राजनांदगांव
कटेमा के बाशिंदों के लिए जंगल-पगडंडी से होकर घाघरा मतदान केंद्र पहुंचना आसान नहीं
प्रदीप मेश्राम
राजनांदगांव, 31 अक्टूबर (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। खैरागढ़ जिले के आखिरी छोर में बसे वनग्राम कटेमा के बाशिंदों का लोकतंत्र के प्रति गहरी आस्था है। लेकिन उनका अटूट विश्वास अफसरशाही के रवैये के सामने चूर-चूर हो रहा है। दरअसल आदिवासी बाहुल्य इस गांव के 90 मतदाताओं के हर चुनाव में 11 किमी का सफर तय कर ऐसे मतदान केंद्र में पहुंचना पड़ता है, जहां सिर्फ 5 से 6 मतदाता हैं। हर चुनाव में कटेमा के मतदाता पगडंडी और घने जंगलों के रास्ते मतदान के लिए सुबह से निकलते हैं। घाघरा मतदान केंद्र से वापसी के दौरान वन बाशिंदों को अंधेरे की चुनौती पार कर घर पहुंचना पड़ता है। खैरागढ़ जिला निर्माण होने के बावजूद कटेमा के लोगों की समस्याएं अधूरी है। ‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता ने इस पठारी गांव का रूख कर बाशिंदों की समस्या को जाना।
कटेमा छत्तीसगढ़ राज्य का आखिरी गांव भी है। यह गांव महाराष्ट्र के गोंदिया जिले की सरहद से सटा हुआ है। नक्सलगढ़ माने जाने वाले इस गांव के लोगों की सालों पुरानी मतदान केंद्र खोलने की मांग है। राजनीतिक दलों से लेकर अफसरों के चौखट तक ग्रामीणों ने मतदान केंद्र खोलने की कई दफे गुजारिश की है। दिलचस्प बात यह है कि घाघरा मतदान केंद्र, जहां सिर्फ 6 मतदाता हैं, वहां कटेमा के बाशिंदों को मतदान करने के लिए जाना पड़ रहा है। जबकि कटेमा में 90 से ज्यादा मतदाता हैं। लोकतंत्र के महापर्व का हिस्सा बनने के लिए ग्रामीणों के उत्साह में कोई कमी नहीं है। कटेमा और घाघरा के बीच की दूरी 11 किमी है। यह रास्ता घने जंगलों से घिरा हुआ है। वहीं हिंसक जानवरों की भी मौजूदगी खतरनाक रही है। इसके बावजूद प्रशासन ने कटेमा के लोगों की सदियों पुरानी मतदान खोलने की मांग को दरकिनार कर दिया। इस संबंध में गांव के मयाराम, जेठूराम, रामसिंह, राधेलाल, दीपक मरकाम समेत अन्य लोगों ने बताया कि मतदान केंद्र नहीं खुलने से कई मतदाता मतदान से वंचित रह जाते हैं। लंबी दूरी होने के कारण महिलाओं को मतदान केंद्र तक पहुंचने में सबसे ज्यादा परेशानी होती है। कई बार ग्रामीणों को मतदान केंद्र से वापसी के बीच चुनौतियों से गुजरना पड़ता है। गौरतलब है कि कटेमा एक ऊंचे पठारी भूभाग में स्थित है। सालों से यहां के ग्रामीण हाट बाजार से लेकर बुनियादी सुविधाओं को हासिल करने के लिए सफर में ही रहते हैं। यह गांव में बुनियादी जरूरतों के लिए हमेशा से तरसता रहा है। विद्युत सेवा से आज भी यहां के लोग वंचित हैं। यह गांव सोलर ऊर्जा से रौशन जरूर होता है, लेकिन तकनीकी खराबी के बाद लालटेन के सहारे रात गुजारनी पड़ती है।