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शहबाज़ शरीफ़ः ऐसे पहुँचे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक
11-Apr-2022 6:19 PM
शहबाज़ शरीफ़ः ऐसे पहुँचे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक

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-अभिनव गोयल

पाकिस्तान में इमरान ख़ान के बाद अब शहबाज़ शरीफ़ मुल्क़ के अगले प्रधानमंत्री होंगे. पाकिस्तान की संसद में सोमवार को बहुमत परीक्षण के लिए हुए मतदान में उन्हें जीत मिली. वो विपक्ष के संयुक्त उम्मीदवार हैं. उन्हें 174 वोट मिले.

इससे पहले रविवार तड़के एक अविश्वास प्रस्ताव पर हुए मतदान के बाद इमरान ख़ान को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा था. उनकी जगह उनकी पार्टी पाकिस्तान तहरीके इंसाफ़ (पीटीआई) ने शाह महमूद क़ुरैशी को उम्मीदवार बनाया था मगर सोमवार को वोटिंग से पहले उन्होंने अपना नाम वापस ले लिया. उनकी पार्टी ने वोटिंग के दौरान सदन की कार्रवाई का बहिष्कार किया. क़ुरैशी को एक भी वोट नहीं मिला.

शहबाज़ शरीफ़ पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ के भाई हैं और पाकिस्तान में राजनीतिक तौर पर सबसे ताक़तवर समझने जानेवाले पंजाब प्रांत के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. वे पिछले तीन साल से संसद में विपक्ष के नेता थे, लेकिन उन्हें केंद्र की राजनीति में नया चेहरा माना जाता है. आइए जानें कैसा रहा है शहबाज़ शरीफ़ का सियासी सफ़र.

ये बात पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में विपक्ष के नेता शहबाज़ शरीफ़ ने ऐसे वक्त में कही थी जब इमरान ख़ान सबसे बड़े राजनीतिक संकट का सामना कर रहे थे. उनका राजनीतिक भविष्य दांव पर लगा था. अपनी सरकार बचाने के लिए उन्हें विश्वास मत साबित करना था जो इमरान खान नहीं कर पाए. अब विपक्ष का चेहरा शहबाज़ शरीफ़ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बन रहे हैं.

फूल और बहार की बातें शायद शहबाज़ शरीफ़ इसी उम्मीद से कर रहे थे.

शहबाज़ शरीफ़ पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ के भाई हैं. भ्रष्टाचार के आरोप में जेल से रिहा होने के बाद से वे देश नहीं लौटे हैं. उनका लंदन में इलाज चल रहा है. हालांकि अब कहा जा रहा है कि वो अब पाकिस्तान लौट सकते हैं. नवाज़ शरीफ़ की सरकार को हराकर ही इमरान ख़ान पाकिस्तान की सत्ता पर क़ाबिज़ हुए थे.

शहबाज़ शरीफ़ के सामने कई बार पाकिस्तान की सत्ता संभालने का मौका आया, लेकिन उन्होंने अपने भाई नवाज़ शरीफ़ के साथ चलते हुए अपने रास्ते नहीं बदले. शहबाज़ शरीफ़ के पंजाब प्रांत के मुख्यमंत्री बनने से लेकर नेशनल असेंबली में विपक्ष के नेता चुने जाने तक की कहानी बहुत दिलचस्प है.

शहबाज़ शरीफ़ अक्सर भाषणों और रैलियों के दौरान क्रांतिकारी कविताएं सुनाते हैं. सार्वजनिक मौकों पर बोलते हुए ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो की तरह माइक गिराने की नकल करते हैं. इस बात को लेकर पाकिस्तान के टेलीविज़न चैनलों पर उनका मज़ाक उड़ाया जा चुका है.

शहबाज़ शरीफ़ का जन्म पाकिस्तान के एक प्रतिष्ठित व्यापारी परिवार में हुआ. डेली टाइम्स वेबसाइट के मुताबिक शहबाज़ शरीफ़ कश्मीरी मूल के पंजाबी हैं. वे जम्मू-कश्मीर के मियां जनजाति से ताल्लुक़ रखते हैं.

एक के रिपोर्ट के मुताबिक़ शरीफ परिवार कश्मीर में अनंतनाग का रहने वाला था जो बाद में व्यापार के सिलसिले में अमृतसर के जटी उमरा गांव में रहने लगा. बाद में अमृतसर से परिवार लाहौर जा पहुंचा. शहबाज़ शरीफ़ की मां का परिवार कश्मीर के पुलवामा से था.

उन्होंने स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद पाकिस्तान में 'इत्तेफ़ाक़ ग्रुप' को सफल बनाने में मुख्य भूमिका निभाई जिसे उनके पिता मोहम्मद शरीफ़ ने शुरू किया था. 'डॉन' अख़बार के मुताबिक़ 'इत्तेफाक ग्रुप' पाकिस्तान का सबसे बड़ा व्यापारिक समूह है जिसमें स्टील, चीनी, कपड़ा, बोर्ड उद्योग जैसे कारोबार शामिल हैं और शहबाज़ शरीफ़ इस ग्रुप के सह-मालिक हैं.

बीबीसी से बातचीत में पाकिस्तान के राजनीतिक विश्लेषक सुहैल वरैच बताते हैं, ''शहबाज़ शरीफ़ का जन्म एक जाने-माने परिवार में हुआ था. शुरू में वे अपने बड़े भाई नवाज़ शरीफ को उनके कामों में मदद करते थे, फिर भाई की मदद से ही उन्होंने राजनीति में क़दम रखा.''

राजनीति में एंट्री
शहबाज़ शरीफ़ को साल 1985 में लाहौर चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री का अध्यक्ष चुना गया. उनके सियासी सफ़र की शुरुआत साल 1988 में हुई जब वो पंजाब विधानसभा के सदस्य चुने गए, मगर विधानसभा भंग हो गई, वो अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए.

इसके बाद शहबाज़ शरीफ़ ने राष्ट्रीय राजनीति में कदम रखा. साल 1990 में वे पाकिस्तान की संसद नेशनल असेंबली के लिए चुने गए. ये वही समय था जब नवाज़ शरीफ़ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने थे. जितने दिन नवाज़ शरीफ़ प्रधानमंत्री रहे उतना ही समय शहबाज़ शरीफ़ नेशनल असेंबली में बने रहे.

सेना के बढ़ते दबाव के कारण 1993 में नवाज़ शरीफ़ को प्रधानमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी. इसी साल शहबाज़ शरीफ़ पंजाब विधानसभा पहुँचे और 1996 तक विपक्ष के नेता रहे. 1997 में वे तीसरी बार पंजाब विधानसभा के लिए चुने गए, और मुख्यमंत्री बने. वे लगभग 13 वर्षों तक प्रांत के मुख्यमंत्री रहे.

इस दौरान वह कई बार भाषणों में अपने भावनात्मक रवैये और कभी अपने काम करने के अंदाज़ के कारण राजनीतिक विरोधियों, मीडिया और लोगों के ध्यान का केंद्र बने रहे हैं. कभी वह बूट पहने बाढ़ के पानी में खड़े नज़र आते तो कभी सरकारी संस्थानों पर 'अचानक छापे' मारते नज़र आते थे.

शहबाज़ शरीफ़ की सरकार के अलग-अलग दौर में उनके राजनीतिक विरोधी और विपक्षी दल उनके इस अंदाज़ की आलोचना भी करते रहे, उनका मानना था कि वह यह सब कुछ दिखावे के लिए करते हैं, नहीं तो हर जगह मीडिया उनके साथ क्यों होता था.

हालांकि, शहबाज़ शरीफ़ को क़रीब से जानने वाले सरकारी अधिकारी और पत्रकार मानते हैं कि "ज़ाहिरी तौर पर इन सभी दिलचस्प लम्हों से अलग शहबाज़ शरीफ़ 'एक मेहनती नेता थे.' उनका मानना है कि शाहबाज़ शरीफ़ एक अच्छे प्रबंधक थे, जो अपने लिए एक बार कोई लक्ष्य तय कर लेते थे तो उसे पूरा करते थे.

सैन्य तख़्तापलट के समय हुई गिरफ़्तारी

शहबाज़ शरीफ़ को पंजाब का मुख्यमंत्री बने क़रीब दो साल ही हुए थे कि पाकिस्तान में सैन्य तख़्तापलट हो गया. 12 अक्टूबर 1999 की शाम जनरल परवेज़ मुशर्रफ ने पाकिस्तान में चुनी हुई सरकार को गिरा दिया. ऐसे में शहबाज़ शरीफ़ को भी गिरफ़्तार कर लिया गया.

अप्रैल 2000 में शहबाज़ शरीफ़ के बड़े भाई नवाज़ शरीफ़ को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई. उन्हें जनरल मुशर्रफ के विमान का अपहरण करवाने और आतंकवाद के आरोप के तहत सज़ा दी गई थी. क़रीब आठ महीने बाद पाकिस्तान की सैन्य सरकार ने नवाज़ शरीफ़ को माफ़ी दी और कथित समझौते के तहत परिवार के 40 सदस्यों के साथ उन्हें सऊदी अरब भेज दिया गया. इन 40 लोगों में नवाज़ शरीफ के छोटे भाई शहबाज़ शरीफ़ भी थे.

रॉयटर्स न्यूज एजेंसी के मुताबिक़, पाकिस्तान में गिरफ़्तारी के जोख़िम के बावजूद वे 2004 में अबू धाबी से फ़्लाइट पकड़कर लाहौर आ गए थे. कुछ ही घंटों के भीतर उन्हें सऊदी अरब वापस भेज दिया गया था.

साल 2007 में जब शहबाज़ शरीफ़ पाकिस्तान लौटे तो उन्हें इस मामले में अदालत से ज़मानत लेनी पड़ी, लेकिन आम चुनाव तक वो इस केस में बरी नहीं हुए थे, इसलिए उन्हें उपचुनाव में भाग लेना पड़ा. वह भाकर सीट से जीत कर एक बार फिर पंजाब के मुख्यमंत्री चुने गए, लेकिन अगले ही साल सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया.

पाकिस्तान में फिर से हुई वापसी
शहबाज़ शरीफ़ ने इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ बड़ी बेंच में याचिका दायर की. दो महीने बाद फ़ैसला उनके पक्ष में आया और उन्हें दोबारा मुख्यमंत्री के पद पर बहाल कर दिया गया.

23 अगस्त 2007 को पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय ने ऐतिहासिक फ़ैसला सुनाते हुए कहा कि शहबाज़ शरीफ़ और नवाज़ शरीफ़ पाकिस्तान लौट सकते हैं और राष्ट्रीय राजनीति में हिस्सा ले सकते हैं.

नवंबर, 2007 में नवाज़ शरीफ के साथ शहबाज़ शरीफ़ भी पाकिस्तान लौटे. 2008 में नवाज़ शरीफ़ की पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) ने अच्छा प्रदर्शन किया, लेकिन सरकार नहीं बना पाए.

दूसरी तरफ़ 2008 में शहबाज़ शरीफ़ चौथी बार पंजाब विधानसभा में सदस्य के रूप में चुने गए और अगले पांच सालों तक पंजाब के मुख्यमंत्री रहे.

2013 में पाकिस्तान में आम चुनाव हुए. नवाज़ शरीफ़ की पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) पंजाब में प्रचंड जनादेश के साथ सत्ता में आई. शहबाज़ शरीफ़ पंजाब के मुख्यमंत्री चुने गए. दूसरी तरफ बड़े भाई नवाज़ शरीफ़ ने प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली. शहबाज़ शरीफ़ ख़ुद को मुख्यमंत्री की बजाय पंजाब का ख़ादम-ए-आला यानी मुख्य सेवक सुनना पसंद करते हैं.

लाहौर की तस्वीर बदली
पाकिस्तान के राजनीतिक विश्लेषक सुहैल वरैच का मानना है कि शहबाज़ शरीफ़ एक अच्छे मैनेजर रहे हैं. बीबीसी से बातचीत में सुहैल वरैच बताते हैं, ''शहबाज़ शरीफ़ ने ना सिर्फ लाहौर बल्कि पूरे पंजाब की तस्वीर बदलने का काम किया है. वे पंजाब में डेवलपमेंट के लिए जाने जाते हैं. मेट्रो बस और ऑरेंज ट्रेन का श्रेय शहबाज़ शरीफ़ को ही जाता है''

शहबाज़ शरीफ़ ने 'सस्ती रोटी' और 'लैपटॉप योजना' शुरू की थी जिसकी काफ़ी आलोचना हुई. वहीं दूसरी तरफ़ आशियाना हाउसिंग स्कीम के लिए उन्हें सराहा गया.

शहबाज़ शरीफ़ अपने बड़े भाई नवाज़ शरीफ़ के सामने राजनीति में हमेशा दूसरे दर्जे की भूमिका निभाते रहे. प्रधानमंत्री हमेशा नवाज़ शरीफ़ बने और मुख्यमंत्री शहबाज़ शरीफ़.

हालांकि, साल 2017 में स्थिति उस समय बदल गई जब सुप्रीम कोर्ट ने पनामा मामले में नवाज़ शरीफ़ को आजीवन अयोग्य क़रार दे दिया. पार्टी की अध्यक्षता तो शहबाज़ शरीफ़ के पास आ गई लेकिन प्रधानमंत्री पद शाहिद ख़ाकान अब्बासी के हिस्से में आया.

उधर, अदालत से सज़ा सुनाए जाने के बाद कुछ समय जेल की सज़ा भुगतने के बाद नवाज़ शरीफ़ इलाज की इजाज़त लेकर लंदन चले गए और अभी तक वापस नहीं आये हैं.

इसी कमी को पूरा करने के लिए साल 2018 के चुनाव में शहबाज़ शरीफ़ ने पंजाब छोड़कर केंद्र में आने का फ़ैसला किया. वो नेशनल असेंबली के सदस्य चुने गए और दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के नेता होने की वजह से, विपक्ष के नेता भी चुने गए.

जेल में गुज़ारे कई महीने

पाकिस्तान में 2018 में आम चुनावों में पीएमएल-एन ने शहबाज़ शरीफ़ को अपना प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाया था. इस आम चुनाव में तहरीक़-ए-इंसाफ़ (पीटीआई) सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और इमरान ख़ान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने. चुनाव हारने के बाद शहबाज़ शरीफ़ को विपक्ष के नेता के रूप में चुना गया.

साल 2020 में शहबाज़ शरीफ़ की ज़मानत याचिका ख़ारिज होने के बाद उन्हें मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में गिरफ़्तार किया गया था. क़रीब सात महीने लाहौर की कोट लखपत सेंट्रल जेल में रहने के बाद वे बाहर आए.

उस समय इमरान ख़ान के सलाहकार शहज़ाद अकबर ने उनके बेटे हमज़ा और सलमान पर भी फ़र्ज़ी खातों के ज़रिए मनी लॉन्ड्रिंग में शामिल होने के आरोप लगाए थे. गिरफ़्तारी से पहले शहबाज़ शरीफ़ ने इमरान ख़ान पर साज़िश के तहत गिरफ़्तार करवाने के आरोप लगाए थे.

24 मई 2021, ये वो दिन था जब नेशनल असेंबली में विपक्ष के नेता शहबाज़ शरीफ़ ने विपक्षी दलों के नेताओं को डिनर के लिए बुलाया. ये मुलाक़ात इस्लामाबाद में हुई. इस डिनर पर शहबाज़ शरीफ़ ने पाकिस्तान की सत्ता में मौजूद इमरान के नेतृत्व वाली सरकार को हटाने के लिए एक मंच पर एकजुट होने की अपील की.

इसके बाद लगातार विपक्ष इमरान ख़ान की सरकार को अलग-अलग मोर्चों पर घेरता रहा. हाल के दिनों में पाकिस्तान की सियासत में सारे दाँव-पेच खेले गए. एक के बाद एक सत्तारूढ़ तहरीक-ए-इंसाफ़ पार्टी की सरकार से कई सहयोगियों ने समर्थन वापस ले लिया और इमरान खान की सरकार अल्पमत में आ गई.

विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव को 342 सांसदों की नेशनल असेंबली में 172 सांसदों के समर्थन की ज़रूरत थी. इसी संख्याबल के दम पर विपक्षी पार्टियों ने इमरान ख़ान को सत्ता से बाहर कर दिया.

शहबाज़ शरीफ़ के सेना के साथ रिश्तों पर बीबीसी से बात करते हुए पाकिस्तान के राजनीतिक विश्लेषक सुहैल वरैच बताते हैं, ''बड़े भाई नवाज शरीफ के मुकाबले शहबाज़ शरीफ़ के सेना के साथ शुरू से काफी अच्छे रिश्ते हैं. उन्हें लंबा राजनीति का अनुभव है. वे अच्छे गवर्नर रहे हैं. कंट्रोल करने की क्षमता उनमें काफ़ी अच्छी है''.

शहबाज़ शरीफ़ की निजी जिंदगी पर बात करते हुए राजनीतिक विश्लेषक सुहैल वरैच बताते हैं, ''साल 2003 में शहबाज़ शरीफ़ ने तहमीना दुर्रानी से तीसरी शादी की थी. इस शादी से उनके कोई औलाद नहीं है. पहली पत्नी से दो बेटे हैं, दूसरी पत्नी से एक बेटी है. ज़्यादातर समय वो अपनी पहली पत्नी के साथ रहते हैं''

शहबाज़ शरीफ़ के बेटे हमज़ा शरीफ़ का जन्म 6 सितंबर 1974 को लाहौर में हुआ था. उन्होंने लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई पूरे करने के बाद लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स से एलएलबी की डिग्री हासिल की.

हमज़ा शरीफ़ 2008-13 और 2013-18 के दौरान लगातार दो बार पाकिस्तान के सांसद रहे हैं. वे पंजाब की विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे और कुछ ही दिनों पहले वो पंजाब के मुख्यमंत्री बन गए हैं. (bbc.com)

 

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