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क्या अब सूअर बचाएगा इंसान की ज़िंदगी? क्या होता है जेनोट्रांसप्लांटेशन
14-Mar-2022 8:38 AM
क्या अब सूअर बचाएगा इंसान की ज़िंदगी? क्या होता है जेनोट्रांसप्लांटेशन

UNIVERSITY OF MARYLAND SCHOOL OF MEDICINE

-जेम्स गैलहर

अंग प्रत्यारोपण के क्षेत्र में लगातार नए प्रयोग हो रहे हैं. अब इसकी सीमा पहले से कहीं आगे बढ़ा दी गई है.

जेनेटिक इंजीनियरिंग से बने सूअरों से निकाले गए शुरुआती अंग लोगों के शरीर में प्रत्यारोपित किए गए थे.

इस तरह के सूअर का हृदय पहली बार जिस मनुष्य के शरीर में प्रत्यारोपित किया गया था वह सिर्फ दो महीने तक जिंदा रहा था.

पूरी दुनिया में इस वक्त प्रत्यारोपण के लिए अंगों की कमी है. ऐसे में अंगों की असीमित सप्लाई के लिए हम सूअरों के इस्तेमाल के कितने करीब हैं?

अब हम एक ऐसे ऑपरेशन थियेटर की ओर चलते हैं, जहां प्रत्यारोपण ऑपरेशन होने वाला है.

ऑपरेशन थियेटर में चुप्पी पसरी हुई है. यहां सूअर के अंग को प्रत्यारोपण के लिए लाए जाने से पहले तनाव दिख रहा है.

सर्जनों ने अभी अभी एक सूअर के गुर्दे को एक मानव शरीर से जोड़ा है. अब मानव शरीर का रक्त सूअर के अंगों की ओर प्रवाहित हो रहा है.

अंग प्रत्यारोपण करने वाले सर्जन डॉ. जेमी लोक का कहना है, "आप सुई गिरने की आवाज भी सुन सकते थे."

वह कहती हैं, "अगले चंद पलों में इस ऑपरेशन की कामयाबी या नाकामी तय हो जाएगी और अब सबके दिमाग में एक ही सवाल है- गुलाबी या काला?"

अगर मानव शरीर ने बाहरी अंग के खिलाफ भयानक हमला बोल दिया तो सूअर के उत्तक में मौजूद हर कोशिका में छेद हो जाएंगे. साथ ही इस अंग में भीतर से बाहर तक थक्का जम जाएगा. इसके बाद पहले यह चितकबरा फिर नीला और फिर कुछ ही मिनटों में काला हो जाएगा.

अगर 'हाइपरएक्यूट रिजेक्शन' से बच जाते हैं तो यह प्रत्यारोपित अंग खून और ऑक्सीजन से गुलाबी हो जाता है.

हाइपरएक्यूट रिजेक्शन प्रत्यारोपण के कुछ ही मिनट बाद शुरू हो जाता है. यह प्रक्रिया तब शुरू होती है जब एंटीजेन का पूरी तरह मिलान नहीं हो पाता है.

अंग प्रत्यारोपण ऑपरेशन के बाद अमेरिका में अलबामा यूनिवर्सिटी के डॉक्टर लोक ने कहा, "प्रत्यारोपित अंग गुलाबी हो गया और अब यह खूबसूरत दिख रहा है. अब राहत का अहसास हो रहा है. कमरे में खुशी और उम्मीद का माहौल है."

यह ऑपरेशन चिकित्सा जगत में कामयाबियों की श्रृखंला में से एक है. इसने जेनोट्रांसप्लांटेशन के क्षेत्र में फिर से दिलचस्पी पैदा कर दी है.

मानव शरीर के लिए जानवरों के अंग का इस्तेमाल पुराना आइडिया है. इस क्रम में चिंपैंजी के अंडकोष के प्रत्यारोपण से लेकर बंदरों की दूसरी प्रजातियों के गुर्दे और हृदय निकाल कर इस्तेमाल किए जा चुके हैं. हालांकि इन प्रत्यारोपण की परिणति मृत्यु में ही हुई है.

दिक्कत यह है कि मानव शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र (इम्यून सिस्टम) प्रत्यारोपित अंगों को एक संक्रमण की तरह लेता है और उस पर हमला करता है.

इस वक्त प्रत्यारोपण के लिए सबसे ध्यान सूअरों पर है क्योंकि उनके अंगों का आकार अमूमन मानव शरीर के अंगों के आकार के बराबर होता है. सूअर पालने का हमारा अनुभव सदियों पुराना है.

लेकिन अंग प्रत्यारोपण में सबसे बड़ी चुनौती है हाइपरएक्यूट रिजेक्शन. अंग गुलाबी रहे और काला न पड़े, यह भी एक चुनौती है. ऐसा नहीं है कि आप सीधे किसी सूअर के फार्म में जाएं. वहां से एक सूअर पकड़ कर ले जाएं और इसके अंग को मानव शरीर में प्रत्यारोपित कर दें.

अंग प्रत्यारोपण के लिए जेनेटिक इंजीनियरिंग को विकास के कई चरणों से गुजरना पड़ा है ताकि सूअर के डीएनए को बदला जा सके. इस बदलाव से उनके अंग मानव शरीर के प्रतिरोध तंत्र से ज्यादा तालमेल बिठा पाते हैं.

हाल में सूअर के गुर्दे और हृदय के जो प्रत्यारोपण हुए उनमें अंग खास तौर पर तैयार '10- जीन सूअर' से लिए गए गए थे.

दान किए गए किसी अंग को मानव विकास हारमोन को प्रतिक्रिया देने से रोकने और अनियंत्रित वृद्धि से बचाने के लिए इसके जीन में एक बदलाव किया गया था.

एक और अहम बदलाव किया गया शर्करा अणु हटा कर. इसे अल्फा-गैल कहा जाता है. यह सूअर की कोशिका की सतह में चिपकता है और एक बड़े चमकते नियोन संकेत की तरह काम करता है. इस तरह यह टिश्यू को पूरी तरह एलियन बना देता है.

पूरक प्रणाली कहा जाने वाला हमारे प्रतिरक्षा प्रणाली की एक इकाई अल्फा-गैल का इंतजार करने वाले शरीर की निगरानी करती है. यही वजह है प्रत्यारोपित होने के कुछ ही क्षणों के बाद अंग शरीर की ओर से खारिज कर दिए जाते हैं या मार दिए जाते हैं.

इस प्रयोग के दौरान दो अन्य 'नियोन संकेत' जेनेटिक तौर पर हटा दिए गए थे. इसके बजाय छह मानव संकेत जोड़े गए थे. यह सूअर की कोशिकाओं के ऊपर एक छद्म आवरण की तरह काम रहे थे. इससे इन्हें शरीर के प्रतिरोधी तंत्र से छिपने में मदद मिल रही थी.

बहरहाल, जो 10-जीन सूअर तैयार किया जाता है उसे जीवाणुरहित माहौल में बड़ा किया जाता है. ताकि वह प्रत्यारोपण के मुफीद हो सके.

वह अंग दान करना चाहते थे. ब्रेन डेड अवस्था में उनके परिवार की इजाजत से उनके गुर्दों की जगह सूअर के गुर्दे प्रत्यारोपित किए गए.

डॉक्टर लोक बताती हैं कि प्रत्यारोपित गुर्दों में से एक ने मूत्र बनाना शुरू कर दिया. यह कामयाबी उल्लेखनीय थी. इससे लगा कि जेनोट्रांसप्लांटेशन वास्तव में लोगों की जिंदगी बदल सकता है. और सीधे तौर पर कहें तो उनकी जिंदगी बचा सकता है. उन्हें उम्मीद है कि इस साल इसका क्लीनिकल ट्रायल शुरू हो सकता है.

वो ऑपरेशन तीन दिन का लंबा प्रयोग था लेकिन इस बीच मैरीलैंड मेडिकल सेंटर यूनिवर्सिटी के सर्जन एक कदम आगे बढ़ कर प्रयोग करने के लिए तैयार थे.

57 साल के उनके मरीज डेविड बेनेट को भारी हार्ट अटैक आया था. उनका शरीर मानव अंग प्रत्यारोपण के मुफीद नहीं लग रहा था. उन्हें एक्मो मशीन के जरिये जिंदा रखा गया था. इससे उनके गुर्दे और फेफड़ों को सहारा मिला हुआ था.

बेनेट ने सूअर के हृदय को 'अंधेरे में लगाया गया निशाना' बताया.

इस ऑपरेशन के दौरान 10-जीन सूअर को 7 जनवरी को अस्पताल ले जाया गया. फिर इसके हृदय को बेनेट की छाती के अंदर दाखिल करा दिया गया. ऑपरेशन काफी पेचीदा था क्योंकि बेनेट का बीमार हृदय सूज गया था. इसलिए उसकी रक्त धमनियों को सूअर के छोटे हृदय से जोड़ना एक चुनौती था.

एक बार फिर घबराहट का माहौल था. ऐसा लग रहा था कि क्या प्रत्यारोपित हृदय तुरंत खारिज हो जाएगा. लेकिन यह धड़कता रहा और आखिरकार गुलाबी रंग में तब्दील हो गया. अस्पताल में कार्डियक जेनोट्रांसप्लांटेशन विभाग के डायरेक्टर डॉ. मोहम्मद मोहिउद्दीन ने कहा कि वह तो 'अपनी जिंदगी' में इस सफलता को देखने की उम्मीद नहीं कर रहे थे.

जब मैंने इस ऑपरेशन के एक महीना पूरा होने पर उनसे बात की तो उन्होंने बताया कि शरीर की ओर से प्रत्यारोपित अंग को खारिज करने के कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं. लेकिन बेनेट अब भी काफी कमजोर दिख रहे थे.

उन्होंने कहा, '' हमने 1960 की एक कार में फरारी का नया ईंजन डाल दिया है. ईंजन काफी अच्छे तरीके से काम कर रहा है लेकिन बाकी बॉडी को भी अभी इससे एडजस्ट करना है. ''

लेकिन प्रत्यारोपण के दो महीनों के बाद बेनेट की मौत हो गई. लिहाजा जेनोट्रांसप्लांटेशन के असर और वजहों के बारे में अभी भी अनिश्चितता बनी हुई है.

बेनेट ऑपरेशन से पहले भी काफी कमजोर थे और यह संभव हो सकता है कि उनके लिए नया हृदय भी पर्याप्त न हो.

इस मामले में प्रत्यारोपित अंग को खारिज किए जाने के किसी संकेत की रिपोर्ट नहीं थी . लेकिन अगर हृदय का विस्तृत विश्लेषण प्रतिरक्षा रक्षा प्रणाली की ओर से इस पर हमला करने का संकेत देता है तो 10-जीन सूअर में और संशोधन की जरूरत होती है ताकि प्रत्यारोपण के लिए अंग मानव शरीर के ज्यादा मुफीद हो सके.

और अंतत: मामला शरीर रचना पर आ सकता है और सूअर का हृदय मानव शरीर के मुफीद नहीं बैठ सकता. हमारे हृदय को गुरुत्वाकर्षण से लड़ने के लिए सूअर की तुलना में ज्यादा परिश्रम करना पड़ता है क्योंकि मनुष्य को दो पैरों पर चलना पड़ता है. जबकि सूअर के चार पैर होते हैं.

नॉटिंघम यूनिवर्सिटी में स्टेम सेल बायोलॉजी विभाग के प्रोफेसर क्रिस डेनिंग ने कहा कि हाइपरएक्यूट रिजेक्शन की नाकामी से पार पाने का मतलब हृदय प्रत्यारोपण की सफलता मानी जाएगी.

उन्होंने कहा कि अगर मामला मरीज की कमजोरी का था तो यह और बात है. लेकिन 'जेनोट्रांसप्लांटेशन' भविष्य में सफल हो सकता है. लेकिन अगर शरीर रचना का मामला हो तो यह 'संभावित शो स्टॉपर' हो सकता है.

अस्पताल अब अपने क्लीनिकल ट्रायल को जारी रखना चाहता है.

अंग प्रत्यारोपण की दुनिया में सूअर के अंगों से बढ़ी उम्मीद
ब्रिटेन के सबसे नामचीन ट्रांसप्लांट सर्जनों में से एक प्रोफेसर जॉन वॉलवर्क के मुताबिक बड़ी तादाद में लोगों की जिंदगी बचाने के लिए जरूरी नहीं कि गुणवत्ता में सूअर के हृदय को मानव हृदय की तरह ही होना पड़े. वह कहते हैं कि कई लोग अब भी ट्रांसप्लांट के इंतजार में मर जाते हैं.

जेनोट्रांसप्लांटेशन के क्षेत्र में काम करने वाले प्रोफेसर वॉलवर्क शुरुआती लोगों में से एक हैं. उन्होंने ही दुनिया का पहला हृदय-फेफड़ा-लीवर प्रत्यारोपण किया था. वह कहते हैं कि 100 लोगों को मानव हृदय के साथ जिंदा रहने का 85 फीसदी मौका देने से अच्छा है कि 1000 लोगों को इसके साथ जिंदा रहने का 70 फीसदी मौका मिले.

जेनो ट्रांसप्लांटेशन को ट्रांसप्लांट मेडिसिन में हमेशा एक अगली बड़ी चीज के तौर पर देखा गया गया है. यही वजह है कि इसमें एक के बाद एक उल्लेखनीय ऑपरेशन हुआ. लेकिन आगे होने वाली और रिसर्च ही बता सकेंगी कि इसका बड़ा सपना मुकम्मल रूप ले सकेगा या नहीं.

डॉ. लोक कहती हैं, '' हमारा लक्ष्य यह होगा कि एक एडिटेड 10-जीन सूअर किडनी, लीवर और हृदय के नाकाम होने पर मरीजों की मदद कर सके और आखिरी दौर की दिल के मरीजों को बीमारी से निजात दिला सके.

उन्होंने कहा, यह बेहद अहम उपलब्धि होगी और मेरा ईमानदारी से यह मानना है कि अपने जीवनकाल में भी हम सब उस दौर में होंगे. ''

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