अंतरराष्ट्रीय
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वुसतुल्लाह ख़ान
ये ठीक है कि पाकिस्तान में आज तक किसी प्रधानमंत्री ने पांच वर्ष की मुद्दत पूरी नहीं की.
ये भी ठीक है कि कोई प्रधानमंत्री फ़ौज ने कान पकड़कर निकाला तो किसी को न्याय तंत्र ने दरवाज़ा दिखाया. मगर इमरान ख़ान को सिवाए विपक्ष के कोई भी घर नहीं भेजना चाहता था. यूं वो पहले प्रधामंत्री बन गए जिन्हें संविधान में लिखे गए तरीके के मुताबिक घर जाना पड़ा.
लेकिन ये भी इतनी आसानी से नहीं हुआ. शुरू शुरू में जब अविश्वास प्रस्ताव पार्टियामेंट में जमा कराया गया तो प्रधानमंत्री ने उसे मज़ाक समझते हुए कहा कि मैं तो ख़ुद ऊपर वाले से दुआ कर रहा था कि ऐसा कोई मौका आ जाए कि मैं विपक्ष के चोरों डाकुओं पर खुलकर हाथ डाल सकूं. जब मैं इस अविश्वास को विश्वास में बदलकर पार्टियामेंट से घर जाऊंगा तो मेरे हाथ खुल चुके होंगे और फिर मैं इन चोरों डाकुओं का वो हश्र करूंगा कि इनकी नस्लें तक याद रखेंगी.
ज्यों ज्यों दिन गुज़रते गए प्रधानमंत्री को लगने लगा कि मामला शायद थोड़ा सीरियस है. परंतु उन्होंने इसका तोड़ गद्दारी के पुराने चूरन से निकालने की कोशिश की और नारा लगा दिया कि ये सब अमेरिका करवा रहा है और भरे जलते में काग़ज भी लहराया.
बाद में पता चला कि ये गद्दारी कार्ड तो दरसअल वो इंटरनल मेमो है जिस वॉशिंगटन से पाकिस्तानी राजदूत ने एक अमेरिकी अफ़सर से मुलाक़ात का हाल भेजा है. इसमें वो शिकायतें थीं जो अमेरिका को पाकिस्तान से थीं और ऐसे सीक्रेट मेमो कभी भी खुलेआम नहीं लहराए जाते. उनसे विदेशी मामलों का दफ़्तर तयशुदा नियमों के हिसाब से निपटता है.
इमरान ख़ान जो पौने चार वर्ष पूरी कौम से कहते रहे कि आपने घबराना नहीं है. वो सिर्फ़ एक अविश्वास प्रस्ताव आने से घबरा गए.
जब गद्दारी का चूरन भी गुप्तचर संस्थाओं, न्याय तंत्र और सबसे नजदीकी दोस्त चीन तक ने खरीदने से इनकार कर दिया तो फिर ख़ान साहब ने कौमी असेंबली के स्पीकर और डिप्टी स्पीकर को आदेश दिया कि किसी भी सूरत अविश्वास प्रस्ताव मंज़ूर न होने पाए.
जैसे ही स्पीकर ने ये प्रस्ताव रद्द किया अगले एक घंटे में ख़ान साहब ने राष्ट्रपति के दस्तख़्तों से असेंबली तोड़ने की घोषणा करवा दी.
मगर उच्चतम न्यायालय ने चार दिन बाद ही इन तमाम हरकतों को संविधान के ख़िलाफ़ करार देते हुए असेंबली बहाल करके अविश्वास पत्र पर एक ही दिन में कार्यवाही मुक्कमल करने का आदेश दिया.
स्पीकर और ख़ान साहब ने इस आदेश की भी धज्जियां उड़ाने की कोशिश की और जाते जाते सुना है कि आर्मी चीफ़ को भी बदलने की कोशिश की.
जब पार्लियामेंट के बाहर कै़दी ले जाने वाली गाड़ी खड़ी हो गई. उच्चतम न्यायालय के दरवाज़े रात 12 बजे खुल गए और दो आला अफ़सर उससे दो घंटे पहले प्रधानमंत्री भवन के लॉन में हेलीकॉप्टर से उतरे और उन्होंने ख़ान साहब को अविश्वास प्रस्ताव का मतलब ठीक से समझाया तब जाकर ख़ान साहब ठंडे पड़े.
मगर तब भी त्यागपत्र देकर घर जाने की बजाए अविश्वास प्रस्ताव की मंज़ूरी का इंतज़ार करते रहे.
इमरान ख़ान ने आख़िरी दिनों में भारत की आज़ाद विदेशी पॉलिसी की बहुत तारीफ की. काश कोई ख़ान साहब को ये भी बता देता कि उसी भारत के एक नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने अविश्वास प्रस्ताव को किस तरह स्वीकार करके पार्लियामेंट बिल्डिंग से घर जाने का बाइज्ज़त रास्ता चुना और फिर अगला चुनाव जीतकर उसी रास्ते से लोकसभा में दाखिल हुए.
मालूम नहीं आपमें से कितनों ने वो मुहावरा सुना है कि राजा जी के दरबार में सौ जूते भी खाए और सौ प्याज़ भी. जिन्होंने सुन रखा है वो इसका बैकग्राउंड उन्हें बता दें जिन्होंने नहीं सुन रखा.
अब हम एक बार फिर नए पाकिस्तान से पुराने वाले में दाखिल हो गए हैं. मगर इस बार संवैधानिक दरवाज़े से. स्वागत नहीं करोगे हमारा. (bbc.com)