अंतरराष्ट्रीय
एक समय में 'काबुल का कसाई' कहे जाने वाले अफ़ग़ानिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री गुलबुद्दीन हिकमतयार ने कहा है कि भारत को अफ़ग़ानिस्तान के भविष्य को लेकर बयान जारी करने के बजाय अपने देश के मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए.
अफ़ग़ानिस्तान के दूसरे बड़े चरमपंथी गुट हिज़्ब-ए-इस्लामी के नेता ने रविवार को काबुल में पाकिस्तानी पत्रकारों से बात करते हुए ये टिप्पणी की और कहा कि भारत को अफ़ग़ानिस्तान की संप्रभुता का सम्मान करना चाहिए.
पाकिस्तान की समाचार एजेंसी एपीपी के अनुसार हिकमतयार ने साथ ही कहा कि भारत सरकार को अफ़ग़ानिस्तान की ज़मीन से कश्मीर की लड़ाई नहीं लड़नी चाहिए.
हालाँकि, उन्होंने साथ ही कहा कि भारत को अफ़ग़ानिस्तान में अमन क़ायम करने के लिए सकारात्मक भूमिका निभानी चाहिए.
एपीपी के अनुसार अफ़ग़ान नेता ने साथ ही अफ़ग़ानिस्तान संघर्ष के शांतिपूर्ण समाधान के लिए पाकिस्तान सरकार और प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के प्रयासों की सराहना की.
उन्होंने उम्मीद जताई की काबुल में बहुत जल्द एक ऐसी सरकार गठित हो जाएगी जो अफ़ग़ानिस्तान के लोगों को भी स्वीकार्य होगी और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भी.
अफ़ग़ानिस्तान में पाकिस्तान के राजदूत मंसूर अहमद ख़ान ने रविवार को काबुल में गुलबुद्दीन हिकमतयार के साथ मुलाक़ात की.
बातचीत के बाद राजदूत ने ट्वीट कर लिखा कि उन्होंने गुलबुद्दीन हिकमतयार के साथ मौजूदा हालात और तालिबान तथा अन्य अफ़ग़ान समुदायों की मिली-जुली समावेशी व्यवस्था को क़ायम करने का रास्ता तैयार करने पर चर्चा की.
पिछले सप्ताह तालिबान नेता अनस हक़्क़ानी के नेतृत्व में तालिबान के प्रतिनिधियों ने काबुल में जिन बड़े अफ़ग़ान नेताओं से सरकार गठन के बारे में चर्चा की थी उनमें पूर्व राष्ट्रपति हामिद करज़ई, पूर्व विदेश मंत्री अब्दुल्लाह अब्दुल्लाह, सीनेट अध्यक्ष फ़ज़ुलहादी मुस्लिमयार के अलावा गुलबुद्दीन हिकमतयार भी शामिल थे.
कौन हैं गुलबुद्दीन हिकमतयार
गुलबुद्दीन हिकमतयार की गिनती अफ़ग़ानिस्तान के इतिहास की सबसे विवादित हस्तियों में होती है. एक ज़माने में उन्हें 'बुचर ऑफ़ काबुल' यानी काबुल का कसाई कहा जाता था.
अफग़ानिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री ने 80 के दशक में अफ़ग़ानिस्तान पर सोवियत संघ के क़ब्ज़े के बाद मुजाहिद्दीनों की अगुवाई की थी. उस समय ऐसे करीब सात गुट थे.
इसके बाद 90 के दशक में अफ़ग़ानिस्तान में जो गृह युद्ध हुआ उसमें गुलबुद्दीन हिकमतयार की भूमिका बहुत विवादित रही.
90 के दशक में काबुल पर कब्ज़े के लिए उनके गुट हिज़्ब-ए-इस्लामी के लड़ाकों की दूसरे गुटों के साथ बड़ी हिंसक लड़ाइयाँ होती थीं.
इस दौरान बड़े पैमाने पर हुए ख़ून खराबे के लिए इस गुट को काफ़ी हद तक ज़िम्मेदार माना जाता है. गृह युद्ध के दौरान हिकमतयार और उनके गुट ने काबुल में इतने रॉकेट दागे कि उन्हें लोग 'रॉकेटआर' भी कहने लगे थे.
इसी गृह युद्ध के कारण गुलबुद्दीन हिकमतयार अलग-थलग पड़ गए और जब तालिबान सत्ता में आई तो उन्हें काबुल से भागना पड़ा था.
2017 में हिकमतयार 20 साल बाद काबुल लौटे. इसके एक साल पहले उनकी अफ़ग़ान सरकार के साथ डील हुई थी जिसके तहत उनकी वापसी हुई.
गुलबुद्दीन हिकमतयार को अमेरिका ने 2003 में आतंकवादी घोषित किया था. उन पर तालिबान के हमलों का समर्थन करने का आरोप लगा था.
2016 में तत्कालीन अफ़ग़ानिस्तान सरकार ने उन्हें पुराने मामलों में माफ़ी दे दी थी. (bbc.com)