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रिवॉल्वर और पासपोर्ट जब्त
कानपुर(जागरण )। रविवार देर रात तक काफी कश्मकश के बाद पुलिस ने जय बाजपेई और उसके एक साथी के साथ गिरफ्तार कर लिया है। पुलिस ने जय पर घटना के दो दिन पहले विकास दुबे को दो लाख रुपये और 25 कारतूस देने के आरोप समेत कई धाराओं में देर रात नजीराबाद थाने में मुकदमा दर्ज किया है।
बिकरू कांड के बाद एसटीएफ ने जय बाजपेई को हिरासत तें लेकर पूछताछ कर रही थी। 15 दिन बाद रविवार की शाम वह सुरक्षित घर पहुंचा तो बखेड़ा खड़ा हो गया। देर रात पुलिस ने जय को दोबारा घर से हिरासत में लिया था। इसके बाद एसएसपी दिनेश कुमार पी ने नजीराबाद थाने पहुंचकर उससे पूछताछ की। पुलिस के अनुसार पूछताछ में सामने आया कि जय ने घटना के दो दिन पहले विकास दुबे को दो लाख रुपये और 25 कारतूस दिए थे। पुलिस की जांच में लाइसेंसी रिवाल्वर में 25 कारतूस की खरीद मिली लेकिन वह नहीं बता सका कि कारतूस कहां प्रयोग किए।
एफआईआर के मुताबिक 4 जुलाई को जय बाजपेई अपने साथी प्रशांत शुक्ला उर्फ डब्बू निवासी आर्य नगर के साथ तीनों गाड़ियों में विकास दुबे और उसके गैंग को कानपुर से सुरक्षित निकालने की तैयारी कर रहा था। पुलिस की सक्रियता के चलते वह इस काम को अंजाम नहीं दे सका और तीनों कार विजय नगर चौराहे के पास छोड़कर भाग खड़ा हुआ। इसीलिए तीनों गाड़ियों की नंबर प्लेट हटाकर लावारिस हालत में छोड़ दिया। पुलिस ने जय बाजपेयी और साथी प्रशांत शुक्ला को दो जुलाई की घटना में साजिश का आरोपी बनाया है और नजीराबाद थाने में मुकदमा दर्ज किया गया है। एसएसपी दिनेश कुमार पी ने बताया कि सोमवार को जय बाजपेयी और प्रशांत शुक्ला को अदालत में पेश किया जाएगा।
जय का रिवॉल्वर और पासपोर्ट जब्त
विकास दुबे के खजांची जय बाजपेयी पर पुलिस का शिकंजा कसना शुरू हो गया है। पुलिस ने रविवार को जय की रिवाल्वर, शस्त्र लाइसेंस और पासपोर्ट जब्त कर लिए। इसके साथ ही शस्त्र लाइसेंस और पासपोर्ट के निरस्तीकरण की फाइल भी तैयार कर ली गई है। निरस्तीकरण के लिए दस्तावेज सोमवार को जिलाधिकारी को भेजे जाएंगे। आपराधिक मुकदमे के बावजूद जय का शस्त्र लाइसेंस बना था। उसके पास पासपोर्ट भी था और वह विदेश भी जाता था। तत्कालीन एएसपी कन्नौज केसी गोस्वामी की सवा दो साल से दबी हुई रिपोर्ट दैनिक जागरण में प्रकाशित होने के बाद पुलिस महकमे ने कार्रवाई का डंडा चलाना शुरू किया है। शस्त्र लाइसेंस और पासपोर्ट निरस्तीकरण के लिए एसएसपी ने शनिवार को बजारिया और नजीराबाद पुलिस को आदेशित किया था। इंस्पेक्टर बजरिया राममूíत यादव ने बताया कि शस्त्र लाइसेंस और पासपोर्ट निरस्तीकरण की कार्यवाही भी पूरी कर ली गई है। फाइल अनुमोदन के लिए एसएसपी के यहां भेज भी दी गई है।(jagran)
मध्यप्रदेश में एक आईपीएस अफसर का वीडियो चर्चा में है, चर्चा ये नहीं है कि वे लिफाफे लेते कैमरे में कैद हुए, मुद्दा ये है कि इतने लापरवाही, पकडे गए ? आखिर समाज और सत्ता ने क्यों रिश्वत को तोहफा मान लिया
-पंकज मुकाती
(राजनीतिक विश्लेषक )
आखिर मधु बाबू एक्सपोज़ हो गए। ऐसा क्यों हुआ ? एक मंझा हुआ तपा तपाया अफसर और ऐसी लापरवाही? इसे लापरवाही इसलिए कह रहा हूं क्योंकि लिफाफा तो अब सौहार्द का प्रतीक है। इस सौजन्यता को स्वीकारना अफसरी के बने रहने का एकमात्र रास्ता है। मध्यप्रदेश या किसी भी राज्य में अफसरशाही ऐसे ही लिफाफों पर ज़िंदा है। ये जो लिफाफा रेल है। बड़ी लम्बी है।
इसमें सवार होकर आप मुख्य सचिव तक पहुंच सकते हैं। ऐसा नहीं करेंगे तो किसी अकादमी में अफसरों की मेस का जिम्मा संभालते रहेंगे। फील्ड की तैनाती के लिए आपके पास लिफाफे की बड़ी योग्यता जरुरी है। जो जितने सयानेपन से ये लिफाफा एकत्रीकरण करेगा वो उतना समझदार कहलायेगा। सत्ता ऐसे लोगों को खुद तलाश लेती है। स्क्रैच एंड विन जैसी योजना है सरकारी ओहदे।
रिश्वत लेना-देना कोई बुराई रहा ही नहीं। पर इस तरह से पकडे जाने ने अफसर की बरसों की मेहनत पर पानी फेर दिया। वे सत्ता की नजर में एक वीडियो से उतर गए। चर्चा ये नहीं है कि एक आईपीएस रिश्वत लेते दिख रहा है। चर्चा ये है कि ऐसी लापरवाही रिश्वत भी ठीक से नहीं ले सके। वीडियो साढ़े तीन साल पुराना है। जब साहब उज्जैन में पदस्थ थे।
अफसरों में और आम लोगों में ये भी चर्चा का विषय है कि बड़े कमजोर निकला मधु बाबू का मेनेजमेंट। चार साल में वीडियो बनाने वाले को पूरी तरह सेट नहीं कर पाए। उसने अब वायरल कर दिया। कुछ लोग उन्हें साजिश आपसी रंजिश का शिकार बता रहे हैं। लोगों की सहानुभूति है बेचारे साहब, उलझ गए। तर्क है कि ये वीडियो उस वक्त के एक एसपी ने उनसे खुन्नस में बनाया। यानी इस बात से किसी को आश्चर्य, पीड़ा नहीं है कि एक नौकरशाह इस सुशासन वाली सरकार में ऐसे लिफाफे लेता है। क्योंकि सब इसे स्वीकार चुके हैं। ये सबसे खतरनाक है।
एक बात ये भी उठ रही कि कांग्रेस के कमलनाथ ने जिस अफसर को ट्रांसपोर्ट कमिश्नर बनाया, वे लिफाफे लेते कैमरे में कैद हुए। पर सवाल ये भी है कि वे कैमरे में कैद तो शिव राज में हुए। सरकारें किसकी है, इससे धनबल वालों की आस्था में कोई फर्क नहीं पड़ता।
दरअसल, मधु कुमार बाबू दीवार की एक खूंटी है इस वक्त बात करने के लिए। वैसे तो पूरी दीवार ही गन्दी है। वरना सत्ता और नौकरशाही के बीच सेतु ही लिफाफे बने हुए हैं। चतुराई से लिफाफे लेने और उसे आगे बढ़ाने वाले शाबाशी पाते हैं। पर मधु कुमार बाबू अब उस दौड़ में पिछड़ गए। आखिर पकडे जो गए। अब नई पौध को मौका मिलेगा। कोरोनाकाल में कई नए ऐसे काबिल, कमाऊ अफसर सामने आये हैं। सरकार की निगाहें हैं, उनपर जल्द सम्मानित भी होंगे।
ऐसे वीडियो तमाम अफसरों के लिए प्रेरणा साबित होंगे। सबक और मिसाल बनेंगे। वे इससे सीखेंगे कि क्या-क्या नहीं करना है। लिफाफे ऐसे नहीं लेना है। अफसरशाही के प्रबंधन में इसे हिदायत के साथ पढ़ाया जाएगा। अक्सर जब अफसरों को ये लगने लगता है कि पूरी दुनिया मुट्ठी में है, तब वे अपनी मांद से निकलकर ऐसे खुले में शिकार करने लगते हैं।
सरकार की सदशयता देखिये, मधु कुमार बाबू को सस्पेंड नहीं किया। भोपाल पुलिस मुख्यालय भेज दिया। आखिर भेजते भी कैसे। उनके ऊपर केंद्र के एक बड़े नेता का हाथ। प्रदेश में कांग्रेस-भाजपा दोनों सरकारों के कई राज़ उनके पास है। बहुत संभव है कि बड़ी सजा देने से दूसरे अफसर ठिठक जाते और लिफाफा कारोबार प्रभावित होता। कुल मिलाकर सत्ता के लिए 'मधु' मेह अच्छा है।
इलायची ..थोड़ी सी पड़ताल करिये। सोचिये पहले जो अफसर आय से अधिक संपत्ति या रिश्वत में पकडे गए। वो अब कहां हैं। सब आपको आपने आसपास किसी बड़े ओहदे पर ही मिलेंगे। आखिर एक बड़ा लिफाफा सारे दाग धो देता है।
''पबजी गेम में कुछ ग़ैर-इस्लामिक चीज़ें हैं".
पाकिस्तान का इस्लामाबाद हाई कोर्ट जल्द ही इस बात पर फ़ैसला सुनाएगा कि लोकप्रिय मोबाइल गेम पबजी (PubG) पर पीटीए यानी पाकिस्तान टेली कम्युनिकेशन अथॉरिटी ने जो बैन लगाया है वो जायज़ है या नहीं.
पीटीए ने अदालत में पबजी द्वारा दायर की गई याचिका का विरोध किया है जबकि मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस फ़ारूक़ी ने पाकिस्तान टेली कम्युनिकेशन अथॉरिटी से अदालत में पूछा है कि "किस क़ानून के तहत आपने ये बैन लगाया है".
पीटीए के वक़ील ने अपनी दलील में कुछ ऐसा कहा जिससे पाकिस्तान में एक नई बहस शुरू हो चुकी है.
उन्होंने कहा, "उन तमाम चीज़ों के अलावा जो बच्चों-युवाओं की मानसिक और शारीरिक सेहत को नुक़सान पहुँचाती हैं, पबजी गेम में कुछ ग़ैर-इस्लामिक चीज़ें हैं".
जानकरों का कहना है कि पाकिस्तान में कुछ ऐसे ही आरोप टिकटॉक पर भी लग सकते हैं क्योंकि उसे भी बैन करने की माँगे बढ़ती जा रही हैं.
उधर पबजी को पसंद करने वालों ने सरकार के इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ अपने विरोध का स्वर बढ़ा दिया है और इस गेम के खिलाड़ियों और समर्थकों ने पंजाब-सिंध इलाक़े में धरना-प्रदर्शन करने की धमकियाँ दी हैं.
वजह
पाकिस्तान की इमरान खान सरकार पर पबजी गेम को बैन करने का दबाव तब और बढ़ गया था जब कुछ आत्महत्याओं की ख़बरें पूरे देश में न सिर्फ़ प्रमुखता सी छपीं बल्कि उनके मक़सद पर टीवी चैनलों पर कई दिनों बहस होती रही.
इस्लामाबाद में बीबीसी संवाददाता शुमाइला जाफ़री के मुताबिक़, "मामले की शुरुआत क़रीब दो हफ़्ते पहले लाहौर से हुई जब दो युवा लड़कों ने ख़ुदख़ुशी कर ली थी. पुलिस अधिकारियों ने बाद में बताया कि इनके माँ-बाप ने इन्हें पबजी खेलने से मना किया था लेकिन उनकी बात अनसुनी कर दी गई थी. इसके बाद पुलिस ने पीटीए से इस गेम को बैन करने की गुज़ारिश की. पीटीए ने इस्लामाबाद हाई कोर्ट में भी ये दलील दी है कि इस गेम के चलते बच्चे बिगड़ रहे हैं और, उनका समय बर्बाद हो रहा है."
सोशल मीडिया में इस बात को लेकर ख़ासी बहस छिड़ी हुई है कि पाकिस्तान में जब भी इस तरह के मसले होते हैं तो बजाय उनका समाधान ढूँढने के सीधे बैन कर दिया जाता है.
फ़ेसबुक और ट्विटर पर #UnBanPUBGPakistan और #PUBGKaJawabDou जैसे हैशटैग वायरल हो रहे हैं और इन्हें शेयर करने वाले ज़्यादातर लोगों का मत है कि "सरकार किसी मामले को सुलझाने के बजाय उससे छुटकारा पाने की नीति अपना लेती है'.
हालाँकि ये पहली बार नहीं है जब पाकिस्तान में किसी वीडियो गेम के ख़िलाफ़ इस तरह की सख़्ती बरती गई हो.
एसोसिएटेड रिपोर्टर्स एब्रॉड की दक्षिण एशिया संवाददाता नायला इनायत ने 'द प्रिंट' वेबसाईट में लिखा है कि, "ये पहली बार नहीं जब पाकिस्तान ने कोई वीडियो गेम बैन किया है. 2013 में कॉल आफ़ ड्यूटी और मेडल आफ़ ऑनर जैसे गेम इसलिए बैन किए गए क्योंकि उनमे पाकिस्तान को "चरमपंथियों के छुपने की जगह' दिखाया गया था. फिर 2017 में वलक्यरी ड्राइव पर बैन इसलिए उसमें समलैंगिकता का मुद्दा उठाया गया था".
हासिल क्या
बड़ा सवाल ये है कि आख़िर इस बैन से कितना फ़र्क़ पड़ेगा और इस बैन के पीछे कोई और मंशा तो नहीं है.
पाकिस्तान के कई युवाओं की दलील है कि सरकार इस तरह के "अनडेमोक्रेटिक" फ़ैसला लेकर समाज के "एक ख़ास वर्ग को ख़ुश करना चाहती है बस".
कराची शहर की फिरदौस कॉलोनी के रहने वाले कॉलेज छात्र रेहान अब्बास के मुताबिक़, "महीनों से लॉकडाउन वाले हालात हैं, कोरोना के चलते बच्चे-बूढ़े सब घरों में ही सुकून ढूँढ रहे हैं और सरकार ने पबजी पर ही पाबंदी लगा दी है. माना कि चंद लोगों ने इसका ग़लत इस्तेमाल किया, लेकिन 99% तो वो नहीं कर रहे न".
कुछ दूसरों का मत है कि पाकिस्तान सरकार इस बात को कैसे "नज़रंदाज़ कर सकती है कि पबजी दुनिया के सबसे ज़्यादा लोकप्रिय और रेवेन्यू कमाने वाले मोबाइल गेम में से एक है".
ज़ाहिर है, इस तरह के क़दम से न सिर्फ़ गेम खेलने वालों बल्कि उन गेम-डिवेलपर्स को भी दोबारा सोचने पर मजबूर किया होगा जो मनोरंजक मोबाइल गेम बनाने में लगे होंगे.
जाने-माने टीवी होस्ट वक़ार ज़का का मत है कि, "ये वही बात हो गई जब कुछ साल पहले पाकिस्तान में यूट्यूब पर रोक लग गई थी. भले ही बाद में वो हटी लेकिन डिजिटल इंडस्ट्री को इस तरह के फ़ैसलों से बड़ा नुक़सान होता रहता है".
बहस
पाकिस्तान में पबजी पर लगे बैन पर छिड़ी बहस अब राजनीतिक रंग लेने की कगार पर भी दिखती है.
देश की राजनीति पर नज़र रखने वालों का कहना है कि "युवाओं के ज़बरदस्त समर्थन" पर सत्ता में आई इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ (पीटीआई) पार्टी "के कुछ फ़ैसले युवाओं के ख़िलाफ़ ज़रूर दिखे हैं".
लेकिन इस बात में भी कोई शक़ नहीं है कि आज भी पाकिस्तान में इमरान खान की लोकप्रियता के पीछे युवाओं का बड़ा हाथ है जो उनके राजनीतिक आंदोलन में बरसों तक बिना किसी बड़ी कामयाबी के भी जुड़े रहे थे.
ज़ाहिर है, सवाल उठेंगे कि क्या युवाओ में लोकप्रिय पबजी जैसे गेम पर लिए गए फ़ैसलों का असर इमरान खान के फ़ैन-बेस पर भी पड़ेगा क्या?
इस्लामाबाद में 'इंडिपेंडेंट उर्दू' अख़बार के संपादक हारून राशिद का कहना है कि "पाकिस्तान में पबजी कितना लोकप्रिय है, ये आँकड़े किसी के पास नहीं हैं. रही बात इमरान ख़ान की तो उनकी पहचान एक दक्षिणपंथी रूढ़िवादी नेता की होती चली गई है और वो भी धर्म के नाम पर".
बीबीसी उर्दू सेवा के वरिष्ठ पत्रकार आरिफ़ शमीम की राय थोड़ी अलग है क्योंकि उन्हें नहीं लगता इस बैन से इमरान के युवा फ़ैन बेस में कोई कमी आएगी.
उन्होंने बताया, "युवा समर्थकों में इमरान ने ख़ुद को मसीहा जैसा स्थापित कर रखा है और उनके भक्त आंख बंद कर उनका अनुसरण करते हैं. हाल ही में उनके एक समर्थक और लोकप्रिय गायक ने बिलावल भुट्टो ज़रदारी के बारे में अभद्र सा कमेंट किया तब भी लोग उनके समर्थन में उतर आए. वजह गायक की लोकप्रियता नहीं थी बल्कि इमरान पर उस गायक का भरोसा था. आर्थिक मुश्किलों, ऊर्जा की क़िल्लत, कोरोना वायरस से निपटने की दिशाहीन नीतियों के बावजूद इमरान के समर्थक इन मुद्दों पर चुप रहना पसंद करते हैं, सवाल उठाना नहीं. पाकिस्तान के लिए ये ज़्यादा बड़ी चिंता है."
पाकिस्तान में इमरान खान की सरकार और उसके काम-काज पर कथित तौर से बढ़ते हुए "फ़ौजी प्रभाव" की ख़बरें भी पिछले छह महीनों में तेज़ हुई.
हालाँकि पाकिस्तान फ़ौज ने सरकार के काम-काज में "किसी क़िस्म की दख़लंदाज़ी से इनकार" किया है लेकिन सियासी इतिहास को ध्यान में रखते हुए इसे सिरे से ख़ारिज भी नहीं किया जा सकता.
फ़िलहाल तो पाकिस्तान में पबजी के भविष्य पर इस्लामाबाद हाई कोर्ट को अपने फ़ैसला सुनाना है. फ़ैसला जिसके भी पक्ष में होगा, उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती भी दी जा सकती है.
हारून रशीद को लगता है कि इमरान सरकार कुछ फ़ैसले अप्रत्यक्ष तौर से भी ले रही है.
उन्होंने कहा, "टेली कम्युनिकेशन अथॉरिटी ने भले ही अदालत से कहा है कि ये गेम ग़ैर-इस्लामिक और अभद्र है लेकिन ये नहीं बताया कि ये राय सरकार के किस धड़े की है. ज़ाहिर है, पीटीए भी देश की उन शक्तिशाली ऐजेंसीस के प्रभाव में है जो आमतौर से सभी बड़े फ़ैसले लेती हैं. ये ऐजेंसीस आपस में तय कर लेती हैं कि ग़ैर-पाकिस्तानी क्या है, ग़ैर-इस्लामिक क्या है और उस कॉन्टेंट को हटा देती हैं. मुद्दे की बात यही है कि चुनाव जीतने के समय इमरान के 'बदलाव' लाने वाले नारे के बावजूद कुछ बदला नहीं है".(bbc)
दसवीं अनु सूची के अनुरूप गठित है मंत्रि-परिषद?
-देवेंद्र वर्मा
(पूर्व प्रमुख सचिव छत्तीसगढ़ विधानसभा
संसदीय एवं संवैधानिक विशेषज्ञ)
संविधान की दसवीं अनु सूची (दल बदल कानून) का उद्देश्य यह है कि कोई निर्वाचित जन प्रतिनिधि अपने व्यक्तिगत कारणों, लोभ, लालच छल कपट से सरकार को अस्थिर करने के उद्देश्य से अपने मूल राजनीतिक दल जिससे वह निर्वाचित हुआ है, की सदस्यता स्वेच्छा से न छोड़े। प्रावधान निम्नानुसार है।
"(पैरा 2 (1)(क) उसने ऐसे राजनीतिक दल की सदस्यता स्वेच्छा से छोड़ दी है"
यदि कोई निर्वाचित जन प्रतिनिधि,उस राजनीतिक दल जिसकी विचारधारा,घोषणा पत्र,पर विश्वास प्रकट करते हुए,दल के कार्यक्रमों पर आस्था व्यक्त करके,जनता को लुभाते हुए,चुनाव लड़ता है, और फिर जितनी अवधि के लिए जनता ने उसे निर्वाचित किया है, बिना जनता को विश्वास में लिए स्वेच्छा से जिस राजनीतिक दल के टिकट पर जनता ने उसे निर्वाचित किया है उस राजनीतिक दल अर्थात विधान दल से त्याग-पत्र दे कर, विधान दल की सदस्यता स्वेच्छा से छोड़ देता है, जिस जनता ने उस पर विश्वास व्यक्त किया,जनता के साथ विश्वासघात करते हुए, किसी अन्य राजनीतिक दल मैं सम्मिलित हो जाता है, जनादेश को परिवर्तित कर देता है और उसके एवज में वह मंत्री पद अथवा अन्य कोई लाभ प्राप्त करने वाला पद प्राप्त कर लेता है, तो क्या यह दल बदल कानून,उपरोक्त पैरा (2)(1)(क),उसके उद्देश्य और उसकी मूल भावना के विपरीत नहीं है?
क्या केवल इस कारण से कि वह पुनः चुनाव लड़ने वाला है, मूल पद को तिलांजलि देने और जनादेश प्राप्त सरकार को अपदस्थ करने जैसे जघन्य अपराध से मुक्ति पाने और मंत्री पद पर नियुक्त होने अथवा नियुक्त किए जाने की अधिकारिता रखता है?
क्या कोई राजनीतिक दल जो ऐसे दलबदलू को राजनीतिक लाभ के लिए मंत्री अथवा अन्य लाभ के पद पर नियुक्त करता है तो क्या राजनीतिक दल का ऐसा कार्य प्रजातंत्र, संसदीय प्रणाली, संविधान, की अवज्ञा और दसवीं अनु सूचि(दल बदल कानून) के उल्लंघन और इसके उद्देश्यों के विपरीत नहीं है ?
संविधान की दसवीं अनु सूची(दल बदल कानून) जब वर्ष 1985 में संविधान में संशोधन करते हुए सम्मिलित की गई तब संसद में सदस्यों द्वारा व्यक्त विचारों में सामंजस्य स्थापित करने के उद्देश्य से जहां किसी सदस्य द्वारा दल बदलने पर सदस्यता से निरर्हरित (disqualify)करने जैसा प्रावधान लागू किया गया, और विभाजन(split) की स्थिति के लिए दल बदल कानून में निरहरित(disqualify)करने की अधिकारिता विधानसभा अध्यक्ष को दी गई और उनसे यह अपेक्षा की गई कि वह कानून और नियमों का निर्वचन करते हुए निरहंरित(disqualify) करने के संबंध में निर्णय दे.
राजनीतिक दलों में विभाजन पर दल बदल कानून एवं निर्मित नियमों के आधार पर विधानसभा अध्यक्षों के निर्णय प्राय: विवाद के विषय बने और आए दिन न्यायालयों में चुनौती भी दी जाने लगी।
किंतु वर्ष 1985 के पश्चात अनुभव यह भी रहा कि अधिकतर विभाजन छोटे दलों में ही हुआ और विभाजन के पश्चात, विभाजित समूह को दूसरे दलों की सरकार में मंत्री पद से नवाजा गया अथवा मंत्री पद के समान ही लाभ प्राप्त करने जैसे पदों पर नियुक्त किया गया।
1985 में दल बदल कानून के लागू होने के पश्चात इसमें अनुभव की गई कमियों आदि पर विचार करने हेतु चुनाव सुधार पर अध्ययन एवं प्रतिवेदन प्रस्तुत करने के लिए दिनेश गोस्वामी कमेटी की सिफ़ारिशें, तथा ला कमीशन की 170 वी रिपोर्ट 1999, भारत सरकार द्वारा वर्ष 2002 में संविधान की कार्य पद्धति को रिव्यू करने हेतु नियुक्त कमीशन ने भी दसवीं अनु सूची में विभाजन वाले पैरा को हटाने की अनुशंसा की।
उपरोक्त अनुशंसाओं के अनुरूप वर्ष 2003 में दसवीं अनु सूची को संशोधित करने हेतु लोकसभा में 97वां संशोधन विधेयक 5 मई 2003 को पूर:स्थापित(introduce) होने पर इसे प्रणव मुखर्जी के सभापतित्व में गठित संसद की स्थाई समिति को संदर्भित कर दिया गया।
इस समिति ने भी पैरा तीन को डिलीट करने की अनुशंसा के साथ-साथ यह भी अनुशंसा की कि यदि “सदन का कोई सदस्य दसवीं अनु सूची के पैरा दो के अंतर्गत सदस्यता के लिए निर्रहित हो जाता है।
{अर्थात उसने अपने
(क)मूल राजनीतिक दल की सदस्यता स्वेच्छा से छोड़ दी है, अथवा
(ख)ऐसे राजनीतिक दल जिसका वह सदस्य है के किसी निर्देश के विरुद्ध पूर्व अनुज्ञा के बिना ऐसे सदन में मतदान करता है या मतदान करने से विरत रहता है और ऐसे राजनीतिक दल ने ऐसे मतदान या मतदान करने से विरत रहने की तारीख से 15 दिन के भीतर माफ नहीं किया है।}
(कृपया संविधान की दसवीं अनु सूची का संदर्भ लें)
तो इस प्रकार दसवीं अनु सूची के अंतर्गत निरर्हरित(disqualify)सदस्य संविधान के अनुच्छेद 164(1)ख के अनुसार निरर्हरित होने की तारीख से,प्रारंभ होने वाली तारीख से उस तारीख तक, जिसको ऐसे सदस्य के रूप में उसकी पदावधि समाप्त होगी या जहां वह ऐसी अवधि की समाप्ति के पूर्व यथा स्थिति किसी राज्य की विधानसभा के लिए या विधान परिषद वाले किसी राज्य के विधान मंडल के किसी सदन के लिए कोई निर्वाचन लड़ता है उस तारीख तक जिसको वह निर्वाचित घोषित किया जाता है इनमें से जो भी पूर्वोत्तर हो, की अवधि के दौरान खंड1 के अधीन मंत्री के रूप में नियुक्त किए जाने के लिए भी निरहर्ररित(disqualify)होगा।
संविधान में 6 माह के लिए मंत्री पद पर नियुक्त करने के प्रावधानों के अंतर्गत भी ना तो उसे मंत्री पद पर नियुक्त किया जाए और ना ही सरकार में किसी अन्य रिमुनरेटिव (लाभकारी) पद पर नियुक्त किया जाए।
मंत्री पद पर नियुक्त नहीं किए जाने के साथ-साथ इस संभावना को सीमित करने के उद्देश्य से कि बिना किसी बंधन के मंत्रिमंडल का आकार ऐसे दलबदलूओं के कारण असीमित ना हो मंत्रिमंडल मैं मंत्रियों की संख्या को भी 15% रखने और छोटे राज्य जहां की संख्या 40,60 या 90 है, वहां कम से कम12 मंत्री, मंत्रिमंडल में सम्मिलित किए जाने की अनुशंसा की।
तत्कालीन विधि मंत्री श्री अरुण जेटली ने समिति की सिफ़ारिशो को स्वीकार करने का कथन कहते हुए संविधान में संशोधन का विधेयक समिति की अनुशंसा के साथ16 दिसंबर 2003 को लोकसभा में प्रस्तुत और पारित हुआ और पश्चात 18दिसंबर 2003 को राज्यसभा में प्रस्तुत और पारित हुआ जो भारत के राज पत्र में 91 वा संविधान संशोधन अधिनियम 2003, 2 जनवरी 2004 को भारत के राज पत्र में प्रकाशित होकर लागू हुआ।
इस विधेयक पर हुई चर्चा इसके उद्देश्य, संसद की मंशा आदि जानना इसलिए आवश्यक है, कि वर्तमान में राजनीतिज्ञों एवं राजनीतिक दलों का जो आचरण एवं व्यवहार देश की जनता देख रही है क्या वह वास्तव में विधेयक की शब्दावली, संसद मैं हुई चर्चा माननीय सदस्यों एवं माननीय विधि मंत्री जी द्वारा व्यक्त विचारों भावनाओं के अनुरूप है ?
इस संविधान संशोधन विधेयक पर लोकसभा एवं राज्यसभा में हुई चर्चा के कुछ महत्वपूर्ण अंश हूबहू स्वरूप में निम्नानुसार है:-
लोकसभा की कार्यवाही दिनांक 16 दिसंबर 2003 के अंश
Priya Ranjan Das Munshi:-
“...........in this parliament I defined defection in two categories- one is defection per se as per the statute and the other is deceptionThis legislation will give a wider scope that if a leader of a party resigned from that party joins another party it is also defection and if he does not get elected by the People's mandate he will not be considered as a Minister. Simply contesting election will not wash his whole sin or crime whatever it is.I agree it is good,you are giving the total emphasis on the mandate of the people,if the mandate of the people is the single criterion to honour the constitution then my submission to honorable minister of law and Justice is with due respect to the upper house here and the Council in States get the percentage of the legislators inducted in the ministry 15% or tomorrow you can further make it to 12% if there is a shortcoming.It should be done on the basis of the people elected by the people and not combining both the houses.Combining both the houses negates the very concept where you state that a member who resigns and joins other party cannot be considered as a member of council of minister and sworn in at the Rashtrapati Bhavan or the Governor house, unless he is elected. so elected by the people should be the basic criterion and if that is so in that case combining both the houses and deciding the strengths to determine the size of the Council of Ministers is not a correct approach……….”
………………
Shri Arun Jaitley: I am grateful to the hon. Member.Some other questions have been raised,and one questions which Members have repeatedly raised,which was asked to me in the end,as to what happens with regard to parties expelling their Members From the membership of the Political party.Now the provisions of the Tenth Schedule it self take care of that which is to the effect that the Tenth Schedule is triggered off or attracted only if somebody voluntarily relinquishes the membership of a political party.कोई अपनी मर्जी से वाल्यनटरली अपनी पार्टी की सदस्यता को छोड़ता है तभी संविधान के दसवे शेड्यूल के अंतर्गत प्रावधान उस पर लागू होते हैं। जो अपनी मर्जी से नहीं छोड़ता और जिसे पार्टी की तरफ से एक्सपेल कर दिया जाता है, एक्स्पल्शन की वजह से दसवाँ शेड्यूल अपने आप में अट्रैक्ट नहीं होता। इसलिए उसके ऊपर यह प्रावधान लागू नहीं होगा।……………………..
…………………………………………………………………….
राज्यसभा की कार्यवाही दिनांक 18 दिसम्बर के अंश:-
Shri Pranab Mukherjee; …………….But most important part of of this is the defection, and I do entirely agree with the Honorable minister that in the name of of expressing distant dissenting voice from the political parties or the leadership of the the political party this provision was used to to subserve self interest it was not in the question of the the dissent nobody prevents dissent no body can throttle dissent. What is Being prohibited is that you cannot take advantage of your elected strata being a member of a legislature either in the Assembly or in the The council or in Lok Sabha or or in Rajya Sabha and there after Express your decent. If you genuinely feel that you do not agree with the the views of the political party the most respectable course left to you would you resign from the party, you resign from the the membership and you seek the mandate on that Limited issue if a limited mandate could be obtained. ………………………………………….
One instance comes to to my mind immediately, when Mr Siddharth Shankar Ray was the the law minister of Dr B C Roy government of West Bengal he had differences with the Congress Party and he resigned immediately from the party,he resigned from the membership of the assembly and sought by-election and that is the normal democratic practice which we should have.Unfortunately we are not doing so therefore this is an attempt to prevent taking that advantage and power anxiety to eat the cake and at the same time have it.we have also suggested that it may happen that a Minister without being a member of either House for six months is being prohibited but the remunerative political office should also be. We suggested to the department, and thereafter the definition has come which we have incorporated in the report, the government has also accepted that. …………………………………………………..
SHRI ARUN JAITELY: :..........................................
One more question which was raised by some of the the Members as to whether this would also be applicable to Members who are expelled by political parties.The tenth schedule itself does not apply to Members who are expelled by political parties.The Tenth Schedule has triggered off only against a Member who voluntarily gives up the membership of a political party.If somebody voluntarily does not give up the membership of apolitical party.If somebody doesn't give up the membership of a political party and he is expelled by the political,the provisions of the Tenth Schedule Itself would be inapplicable in such case…………….
उपरोक्त संविधान की दसवीं अनु सूची के पैरा 2(1)(क),)(ख) संविधान के अनुच्छेद164(1B),एवं सदन में हुई चर्चा और विधी मंत्री के उत्तर के परिपेक्ष में विचारणीय यह है कि दल की सदस्यता स्वैच्छा से छोड़ने वाले सदस्यों को मंत्री पद पर नियुक्त किया जाना,अथवा लाभकारी पद पर नियुक्त करना संवैधानिक है?अथवा असंवैधानिक??
संदर्भ:-1 भारत का संविधान दसवीं अनुसूची एवं अन्य संबंधित अनुच्छेद
2 संविधान के 97 वेवा संशोधन विधेयक तथा उस पर लोकसभा में हुई चर्चा दिनांक 16 दिसंबर 2003 तथा राज्यसभा में हुई चर्चा दिनांक 18 दिसंबर 2003
भारत में 11 लाख पार
पूरी दुनिया कोरोना वायरस से बुरी तरह से प्रभावित हुई है. छह महीने से भी ज्यादा का समय बीत जाने के बाद भी कोरोना वायरस का संक्रमण थमने का नाम नहीं ले रहा और अब ये तेजी से लोगों को अपनी चपेट में ले रहा है. अमेरिका, ब्राजील, भारत, रूस और अब दक्षिण अफ्रीका कोरोना से सबसे अधिक संक्रमित देशों की सूची में शामिल हो गया है. कोरोना के बढ़ते असर का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले 24 घंटों में दुनियाभर में कोरोना संक्रमितों की संख्या में दो लाख 27 हजार से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है.
इसी के बाद दुनियाभर में कोविड-19 संक्रमित मरीजों का आंकड़ा बढ़कर एक करोड़ 46 लाख 41 हजार 819 हो गया है. इनमें से 608,902 लोगों की मौत भी हो चुकी है. बीते चौबीस घंटों के दौरान दुनियाभर में 4600 से ज्यादा लोगों की जान गई है. अब तक पूरी दुनिया में 87 लाख 35 हजार 158 मरीज इलाज के बाद ठीक होकर अपने घर वापस जा चुके हैं. हालांकि अभी भी 52 लाख 97 हजार 759 लोग कोरोना का दंश झेल रहे हैं. कोरोना से सबसे अधिक प्रभावित अमेरिका है. जहां 38 लाक 98 हजार 550 लोग कोरोना संक्रमित हो चुके हैं.
जिनमें से एक लाख 43 हजार 289 लोगों की मौत हो चुकी हैं. वहीं 18 लाख 2 हजार 338 लोग इलाज के बाद ठीक हो चुके हैं. हालांकि यहां अभी भी 19 लाख 52 हजार 923 लोग कोरोना से पीड़ित हैं. बीते चौबीस घंटों के दौरान अमेरिका में 65,279 नए मामले सामने आए हैं और 412 लोगों की मौत हुई है. अमेरिका के बाद ब्राजील में कोरोना के सबसे अधिक मामले सामने आए हैं. यहां अब तक 20 लाख 99 हजार 896 लोग कोरोना पॉजिटिव हो चुके हैं जिनमें से 79,533 लोगों की मौत हो चुकी है. यहां पिछले चौबीस घंटों के दौरान 24,650 नए मामले सामने आए हैं और 716 लोगों की जान गई है.
ब्राजील में अब तक 13 लाख 71 हजार 229 लोग इलाज के बाद ठीक हो चुके हैं हालांकि अभी भी 6 लाख 49 हजार 134 लोग कोविड-19 से संक्रमित हैं. ब्राजील के बाद भारत कोरोना से अधिक प्रभावित देश है. यहां कोरोना संक्रमितों की संख्या बढ़कर 11 लाख 18 हजार 107 हो गई है. जिनमें से 27,503 लोगों की मौत हो चुकी है. वहीं 7 लाख 399 मरीज इलाज के बाद ठीक हो चुके हैं. भारत में एक्टिव मामलों की संख्या तीन लाख 90 हजार 205 है. यहां बीते 24 घंटों के दौरान 40,243 नए मामले सामने आए हैं और 675 लोगों की जान गई है.
भारत के बाद रूस दुनिया का चौथा सबसे प्रभावित देश है. यहां अब तक कोरोना संक्रमितों की संख्या 7 लाख 71 हजार 546 हो गई है. जिनमें से 12,342 लोगों की मौत हो चुकी है. यहां अब तक 550,344 मरीज इलाज के बाद ठीक हो चुके हैं. हालांकि अभी भी 208,860 लोग कोरोना से पीड़ित है. पिछले चौबीस घंटों के दौरान यहां 6,109 नए मामले सामने आए हैं और 95 लोगों की मौत हुई है. रूस के बाद दक्षिण अफ्रीका में कोरोना जमकर तांडव मचा रहा है. यहां कोविड-19 संक्रमितों की संख्या बढ़कर 3 लाख 64 हजार 328 हो गई है.
जिनमें से 5,033 लोग मौत के मुंह में समा चुके हैं. हालांकि यहां 191,059 मरीज इलाज के बाद ठीक भी हो चुके हैं. लेकिन अभी भी 168,236 लोग कोरोना से संक्रमित हैं. बीते चौबीस घंटों के दौरान यहां 13,449 नए मामले सामने आए हैं और 85 लोगों की मौत हुई है. दक्षिण अफ्रीका के बाद पेरू में कोरोना के सबसे अधिक मरीज है. पेरू में अब तक 353,590 लोग कोरोना पॉजिटिव हो चुके हैं.
जिनमें से 13,187 लोगों की मौत हो चुकी है. बीते 24 घंटों के दौरान यहां 4,090 नए मामले सामने आए हैं और 189 लोगों की जान गई है. पेरू (Peru) में अब तक 241,955 लोग इलाज के बाद ठीक हो चुके हैं. हालांकि अभी भी यहां 98,448 लोग कोविड-19 के संक्रमण का दंश झेल रहे हैं(catchnews)
अमेरिका के मिनेसोटा में 25 मई को अश्वेत व्यक्ति जॉर्ज फ्लॉयड की एक श्वेत पुलिसवाले द्वारा की गई हत्या के बाद से पूरी दुनिया में नस्लभेद और रंगभेद के खिलाफ आक्रोश उमड़ पड़ा। फ्लॉयड की हत्या के ठीक एक माह बाद 25 जून को भारत की एक प्रमुख सौंदर्य प्रसाधन कंपनी हिंदुस्तान यूनीलीवर ने एक प्रकार का इतिहास रच दिया जब उसने अपने सबसे मुख्य उत्पाद फेयर एंड लवली के नाम से ‘फेयर’ शब्द को हटा दिया। एक ऐसे देश में जहां व्यक्ति के रंग से समाज में उसकी हैसियत परिभाषित होती है, फेयरनेस क्रीम उन सभी चीजों का प्रतिनिधित्व करती है जो सामाजिक हाइरार्की (श्रेणी क्रम) में गलत हैं और प्रकट रूप से असमाधानीय हैं। भारतीय फिल्म उद्योग जो समाज की अच्छाइयों और बुराइयों को दर्पण की तरह दिखाता है, ने हमेशा से ही त्वचा के रंग से संबंधित ‘फोबिया’ को बढ़ावा दिया है। पहले केवल गोरे रंग-रूप वाले कलाकारों को ही बॉलीवुड की हाइरार्की में महत्व मिला करता था।
जाहिर है कि कुछ अपवाद थे जैसे कि स्मिता पाटिल जिनके सांवले-सलोने रंग ने ‘भूमिका’ और ‘चक्र’ जैसी फिल्मों में पर्दे पर आग लगा दी थी। लेकिन उनके प्रभाव के असर की उम्र बहुत कम थी क्योंकि 1986 में बच्चे को जन्म देने के बाद आई स्वास्थ्य संबंधी जटिलताओं के चलते 36 वर्ष की उम्र में ही उनकी मृत्यु हो गई। उनके बाद अपना दबदबा बना सकने वाली सांवले रंग की ऐसी कोई प्रमुख अदाकारा बॉलीवुड में कई वर्षों तक नजर नहीं आई, सिवाय शायद बांग्ला सुंदरी बिपाशा बसु के, जिन्होंने अपने सांवले रंग-रूप के बावजूद ‘जिस्म’ और ‘राज’ जैसी फिल्मों के जरिये काफी सुर्खियां बटोरी थीं। बाद में दो प्रमुख अभिनेत्रियों- दीपिका पादुकोण और प्रियंका चोपड़ा जिनकी त्वचाका रंग थोड़ा गहरा है, ने ‘क्लास’ की उस दीवार को सफलता से तोड़ा है जहां हिंदी सिनेमा हमेशा से इस मिथ का प्रचारक था कि वे स्त्री-पुरुष जो सामाजिक और आर्थिक संकटों से घिरे रहते हैं, वे ही सांवले रंग के होते हैं।
अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त अभिनेत्रीत निष्ठा चटर्जी ‘ब्रिक लेन’, साथ ही ‘पार्च्ड’, ‘एंग्रीइंडियन गोडेसेस’ और ‘लॉयन’ जैसी फिल्मों में अपने बेहतरीन अभिनय के लिए जानी जाती हैं। वह कहती हैं कि उन्हें भारतीय फिल्मों में गांव की गरीब महिला की भूमिकाएं मिल रही थीं क्योंकि उनका रंग गहरा है। वह कहती हैं, “और जब मैंने शहरी किरदार निभाया तो मुझे एक मदद के रूप में बताया गया कि शहरी दिखने के लिए मुझे रंग को गोरा करने वाला मेकअप लगाना चाहिए। आकर्षक का अर्थ है गोरा। और यह पूर्वाग्रह हमारे देश में हर जगर फैला हुआ है। आप देख सकते हैं कि हमारे देश में अफ्रीकियों के साथ कितनी बुरी तरह से व्यवहार किया जाता है। हम भारतीयों में से 90 फीसदी लोगों की त्वचा गहरे रंग की होती है। हमारे समाज में शरीर के आधार पर और भी कई तरह के बहुत पक्षपात होते हैं लेकिन रंग को लेकर पूर्वाग्रह व्यक्ति के आत्म सम्मान पर ही चोट कर देता है। इसकी जड़ें हमारी जाति व्यवस्था तक पहुंचती हैं।”
जब तनिष्ठा ने आस्ट्रेलियाई फिल्म‘अन-इंडियन’ की थी तो किसी आलोचक ने यह टिप्पणी की थी कि इतने गहरे रंग की लड़की को ऑस्ट्रेलिया में काम कर रही एक कुशल कामकाजी महिला के रूप में क्यों चुना गया। उन्होंने कहा, “किसी ने लिखा था कि उन्हें किसी आकर्षक महिला को लेना चाहिए था। आकर्षक गोरे रंग का समानांतर होता है!” वह कहती हैं, “मैंने कभी गोरा करने वाली किसी क्रीम का समर्थन नहीं किया। मैंने कभी किसी को यह इजाजत नहीं दी कि वह मुझे स्क्रीन पर गोरा दिखाए।” सच तो यह है कि एक बहुत बड़ी संख्या में गोरे रंग वाली भारतीय नायिकाओं ने भी ‘फेयरनेस’ क्रीमों के समर्थन से कदम पीछे खींचे हैं। उनमें से एक हैं दिया मिर्जा। वह ‘संजू’ और ‘थप्पड़’ जैसी फिल्मों में अपने काम के लिए जानी जाती हैं। वह यह मानती हैं कि उन्होंने एक बार फेयरनेस क्रीम के समर्थन की गलती की। वह बताती हैं, “एक मॉडल के रूप में मेरा पहला विज्ञापन एक फेयरनेस क्रीम का था। तब वह मेरे लिए काम और पैसा कमाने का एक अवसर था तो मैंने इस बारे में बहुत नहीं सोचा। पर समय के साथ मेरी जागरूकता बढ़ी और मैं व्यक्तिगत रूप से यह मानती हूं कि मुझे फेयरनेस उत्पादों के समर्थन की कोई आवश्यकता नहीं है। यह मेरा व्यक्तिगत चुनाव है जिसका आधार यह विश्वास है कि फेयरनेस का समर्थन हमारे सामाजिक ढांचे में कई तरह के विभाजन पैदा करता रहेगा क्योंकि यह सौंदर्य का एक झूठा बोध पैदा करता है और ऐसी घिसी-पिटी बातों को बल देता है जिन्हें जड़ से मिटा देना चाहिए।”
शाहरुख खान, ऋतिक रोशन और जॉन अब्राहम-जैसे बॉलीवुड कलाकार जिन्होंने गोरा करने वाली क्रीम का समर्थन किया है, इसे स्वीकार करने से शर्माते हैं। अभिनेता अर्जुन रामपाल ‘रॉक ऑन’, ‘राजनीति’ और ‘ओम शांति ओम’ में अपने अभिनय के लिए जाने जाते हैं। अर्जुन ने पुरुषों के लिए बनाई गई नीविया की गोरा करने वाली क्रीम का समर्थन किया है लेकिन वह इसे अस्वीकार करते हैं। वह कहते हैं, “मैंने कभी किसी गोरा करने वाली क्रीम का समर्थन नहीं किया। मैं इसमें विश्वास नहीं करता। अगर आप कमर्शियल (विज्ञापन) को देखेंगे तो स्वयं समझ जाएंगे। सच्चाई तो यह है कि वो क्रीम गोरा करने वाले उत्पादों के मुंह पर एक तमाचा है जहां मैं विशेष रूप से यह कहता हूं कि शेड कार्ड दीवारों के लिए होता है, चेहरों के लिए नहीं। जिस उत्पाद का मैंने समर्थन किया है, वह चेहरे पर काले धब्बों को कम करने के लिए है याफिर सूरज के कारण भारत में आम तौर से पड़ने वाली छाइयों के लिए है। मैं ऐसी किसी भी चीज का समर्थन कभी नहीं करूंगा जिसमें मैं विश्वास नहीं करता। मैं फेयरनेस क्रीम में बिल्कुल विश्वास नहीं करता और मुझे हमेशा से ही यह धारणा बहुत अजीब और रंगभेदी लगी है।”
अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त अभिनेत्री नंदिता दास जो दीपा मेहता की ‘फायर’ और ‘अर्थ’ जैसी फिल्मों में अपने दमदार अभिनय के लिए जानी जाती हैं। उन्हें भी अपने गहरे रंग के लिए अनेक प्रकार के भेदभावों का सामना करना पड़ा है। वह कहती हैं, “हमारे चारों ओर पुरुषों और महिलाओं के जो चित्र होते हैं, वे गोरे रंग के होते हैं। चाहे फिल्मों में हों, टेलीविजन, पत्रिकाओं, होर्डिंग्स या विज्ञापनों में हों...सभी जगह ‘गोरे रंग’ का बोल बाला है, वह भी ऐसे देश में जिसके अधिकांश लोगों का रंग गहरा है!” नंदिता मानती हैं कि गहरे रंग के लोगों को अकसर औरों से कम महसूस कराया जाता है। वह कहती हैं, “बचपन से लेकर बड़े होने तक। हमने कुछ पहचान बनाई हैं जैसे राष्ट्रीयता, धर्म, जाति, त्वचा का रंग, लैंगिक पसंद- सभी पहचान हमें लोगों को ‘जज’ करने का कारण देती हैं। ये सारी पहचान (आइडेंटिटीज) वहां भी लगाई जाती हैं जहां इनकी कोई आवश्यकता नहीं होती। हम बस इनके साथ पैदा होते हैं। क्या हमारी पहचान हमारे विचारों और कर्मों से नहीं होनी चाहिए? भारत के मनोरंजन उद्योग में आकर्षक दिखने कामूल आधार है गोरा होना और आकर्षक होना स्वीकार्य किए जाने यह पहली कसौटी है।” त्वचा के रंग को लेकर बॉलीवुड हमेशा से ही विरोधाभासी तरीके से काम करता रहा है। न केवल गहरे रंग वाली अभिनेत्रियों को गरीब महिलाओं का किरदार निभाने के लिए बुलाया जाता है बल्कि ऐसे किरदारों के लिए गोरी महिलाओं को काले रंग से भी रंगा जाता है। बहुत पहले 1970 के दशक में भारत के महानतम फिल्मकार सत्यजीत रे ने एक बहुत ही गोरी अभिनेत्री सिमी ग्रेवाल को एक बांग्ला फिल्म‘अरण्यदिन रात्रि’ में आदिवासी औरत का किरदार निभाने के लिए साइन किया था। ग्रेवाल कहती हैं कि उन्हें इसके लिए शूटिंग के दौरान हर रोज सिर से पांव तक काले रंग से रंगा जाता था।
आज के समय में अभिनेत्री भूमि पेडणेकर को 2019 में फिल्म‘बाला’ के लिए एक गहरे रंग की त्वचा महिला का किरदार निभाने के लिए काले रंग से रंगा गया। सोशल मीडिया में इस बात को लेकर बहुत हंगामा हुआ कि गहरी त्वचा वाली अभिनेत्री को क्यों साइन नहीं किया गया। ‘मनमर्जियां’, ‘केदारनाथ’ और ‘जजमेंटल है क्या’ जैसी फिल्मों की पटकथा लेखिका कनिका ढिल्लों मानती हैं कि सिनेमा और समाज में रंग को लेकर पूर्वाग्रह में एक हल्का सा परिवर्तन आया है। वह कहती हैं, “मैं ऐसा मानती हूं कि बॉलीवुड में विशेषकर पॉप कल्चर रिवायत की जगह हमें सौंदर्य को लेकर एक ज्यादा समावेशी विचार को अपनाने की आवश्यकता है।” कनिका अखबारों के विवाह संबंधी विज्ञापनों से भी ‘फेयर’ शब्द को गायब होते देखना चाहती हैं। वह कहती हैं, “क्या कभी ऐसा दिन आ सकता है जब दुल्हे विवाह संबंधी विज्ञापनों द्वारा फेयर (गोरी) साथी ढूंढना बंद करेंगे। प्रियंका चोपड़ा ब्राउन स्किन वाली ग्लोबल आइकन हैं! भारतीय सौंदर्य की एक आइडिअल हैं! और दीपिका पादुकोण तो इस देश में भी सौंदर्य की पराकाष्ठा मानी जाती हैं। तो सुनिश्चित है कि ये अभिनेत्रियां वर्तमान आइकन हैं और केवल गोरी स्किन वाली महिला ही खूबसूरत होती है ऐसी धारणा के मुंह पर एक जोरदार थप्पड़ है। अब समय है कि हम हमारी अपनी त्वचा में ही खूबसूरत लगें।” कौतूहल का विषय है कि बॉलीवुड में पुरुष कलाकारों को रंग संबंधी पूर्वाग्रह का सामना नहीं करना पड़ता। नवाजुद्दीन सिद्दीकी कहते हैं कि उन्हें कभी उनके रंग को लेकर नहीं टोका गया।(navjivan)
रायपुर जिले में लॉकडाउन को लेकर जिला प्रशासन द्वारा जारी किया गया आदेश....22 जुलाई से 28 जुलाई तक रहेगा लॉकडाउन. कलेक्टर रायपुर ने जारी किये आदेश
कृषि उत्पाद व्यापार और वाणिज्य अध्यादेश 2020 वापस लेने का अनुरोध
रायपुर, 19 जुलाई। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर उनसे भारत सरकार द्वारा जारी कृषि उत्पाद व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) अध्यादेश 2020 को वापस लेने का आग्रह किया है। मुख्यमंत्री ने पत्र में लिखा है कि भारत सरकार द्वारा 5 जून को जारी यह अध्यादेश कृषकों के हित में नहीं है, रोजगार के अवसरों को कम करने वाला और संघीय ढांचे की मान्य परंपराओं के विपरीत है।
मुख्यमंत्री ने पत्र में लिखा है कि छत्तीसगढ़ कृषि प्रधान राज्य है, राज्य की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है और लगभग 70 प्रतिशत जनसंख्या कृषि गतिविधियों में संलग्न है। राज्य में लगभग 85 प्रतिशत लघु एवं सीमांत कृषक है तथा राज्य के लगभग तीन चैथाई क्षेत्र पिछड़े एवं वन क्षेत्र हंै, जहां पर राज्य के लगभग 80 प्रतिशत अनुसूचित जाति, जनजाति एवं पिछड़ा वर्ग के लोग निवासरत हंै।
उन्होंने लिखा है कि प्रदेश सरकार द्वारा उन्नत तकनीक, गुणवत्तायुक्त बीज तथा कृषकों के हित में संचालित विभिन्न योजनाओं के माध्यम से धान, मक्का, गन्ना तथा सोयाबीन के उत्पादन में उल्लेखनीय प्रगति हुई है, प्रदेश में मुख्य रूप से धान की फसल ली जाती है। कृषकों द्वारा उत्पादित धान का उपार्जन समर्थन मूल्य पर भारतीय खाद्य निगम की ओर से छत्तीसगढ़ राज्य सहकारी विपणन संघ मर्यादित रायपुर द्वारा किया जाता है और प्रदेश से भारतीय खाद्य निगम को देश के लिए उसना चावल की आपूर्ति की जाती है, जिसके फलस्वरूप देश में लोगों को खाद्यान्न की आपूर्ति सुनिश्चित हो सकी है और देश कोविड-19 जैसी महामारी से विश्वास पूर्वक लडऩे में सक्षम हो सका है।
श्री बघेल ने पत्र में लिखा है कि भारत सरकार द्वारा 05 जून 2020 को जारी कृषि उत्पाद व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) अध्यादेश 2020 द्वारा कृषक एवं व्यापारी को कृषक उत्पाद के क्रय-विक्रय करने की स्वतंत्रता देते हुए मंडी प्रांगण-उपमंडी प्रांगण के बाहर विक्रय अधिसूचित कृषि उपज के क्रय-विक्रय पर मंडी शुल्क से छूट एवं बगैर लाइसेंस के स्थायी खाता संख्या कार्डधारी व्यापारी को कृषि उपज के क्रय-विक्रय करने की अनुमति दी गई है। वैविध्यपूर्ण हमारे देश के भिन्न-भिन्न भू-भागों पर भिन्न-भिन्न किस्म की कृषि उपज उत्पादित की जाती है और जिनके विपणन की रीतियों कृषकों के तत्स्थानी स्वभाव एवं स्थितियों से प्रभावित होती है और यही कारण है कि प्रत्येक राज्य सरकार द्वारा संविधान की सातवीं अनुसूची की राज्य सूची 2 की प्रविष्टि 14, 26, 28 एवं 66 के अनुसार अपने प्रदेश की कृषि उपजों एवं स्थानीय विपणन रीति को दृष्टिगत रखते हुए मंडी अधिनियम बनाकर कृषि उपजों के विपणन को इस प्रकार विनियमित किया गया है कि बाजार की कुरीतियों को समाप्त कर असंगठित कृषकों का हित संरक्षित किया जा सके।
मुख्यमंत्री ने पत्र में लिखा है कि कृषक संसार का वह अनोखा उत्पादक है जो कि अपने उत्पादन का मूल्य निर्धारित नहीं कर सकता है अपितु कृषक के उत्पादन का मूल्य बाजार द्वारा निर्धारित होता है। कृषि उत्पादन में वृद्धि के समस्त प्रयत्न तब तक कृषक हित में निरर्थक एवं अलाभकारी है, जब तक कृषि उपज का समुचित मूल्य पर विपणन सुनिश्चित न हो सके। इसी उद्देश्य की प्राप्ति हेतु मंडी अधिनियम लागू किया गया है, जिसमें समय-समय पर भारत सरकार द्वारा दिए गए निर्देशानुसार संशोधन कर निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र में पारदर्शी एवं प्रतिस्पर्धात्मक प्रणाली को विकसित करने हेतु एकल पंजीयन, आनलाईन ट्रेडिंग, निजी मंडी प्रांगण, निजी उपमंडी प्रांगण, सीधी खरीदी, एकल बिन्दु मंडी शुल्क तथा पशुधन के विपणन को भी मंडी अधिनियम के अंतर्गत लाए जाने का प्रावधान-संशोधन किया गया है।
श्री बघेल ने पत्र में लिखा है कि मंडी अधिनियम वर्तमान परिवेश में सर्वथा युक्ति-युक्त है तथापि यदि कोई सुधार वांछित या अपेक्षित हो तो राज्य सरकार वैसा करने हेतु सक्षम एवं तत्पर है। मंडी अधिनियम को अपरोक्ष रूप से प्रभावहीन कर दिए जाने से असंगठित क्षेत्र के लाखों कृषकों को निरंकुश बाजार शक्तियों के अधीन कार्य करने विवश होना पड़ेगा। प्रभावशील मंडी अधिनियम के अंतर्गत कृषक अपनी कृषि उपज को प्रदेश एवं प्रदेश के बाहर कहीं भी विक्रय कर सकता है और कृषक से कोई मंडी शुल्क नहीं लिया जाता है। जारी अध्यादेश के अनुसार मंडी प्रांगण के भीतर मंडी शुल्क लागू रहने एवं मंडी प्रांगण के बाहर मंडी शुल्क से छूट होने से असमतुल्य परिस्थिति निर्मित होगी एवं व्यापारी शुरूआत में कृषकों को लुभाने के लिए मंडी प्रांगण में प्रचलित कीमत से अधिक कीमत, मंडी प्रांगण के बाहर प्रदाय कर सकता है, जिससे मंडी प्रांगण में आवक पूरी तरह से बंद होने की संभावना है। मंडी बंद होने से मंडियों में कार्यरत हजारों हम्मालों, तुलैयों तथा अपरोक्ष रूप से जुड़े हुए व्यवसायियों के बेरोजगार होने तथा हजारों अधिकारियों-कर्मचारियों की सेवाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पडऩे की संभावना है जो कल्याणकारी राज्य के हित में नहीं है। वैसे भी कोविड-19 के कारण देश में रोजगार के अवसर कम हुए हैं।
मुख्यमंत्री ने लिखा है कि मंडी बंद होना कृषकों के दीर्घकालिक हित में नहीं होगा क्योंकि मंडी प्रांगण के भीतर कृषक के कृषि उपज का मूल्य निर्धारण खुली नीलामी पद्वति-इलेक्ट्रॉनिक निविदा बोली से होता है, जिससे उनकी उपज का प्रतिस्पर्धात्मक मूल्य प्राप्त होता है। मंडी प्रांगण के बाहर बिना नीलामी प्रतिस्पर्धा एवं प्रचलित बाजार भाव की जानकारी के अभाव में कृषकों को उपज की कम कीमत प्राप्त होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
श्री बघेल ने प्रधानमंत्री श्री मोदी से अनुरोध किया है कि जारी अध्यादेश कृषक हित में नहीं होने एवं रोजगार के अवसर को कम करने तथा संघीय ढांचे की मान्य परंपरा के विपरीत होने के कारण वापस लिए जाने योग्य है। मुख्यमंत्री ने विश्वास व्यक्त किया है कि प्रधानमंत्री द्वारा इस संबंध में कृषकों के हित में त्वरित निर्णय लिया जाएगा।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
भिलाई नगर, 19 जुलाई। कोरोना संक्रमण की स्थिति के मद्देनजर राज्य शासन ने जिला प्रशासन को निर्णय लेने के संबंध में निर्देशित किया था। सभी स्थितियों के मंथन के पश्चात एवं नागरिक समूहों से चर्चा उपरांत 23 से 29 जुलाई तक लाकॅडाऊन लगाने का निर्णय लिया गया। उल्लेखनीय है कि आज कलेक्टर डॉ. सर्वेश्वर नरेंद्र भूरे ने राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों एवं व्यापारिक संघों के प्रतिनिधियों से चर्चा की।
उन्होंने जिले में कोरोना संक्रमण की स्थिति की विस्तार से जानकारी भी दी। कलेक्टर ने बताया कि फिलहाल जिले में कोरोना से संक्रमित लोगों का आंकड़ा तीन सौ से आगे निकल चुका है। इनमें से 60 लोग ऐसे हैं जिनकी कोई ट्रैवल हिस्ट्री नहीं है। उन्होंने कहा कि ऐसे में कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए जिला प्रशासन द्वारा तेजी से प्रयास किये जा रहे हैं। हर दिन पांच सौ से अधिक सैंपल लिए जा रहे हैं और इसे शीघ्र ही एक हजार तक बढ़ा दिया जाएगा। व्यापारिक संघों ने तथा राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों ने इस संबंध में अपना मत रखा। बैठक में महापौर धीरज बाकलीवाल ने कहा कि नागरिकों के हितों को देखते हुए जिला प्रशासन द्वारा सर्वोच्च हित में जो भी निर्णय लिया जाएगा। उसके सख्ती से अनुपालन से कोरोना संक्रमण को रोक पाने की दिशा में अहम कार्य कार्य होगा। बैठक के पश्चात लाकॅडाऊन का निर्णय लिया गया।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 19 जुलाई। राज्य में आज 159 नए कोरोना मरीज मिलने की जानकारी रात 8.30 बजे राज्य शासन ने दी है। इनमें रायपुर जिले से 36, सरगुजा 26, बस्तर 25, कोरबा 14, दुर्ग 8, बलौदाबाजार व कांकेर से 7-7, बेमेतरा 6, दंतेवाड़ा 5, कोंडागांव, नारायणपुर, बिलासपुर, और जांजगीर-चांपा 4-4, राजनांदगांव 3, कोरिया 2, गरियाबंद, रायगढ़, मुंगेली, और बलरामपुर 1-1 पॉजिटिव मरीज पाए गए। उन्हें भर्ती कराने की प्रक्रिया जारी है।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर, 19 जुलाई। दो दिन पहले उधारी मांगने के विवाद पर हुई युवक की हत्या के आरोपी को आज सिटी कोतवाली पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।
17 जुलाई को की रात कोतवाली थाने के अंतर्गत डायमंड किराना स्टोर के पास आरोपी नवल दुबे कुछ लोगों के साथ बैठा हुआ था। इसी दौरान साइकिल से उसका परिचित मृतक प्रदीप पहुंचा। मृतक ने नवल को कुछ पैसे दे रखे थे जिसे वह वापस मांग रहा था। साइकिल से उतरने के बाद उसने नवल से कहा कि यहां क्यों बैठे हो। इस पर बात बढ़ी और आरोपी ने अपने पास रखे धारदार हथियार से प्रदीप वर्मा पर हमला कर दिया। अन्य लोगों ने प्रदीप के रिश्तेदारों को फोन पर खबर की।
सूचना मिलने पर पहुंचे परिवार के लोगों ने उसे सिम्स चिकित्सालय में भर्ती कराया। वहां उसकी स्थिति गंभीर बताई गई तो परिजन उसे एक निजी अस्पताल केयर एंड क्योर लेकर गये। वहां उपचार के दौरान रात में उसकी मौत हो गई।
सीएसपी निमेश बरैया और थाना प्रभारी कलीम खान ने एक टीम बनाकर आरोपी की तलाशी शुरू की। आसपास के लोगों ने घटना के बारे में भ्रामक जानकारी दी जिससे आरोपी और मृतक के बीच क्या विवाद था इसकी जानकारी नहीं मिली। पुलिस को पता चला कि दो दिन पहले प्रदीप ने नवल से अपने रुपये वापस मांगे थे। नवल ने कहा कि उसके पास अभी सिर्फ सौ रुपये हैं। इसके बाद दोनों के बीच विवाद हुआ था। इसके बाद 17 जुलाई की शाम हत्या की वारदात हो गई।
पुलिस ने आज घेराबंदी करके आरोपी को गिरफ्तार कर लिया।
-मृणाल पाण्डे
फ्रांसीसी कहावत हैः चीजें जितनी बदलती हैं, उतनी ही पहले जैसी होती जाती हैं। 2019 में बीजेपी ने लोकसभा चुनावों में भारी जीत दर्ज कराई। पर इस बीच जिन विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को बहुमत मिला था, उनको भी मौका पाते ही उसने धर दबोचा। नतीजतन बहुमत के बावजूद गोवा या गुजरात में उसकी बजाय भाजपानीत सरकारें बन गईं। कुछ शपथ लेकर राज-काज संभाल चुकी राज्य सरकारें (कर्नाटक, मध्य प्रदेश की) सामदाम-दंड-भेद से गिरा दी गईं। अभी भी कुछ गिरने की कगार पर बताई जा रही हैं (राजस्थान, महाराष्ट्र)। बंगाल, बिहार के चुनाव सर पर हैं, उनके नतीजे और उन नतीजों के बाद के नतीजे देखना राजनीतिशास्त्र के अध्येताओं के लिए काफी रोचक रहेगा।
कोविड का डरावना असर भी हमारी चुनावी राजनीति का चाल, चरित्र, चेहरा और चिंतन नहीं बदल सका है, इसके दो दुखद उदाहरण हैं: मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में जाने और अब राजस्थान में बगावती तेवर देखते हुए राज्य के पार्टी प्रमुख और उपमुख्यमंत्री- जैसे दो महत्वपूर्ण पदों से सचिन पायलट का यकायक हटाया जाना। अब तक एक स्थापित परंपरा बन चली है कि अक्सर चुनावी नतीजों से राज्यवार जिस दल की सरकार और उसके वादों के मुताबिक जैसे आमूलचूल बदलाव की गणनाएं टीवी के पंडित लगाते हैं, वह अक्सर फलीभूत नहीं होते।
कोविड के बीच भी खास तौर से बुक किए विमानों से जो कल के आयाराम थे, किसी रिसॉर्ट ले जाए जाते हैं जहां से राजकचोरी खाकर वे गया राम बन कर निकलते हैं और बिना सुर ताल के कल तक अपनी मातृ पार्टी रही संस्था के सार्वजनिक बखिये उधेड़ने लगते हैं। मध्य प्रदेश में यह मंजर सबसे साफ दिखा, जहां कोविड के बढ़ते सायों के बीच भी काबीना की बनवाई अटकी रही, जब तक कोई टाइगर एक अभयारण्य का वरदहस्त त्याग कर दूसरे अभयारण्य में जाकर पुराने रखवालों के खिलाफ जम कर न दहाड़ने लगा।
अब तक बंगाल में दीदी ने अपने तृणमूल दल को और केरल में विजयन ने सत्ता में मार्क्सवादी गठजोड़ को कस कर जमाए रखा है। असम में पूर्ण बहुमत रखने वाली बीजेपी भी कांग्रेस के लंबे शासन को हटा कर सत्ता में डटी दिखती है। लेकिन कल तक कांग्रेस में रहे उसके शीर्ष नेता पुराने आजमूदा हथकंडों से विपक्षी दल हिलवा कर हिमालयी राज्यों पर केंद्र की जकड़बंदी को और भी सख्त बनाने में जुटे हैं। कोविड की मार न होती तो नागरिक रजिस्टर का विभेदकारी मुद्दा भी जोरों से धुकाया जाता, इसमें संशय नहीं।
उधर, गैर बीजेपी राज्य सरकारों में ईमानदार अंतर्मंथन से सूबे के भीतरी झगड़े समय पर भीतर ही सुलझाने की इच्छा और क्षमता चिंताजनक तौर से कम दिख रही है। ‘जे बिनु काज दाहिने बाएं’ हिसाबी-किताबी किस्म के विश्लेषक जो कहें, शीर्ष पर दो बड़ी पार्टियों के सनातन झगड़ों के बीच राज्यस्तर पर कई महत्वपूर्ण फैसले सलट नहीं पा रहे।
कोविड से जूझने और प्रवासी मजदूरों को अन्न-धन देने की योजनाएं बिना राज्य सरकारों को भरोसे में लिए अगला चुनाव जीतने की नीयत से बनाई जा रही हैं और पुलिस की दमनकारिता को शह देकर जनता की छटपटाहट को लोकतांत्रिक आवाज नहीं मिल रही। सत्ता की मलाई कुछेक केंद्र के चहेते राज्यों के दल और उनके वे एकछत्र नेता काट रहे हैं, जिनके तेवर दिल्ली का मुख देखकर हर पल बदलते रहते हैं।
यह बात सब मानते हैं कि अगले क्षेत्रीय चुनावों में दोनों राष्ट्रीय दलों को मुंह में तिनका दबा कर ताकतवर क्षेत्रीय दलों और उनके वोटों के सौदागरों से चुनावी गठजोड़ के लिए चिरौरी करनी होगी। यह भी नितांत संभव है कि कुछ क्षेत्रीय दल जनता पार्टी युग में लौट कर चुनाव आते-आते अपने ही बीच से किसी एक क्षेत्रीय क्षत्रप को केंद्रीय धुरी बना कर राष्ट्रीय चुनावों में अपना चूल्हा अलग सुलगाने की तैयारी करने लगें।
जब वैचारिकता का राजनीति में चौथा उठाला हो चुका हो तो कैसे वैचारिक मतभेद, कैसे वैचारिक विभाजन? अस्सी पार के अभी भी दमखम वाले शरद पवार इस आशय की बात कह भी चुके हैं कि केंद्र को बड़ी चुनौती देने के लिए सभी विपक्षी दलों को जल्द से जल्द अपना संगठन बना लेना चाहिए।
उत्तर कोविड काल में बीजेपी के प्रचारक प्रकोष्ठ हालांकि शीर्ष नेता की चुनावी पकड़ एकदम पक्की होने का दावा कर रहे हैं, पर 2014 या 2019 की बीजेपी अब पुरानी तहरीरों, सीमा की सुरक्षा के लिए एकजुट होकर देश बचाने के नारों के बीच रंगारंग वक्तृता से जनता को दोबारा उसी तरह रिझा सकेगी इसमें संशय है। थैलियां चाहे जितनी बड़ी हों, कोविड संक्रमण के डर से रैलियां पहले की तरह करना नाममुकिन हो गया है।
दुनिया की आर्थिक हालत खस्ता है और चीन तथा अमेरिका- दो महाशक्तियों के बीच शीतयुद्ध का तनाव गहरा रहा है। चीन का सामूहिक हुक्का-पानी बंद करने का नारा आकर्षक भले हो, पर आसान नहीं। पुरानी चुनावी रैलियों में बीजेपी ने भरोसा दिलाया था कि जैसे-जैसे नई अर्थव्यवस्था और विदेशी निवेश रंग लाएंगे शहरी उद्योगों का विकास होगा, ग्राम समाज की अंधविश्वासी और प्रतिगामी सामाजिक परंपराएं टूटेंगी, खेती की बजाय उद्योग-धंधे आर्थिक धुरी बन जाएंगे। महिलाएं तरक्की करती हुई हर क्षेत्र में पैठ बनाएंगी।
जब लिंग, जाति, क्षेत्र वगैरा के भेदभाव कम होंगे तब सारे समाज में एक नई रोशनी आएगी। बड़ी आर्थिक क्रांति के बाद सामाजिक क्रांति तो खुद-ब-खुद हो जाया करती है इसलिए हम चीन की टक्कर की एशियाई ताकत बन कर उभरेंगे। लेकिन पिछले चार महीनों में हमने इस सपने को धुंधलाते देखा है। देशों के बीच नस्लवादी आर्थिक गुटबंदियां या सोच और सदियों पुरानी साम्राज्यवादी परंपराओं की जड़ें आसानी से नहीं खत्म होतीं।
कई बार ऊपरी छंटाई के बाद बदलाव का भ्रम बन जाता है। कोई बड़ी चुनौती सामने आई नहीं, कि पुरानी सांस्कृतिक जड़ें फिर फुनगियां पत्ते फेंकने लगती हैं: वही श्वेत-अश्वेत टकराव, चीन की वही पड़ोसी सीमा को पार कर जमीन हथियाने की साम्राज्यवादी आदत और यूरोप बनाम मुस्लिम विश्व के सदियों पुराने राग-विराग। घर भीतर देखें तो यहां भी वही मंदिर, मंडल, वही सरकारी खजाने खाली कराने और सरकारी बैंकों को दिवालिया कराने वाली सब्सिडियां, वही लैपटॉप, मिक्सी, टीवी और मुफ्त अनाज का बेशर्म वितरण फिर हो रहा है। विधायकों को रिसॉर्ट भेजकर जबरन तोड़ने की कोशिशें भी जारी हैं।
शंकराचार्य ने कहा था- ब्रह्म ही सच है, जगत मिथ्या है। भारत में भी लगता है चुनाव ही सच है, कोविड और गरीबी मिथ्या। उज्जवला योजना, बेटी पढ़ाओ सरीखी योजनाओं के गुब्बारों से रीझी महिलाओं के सघन वोट बैंक को साम-दाम से समेट कर बीजेपी दूसरी पारी जीत गई और केरल में भी लाल किताब के बाहर जाकर खालिस भारतीय सुपरस्ट्रक्चर के एझवा-ईसाई-नायर-लीगी जैसे वोट बैंकों का महत्व मार्क्सवादी सर माथे रख कर सत्ता में आ गए।
रही मुस्लिम वोट बैंक की बात। बीजेपी तो उसका मोह-छोह कबका त्याग चुकी है। पर मुसलमान क्या सोचता है? खासकर काश्मीर के विभाजन और मंदिर मसले पर सरकारी पक्ष की जीत के बाद? इस पर शेष दलों की नजर है। आजादी के बाद कुछ दशकों तक जो मुसलमान क्रांति कामना रखता था, कम्युनिस्ट बन जाता था। लेकिन नाना थपेड़े खाकर अब वह राज्यवार अलग-अलग तरह से नए भावताव की सोच रहा है।
देश में जिन शब्दों का पिछले दो सालों में सबसे ज्यादा अवमूल्यन हुआ है, धर्मनिरपेक्षता उनमें से एक है। शाब्दिक स्तर पर जिन दलों ने धर्मनिरपेक्ष राजनीति अंगीकार की भी हुई है, जैसे कि जेडीयू, मुसलमान पाता है कि वह उनके राजकाज को कोई आंतरिक धार्मिक संतुलन नहीं देती। न ही उसकी प्रशासकीय मशीनरी में सेक्युलर कर्तव्य का बोध कराती है जो केंद्र से भिन्न हो।
चुनाव आता है तो धर्म की बातें करने वाले भी धर्म के नाम पर कुछ स्वयंभू किस्म के साधु-साध्वियों की अनकहनी बातों को खंडित करने की बजाय हर मंच पर उनकी मौजूदगी सनिुश्चित करने लगते हैं। संगीन आतंकी हमलों के चार्जशीटेड अपराधियों को नई जांच बिठा कर मुक्त करवा दिया गया है, जबकि कई उदारवादी समाजसेवी एकदम पोच किस्म के मुकदमों में फंस कर सलाखों के भीतर हैं।
कुल मिलाकर हमारी महत्तर राजनीति कभी योग और कभी (उप)भोग के रूपों को हिंदुत्ववादी भाषा से जोड़ कर जाहिर कर रही है कि उसे सचमुच के धर्म की गहरी समझ कतई नहीं है। धर्म और धर्मनिरपेक्षता दोनों की सारी बुराइयां चुनावी फायदे के लिए हमारे राजनीतिक दल बेशर्मी से अंगीकार करने लगे हैं। असली मूल्य इतनी बुरी तरह से परे कर दिए हैं कि जब राहुल गांधी सत्यनिष्ठा और अहिंसक आंदोलनों का ज़िक्र करें तो उनकी खिल्ली उड़ाई जाती है और जब अनुराग ठाकुर देश के गद्दारों का विवादास्पद नारा उठाते हैं तो उसे कानून का उल्लंघन नहीं माना जाता, उल्टे उसकी प्रतिध्वनियां गली-कूचों में जल्द ही गूंजने लगती हैं।
यही सब देख-समझ कर अल्पसंख्य समुदायों और दलितों की प्राथमिकता फौरी तौर से ही सही, अपने जान-माल की सुरक्षा और बीजेपी को सत्ता से दूर रखने की सामर्थ्यवाली क्षेत्रीय पार्टी की मदद करने की बन चली है। केंद्र में विपक्षी गठजोड़ को सत्ता में लाने का सपना देखने वालों के आगे जनता का ईमानदार सवाल यह है कि क्या वे इस बात का ठोस सबूत दे सकते हैं कि आने वाले समय में राष्ट्रीय दलों का क्षेत्रीय दलों से समन्वय बन गया, तब ऐसे समय में विपक्षी गठजोड़ क्षेत्रीय और राष्ट्रीय हितों का एक धड़कता हुआ प्राणवान समन्वय किस तरह कायम कर सकेगा?(navjivan)
रायपुर, 19 जुलाई। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रदेशवासियों को हरेली तिहार की बधाई और शुभकामनाएं दी है।
आज यहां हरेली की पूर्व संध्या पर जारी अपने शुभकामना संदेश में श्री बघेल ने कहा है कि हरेली छत्तीसगढ़ के जन-जीवन में रचा-बसा खेती-किसानी से जुड़ा पहला त्यौहार है। इसमें अच्छी फसल की कामना के साथ खेती-किसानी से जुड़े औजारों की पूजा की जाती है। पूजा कर हम धरती माता का हमारे भरण पोषण के लिए आभार व्यक्त करते हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा है कि इस वर्ष हरेली का त्यौहार प्रदेशवासियों के लिए ‘गोधन न्याय योजना’ की सौगात लेकर आ रहा है। हरेली से राज्य सरकार की इस महत्वाकांक्षी और देश की अपनी तरह की पहली अनूठी योजना का शुभारंभ होने जा रहा है। जिसे लेकर लोगों में अभूतपूर्व उत्साह है। श्री बघेल ने कहा कि गांव-गांव में हरेली के पर्व को बड़े उत्साह और उमंग से मनाया जाता है। नागर, गैंती, कुदाली, फावड़ा समेत कृषि के काम आने वाले सभी तरह के औजारों की साफ-सफाई और पूजा की जाती है। पारंपरिक तरीके से लोग गेड़ी चढक़र हरेली की खुशियां मनाते हैं। प्राचीन मान्यता अनुसार सुरक्षा के लिए घरों के बाहर नीम की पत्तियां लगाई जाती हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि छत्तीसगढ़ की प्राचीन संस्कृति और परंपरा हमारा गौरव है। छत्तीसगढ़ सरकार ने अपनी संस्कृति और परम्परा को सहेजने के लिए कई फैसले लिए है। हरेली त्यौहार के दिन सार्वजनिक अवकाश घोषित किया गया है। नरवा, गरवा, घुरवा, बारी योजना और गोधन न्याय योजना लागू कर पारंपरिक संसाधनों को पुनर्जीवित कर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने का काम किया जा रहा है। पुराने तरीकों को वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार उपयोगी बनाया जा रहा है। मुख्यमंत्री ने कहा कि परंपराओं को आधुनिक जरूरतों के अनुसार ढालना सामूहिक उत्तरदायित्व का काम है। उन्होंने आशा व्यक्त की है कि सभी छत्तीसगढ़वासी लोक मूल्यों को सहेजते हुए एक नये विकसित छत्तीसगढ़ का सपना साकार करने में सहभागी होंगे।
नई दिल्ली, 19 जुलाई। देश में कोरोना वायरस का कहर जारी है। इस बीच सर गंगा राम अस्पताल के डॉक्टर अरविंद कुमार ने दावा किया है कि कोरोना वायरस का सामुदायिक संक्रमण शुरू हो चुका है।
चेस्ट सर्जरी सेंटर के चेयरमैन डॉक्टर अरविंद कुमार ने कहा कि पिछले कुछ समय से सामुदायिक संक्रमण फैल रहा है। मुंबई के धारावी और दिल्ली के कुछ क्षेत्रों में ऐसी स्थिति है। उन्होंने कहा कि वह भारतीय मेडिकल एसोसिएशन से पूरी तरह सहमत हैं कि भारत में सामुदायिक संक्रमण शुरू हो गया है।
बता दें कि इंडियन मेडिकल असोसिएशन का कहना है कि देश में कोरोना का कम्यूनिटी ट्रांसमिशन शुरू हो चुका है। यानी हालात आगे और बिगड़ सकते हैं। कम्यूनिटी ट्रांसमिशन में संक्रमित शख्स को ये जानकारी नहीं हो पाएगी कि उसे वायरस कहां से मिला। ऐसे में वायरस का सोर्स ढूंढना मुश्किल हो जाता है।
गौरतलब है कि देश में कोरोना वायरस का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर जारी ताजा आंकड़ों के मुताबिक, एक बार फिर कोरोना वायरस के आंकड़ों ने सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। देश में पिछले 24 घंटे में कोरोना के 38,902 नए मामले सामने आए हैं और 543 लोगों की मौत हो गई है।
देश में कुल कोरोना संक्रमितों की संख्या बढ़कर 10,77,618 हो गई है। इसमें 3,73,379 केस सक्रिय हैं। 6,77,423 लोगों को इलाज के बाद अस्पताल से छुट्टी दी जा चुकी है। वहीं, कोरोना की चपेट में आकर देश में अब तक 26,816 लोगों की जान जा चुकी है।(navjivan)
नई दिल्ली, 19 जुलाई. ('छत्तीसगढ़' संवाददाता)। कांग्रेस पार्टी ने आज हिंदुस्तान की जमीन पर चीनी कब्जा जारी रहने का आरोप लगाते हुए सरकार से कड़े सवाल पूछे हैं. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने आज मीडिया के सामने पार्टी की बात रखी.
उन्होंने कहा- भारत की सरजमीं पर चीनी कब्ज़े का दुस्साहस लगातार बना है। चीन डेपसाँग प्लेंस तथा पैंगोंग त्सो लेक इलाके में न केवल जबरन कब्ज़ा बनाए है, बल्कि चीन के अतिरिक्त सैन्य निर्माण से साफ तौर पर खतरे का आभास भी है। भारत पर चीनी कब्जा नाकाबिले बर्दाश्त व नामंजूर है। भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा व भूभागीय अखंडता पर कोई समझौता स्वीकार नहीं हो सकता ।
सुरजेवाला ने कहा- खेद की बात यह है कि मोदी सरकार व प्रधानमंत्री चीनी दुस्साहस और कब्ज़े को लेकर केवल मीडिया के माध्यम से भ्रम का जाल पैदा करने में लगे हैं, न कि निर्णायक तौर से पूर्वतया यथास्थिति बनाए रखने का दृढ़ निर्णय लेने के। मोदी सरकार द्वारा फैलाया जा रहा भ्रमजाल न देश सेवा हो सकता और न ही राष्ट्रभक्ति।
उन्होंने कहा- चीनी घुसपैठ के तथ्य इस प्रकार हैं, जो मोदी सरकार के बयानों का झूठ जाहिर करते हैं:-
1. 19 जून, 2020 को प्रधानमंत्री, श्री नरेंद्र मोदी ने सर्वदलीय बैठक में कहा कि - ‘‘न तो हमारी सीमा में कोई घुसा है, न ही कोई घुसा हुआ है, न ही हमारी कोई पोस्ट किसी दूसरे के कब्ज़े में है।’’
2. 26 जून, 2020 की शाम को ही चीन में भारत के राजदूत ने भारत की एक न्यूज़ एजेंसी को बयान देते हुए कहा कि ‘चीन अपनी ज़िम्मेदारी समझ लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल में चीन की तरफ अपनी सीमा में पीछे हट जाए।'
3. 17 जून, 2020 को विदेश मंत्री, डॉ. एस. जयशंकर ने लिखित तौर से स्वीकार किया कि चीन ने ‘गलवान घाटी’ में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल के पार भारतीय क्षेत्र में कब्ज़ा कर रखा है।’
4. 20 जून व 25 जून, 2020 को विदेश मंत्रालय ने दो अलग-अलग लिखित बयानों में ये स्वीकार किया कि चीन ने मई-जून, 2020 में भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ की है।
5. 17 और 18 जुलाई, 2020 को रक्षा मंत्री, श्री राजनाथ सिंह के दौरे के बाद 17 जुलाई, 2020 की शाम को उन्होंने एक सनसनीखेज और आश्चर्यचकित ट्वीट किया और कहा कि, ‘‘जो कुछ भी अब तक बातचीत की प्रगति हुई है, उससे मामला हल होना चाहिए। देखिए फिर आगे कहते हैं – “कहां तक हल होगा, इसकी गारंटी नहीं दे सकता।...’’
सुरजेवाला ने कहा- ताजा तथ्य पांच महत्वपूर्ण बात दर्शाते हैं कि:-
I. सैटेलाइट तस्वीर, जिसकी प्रतिलिपि मैं दे भी रहा हूं, यह साफ है कि चीन ने अब भी डेपसाँग व दौलत बेग ओल्डी इलाके में भारतीय सीमा में ना केवल कब्जा कर रखा है, परंतु लगातार भारत की कब्जा की हुई सरजमीं पर सैन्य निर्माण कर रहा है।
II. यही नहीं, चीन पैट्रोलिंग प्वाइंट 10 से पैट्रोलिंग प्वाइंट 13 तक भारतीय सेना द्वारा भारतीय पैट्रोलिंग में बाधा पैदा कर रहा है।
III. पैंगोंग त्सो लेक इलाके में अभी भी चीन ने फिंगर 8 से फिंगर 4 के बीच पहाड़ियों पर भारतीय सीमा के 8 किलोमीटर अंदर तक कब्जा कर रखा है, जहां 3,000 के करीब चीनी सैनिक मौजूद हैं। इसके विपरीत भारत ने फिंगर 4 पर स्थिति आईटीबीपी के एडमिनिस्ट्रेटिव बेस से पीछे मोदी सरकार ने भारतीय सेना को पीछे हटा फिंगर 3 व 2 के बीच में ले आई है।
IV. चीन ने डेपसाँग के नज़दीक उनके खुद के क्षेत्र में स्थित नारी-गुंसा (Ngari-Gunsa Air Strip), जो एक नागरिक हवाई पट्टी थी, उसे अब एक सैन्य हवाई पट्टी में बदल कर निर्माण कर लिया है, जो भारतीय सीमा के ठीक बिल्कुल ऊपर मौजूद है, जिससे हमें सामरिक खतरा है।
V. चीन ने सैनिकों के दो डिविज़न ( यानी 20,000 सैनिक से ज्यादा) को लद्दाख में भारतीय इलाके के नज़दीक तैनात कर रखा है व बड़ी मात्रा में युद्ध सामग्री जमा कर ली है। अगर ये सब खतरे का एहसास नहीं तो क्या है?
सुरजेवाला ने कहा- इसलिए प्रधानमंत्री और सरकार से हमारे 5 सवाल:-
1. देश के लगभग हर समाचार पत्र, आर्मी जनरल व सैटेलाइट तस्वीरों व अब रक्षा मंत्री के खुद के बयान द्वारा प्रधानमंत्री जी के हमारी सीमा में चीनी घुसपैठ न होने के बयान को साफ तौर से झुठलाया जा रहा है? क्या प्रधानमंत्री जी ने सर्वदलीय बैठक को चीनी घुसपैठ के बारे में सही तथ्य नहीं बताए?
2. देश के रक्षा मंत्री द्वारा दिए गए ट्वीटर पर बयान का मतलब है कि चीन से बातचीत के द्वारा हल निकलने की कोई गारंटी नहीं है? क्या चीनी कब्जे को स्वीकार करते हुए मोदी सरकार ने यह मान लिया है कि वो अब इसका कोई हल नहीं निकाल सकते?
3. क्या चीन अब भी डेपसाँग प्लेन्स व दौलत बेग ओल्डी सेक्टर में सैन्य निर्माण कर रहा है, जैसा सैटेलाइट तस्वीरें दिखा रही हैं? भारत की सीमा में हो रहे, भारत की सरजमीं पर हो रहे इस चीनी निर्माण के बारे, हमारी सरजमीं की रक्षा हेतु मोदी सरकार क्या कदम उठा रही है?
4. क्या चीन ने अब भी फिंगर 4 से फिंगर 8 के बीच पैंगोंग त्सो लेक इलाके में कब्ज़ा बना रखा है? चीनी सेना से यह कब्ज़ा छुड़वाने बारे मोदी सरकार की रणनीति क्या है?
5. मई, 2020 से पहले की यथास्थिति बनाने बारे व चीन को भारतीय सीमा से पीछे धकेलने बारे कितना समय और लगेगा व मोदी सरकार की इस बारे में नीति, रास्ता और दृष्टि
कोरोना वायरस, 19जुलाई। भारत में कोरोनावायरस का कहर अब काफी तेजी से बढ़ने लगा है। अब हर दिन लगभग 34-35 हजार नए कोरोना के मामले सामने आ रहे हैं। यहां कुल कोरोना मामले 10 लाख 77 हजार 618 हो चुकी है। कुल एक्टिव केसेज की बात करें तो अभी भी देश में 3 लाख 73 हजार 379 कोरोना के मरीजों का इलाज चल रहा है। मरने वालों की संख्या 26 हजार 816 हो गई है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने कहा है कि देश में कोरोना भयावह रूप ले चुका है और यहां कोरोना का कम्युनिटी स्प्रेड शुरू हो गया है। हालात बद से बदतर हो रहे हैं।
तेजी से बढ़ रहे हैं कोरोना के मरीज
आईएमए के अनुसार, देश में कोरोनावायरस के मरीजों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। यह बेहद ही खतरनाक स्थिति है। आलम ये है कि अब हर दिन कोरोना के 34-35 हजार मामले सामने आ रहे हैं। देश में रह रहे हर किसी के लिए यह स्थिति बेहद डराने वाली है। धीरे-धीरे कोरोना शहरों से गांवों की तरफ भी बढ़ रहा है। यह भी एक बुरा संकेत है। इसी वजह से इसे कम्युनिटी स्प्रेड कहना सही है।
केंद्र सरकार ने कहा कम्युनिटी स्प्रेड नहीं
आईएमए के एक बयान के अनुसार, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय लगातार यही बात कह रहा है कि अब तक भारत में कोरोनावायरस का कम्युनिटी स्प्रेड शुरू नहीं हुआ है। लेकिन, धीरे-धीरे कोरोनावायरस के मरीजों के बढ़ते मामलों के कारण दुनिया में भारत तीसरे स्थान पर जा पहुंचा है। पहले स्थान पर अमेरिका और दूसरे स्थान पर ब्राजील है। चूंकि, कोरोनावायरस गांवों और कस्बों में फैलने लगा है, ऐसे में यहां के हालात को नियंत्रित करना मुश्किल हो सकता है। महाराष्ट्र, कर्नाटक, दिल्ली, केरल, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश के शहरी इलाकों का हाल तो सब देख ही रहे हैं, दूरवर्ती इलाकों में कोरोना पहुंचा, तो क्या हाल होगा, इसकी कल्पना करना भी भयानक है।
क्या होता है कम्युनिटी स्प्रेड
डब्लूएचओ के अनुसार, कम्युनिटी स्प्रेड कोरोनावायरस के फैलने की तीसरी स्टेज होती है। पहली स्टेज वही होती है, जब कोई कोरोना संक्रमित व्यक्ति आपके इलाके में आता है। दूसरी स्टेज में उस संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आए लोग कोरोनावायरस से पीड़ित हो जाते हैं और तीसरी स्टेज की शुरुआत तब होती है, जब किसी भी सोर्स के बिना कोई व्यक्ति संक्रमित हो जाए। कहने का मतलब ये है कि आप कोरोना संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आए बिना इससे पीड़ित हो जाएं। इसे आप इस तरह से भी समझ सकते हैं जैसे किसी क्षेत्र या इलाके में लगातार कोरोना के मामले सामने आएं और ये संख्या तेजी से बढ़ने लगे, तो उसे कम्युनिटी ट्रांसमिशन कहा जा सकता है।(thehealthsite)
अकेले रायपुर से 22, बेमेतरा-बलौदाबाजार से 6-6 संक्रमित
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 19 जुलाई। प्रदेश में आज शाम करीब साढ़े 5 बजे 59 नए कोरोना पॉजिटिव मिले हैं। इसमें अकेले रायपुर से 22, बेमेतरा व बलौदाबाजार से 6-6, दुर्ग व जांजगी-चांपा से 4-4, सरगुजा से 3, बिलासपुर व कोरिया से 2-2 एवं मुंगेली व गरियाबंद से 1-1 मरीज मिले हैं। स्वास्थ्य विभाग ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया कि इन सभी मरीजों को आसपास के अस्पतालों में भर्ती कराए जा रहे हैं। दूसरी तरफ इनके संपर्क में आने वाले लोगों और परिजनों की पहचान की जा रही है। उल्लेखनीय है कि बीती रात में प्रदेश में एक साथ 243 कोरोना मरीज मिले थे। आज शाम सामने आए मरीजों को मिलाकर अब प्रदेश में कोरोना मरीजों की संख्या 53 सौ पार कर चुकी है।
नई दिल्ली, 19 जुलाई। चीन को लेकर सरकारी दावे कुछ भी हों, लेकिन चीनी सेना से जुड़ी कंपनियों ने भारत के कई बड़े शहरों में निवेश कर रखा है। भारत में चल रही कम से कम कई ऐसी कंपनियों की पहचान की है, जिनका कथित रूप से सीधे तौर पर या फिर अप्रत्यक्ष रूप से चीन की सेना से संबंध है।
भारत और चीन के बीच संबंधों को सामान्य करने के प्रयास जोर शोर से भले ही जारी हैं, लेकिन जमीनी वास्तविकता सामान्य से काफी दूर है। ऐसे समय में जब चीनी आयात घटाने के लिए भारत के सौर विनिर्माण को वीजीएफ सपोर्ट मिलने या केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी द्वारा सड़क निर्माण अनुबंधों पर चीन की खिंचाई करने की खबरें सुर्खियों में हैं, ठीक वहीं पर भारत की कई परियोजनाएं ऐसी कंपनियों द्वारा चलाई जा रही हैं या उनसे महत्वपूर्ण रूप से जुड़ी हुई हैं, जिनके गहरे जुड़ाव चीन की पीपल्स लिबरेशन ऑर्मी (पीएलए) से हैं।
सरकार के करीबी सूत्रों ने कहा है कि इस तरह की एक शीर्ष परियोजना कर्नाटक में चल रही है। भारत और चीन के बीच एक सबसे बड़ा संयुक्त उद्यम मानी जाने वाली शिंडिया स्टील्स लिमिटेड ने हाल ही में कर्नाटक के कोप्पल जिले में होसपेट के पास 0.8 एमटीपीए लौह अयस्क पैलेट सुविधा का संचालन शुरू कर दिया है, जिसकी लागत 250 करोड़ रुपये से थोड़ी अधिक है।
हालांकि इसकी मुख्य निवेशक शिनशिंग कैथे इंटरनेशनल ग्रुप कॉ लिमिटेड (चीन) है। इसकी वेबसाइट के अनुसार, यह पीएलए के जनरल लॉजिस्टिक्स डिपार्टमेंट के पूर्व सहायक उद्यमों और संस्थानों और उत्पादन विभाग से अलग होकर पुननिर्मित और पुनर्गठित है। यह वही पीएलए है, जिसके साथ पूर्वी लद्दाख में पिछले महीने संघर्ष के दौरान 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे।
होसपेट परियोजना को जो कंपनी संचालित करती है, उसकी निगरानी सरकारी स्वामित्व वाली एसेट्स सुपरविजन एंड एडमिनिस्ट्रेशन कमिशन ऑफ द स्टेट काउंसिल इन चाइना (एसएएसएसी) करती है। और यह तो मात्र नमूना भर है। आंध्र प्रदेश में एक दूसरी परियोजना है, जिसे लेकर भी मौजूदा परिदृश्य में सुरक्षा के मुद्दे खड़े हुए हैं। चाइना इलेक्ट्रॉनिक्स टेक्नॉलॉजी ग्रुप कॉरपोरेशन (सीईटीसी) ने आंध्र प्रदेश के श्री सिटी में 2018 में 200 मेगावाट की पीवी विनिर्माण सुविधा में लाखों डॉलर के निवेश की घोषणा की थी।
सीईटीसी चीन की प्रमुख सैन्य इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माता है और यह हिकविजन सीसीटीवी कैमरे भी बनाती है। इसे चीन के सर्विलांस सीजार के रूप में जाना जाता है, जिसने शिनजियांग के 1.1 करोड़ मुस्लिम उइगरों की फेसियल रिकाग्निशन के जरिए पहचान की और एक राज्य प्रायोजित दमन को अंजाम दिया।
अमेरिका ने लंबे समय से सरकारी एजेंसियों पर हिकविजन के उत्पाद खरीदने पर प्रतिबंध लगा रखा है। अमेरिका सरकार की सूची में सीईटीसी के कई शोध संस्थान और सहयोगी संस्थान शामिल किए गए हैं, जिनसे आयात पर राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर प्रतिबंध है।
भारत 2017 के उस कानून के खतरे की फिर से पड़ताल कर रहा है, जिसे चीन की विधायिका ने पारित किया था। इसे एक नए इंटेलिजेंस कानून के रूप में जाना जाता है, जिसने संदिग्धों पर नजर रखने, परिसरों पर छापे मारने और वाहनों और उपकरणों को जब्त करने के नए अधिकार देता है। 'मिलिट्री एंड सिक्युरिटी डेवलपमेंट्स इनवाल्विंग द पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना 2019' पर अमेरिकी रक्षा मंत्री की वार्षिक रपट के अनुसार, यह कानून चीनी कंपनियों जैसे हुवेई, जेडटीई, टिक टॉक आदि को बाध्य करता है कि वे जहां भी अपना संचालन करें, चीन के राष्ट्रीय इंटेलिजेंस कार्य में मदद, सहायता और सहयोग मुहैया कराएं। इससे स्पष्ट होता है कि भारत सरकार ने अचानक 59 चीनी एप को प्रतिबंधित क्यों किया, जिसमें टिक टॉक भी शामिल है।
कानून के अनुच्छेद 7 में कहा गया है, “कोई भी संगठन या नागरिक कानून के अनुरूप स्टेट इंटेलिजेंस के साथ मदद, सहायता और सहयोग करेगा।” और अब लगता है कि भारत ने उन चीनी कंपनियों की पहचान शुरू कर दी है, जिनके संबंध पीएलए के साथ एक स्टार्टर के रूप में हैं।(navjivan)
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 19 जुलाई। ऑल इंडिया बैंक एम्पलाईज एसोसिएशन ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के विलफुल डिफाल्टरों की कई लिस्ट आज जनहित में जारी की हैं जिनमें पांच सौ करोड़ रूपए से अधिक की डिफाल्टर 33 कंपनियों के नाम है। इनके पास बैंकों के 32 हजार 737 करोड़ रूपए डूब रहे हैं।
एसोसिएशन ने एक दूसरी लिस्ट जारी की है जिसमें दो सौ करोड़ से अधिक डुबाने वाले 147 लोगों के नाम हैं और इनके पास कुल 67 हजार 609 करोड़ रूपए डूब रहे हैं। तीसरी लिस्ट करीब ढाई हजार डिफाल्टरों की है जिनके पास पब्लिक सेक्टर के 17 बैंकों के एक लाख 47 हजार करोड़ रूपए डूब रहे हैं।
आज जारी एक बयान में एसोसिएशन ने कहा है कि बैंकों को ऐसे सभी लोगों के नाम उजागर करने चाहिए, और बैंक कर्ज के डिफाल्टर होने पर उसे एक आपराधिक जुर्म बनाया जाना चाहिए। एसोसिएशन ने यह भी कहा है कि कर्ज वसूली के कानूनों को मजबूत करना चाहिए। इसके साथ ही ढाई हजार लोगों की लिस्ट जारी की गई है जिसके भीतर बड़े डिफाल्टर भी शामिल हैं।
‘छत्तीसगढ़’ न्यूज डेस्क
नई दिल्ली, 19 जुलाई। पूर्व केन्द्रीय मंत्री अजय माकन ने राजस्थान में चल रही राजनीतिक अस्थिरता के पीछे भाजपा पर साजिश का आरोप लगाया है, और कहा है कि प्रदेश की 8 करोड़ जनता इस साजिश को कभी माफ नहीं करेगी।
आज दोपहर बाद जारी एक बयान में उन्होंने कहा- जिस प्रकार से कांग्रेस के विधायकों को भाजपा की हरियाणा सरकार की मेहमाननवाजी में मानेसर, गुडग़ांवा के होटल व रिसॉर्ट में रखा गया, यह अपने आप में भाजपाई सांठगांठ को साबित करता है। हरियाणा की खट्टर सरकार द्वारा राजस्थान कांग्रेस विधायकों को अप्रत्याशित सुरक्षा घेरे में रखना इस बात का प्रमाण है कि साजिश के असली सरदार भाजपाई हैं।
उन्होंने कहा- यही नहीं 17 तारीख को संविधान और कानून की धज्जियां उड़ाते हुए भाजपा की हरियाणा सरकार ने पुलिस लगाकर जिस तरीके से ‘राजस्थान स्पेशल ऑपरेशंस ग्रुप’ को भंवर लाल शर्मा, विधायक व विश्वेंदर सिंह, विधायक का वॉईस सैंपल लेने तथा जाँच करने से रोका, यह अपने आप में इस मिलीभगत का जीता जागता सबूत है। और हद तो तब हो गई जब भाजपा की हरियाणा सरकार चोर दरवाजे से कांग्रेस के विधायकों को भगा ले गई ताकि जाँच न हो सके।
उन्होंने आगे कहा- अब सीधे-सीधे खबर आ रही है कि कांग्रेस के विधायकों को अमित शाह द्वारा संचालित दिल्ली पुलिस अलग-अलग 5 सितारा होटल में दिल्ली में रखे है और राजस्थान पुलिस की जाँच को बाधित करते हुए उनकी जगह बार बार बदली जा रही है। कभी खबर आती है कि कांग्रेस विधायकों को भाजपा शासित कर्नाटक ले जाया जाएगा या भाजपा शासित मध्यप्रदेश। यह अपने आप में भाजपाई सांठगांठ, साजिश व षडय़ंत्र का पुख्ता प्रमाण है। अगर तथाकथित ऑडियो टेपकांड में भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व, केंद्रीय मंत्री व भंवर लाल शर्मा तथा विश्वेंदर सिंह विधायकों की कोई भूमिका नहीं है, तो फिर वो वॉईस सैंपल देने से गुरेज कर छिपते क्यों घूम रहे हैं? कभी भाजपा सरकार सीबीआई की धमकी देती है, तो कभी ईडी और इंकम टैक्स की फर्जी रेड करवाती है। यह तो ऐसे ही है, जैसे ‘उल्टा चोर कोतवाल को डांटे’। अब एंटी करप्शन ब्यूरो की एफआईआर में साफ तौर से भ्रष्टाचार निरोधक कानून में गजेंद्र सिंह, भंवर लाल शर्मा व अन्य के खिलाफ नामित कर जाँच शुरू कर दी गई है।
माकन ने भाजपा से कुछ सवाल किए हैं-
1. जब गजेंद्र शेखावत, केंद्रीय मंत्री द्वारा यह कहा गया कि तथाकथित ऑडियो टेप में आवाज उनकी नहीं। तो फिर गजेंद्र सिंह शेखावत सामने आकर अपना वॉईस सैंपल देने से इंकार क्यों कर रहे हैं? ऐसे में भ्रष्टाचार निरोधक कानून में मामला दर्ज होने के बाद, श्री गजेंद्र सिंह शेखावत को अपने पद से बर्खास्त क्यों नहीं किया जा रहा? क्या यह प्रधानमंत्री का राजधर्म नहीं कि जाँच पूरी होने तक गजेंद्र सिंह शेखावत को पदमुक्त करें, ताकि वो जाँच पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रभाव न डाल पाएं?
2. भाजपा की हरियाणा और दिल्ली की पुलिस, गजेंद्र सिंह शेखावत, भंवर लाल शर्मा व विश्वेंदर सिंह के वॉईस सैंपल लेने से क्यों रोक रही है? अगर ये तीनों दोषी नहीं, तो सामने आकर वॉईस सैंपल देने में क्या खतरा है?
3.क्या केंद्रीय भाजपा सरकार सीबीआई की धमकी इसलिए दे रही है कि विधायक खरीद घोटाले के तार में अन्य कई आला पदों पर बैठे केंद्र सरकार के लोग शामिल हैं व निष्पक्ष जाँच उनका चेहरा बेनकाब कर देगी?
4. क्या देश को विश्वास में नहीं लेना चाहिए कि काला धन कहां से आ रहा है, यह काला धन कौन मुहैया करवा रहा है, हवाला से कैसे ट्रांसफर किया जा रहा है, किस किस को दिया जा रहा है? क्या राजस्थान सरकार गिराने के इस काला धन आदान प्रदान में लोगों का चेहरा बेनकाब नहीं होना चाहिए?
5. अगर भाजपा की कोई भूमिका नहीं, तो केंद्र सरकार से लेकर हरियाणा सरकार, इंकम टैक्स, ईडी, हरियाणा पुलिस, दिल्ली पुलिस कांग्रेस विधायकों को विशेष सुरक्षा चक्र देने तथा राजस्थान पुलिस की जाँच से अलग रखने को इतनी मशक्कत क्यों कर रहे हैं?
पौने दो लाख नगद, 20 मोबाइल, 6 कार, 18 बाइक जब्त
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
कुरूद, 19 जुलाई। थाना मगरलोड क्षेत्र अंतर्गत पठार धरसा जंगल के बीच घेराबंदी कर पुलिस ने 22 लोगों को जुआ खेलते गिरफ्तार किया है। आरोपियों के पास से 20 मोबाइल, 6 कार, 18 बाइक एवं 1 लाख 85 हजार 2 सौ रूपये जब्त किए गए हैं।
पुलिस के अनुसार शनिवार शाम मुखबिर से सूचना मिली कि थाना मगरलोड क्षेत्रांतर्गत पठार धरसा जंगल में आसपास के अन्य जिलों के जुआरी इकट्ठा होकर जुआ खेल रहे हैं। उक्त सूचना पर थाना कुरूद, चौकी करेलीबड़ी एवं रक्षित केंद्र धमतरी की संयुक्त टीम गठित कर तत्काल रवाना किया गया। टीम द्वारा पठार धरसा जंगल के पास जाकर देखने पर सूनसान क्षेत्र में कई कार एवं बाइक खड़ी होने से तत्काल घेराबंदी करते हुए दबिश दी गई। पुलिस को आते देखकर कुछ जुआरी भाग गए तथा जुआ खेल रहे 22 लोग पकड़े गए, जिनके कब्जे से कुल 1,85,200 रुपये नगदी, 52 पत्ती ताश एवं 20 मोबाइल, 6 कार और 18 बाइक जब्त किया गया। पकड़े गए आरोपी धमतरी के आसपास रायपुर, महासमुंद एवं बालोद जिले के निवासी हैं।
जिस थाने में लिया प्रशिक्षण उसी थाने में अपराध भी दर्ज
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
भिलाई नगर, 19 जुलाई। डीएसपी से अपमानित होने के बाद आदर्श नगर चरोदा निवासी महिला द्वारा की गई आत्महत्या के मामले में आज दोपहर को भिलाई 3 पुलिस द्वारा आरोपी महिला डीएसपी वह उसकी मित्र के खिलाफ अपराध पंजीबद्ध कर लिया गया है आरोपी महिला डीएसपी का फरार होना बताया गया है। इसके पूर्व आज लोगों के भिलाई-3 थाने का घेराव किया था। महिला डीएसपी अनामिका जैन श्रीवास्तव और उनकी सहेली पायल के खिलाफ धारा 306, 34 के तहत अपराध कायम कर लिया गया।
गौरतलब हो कि अमलेश्वर स्थित सीएएफ की तीसरी बटालियन में उप सेनानी अनामिका जैन श्रीवास्तव पुलिस सेवा में शुरुआत के दौरान भिलाई-3 थाने में प्रशिक्षु अधिकारी के रूप में सेवा दे चुकी है। वहीं चरोदा में रहने वाली उनकी सास और ननद ने भी पूर्व मे डीएसपी बहु खिलाफ भी इसी थाने में कईं लिखित शिकायत कर चुकी है।
चरोदा के आदर्श नगर में शुक्रवार की रात को श्रीमती के. सुखविंदर (40 वर्ष) पति केवी अरुण ने फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली थी। मृतका के पति केवी अरुण का आरोप है कि शुक्रवार की रात 8 बजे अमलेश्वर के सीएएफ की तीसरी बटालियन में उप सेनानी के पद पर पदस्थ डीएसपी अनामिका जैन श्रीवास्तव ने घर में आकर उनकी पत्नी से अपने पति के साथ अवैध संबंध होने की बात कहते हुए मारपीट की गई थी। इस दौरान महिला पुलिस अधिकारी के साथ उनकी एक सहेली भी थी। अपनी वर्दी का धौंस दिखाकर के. सुखविंदर से गाली गलौच व मारपीट किए जाने के दौरान उनके जेठ, जेठानी और बेटी भी थी। परिवारजनों और खासकर जवान बेटी के सामने चारित्रिक अपमान होने से के. सुखविंदर ने देर रात फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली थी।
इस मामले पर आज दोपहर चरोदा वासियों ने स्थानीय जनप्रतिनिधियों के साथ मिलकर डीएसपी अनामिका जैन श्रीवास्तव पर अपराध कायम करने की मांग को लेकर भिलाई-3 थाने का घेराव कर दिया। बीच में मृतका के शव को सडक़ पर रखकर चक्काजाम करने की तैयारी हो चुकी थी। लेकिन इसी बीच भिलाई-3 टीआई संजीव मिश्रा ने प्रदर्शनकारियों को चर्चा हेतु थाने में आमंत्रित कर लिया। इस दौरान सांसद प्रतिनिधि मनोज पाठक, एस वेंकट रमना, संदीप सिंह, भाजपा मंडल अध्यक्ष दिलीप पटेल, मुकेश अग्रवाल, पूर्व पार्षद वेंकट राव आदि उपस्थित थे। प्रदर्शनकारियों से चर्चा के बाद मृतका के पति की लिखित शिकायत पर डीएसपी अनामिका जैन श्रीवास्तव और उनकी सहेली पायल के खिलाफ अपराध क्रमांक 199 / 2020 भादवि की धारा 306,34 का मामला दर्ज किया गया। टाउनशिप के सेक्टर - 1 सडक़-11 में रहने वाली अनामिका जैन श्रीवास्तव का ससुराल चरोदा में है. वे बेरला एसडीओपी और आईसीयू एडब्ल्यू मे भी भिलाई दुर्ग में सेवायें दे चुकी है। अनामिका जैन बास्केटबॉल की अच्छी खिलाड़ी भी रही है फिलहाल महिला उप पुलिस अधीक्षक फरार बताया जा रहा है। उनका फोन भी लगातार बंद आ रहा है।
मौतें-24, एक्टिव-1564, डिस्चार्ज-3658
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 19 जुलाई। प्रदेश में कोरोना मरीज चार महीने में 52 सौ पार कर चुके हैं। बीती रात एक साथ आए 243 नए पॉजिटिव के साथ इनकी संख्या 52 सौ 46 हो गई है। इसमें 24 लोगों की मौत हो चुकी हैं। 15 सौ 64 एक्टिव हैं, जिनका अलग-अलग अस्पतालों में इलाज जारी है। 36 सौ 58 ठीक होकर अपने घर लौट गए हैं। सैंपलों की जांच जारी है।
प्रदेश में कोरोना तेजी के साथ फैलता जा रहा है। खासकर राजधानी रायपुर, बिलासपुर समेत कुछ बड़े शहरों में हर रोज दर्जनों मरीज सामने आ रहे हैं। इन मरीजों में प्रायमरी और सेकंडरी कांटेक्ट वाले ज्यादा बताए जा रहे हैं। बुलेटिन के मुुताबिक बीती रात बिलासपुर से सबसे अधिक 64, कांकेर से 45, रायपुर से 25, बीजापुर व दुर्ग से 18-18, बस्तर व जांजगीर-चांपा से 11-11, नारायणपुर व रायगढ़ से 7-7, कोरिया से 6, सुकमा व सरगुजा से 4-4 एवं बेमेतरा, कबीरधाम, कोंडागांव व दंतेवाड़ा से 3-3 मिले हैं। इसके अलावा धमतरी, बलौदाबाजार, जशपुर व अन्य राज्य से 2-2 एवं नांदगाव, कोरबा व बलरामपुर से 1-1 मरीज पाए गए हैं। ये सभी मरीज आसपास के अस्पतालों में भर्ती कराए जा रहे हैं।
स्वास्थ्य अफसरों का कहना है कि प्रदेश में कोरोना जांच का दायरा लगातार बढ़ाया जा रहा है। फिलहाल 4 से 5 हजार सैंपलों की जांच हो रही है, जिसे बढक़र 10 हजार तक ले जाने का प्रयास चल रहा है। बीती रात तक करीब दो लाख 39 हजार सैंपलों की जांच पूरी कर ली गई है, जिसमें 52 सौ 46 मरीजों की पहचान हुई है। हालांकि इसमें एक्टिव डेढ़ हजार से अधिक हैं, लेकिन सैकड़ों मरीज ठीक होकर भी अपने घर लौट रहे हैं। बीती रात 146 मरीज डिस्चार्ज किए गए। उनका कहना है कि जांच दायरा बढ़ाने से नए-नए संक्रमित मिल रहे हैं। इसमें प्रायमरी और सेकंडरी कांटेक्ट वाले ज्यादा हैं। माना जा रहा है कि लापरवाही पर इनकी संख्या और बढ़ सकती है।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 19 जुलाई। रायपुर और बीरगांव नगर निगम इलाके में 22 से 28 जुलाई तक पूरी तरह लॉकडाउन रहेगा। कलेक्टर एस भारतीदासन ने ‘छत्तीसगढ़’ से चर्चा में कहा कि दोनों को मिलाकर एक बड़ा कंटेनमेंट जोन बनाया जा रहा है।
कलेक्टर ने यह भी कहा कि जिले के बाकी नगरीय निकाय लॉकडाउन से अप्रभावित रहेंगे। बताया गया कि पिछले चार दिनों से रायपुर नगर निगम क्षेत्र में कोरोना मरीजों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि को देखकर लॉकडाउन का फैसला लिया गया है। सूत्र बताते हैं कि कैबिनेट की बैठक में बीरगांव में तुरंत लॉकडाउन करने का सुझाव दिया गया था।
बीरगांव इलाका सबसे ज्यादा कोरोना प्रभावित है और यहां शत-प्रतिशत लोगों का कोरोना टेस्ट कराने का फैसला लिया गया है। बाद में रायपुर नगर निगम इलाके में भी लॉकडाउन करने का फैसला लिया गया है। लॉकडाउन नगर निगम के 70 वार्डों में रहेगा। लॉकडाउन के दौरान आवश्यक सेवाएं चालू रहेंगी। मसलन, दूध, सब्जी और दवाईयों की दुकानें खुली रहेंगी। इसके लिए समय सीमा भी तय की जा रही है। कलेक्टोरेट को छोडक़र बाकी सरकारी दफ्तर बंद रहेंगे। मगर मंत्रालय और विभागाध्यक्ष कार्यालय भवन में काम यथावत जारी रहेगा। वैसे भी दोनों इलाके नगर निगम सीमा क्षेत्र के बाहर हैं।
उल्लेखनीय है कि जिला प्रशासन ने लॉकडाउन को लेकर व्यापारी संगठनों से राय ली थी। ज्यादातर व्यापारी संगठनों ने बंद पर सहमति जताई थी। कुछ संगठन तीन दिन और कई पांच दिन के लॉकडाउन के पक्ष में थे। कुछ संगठन ऐसे भी थे जो कि राखी त्यौहार की वजह से लॉकडाउन के पक्ष में नहीं थे और उनका मानना था कि इससे व्यापार प्रभावित होगा। रायपुर के अलावा बलौदाबाजार, अंबिकापुर और बिलासपुर जिले में भी लॉकडाउन रहेगा।