं, जो सच्चाई से कोसो दूर है. ज़रूरत थी कि हम उनसे बात करें उन्हें मनाएं और आप पाएंगे कि जहाँ भी हमने संबंधित पक्ष से बात की फिर वो देश में हो या देश के बाहर, हम उन्हें मनाने में कामयाब रहे. जब लोग भावनात्मक तौर पर उत्तेजित हो जाते हैं, तब उनका व्यवहार थोड़ा असंगत सा हो जाता है."
बीजेपी की पूर्व नेता नूपुर शर्मा ने एक टीवी डिबेट के दौरान पैग़ंबर मोहम्मद पर विवादित बयानबाज़ी की थी. इस बयान को लेकर मुस्लिम देशों ने भारत के सामने आधिकारिक तौर पर विरोध जताया था.
भारतीय जनता पार्टी ने नूपुर शर्मा को पार्टी से निलंबित कर दिया था और नवीन जिंदल को निष्कासित. हालाँकि, इसके बावजूद देश के अंदर भी बयान का भारी विरोध हुआ और नूपुर शर्मा की गिरफ़्तारी की माँग को लेकर अलग-अलग हिस्सों में हिंसक प्रदर्शन भी हुए.
कश्मीर में टारगेट किलिंग्स पर क्या कहा
जम्मू-कश्मीर में लगातार आम नागरिकों को निशाना बनाकर की जा रही हत्याओं पर डोभाल ने कहा कि सरकार इससे निपटने की कोशिश कर रही है.
उन्होंने कहा, "2019 के बाद से लोगों का मिजाज़ बदला है. अब वो पाकिस्तान और आतंकवाद के पक्ष में नहीं हैं. आज हुर्रियत कहाँ है? शुक्रवार को होने वाले बंद कहाँ हैं? कुछ लोग हैं, जो भ्रमित हैं और अब भी इसमें शामिल हैं. हम उन्हें समझाने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं. उनके परिवार प्रयासरत हैं. कुछ तंज़ीम (आतंकी गुट) समस्या पैदा कर रहे हैं. हम उनके साथ पूरे दमख़म से लड़ रहे हैं. हम आतंकवाद से नहीं लड़ रहे. हमें आतंकवादियों से लड़ना है. हमें उम्मीद है कि अगले कुछ महीनों के अंदर स्थिति को नियंत्रित कर लिया जाएगा."
नूपुर शर्मा मामले में डच सांसद की टिप्पणी को लेकर चर्चा
कश्मीरी पंडितों के अंदर असुरक्षा की भावना और सरकार की ओर से ध्यान न दिए जाने के सवाल पर डोभाल ने कहा, "मुझे नहीं लगता कि ये सारे कश्मीरी पंडितों की भावना है. हाँ, वो ख़तरे में हैं. उन्हें सुरक्षा की ज़रूरत है. सरकार ने पहले भी कई क़दम उठाए हैं. संभवतः आगे भी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है और वो भी हो रहा है. कोई भी सरकार एक-एक व्यक्ति को सुरक्षा देने में सक्षम नहीं है. सबसे अच्छा ये है कि हम आतंकवादियों पर चोट करें और ये सुनिश्चित करें कि ये लोग जो कश्मीरी पंडितों की जान और संपत्ति के लिए ख़तरा हैं, उनकी ज़िम्मेदारी तय हो."
हिंदू-मुसलमान वाले भड़काऊ भाषण देकर लोग बच कैसे जाते हैं?
डोभाल ने ये भी कहा कि भारत पाकिस्तान के साथ वार्ता को तैयार है लेकिन केवल अपनी शर्तों पर. उन्होंने कहा, "हमारे विरोधी की पसंद के हिसाब से हम शांति या युद्ध नहीं कर सकते. अगर हमें अपने हितों की रक्षा करनी है, तो हमें तय करना होगा कि कब, किसके साथ और किन शर्तों पर शांति स्थापित की जाए."
उन्होंने कहा, "शांति होनी चाहिए और हमारे पड़ोसियों के साथ हमारे बहुत अच्छे संबंध हैं, जिसमें पाकिस्तान भी शामिल है. हम उनके साथ अच्छे संबंध बनाना चाहेंगे. लेकिन, निश्चित रूप से, आतंकवाद के प्रति हमारी सहनशीलता की सीमा बहुत कम है. हम अपने नागरिकों को आतंकवादियों के लिए नहीं छोड़ सकते. पिछले आठ सालों में जम्मू-कश्मीर के अलावा देश में कहीं कोई आतंकी हमला नहीं हुआ है. कश्मीर में छद्म युद्ध चल रहा है."
अजित डोभाल ने कहा, बिल्कुल वापस नहीं होगी अग्निपथ योजना
अजित डोभाल ने अग्निपथ योजना को सेना और राष्ट्र की सुरक्षा के अहम बताया और कहा कि इसे वापस नहीं लिया जाएगा.
अजीत डोभाल ने कहा, ''ये योजना बिल्कुल वापस नहीं होगी. इस पर दशकों से बात हो रही है और नौजवान सेना की मांग हो रही है. हर किसी ने इसकी ज़रूरत महसूस की लेकिन उनमें इसे लागू करने की राजनीतिक इच्छा शक्ति और हिम्मत नहीं थी. 2007 में विदेश मंत्री ने इसे पूरी तरह नंज़रअंदाज किया.''
उन्होंने कहा कि इस योजना को लेकर भ्रम फैला हुआ है.
उन्होंने कहा, ''ये बिल्कुल भ्रम है कि अग्निवीरों का सम्मान नहीं होगा. इनका गाँव में ही नहीं बल्कि वहाँ से बाहर भी उतना ही सम्मान होगा. ये देश की बहुत बड़ी निधि होंगे. वो परिवर्तन को एक नई दिशा देंगे. कई लोगों को निजी कारणों से सेना को छोड़कर आना पड़ता है. क्या उनको सम्मान नहीं मिलता था. इन्हें तो और ज़्यादा मिलेगा क्योंकि उनके लिए आगे भी संभावनाएँ हैं.''
''जब भी कोई परिवर्तन आता है, उसके साथ जुड़े हुए डर, चिंताएँ और आकाक्षाएँ आती हैं. जैसे-जैसे लोगों को अधिक सूचना और बातों का पता चल रहा है वैसे-वैसे लोग इसे समझ रहे हैं. ये तो हमारी पुरानी आवश्यकता थी. वो राष्ट्र के प्रति समर्पित हैं और धीरे-धीरे उनकी चिंताएँ कम हो रही हैं.''
चार साल बाद सेवानिवृत्त होने वाले अग्निवीरो को लेकर उन्होंने कहा, ''इसे लेकर ग़लतफ़हमी है. हम एक नौजवान व्यक्ति की बात करते हैं तो 22-23 साल का है जिसने सेना में काम किया है और आप बाज़ार में है. वह अनुशासित होगा, उसमें टीम में काम करने क्षमता, कौशल और आत्मविश्वास होगा. उसके लिए सारे रास्ते खुले होंगे. उनके पास 11 लाख रुपए भी हैं जिनसे वो आगे पढ़ सकते हैं और टेक्निकल कौशल भी हासिल कर सकते हैं.''
''इस देश के हर उस युवा को अवसर मिलता है जिसमें देश की रक्षा के लिए इच्छा और प्रेरणा है और प्रतिबद्धता की भावना है. उनकी ऊर्जा और प्रतिभा का इस्तेमाल इस देश को मजबूत बनाने में किया जाता है.''
उन्होंने कहा, ''सेना में जो लोग जाते हैं वो पैसे के लिए नहीं जाती उनमें देशप्रेम, राष्ट्रभक्ति और यौवन की शक्ति होती है. अगर वो भावना नहीं तो आप इसके लिए नहीं बने हैं. शारीरिक क्षमताओं के साथ-साथ देश, नेतृत्व और समाज पर भरोसा रखें.'' (bbc.com)
सऊदी की सरकारी समाचार एजेंसी एसपीए ने मंगलवार को बताया कि अभी तक दुनिया भर से मदीना आने के लिए एक लाख 72 हज़ार 562 तीर्थ यात्रियों का पंजीकरण किया गया है.
हज और उमराह मंत्रालय ने मदीना में आने वाले और लौटने वाले लोगों का आंकड़ा जारी किया है. इन आंकड़ों के मुताबिक़, क़रीब 1,56, 828 लोग प्रिंस मोहम्मद बिन अब्दुलअज़ीज़ अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से मदीना पहुंचे.
लैंड-इमिग्रेशन सेंटर पर 13,097 लोगों का रजिस्ट्रेशन हुआ. ये वो लोग हैं जो लैंड बॉर्डर के ज़रिए सऊदी अरब पहुँचे हैं.
ये आंकड़े मदीना में रह रहे तीर्थ-यात्रियों की राष्ट्रीयता भी बताता है. इसमें इंडोनेशिया से मदीना पहुंचे तीर्थ-यात्रियों की संख्या सबसे अधिक (24,478) है. इसके अलावा भारत, बांग्लादेश, इराक़ और ईरान के हज-यात्री भी शामिल हैं.
कोरोना महामारी के बाद से लगे प्रतिबंधों के बाद इस महीने की शुरुआत में सऊदी अरब ने तीर्थ-यात्रियों के पहले जत्थे का स्वागत किया है. हज यात्रियों के लिए कोरोना वायरस संक्रमण को लेकर जारी ग्लोबल हेल्थ गाइडलाइन्स के दिशा-निर्देशों का सख़्ती से पालन किया जा रहा है.
देश के हज मंत्रालय के मोहम्मद अल-बिजावी ने एक चैनल से बातचीत में कहा कि आज हमने इस साल के तीर्थ-यात्रियों के पहले जत्थे, जो कि इंडोनेशिया से है, उसका स्वागत किया है. दूसरे देशों से जैसे भारत और मलेशिया से विमान आना जारी रहेंगे.
साल 2019 में सबसे बड़ी संख्या में क़रीब 25 लाख लोगों ने दुनिया की इस सबसे बड़ी तीर्थ यात्रा में हिस्सा लिया था. कोरोना महामारी के कारण 2020 में कई तरह के प्रतिबंध लगाते हुए तीर्थ-यात्रियों की संख्या को सीमित कर दिया गया था.
शिव सेना के अपने ही घर में संग्राम छिड़ा हुआ है और ऐसे में शिव सेना हर उस विकल्प पर विचार कर रही है, जिससे महाराष्ट्र में सरकार बचाई जा सके.
एक ओर जहाँ बीजेपी का मानना है कि शिव सेना में फूट उसके हित में काम कर सकती है, वहीं इस पूरे घटनाक्रम पर नज़र रखने वाले बीजेपी के नेताओं का मानना है कि उन्हें पूरी सावधानी से आगे बढ़ने की ज़रूरत है.
उन्हें इस बात की आशंका है कि एक भी ग़लत क़दम से साल 2019 में सरकार बनाने की नकाम कोशिश का दोहराव हो सकता है.
बीजेपी के एक नेता ने मीडिया को बताया कि हम सिर्फ़ एक प्लान पर काम नहीं कर रहे हैं. हम प्लान ए और प्लान बी दोनों लेकर चल रहे हैं.
उन्होंने बताया, “हमारे पहले प्लान के मुताबिक़, अगर शिव सेना सीधे तौर पर विभाजित हो जाती है, तो बाजेपी के पास एक अच्छा मौक़ा होगा कि वो बाग़ी नेताओं के साथ गठबंधन करके सरकार बना ले. यहाँ मामला ये है कि शिव सेना के बाग़ी नेता एकनाथ शिंदे को अपने पास दो-तिहाई बहुमत बनाए रखना होगा. वैकल्पिक तौर पर हम शिव सेना में पड़ी फूट का फ़ायदा विधानसभा और लोकसभा चुनावों में चुनावी लाभ के लिए लेने की योजना बना रहे हैं.”
पार्टी नेताओं ने यह भी कहा कि राज्य विधानमंडल का मॉनसून सत्र 18 जुलाई से शुरू होगा इसलिए बीजेपी महाविकास अघाड़ी सरकार के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव लाएगी.
मीडिया रिपोर्ट्स की ख़बर के अनुसार, उम्मीद जताई जा रही है कि शिंदे अपने साथ शिवसेना के 30-35 विधायकों को बनाए रखने में कामयाब रहेंगे.
एक सूत्र ने बताया, "अगर शिंदे ऐसा करने में कामयाब रहते हैं तो इससे बीजेपी के साथ जाने की उम्मीद भी प्रबल बनी रहेगी. हालांकि अंतिम फ़ैसला क्या होगा यह अभी तय होना बाक़ी है."
106 विधायकों वाली बीजेपी राज्य में सबसे बड़ी पार्टी है. कुछ छोटे दल और निर्दलीय उम्मीदवार मिलाकर उसके पास 27 अतिरिक्त विधायकों का समर्थन है. इस तरह बीजेपी के 133 विधायक और शिव सेना के 37 बाग़ी विधायक मिलकर इस संख्या को 170 कर देंगे. सरकार बनाने के लिए 145 विधायक ही चाहिए. (bbc.com)
महाराष्ट्र का राजनीतिक संकट बढ़ता ही जा रहा है. ख़बर है कि शिव सेना के क़रीब 30 विधायक, एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में सूरत में अपना होटल छोड़कर तड़के सुबह असम के गुवाहाटी के लिए रवाना हुए.
न्यूज़ एजेंसी पीटीआई के के मुताबिक़, बाग़ी नेताओं का ये दल गुवाहाटी पहुुँच चुका है.
महाराष्ट्र के बाग़ी नेता एकनाथ शिंदे और शिवसेना के लगभग 30 बाग़ी विधायक गुजरात के सूरत शहर में डुमास रोड पर स्थित एक होटल में रुके हुए थे. ये लोग सोमवार रात से ही सूरत के इस होटल में ठहरे हुए थे.
हालांकि एकनाथ शिंदे का दावा है कि उनके साथ 40 विधायक हैं.
अभी इन विधायकों के गुवाहाटी जाने का कारण बहुत अधिक स्पष्ट नहीं है.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़, बुधवार तड़के सुबह ही ये विधायक होटल में एक लग्ज़री बस में बैठकर हवाई अड्डे ले जाए गए. पहले गुजरात और अब उन्हें आनन-फानन में एक और बीजेपी शासित राज्य में शिफ़्ट किया गया है.
हालांकि मंगलवार को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने शिवसेना के नेता मिलिंद नार्वेकर और रवींद्र फाटक को इन बाग़ी नेताओं से चर्चा करने के लिए भेजा था. लेकिन बातचीत से संभवत: कोई हल नहीं निकल सका है.
बीजेपी के एक नेता ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया है कि टकराव की स्थिति से बचने के लिए इन नेताओं को गुवाहाटी ले जाया गया है.
इन बाग़ी नेताओं का नेतृत्व एकनाथ शिंदे कर रहे हैं.
शिंदे के क़रीबी सूत्रों का दावा है कि उनके साथ क़रीब 30 बाग़ी विधायक हैं.
महाराष्ट्र के एक वरिष्ठ बीजेपी नेता ने सोमवार देर रात न्यूज़ एजेंसी पीटीआई को बताया, "सुरक्षा कारणों से विधायकों को गुवाहाटी स्थानांतरित किया जा रहा है. सूरत, मुंबई से काफी नज़दीक है, इसलिए शिवसेना कार्यकर्ताओं की ओर से कुछ टकराव की स्थिति पैदा हो सकती है." (bbc.com)
रायपुर, 22 जून। उरला पुलिस ने बलात्कार के आरोपी को पत्थलगांव जशपुर से गिरफ्तार किया। उस पर बालतसंग के अलावा जबरदस्ती गर्भपात कराने का भी था आरोप। घटना के बाद से लगातार फरार था ।
पुलिस के मुताबिक 2019 में पीड़िता सम्बलपुर उड़ीसा कांसाबेल से रॉयल बस में सवार होकर रायपुर आ रही थी। उसी दौरान पीड़िता का परिचय रॉयल बस सर्विस के परिचालक रतनमणी साहू निवासी घरसिया बथान हीरापुर पत्थलगांव जशपुर से हुआ । यात्रा के दौरान बातचीत में एक-दूसरे को मोबाईल नंबर दिया। उसके बाद से लगातार बातचीत के दौरान आरोपी ने पीड़िता को शादी करने का झांसा दिया और आरोपी द्वारा अपने किराये के मकान धनीराम प्लाईवुड कंपनी बेन्द्री के लेबर क्वॉटर उरला रायपुर में लाकर रखा। झांसा देकर लंबे समय तक बलात्संग करता रहा । इस बीच दो बार जबरन गर्भपात कराने का आरोप भी है ! । प्रार्थिया रिपोर्ट दर्ज कराने पश्चात आरोपी का पता तलाश लगातार पुलिस कर रही थी । उरला पुलिस ने विशेष टीम भेजकर उनके गृह ग्राम घरसिया बथान हीरापुर थाना पत्थलगांव के पास से लंबे प्रयास के बाद पकड़ा गया। उसके खिलाफ़ धारा - 376(2)एन, 506बी,312 भादवि के तहत अपराध दर्ज किया गया है।
-रवि प्रकाश
भारत के राष्ट्रपति चुनाव में 29 जून तक नामांकन, 18 जुलाई को मतदान और 21 जुलाई को नतीजा आएगा. सत्ताधारी बीजेपी के अगुआई वाला गठबंधन एनडीए और विपक्ष ने राष्ट्रपति उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है.
पिछली बार के राष्ट्रपति चुनाव में बीजेपी ने बिहार के तत्कालीन राज्यपाल रामनाथ कोविंद को अपना उम्मीदवार बनाया था और इस बार झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को प्रत्याशी बनाया है.
द्रौपदी मुर्मू झारखंड की पहली महिला और आदिवासी राज्यपाल थीं. यहां से सेवानिवृति के बाद वे अपने गृह राज्य ओड़िशा के मयूरभंज जिले के रायरंगपुर में रहती हैं. यह उनके पैतृक गांव बैदापोसी का प्रखंड मुख्यालय है. वे झारखंड में सबसे लंबे वक़्त (छह साल से कुछ अधिक वक़्त) तक राज्यपाल रहीं.
द्रौपदी मुर्मू भारत की पहली आदिवासी और दूसरी महिला राष्ट्रपति बन सकती हैं. वह एनडीए की उम्मीदवार हैं और एनडीए मतों के मामले में जीत के क़रीब है.
विपक्षी पार्टियों ने यशवंत सिन्हा को इस पद के लिए चुनाव मैदान में उतारा है. भारतीय प्रशासनिक सेवा (आइएएस) के पूर्व अधिकारी यशवंत सिन्हा झारखंड की हजारीबाग सीट से बीजेपी के लोकसभा सांसद रह चुके हैं और केंद्र सरकार के मंत्री भी. वे लंबे वक्त तक बीजेपी के ही नेता रहे, लेकिन हाल के वर्षो में वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ लगातार मुखर होते चले गए और अंततः बीजेपी से अलग होना पड़ा.
इन दिनों वे ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस से जुड़े थे. उनके बेटे और हजारीबाग के मौजूदा लोकसभा सांसद जयंत सिन्हा अब भी बीजेपी में हैं. जयंत सिन्हा के लिए पसोपेश की स्थिति होगी कि वह मतदान पिता के पक्ष में करें या पार्टी के पक्ष में.
यह पहला मौक़ा है, जब भारत के राष्ट्रपति के चुनाव में दोनों प्रमुख उम्मीदवारों का नाता झारखंड से है. इस कारण यह छोटा-सा राज्य अचानक सुर्खियों में आ गया है.
क्यों ख़ास हैं द्रौपदी मुर्मू
21 जून की देर शाम बीजेपी के अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने जब राष्ट्रपति चुनाव के लिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के प्रत्याशी के तौर पर द्रौपदी मुर्मू के नाम की घोषणा की, तो वह नई दिल्ली से करीब 1600 किलोमीटर दूर रायरंगपुर (ओड़िशा) के अपने घर में थीं.
इससे ठीक एक दिन पहले 20 जून को उन्होंने अपना 64 वां जन्मदिन बड़ी सादगी से मनाया था. तब उन्हें यह विश्वास नहीं रहा हो कि महज़ 24 घंटे बाद वे देश के सबसे बड़े पद के लिए सत्ता पक्ष की तरफ़ से उम्मीदवार बनाई जाने वाली हैं. लेकिन, ऐसा हुआ और अब सारे कयासों पर विराम लग चुका है.
अपनी उम्मीदवारी की घोषणा के बाद उन्होंने स्थानीय मीडिया से कहा : "मैं आश्चर्यचकित हूँ और ख़ुश भी क्योंकि मुझे राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बनाया गया है. मुझे टेलीविजन देखकर इसका पता चला. राष्ट्रपति एक संवैधानिक पद है और मैं अगर इस पद के लिए चुन ली गई, तो राजनीति से अलग देश के लोगों के लिए काम करूंगी. इस पद के लिए जो संवैधानिक प्रावधान और अधिकार हैं, मैं उसके अनुसार काम करना चाहूंगी. इससे अधिक मैं फ़िलहाल और कुछ नहीं कह सकती."
हालांकि, सियासी गलियारे और मीडिया में उनके नाम की चर्चाएं पहले से चल रही थीं. साल 2017 में हुए राष्ट्रपति चुनाव में भी उनके नाम की चर्चा जोर-शोर से चली थी, लेकिन अंतिम वक़्त में बीजेपी ने तब बिहार के राज्यपाल रहे रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बना दिया था. वे चुनाव जीते भी और बतौर राष्ट्रपति अगामी 24 जुलाई को उनका कार्यकाल ख़त्म हो रहा है.
कभी क्लर्क भी रहीं द्रौपदी मुर्मू
साल 1979 में भुवनेश्वर के रमादेवी महिला कॉलेज से बीए पास करने वाली द्रौपदी मुर्मू ने अपने पेशेवर करियर की शुरुआत ओड़िशा सरकार के लिए क्लर्क की नौकरी से की. तब वह सिंचाई और ऊर्जा विभाग में जूनियर सहायक थीं. बाद के सालों में वह शिक्षक भी रहीं.
उन्होंने रायरंगपुर के श्री अरविंदो इंटिग्रल एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर में मानद शिक्षक के तौर पर पढ़ाया. नौकरी के दिनों में उनकी पहचान एक मेहनती कर्मचारी के तौर पर थी.
सियासी करियर
द्रौपदी मुर्मू ने अपने सियासी करियर की शुरुआत वार्ड काउंसलर के तौर पर साल 1997 में की थी. तब वे रायरंगपुर नगर पंचायत के चुनाव में वॉर्ड पार्षद चुनी गईं और नगर पंचायत की उपाध्यक्ष बनाई गईं.
उसके बाद वे राजनीति मे लगातार आगे बढ़ती चली गईं और रायरंगपुर विधानसभा सीट से बीजेपी के टिकट पर दो बार (साल 2000 और 2009) विधायक भी बनीं. पहली दफ़ा विधायक बनने के बाद वे साल 2000 से 2004 तक नवीन पटनायक के मंत्रिमंडल में स्वतंत्र प्रभार की राज्यमंत्री रहीं.
उन्होंने मंत्री के बतौर क़रीब दो-दो साल तक वाणिज्य और परिवहन विभाग और मत्स्य पालन के अलावा पशु संसाधन विभाग संभाला. तब नवीन पटनायक की पार्टी बीजू जनता दल (बीजेडी) और बीजेपी ओड़िशा मे गठबंधन की सरकार चला रही थी.
साल 2009 में जब वे दूसरी बार विधायक बनीं, तो उनके पास कोई गाड़ी नहीं थी. उनकी कुल जमा पूंजी सिर्फ़ 9 लाख रुपये थी और उन पर तब चार लाख रुपये की देनदारी भी थी.
उनके चुनावी शपथ पत्र के मुताबिक़, तब उनके पति श्याम चरण मुर्मू के नाम पर एक बजाज चेतक स्कूटर और एक स्कॉर्पियो गाड़ी थी. इससे पहले वे चार साल तक मंत्री रह चुकी थीं. उन्हें ओड़िशा में सर्वश्रेष्ठ विधायकों को मिलने वाला नीलकंठ पुरस्कार भी मिल चुका है.
साल 2015 में जब उन्हें पहली बार राज्यपाल बनाया गया, उससे ठीक पहले तक वे मयूरभंज जिले की बीजेपी अध्यक्ष थीं. वह साल 2006 से 2009 तक बीजेपी के एसटी (अनुसूचित जाति) मोर्चा की ओड़िशा प्रदेश अध्यक्ष रह चुकी हैं.
वह दो बार बीजेपी एसटी मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य भी रह चुकी हैं. साल 2002 से 2009 और साल 2013 से अप्रैल 2015 तक इस मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य रहीं. इसके बाद वह झारखंड की राज्यपाल मनोनीत कर दी गईं और बीजेपी की सक्रिय राजनीति से अलग हो गईं.
झारखंड की पहली महिला राज्यपाल
18 मई 2015 को उन्होंने झारखंड की पहली महिला और आदिवासी राज्यपाल के रूप में शपथ ली थी. वह छह साल, एक महीना और 18 दिन इस पद पर रहीं. वह झारखंड की पहली राज्यपाल हैं, जिन्हें अपने पाँच साल के टर्म को पूरा करने के बाद भी उनके पद से नहीं हटाया गया.
वह यहाँ की लोकप्रिय राज्यपाल रहीं, जिनकी प्रतिष्ठा सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों खेमों में थी.
अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने कई महत्वपूर्ण फ़ैसले लिए. हाल के सालों में जब कुछ राज्यपालों पर पॉलिटिकल एजेंट की तरह काम करने के आरोप लगने लगे हैं, द्रौपदी मुर्मू ने राज्यपाल रहते हुए ख़ुद को इन विवादों से दूर रखा.
उन्होंने इस दौरान लिए गए अपने कुछ फ़ैसलों से बीजेपी गठबंधन की पूर्ववर्ती रघुबर दास सरकार और झारखंड मुक्ति मोर्चा गठबंधन की मौजूदा हेमंत सोरेन की सरकारों को उनके कुछ फ़ैसलों पर पुनर्विचार की भी नसीहत दी. ऐसे कुछ विधेयक उन्होंने बगैर लाग-लपेट लौटा दिए.
वह साल 2017 के शुरुआती महीने थे. झारखंड में बीजेपी के नेतृत्व वाली रघुबर दास सरकार थी और उनके संबंध प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से काफ़ी मज़बूत माने जाते थे.
उस सरकार ने अदिवासियों की ज़मीनों की रक्षा के लिए ब्रिटिश हुकूमत के वक़्त बने छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (सीएनटी एक्ट) और संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम (एसपीटी एक्ट) के कुछ प्रावधानों में संशोधन का प्रस्ताव तैयार कराया.
विपक्ष के हंगामे और वॉकआउट के बावजूद रघुबर दास की सरकार ने उस संशोधन विधेयक को झारखंड विधानसभा से पारित करा दिया. फिर इसे राज्यपाल की स्वीकृति के लिए भेजा गया. तब राज्यपाल रहीं द्रौपदी मुर्मू ने मई 2017 में यह विधेयक बगैर दस्तखत सरकार को वापस कर दिया और पूछा कि इससे आदिवासियों को क्या लाभ होगा. सरकार इसका जवाब नहीं दे पाई और यह विधेयक क़ानूनी रूप नहीं ले सका.
तब बीजेपी के ही नेता और लोकसभा के पूर्व उपाध्यक्ष कड़िया मुंडा और पूर्व मुख्यमंत्री (मौजूदा केंद्रीय मंत्री) अर्जुन मुंडा ने इस विधेयक का विरोध किया था और राज्यपाल को चिट्ठी लिखी थी. उसी दौरान जमशेदपुर मे पत्रकारों से बात करते हुए द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि इस संशोधन विधेयक के खिलाफ राजभवन को क़रीब 200 आपत्तियां मिली थीं.
ऐसे में इस पर दस्तख़त करने का कोई सवाल ही नहीं था. तब उन्होंने बताया कि मैंने सरकार से कुछ बातें स्पष्ट करने के लिए कहा है.
उसी दौरान वह दिल्ली गईं और वहाँ प्रधानमंत्री समेत कुछ महत्वपूर्ण मंत्रियों से भी मिलीं. इससे पहले तत्कालीन मुख्य सचिव राजबाला वर्मा ने तीन जून को और तब के मुख्यमंत्री रघुबर दास ने 20 जून को राज्यपाल से मुलाक़ात की लेकिन द्रौपदी मुर्मू पर कोई असर नहीं हुआ. वे अपने फ़ैसले पर अडिग रहीं.
उसी सरकार के कार्यकाल के दौरान जब पत्थलगड़ी विवाद हुआ, तो द्रौपदी मुर्मू ने आदिवासी स्वशासन व्यवस्था के तहत बने ग्राम प्रधानों और मानकी, मुंडाओं को राजभवन में बुलाकर उनसे बातचीत की और इस मसले के समाधान की कोशिशें की.
दिसंबर 2019 में रघुबर दास सरकार के पतन के बाद जेएमएम नेता हेमंत सोरेन झारखंड के मुख्यमंत्री बने. कुछ महीने बाद उनी सरकार ने जनजातीय परामर्शदात्री समिति (टीएसी) के गठन में संशोधन से संबंधित एक विधेयक राज्यपाल की मंजूरी के लिए भेजा लेकिन द्रैपदी मुर्मू ने उसे भी सरकरा को लौटा दिया. वह विधेयक टीएसी के गठन में राज्यपाल की भूमिका को ख़त्म करता था.
राज्यपाल रहते हुए वे स्कूलों-कॉलेजों का लगातार भ्रमण करती रहीं. इस कारण कस्तूरबा स्कूलों की हालत सुधरी. उन्होंने साल 2016 में विश्वविद्यालयों के लिए लोक अदालत लगवायी और विरोध के बावजूद चांसलर पोर्टल को शुरू कराया.
इससे विश्वविद्यालयों में नामांकन समेत बाक़ी प्रक्रियाएं ऑनलाइन किए जाने का रास्ता खुला. वे वीडियो कांफ्रेसिंग के माध्यम से भी विभिन्न कुलपतियों से संवाद करती रहीं. उन्होंने जनजातीय भाषाओं की पढ़ाई को लेकर लगातार निर्देश दिए. इसके कारण विश्वविद्यालयों में लंबे वक़्त से बंद पड़ी झारखंड की जनजातीय और क्षेत्रीय भाषाओं के शिक्षकों की नियुक्ति फिर से होने लगी.
राज्यपाल रहते हुए द्रौपदी मुर्मू ने सभी धर्मो के लोगों को राजभवन में एंट्री दी. उनसे मिलने वालों में अगर हिंदू धर्मावलंबी शामिल रहे, तो उन्होंने मुस्लिम, सिख और ईसाई धर्मावलंबियों को भी राजभवन में उतनी ही इज़्ज़त दी.
संघर्षों से भरा रहा जीवन
रायरंगपुर (ओड़िशा) से रायसीना हिल्स (राष्ट्रपति भवन) पहुँचने की होड़ में शामिल द्रौपदी मुर्मू का शुरुआती जीवन संघर्षों से भरा रहा. उनका जन्म भारत की आज़ादी के क़रीब 11 साल बाद 20 जून 1958 को मयूरभंज जिले के बैदापोसी गाँव में बिरंची नारायण टुडू की पुत्री के रुप में हुआ. वह संथाल आदिवासी हैं और उनके पिता अपनी पंचायत के मुखिया रहे हैं. अगर वह राष्ट्रपति चुनी जाती हैं, तो वे आज़ादी के बाद जन्म लेने वाली पहली राष्ट्रपति होंगी.
उनके व्यक्तिगत जीवन के बारे में कई बातें सार्वजनिक नहीं हैं. उनकी शादी श्याम चरण मुर्मू से हुई थी लेकिन कम उम्र में ही उनका निधन हो गया. उनकी तीन संतानें थीं लेकिन इनमें से दोनों बेटों की मौत भी असमय हो गई.
उनके एक बेटे लक्ष्मण मुर्मू की मौत अक्टूबर 2009 में संदिग्ध परस्थितियों में हो गई थी. तब वह सिर्फ़ 25 साल के थे. तब की मीडिया रिपोर्टों के अनुसार अपनी मौत से एक रात पहले वह भुवनेश्वर में अपने दोस्तों के साथ एक होटल में डिनर के लिए गए थे.
वहाँ से लौटने के बाद उनकी तबीयत ख़राब हो गई. तब वह अपने चाचा के घर में रहते थे. उन्होंने घर लौटकर सोने की इच्छा ज़ाहिर की और उन्हें सोने दिया गया. सुबह बहुत देर उनके तक कमरे का दरवाज़ा नहीं खुला तो घरवाले उन्हें पहले एक निजी अस्पताल और बाद में वहाँ के कैपिटल हॉस्पिटल ले गए, जहाँ डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया.
उनकी एकमात्र जीवित संतान उनकी बेटी इतिश्री मुर्मू हैं, जो रांची में रहती हैं. उनकी शादी गणेश चंद्र हेम्बरम से हुई है. वह भी रायरंगपुर के रहने वाले हैं और इनकी एक बेटी आद्याश्री हैं. राज्यपाल रहते हुए द्रौपदी मुर्मू ने अपनी बेटी-दामाद और नतिनी के साथ कुछ पारिवारिक कार्यक्रमों में हिस्सा लिया. वे ज़्यादातर मंदिरों में गए, जिससे जुड़ी तस्वीरें तब मीडिया में आईं. इसके अलावा उनके परिवार वालों के बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है. (bbc.com)