रायगढ़
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायगढ़, 3 अक्टूबर। नगर निगम रायगढ़ का स्वच्छता अभियान, जो स्वच्छ और स्वस्थ शहर का सपना दिखाता है, व्यावहारिक रूप में कहां खड़ा है, यह सवाल तब उठता है जब कलेक्टर बंगले के पीछे दुकानदारों को कचरों के अंबार से जूझते हुए देखा जाता है। कचरे की यह स्थिति न केवल नगर निगम की स्वच्छता व्यवस्था पर सवाल उठाती है, बल्कि एक गहरे आक्रोश और असंतोष का भी प्रतीक है, जो स्थानीय व्यापारियों और नागरिकों में व्याप्त है।
रायगढ़ शहर में, जहां स्वच्छता अभियान को बढ़ावा दिया जा रहा है, वहीं कलेक्टर बंगले के पीछे का इलाका नगर निगम द्वारा कचरा डंपिंग के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। यह फैसला न सिर्फ व्यापारिक समुदाय को प्रभावित कर रहा है, बल्कि आसपास के क्षेत्र में रहने वाले नागरिकों के लिए भी गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न कर रहा है। दुकानदारों के मुताबिक, नगर निगम के खिलाफ मौखिक और लिखित शिकायतें कई बार दर्ज की गई हैं, लेकिन अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। यह विडंबना ही है कि एक तरफ सरकार और प्रशासन स्वच्छ भारत अभियान जैसे योजनाओं को लेकर प्रतिबद्धता दिखाते हैं, और दूसरी तरफ शहर के अंदरूनी इलाकों में कचरे का ढेर दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।
कचरे के डंपिंग की यह स्थिति कई मायनों में चिंताजनक है। सबसे पहले, यह स्वच्छता के प्रति शहर के प्रशासन की उदासीनता को दर्शाता है। व्यापारिक क्षेत्रों में कचरा फैलने से न केवल दुकानदारी पर असर पड़ता है, बल्कि स्थानीय व्यवसायों की छवि और उनके ग्राहकों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसके अतिरिक्त, आसपास की आबादी को स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है। कचरे से उठने वाली बदबू, कीड़े-मकौड़ों का बढऩा, और बीमारियों के फैलने का खतरा बढ़ जाता है।
दूसरी ओर, पर्यावरणीय दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह डंपिंग स्थल एक पर्यावरणीय संकट को जन्म दे रहा है। कचरा न केवल जमीन और पानी को प्रदूषित कर रहा है, बल्कि वायु प्रदूषण भी बढ़ा रहा है। इसमें शामिल प्लास्टिक, केमिकल और अन्य हानिकारक पदार्थ पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुंचा रहे हैं।
दुकानदारों और स्थानीय नागरिकों का यह कहना है कि उन्होंने नगर निगम से कई बार संपर्क किया है, लेकिन निगम ने अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की है। इस तरह की स्थिति प्रशासनिक उदासीनता का उदाहरण है, जो नगर निगम की कार्यक्षमता पर प्रश्नचिह्न लगाती है। एक तरफ निगम कागजों पर स्वच्छता अभियान चला रहा है, और दूसरी तरफ वास्तविकता में लोग कचरों के ढेर से जूझ रहे हैं। यह सवाल उठता है कि नगर निगम, जो कि स्वच्छता और स्वास्थ्य के लिए जिम्मेदार है, इस मुद्दे पर क्यों निष्क्रिय है? क्या यह प्रशासनिक ढांचे की कमजोरी का परिणाम है, या फिर यह एक सोची-समझी नीति है जो केवल कुछ क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करती है जबकि अन्य इलाकों की अनदेखी करती है?
कलेक्टर बंगले के पीछे के दुकानदार इस स्थिति से सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं। व्यापारिक प्रतिष्ठानों के पास कचरे का डंपिंग होना उनके कारोबार को बुरी तरह से प्रभावित कर रहा है।
नगर निगम को इस समस्या का समाधान निकालने के लिए शीघ्रता से कदम उठाने की आवश्यकता है।
सबसे पहले, कचरा डंपिंग स्थल को तुरंत दूसरी जगह स्थानांतरित किया जाना चाहिए, जो शहर के भीतरी हिस्सों और व्यापारिक क्षेत्रों से दूर हो। इसके अलावा, यह भी आवश्यक है कि कचरे का उचित तरीके से प्रबंधन किया जाए, ताकि पर्यावरण और लोगों के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव न पड़े।
कलेक्टर बंगले के पीछे की यह समस्या केवल एक स्थानीय मुद्दा नहीं है, बल्कि यह नगर निगम की कार्यशैली और स्वच्छता अभियानों की वास्तविकता को उजागर करती है। कचरा डंपिंग का यह मामला प्रशासनिक लापरवाही और व्यापारिक समुदाय के संघर्ष का प्रतीक है। स्वच्छता अभियान तभी सफल हो सकते हैं जब सभी नागरिक और प्रशासन मिलकर काम करें। नगर निगम को शीघ्र ही इस मुद्दे को हल करने की दिशा में कदम उठाने की जरूरत है, ताकि रायगढ़ शहर को वास्तव में स्वच्छ और सुंदर बनाया जा सके।