ताजा खबर
रायपुर, 30 जुलाई। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा है कि हमें कोरोना संक्रमण को रोकने के लिये शहरों में लॉकडाउन का निर्णय लेना पड़ा है। आप सभी इस लॉकडाउन को गंभीरता से ले। लॉकडाउन से लोगों को कठिनाई का सामना करना पड़ता है, लेकिन अगर लोग सुरक्षा और बचाव के लिये नियमों का पालन नहीं करेंगे तो लॉकडाउन की स्थिति से बचा नहीं जा सकता है। यह समय मेरे लिये, आपके लिये चिंतित होने, बीमारी से सावधान रहने और बचाव के उपायों को गंभीरता से लेने का समय है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल आज प्रदेश की जनता को संबोधित कर रहे थे।
मुख्यमंत्री ने कहा कि आज मैं अपने प्रदेश में कोरोना वायरस संक्रमण की स्थिति को लेकर आपके समक्ष आया हूँ। छत्तीसगढ़ में कोरोनो संक्रमण अन्य राज्यों के मुकाबले नियंत्रण में जरूर है, लेकिन पिछले कुछ दिनों से संक्रमित व्यक्तियों की संख्या में क्रमश: बढ़ोत्तरी हो रही है। यह सब अनलॉक के दौरान सावधानी और बचाव के उपाय नहीं अपनाने के कारण हुआ है। छत्तीसगढ़ में कोरोना पीडि़तों का रिकवरी दर बेहतर है और मृत्यु दर काफी कम है। श्री बघेल ने कहा कि हम देश के अनेक राज्यों से बेहतर कर रहे है। आपके सहयोग से कोरोना संक्रमण से बचाव की दिशा में और बेहतर करेंगे। फिलहाल राज्य में रोजाना पांच हजार से अधिक सैंपलों की जांच हो रही है। शीघ्र ही इसे बढ़ाकर दस हजार तक करने का लक्ष्य है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारे राज्य में चिकित्सक पूरे समर्पण से कोरोना मरीजों का इलाज कर रहे है। इलाज के बाद अब तक बड़ी संख्या में मरीज स्वस्थ होकर अपने घरों को लौट चुके है। राज्य के आठ क्षेत्रीय और 22 जिला स्तरीय अस्पतालों में कोविड-19 के मरीजों के इलाज की व्यवस्था की गई है। सभी कोविड अस्पतालों में मास्क, पीपीई किट, ट्रिपल लेयर मास्क, वीटीएम और जरूरी दवाईयों के पर्याप्त संख्या में इंतजाम सुनिश्चित किए गए हैं। मैंने अधिकारियों को आक्सीमीटर की उपलब्धता सुनिश्चित कराने के बारे में भी निर्देशित किया है। मेरा आप सब से आग्रह है कि सभी अनिवार्य रूप से मास्क पहने, बार बार हाथ धोते रहे, लोगों से दूरी बनाये रखे, भीड़भाड़ करने से बचे। अगर हम यह सब करेंगे तो कोरोना वायरस का संक्रमण रोकने में सफल होंगे। राज्य शासन, हमारे सारे विभाग, चिकित्सक, सफाईकर्मी, पुलिस आदि कोरोना संक्रमण के प्रसार को रोकने और उपचार में लगे है। लेकिन अगर आप सावधानी नहीं रखेंगे, बचाव के उपायों का पालन नहीं करेंगे तो फिर कोरोना वायरस संक्रमण की रोकथाम मुश्किल होगी।
श्री बघेल ने कहा कि मुझे जानकारी मिली है कि कुछ स्थानों पर लोग सैम्पल लेने जा रहे स्वास्थ्य कर्मियों के दल का विरोध कर रहे है, उन्हें जाँच करने से रोक रहे । मेरा आपसे निवेदन है कि आप स्थिति की गंभीरता को समझे। ये सब आपके और आपके परिवार के स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए है। हमें स्वास्थ्य कर्मियों का सहयोग करना है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि ईद और रक्षाबंधन के पर्व समीप आ रहे हैं। आप सबको इन पर्व की शुभकामनाएं। पर्व को मनाते समय यह ध्यान रखे की हम केवल अपने घर, परिवार के लोगों के साथ ही यह पर्व मनाये। कोरोना से बचाव के लिये ऐसा करना जरूरी है। हमें अपने सामाजिक दायित्व का पालन करते हुए भीड़भाड़ करने से बचना होगा। मुझे पूरा विश्वास है कि हम सब स्थिति की गंभीरता को समझेंगे और कोरोना संक्रमण को रोकने में सहयोग देंगे।
प्रयागराज, 30 जुलाई (आईएएनएस)| अयोध्या में 5 अगस्त को राम मंदिर के भूमि पूजन के लिए गुरुवार को गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम से मिट्टी और जल यहां पहुंचेगी। बुधवार को मंत्रों के जाप के बीच विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के नेताओं को मिट्टी और जल सौंप दिया गया।
विहिप के तीन सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल इस मिट्टी और जल को लेकर अयोध्या पहुंच रहे हैं।
गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर से मिट्टी भी भूमि पूजन के लिए अयोध्या भेजी गई है।
प्रयागराज में विहिप के प्रवक्ता अश्विनी मिश्रा के मुताबिक, "विहिप के धमार्चार्य संपर्क प्रमुख शंभू और प्रांत संगठन मंत्री मुकेश कुमार और मेजा निवासी अनुसूचित जनजाति के संजू लाल आदिवासी ने बुधवार को वैदिक परंपरा के माध्यम से पूजन करते हुए पवित्र मिट्टी और जल का संग्रह किया।"
मिट्टी और जल के साथ विहिप के नेता महावीर भवन (वीएचपी नेता स्वर्गीय अशोक सिंघल के निवासस्थल) गए और राम मंदिर के लिए सिंघल के योगदान और प्रयासों को याद किया।
तत्पश्चात विहिप के कार्यकर्ता पवित्र मिट्टी को लेकर विहिप कार्यालय केसर भवन ले गए।
विहिप नेता ने कहा, "संगम के पवित्र मिट्टी और जल के अलावा काशी विश्वनाथ की मिट्टी, श्रृंगवेरपुर के पानी सहित कई अन्य प्रमुख धार्मिक स्थलों की पवित्र मिट्टी व पानी का संग्रह कर 5 अगस्त से पहले अयोध्या पहुंचाया जाएगा जिनमें कबीर मठ, महर्षि भारद्वाज आश्रम और सीतामढ़ी शामिल हैं।"
तिरुवनंतपुरम, 30 जुलाई (आईएएनएस)| बेहद लोकप्रिय युवा संगीतकार बालाभास्कर की सड़क दुर्घटना में मौत के लगभग 22 महीने बाद सीबीआई ने जांच शुरू कर दी है। इसके लिए अब सीबीआई ने एक प्राथमिकी दर्ज की है। केरल सरकार ने उसके पिता द्वारा अनुरोध किए जाने के बाद पिछले साल दिसंबर में सीबीआई जांच की मांग की थी।
40 साल के बालाभास्कर अपनी पत्नी और दो साल की बेटी के साथ 25 सितंबर 2018 को त्रिशूर से राज्य की राजधानी की ओर यात्रा कर रहे थे। तब राजधानी शहर के बाहरी इलाके में उनकी कार का एक्सीडेंट हो गया था।
दुर्घटना में बेटी की मौके पर ही मौत हो गई थीं वहीं 2 अक्टूबर को बालाभास्कर का निधन हो गया। दुर्घटना में उनकी पत्नी और ड्राइवर घायल हुए थे।
घटना के तुरंत बाद संदेह व्यक्त किया गया कि जब दुर्घटना हुई तक कार कौन चला रहा था। कुछ रिपोटरें में कहा गया कि ड्राइवर ही कार चला रहा था, जबकि कुछ अन्य रिपोटरें ने उल्लेख किया गया कि कार खुद संगीतकार चला रहे थे।
संयोग से इस मामले में पहला रहस्योद्घाटन कुछ दिनों बाद तब हुआ जब लोकप्रिय स्टेज कलाकार कलाभवन सोबी ने कहा कि यह दुर्घटना नहीं थी, क्योंकि उन्होंने दुर्घटना स्थल पर 'कुछ चीजों' पर ध्यान दिया था। दरअसल, घटना होने के तुरंत बाद वे घटनास्थल पर पहुंच गए।
इस नई सीबीआई जांच का एक कारण इस बात पर अधिक ध्यान आकर्षित करना होगा। जिसमें दुर्घटना के तुरंत बाद एक ऐसे व्यक्ति की कथित उपस्थिति होना जो अब सोने की तस्करी के मामले में गिरफ्तार किया गया है।
संगीतकार के पिता सी.के. उन्नी ने पहले ही केरल क्राइम ब्रांच पुलिस की जांच को लेकर आशंकाएं जताईं थीं। उन्होंने महसूस किया था कि उनके अनुरोधों के बावजूद कुछ चीजों पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
अयोध्या, 30 जुलाई (आईएएनएस)| श्री राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट ने कहा है कि वह आने वाले महीनों में अयोध्या में एक 'निर्माण यज्ञ' का आयोजन करेगा और इसमें भाग लेने के लिए सभी राम भक्तों को आमंत्रित करेगा। ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने बताया कि यह निर्णय इसीलिए लिया गया है क्योंकि भक्त महामारी के कारण 5 अगस्त को अयोध्या में होने जा रहे 'भूमिपूजन' समारोह के गवाह नहीं बन सकेंगे।
राय ने कहा, "ट्रस्ट ने भूमि पूजन के लिए देश भर से सभी रामभक्तों को अयोध्या में आमंत्रित करने की योजना बनाई थी। उनमें से कई ने 1984 से चल रहे मंदिर आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और जाहिर है वे 5 अगस्त को होने जा रहे इस ऐतिहासिक समारोह का गवाह बनना चाहते थे, लेकिन महामारी के कारण इस योजना को टालना पड़ा। अब जैसे ही महामारी के कारण बने हालात सामान्य होंगे हम राम भक्तों के लिए एक 'निर्माण यज्ञ' आयोजित करेंगे।"
अभी ट्रस्ट ने 5 अगस्त के कार्यक्रम के लिए 200 लोगों की एक चुनिंदा सभा को आमंत्रित किया है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, वरिष्ठ भाजपा नेता एल.के.आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती और आरएसएस के शीर्ष नेता शामिल हैं।
उन्होंने कहा, "सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखने के लिए मेहमानों को ब्लॉक में बैठाया जाएगा।"
उन्होंने आगे कहा कि मंदिर का काम 'भूमिपूजन' के तुरंत बाद शुरू होगा और इसके अगले तीन वर्षों में पूरा होने की उम्मीद है।
विश्व हिंदू परिषद के उपाध्यक्ष राय ने सभी लोगों से अपील की है कि वे 'भूमिपूजन' के लिए अयोध्या न जाएं, बल्कि इस समारोह को टीवी पर लाइव देखें।
उन्होंने भारतीय नागरिकों के साथ-साथ प्रवासी भारतीयों को भी 5 अगस्त को सुबह 11.30 बजे से 12.30 बजे के बीच पूजा करने और उसके बाद शाम को दीये जलाने के लिए कहा है।
उन्होंने कहा कि लोगों को अपनी क्षमता के अनुसार राम मंदिर के लिए दान करने का संकल्प लेना चाहिए।
इससे पहले राय ने स्वतंत्र भारत में राम मंदिर भूमिपूजन को सबसे महत्वपूर्ण अवसर करार दिया था।
वीएचपी ने अपने कैडरों को हर शहर और गांव में ऐसी व्यवस्था करने को कहा है जहां लोग कोविड-19 प्रोटोकॉल का पालन करते हुए इकट्ठा हो सकें और इस ऐतिहासिक समारोह को टीवी पर लाइव देख सकें।
उन्हें यह सुनिश्चित करने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफार्मों का उपयोग करने के लिए भी कहा गया है ताकि यह समारोह हर घर में देखा जा सके।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 30 जुलाई। पलारी थाने के एक गांव में दो महीने पहले दो सगी नाबालिग बहनों को डरा-धमकाकर उनसे सामूहिक बलात्कार किया गया। पुलिस इस मामले में 11 युवकों को हिरासत में लेकर जांच में लगी है। घटना की जानकारी हाल ही में पीडि़त लड़कियों ने अपने परिजनों को दी, तब जाकर मामले का खुलासा हुआ।
पुलिस के मुताबिक पलारी क्षेत्र की दो सगी बहनें दो महीने पहले गांव की गली में अपनी अन्य सहेलियों के साथ घूमने निकली थीं, तभी आरोपी युवकों ने वीडियो बनाने और ब्लैकमेल करने की धमकी देते हुए उनके साथसामूहिक बलात्कार किया। घटना की जानकारी उस समय दोनों नाबालिग लड़कियों ने लोक लाज के चलते अपने परिजनों को नहीं दी थी। पलारी पुलिस मामला दर्ज कर अब जांच में लगी है।
पुलिस का कहना है कि पीडि़त लड़कियों की शिकायत पर सभी 11 आरोपी युवक हिरासत में ले लिए गए हैं। इसमें दो नाबालिग युवक भी शामिल हैं। आरोपी सभी युवक दतान और अमेरा गांव के आसपास के रहने वाले हैं। पुलिस का कहना है कि लड़कियों ने घटना की वीडियो बनाने की शिकायत की है, लेकिन उसकी पुष्टि नहीं हो पाई है।
(समग्र रूप से वर्तमान संदर्भ सहित राजस्थान के विशेष संदर्भ में)
-देवेंद्र वर्मा
सत्ता प्राप्ति के लिए राजनीतिक दलो के षड्यंत्र का आकलन किया जाना नामुमकिन है,किंतु राजनीतिक दल के षड्यंत्रो में राज्यपाल,अथवा विधानसभा के अध्यक्ष जैसे संवैधानिक पदों पर विराजमान सम्माननीय व्यक्ति भी यदि सम्मिलित हो जाएं और न्यायपालिका भी उच्चतम न्यायालय द्वारा पारित न्याय निर्णयों, नजीरों के विपरीत निर्णय करने लगे, आम जनता भी इन संवैधानिक पदों एवं संस्थाओं के कार्यकरण से इनके प्रति आशंकित हो जाए,तब यह कहा जा सकता है कि प्रजातांत्रिक व्यवस्थाएं चाहे समाप्त ना हुई हो, किंतु कमजोर तो हो ही गई है।
राजस्थान में इस समय हमारे संविधान के साथ जो खिलवाड़ हो रहा है, उसमें राजनीतिक दलों से तो ज्यादा अपेक्षा नहीं की जा सकती, क्योंकि सत्ता प्राप्ति के लिए इनका आचरण, व्यवहार और कार्य करण संविधान के लागू होने के पश्चात से ही हम सब बेबस होकर देख रहे हैं। विधानसभा के अध्यक्षों की कार्य प्रणाली से भी 1985 तक जबकि दल बदल कानून लागू नहीं हुआ था,आम जनता निरपेक्ष ही रही, किंतु जब अध्यक्षों को दल बदल कानून के अंतर्गत विधान सभा के सदस्यों की अयोग्यता तथा राजनीतिक दलों के विभाजन पर निर्णय करने की अधिकारिता दी गई, अध्यक्ष के निर्णय किसी दल के सत्ता में बने रहने अथवा अपदस्थ होने के लिए निर्णायक हो गए, उसके पश्चात अध्यक्ष से राजनीतिक दलों के साथ-साथ जनता की अपेक्षाएँ भी बढ़ गई।
अध्यक्ष किसी भी दल के रहे हो,अपवाद स्वरूप कुछ निर्णयों को छोडक़र वर्ष 1985 से अध्यक्ष के निर्णय उनके मूल राजनीतिक दल जिस के टिकट पर वे विधायक निर्वाचित हुए,के प्रति निष्ठा प्रकट करने के प्रयास से प्रभावित रहे।
संसद एवं विधान सभाओं में जब से मिली जुली सरकार अथवा सहयोगी दल के साथ सरकार का गठन आरंभ हुआ,किसी भी एक राजनीतिक दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं होने की स्थिति में राजनीतिक दल अन्य राजनीतिक दलों, निर्दलीय सदस्यों के साथ जोड़-तोड़ करके सरकार गठित करने के लिए तोलमोल और षड्यंत्र कर के अपना-अपना बहुमत होने का दावा करने लगे, ऐसी स्थिति में राज्यपाल संविधान के अनुच्छेद 164 के अंतर्गत मुख्यमंत्री किसे नियुक्त करें? सरकार बनाने के लिए राज्यपाल किस राजनीतिक दल को आमंत्रित करें? मुख्यमंत्री किसे नियुक्त करें? का निर्णय, संविधान के प्रावधानों के अंतर्गत अपने विवेक से करने लगे। राज्यपालों का तथाकथित विवेक भी उस राजनीतिक दल के प्रति प्रभावित होने लगा जिस राजनीतिक दल की अनुशंसा पर वे राज्यपाल नियुक्त हुए हैं। राज्यपालों के ऊपर भी आरोप लगना प्रारंभ हुआ।
राज्यपालों द्वारा मुख्यमंत्री को नियुक्त करने और अध्यक्षों द्वारा दल बदल कानून के अंतर्गत दिए गए निर्णय को न्यायालयों में चुनौती दी जाने लगी फल स्वरूप वर्ष 1985 से आज दिनांक तक अनेकों न्याय निर्णय के द्वारा अनेक सिद्धांत, विधी के स्वरूप में स्थापित हुए। कार्यपालिका विधायिका एवं न्यायपालिका के उच्च पद धारित जब विधि के सदृश्य स्थापित इन सिद्धांतों का पालन नहीं करते हैं,तभी ऐसी स्थिति निर्मित होती है, जो हम सब विगत लगभग एक डेढ़ वर्षो से देश के विभिन्न राज्यों और वर्तमान में सत्ता प्राप्ति के संघर्ष के लिए राजस्थान में चल रही उठापटक के संदर्भ में विगत 18 दिनों से अधिक समय से देख रहे हैं।
सत्ता प्राप्ति के लिए राजनीतिक दलों में हुए संघर्ष के फलस्वरूप उच्चतम न्यायालय के न्याय निर्णय के द्वारा अथवा विधि निर्माण के द्वारा स्थापित सिद्धांतों एवं विधियों में से वर्तमान संदर्भ में कुछ महत्वपूर्ण निम्नानुसार है :-
(1) संविधान की दसवीं अनु सूची (दल बदल कानून) के अंतर्गत किसी सदस्य अथवा सदस्यों के अयोग्यता अर्जित करने संबंधी अर्जी प्राप्त होने पर अध्यक्ष विधानसभा को ही केवल अर्जी पर निर्णय देने की अधिकारिता प्राप्त है, न्यायालयों को नहीं, और जब तक अध्यक्ष अर्जी पर निर्णय नहीं देते तब तक न्यायालय को हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है।
(2) अध्यक्ष के विचाराधीन किसी अर्जी पर यदि न्यायालय को कोई याचिका प्राप्त होती है तब भी न्यायालय उस याचिका पर किसी प्रकार का अंतरिम आदेश पारित नहीं कर सकते,यह अवश्य है कि अध्यक्ष द्वारा अर्जी पर अंतिम रूप से निर्णय दिए जाने के पश्चात, दिए गए निर्णय को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है, और न्यायालय विचार कर सकते हैं।
(3) सरकार के गठन होने के पश्चात गठबंधन में सम्मिलित अथवा बाहर से सरकार को समर्थन दे रहे दल अथवा अन्य विधायक अपना समर्थन वापस ले लेते हैं, / राजनीतिक दल के ही विधायक मूल दल जिसके प्रत्याशी के रूप में निर्वाचित हुए हैं, दल बदल कानून के पैरा 2(1)(क)(ख) के अंतर्गत अयोग्य घोषित होने, पर प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि, सरकार अल्पमत में आ गई है,ऐसी स्थिति में राज्यपाल मुख्यमंत्री से सभा में अपना बहुमत सिद्ध करने के लिए अपेक्षा कर सकते हैं अथवा सदन के नेता अर्थात मुख्यमंत्री सभा में विश्वास का प्रस्ताव रखकर अपना बहुमत सिद्ध कर सकते हैं।
उच्चतम न्यायालय के द्वारा जब यह न्याय निर्णित हो गया कि बहुमत का निर्णय विधान मंडल के पटल पर होगा बाहर नहीं तब राज्यपालों के द्वारा राजभवन में विधायकों की परेड करवाने अथवा राज्यपाल द्वारा बहुमत का निर्णय करने की परिपाटी में रोक लगी और ऐसा आभास भी हुआ कि यह क्षेत्र अब राज्यपाल की मनमर्जी का नहीं रहा। यद्यपि विभिन्न कारणों से राज्यपाल की भूमिका पर सवाल उठते रहे लेकिन न्यायालय द्वारा न्याय निर्णय के पश्चात उनका निराकरण भी होता रहा।
यह अवश्य है कि ऐसे ही अवसरों पर न्यायपालिका ने विधायिका के कार्य क्षेत्र में अतिक्रमण करते हुए विधायिका को निर्देशित करना प्रारंभ कर दिया।फल स्वरूप सभा की कार्यवाही जिस पर संविधान में स्पष्ट प्रावधान है, कि सभा की कार्यवाही पर संपूर्ण नियंत्रण सभा का ही रहता है। न्यायपालिका,न्याय निर्णय में,सभा की बैठक कब होगी, कैसे होगी, मतदान की प्रक्रिया क्या रहेगी, बाहरी पर्यवेक्षक नियुक्त होंगे,मतदान का निर्णय घोषित नहीं किया जाएगा जब तक कि न्यायालय अनुमति न दे, आदि आदि।ऐसे न्यायनिर्णयों पर, विधायिका ने, ‘विधायिका और न्यायपालिका’ के बीच संबंध विषय पर समय-समय पर संगोष्ठी एवं सम्मेलनों के माध्यम से विधान मंडलों की ‘सार्वभौमिकता एवं न्यायालय’, जैसे विषयों पर विचार मंथन किया तथा स्वनियंत्रण का पालन करते हुए विधायिका के क्षेत्र में न्यायपालिका के अतिक्रमण पर समझदारी पूर्ण प्रतिक्रिया व्यक्त की।
प्रजातांत्रिक लोकतंत्र सुचारु रूप से लोक हित एवं लोक कल्याण के उद्देश्य से संचालित हो इस हेतु सबसे प्राथमिक आवश्यकता इस बात की है कि संविधान के आधार स्तम्भ विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका अपने अपने संविधान प्रदत्त कार्य क्षेत्र में अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें और किसी दूसरे के अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण का प्रयास न करें।
इस विषय में भिन्न-भिन्न मत हो सकते हैं कि यह सब प्रारंभ कब हुआ उदाहरणार्थ राज्यपालों द्वारा उनके द्वारा ली गई शपथ के विपरीत अपने नियोक्ता के प्रति निष्ठा को सर्वोपरि रखकर अल्पमत दल को सत्ता की बागडोर सोपना, जनमत की सरकारों को मनमाने तरीके से बर्खास्त करना, चुनी हुई सरकारों को बर्खास्त करके राष्ट्रपति शासन थोपना, जन प्रतिनिधियों द्वारा जनता के विश्वास को खंडित करते हुए लोभ लालच के वशीभूत दल बदलना, दल बदल कानून का निर्वचन कानून की भावना के विपरीत अपने मनमाफिक तरीके से करते हुए अपने दल के प्रति निष्ठा प्रदर्शित करने को प्राथमिकता देना, उच्चतम न्यायालय द्वारा न्याय निर्णय से स्थापित सिद्धांत को नजऱअंदाज करते हुए अधिकारिता से बाहर जाकर निर्णय देना,ऐसे अवांछनीय, उदाहरण है जब आमजन को ऐसा प्रतीत हुआ कि संवैधानिक व्यवस्थाएं और संविधान के प्रावधानों की भावनाएं खंडित हो रही है। यही नहीं संविधान सभा जब संविधान के विभिन्न प्रावधानों को अंतिम रूप दे रही थी,और संविधान सभा के विद्वान सदस्य अपने अपने विचार रख रहे थे और भावनाएं प्रकट कर रहे थे, जिन भावनाओं के साथ संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों को बाबा साहब ने अंतिम रूप दिया गया, उच्च संवैधानिक पदों को धारण करने वाले पदाधिकारियों द्वारा उन भावनाओं के विपरीत कार्यकरण प्रारंभ किया।
वर्ष 1995 से भाजपा के मुख्य आधार स्तंभों में से एक आदरणीय अटल बिहारी वाजपेई ने संसद में अविश्वास प्रस्ताव, और अन्य अनेक अवसरों पर व्यक्त विचारों से देश के समक्ष जो आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किए, देश को आशा की एक किरण भाजपा के नेतृत्व कर्ता के रूप में दिखाई दी, 2003 में राजनीति में दल बदल रोकने के उद्देश्य से,तथा अध्यक्ष का पद विवाद का विषय ना बने उसकी प्रतिष्ठा एवं गरिमा बनी रहे दल बदल कानून में व्यापक संशोधन किए गए।
वर्ष 2014 में भाजपा की सरकार न केवल देश में अपितु प्रदेशों में भी भारी जनमत के साथ सत्ता में आई। एक चकाचौंध करने वाला नेतृत्व देश को प्राप्त हुआ, इस चकाचौंध नेतृत्व से विभिन्न राज्यों में भाजपा के नेतृत्व के भी चमकने का एहसास हुआ, आम जन आकर्षित हुआ, लेकिन राज्यों के परिपेक्ष में यह एहसास अल्प समय में ही विलुप्त हो गया।
जनता में राज्यों में नेतृत्व के प्रति व्याप्त हुई निराशा की भावना के फल स्वरूप देश की राजधानी दिल्ली सहित राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गोवा, मणिपुर, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, कर्नाटक, आदि राज्यों में जनता ने या तो भाजपा को पूरी तरीके से नकार दिया या फिर बहुमत से दूर कर दिया और 2014 मैं जागृत कांग्रेस मुक्त भारत की भाजपा की कल्पना धराशाई हो गई।फिर एक नया प्रयोग आरंभ हुआ, वर्ष 2019 के आम चुनाव आते-आते ‘कांग्रेसमुक्त भारत के स्थान पर कांग्रेसयुक्त भाजपा’ का।
1) पूंजीवाद और पैकेज के युग में प्रयोग को मूर्त रूप देने के लिए बाजार में खऱीदार आ गए बोली लगने लगी बाजार में माल बिकने के लिए उपलब्ध था।संवैधानिक पदों पर नियुक्त पदाधिकारियों जो संविधान की रक्षा की शपथ से बंधे थे, के आचरण से आम जनता का विश्वास संवैधानिक संस्थाओं के पदाधिकारियों से डगमगाने लगा।
2)वर्ष 2014 में जनता ने जिस प्रजातांत्रिक सिद्धांत युक्त राजनीति के प्रारंभ की कल्पना की थी, वह पूँजी प्रधान है,ऐसी धारणा बलवती होने लगी और इसके पीछे मुख्य कारण रहा केंद्र की सरकार द्वारा प्रदेशों की जनमत की सरकारों को अस्थिर करना।
3) आम निर्वाचन में बहुमत प्राप्त राजनीतिक दल के, जन प्रतिनिधि अचानक जनता के साथ विश्वासघात करते हुए जिस दल से जनता ने उन्हें 5 वर्ष के लिए निर्वाचित किया था,कालावधी पूर्ण किए बिना ही जनमत की सरकार को अपदस्थ करने के उद्देश्य से विधायक पद से इस्तीफा, पश्चात समारोह पूर्वक अन्य राजनीतिक दल की सदस्यता लेने, और जिस राजनीतिक दल में सम्मिलित हुए,उसके छद्म बहुमत में आने के फलस्वरूप नवगठित मंत्रिमंडल में मंत्री के पद पर नियुक्त करने ।
4) राज्यपाल द्वारा मंत्री परिषद की अनुशंसा पर विधानसभा का सत्र बुलाने के मंत्री परिषद के संवैधानिक अधिकार मैं अड़ंगा डालते हुए, मंत्री परिषद की विधानसभा के माध्यम से जनता के प्रति जवाबदेही में अवरोध उत्पन्न करने।
5)उच्चतम न्यायालय की 5 सदस्य की बेंच के विधि स्वरूप, न्याय निर्णय के विपरीत अध्यक्ष के क्षेत्राधिकार में न्यायपालिका का अतिक्रमण।
संविधान के लागू होने के पश्चात वर्ष 1964 में विधायिका एवं न्यायपालिका के मध्य अधिकारिता के संविधान प्रदत्त कार्य क्षेत्र में अतिक्रमण किए जाने पर राष्ट्रपति द्वारा उच्चतम न्यायालय की पूरी संविधान पीठ को संदर्भित मामले में उच्चतम न्यायालय का यह निर्णय कि संविधान के दोनों ही अंगों को एक दूसरे के कार्य क्षेत्र में अतिक्रमण नहीं करते हुए और विधायिका की सार्वभौमिकता को अक्षुण्ण रखते हुए समादर एवं सम्मान की भावना से कार्य करना चाहिए।
पूर्व में न्यायिक सक्रियता वाद के संबंध में भी अनेकों अवसरों पर संगोष्ठी एवं कार्यशाला में विचार विमर्श हुआ और निष्कर्ष यही रहा कि इन दोनों ही संस्थाओं के मध्य उचित तालमेल सबसे महत्वपूर्ण है और यदि वे अपनी संविधान प्रदत्त सीमाओं का अतिक्रमण करते हैं तो यह व्यापक राष्ट्रीय हित में नुकसानदायक ही रहेगा।
वर्तमान में जिस प्रकार राज भवन एवं न्यायपालिका के द्वारा राजनीतिक कार्यपालिका एवं विधायिका के क्षेत्र में संविधान के प्रावधानों के विपरीत अवांछनीय अतिक्रमण किया जा रहा है, कि प्रबल भावना का आविर्भाव संपूर्ण देश में हुआ है वह संसदीय प्रजातांत्रिक प्रणाली के लिए नुकसानदायक है।
संसदीय प्रजातंत्र की सफलता के लिए आवश्यक है कि कार्यपालिका विधायिका एवं न्यायपालिका संविधान के प्रति निष्ठावान होकर संवैधानिक व्यवस्था को अक्षुण्ण बनाए रखें।
(देवेंद्र वर्मा, पूर्व प्रमुख सचिव छत्तीसगढ़ विधानसभा संसदीय एवं संवैधानिक विशेषज्ञ)
पश्चिम बंगाल कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सोमेन मित्रा का निधन हो गया है। उन्होंने गुरुवार देर रात 1.30 बजे कोलकाता के एक अस्पताल में 78 साल की उम्र में आखिरी सांस ली। सोमेन मित्रा कई बीमारियों से ग्रसित थे। उनका इलाज कोलकाता के एक प्राइवेट अस्पताल में चल रहा था।
खबरों के मुताबिक, सोमेन मित्रा को कुछ दिन पहले ही किडनी की बीमारी की वजह से अस्पताल में भर्ती कराया गया था। हालांकि कार्डियक अरेस्ट की वजह से उनका निधन हो गया। उनका कोरोना टेस्ट भी करवाया गया था। उनकी जांच रिपोर्ट निगेटिव आई थी।
सोमेन मित्रा के निधन पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने शोक जताया है। उन्होंने ट्वीट कर कहा, “इस कठिन समय में मैं सोमेन मित्रा के परिवार और दोस्तों के साथ हूं। हम उन्हें प्यार, शान और सम्मान के साथ याद करेंगे।”
वहीं, पश्चिम बंगाल कांग्रेस ने भी सोमेन मित्रा के निधन पर शोक जताया है। पश्चिम बंगाल कांग्रेस के ट्विटर अकाउंट से ट्वीट कर कहा गया, 'WBPCC के अध्यक्ष सोमेन मित्रा ने कुछ समय पहले अंतिम सांस ली है। इस अपार हानि के बीच हमारी प्रार्थनाएं और विचार दादा के परिवार के साथ हैं।”(navjivan)
-कुणाल पाण्डेय
कोरोनावायरस महामारी और इससे बचने के लिए लगाए गए लॉकडाउन ने “जूम” ऐप को रातोंरात लोकप्रिय बना दिया। मध्यम और उच्च वर्गीय शहरी तबका इसका इस्तेमाल ऑनलाइन कक्षाओं, दफ्तरों की मीटिंग, वेबिनार आदि में करने लगा। लेकिन देश का एक बड़ा तबका इससे अछूता ही रहा। कोरोना काल ने इन दो तबकों के बीच डिजिटल डिवाइड (विभाजन) को स्पष्टता से उजागर कर दिया। आर्थिक रूप से बेहद कमजोर इस बड़े तबके को समझने के लिए डाउन टू अर्थ मध्य प्रदेश के पन्ना जिले के सुदूर गांव कोटा गुंजापुर पहुंचा और यहां रहने वाले 13 वर्षीय छात्र बृज कुमार और उसकी मां से मिला।
आठवीं कक्षा का छात्र बृज आदिवासी समाज से आता है और उसकी मां हक्की बाई का बस एक ही सपना है कि इकलौती संतान अच्छे से पढ़ लिखकर इज्जत की जिंदगी जी ले। मजदूरी करके पेट भरने वाली हक्की बाई लॉकडाउन की वजह से सहमी हुई हैं। चार-पांच महीने से अधिक हो गए हैं और उनका बच्चा स्कूल जाना तो दूर, कॉपी-किताब को हाथ तक नहीं लगाता। वह कहती हैं, “नहीं मालूम यह सब कब तक चलेगा। बच्चे की पढ़ाई लगभग छूट सी गई है। डर लगता है कि अगर दो-चार महीने बाद स्कूल खुल भी जाए तो बच्चे का पढ़ने में मन लगेगा या नहीं।”
क्या फोन या इंटरनेट के माध्यम से स्कूल के संपर्क में नहीं है? इस सवाल के जवाब में हक्की बाई कहती हैं, “घर में फोन ही नहीं है। अगर कर्ज वगैरह लेकर फोन खरीद भी लें उसे चार्ज कैसे करेंगे। गांव में आज तक बिजली नहीं आई।”
जब शिक्षा के लिए फोन और इंटरनेट पर पूरा देश निर्भर हो गया है, तब हक्की बाई अकेली मां नहीं है जो ऐसी समस्या का सामना कर रही हैं। उनके गांव में एक प्राथमिक विद्यालय है। वहां करीब 31 छात्र-छात्राओं का नामांकन हुआ है। जब लॉकडाउन की अवधि बढ़ने लगी तब सरकारों ने विद्यालयों को आदेश दिया कि बच्चों को फोन या इंटरनेट के सहारे संपर्क में रखा जाए। इस आदेश के बाद, विद्यालय प्रशासन ने घर-घर घूमकर सभी से मोबाइल नंबर लेने की कोशिश की। कुल आठ घरों में मोबाइल नंबर मिले और इनमे से महज दो ही सक्रिय थे। यह जानकारी विद्यालय के प्रधानाध्यापक रोहणी पाठक ने दी। उनका कहना है कि अन्य गांव की स्थिति भी कमोबेश ऐसी ही है। अधिकतर बच्चे आदिवासी समाज से आते हैं और इनके माता-पिता अपने जीवनयापन के लिए मजदूरी करते हैं। इन बच्चों को विद्यालय लाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है क्योंकि इनमें से अधिकतर शिक्षा को महत्व नहीं देते। पाठक सवाल करते हैं, “जरा सोचिए, महीनों तक अगर शिक्षक और छात्रों की आमने-सामने वाली मुलाकात न हो तो बच्चे पढ़ाई-लिखाई में कितना मन लगाएंगे।”
देश के तमाम राज्यों में बड़ी संख्या में ऐसे बच्चे हैं जो ऑनलाइन क्लास जैसी सुविधा का फायदा नहीं उठा सकते। पेशे से वकील और नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी से जुड़ी शोधकर्ता स्मृति परशीरा को हिमाचल प्रदेश के कई सरकारी विद्यालयों से संपर्क साधने का मौका मिला। यहां सरकारी विद्यालय के शिक्षक वाट्सऐप के माध्यम से बच्चों को संपर्क में रखने की कोशिश कर रहे हैं। वहीं निजी विद्यालयों के शिक्षक जूम जैसे ऐप का सहारा ले रहे हैं। दिक्कत यह है कि अधिकतर घरों में पांच के करीब सदस्य हैं और इनके बीच महज एक फोन है। इन घरों में तीन से चार पढ़ने वाले बच्चे हैं। घर का कोई सदस्य काम पर या खरीदारी करने बाजार जाता है तो उसको फोन साथ ले जाना होता है। घर के सभी लोग हमेशा उस एक फोन को पाने का संघर्ष करते दिखते हैं।
वंचित हुआ और वंचित
लॉकडाउन के बाद डिजिटल स्तर पर किए जाने वाले तमाम प्रयासों ने पिछड़े तबके को और पीछे धकेला है। तमाम क्षेत्रों में शिक्षा महज एक क्षेत्र है जिसने लॉकडाउन के दौरान ग्रामीण और शहरों में व्याप्त डिजिटल डिवाइड को समझने का मौका दिया है। लेकिन गौर से देखने पर यह खाई हर जगह दिखती है। चाहे वह इंटरनेट और फोन के द्वारा मिलने वाली तमाम सुविधाएं जैसे टेलीमेडिसिन, बैंकिंग, ई-कॉमर्स या ई-गवर्नेंस ही क्यों न हों। यह स्थिति तब है जब देश ने पिछले कुछ वर्षों में वायरलेस ग्राहकों की संख्या में काफी वृद्धि दर्ज की है।
भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) द्वारा 29 जून को जारी मासिक रिपोर्ट के अनुसार, फरवरी 2020 में देश में 116 करोड़ से अधिक वायरलेस ग्राहक थे। चार साल पहले यानी फरवरी 2016 में देश में वायरलेस या कहें मोबाइल फोन के ग्राहकों की संख्या 101 करोड़ के आसपास थी। यानी पिछले चार साल में ऐसे ग्राहकों की संख्या करीब 15 करोड़ बढ़ी है। इसमें शहरी ग्राहकों की संख्या 7.4 करोड़ और ग्रामीण ग्राहकों की संख्या 8.6 करोड़ बढ़ी है। लेकिन यह वृद्धि केवल बुनियादी दूरसंचार सुविधा को ही दर्शाती है। ऑनलाइन कक्षाओं, वित्तीय लेनदेन और ई-गवर्नेंस जैसी सेवाओं के लिए फोन के साथ साथ इंटरनेट, टैबलेट और कंप्यूटर जैसे इंटरनेट-सक्षम उपकरणों को संचालित करने की क्षमता की भी जरूरत होती है। इसे जाने बिना डिजिटल डिवाइड को नहीं समझा जा सकता। इन मामलों में डिजिटल डिवाइड की खाई कितनी बढ़ी है, इसका अंदाजा जुलाई 2017 से जून 2018 के बीच किए गए एक सरकारी सर्वेक्षण से लगता है।
75वें दौर के राष्ट्रीय नमूना (प्रतिदर्श) सर्वेक्षण के अनुसार, महज 4.4 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के पास ही कंप्यूटर उपलब्ध है। शहरी क्षेत्र में यह आंकड़ा बढ़कर 14.9 प्रतिशत हो जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों के 14.9 प्रतिशत परिवारों को ही इंटरनेट सुविधा उपलब्ध हो पाती है, वहीं 42 प्रतिशत शहरी घरों में इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध है। अगर इंटरनेट चलाने की क्षमता की बात की जाए तो पांच साल से अधिक उम्र के महज 13 प्रतिशत ग्रामीण पर 37 प्रतिशत शहरी लोग इंटरनेट चलाने में सक्षम हैं।
हालांकि इसके बावजूद डिजिटल डिवाइड की वास्तविक तस्वीर नहीं स्पष्ट होती। दिल्ली स्थित इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन के कार्यकारी निदेशक अपार गुप्ता कहते हैं, “शहरी क्षेत्र में प्रति 100 लोगों पर 104 इंटरनेट कनेक्शन हैं (कई फोन में दो सिम कार्ड होते हैं), जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति 100 लोगों पर लगभग 27 कनेक्शन हैं। इस आंकड़े से ग्रामीण और शहरी क्षेत्र के बीच फैली डिजिटल डिवाइड के वास्तविक स्तर का पता चलता है।”
केंद्र सरकार में दूरसंचार विभाग में सचिव रही अरुणा सुन्दराजन के अनुसार, यह स्पष्ट है कि देश में बहुत कम लोगों की पहुंच इंटरनेट तक है। एक तरफ तो सब लोग यह मानने लगे हैं कि आज के समय में इंटरनेट की सुविधा मूलभूत जरूरतों में आती है पर दूसरी तरफ नीति-निर्माता अपनी प्लानिंग में इसको खास तवज्जो नहीं देते। सुन्दराजन केरल सरकार के कोविड-19 टास्क फोर्स की सदस्य भी हैं। वह कहती हैं, “कोविड-19 से लड़ाई में हमारी पहली सिफारिश यही थी कि लोगों को सुचारू रूप से इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध होती रहे। हमने सुझाव दिया कि जिन लोगों के पास इंटरनेट सुविधा उपलब्ध नहीं है, उन्हें यह सुविधा उपलब्ध कराई जाए।”
डिजिटल डिवाइड की खाई को लिंग के आधार पर भी देखा जा सकता है। दुनियाभर में मोबाइल नेटवर्क ऑपरेटरों के हितों का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था जीएसएमए ने मार्च में जेंडर गैप रिपोर्ट 2020 जारी की। इसके अनुसार देश में 79 फीसदी पुरुषों के पास मोबाइल फोन है, वहीं महिलाओं के लिए यह संख्या महज 63 फीसदी है। मोबाइल इंटरनेट के इस्तमाल में यह फासला 50 फीसदी तक बढ़ जाता है। फोन और इंटरनेट की सुविधा का होना या न होना केवल एक आर्थिक स्थिति को बयान नहीं करता बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक स्थिति को भी दर्शाता है। परशीरा कहती हैं कि अगर एक परिवार में बस एक फोन उपलब्ध है तो पूरी संभावना है कि इस फोन को इस्तेमाल करने वालों की कतार में पत्नी या बेटी आखिरी पायदान पर होंगी।
कंप्यूटर की उपलब्धता या इंटरनेट चलाने में सक्षम लोगों की संख्या के मद्देनजर देखा जाए तो विभिन्न राज्यों की स्थिति अलग-अलग है। जैसे इंटरनेट की उपलब्धता में हिमाचल प्रदेश अग्रणी है, वह चाहे ग्रामीण क्षेत्र हो या शहरी। कंप्यूटर की उपलब्धता के मामले में उत्तराखंड का शहरी क्षेत्र सबसे आगे है। जबकि केरल में ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे अधिक कंप्यूटर हैं। कंप्यूटर की उपलब्धता के मामले में केरल एक ऐसा राज्य है, जहां ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच अंतर सबसे कम है।
पिछले पांच वर्षों में सरकार और निजी दोनों क्षेत्रों की तरफ से देश को डिजिटल बनाने की दिशा में काफी प्रयास हुए हैं (देखें, सुस्त चाल, पेज 43)। वर्तमान सरकार ने तो डिजिटल इंडिया की बड़ी हुंकार भरी है। 2017 में रिलायंस के जियो फोन की शुरुआत देश के इंटरनेट की दुनिया के लिए एक क्रांतिकारी कदम माना जाता है। जियो ने शुरुआती दौर में मुफ्त वॉयस कॉलिंग की सुविधा और डेटा पैक प्रदान किया। इसकी वजह से अन्य कंपनियों ने भी सस्ते दरों पर सुविधाएं उपलब्ध करानी शुरू कर दी। जियो की शुरुआत के बाद देश में इंटरनेट ट्रैफिक में बड़ी उछाल देखने को मिली। नोकिया द्वारा जारी एक रिपोर्ट से इसकी पुष्टि होती है। इसके अनुसार पिछले चार वर्षों में भारत में डेटा ट्रैफिक में 44 गुना वृद्धि हुई है।
परशीरा कहती हैं कि इसके बावजूद देश की बड़ी आबादी के पास इंटरनेट जैसी बुनियादी सुविधा उपलब्ध नहीं है। इनमें से अधिकतर वंचित समाज से आते हैं।
सुस्त चाल
पिछले एक दशक में, सरकारें देश में इंटरनेट का उपयोग बेहतर बनाने की कोशिश कर रही हैं ताकि अधिक से अधिक लोग इस सुविधा का इस्तेमाल कर सकें। वर्ष 2011 में, भारतनेट परियोजना की शुरुआत हुई। इसके तहत ढाई लाख पंचायतों को ऑप्टिकल फाइबर (100 एमबीपीएस) को जोड़ा जाना था। इस परियोजना पर काम 2014 में जाकर शुरू हुआ। इस योजना के तहत इन ढाई लाख गांव को मार्च 2019 तक इंटरनेट से जोड़ना था पर महज 118,000 गांव को ही जोड़ा जा सका। अब इस लक्ष्य के लिए निर्धारित समयसीमा को अगस्त 2021 तक बढ़ा दिया गया है।
वर्ष 2014 में सरकार ने राष्ट्रीय डिजिटल साक्षरता मिशन और डिजिटल साक्षरता अभियान शुरू किया। जनवरी 2019 में सूचना प्रौद्योगिकी पर स्थायी समिति ने कहा कि ये दोनों योजनाएं रूपरेखा में लगभग समान थीं। इसकी वजह से इन योजनाओं के लाभार्थियों के बीच भ्रम पैदा होने की गुंजाइश थी। वर्ष 2015 में सरकार ने पूरे देश को जोड़ने के लिए अपने डिजिटल इंडिया अभियान के तहत कई योजनाएं शुरू कीं।
इसमें 2017 में शुरू किया गया प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल अभियान भी शामिल है। इसके तहत ग्रामीण भारत के छह करोड़ घरों में डिजिटल साक्षर करना था। इस पर आने वाला खर्चा करीब 2,351 करोड़ रुपए है। वर्ष 2017-18 में सरकार को इसके लिए 1175.69 करोड़ रुपए की राशि देनी थी। इतनी ही राशि इसके अगले साल के लिए थी। लेकिन सरकार ने अब तक महज 500 करोड़ रुपए ही आवंटित किए हैं। जनवरी 2019 में सूचना प्रौद्योगिकी विभाग पर बनी स्थायी समिति ने निष्कर्ष निकाला कि सरकार की डिजिटल साक्षरता के प्रयास संतोषजनक नहीं हैं।(downtoearth)
वाशिंगटन, 30 जुलाई (आईएएनएस)। जॉन्स हॉपकिंस विश्वविद्यालय के अनुसार, दुनियाभर में कोविड-19 मामलों की कुल संख्या 1.7 करोड़ के करीब पहुंच गई है, वहीं इस संक्रमण से होने वाली मौतों की संख्या 665,000 से अधिक हो गई हैं।
विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर सिस्टम साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) ने अपने नवीनतम अपडेट में खुलासा किया कि गुरुवार की सुबह तक कुल मामलों की संख्या 16,957,763 हो चुकी है, वहीं घातक वायरस से मरने वाले लोगों की संख्या 665,486 हो गई है।
सीएसएसई के अनुसार, दुनिया में अमेरिका सबसे अधिक संक्रमण के मामले 4,424,806 और इससे हुई मौतों 150,676 के आंकड़ों के साथ प्रभावित देशों में शीर्ष पर है।
ब्राजील 2,552,265 संक्रमण और 90,134 मौतों के साथ दूसरे स्थान पर है।
सीएसएसई के अनुसार, मामलों की ²ष्टि से भारत तीसरे (1,531,669) स्थान पर है और इसके बाद रूस (827,509), दक्षिण अफ्रीका (471,123), मैक्सिको (408,449), पेरू (395,005), चिली (351,575), ब्रिटेन (303,058), ईरान (298,909), स्पेन (282,641), पाकिस्तान (276,288), सऊदी अरब (272,590), कोलंबिया (267,385), इटली (246,776), बांग्लादेश (232,194), तुर्की (228,924), फ्रांस (221,077), जर्मनी (208,546), अर्जेंटीना (178,996), इराक (118,300), कनाडा (117,357), कतर (110,153) और इंडोनेशिया (104,432) है।
वहीं 10,000 से अधिक मौतों वाले अन्य देश ब्रिटेन (46,046), मैक्सिको (45,361), इटली (35,129), भारत (34,193), फ्रांस (30,226), स्पेन (28,441), पेरू (18,612), ईरान (16,343) और रूस (13,650) हैं।
विकसित एंटीबॉडीज 2 - 3 महीनों में शरीर में कम हो रहे हैं
-डॉ मेहेर वान
कोरोना वायरस महामारी ने पूरी दुनिया को बेहद गंभीर स्तर पर प्रभावित किया है. दुनिया भर के तमाम वैज्ञानिक और फार्मा कम्पनियां इस महामारी से निपटने के लिए एक वैक्सीन खोजने के काम में जुटी हुई हैं. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ऐसे वैक्सीन के कई उम्मीदवारों के रसायनों की दक्षता और उनके दुष्प्रभावों को जांचने के लिये परीक्षण किये जा रहे हैं. इनमें से कुछ ने प्रारंभिक ट्रायल्स पूरे करते हुए ऐसा विश्वास दिलाया है कि अब कोरोना वायरस की वैक्सीन बहुत दूर नहीं. रूस ने तो वैक्सीन बना लेने का दावा भी कर दिया है. भारत भी इस दौड़ में शामिल है और यहां भी कोरोना वायरस के दो टीकों के परीक्षण को हरी झंडी मिल चुकी है और कुछ और को जल्द ही मिल सकती है. दुनिया की सबसे बड़ी वैक्सीन निर्माता कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने भी ऑक्सफर्ड विश्वविद्यालय और एस्ट्राजेनेका द्वारा विकसित किये जा रहे कोविड-19 के वैक्सीन को भारत में बनाने के लिए एक समझौता किया है.
लेकिन हाल ही में प्रसिद्ध जर्नल नेचर मेडिसिन में प्रकाशित एक शोध के अनुसार कोविड-19 के संक्रमण से जूझ चुके मरीजों के शरीरों में विकसित हुए एंटीबॉडीज दो से तीन महीनों में कम होने शुरू हो जाते हैं. असल में एंटीबॉडीज वे खास तरह के प्रोटीन अणु होते हैं जिन्हें कोरोना वायरस से लड़ने के लिए हमारा प्रतिरोधक तंत्र विकसित करता है. ये एंटीबॉडीज हमारे शरीर में वायरस के आक्रमण के समय वायरस की बाह्य परत पर उपलब्ध उन चाभियों को ढंककर बेकार कर देते हैं जिनकी सहायता से वायरस हमारी कोशिकाओं को चकमा देकर उनकी झिल्लियों से अन्दर घुस जाते हैं. वायरस की बाह्य परत पर उपस्थित चाभियों पर एंटीबॉडीज के चिपक जाने से वायरस हमारे शरीर में उपस्थित कोशिकाओं के अन्दर नहीं घुस पाते और हम होने वाले संक्रमण से बच जाते हैं. बता दें कि कोरोना वायरस एक खास तरह के स्पाईक्स प्रोटीन अणुओं को हमारे शरीर की कोशिकाओं में झिल्ली पार करके घुसने के लिए इस्तेमाल करता है.
वानझोऊ पीपुल्स हॉस्पिटल, चीन के वैज्ञानिकों ने विभिन्न बिना-लक्षणों वाले और गंभीर लक्षणों वाले कई मरीजों के नमूनों का विश्लेषण करके पाया है कि कोविड-19 संक्रमण के कारण विकसित हुए एंटीबॉडीज दो से तीन महीनों में व्यक्ति के शरीर में कम होना शुरू हो रहे हैं और इसके बाद काफी जल्दी ही शरीर से विलुप्त हो रहे हैं. इन एंटीबॉडीज के शरीर से विलुप्त होने का मतलब यह है कि कोई व्यक्ति एक बार संक्रमित होने के बावजूद दोबारा संक्रमित होने के लिए असुरक्षित हो गया है.
वैज्ञानिकों ने प्रयोगों में यह भी पाया कि उन मरीजों में शरीर के प्रतिरोधक तंत्र ने अपेक्षाकृत कम संख्या में एंटीबॉडीज बनाये, जिन मरीजों में कोविड-19 के संक्रमण के लक्षण कमजोर थे. इसके विपरीत जिन मरीजों में कोविड-19 संक्रमण के लक्षण अधिक गंभीर थे, उनके प्रतिरोधक तंत्र ने अपेक्षाकृत अधिक संख्या में एंटीबॉडीज बनाए थे. गंभीर लक्षणों वाले संक्रमित मरीजों के शरीरों में यह प्रतिरोधक एंटीबॉडीज अधिक समय तक मौजूद भी रहे. जबकि कमजोर लक्षणों वाले संक्रमित मरीजों में एंटीबॉडीज अपेक्षाकृत कम समय के लिए विद्यमान रहे. यह समय लगभग दो से तीन महीने पाया गया. यह विश्लेषण प्रसिद्ध जर्नल नेचर मेडिसिन में 18 जून को प्रकाशित हुआ है.
इसके अलावा स्वतन्त्र रूप से शोध कर रहे किंग्स कॉलेज लन्दन के वैज्ञानिकों ने भी अपने प्रयोगों में पाया है कि ये एंटीबॉडीज संक्रमित लोगों के शरीर में लगभग 94 दिनों तक ही विद्यमान रहते हैं. इसके बाद इन एंटीबॉडीज की संख्या शरीर में तेजी से कम होने लगती है. कमजोर लक्षणों वाले लोगों या उन लोगों में जिनमें लक्षण आये ही नहीं ऐसे लोगों में ये एंटीबॉडीज एक ही महीने के बाद तेजी से कम होने लगते हैं. इन वैज्ञानिकों का यह शोध मेडआर्काइव में प्रीप्रिंट के रूप में प्रकाशित हुआ है.
ऐसे शोध वैक्सीन की दक्षता के सम्बन्ध में नए सवाल उठा रहे हैं. जैसे कि कोरोना वायरस की इन विशेषताओं के चलते भविष्य में बनने वाली वैक्सीन कितने दिनों तक लोगों को कोविड-19 यानी कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाकर रख पाएगी? अगर कोरोना वायरस के पिछले संस्करणों की बात करें तो उनके कारण मानव शरीर में बने एंटीबॉडीज दो से तीन साल तक उपस्थित रहते हैं. उदाहरण के तौर पर मेर्स-कोव वायरस के कारण बने एंटीबॉडीज लगभग दो से तीन साल तक मानव शरीर में उपस्थित रहते हैं. पोलियो वायरस की वैक्सीन के कारण बने एंटीबॉडीज ताउम्र शरीर की सुरक्षा करते हैं. नए कोरोना वायरस से लड़ने वाले एंटीबॉडीज का शरीर से जल्दी ख़त्म हो जाना अच्छा संकेत नहीं है. और यह तथ्य वैक्सीन बनाने की राह और भी जटिल कर देता है.
अब वैज्ञानिकों को वैक्सीन के दुष्प्रभावों और दक्षता के साथ-साथ, इस दक्षता की समयावधि को सुनिश्चित करने के बारे में भी सोचना है ताकि लोगों को मंहगी वैक्सीन बार-बार न देनी पड़े और यह ज्यादा लोगों को मिल सके. इन शोधों से यह भी स्पष्ट होता है कि कोरोना वायरस से एक बार संक्रमित होकर ठीक हो चुके मरीज दो से तीन महीनों के बाद फिर से संक्रमित हो जाने के लिए असुरक्षित हो जाते हैं. ऐसे में वैज्ञानिक संक्रमण से बचे रहना ही बेहतर विकल्प मान रहे हैं, जिसके लिए मास्क लगाना सर्वोत्तम है.(satyagrah)
-इमरान क़ुरैशी
ऐसा लगता है कि सैकड़ों सालों पहले जो काम शासकों ने किया वही काम फिर से करने के लिए कोविड-19 महामारी ने एक सरकार को एक मौक़ा दे दिया है. कम से कम कर्नाटक सरकार तो यही मान रही है.
प्रदेश के प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा विभाग ने उस युग के शासकों के हथियार का इस्तेमाल करते हुए पाठ्यपुस्तकों से न केवल टीपू सुल्तान बल्कि शिवाजी महाराज, विजयनगर साम्राज्य, बहमनी, संविधान के कुछ हिस्से और इस्लाम और ईसाई धर्म से जुड़े कुछ हिस्से निकाल दिए हैं.
इसके पीछे वजह ये है कि कोरोना महामारी के कारण कक्षा छह से लेकर नौ तक पढ़ाई के लिए जो 220 दिन का समय था वो अब कम हो कर केवल 120 दिनों का रह गया है, और इस कारण पाठ्यक्रम को भी कम करना ज़रूरी हो गया है.
इन सभी विषयों को अब प्रोजेक्ट वर्क तक सीमित कर दिया गया है जिस पर छात्र घर से काम कर सकते हैं और चार्ट या प्रेज़ेन्टेशन बना सकते हैं.
पाठ्यक्रम से क्या कुछ हटाया गया है?
उदाहरण की बात करें तो कक्षा नौ के सामाजिक शास्त्र विषय में राजपूत राजवंशों, राजपूतों के योगदान, तुर्कों के आगमन, राजनीतिक निहितार्थ और दिल्ली के सुल्तानों के विषय पढ़ाने के लिए आम तौर पर छह कक्षाएँ होती थीं जिसे कम कर अब दो कर दिया गया है.
राजपूतों और दिल्ली के सुल्तानों के बारे में न पढ़ाने की दलील के पीछे तर्क ये है कि कक्षा छह में पहले ही इस विषय पर पढ़ाया जा चुका है.
इसी तरह मुग़लों और मराठाओं के बारे में पढ़ाने के लिए भी क्लास की संख्या पांच थी जिसके अब दो कर दिया गया है. इन चैप्टरों से मराठा राज के उत्थान, शिवाजी का प्रशासन और शिवाजी के उत्तराधिकारी के विषय को अब पाठ्यक्रम से हटा दिया गया है.
ऐसा करने के पीछे कारण ये बताया जा रहा है कि इस विषय पर कक्षा सात में पहले ही पढ़ाया जा चुका है.
पाठ्यक्रम कम करने को लेकर क्या है प्रतिक्रिया?
टीपू सुल्तान एक्सपर्ट टेक्स्टबुक कमिटी के प्रोफ़ेसर टीआर चंद्रशेखर ने बीबीसी हिंदी को बताया, "कोरोना महामारी के कारण विषयों का सारांश देते हुए पाठ्यक्रम को 30 फीसदी तक घटा कर कम कर देना सही है लेकिन इसका असर किसी चैप्टर के मूल पर नहीं पड़ना चाहिए. लेकिन किसी चैप्टर को पूरी तरह की पाठ्यक्रम से हटा देना सही नहीं है."
बीते साल बीजेपी विधायक अपाच्चु रंजन ने स्कूल के पाठ्यक्रम से टीपू सुलतान से जुड़े चैप्टर हटाने की मांग की थी जिसके बाद इस मामले पर एक कमिटी बनी थी. इसी कमिटी के प्रमुख थे प्रोफ़ेसर टीआर चंद्रशेखर.
उस दौरान प्रोफ़ेसर चंद्रशेखर और कमिटी के दूसरे सदस्यों ने सरकार से स्पष्ट कहा था कि पाठ्यक्रम से मैसूर का इतिहास और टीपू सुल्तान की भूमिका का हिस्सा नहीं हटाया जा सकता.
प्रोफ़ेसर चंद्रशेखर कहते हैं, "छात्रों को जो विषय पढ़ाया जाता है उसमें हर क्लास में क्रमिक वृद्धि होती है. जैसे कि टीपू सुल्तान से जुड़े विषय में छोटी कक्षा में केवल शुरूआती जानकारी होती है जो बेहद कम होती है. सातवीं कक्षा में इस विषय को थोड़ा और विस्तार से छात्रों को पढ़ाया जाता है जैसे कि तकनीकि युद्ध में उनका योगदान, कृषि विकास, पशुपालन, ग्रामीण अर्थव्यवस्था और हिंदू मंदिरों में उनके योगदान जैसे सामाजिक सुधार के उनके काम."
वो कहते हैं, "उस दौर में राजतंत्र हुआ करता था और और एक राजा दूसरे राजा से लड़ते थे इन लड़ाइयों से धर्म का कोई नाता नहीं था."
लेकिन बेंगलुरु के आर्चबिशप पीटर माचाडो ने बीबीसी हिन्दी से कहा, "हमें बताया गया था कि इस्लाम और ईसाई धर्म के बारे में कक्षा छह की किताबों से चैप्टर हटाए गए हैं क्योंकि इस विषय में छात्रों को कक्षा नौ में पढ़ाया जाएगा. अब कक्षा नौ के पाठ्यक्रम से ये विषय हटाए जा रहे हैं और कहा जा रहा है कि इस बारे में कक्षा छह में पहले ही पढ़ाया जा चुका है. ऐसे लग रहा है कि धोखा दिया जा रहा है और किसी एजेंडे पर काम किया जा रहा है."
आर्चबिशप का कहना है कि नन्ही सी उम्र में छात्रों को धर्म के बारे में जो जानकारी दी जाती है "उसमें कटौती करना ठीक बात नहीं है. ये वो उम्र है जब बच्चे किसी भी धर्म के क्यों न हो वो मानवता और सौहार्द्य की भावना के बारे में जानते-सीखते हैं और एक-दूसरे के साथ मिल कर जीना और उनकी सराहना करना सीखते हैं."
प्रदेश में विपक्ष में बैठी कांग्रेस के सवाल उठाने के बाद सत्तारूढ़ सरकार को इस मामले में विषय से जुड़े कमिटी की राय लेनी पड़ी थी.
प्रोफ़ेसर चंद्रशेखर कहते हैं, "हमें इस बारे में बुधवार को फ़ौन पर जानकारी दी गई है औक इस मामले में तीन अगस्त को बैठक होने वाली है."
क्या है सरकार का रुख़?
कर्नाटक टेक्स्ट बुक सोसायटी के प्रबंध निदेशक और विधायक मादे गौड़ा ने बीबीसी हिंदी को बताया, "हमने विषय से जुड़ी कमिटियों को इस मामले में फ़ैसला लेने के लिए कहा है. क्या हटानवा है ये हमने उनसे नहीं पूछा. अब प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा मामलों के हमारे मंत्री सुरकेश कुमार ने कहा है कि वो इस मामले में फ़ैसले की समीक्षा करेंगे. इसलिए, उन्होंने हमें इस पर फिलहाल फ़ैसला रोकने के लिए कहा है."
वो कहते हैं, ये जानकारी हमने कर्नाटक टेक्स्ट बुक सोसायटी की वेबसाइट पर प्रकाशित की है.
मादे गौड़ा बताते हैं कि हर कक्षा में छात्रों को संविधान की प्रस्तावना के बारे में भी बताया जाता है.
वो कहते हैं, "स्कूल की टेक्स्ट बुक से कोई चैप्टर नहीं हटाया गया है. किताब पहले ही छात्रों के पास पहुंच चुकी है और छात्रों के पास अब घर पर इसे पढ़ने का या प्रोजेक्ट बनने का विकल्प मौजूद है."
इधर अधिकारियों ने बताया है कि अगले साल के पाठ्यक्रम में इन चैप्टर्स को पढ़ाने के संबंध में कोई कमी नहीं की जाएगी.
इतिहास पढ़ना क्यों है ज़रूरी?
मैसूर विश्वविद्यालय में इतिहास के पूर्व प्रोफ़ेसर और टीपू सुल्तान के विशेषज्ञ प्रोफ़ेसर सेबेस्टियन जोसेफ़ कहते हैं, "आपका अतीत आपके भविष्य का ही प्रतिबिंब है इसलिए अतीत के बारे में जानना बेहद ज़रूरी है. आपके समाज को आपको उसी के अनुसार ढालना होगा. केवल राजनीतिक इतिहास ही नहीं बल्कि विज्ञान से जुड़े विषयों में भी इतिहास जानना महत्वपूर्ण है क्योंकि ये आपको कई बातों की प्रक्रिया के बारे में बताता है."
"जब तक हम सभी विषयों का इतिहास नहीं जानेंगे हम ये नहीं समझ पाएंगे कि हम आज जहां हैं, वहां हतक कैसे पहुंचे और हमें आगे किस दिशा में बढ़ने की ज़रूरत है."
वहीं आर्चबिशप पीटर माचाडो कहते हैं, "आप जानते हैं कि हमारे नेता मेड इन इंडिया और निर्यात बढ़ाने के बारे में बातें करते हैं, और जो सबसे अच्छी चीज़ हम पूरी दुनिया को निर्यात कर सकते हैं वो है हमारा धार्मिक सद्भाव और शांति है जो धार्मिक ध्रुवीकरण के बावजूद भी यहां मौजूद है."(bbc)
-द वायर स्टाफ
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर की गई है जिसमें संविधान की प्रस्तावना से ‘समाजवाद’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों को हटाने जाने का अनुरोध किया है.
गुजरतालाब है कि ये शब्द 1976 में 42वें संविधान संशोधन के माध्यम से जोड़े गए थे. अब एक जनहित याचिका में कहा गया है कि किया गया संशोधन संवैधानिक सिद्धांतों के साथ-साथ भारत के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विषय-वस्तु के विपरीत था.
इसमें कहा गया है, ‘यह कदम संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) में उल्लिखित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की अवधारणा और अनुच्छेद 25 के तहत प्रदत्त धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार के उल्लंघन के नजरिए से अवैध था.’
इसमें कहा गया है कि संशोधन भारत के महान गणराज्य की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विषय-वस्तु के खिलाफ भी था.
याचिका में 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 की धारा 2 (ए) के जरिए संविधान की प्रस्तावना में शामिल शब्दों ‘समाजवाद’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ को हटाये जाने के लिए उचित निर्देश दिए जाने का अनुरोध किया गया है.
लाइव लॉ के मुताबिक, यह याचिका वकील बलराम सिंह और करुणेश कुमार शुक्ला ने वकील विष्णु शंकर जैन के माध्यम से दायर की है, जिसमें जनप्रतिनिधि 1951 की धारा 29ए (5) में धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी शब्द शामिल करने को भी चुनौती दी गई है.
जिसमें सुप्रीम कोर्ट चुनाव आयोग को अपने ज्ञापन या नियमों और विनियमों में एक विशिष्ट प्रावधान करने से पहले निकाय को हलफनामा देना होता है कि वो भारत के संविधान के लिए और समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के सिद्धांतों के प्रति सच्चा विश्वास और निष्ठा रखेगा.
याचिकाकर्ता ने सवाल किया है कि क्या धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद की अवधारणाएं राजनीतिक विचार हैं. सुप्रीम कोर्ट इस मामले में सात अगस्त को सुनवाई करेगा.
इससे पहले 2016 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भारतीय संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्दों को बरकरार रखा था.(thewire)
देश झुंड इम्युनिटी से कितना दूर है ?
-चारु कार्तिकेय
दिल्ली की तर्ज पर मुंबई में भी सेरोलॉजिकल सर्वेक्षण करवाने के बाद पता चला है कि शहर में लगभग 19 लाख लोगों के कोरोना वायरस से संक्रमित होने की संभावना है. शहर की झुग्गी बस्तियों में ये आंकड़ा 57 प्रतिशत तक पहुंच गया.
जहां पूरे शहर की लगभग 1.92 करोड़ आबादी में 16 प्रतिशत लोगों के संक्रमित होने की संभावना है, शहर की झुग्गी बस्तियों में ये आंकड़ा 57 प्रतिशत तक पहुंच गया. माना जाता है कि मुंबई की 65 प्रतिशत आबादी झुग्गियों में ही रहती है. आधिकारिक रूप से शहर में अभी तक लगभग एक लाख लोग संक्रमित पाए गए हैं और 6,184 लोगों की मौत हो चुकी है.
यह सर्वेक्षण ग्रेटर मुंबई नगरपालिका, नीति आयोग और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च ने साथ मिल कर जुलाई की शुरुआत में 12 से 14 दिनों तक करवाया था. इसमें मुंबई के तीन म्युनिसिपल वार्डों से 6,936 लोगों के सैंपल लिए गए थे और उनमें कोविड-19 के एंटीबॉडीज होने की जांच की गई थी. ये एंटीबॉडीज शरीर में तब ही विकसित होते हैं जब किसी को कोरोना वायरस का संक्रमण हो गया हो.
संक्रमित लोगों की औसत संख्या के अलावा यह भी पाया गया कि मुंबई में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में संक्रमण के मामले थोड़े ज्यादा हैं. सर्वेक्षण के नतीजे यह संकेत दे रहे हैं कि ऐसे संक्रमित लोगों की संख्या काफी ज्यादा है जिनमें संक्रमण का कोई भी लक्षण नहीं है. झुग्गियों में ज्यादा मामलों के होने का कारण आबादी का घनत्व और शौचालय और पानी भरने जैसी सुविधाओं का सार्वजनिक होना हो सकता है.
नगरपालिका ने यह दावा किया है कि झुग्गियों से बाहर के इलाकों में संक्रमण के मुकाबले कम होने का मतलब है कि वहां महामारी की रोकथाम की नगरपालिका की कोशिशें सफल रही हैं, दूरी बनाए रखने, साफ सफाई रखने और मास्क पहनने से फर्क पड़ा है और यह सब आगे भी जारी रखने से ही महामारी के फैलाव को धीमा किया जा सकता है.
इसके पहले इस तरह का सर्वेक्षण दिल्ली में कराया गया था, जिसमें पाया गया था कि राष्ट्रीय राजधानी में 23.48 प्रतिशत लोगों के संक्रमित होने की संभावना है, यानी दिल्ली की लगभग दो करोड़ आबादी में से करीब 45 लाख लोग. आधिकारिक रूप से दिल्ली में संक्रमण के 1,31,219 मामले हैं. दिल्ली में भी यह पाया गया गया था कि घनी आबादी वाले इलाकों में संक्रमण ज्यादा फैलता है.
यह सर्वेक्षण यह जानने के लिए भी कराए जा रहे हैं कि देश झुंड इम्युनिटी से कितना दूर है. माना जा रहा है कि इतनी बड़ी संख्या में लोगों के संक्रमित पाए जाने का मतलब है कि देश धीरे-धीरे झुंड इम्युनिटी की तरफ बढ़ रहा है. लेकिन खुद वैज्ञानिकों में भी अभी इस बात पर सहमति नहीं है कि झुंड इम्युनिटी कितने मामलों के बाद हासिल होगी. अभी इस बात की भी पुष्टि नहीं हुई है कि झुंड इम्युनिटी कारगार होगी या नहीं.
मुंबई के धारावी में लोगों की जांच करते स्वास्थ्यकर्मी.
दिल्ली में कम से कम एक ऐसा मामला जरूर देखा गया है जहां एक ऐसा व्यक्ति जो ठीक हो चुका था उसे दोबारा संक्रमण हो गया. दोबारा संक्रमण होने का मतलब है कि शरीर में एंटीबॉडीज का विकसित हो जाना इस बात की गारंटी नहीं है कि आपको दोबारा संक्रमण नहीं होगा.(dw)
नई दिल्ली (आईएएनएस)| मध्यप्रदेश के बाद अब राजस्थान में हाई-प्रोफाइल नेताओं के बागी तेवर सामने आने के बाद कांग्रेस पार्टी में राजनीतिक संकट छाया हुआ है। इस बीच कांग्रेस नेता पार्टी के पूर्णकालिक अध्यक्ष के चुनाव या नियुक्ति के लिए कांग्रेस वर्किं ग कमिटी (सीडब्ल्यूसी) को सामूहिक पत्र लिखने की तैयारी कर रहे हैं। सोनिया गांधी पिछले करीब एक वर्ष से अंतरिम अध्यक्ष के रूप में अपनी भूमिका निभा रहीं हैं, मगर कांग्रेस नेता एक पूर्णकालिक अध्यक्ष चाहते हैं।
शीर्ष सूत्रों ने कहा कि नेताओं के समूह ने पार्टी संगठन के मुद्दों पर विचार-विमर्श करने के लिए कम से कम दो बार मुलाकात की है और एक मसौदा पत्र तैयार किया जा रहा है। इस घटनाक्रम की पुष्टि करने वाले नेताओं में से एक ने इस कदम की पुष्टि की है।
सूत्रों ने उनका नाम उजागर न करने की शर्त रखते हुए पुष्टि की है। सूत्रों ने कहा कि नेताओं का समूह इस मुद्दे पर व्यापक विचार-विमर्श करना चाहता है।
सूत्रों ने कहा, "यह कदम राहुल गांधी के खिलाफ नहीं है, क्योंकि उनका एकमात्र मकसद एक स्थायी अध्यक्ष के लिए है और पार्टी में कमान की एक स्पष्ट लाइन होनी चाहिए।"
एक सूत्र ने कहा कि कोई भी पार्टी अध्यक्ष बन सकता है और राहुल गांधी बनते हैं तो अच्छा है। सूत्र ने कहा कि अगर राहुल अध्यक्ष के तौर पर वापस नहीं आते हैं तो उनकी तरफ से कोई हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए, क्योंकि कई कांग्रेस नेता राहुल के कार्यालय की मध्यस्थता से परेशान हैं, जिसमें अक्सर स्पष्टता का अभाव होता है।
सीडब्ल्यूसी के साथ इस मुद्दे को उठाने की प्रक्रिया में शामिल लोग पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं और संप्रग सरकार में केंद्रीय मंत्री और सांसद रहे हैं।
कांग्रेस के नेता इस बात पर जोर दे रहे हैं कि नेताओं पर पार्टी का नियंत्रण वर्षों से कमजोर हो गया है और इस तरह इसे पुनर्गठित करने की आवश्यकता है। इन नेताओं का मानना है कि क्षेत्रीय क्षत्रप या तो पार्टी में पकड़ बनाने की कोशिश कर रहे हैं या पार्टी के साथ तालमेल ही नहीं बना पा रहे हैं।
सोनिया गांधी ने पिछले साल अगस्त में अंतरिम अध्यक्ष के रूप में पार्टी की कमान संभाली थी। उस समय राहुल गांधी ने आम चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद इस्तीफा दे दिया था। राहुल ने चुनाव में हार के लिए पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को दोषी ठहराया था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि वे केवल अपने परिजनों के लिए काम कर रहे हैं और पार्टी में दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं।
राहुल ने यह भी संकेत दिया था कि वह निकट भविष्य में इस पद पर नहीं लौटेंगे।
व्हाइट हाउस में महामारी की हालत गंभीर
अमेरिकी राष्ट्रपति के आधिकारिक आवास व्हाइट हाउस में कोरोना महामारी की स्थिति गंभीर होती जा रही है। व्हाइट हाउस ने पुष्टि की है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रीय सुरक्षा मामले के सहायक रॉबर्ट सी. ओब्रियन कोविड-19 से ग्रस्त हो गए हैं। ओब्रियन अब तक अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के करीब कोरोना से ग्रस्त सबसे उच्च स्तरीय अधिकारी हैं।
वास्तव में अमेरिका में महामारी के प्रकोप के बाद व्हाइट हाउस में कई लोग वायरस से ग्रस्त हो चुके हैं और यह लगातार जारी है। खबरों के अनुसार व्हाइट हाउस में महामारी की स्थिति बहुत गंभीर है। एक के बाद एक राष्ट्रपति के करीब रहने वाले कई अधिकारी और कर्मचारी संक्रमित पाए जा रहे हैं। हालांकि, राष्ट्रपति ट्रंप ने शुरू में ही अपना कोरोना का टेस्ट करवाया था, जो नकारात्मक आया था।
अमेरिका में व्हाइट हाउस में कोरोना की हालत कितनी गंभीर है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जुलाई में ही ट्रंप के बड़े बेटे की प्रेमिका किम्बर्ली गुइलफॉयल भी कोरोना पॉजिटिव पाई गई हैं। उससे पहले मई में ट्रंप की बेटी का एक निजी सहायक कोरोना की चपेट में आ चुका है।
शुरुआत से बात करें तो मार्च में अमेरिकी उप राष्ट्रपति कार्यालय का एक कर्मचारी कोरोना वायरस से संक्रमित पाया गया। फिर मई में व्हाइट हाउस में राष्ट्रपति और उनके परिवार की सेवा में तैनात नौसेना के एक सैनिक कोरोना जांच में पॉजिटिव पाया गया था। उसके बाद मई के महीने में अमेरिकी उप राष्ट्रपति की प्रेस सचिव केटी मिलर भी कोरोना संक्रमित पाई गई थीं।
वास्तव में कोरोना केसों की बाढ़ केवल राष्ट्रपति के आसपास ही नहीं है। वर्तमान में अमेरिका में पुष्ट मामलों और मरने वाले मामलों की संख्या दोनों विश्व के लगभग एक चौथाई तक पहुंच चुकी हैं।अमेरिका में महामारी की स्थिति गंभीर होने के साथ बड़ी संख्या में बच्चे कोविड-19 के शिकार हो रहे हैं। हाल की रिपोर्ट के अनुसार कैलिफोर्निया की लॉस एंजिल्स काउंटी में कम से कम 15 बच्चे संक्रमित हुए हैं। टेक्सास की नुएसेस काउंटी में एक साल से कम उम्र के 85 बच्चे ग्रस्त पाए गए हैं।
अमेरिका में कोरोना की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने भी हाल में मास्क पहन लिया है। हाल में व्हाइट हाउस के महामारी से जुड़े एक सम्मेलन में उन्होंने यह कहना भी छोड़ दिया कि अमेरिका में महामारी की स्थिति गंभीर नहीं है।
हालांकि, राष्ट्रपति ने अंततः महामारी की गंभीरता को तो स्वीकार कर लिया है, लेकिन महामारी की रोकथाम के लिए व्हाइट हाउस ने अभी तक कोई ठोस और स्पष्ट कदम नहीं उठाये हैं। खास तौर पर स्कूल का खुलना, वायरस का परीक्षण, उत्पादन की बहाली, मास्क पहनने आदि महत्वपूर्ण मामलों में कोई कारगर काम नहीं किया गया।(navjivan)
जयपुर, 29 जुलाई (आईएएनएस)| राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र आखिरकार अशोक गहलोत सरकार का विशेष सत्र के लिए अनुरोध मान गए। उन्होंने विधानसभा का विशेष सत्र 14 अगस्त को बुलाने की अनुमति दी। राज्य की कांग्रेस सरकार ने हालांकि 31 जुलाई को विशेष सत्र बुलाने की अनुमति मांगी थी, ताकि वह विश्वास मत हासिल कर सके। मुख्यमंत्री गहलोत विशेष सत्र बुलाने की अनुमति के लिए राज्यपाल को तीन बार पत्र लिख चुके थे।
स्कूल के दिनों से ही हमेशा सूरज, चांद, आसमान पर मोहित होते थे
- आरती टिक्कू सिंह
नई दिल्ली, 29 जुलाई (आईएएनएस)| राफेल लड़ाकू विमानों के लिए पायलटों का प्रशिक्षण लेने वाले भारतीय वायु सेना (आईएएफ) के उच्च पदस्थ कश्मीरी अधिकारी उड़ी में हमले के बाद पाकिस्तान में आतंकी लॉन्च पैड के खिलाफ 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक का हिस्सा रहे हैं।
सूत्रों ने आईएएनएस को बताया कि फ्रांस में डिफेंस एयर अटैच एयर कमोडोर हिलाल अहमद राठेर को कश्मीर का 'राफेल मैन' कहा जाता है और उन्हें बड़ी संख्या में कश्मीरी युवाओं के बीच एक रोल मॉडल के रूप में देखा जाता है। सूत्रों ने बताया कि राठेर लड़ाकू जेट विमानों के साथ अपने व्यापक अनुभव के कारण सर्जिकल स्ट्राइक का हिस्सा बने।
कमोडोर राठेर को जानने वाले अधिकारी और वायु सेना के हलकों में उन्हें 'हली' के नाम से पुकारते हैं। सूत्रों ने कहा कि उन्होंने मिराज विमान पर चार बार दो साल का कार्यकाल बिताया है। उनका मिराज-2000, मिग-21 और किरण विमान जैसे जेट फाइटर एयरक्राफ्ट पर 3,000 घंटे से अधिक की दुर्घटना-मुक्त उड़ान का रिकॉर्ड है।
वायु सेना के सूत्रों ने कहा कि राठेर एक योग्य उड़ान प्रशिक्षक हैं और वह 2013 और 2016 से भारतीय वायु सेना के सक्रिय पश्चिमी कमान में लड़ाकू अभियानों के निदेशक होने के साथ ही सभी लड़ाकू विमानों के तैयार होने और प्रशिक्षण में भी सीधे तौर पर शामिल रहे हैं। इसके साथ ही क्षेत्र में परिचालन योजना में भी उनका खासा योगदान रहा है।
एक अधिकारी ने कहा कि उन्होंने संवेदनशील ग्वालियर मिराज एयरबेस की कमान संभाली है, जो वायुसेना द्वारा सभी सर्जिकल हवाई हमलों का एक प्रमुख केंद्र है।
राठेर को एक हार्ड टास्क मास्टर के रूप में देखा गया है और उन्होंने सुनिश्चित किया है कि राफेल परियोजना समय पर सभी आवश्यक हथियारों के साथ अन्य अनुबंध मापदंडों को पूरा करे।
दिलचस्प बात यह है कि कुछ वर्षो पहले एक और कश्मीरी ने इस तरह की उपलब्धि पाई थी। स्क्वाड्रन लीडर रतन लाल बामजई, जो ग्रुप कैप्टन के रूप में सेवानिवृत्त हुए थे, उन्हें भारत में पहली मिराज उड़ान भरने का श्रेय दिया गया था।
राठेर सैनिक स्कूल नगरोटा के एक मेधावी टॉपर रहे हैं और वह दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग शहर के रहने वाले हैं। सैनिक स्कूल में सीबीएसई परीक्षा में टॉप करने से लेकर हैदराबाद में वायु सेना अकादमी में स्वॉर्ड ऑफ ऑनर हासिल करने तक उनके नाम कई बड़ी उपलब्धि हैं। सर्वश्रेष्ठ पायलट होने के तौर पर राठेर ने अपने पूरे पेशेवर करियर में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है।
उनके एक दोस्त ने आईएएनएस को बताया कि उन्होंने उन्नत सैन्य रणनीति के अध्ययन के लिए अमेरिका में उच्च प्रशंसित एयर वॉर कॉलेज का भी अनुभव प्राप्त किया है।
एयर कमोडोर राठेर को वेलिंगटन के प्रतिष्ठित डिफेंस सर्विसेज स्टाफ कॉलेज (डीएसएससी) में भी प्रशिक्षित किया गया है, जहां भारतीय सशस्त्र बल (सेना, नौसेना, वायु सेना) की तीनों सेनाओं के अधिकारियों के अलावा विदेशी सेनाओं के जवान भी शामिल होते हैं। बाद में उन्हें उसी डीएसएससी, वेलिंगटन में एक प्रशिक्षक के रूप में मौका मिला।
वह काम के मोर्चे पर अपने परिणाम-उन्मुख दृष्टिकोण के लिए जाने जाते हैं। इसके साथ ही उन्हें वर्तमान में केवल चार भारतीय रक्षा एयर अटैच में से एक होने का भी गौरव प्राप्त है; भारत के पास अपने चार मिशनों अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और रूस में ही डिफेंस एयर अटैच है।
उनके स्कूल के दोस्तों ने कहा कि राठेर हमेशा अपने स्कूल के दिनों से ही सूरज, चांद और आसमान पर मोहित होते थे।
राठेर के एक करीबी दोस्त ने कहा कि उनके रोल मॉडल हमेशा उनके पिता रहे हैं, जो लद्दाख स्काउट्स में एक सैनिक के साथ ही पुलिस में भी सेवारत रहे हैं। राठेर के दोस्त ने कहा कि वह हमेशा अपने पिता की उम्मीदों पर खरा उतरना चाहते हैं, जो खुद एक बहादुर सिपाही रहे हैं।
मुंबई, 30 जुलाई (आईएएनएस)| महाराष्ट्र सरकार ने कोरोना संक्रमण का बढ़ता फैलाव रोकने के लिए पूर्णबंदी (लॉकडाउन) की अवधि 31 अगस्त तक बढ़ा दी है। मगर भरोसा दिया है कि 'मिशन फिर शुरू' के हिस्से के तहत धीरे-धीरे छूट दी जएगी। यह आधिकारिक घोषणा बुधवार की देर शाम में की गई। राज्य सरकार ने यह फैसला तब लिया, जब केंद्र सरकार ने अनलॉक 3.0 के लिए दिशानिर्देश जारी किए।
महा विकास अघाड़ी सरकार ने पहले से तय सावधानियां बरतना जारी रखने का फैसला लिया है। साथ ही इस महीने के दौरान प्रतिबंधों में धीरे-धीरे छूट देने की घोषणा की है।
जिस देश का मीडिया युद्ध के नगाड़े बजाता हो, युद्ध का उन्माद पैदा करता हो तब पहला हमला उस देश के अपने ही नागरिकों की चेतना पर होता है।
मीडिया की तैयार की गई धुन पर देश में बज रहा राफ़ेल-संगीत और उस पर झूमते लोग इस बात का गवाह हैं।
इस कर्कश युद्ध-संगीत के शोर में देश की अब तक की सैन्य ताकत से लेकर राफ़ेल पर उठते सवाल मानो दब गए हैं।
अब न पड़ोसी देशों से मधुर संबंधों की ज़रूरत बची है, न सीमाओं के विवादों पर तर्कपूर्ण चर्चा की गुंजाइश।शांति की ज़रूरत तो अब डस्टबिन में है और सवालों के लिए तो जगह है ही नहीं।
एक देश खरीदने वाला और दूसरा बेचने वाला। बेचने वाले ने और भी देशों को यह फाइटर प्लेन बेचा है। लेकिन हम झूम रहे हैं। क्यों? पूछिये मत! पूछेंगे तो देशभक्ति पर सवाल उठेगा। कोरोना मरीज 15 लाख से ज़्यादा हो गए पर सवाल मत करिए क्योंकि अभी देश में राफ़ेल-उत्सव चल रहा है।
हम उत्सवी लोग हैं। चैनलों से भांग परोसी जाती है और हम नाचने लग जाते हैं। हम उत्सवी लोग हैं। अर्थव्यवस्था, रोजगार वगैरह हमारे सोचने का विषय नहीं है। हम उत्सवी लोग हैं। कोई चुनी हुई सरकार गिरा दी जाए तो विधायक का रेट नहीं पूछेंगे, नाचते-गाते फिर वोट की लाइन में लग जाएंगे। हम उत्सवी लोग हैं। कभी पूछेंगे नहीं कि देश क्या सिर्फ राफ़ेल से बच जाएगा या भीतर के हमलों से भी देश को बचाने की ज़रूरत है?
राजभवनों की दहलीज पर पड़ा जीर्णशीर्ण लोकतंत्र हम लोगों को नज़र नहीं आएगा क्योंकि अभी हम उत्सवग्रस्त हैं, क्योंकि अभी देश में राफ़ेल आ गया है!
राफ़ेल के आगमन पर सत्ता से लेकर मीडिया के अधिकांश हिस्से तक ने संकटग्रस्त देश में जिस तरह त्योहार का माहौल खड़ा कर दिया वो चिंतित करने वाला है।पहले हमें बताया जाता है कि हम कितने असुरक्षित हैं और फिर राफ़ेल आ गया !!!
जितना ज़रूरी देश की सीमाओं की सुरक्षा है क्या उतना ही ज़रूरी देश के भीतर लोकतंत्र की सुरक्षा भी नहीं है? कमज़ोर लोकतंत्र को ढहने से कोई राफ़ेल नहीं बचा सकेगा लेकिन क्या अब हमारे लिए लोकतांत्रिक मूल्यों के पोषण की ज़रूरत गैर जरूरी हो गई है? दरअसल ऐसा ही होता जा रहा है और ऐसा इसलिए भी होता जा रहा है क्योंकि मीडिया नाम के उद्योग में अब सवालों का उत्पादन बन्द ही हो गया है।
मीडिया की स्वतंत्रता पर तमाम बहसें आत्मनियंत्रण पर जा कर खत्म हो जाती हैं। फासिस्ट देशों के मीडिया की हालत देख कर नेहरूजी ने इस बारे में अपने समय में ही आगाह किया था।लेकिन हम तेज़ी से उस दौर में जा रहे हैं जहां हर वक़्त हमें एक असुरक्षित देश दिखेगा, हर वक़्त हमें दुश्मन देश नज़र आएंगे, हर वक़्त हमें अपनी सीमाएं खतरे में नज़र आएंगी, हर वक़्त हमारे सामने युद्ध के नगाड़े बजाता मीडिया होगा और हर वक़्त हम खुद को नागरिक से ज़्यादा मोर्चे पर तैनात एक सैनिक की तरह महसूस करेंगे।और तभी राफ़ेल आ जायेगा और तभी हमें सुरक्षा का बोध भी होगा लेकिन तब भी ना तो मीडिया का दायित्व-बोध मुद्दा होगा, ना सरकार से सवाल करने की मीडिया की ज़िम्मेदारी पर सवाल होंगे और न हम खुद को अमनपसंद या लोकतंत्रपसंद नागरिक की तरह ही देखना चाहेंगे।
राफ़ेल-उत्सव संकेत है। ये संकेत है कि समाज को युद्ध पसंद बना दिया जा रहा है। ये संकेत है कि मीडिया हमारे लोकतंत्र की रखवाली नहीं करेगा, मीडिया हमारी चेतना की परवरिश नहीं करेगा बल्कि मीडिया एक ऐसे औजार में तब्दील होता जा रहा है जिसका काम एक चेतनाविहीन, रक्तपिपासु पीढ़ी ही तैयार करना होगा।
राफ़ेल-उत्सव तो सिर्फ इशारा है। अगर हमारी चेतना पर ऐसे सुनियोजित हमले हो रहे हों तो ज़रूरी है कि हम खुद को थोड़ा झकझोरे। ज़रूरी है कि थोड़े सवाल उछालें। ज़रूरी है कि अतीत को कुरेदें और वर्तमान का विश्लेषण करें। ज़रूरी है कि हम बेहतर भविष्य की बात करें। ज़रूरी है कि हम अपनी अगली पीढ़ी को सैन्यतंत्र के बजाए एक मजबूत लोकतन्त्र सौंपें। हमें मजबूत सेना तो चाहिए, हमें आधुनिक हथियार तो चाहिए लेकिन ज़रूरी है कि हमारी चेतना का सैन्यीकरण न हो।इसलिए ज़रूरी है कि हम राफ़ेल-उत्सव मना रही मीडिया की धुन पर नाचना बन्द करें।
-रुचिर गर्ग
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 29 जुलाई। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम और उनके परिजनों व स्टाफ की कोरोना रिपोर्ट निगेटिव आई है। इससे पहले रैपिड टेस्ट में सभी पांचों की रिपोर्ट पाज़िटिव आई थी।
बताया गया कि एम्स की जांच में कोरोना रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद भी मोहन मरकाम को 14 क्वारंटीन रहना होगा। मरकाम के भाई-भाई की पत्नी और भतीजे के अलावा दो स्टाफ के लोग कोरोना पाज़िटिव पाए गए थे। इसके बाद प्रशासन ने बस्तर बाड़ा स्थित बंगला को सील कर दिया था।
2 ट्रिलियन डॉलर का बैंकिंग क्षेत्र किया तहस-नहस
छत्तीसगढ़ न्यूज डेस्क
दिल्ली, 29 जुलाई। रणदीप सिंह सुरजेवाला, प्रभारी, संचार विभाग, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने एक बयान में कहा कि आज प्रधानमंत्री भारत के बैंकिंग क्षेत्र के सीईओ एवं अधिकारियों से मिले। हमें उम्मीद है कि उन्होंने साहस करके प्रधानमंत्री को यह बताया होगा कि भाजपा सरकार ने किस प्रकार बैंकिंग सेक्टर एवं वित्तीय संस्थानों को नष्ट कर दिया।
श्री सुरजेवाला आगे कहा, यदि सच्चाई को सुनने की प्रधानमंत्री की अनिच्छा के चलते उन्होंने चुप्पी भी साध ली हो, तो भी पिछले एक हफ्ते में घटित तीन महत्वपूर्ण घटनाएँ भारत के वित्तीय प्रणाली और बैंकिंग क्षेत्र की दयनीय स्थिति को प्रदर्शित करती हैं।
उन्होंने कहा कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने जुलाई, 2020 में वित्तीय स्थिरता (फाईनेंशल स्टेबिलिटी) रिपोर्ट जारी की, जिसमें चेतावनी दी गई कि बैंकिंग सेक्टर के खराब ऋण ‘20 साल में सबसे ज्यादा’ हो सकते हैं।
श्री सुरजेवाला आगे कहा- पूर्व आरबीआई गवर्नर, डॉक्टर उर्जित पटेल ने खुलासा किया कि आरबीआई लोन डिफॉल्टर्स के खिलाफ कड़ा रुख अपनाना चाहते थे, लेकिन मोदी सरकार चाहती थी कि वो लोन डिफॉल्टर्स के खिलाफ नरम रहें और इसी कारण उन्हें मजबूर होकर अपना इस्तीफ़ा देना पड़ा।
श्री सुरजेवाला ने बताया कि आरबीआई के पूर्व डिप्टी गवर्नर, डॉक्टर विरल आचार्य, ने एक किताब में संपूर्ण वित्तीय क्षेत्र को ‘अस्थिर’, ‘जोखिमपूर्ण बनाने’ एवं ‘ढहने के कगार’ पर पहुंचाने के भाजपा सरकार के कुप्रबंधन का खुलासा किया।
मोदी सरकार में भारत के वित्तीय क्षेत्र के पतन की कहानी
1. ‘‘खराब ऋणों’’ की बाढ़
मार्च, 2013-14 में एनपीए 2,16,739 करोड़ रु. (कुल का 3.8 प्रतिशत) के बराबर था, जो सितंबर, 2019 में बढक़र 9,35,000 करोड़ रु. (9.1 प्रतिशत) हो गया।
आरबीआई की जुलाई, 2020 की ‘‘ वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट’’ के मुताबिक बैंकिंग सिस्टम में खराब ऋण बढक़र 20 साल में सबसे ज्यादा 14.7 प्रतिशत तक पहुंच सकते हैं। खराब ऋणों’ में इतनी ज्यादा बढ़ोत्तरी कैसे हुई?
2. संदेशवाहक को सजा- बैंक डिफॉल्टर्स को सुरक्षा
ऑल इंडियन बैंक एम्प्लॉईज़ एसोसिएशन (‘‘एआईबीईए’’) ने 2,496 ‘विलफुल डिफॉल्टर्स’ (जानबूझकर पैसा न देने वालों) की सूची तैयार की, जिनके द्वारा कुल 1,47,000 करोड़ रु. का डिफॉल्ट किया गया। इतनी बड़ी राशि को जहां मोदी सरकार तकनीकी तौर पर राईट ऑफ कर रही है, वहीं डिफॉल्टर्स की जाँच कर उन्हें दंड देने का कोई प्रयास नहीं किया जा रहा। इसका ज्वलंत उदाहरण सबसे बड़े बैंक, एसबीआई द्वारा हर साल 1 प्रतिशत से भी कम राईट ऑफ की रिकवरी कर पाने का रिकॉर्ड है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, एसबीआई को 1,23,000 करोड़ रु. राईट ऑफ करने पड़े, जबकि 8 सालों में रिकवरी केवल 8,969 करोड़ रु. की ही हो सकी।
जब आरबीआई ने पहले डॉ रघुराम राजन और बाद में डॉ उर्जित पटेल के नेतृत्व में बैंक डिफॉल्टरों से ऋण की वसूली के लिए कड़े नियमों को लागू करना चाहा, तो उन्हें मोदी सरकार ने उन्हें आरबीआई गवर्नर के पद से हटाया/इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर दिया।
3. रिकवरी न होने से क्रेडिट ग्रोथ शून्य
बैंकों को डिफॉल्टर्स से ऋण उगाही नहीं करने देने से बैंकों द्वारा आगे ऋण देने पर विराम लग गया। जब साल, 2014 में मोदी सरकार सत्ता में आई थी, उस समय बैंक की क्रेडिट ग्रोथ 14 प्रतिशत थी। आज बैंक की क्रेडिट ग्रोथ गिरकर 4 प्रतिशत रह गई है और आरबीआई की अपनी रिपोर्ट के मुताबिक यह जल्द ही शून्य पर आ जाएगी। इसका मतलब यह है कि जरूरतमंद व्यवसायों को धन उपलब्ध नहीं होगा क्योंकि बैंक उन्हें ऋण देने में संकोच करेंगे।
यही कारण है कि ‘‘एमएसएमई के लिए 3,00,000 करोड़ के गारंटीड लोन’’ की घोषणा बड़े जोर-शोर से की तो गई, लेकिन केवल 1,23,000 करोड़ रु. का ही आवंटन हुआ तथा उनमें से केवल 68,311 करोड़ रु. ही वितरित किए गए। हर जगह यही कहानी दोहराई जा रही है।
4. ‘बैंकों के विलय’ की फ़्लॉप कहानी
लोन की नॉन-रिकवरी पर पर्दा डालने के लिए मोदी सरकार ने ‘बैंकों के महाविलय’ का प्रस्ताव दिया। ‘‘खराब ऋणों’’ पर पर्दा डालने की उम्मीद में 10 पीएसयू बैंकों का एक साथ विलय किया गया। दो ‘‘खराब बैंक’’ आपस में विलय होकर एक ‘‘अच्छा बैंक’’ नहीं बना सकते। इससे केवल एक और ज्यादा बड़ा ‘‘खराब बैंक’’ बन जाता है।
यदि हम 2014 एवं 2020 के पीएसयू बैंकों के मार्केट कैपिटलाईज़ेशन से जुड़े आकड़ों की तुलना करें तथा बीएसई-पीएसयू बैंक इंडेक्स का सापेक्ष मूल्य देखें, तो पिछले 6 सालों में इंडेक्स 2.63 प्रतिशत गिरा है, जबकि संपूर्ण बीएसई इंडेक्स सीएजीआर के आधार पर 11 प्रतिशत बढ़ा है।
यस बैंक मामला भाजपा सरकार द्वारा धोखेबाजों को बचाने के बुरे इरादों का स्पष्ट उदाहरण है। भाजपा सरकार ने अपराधियों को बचाने के लिए बैंकों के सिंडिकेट को यस बैंक को ज्यादा पैसे देने के लिए मजबूर किया, ताकि वह स्टैंड-अलोन इकाई के रूप में काम करता रहे।
5. पूंजीपति मित्रों के लिए आईबीसी को कमजोर करना
मोदी सरकार के बेईमान इरादों के प्रमाण सामने आते जा रहे हैं। आरबीआई के पूर्व गवर्नर, उर्जित पटेल द्वारा किए गए ताजे खुलासों से साफ हो गया है कि भाजपा सरकार ने किस प्रकार इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कानून को कमजोर कर खराब ऋणों की उगाही करने के रिज़र्व बैंक के प्रयासों पर पानी फेर दिया। पूंजीपति मित्रों के लिए इस उदारता का रहस्योद्घाटन उस समय से हो गया था, जब डॉक्टर रघुराम राजन की पहली चेतावनी से प्रधानमंत्री जी के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी थी। 60 प्रतिशत से 90 प्रतिशत तक भारी मात्रा में ‘‘हेयर कट’’ बैंकों की पूंजी को कमजोर करने का एक केस अध्ययन है।
6. ‘‘नोटबंदी’’ एवं ‘‘त्रुटिपूर्ण जीएसटी’’ की सूनामी
मोदी सरकार ने नोटबंदी कर बैंकिंग क्षेत्र को एक तगड़ा झटका दिया था और अर्थव्यवस्था पर इसका घातक प्रभाव 8 नवंबर, 2016 की उस शाम के बाद तीन साल से ज्यादा समय बीत जाने के बावजूद भी दिखाई दे रहा है। नोटबंदी से कुछ भी हासिल नहीं हुआ। करेंसी नोटों का चलन अब तक सबसे ज्यादा स्तर यानी जीडीपी के 14 प्रतिशत तक पहुंच चुके हैं। हमें नहीं पता कि यह नुक्सान पहुँचाने के लिए किया गया था या नहीं, पर सत्ता के हुक्मरानों ने रविवार, 1 जुलाई, 2017 को अर्द्धरात्रि से बिना तैयारी के एवं त्रुटिपूर्ण जीएसटी को यह कहकर प्रस्तुत किया कि इससे भारतीयों की सभी वित्तीय समस्याओं का निवारण हो जाएगा। जीएसटी का क्रियान्वयन होने के बाद इसमें सौ से ज्यादा बार संशोधन किया जा चुका है और मौजूदा समय में भारत सरकार राज्यों का पूरा हिस्सा भी जारी करने से इंकार कर रही है।
7. ‘‘20 लाख करोड़ रु. के पैकेज’’ का छलावा
कोरोनावायरस महामारी के दौरान मोदी सरकार ने ‘‘20 लाख करोड़ के पैकेज’’ का छलावा दिया, जो महज एक खोखली औपचारिकता बनकर रह गया। नॉन-फूड क्रेडिट ग्रोथ लगभग जीरो पर है और बैंक की क्रेडिट ग्रोथ 4 प्रतिशत से गिरकर बेस लाईन ‘0’ की ओर जा रही है। बैंक पैसा वापस आरबीआई के पास जमा कर रहे हैं।
भविष्य में ‘‘आरबीआई की स्वायत्तता’’ पुन: स्थापित किए जाने की आवश्यकता है ताकि बैंक अपने डिफॉल्टर्स के पीछे जा सकें; ‘‘नो विच हंटिंग’’ के वादे के साथ बैंकों में आत्मविश्वास बहाल हो; अपने ‘जोखिम के नियमों’ के अनुरूप विश्वसनीयता के साथ ऋण दे सके तथा एमएसएमई के लिए क्रेडिट गारंटी का विस्तार हो ताकि क्रेडिट ऑफटेक को बढ़ावा मिले और निवेश में वृद्धि हो।
‘टेलीविजऩ पर बातों’ की बजाय ‘डिलीवरी’ की जरूरत है।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 29 जुलाई। राज्य में आज रात 9 बजे तक 229 नए कोरोना पॉजिटिव केस आए हैं। जिला रायपुर से 98, राजनांदगांव 59, बिलासपुर 15, बलौदाबाजार 14, दुर्ग 13, सूरजपुर 9, कोंडागांव 4, महासमुंद, गरियाबंद, रायगढ़ और बस्तर 3-3, धमतरी 2, कबीरधाम, कोरबा, व सरगुजा से 1-1 कोरोना पॉजिटिव मरीज मिले हैं।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 29 जुलाई। राज्य शासन के शाम 7.30 तक के आंकड़ों के मुताबिक रायपुर में 98, राजनांदगांव 61, दुर्ग 14, बलौदाबाजार 12, नारायणपुर 6, कोंडागांव 4, बस्तर, महासमुंद, गरियाबंद, रायगढ़ 3-3, बिलासपुर, धमतरी 2-2, कबीरधाम, कोरबा, सरगुजा 1-1, कुल 214 पॉजिटिव पाए गए हैं। राज्य शासन की सूची ऊपर की केन्द्र सरकार की सूची से अलग है, और दोनों में रात तक फेरबदल जारी रहेगी।
छत्तीसगढ़ में कोरोना पॉजिटिव के आंकड़ों में आज शाम 7 बजे तक रायपुर जिला बाकी जिलों से कोसों आगे चल रहा था, और यहां 120 पॉजिटिव मिल चुके थे। केन्द्र सरकार की एक सरकारी एजेंसी से मिले आंकड़ों के मुताबिक इसके बाद बिलासपुर में 18, बस्तर में 10, दुर्ग 5, राजनांदगांव 7, रायगढ़ 5, बलौदाबाजार 4, गरियाबंद 3, महासमुंद 3, और धमतरी में 2, कबीरधाम में 1 कोरोना पॉजिटिव मिले हैं। (देर रात तक ये आंकड़े कम-अधिक होते हैं क्योंकि स्वास्थ्य विभाग को कई नए रिजल्ट मिलते हैं, और इनमें से कुछ रिजल्ट पुराने पॉजिटिव मरीजों के रिपीट रिजल्ट निकल जाते हैं। -संपादक)
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 29 जुलाई। भाजपा विधायक भीमा मंडावी की हत्या मामले में एनआईए को बड़ी सफलता मिली है। एनआईए ने तीन आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है और उसे अदालत में पेश किया गया। जिसे 7 दिन के रिमांड में भेज दिया गया है।
बताया गया कि एनआईए ने तीन नक्सली लक्ष्मण जायसवाल, रमेश कुमार कश्यप और कुमारी लिंगे को किरंदुल से गिरफ्तार किया। तीनों को एनआईए कोर्ट में पेश किया। जहां तीनों को सात दिन के रिमांड में भेज दिया गया है।
उल्लेखनीय है कि लोकसभा चुनाव के दौरान भीमा मंडावी की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इसके बाद प्रकरण को जांच के लिए एनआईए को सौंप दिया गया था।