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जोन मुख्यालय सहित तीनों रेल मंडलों में होगा आयोजन
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर, 7 अगस्त। दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे बिलासपुर मुख्यालय तथा बिलासपुर, रायपुर, नागपुर रेल मंडलों में 18 सितम्बर को ऑल इंडिया पेंशन अदालत रखी जा रही है।
सेवानिवृत्त रेल कर्मचारी जिस मंडल से सेवानिवृत्त हुए हैं वहां इस अदालत में भाग लेने के लिये आवेदन दो प्रतियों में दस्तावेजों के साथ पेंशन अदालत कार्मिक अधिकारी के पास 31 अगस्त तक जमा कर सकते हैं। उन्हें पीएफ नंबर, सेवानिवृत्ति तिथि तथा पीपीओ नंबर दर्शाना होगा। पेंशन सम्बन्धी शिकायतों व बकाये के निपटारे पर इन अदालतों में निराकरण किया जायेगा। इस पेन्शन अदालत में न्यायालय में विचाराधीन, विवादास्पद, उत्तराधिकारी मामला तथा अन्य नीतिगत मामलों, रेलवे बोर्ड में लंबित प्रकरण शामिल नहीं किए जाएंगे।
चार के बयान हुए
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 7 अगस्त। झीरम नक्सल हमले की एसआईटी ने जांच तेज कर दी है। इस कड़ी में चार कांग्रेस नेताओं के बयान लिए जा चुके हैं। बताया गया कि एसआईटी ने न सिर्फ घटना का विस्तृत विवरण लिया, बल्कि षडय़ंत्र के शक की वजहों की भी कुरेद-कुरेद कर जानकारी ली।
भूपेश सरकार ने झीरम नक्सल हमले की जांच के लिए करीब डेढ़ साल पहले एसआईटी आईजी विवेकानंद सिन्हा की अगुवाई में एसआईटी बनाई थी। मगर एसआईटी की जांच आगे नहीं बढ़ पा रही थी। वजह यह है कि प्रकरण की पहले से जांच कर रही एनआईए ने दस्तावेज उपलब्ध कराने से मना कर दिया था। साथ ही एसआईटी जांच के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की है।
इसी बीच नक्सल हमले में दिवंगत उदय मुदलियार के बेटे जीतू मुदलियार ने कुछ महीने पहले जगदलपुर एसपी को ज्ञापन सौंपा था और दरभा थाने में लिखित शिकायत की थी। इसके बाद एसआईटी सक्रिय हो गई है। एसआईटी ने पिछले महीने जीतू मुदलियार का बयान लिया था। इसके बाद हमले घायल दौलत रोहड़ा, शिवसिंह ठाकुर और रेहान खान के बयान लिए है।
बताया गया कि सभी से भिलाई में आईजी विवेकानंद सिन्हा और एसआईटी के सदस्यों ने सभी से अलग-अलग तीन घंटे से अधिक पूछताछ की और घटना को लेकर विस्तार से पूछताछ की। झीरम हमले में घायल नेता और दिवंगतों के परिजन इस पूरी घटना को राजनीतिक षडय़ंत्र करार देते रहे हैं। एसआईटी ने षडय़ंत्र की वजहों की बारीकी से पूछताछ की।
एसआईटी के प्रमुख विवेकानंद सिन्हा ने ‘छत्तीसगढ़’ से चर्चा में जांच का ब्यौरा देने से मना कर दिया। उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा कि अभी कुछ लोगों के बयान लिए गए हैं। जरूरत होने पर कुछ और लोगों के बयान लिए जा सकते हैं।
इससे परे एसआईटी जांच के खिलाफ एनआईए की याचिका पर इसी महीने सुनवाई होगी। वहीं, आने वाले दिनों में झीरम का मामला गरमा सकता है।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 7 अगस्त। लॉकडाउन खुलने के बाद राजधानी रायपुर की गली-सडक़ों से लेकर बाजारों तक आज भारी भीड़ उमड़ी रही। लोग जरूरत के सामानों की खरीदी के लिए सुबह से यहां बाजारों तक पहुंचते रहे। ऐसे में मालवीय रोड, जयस्तंभ चौक एवं आसपास की सडक़ों पर जाम की स्थिति बनी रही। दूसरी तरफ, यह माना जा रहा है कि सडक़ों-बाजारों में भारी भीड़ से यहां कोरोना संक्रमण का खतरा और बढ़ सकता है।
राजधानी रायपुर में करीब 14 दिन का लॉकडाउन रहा और अधिकांश लोग नियमों का पालन करते हुए अपने घरों में रहे। जिला प्रशासन ने आज से लॉकडाउन में छूट दी, तो लोग जरूरी सामानों की खरीदी के लिए बाजारों में उमड़ पड़े। खासकर त्योहारी सीजन को देखते हुए बड़ी संख्या में महिलाएं भी बाजारों तक पहुंचती रही। शहर की किराना, कपड़ा, राशन, फैंसी, ज्वेलरी समेत अधिकांश दुकानों में लगातार भीड़ बनी रही। और लोग सामाजिक दूरी को भुलाकर लेन-देन में व्यस्त रहे।
दूसरी तरफ, लोगों की भीड़ के चलते सडक़ों पर जाम की स्थिति बनी रही। खासकर मालवीय रोड, जयस्तंभ चौक, शारदा चौक, एमजी रोड, सदर बाजार एवं आसपास की सडक़ों पर लगातार वाहनों की लंबी लाइन लगी रही। इस दौरान कई लोग भीड़ से बचने का प्रयास करते रहे।
उल्लेखनीय है कि राजधानी रायपुर समेत जिले में कोरोना मरीज तेजी से बढक़र 36 सौ पार कर चुके हैं, जिसमें से 38 लोग अपनी जान गवां बैठे हैं। 23 सौ 25 पॉजिटिव हैं, जिनका अलग-अलग अस्पतालों में इलाज चल रहा है। माना जा रहा है कि लॉकडाउन में छूट से कोरोना मरीजों का यह आंकड़ा और बढ़ सकता है।
यूपीएससी भारत के नौकरशाहों एवं राजनयिकों समेत अहम पदों पर नियुक्ति के लिए सिविल सेवा परीक्षा का आयोजन करता है.
नई दिल्ली, 7 अगस्त (भाषा): शिक्षाविद प्रोफेसर प्रदीप कुमार जोशी को शुक्रवार को संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) का अध्यक्ष नियुक्त किया गया.
यूपीएससी भारत के नौकरशाहों एवं राजनयिकों समेत अहम पदों पर नियुक्ति के लिए सिविल सेवा परीक्षा का आयोजन करता है.
जोशी अभी तक आयोग के सदस्य थे.
छत्तीसगढ़ एवं मध्य प्रदेश के लोक सेवा आयोगों के अध्यक्ष रहे जोशी मई 2015 में यूपीएससी के सदस्य बने थे.
एक अधिकारी ने बताया कि यूपीएससी के अध्यक्ष के तौर पर जोशी का कार्यकाल 12 मई 2021 तक होगा. जोशी को अध्यक्ष बनाए जाने के बाद यूपीएससी में अब एक सदस्य का पद रिक्त हो गया है.
इस समय भीम सेन बस्सी, एयर मार्शल ए एस भोंसले (सेवानिवृत्त), सुजाता मेहता, मनोज सोनी, स्मिता नागराज, एम सत्यवती, भारत भूषण व्यास, टीसीए आनंद और राजीव नयन चौबे यूपीएसए के अन्य सदस्य हैं.
आयोग भारतीय प्रशासनिक सेवा, भारतीय पुलिस सेवा और भारतीय विदेश सेवा समेत अहम सेवाओं के लिए तीन चरणों में वार्षिक सिविल सेवा परीक्षा आयोजित कराता है.
मोतीलाल वोरा के बारे में कल बात शुरू हुई, तो किसी किनारे नहीं पहुंच पाई। दरअसल उनके साथ मेरी व्यक्तिगत यादें भी जुड़ी हुई हैं, और उनके बारे में बहुत कुछ सुना हुआ भी है। फिर उनका इतना लंबा सक्रिय राजनीतिक जीवन है कि उनसे जुड़ी कहानियां खत्म होती ही नहीं।
जब वे अविभाजित मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री थे तो उन्हें हटाने के लिए कांग्रेस के भीतर के लोग लगातार लगे रहते थे। वैसे में माधवराव सिंधिया उनके संरक्षक बनकर दिल्ली दरबार में उन्हें बचाए रखते थे। इस बात में कुछ भी गोपनीय नहीं था, और हर हफ्ते यह हल्ला उड़ता था कि वोराजी को हटाया जाने वाला है। नतीजा यह था कि उस वक्त एक लतीफा चल निकला था कि वोराजी जब भी शासकीय विमान में सफर करते थे, तो विमान के उड़ते ही उसका वायरलैस बंद करवा देते थे। उसकी वजह यह थी कि उन्हें लगता था कि उड़ान के बीच अगर उन्हें हटाने की घोषणा हो जाएगी, तो पायलट उन्हें बीच रास्ते उतार न दे।
वोराजी का पांच साल का पूरा कार्यकाल ऐसी चर्चाओं से भरे रहा, और वे इसके बीच भी सहजभाव से काम करते रहे। सिंधिया को छत्तीसगढ़ के अनगिनत कार्यक्रमों में उन्होंने बुलाया, और उस वक्त के रेलमंत्री रहे माधवराव सिंधिया ने छत्तीसगढ़ के लिए भरपूर मंजूरियां दीं। उस वक्त अखबारनवीसी कर रहे लोगों को याद होगा कि इनकी जोड़ी को उस समय मोती-माधव या माधव-मोती एक्सप्रेस कहा जाता था। माधवराव सिंधिया परंपरागत रूप से अर्जुन सिंह के प्रतिद्वंदी थे, और छत्तीसगढ़ के शुक्ल बंधुओं से भी उनका कोई प्रेमसंबंध नहीं था। ऐसे में केन्द्र में ताकतवर सिंधिया को राज्य में मोतीलाल वोरा जैसे निरापद मुख्यमंत्री माकूल बैठते थे, और ताकत में वोराजी की सिंधिया से कोई बराबरी नहीं थी। नतीजा यह था कि ताकत के फासले वाले इन दो लोगों के बीच जोड़ीदारी खूब निभी।
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मुख्यमंत्री रहने के अलावा जब वोराजी को राजनांदगांव संसदीय सीट से उम्मीदवार बनाया गया, तब उन्होंने चुनाव प्रचार में उसी अंदाज में मेहनत की, जिस अंदाज में वे मुख्यमंत्री रहते हुए रोजाना ही देर रात तक काम करने के आदी थे। इस संसदीय चुनाव प्रचार के बीच मैंने उनको इंटरव्यू करने के लिए समय मांगा तो उनका कहना था कि वे सात बजे चुनाव प्रचार के लिए राजनांदगांव से रवाना हो जाते हैं, और देर रात ही लौटते हैं। ऐसे में अगर मैं मिलना चाहता था, तो मुझे सात बजे के पहले वहां पहुंचना था। मैं स्कूटर से रायपुर से रवाना होकर दो घंटे में 7 बजे के पहले ही राजनांदगांव पहुंच गया, वहां वे एक तेंदूपत्ता व्यापारी के पत्ता गोदाम में बने हुए एक गेस्टरूम में सपत्नीक ठहरे थे, और करीब-करीब तैयार हो चुके थे।
वे मेरे तेवर भी जानते थे, और यह भी जानते थे कि उनके प्रति मेरे मन में न कोई निंदाभाव था, और न ही प्रशंसाभाव, फिर भी उन्होंने समय दिया, सवालों के जवाब दिए, और शायद इस बात पर राहत भी महसूस की कि मैंने अखबार के लिए चुनावी विज्ञापनों की कोई बात नहीं की थी। चुनाव आयोग के प्रतिबंधों के बाद चुनावी-विज्ञापन शब्द महज एक झांसा है, हकीकत तो यह है कि अखबार उम्मीदवारों और पार्टियों से सीधे-सीधे पैकेज की बात करते हैं। वह दौर ऐसे पैकेज शुरू होने के पहले का था, लेकिन यह आम बात है कि अखबारों के रिपोर्टर ही उम्मीदवारों से विज्ञापनों की बात कर लेते थे, कर लेते हैं, लेकिन वोराजी से न उस वक्त, और न ही बाद में कभी मुझे ऐसे पैकेज की कोई बात करनी पड़ी, और नजरों की ओट बनी रही।
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वोराजी खुद भी एक वक्त कम से कम एक अखबार के लिए तो काम कर ही चुके थे, और उनके छोटे भाई गोविंदलाल वोरा छत्तीसगढ़ के एक सबसे बुजुर्ग और पुराने अखबारनवीस-अखबारमालिक थे, इसलिए वोराजी को हर वक्त ही छत्तीसगढ़ के मीडिया की ताजा खबर रहती थी, भोपाल में मुख्यमंत्री रहते हुए भी, और केन्द्र में मंत्री या राष्ट्रपति शासन में उत्तरप्रदेश को चलाते हुए। जितनी मेरी याददाश्त साथ दे रही है, उन्होंने कभी अखबारों को भ्रष्ट करने, या उनको धमकाने का काम नहीं किया। वह एक अलग ही दौर था।
मोतीलाल वोरा मुख्यमंत्री रहे, अविभाजित मध्यप्रदेश के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहे, लेकिन छत्तीसगढ़ में वे अपने कोई सहयोगी नहीं बना पाए। दुर्ग में दो-चार लोग, और रायपुर में पांच लोग उनके नाम के साथ गिने जाते थे। रायपुर में तो उनके करीबी पांच लोगों की शिनाख्त इतनी जाहिर थी कि उन्हें पंच-प्यारे कहा जाता था। इन लोगों के लिए भी वोराजी कुछ जगहों पर मनोनयन से बहुत अधिक कुछ कर पाए हों, ऐसा भी याद नहीं पड़ता। लेकिन उनकी एक खूबी जरूर थी कि वे छत्तीसगढ़ के हजारों लोगों के लिए बिना देर किए सिफारिश की चिट्ठी लिखने को तैयार हो जाते थे।
यूपीए सरकार के दस बरसों में देश में उनका नाम बड़ा वजनदार था। एक दोस्त की बेटी मुम्बई के एचआर कॉलेज में ही दाखिला चाहती थी। उस कॉलेज में दाखिला बड़ा मुश्किल भी था। उनके साथ मैं वोराजी के पास दिल्ली गया, दिक्कत बताई, तो वे सहजभाव से सिफारिश की चिट्ठी लिखने को तैयार हो गए। हम लोगों को कमरे में बिठा रखा, चाय और पान से स्वागत किया, पीछे के कमरे में जाकर अपने टाईपिस्ट के पास खड़े रहकर चिट्ठी लिखवाई उसे मुम्बई कॉलेज में फैक्स करवाया, और फैक्स की रसीद के साथ चिट्ठी की एक कॉपी मुझे दी, और कॉलेज के संस्थापक मुंबई के एक बड़े बिल्डर हीरानंदानी से फोन पर बात करने की कोशिश भी की, लेकिन बात हो नहीं पाई।
चिट्ठी के साथ जब मैं अपने दोस्त और उनकी बेटी के साथ मुंबई गया, तो एचआर कॉलेज के बाहर मेला लगा हुआ था। उस भीड़ के बीच भी हमारे लिए खबर थी, और कुछ मिनटों में हम प्रिंसिपल के सामने थे। इन्दू शाहणी, मुंबई की शेरिफ भी रह चुकी थीं। उनकी पहली उत्सुकता यह थी कि मैं वोराजी को कैसे जानता हूं, उन्होंने सैकड़ों पालकों की बाहर इंतजार कर रही कतार के बाद भी 20-25 मिनट मुझसे बात की, जिसमें से आधा वक्त वे वोराजी और छत्तीसगढ़ के बारे में पूछती रहीं। सबसे बड़ी बात यह रही कि जिस दाखिले के लिए 10-20 लाख रूपए खर्च करने वाले लोग घूम रहे थे, वह वोराजी की एक चिट्ठी से हो गया। लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ कि बाद में उन्होंने कभी चुनाव के वक्त या किसी और राजनीतिक काम से कोई खर्च बताया हो। वे उसे सज्जनता के साथ भूल गए, और दीवाली पर मेरे दोस्त मेरे साथ सिर्फ मिठाई का एक साधारण डिब्बा लेकर उनके घर दुर्ग गए, तो भी उनका कहना था कि अरे इसकी क्या जरूरत थी।
मोतीलाल वोरा राजनीति में लगातार बढ़ती चली जा रही कुटिलता के बीच सहज व्यक्ति थे। वे बहुत अधिक साजिश करने के लिए कुख्यात नेताओं से अलग दिखते थे, और अभी भी अलग दिखते हैं। उनकी पसंद अलग हो सकती है, लेकिन अपनी पसंद को बढ़ावा देने के लिए, या नापसंद को कुचलने के लिए वे अधिक कुछ करते हों, ऐसा कभी सुनाई नहीं पड़ा।
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छत्तीसगढ़ में अभी कांग्रेस की सरकार बनी, तो दिल्ली से ऐसी चर्चा आई कि वोराजी की पहल पर, और उनकी पसंद पर ताम्रध्वज साहू को मुख्यमंत्री बनाना तय किया गया था, और इस बात की लगभग घोषणा भी हो गई थी, लेकिन इसके बाद भूपेश बघेल और टी.एस. सिंहदेव ने एक होकर, एक साथ लौटकर जब यह कह दिया कि वे ताम्रध्वज के साथ किसी ओहदे पर कोई काम नहीं करेंगे, तो ताम्रध्वज का नाम बदला गया, और भूपेश बघेल का नाम तय हुआ। ये तमाम बातें वैसे तो बंद कमरों की हैं, लेकिन ये छनकर बाहर आ गईं, और इनसे मोतीलाल वोरा और भूपेश बघेल के बीच एक दरार सी पड़ गई।
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अभी जब छत्तीसगढ़ से राज्यसभा के कांग्रेस उम्मीदवार तय होने थे, तब मोतीलाल वोरा से जिन्होंने जाकर कहा कि उन्हें राज्यसभा में रहना जारी रखना चाहिए, तो आपसी बातचीत में उन्होंने यह जरूर कहा था कि भूपेश बघेल उनका नाम होने देंगे? और हुआ वही, हालांकि यह नौबत शायद छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के दरवाजे तक नहीं आई, और कांग्रेस पार्टी ने दिल्ली में ही यह तय कर लिया कि वोराजी का उपयोग अब राज्यसभा से अधिक संगठन के भीतर है, और केटीएस तुलसी जैसे एक सीनियर वकील की पार्टी को इस मौके पर अधिक जरूरत है।
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वोराजी का बहुत बड़ा कोई जनाधार कभी नहीं रहा, वे पार्टी के बनाए हुए रहे, और जनता के बीच अपने सीमित असर वाले नेता रहे। लेकिन उनके बेटों की वजह से कभी उनकी कोई बदनामी हुई हो, ऐसा नहीं हुआ, और राजनीति में यह भी कोई छोटी बात तो है नहीं। छत्तीसगढ़ की एक मामूली नौकरी से लेकर वे कांग्रेस पार्टी में उसके हाल के सबसे सुनहरे दस बरसों में सबसे ताकतवर कोषाध्यक्ष और पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी के सबसे करीबी व्यक्ति रहे, आज भी हैं। आज दिन सुनहरे नहीं हैं, कांग्रेस पार्टी, सोनिया परिवार, और इन दोनों से जुड़ी हुई कुछ कंपनियां लगातार जांच और अदालती मुकदमों का सामना कर रही हैं, और उनमें मोतीलाल वोरा ठीक उतने ही शामिल हैं, ठीक उतनी ही दिक्कत में हैं, जितने कि सोनिया और राहुल हैं। किसी एक नाव पर इन दोनों के साथ ऐसे सवार होना भी कोई छोटी बात नहीं है, और रायपुर की एक बस कंपनी के एक मुलाजिम से लेकर यहां तक का लंबा सफर खुद मेरे देखे हुए बहुत सी और यादों से भरा हुआ है, लेकिन उनके बारे में किसी अगली किस्त में।
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-सुनील कुमार
बाइदुरजो बोस
नई दिल्ली, 7 अगस्त (आईएएनएस)| आईपीएल के 13वें सीजन में से वीवो को हटाए जाने के बाद लीग के लिए नए प्रायोजकों के लिए जमीन खाली हो गई है। वहीं बाजार के विशेषज्ञों का कहना है कि या तो ई-कॉमर्स या ई-लनिर्ंग कंपनियों में से कोई इसमें कूद सकता है साथ ही टैलीकॉम सेक्टर में से भी कोई कंपनी अपने हाथ आजमा सकती है।
एक बाजार विशेषज्ञ ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा कि दिवाली के कारण अमेजन जैसा ब्रांड इसमें कूद सकता है। साथ ही इस डील में उन्हें वीवो की रकम 440 करोड़ से कम रकम लगानी होगी। कोई भी कंपनी इसमें आए यह हर किसी के लिए अच्छी स्थिति है।
विशेषज्ञ ने कहा, इस लॉकडाउन में जो कुछ हुआ और इसका बाजार पर आर्थिक प्रभाव जो पड़ा, इसमें दो बड़े खिलाड़ी निकल कर सामने आए ई-लनिर्ंग और ई-कॉमर्स सेक्टर। आप किसी नए खिलाड़ी के आने की उम्मीद नहीं कर सकते कि कोई स्टार्टअप आ जाए। लेकिन हो सकता है कि बायजूस जो पहले से ही बीसीसीआई परिवार का हिस्सा है, इसमें आ सकता है और इवेंट कर सकता है। अनअकेडमी को नहीं भूलिए जो अपने आप को क्रिकेट जगत से जोड़ने के पीछे लगा है।"
उन्होंने कहा, "अब जब आप ई-कॉमर्स की तरफ देखते हो तो, लीग का फाइनल दिवाली से चार दिन पहले है, आप दिवाली से दो दिन पहले खरीददारी नहीं करते हो। आप त्योहार से एक महीने पहले यह करते हो। अमेजन और फ्लिपकार्ट के लिए इस समय का उपयोग करने से बेहतर और फायदा उठाने से बेहतर क्या हो सकता है? साथ ही आपको पता है कि कोई 440 करोड़ नहीं देगा, इसलिए आपको सर्वश्रेष्ठ विज्ञापन मंच आधी या एक तिहारी कीमत में मिल रहा है। इससे बेहतर कुछ नहीं हो सकता।"
एड फील्म बनाने वाले प्रहलाद कक्कर का मानना है कि किसी को फार्मा सेक्टर को भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए क्योंकि इस महामारी के दौरान कुछ फर्मा कंपनियों ने भी काफी अच्छा किया है। लेकिन उन्होंने कहा कि अमेजन इस सूची में सबसे आगो हो सकती है।
कक्कर ने आईएएनएस से कहा, "मुझे नहीं पता कि अमेजन इसमें आना चाहेगी या नहीं क्योंकि वह काफी सावधानी से काम करते हैं, लेकिन वो रूचि लेते हैं तो वह इस करार को ले जा सकते हैं। ई-लनिर्ंग कंपनी भी आ सकती है। लेकिन आपको फार्मा सेक्टर को ध्यान में रखना होगा क्योंकि उन्होंने बाजार में काफी अच्छा किया था, तो क्यों नहीं ? आपको यह बात याद रखनी होगी कि इस सीजन आईपीएल काफी बिकेगा क्योंकि लोग टीवी से ही चिपके रहेंगे। मुझे लगता है कि जो भी प्रस्ताव लेगा उसका फायदा ही होगा।"
एक और बाजार विशेषज्ञ ने कहा कि अगर जियो इस रेस में कूदता है और उसके मालिक के बीसीसीआई से भी अच्छे संपर्क हैं।
उन्होंने कहा, "जियो ऐसा ब्रांड है जो आठों टीमों से जुड़ा है। वो क्यों मुख्य प्रायोजक के खेल में नहीं कूदेगी। अगर वह कूदते हैं तो यह बीसीसीआई के साथ उनके संबंधों के कारण होगा। आंकड़ों के हिसाब से आईपीएल विंडो में वो सबसे बड़ा ब्रांड है।"
उन्होंने कहा, "लेकिन आप जियो टेलीकॉम इंडस्ट्री का काबिलियत को नजरअंदाज नहीं कर सकते, अगर वो चाहे तो। वो छुपा रुस्तम साबित हो सकता है।"
लखनऊ , 7 अगस्त (आईएएनएस)| कोरोना से बचाव के लिए स्वास्थ्यकर्मियों व अन्य के प्रयोग में लाए जा रही पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्यूपमेंट (पीपीई किट) की बड़ी भूमिका है। विशेषज्ञों का मानना है कि पीपीई किट यदि ठीक से डिस्पोजल नहीं हुआ तो यह पर्यावरण और संक्रमण को भी बढ़ावा दे सकती है। अस्पतालों, एम्बुलेंस, एयरपोर्ट और यहां तक कि श्मशान घाटों तक पर खुले में फेंकी गई पीपीई किट के बारे में चिकित्सकों का साफ कहना है कि ऐसा करके हम खुद को बचा नहीं रहें हैं, बल्कि अपने साथ ही दूसरों को भी मुश्किल में डालने का काम कर रहे हैं।
किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के रेस्परेटरी मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष डॉ़ सूर्यकान्त का कहना है कि इस्तेमाल की गयी पीपीई किट से कम से कम दो दिन तक संक्रमण का पूरा खतरा रहता है। इसलिए किट का चाहे मास्क हो या गाउन उसको कदापि इधर-उधर न फेंके, बल्कि उसके लिए निर्धारित ढक्कन बंद पीली डस्टबिन में ही डालें और अस्पतालों को भी चाहिए कि इस बायो मेडिकल वेस्ट (अस्पताल के कचरे) के निस्तारण की व्यवस्था दुरुस्त रखें ।
उन्होंने बताया कि ऐसा देखने में आया है कि कुछ लोग किट को इस्तेमाल करने के बाद इधर-उधर फेंक देते हैं जो कि बहुत ही गंभीर मामला है। ऐसे लोगों के खिलाफ आपदा अधिनियम के तहत कार्रवाई होनी चाहिए, क्योंकि इससे संक्रमण के साथ पर्यावरण पर भी असर पड़ता है।
अस्पतालों ने वैसे इस काम को एजेंसियों के जिम्मे कर रखा है जो कि कचरे को निस्तारित करने के लिए इन्सीनरेटर मशीन लगा रखी हैं, जहां पर इसका समुचित निस्तारण होता है ताकि किसी तरह के प्रदूषण का खतरा न रहे ।
किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के एनेस्थीजीआलजी एंड क्रिटिकल केयर विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. तन्मय तिवारी का कहना है कि इसके लिए केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने बाकायदा गाइड लाइन जारी की है कि पीपीई किट के इस्तेमाल और निस्तारण में किस तरह से सावधानी बरतनी है । उसके मुताबिक ही इसके निस्तारण में सभी की भलाई है।
उन्होंने बताया कि देश में इस समय रोजाना लाखों पीपीई किट का इस्तेमाल हो रहा है और यह एक बार ही इस्तेमाल के लिए हैं। इसलिए इस्तेमाल के बाद इसको मशीन के जरिये ही नष्ट किया जाना सबसे उपयुक्त तरीका है।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर, 7 अगस्त। हाईकोर्ट ने रायपुर के सप्रे बॉयज स्कूल और दानी गल्र्स स्कूल में मैदान को छोटा करके कराये जा रहे निर्माण कार्यों के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया है।
हाईकोर्ट में दोनों स्कूलों में चल रहे निर्माण कार्यों के खिलाफ रायपुर के डॉ. अजीत आनंद डेगवेकर, राजेश कदम व अन्य ने जनहित याचिका दायर की थी। उन्होंने कहा था कि यहां विद्यमान ऐतिहासिक धरोहरों को तोडक़र बिना पर्यावरण स्वीकृति और टेंडर के निर्माण कार्य शुरू किया गया है और तालाब को भी पाटा जा रहा है। इसे यहां की अतिरिक्त जमीन को गार्डन तथा लैब के लिये सुरक्षित रखा जा सकता है। शासन की ओर से कहा गया था कि यहां किसी तरह का निर्माण कार्य नहीं हो रहा है।
शासन ने यहां की खाली जमीन का उपयोग करने के लिये 6 करोड़ रुपये के निर्माण कार्यों की स्वीकृति दी है, जिसके लिये टेंडर हो चुका है। तालाब को पाटने और पर्यावरण नियमों के उल्लंघन की बात भी सही नहीं है। मामले की अंतिम सुनवाई 13 जुलाई को हुई थी, जिसके बाद चीफ जस्टिस पी.आर. रामचंद्र मेनन और जस्टिस पी.पी. साहू की डबल बेंच ने याचिका खारिज की और शासन के तर्कों से सहमति जाहिर की।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बलौदाबाजार, 7 अगस्त। जिले के कोविड अस्पताल में बीती रात कोरोना संक्रमित छह माह के बच्चे की मौत हो गई। जिला मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. के. आर. सोनवानी ने मौत की पुष्टि की है।
जानकारी के अनुसार बच्चे के माता-पिता समेत परिवार के 7 सदस्य कोरोना पॉजिटिव थे। रिपोर्ट के बाद सभी को पांच अगस्त को कोविड हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था, जहां इलाज के दौरान गुरूवार रात बच्चे की मौत हो गई। मौत की सूचना के बाद जिला चिकित्सालय में पुलिस बल तैनात किया गया है।
सीएमएचओ श्री सोनवानी ने बताया कि बच्चे को तीन दिन पहले कोविड अस्पताल लाया गया था। बच्चे के माता-पिता सहित परिवार के 7 लोग संक्रमित थे। गुरुवार को देर रात अचानक तबियत बिगडऩे से उसकी मौत हो गई। बच्चा कोरोना पॉजिटिव था, इसलिए बच्चे का पोस्टमार्टम नहीं किया जाएगा। प्रोटोकॉल के तहत बच्चे के परिजनों को शव सौंपा जाएगा।
ज्ञात हो कि जिले में कोरोना पॉजिटिव मरीज की ये दूसरी मौत है। इससे पहले बिलाईगढ़ ब्लॉक की एक संक्रमित महिला की मौत हुई थी। जिले में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या बढक़र 434 तक पहुंच गई है। इनमें से इलाज के बाद 361 मरीज स्वस्थ होकर घर जा चुके हैं। वहीं एक्टिव मरीजों की संख्या 72 है।
रविवार को कमरछठ व्रत
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 7 अगस्त। संतानों की आयु की कामना लेकर रविवार को कमरछठ पर्व के खास मौके पर माताएं कठिन व्रत रखेंगी। वहीं उपवास तोडक़र खास अन्न ‘पसहर चावल’ की कीमत बाजार में अधिकतम प्रतिकिलो 150 रुपए तक पहुंच गई है। पसहर चावल से ही व्रतधारी माताएं भोजन ग्रहण करती है। यह चावल की खास बात यह है कि यह बिना हल के ही खेतों में पैदा होता है। लिहाजा हलषष्ठी के पर्व पर इस चावल की मांग अधिक होती है।
माना जाता है कि इस चावल से ही व्रत तोडऩे का सदियों पुराना रिवाज है। कमरछठ पर्व को महिलाएं पूरे उत्साह के साथ मनाती है। हलषष्ठी पर्व पर माताएं पूजा करने के स्थान पर सगरी खोदकर भगवान शंकर एवं गौरी, गणेश को पसहर चावल, भैंस का दूध, दही, घी, बेल पत्ती, कांशी, खमार, बांटी, भौरा सहित अन्य सामग्रियां अर्पित करेंगी। पूजन पश्चात माताएं घर पर बिना हल के जुते अनाज पसहर चावल, छह प्रकार की भाजी को पकाकर प्रसाद के रूप में वितरण कर अपना उपवास तोड़ेंगी। बाजार में पसहर चावल की कीमतें प्रति किलो सौ से 150 रुपए किलो तक पहुंच गई है। वहीं प्रति गिलास 25 से 30 रुपए चावल की बिक्री हो रही है।
बताया जाता है कि इसमें भी अलग-अलग किस्म के पसहर चावल है। मोटा और साफ चावल के भाव तय कर दिए गए हैं। लिहाजा महिलाएं अपने अनुसार चावल की खरीदी कर रही है। इस पर्व में माताएं कठिन व्रत रखकर संतानों की लंबी आयु की कामना करेंगी। इस पर्व के लिए माताओं एवं ब्याही औरतों में उत्साह का माहौल दिखाई दे रहा है।
नई दिल्ली, 7 अगस्त (आईएएनएस)। बिहार सरकार ने एक हलफनामे में शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया है कि सुशांत सिंह राजपूत मामले में अभिनेता की तत्कालीन प्रेमिका और अब मुख्य आरोपी रिया चक्रवर्ती दिवंगत अभिनेता की संपत्ति हथियाने के लिए उनके करीब आई थी। बिहार सरकार की ओर से दायर हलफनामे में कहा गया है कि अभिनेत्री ने दिवंगत अभिनेता को पहले अधिक मात्रा में दवाईयां दी और फिर यह बात फैलाई कि वह दिमागी तौर पर बीमार थे। उन्होंने यह तथ्य सुशांत के पिता की शिकायत का हवाला देते हुए पेश किया और सुप्रीम कोर्ट में रिया चक्रवर्ती की याचिका का विरोध किया, जिसमें उन्होंने मामले की जांच पटना से मुंबई स्थानांतरित करने की मांग की गई थी।
एफिडेविट में कहा गया है कि मृतक के पिता ने एसएचओ राजीव नगर पीएस को दी गई लिखित शिकायत में कहा है कि साल 2019 में याचिकाकर्ता रिया चक्रवर्ती मृतक अभिनेता के संपर्क में आई, जिसके पीछे उनका एकमात्र उद्देश्य अभिनेता के करोड़ों रुपये हड़पने का था, जिसे अभिनेता ने कड़ी मेहनत से कमाया था।
उसमें आगे कहा गया है, कि याचिकाकर्ता और उनके रिश्तेदार यानी इंद्रजीत चक्रवर्ती, संध्या चक्रवर्ती, शोविक चक्रवर्ती दिवंगत अभिनेता के जीवन में पूरी तरह से हस्तक्षेप करते थे।
एफिडेविट में सुशांत के पिता के.के. सिंह का हवाला देते हुए कहा गया है, "याचिकाकर्ता (रिया) और उसके रिश्तेदार ने दिवंगत अभिनेता को यह बताने की पूरी कोशिश की कि वह मानसिक बीमारी से पीड़ित है जिसके लिए उसे उपचार की आवश्यकता थी। याचिकाकर्ता मृतक को अपने घर भी ले गई, जहां उसने उसे दवाइयों का ओवरडोज देना शुरू कर दिया।"
एफिडेविट में कहा गया कि रिया ने सुशांत के सभी सामानों को भी अपने कब्जे में ले लिया और उसे अपने परिवार से दूर रखने का हर संभव प्रयास किया।
एफिडेविट में आगे कहा गया है," याचिकाकर्ता ने अभिनेता के बैंक खाते का विवरण भी लिया और अपनी इच्छा के अनुसार बैंक खाते का उपयोग करना शुरू कर दिया। दिवंगत अभिनेता फिल्म उद्योग को छोड़कर कूर्ग में जैविक खेती करना चाहता था, हालांकि, याचिकाकर्ता ने मृतक अभिनेता को यह कहकर ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया कि वह उनकी मेडिकल रिपोर्ट मीडिया को देगी और उसे पागल साबित करेगी।"
उसमें आगे कहा गया, "मृतक अभिनेता ने अपनी बहन को सूचित किया था कि अगर मृतक ने उसकी बात नहीं मानी तो याचिकाकर्ता उस पर गलत आरोप लगा देगी।"
राज्य सरकार ने जोर देकर कहा कि पटना पुलिस के पास एफआईआर दर्ज करने का अधिकार क्षेत्र है और पटना में अदालत के पास अधिकार है कि राजीव नगर पीएस (पटना) में दर्ज एफआईआर में उल्लेखित अपराध के लिए याचिकाकर्ता से पूछताछ करें।
सहारनपुर, 7 अगस्त (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश में एक चौंकाने वाली घटना सामने आई है, जिसमें एक व्यक्ति पंकज कुमार ने हांफते हुए कहा अपने मरने की घोषणा का 80-सेकेंड का वीडियो रिकॉर्ड किया है। इस वीडियो में व्यक्ति ने उन सभी का नाम लिया है, जिन्होंने उसे जहर दिया था। यह घटना बुधवार को सहारनपुर की है और कथित आरोपी उसके खुद के परिवार के सदस्य हैं।
पंकज का शव एक खेत में उसी स्थान के आसपास पाया गया, जहां उसने वीडियो शूट किया था।
सहारनपुर के कोतवाली देहात के स्टेशन हाउस ऑफिसर (एसएचओ) मुनेंद्र सिंह ने कहा, "पंकज की चाची, उनकी दो बेटियों और बहु पर मुकदमा दर्ज किया गया है। मौत का कारण अभी तक अनिश्चित है और आगे की जांच के लिए विसेरा के नमूने संरक्षित किए गए हैं।"
एसएचओ ने कहा कि प्रथम ²ष्टया यह पारिवारिक विवाद का मामला प्रतीत हो रहा है।
पंकज (20) अपनी चाची के घर में पिछले चार सालों से रह रहा था।
वीडियो में पंकज को न्याय की गुहार लगाते हुए भी देखा जा सकता है और वह अपने शव का अंतिम संस्कार तभी करने की मांग कर रहा है जब उसके अपराधियों की गिरफ्तारी हो जाए।
पंकज वीडियो में कह रहा है, मैं इस वीडियो को फेसबुक पर डाल रहा हूं। मैं पुलिस विभाग से अनुरोध करता हूं कि वे सभी मेरे शरीर का दाह संस्कार करने से पहले मेरे साथ ऐसा करने वालों को गिरफ्तार किया जाए।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर गुरुवार को वीडियो सामने आने के बाद पुलिस ने संज्ञान लिया और सहारनपुर के सरसावां पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज की गई। बाद में इसे कोतवाली देहात थाने में स्थानांतरित कर दिया गया।
सहारनपुर के पुलिस अधीक्षक (एसपी) विनीत भटनागर ने कहा, "कोतवाली देहात पुलिस स्टेशन में हत्या का मामला दर्ज किया गया है और जांच शुरू की गई है।"
नई दिल्ली, 7 अगस्त (आईएएनएस)। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के कार्यालय ने स्पष्ट किया कि वह शिमला नहीं जा रही हैं और हिमाचल की राजधानी जाने की अनुमति सिर्फ उनके बच्चों और घरेलू कर्मचारियों के लिए मांगी गई थी। उनके कार्यालय ने आईएएनएस से कहा कि शायद कुछ गड़बड़ी हुई है और उनके शिमला आने की खबर गलत है।
उनके कार्यालय ने उन समाचार रिपोटरें को लेकर जवाब दिया जिसमें कहा गया कि प्रियंका गांधी ने अपने परिवार के सदस्यों के साथ कुछ हफ्तों के लिए राष्ट्रपति र्रिटीट के पास अपने शिमला घर जाने की अनुमति मांगी है।
इससे पहले जुलाई में प्रियंका गांधी ने सरकार द्वारा एसपीजी विदड्रॉल का हवाला देते हुए आवंटन रद्द किए जाने के बाद 35, लोधी एस्टेट निवास खाली कर दिया था।
लखनऊ, 7 अगस्त (आईएएनएस)| उत्तर प्रदेश में चार दिन का विधानसभा सत्र 20 अगस्त से शुरू होने वाला है। इस नए सामान्य में होने जा रहे इस सत्र का अनुभव अलग होगा क्योंकि इसे कोविड -19 महामारी के प्रोटोकॉल के अनुसार आयोजित किया जाएगा। सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने के लिए विशेष इंतजाम किए जाएंगे। विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने कहा, "उत्तर प्रदेश विधानसभा इस बात का उदाहरण देगी कि महत्वपूर्ण मामलों पर कानून बनाने के लिए चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में भी सत्र का आयोजन कैसे किया जाए। मुझे विश्वास है कि हमारे सभी सदस्य देश के सामने एक मिसाल कायम करेंगे और यह सुनिश्चित करेंगे कि सत्र में जनता से जुड़े गंभीर विषयों को संबोधित किया जा सके। हमें उम्मीद है कि इस संक्षिप्त सत्र के दौरान कोई व्यवधान नहीं होगा।"
उत्तर प्रदेश पहला ऐसा राज्य होगा जहां महामारी के दौरान नियमित सत्र होगा।
फरवरी में हुए आखिरी सत्र के बाद 6 महीनों के भीतर सत्र आयोजित करने के संवैधानिक दायित्व को पूरा करने के लिए यह मानसून सत्र बुलाया गया है।
विधान सभा के प्रधान सचिव प्रदीप कुमार दुबे ने कहा, "वायरस के प्रसार को रोकने के लिए केंद्रीय एयर कंडीशनिंग प्रणाली में विशेष फिल्टर का उपयोग किया जाएगा। केंद्रीय कैंटीन बंद रहेगा।"
सोशल डिस्टेंसिंग सुनिश्चित करने के लिए विधायकों को प्रेस दीर्घा समेत विभिन्न दीर्घाओ में बैठाया जाएगा। लिहाजा सभी मीडिया पास रद्द करने का भी प्रस्ताव है।
सूत्रों ने कहा कि गुरुवार को एक सर्वदलीय बैठक के दौरान नेताओं ने सत्र के आयोजन की समय सीमा को 8 महीने या उससे अधिक करने के लिए मामले को राष्ट्रपति के पास समीक्षा के लिए भेजने की भी बात कही।
बात दें कि राज्य के नौ मंत्री कोरोना संक्रमित हो चुके हैं और विधानसभा में कई स्टाफ सदस्य भी संक्रमित हैं।
विपक्ष के नेता राम गोविंद चौधरी को हाल ही में अस्पताल से छुट्टी दी गई है। फिर भी विपक्ष चाहता है कि कई मुद्दों पर चर्चा जरूरी है लिहाजा विधानसभा सत्र बुलाया जाए।
नई दिल्ली, 7 अगस्त (आईएएनएस)| भारतीय प्राद्योगिकी संस्थान-दिल्ली और रुड़की के पूर्व छात्रों द्वारा किए गए शोध से पता चला है कि लॉकडाउन के कारण दिल्ली में साइकिल उपयोग में लाने वालों की संख्या में तीन गुना वृद्धि हुई लेकिन इंफ्रास्टक्च र की कमी के कारण काम और फिटनेस के लिए साइकिल उपयोग में लाने वालों के लिए कई तरह की दुश्वारियां बनी हुई हैं। सर्वे 'लाइवलीहुड साइकिलिस्ट इन दिल्ली' नाम के इस अध्ययन में यह भी कहा गया है कि दिल्ली में 11 लाख साइकिल सवार हैं लेकिन यहां मात्र 100 किमी साइकिल ट्रैक है। ऐसे में अलग-अलग उद्देश्यों के लिए साइकिल का उपयोग करने वालों को रोजाना अनचाहे खतरों का भय सताता रहता है।
इस सर्वे में लगभग 1400 लोगों के शामिल किया गया, जिनमें से 97 प्रतिशत ने रोजाना के आवागमन के माध्यम के रूप में साइकिल का उपयोग करने की इच्छा जतायी लेकिन साथ ही वे कई चीजों को लेकर डरे हुए भी दिखे। इसमें सबसे प्रमुख उनकी सुरक्षा है।
इस 'परसेप्शन स्टडी' में यह खुलासा हुआ कि सुरक्षित और सुविधाजनक साइक्लिंग इंफ्रास्ट्रक्च र का अभाव, डेडिकेटेड साइक्लिंग लाइंस का न होना, दूषित वायु और अनियंत्रित ट्रैफिक के चलते दिल्ली के अधिक लोग साइकिल की सवारी नहीं कर पा रहे हैं।
इसी कारण कई सामाजिक दिल्ली सरकार के सामने इन मुद्दों को रखने के लिए आगे आई हैं। इन संस्थाओं की मांग है कि दिल्ली सरकार जनता के लिए सुरक्षित साइक्लिंग ढांचा और स्थायी रूप से डेडिकेटेड साइकिल लेन्स स्थानपित करे।
इसके लिए हैशटैगदिल्लीधड़कनेदो कैंपेन शुरू किया गया है। यह दिल्ली में स्वच्छ वायु समाधानों और बेहतर एवं टिकाऊ सार्वजनिक परिवहन साधन विशेषकर साइक्लिंग को लेकर काम कर रहे नागरिक समाज संगठनों का सामूहिक प्रयास है। यह मुहिम दिल्ली को भारत का पहला साइक्लिंग-फ्रेंड्ली शहर बनाने में सहायता करने के लिए चलाया गया है।
इसके तहत दिल्ली सरकार के पास एक याचिका दिया जाना है, जिसमें कहा गया है कि दिल्ली में नॉन-मोटराइज्ड ट्रांसपोर्ट पॉलिसी लाई जाये, जिसमें दो पहलुओं को प्राथमिकता मिले। पहला- साइकिल के लिए लेन बनाने को प्राथमिकता दिया जाना और दूसरा-परिवहन के कोविड-प्रूफ साधन के रूप में हर किसी को साइकिल के उपयोग की अनुमति देना।
दिल्ली में लम्बे समय से पर्यावरण, शिक्षा, सामाजिक उत्थान और सस्टेनेबल डेवलपमेंट के लिए काम कर रही अग्रणी गैर सरकारी संस्था (एनजीओ) 'स्वच्छा' के कार्यकारी निदेशक और प्रमुख विमलेंदु झा ने कहा, ''दिल्ली में साइकिलों के माध्यम से आजीविका चलाने वाले 91 प्रतिशत लोग हर रोज साइकिल चलाकर अलग-अलग जगहों पर जाते हैं, लेकिन क्या हमारी सड़कें सुरक्षित तरीके से पैदल और साइकिल से चलने के लिए डिजाइन की गयी हैं? इसका उत्तर है, नहीं। दिल्ली के लगभग 11 लाख साइकिल चालकों के लिए मात्र 100 किमी साइकिल ट्रैक है। यही नहीं, दिल्ली कई वर्षों से वायु प्रदूषण की समस्या से जूझ रही है। दिल्ली के वायु प्रदूषण की समस्या को परंपरागत साधनों जैसे कि साइकिल इंफ्रास्ट्रक्च र से हल नहीं किया जा सकता है, बल्कि इसके लिए शहर के कोने-कोने तक कनेक्टिविटी भी बेहद जरूरी है। इसलिए, पैदल चलने वालों की सुरक्षा और दिल्लीं में पैदल व साइकिल से चलने के उनके अधिकार की रक्षा हेतु मजबूत नीतियों की सख्त आवश्यमकता है।''
दिल्ली सरकार के आंकड़े बताते हैं कि शहर में लगभग 11 लाख नियमित साइकिल उपयोगकर्ता हैं। यह आंकड़ा कोविड-19 महामारी से पहले से है और रुझानों से संकेत मिलता है कि संख्या केवल बढ़ेगी। आईआईटी- दिल्ली और रुड़की के पूर्व छात्रों द्वारा किए गए अध्ययन से यह साफ है, जिसमें कहा गया है कि दिल्ली में साइकिल चलानों की संख्या चार फीसदी से बढ़कर 12 फीसदी हो गई है।
दिल्ली में राहगिरी डे की सह-संस्थापक सारिका पांडा मानती हैं कि दिल्ली में अभी भी गतिशीलता के संकट से निपटना जरूरी है और शहर को पैदल चलने और साइकिल चलाने की योजनाओं के कार्यान्वयन की आवश्यकता है।
वाशिंगटन, 7 अगस्त (आईएएनएस)| जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के अनुसार, वैश्विक स्तर पर कोरोनावायरस मामलों की कुल संख्या 1.9 करोड़ के आंकड़े को पार कर गई है, वहीं मौतों की संख्या बढ़कर 713,000 से अधिक हो गई है।
विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर सिस्टम साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) ने अपने ताजा अपडेट में खुलासा किया है कि शुक्रवार की सुबह तक कुल मामलों की संख्या 19,007,938 हो गई थी। वहीं अब तक इस घातक वायरस के कारण दुनिया में 7,13,406 लोगों की मौत हो चुकी थी।
सीएसएसई के अनुसार, अमेरिका अब भी दुनिया में सबसे अधिक कोरोना प्रभावित देश बना हुआ है। यहां 48,81,974 मामले और 1,60,090 मौतें दर्ज हो चुकी हैं। इसके बाद ब्राजील 29,12,212 मामलों और 98,493 मौतों के साथ दूसरे स्थान पर है।
संक्रमण के मामलों की बात करें तो भारत 19,64,536 संख्या के साथ तीसरे नंबर पर है। उसके बाद रूस (8,70,187), दक्षिण अफ्रीका (5,38,184), मैक्सिको (4,62,690), पेरू (4,47,624), चिली (3,66,671), कोलंबिया (3,45,714), ईरान (3,20,117), स्पेन (3,09,855), ब्रिटेन (3,09,784), सऊदी अरब (2,84,226), पाकिस्तान (2,81,863), बांग्लादेश (2,49,651), इटली (2,49,204), तुर्की (2,37,265), फ्रांस (2,31,310), अर्जेंटीना (2,28,195), जर्मनी (2,15,039), इराक (1,40,603), कनाडा (1,20,387), फिलीपींस (1,19,460), इंडोनेशिया (1,18,753) और कतर (1,12,092) हैं।
वहीं ऐसे देश जिनमें 10 हजार से अधिक मौतें हुई हैं, उनमें मेक्सिको (50,517), ब्रिटेन (46,498), भारत (40,699), इटली (35,187), फ्रांस (30,308), स्पेन (28,500), पेरू (20,228), ईरान (17,976), रूस (14,579) और कोलम्बिया (11,624) शामिल हैं।
न्यूयॉर्क, 7 अगस्त (आईएएनएस) । जॉन्स हॉपकिंस विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर सिस्टम साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) के अनुसार, दुनियाभर में कोविड -19 से होने वाली मौतों की संख्या गुरुवार को 710,000 से अधिक हो गई।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, सीएसएसई के आंकड़ों में सामने आया है कि दुनियाभर में कोविड -19 मामले बढ़कर 18,908,111 हो गए हैं, वहीं इस संक्रमण से हुई मौतों की संख्या 710,318 तक पहुंच गई।
अमेरिका में सबसे अधिक कोविड-19 मामलें 4,864,151 और मौतें 159,600 दर्ज की गई हैं। इसके बाद ब्राजील में 2,859,073 मामले और 97,256 मौतें हुईं हैं।
वहीं 30,000 से अधिक मृत्यु वाले अन्य देशों में मेक्सिको, ब्रिटेन, भारत, इटली और फ्रांस शामिल हैं।
मुंबई, 7 अगस्त (आईएएनएस) बृहन्मुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) ने बिहार के आईपीएस अधिकारी विनय तिवारी को 6 दिनों तक होम क्वारंटाइन करने के बाद मुक्त कर दिया है। इसकी जानकारी अधिकारियों ने शुक्रवार को दी।
देर रात जारी किए गए एक आदेश में बीएमसी के अतिरिक्त नगर आयुक्त पी. वेलरासु ने तिवारी को होम क्वारंटाइन से रिहा करने की अनुमति दी।
गौरतलब है कि बिहार पुलिस ने गुरुवार को बीएमसी को एक पत्र लिखा था, जिसमें कहा गया था कि तिवारी को अपनी ड्यूटी फिर से शुरू करने के लिए अपने गृह राज्य में वापसी के लिए होम क्वारंटाइन से छोड़ा जाना चाहिए।
बिहार पुलिस ने यह भी बताया कि मुंबई में अब उनकी आवश्यकता नहीं है और उनके वापसी की अवधि 7 दिनों के भीतर थी।
बीएमसी ने तिवारी को 8 अगस्त तक मुंबई छोड़ने के लिए कहा है।
बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले की जांच के लिए 2015 बैच के एक आईपीएस अधिकारी तिवारी 2 अगस्त को पटना से यहां पहुंचे थे।
हालांकि कोविड -19 प्रोटोकॉल के अनुसार, उन्हें गोरेगांव में एसआरपीएफ गेस्ट हाउस में होम क्वारंटाइन कर लिया गया था।
Horrifying footage shows the scary moment a Lebanese bride had to run for cover as she was posing for wedding photographs with her groom in central Beirut just moments before a massive explosion rocked the capital and turned so many of its landmarks into rubble. (Video courtesy of Mahmoud Nakib)
This is insane.
— Mike Leslie (@MikeLeslieWFAA) August 5, 2020
A bride taking wedding photos as the explosion happens in Beirut.
And she’s one of the lucky ones, fortunate to survive.
(video by Mahmoud Nakib) pic.twitter.com/1zpE7YcB7M
मधुकर उपाध्याय का नज़रिया
सच्चाई और ज़मीनी माहौल इन दोनों में कितना फ़ासला है, इसे समझने के लिए कालयात्री होने की आवश्यकता नहीं है. कई बार चीज़ें एकदम सामने होती हैं लेकिन हम उसे जानते-समझते और स्वीकार नहीं कर पाते.
जिसने अयोध्या में भगवान राम के भव्य मंदिर का भूमि पूजन समारोह देखा, उसने यह भी देखा होगा कि भारत बहुत तेज़ रफ़्तार से एक ख़ास दिशा में चल रहा है, जिसे मोड़ना संभव नहीं दिख रहा.
अयोध्या व्यापक जन-मानस के लिए आस्था का केंद्र है, रामलला की जन्मस्थली है, सामूहिक स्मृति का हिस्सा है. इस पर प्रश्न उठाना ख़ुद को कठघरे में खड़ा करना है. पहाड़ से लुढ़कती बड़ी चट्टान के सामने खड़े होने जैसा दुस्साहस है.
जो कुछ बचा-खुचा था, भूमि पूजन ने उसे इतने गहरे गड्ढे में दबा दिया है कि वहाँ से निकलना तक़रीबन असंभव लगता है.
'राम से चार गुना बड़े मोदी'
जहाँ लोग कहते हों कि 'उन्होंने नरेंद्र मोदी को चीज़ों के दाम घटाने या बीमारी रोकने के लिए प्रधानमंत्री नहीं चुना है, उन्हें बड़े काम करने हैं और वे बड़े काम कर रहे हैं', वहाँ भूख, बेरोज़गारी, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे तथाकथित छोटे सवालों का कोई अर्थ नहीं रह गया है.
तालाबंदी के समय सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर गाँव जाने वाले कहते हैं कि 'अकेले मोदी जी क्या-क्या करेंगे? कुछ तो हमें भी करना होगा', तो वो ग़लत नहीं कहते. प्रधानमंत्री उनके लिए 'आस्था के नए प्रतीक' हैं, सवालों से परे हैं.
सार्वजनिक बहसों में नरेंद्र मोदी को 'राष्ट्रपिता' कहने पर कोई प्रतिक्रिया नहीं होती, 'हर हर मोदी' पर आपत्ति लापता हो गई है, उन्हें 'ईश्वर का अवतार' कहा जाता है, बल्कि एक वर्ग उनको सीधे ईश्वर मानता है. यह ज़मीनी हक़ीक़त आँख मूंदने से ग़ायब नहीं होने वाली.
जिस समय प्रधानमंत्री भूमि पूजन के लिए अयोध्या में थे, इंटरनेट पर एक तस्वीर तैर रही थी. तस्वीर में वे धनुष वाले रामलला का हाथ पकड़े बनने वाले भव्य मंदिर की ओर जा रहे हैं. इसमें राम से चार गुना बड़े मोदी दिखाए गए हैं, लेकिन इसका विरोध ना होना प्रधानमंत्री की विराट छवि की व्यापक स्वीकार्यता को ही दिखाता है.
विपक्ष की भूमिका में मोदी
नरेंद्र मोदी इस समय सत्ता में हैं. वे विपक्ष भी हैं और मध्यस्थता भी उन्हें ही करनी है.
छवि के मामले में वे अपने समकालीनों से मीलों नहीं, दशकों आगे हैं. और ये फ़ासला हर बीतते दिन के साथ बढ़ता दिखाई देता है.
यह पता लगाने का कोई गणितीय आधार उपलब्ध नहीं है कि यह फ़ासला कितने समय में भरेगा? आगे निकलना तो दूर, कितने वक़्त में बराबरी हासिल हो सकती है?
केवल इतना पूछा जा सकता है कि अगर एक व्यक्ति एक दिन में एक टोकरी मिट्टी डालता है, तो एक हज़ार घन मीटर का गड्ढा भरने में कितना समय लगेगा?
प्रधानमंत्री ने अयोध्या में बार-बार 'जय सिया राम' का उद्घोष किया, एक बार भी 'जय श्रीराम' नहीं कहा, तो लोगों ने अतीत को याद करते हुए इसे सहज स्वीकार कर लिया. उन्हें इस पर आपत्ति क्यों होती? सीता मैया उसी तरह उनकी स्मृति का हिस्सा हैं, जैसे राम हैं.
तो फिर भगवान राम की जयकार का यह संबोधन किसके लिए था? निश्चित रूप से प्रधानमंत्री मंदिर के मुहूर्त या समय के नाम पर की गई सतही आलोचनाओं पर जवाब नहीं दे रहे थे.
वे विपक्ष को संबोधित नहीं कर रहे थे, बल्कि स्वयं विपक्ष की भूमिका में थे. विपक्ष ने बहुत ही दबे-दबे स्वर में जय श्रीराम के उग्र उद्घोष पर एकाध बार सवाल उठाए थे, लेकिन उसे जय सिया राम में मोदी ने ही बदला.
'अब सौम्य राम की वापसी का इशारा'
भारतीय जनता पार्टी के पालमपुर अधिवेशन के बाद से उसका और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सभी आनुषांगिक संगठनों का नारा 'जय श्रीराम' ही था.
वे 'विनय न मानत जलधि जड़' वाले क्रुद्ध राम का आह्वान कर रहे थे. क्रुद्ध हनुमान की छवि भी इसी सोच का हिस्सा थी.
अयोध्या के लोगों का अभिवादन 'जय सिया राम' से कब 'जय श्रीराम' हो गया उन्हें पता नहीं चला.
इतना ही नहीं, माथे पर रखने और गले में लटकाने वाला 'सियारामी' पटका ग़ायब हो गया. दुकानदार कहने लगे कि कंपनियाँ अब 'सियारामी' नहीं बनातीं, सारे पटके 'जय श्रीराम' वाले ही आते हैं.
प्रधानमंत्री ने 'जय सियाराम' का उद्घोष करके अपने ही समर्थकों और व्यापक जन-मानस से कहा कि अब देश नए तरह के समाज की ओर बढ़ रहा है.
शायद वे यह संदेश देना चाहते थे कि नया समाज पुरुष प्रधान नहीं होगा. उनका संदेश शायद ये था कि नए समाज में स्त्री का स्थान बराबरी का होगा, पुरुष से पहले होगा.
जिस अतुलित बल के प्रतीक पुरूष के तौर पर राम का नाम लिया जाता रहा है, उसकी जगह अब सौम्य राम की वापसी की ओर उनका इशारा रहा होगा.
'भूमि पूजन भारत के लिए सामान्य घटना नहीं'
उन्होंने केवट, शबरी और यहाँ तक गिलहरी की बात करके समाज के हर वर्ग को स्वीकार्य प्रतीक की छवि सामने रखी.
उस विपक्ष की समझ पर सिर क्यों नहीं पीट लेना चाहिए, जिसे इतना बड़ा सामाजिक परिवर्तन दिखाई नहीं पड़ा. इस आशंका में कि इस परिवर्तन को लक्षित करना, संघ और भाजपा के पाले में जाकर खेलना होगा, धर्म की राजनीति करना होगा, उसने अपनी भूमिका भी नरेंद्र मोदी को सौंप दी है.
राजनीतिक रूप से कितने दलों ने कितनी बार अपनी अंदरूनी कलह में मोदी को मध्यस्थता का अवसर दिया है, उसकी गिनती नहीं है.
अयोध्या में प्रधानमंत्री की उपस्थिति और रामलला के समक्ष साष्टांग प्रणाम की छवि स्पष्ट करती है कि उन्होंने स्वयं को सत्ता के छोटे खेल से ऊपर कर लिया है, आलोचनाओं से परे कर लिया है, जबकि शेष सारे खिलाड़ी गाँव गँवाकर हंडिया-डलिया बचा लेने में व्यस्त हैं.
सब जानते हैं कि अयोध्या का भूमि पूजन भारत के लिए सामान्य घटना नहीं है.
इसका प्रभाव दूरगामी होगा. इस बहाव में बचे रहने के लिए धारा के ख़िलाफ़ तैराकी सबसे अच्छा उपाय नहीं है लेकिन कुछ और करने का विकल्प भी नहीं है जो सत्तारूढ़ दल के लिए नया खाद-पानी होगा.
ऐसे में घर बचाने के लिए, ढह रही जर्जर दीवार की लीपा-पोती करने वाले विपक्ष से कोई उम्मीद की भी नहीं जा सकती.(bbc)
बेरूत विस्फोट में अब तक 149 लोगों की मौत
दोहा 07 अगस्त (वार्ता)। लेबनान की राजधानी बेरूत के पोत पर हुए विस्फोट के मामले में पोत के निदेशक हसन कोरायतेम समेत कुल 16 लोगों को हिरासत में लिया गया है।
एलबीसी रेडियो प्रसारक ने अपनी रिपोर्ट में यह जानकारी दी।
कोरायतेम के मुताबिक उसे पोत में भारी मात्रा में विस्फोटक रखे जाने की जानकारी थी लेकिन इसके खतरे को लेकर वह अनजान था।
लेबनान की राजधानी बेरूत के पोत पर मंगलवार शाम को हुए भीषण विस्फोट में अब तक 149 लोगों की मौत हो चुकी है जबकि 5000 से अधिक घायल हुए हैं। लेबनान के अधिकारियों ने कहा है कि पोत पर यह भीषण धमाका 2750 टन अमोनियम नाइट्रेट के कारण हुआ था, जो असुरक्षित तरीके से पोत के एक गोदाम में रखा गया था।
लेबनान की राजधानी बेरूत के पोत पर हुए विस्फोट में मरने वालों की संख्या बढ़कर 149 हो गयी है।
लेबनान के ओरियंट ली-जॉर नामक समाचार पत्र ने शुक्रवार को अपनी एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी। मीडिया रिपोर्ट में इससे पहले मृतकों की संख्या 137 बताई जा रही थी।
लेबनान की राजधानी बेरूत के पोत पर मंगलवार शाम को हुए भीषण विस्फोट के कारण करीब आधा शहर बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। विस्फोट के कारण 5000 से अधिक लोग घायल हुए हैं। लेबनान के अधिकारियों ने कहा है कि पोत पर यह भीषण धमाका 2750 टन अमोनियम नाइट्रेट के कारण हुआ था, जो असुरक्षित तरीके से पोत के एक गोदाम में रखा गया था।
वाशिंगटन 07 अगस्त (स्पूतनिक)। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर कर चीन के विवादित मोबाइल ऐप टिक-टॉक की कंपनी बाइटडांस से लेन-देन पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है।
यह प्रतिबंध कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए जाने के 45 दिनों के बाद से लागू होगा।
श्री ट्रम्प ने गुरुवार देर रात इस कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए।
इस कार्यकारी आदेश के मुताबिक अमेरिका में चीन की बाइटडांस कंपनी अथवा इससे जुड़ी अन्य कंपनियों के साथ किसी भी प्रकार के लेन-देन पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। अमेरिका में अब कोई भी व्यक्ति अथवा कंपनी बाइटडांस के साथ कोई लेन-देन नहीं कर पायेगी।
कार्यकारी आदेश के मुताबिक चीन के मोबाइल ऐप के अमेरिका में प्रसार से देश की राष्ट्रीय सुरक्षा, विदेश नीति और अर्थव्यवस्था को खतरा पैदा होता है। इसलिए ऐसे मोबाइल ऐप विशेष रूप से टिक-टॉक पर कार्रवाई करना आवश्यक है।
यह कार्यकारी आदेश हस्ताक्षर होने के 45 दिनों बाद से लागू होगा।
चीनी कंपनी बाइटडांस के इस ऐप पर लाखों अमेरिकी नागरिकों की निजी जानकारी चुराने का आरोप है जिसकी ट्रम्प प्रशासन जांच कर रहा है।
गौरतलब है कि अमेरिकी नौसेना ने निजी सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए गत वर्ष अपने कर्मचारियों से सभी सरकारी उपकरणों से इस ऐप को हटाने का आग्रह किया था।
टिक-टॉक ने इन आरोपों से इनकार करते हुए पहले कई बार कहा है कि वह उपयोगकर्ताओं की जानकारी चीन नहीं भेजता है। टिक-टॉक एक सोशल मीडिया ऐप है जिस पर उपयोगकर्ताओं की जानकारी चुराने का आरोप है।
बीजिंग, 7 अगस्त (आईएएनएस)| ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने अमेरिका के ऐस्पन सुरक्षा मंच में भाग लेते हुए कहा कि वर्तमान में कोई सबूत नहीं है कि ऑस्ट्रेलिया में चीनी कंपनी टिक टॉक पर प्रतिबंध लगाया जाए। और इस बात का कोई संकेत नहीं है कि इन अनुप्रयोगों ने ऑस्ट्रेलिया के सुरक्षा हितों या ऑस्ट्रेलियाई नागरिकों के व्यक्तिगत हितों को नुकसान पहुंचाया है। स्कॉट मॉरिसन ने जोर देते हुए कहा कि ऑस्ट्रेलियाई लोगों को सतर्क रहना चाहिए, क्योंकि न केवल टिक टॉक के साथ इस तरह की समस्या है, बल्कि फेसबुक जैसे अमेरिकी सोशल मीडिया प्लेटफार्मों को भी यूजर्स से बहुत सारी जानकारी मिलती है।
ध्यान रहे, इससे पहले अमेरिकी सरकार ने तथाकथित 'राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने के संदेह' के कारण टिक टॉक को पूरी तरह से अवरुद्ध करने की घोषणा की।
चीनी प्रौद्योगिकी कंपनियों के लिए अमेरिका के खतरे के साथ, तीन प्रमुख यूरोपीय आर्थिक समुदाय में टिक टॉक पर प्रतिबंध लगाने की कोई योजना नहीं है।
ब्लूमबर्ग न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार ब्रिटिश और फ्रांसीसी सरकारों के प्रवक्ताओं ने कहा कि उनके देशों में टिक टॉक पर प्रतिबंध लगाने की कोई योजना नहीं है। इसके अलावा, जर्मन सरकार के एक अधिकारी ने कहा कि जर्मनी टिक टॉक पर प्रतिबंध नहीं लगा रहा है।
उधर कई पक्षों ने टिक टॉक पर प्रतिबंध लगाने के लिए अमेरिकी सरकार की कार्यवाही की निंदा की है।
नई दिल्ली/इस्लामाबाद (आईएएनएस)| केंद्र सरकार ने गुरुवार को पाकिस्तान को आगाह किया कि वह अपने भड़काऊ बयानों से भारत में सांप्रदायिक तनाव भड़काने से बाज आए।
पाकिस्तान ने बुधवार को आयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन समारोह की कड़ी निंदा की थी।
इस मुद्दे पर मीडिया के सवालों के जवाब में विदेश मंत्रालय के आधिकारिक प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने गुरुवार को कहा, "भारत के एक आंतरिक मामले पर इस्लामिक गणराज्य पाकिस्तान द्वारा प्रेस को दिए गए बयान हमने देखे हैं।"
प्रवक्ता ने पाकिस्तान को एक चेतावनी जारी करते हुए कहा कि उसे भारत के मामलों में हस्तक्षेप करने से बाज आना चाहिए और सांप्रदायिक उकसावे से बचना चाहिए।
उन्होंने कहा, "सीमा पार से आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले और अपने यहां अल्पसंख्यकों को उनका धार्मिक अधिकार देने से इंकार करने वाले किसी राष्ट्र का यह रुख कोई आश्चर्यजनक नहीं है। इस तरह की टिप्पणियां अत्यंत खेदजनक है।"
इमरान खान के नेतृत्व वाली पाकिस्तान सरकार ने एक आधिकारिक बयान में बुधवार को दावा किया था कि जिस स्थान पर राम मंदिर का निर्माण किया जा रहा है, वहां लगभग पांच सदी तक ऐतिहासिक बाबरी मस्जिद खड़ी थी।
भारतीय सुप्रीम कोर्ट के जिस फैसले ने मंदिर निर्माण का रास्ता साफ किया है, उसे त्रुटिपूर्ण बताते हुए इस्लामाबाद ने कहा कि इसने न केवल न्याय के ऊपर आस्था की प्राधना को जाहिर किया है, बल्कि आज के भारत में बढ़ते बहुसंख्यकवाद को भी, जहां अल्पसंख्यक, खासतौर से मुस्लिम और उनके धर्मस्थल हमले के शिकार हो रहे हैं।
इमरान खान सरकार ने कहा, "एक ऐतिहासिक मस्जिद के स्थान पर मंदिर का निर्माण आने वाले समय के लिए तथाकथित भारतीय लोकतंत्र के चेहरे पर एक धब्बा बना रहेगा। वर्ष 1992 में भाजपा और उससे संबद्ध चरमपंथी हिंदू संगठनों द्वारा बाबरी मस्जिद के विध्वंस के दृश्य दुनिया भर के मुसलमानों के मन में ताजा बने हुए हैं।"
बयान में कहा गया है कि उसके बाद से ओआईसी ने सदियों पुरानी मस्जिद को तोड़े जाने के जघन्य कृत्य की निंदा के लिए कई सारे प्रस्ताव पारित किए हैं।
बीजिंग (आईएएनएस)| दुनिया के सबसे पावरफुल देश में आजकल कोरोना वायरस महामारी ने कोहराम मचा रखा है। इसके साथ ही नवंबर में होने वाले चुनावों की आहट भी है, वहीं चीन के साथ रिश्ते भी खराब हो रहे हैं। इस सबके बीच अमेरिका में रहने वाले चीनी लोगों को रेसिज्म यानी नस्लभेद का शिकार होना पड़ रहा है। चीन-अमेरिका संबंधों और कोविड-19 के कहर से अमेरिका में रहने वाले तमाम छात्र प्रभावित हो रहे हैं। हालिया रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका के विभिन्न शिक्षण संस्थानों में लगभग 3 लाख 60 हजार चीनी छात्र पढ़ते हैं। हालांकि अमेरिका के तमाम संस्थानों ने बयान जारी कर कहा है कि वे चीनी छात्रों का स्वागत करते हैं।
लेकिन पिछले कुछ समय से चीनी स्टूडेंट्स की चिंताएं बहुत बढ़ गयी हैं। जहां एक ओर कोरोना वायरस के कारण अमेरिका में लगभग डेढ़ लाख से अधिक नागरिकों की मौत हो चुकी है। जबकि 47 लाख से ज्यादा वायरस से संक्रमित हुए हैं। इस दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति व अन्य नेता बार-बार वायरस के प्रसार के लिए चीन को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। इसका असर लोगों की मानसिकता पर भी पड़ता है, वैसे भी अमेरिका में रेसिज्म की घटनाएं आम हैं। कुछ समय पहले अश्वेत अमेरिकी जार्ज फ्लॉयड की मौत ने अमेरिकन सिस्टम पर तमाम सवाल खड़े किए हैं। वहीं अमेरिका में एशियाई मूल के लोग भी नस्लभेद का सामना कर रहे हैं।
यहां हम चीनी युवती श चंगथिए का उदाहरण देना चाहेंगे, जो कई साल पहले अमेरिका के आहायो में पढ़ाई करने के लिए गयी थी। अभी वह अमेरिका के जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी में अध्ययन-रत है। उसने ऊई अमेरिकन ड्रीम देखा था, लेकिन हाल के दिनों में माहौल बहुत खराब हो गया है। वह कहती हैं, हमें अब यहां दुश्मन की तरह देखा जा रहा है।
अमेरिका में स्टडी करने वाले कई अन्य चीनी छात्र भी कुछ इसी तरह की स्थिति का सामना कर रहे हैं। उन्होंने पिछले कुछ महीनों में, दो ऐतिहासिक घटनाओं का अनुभव किया है, एक कोरोना महामारी और दूसरा अमेरिका व चीन के बीच बढ़ता तनाव। इन वजहों से इन युवाओं को भविष्य की चिंता सता रही है।
वहीं सायराकूज यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर यिंगई मा ने जनवरी महीने में चीनी छात्र-छात्राओं के अनुभवों पर 'महत्वाकांक्षी और चिंता' नामक एक पुस्तक लिखी थी। लेकिन उनका कहना है कि, अगर अभी उन्हें किताब लिखने का मौका मिलता तो, उसका शीर्षक सिर्फ 'चिंता' होगा।