खेल

शतरंज के खिलाड़ी विश्वनाथन आनंद ने बताया- सोचने-समझने का अंदाज़
21-Jun-2022 8:47 AM
शतरंज के खिलाड़ी विश्वनाथन आनंद ने बताया- सोचने-समझने का अंदाज़

-सरन्या नागराजन

भारत पहली बार शतरंज की दुनिया की बहुप्रतीक्षित प्रतियोगिता 44वें 'चेस ओलंपियाड' को चेन्नई के निकट महाबलीपुरम में आयोजित करने जा रहा है.

आगामी 28 जुलाई से शुरू होकर 10 अगस्त तक चलने वाले इस टूर्नामेंट में 186 देशों के 2000 से ज़्यादा खिलाड़ियों के भाग लेने की संभावना है.

इस साल चेस ओलंपियाड टॉर्च रिले की शुरुआत की गई है. पीएम नरेंद्र मोदी ने बीते 19 जून को टॉर्च रिले को फ़्लैग ऑफ़ किया.

इस कार्यक्रम के दौरान शतरंज के क्षेत्र की अंतरराष्ट्रीय संस्था एफ़आईडीई के अध्यक्ष आर्कडी द्वोरकोविक ने टॉर्च पीएम नरेंद्र मोदी को दी जिसके बाद उन्होंने ये टॉर्च भारतीय चेस ग्रांड मास्टर विश्वनाथन आनंद को थमाई.

ये टॉर्च 75 शहरों से होती हुई आख़िरकार महाबलीपुरम पहुंचेगी, जहाँ इस टूर्नामेंट को आयोजित किया जाना है. भारत इस बार टूर्नामेंट में अपने शतरंज खिलाड़ियों का सबसे बड़ा जत्था भेजने जा रहा है.

बीबीसी संवाददाता सरन्या नागार्जुन ने ग्रैंड मास्टर विश्वनाथन आनंद से शतरंज की दुनिया में उनके सफर और इसके भविष्य पर बातचीत की है.

पढ़िए इस इंटरव्यू के कुछ ख़ास अंश -

आपने कई बार अपने इंटरव्यू के दौरान कहा है कि आपकी माँ ने चेस से आपका परिचय करवाया. क्या आप अपने इस सफ़र को लेकर कुछ बता सकते हैं?

मैं जब छह साल का था, तब मेरे बड़े भाई और बड़ी बहन चेस खेल रहे थे. ये देखकर मैंने अपनी माँ से मुझे चेस सिखाने के लिए कहा. इसके बाद उन्होंने मुझे चेस सिखाया. शुरुआत में कई सारी चीज़ें सीखना मुश्किल था. लेकिन मैं लगातार कोशिश करता रहा. माँ को जब ये अहसास हुआ कि मुझे इस खेल में दिलचस्पी है तो उन्होंने मेरा दाखिला चेन्नई चेस क्लब में करवा दिया.

मैं ट्रेनिंग सेशन में भाग लिया करता था. अगर कभी मुझे अगले दिन ट्रेनिंग पर जाना होता था तो मैं अपना होमवर्क एक शाम पहले ही ख़त्म कर लिया करता था. इसी बीच मेरे पिता को काम के सिलसिले में साल भर के लिए फिलीपींस जाना पड़ा. फिलीपींस में रहने की वजह से चेस के प्रति मेरी दिलचस्पी काफ़ी बढ़ गई. उन दिनों फिलीपींस में चेस काफ़ी लोकप्रिय खेल हुआ करता था.

टीवी पर चेस से जुड़े कई कार्यक्रम आया करते थे. मेरी मां टीवी में बताए गए चेस पज़ल लिख लिया करती थीं. स्कूल से आने के बाद मैं माँ के साथ बैठकर उन चेस पज़ल्स को हल किया करता था. वहाँ पर चेस टूर्नामेंट भी आयोजित हुआ करते थे जिससे इस खेल में मेरी रुचि और ध्यान केंद्रित होता चला गया. वहाँ से वापस आने के बाद मैंने तमिलनाडु में जूनियर डिविज़न स्तर पर खेलना शुरू किया.

लोग कहते हैं कि 'चेस एक मांइड गेम है'. क्या ये खेल दिमाग़ी क्षमता से जुड़ा हुआ है? आप क्या मानते हैं?

हाँ, बिलकुल, ये एक माइंड गेम है. एक ही जगह पर बैठकर दो-तीन घंटों तक सोचते हुए योजना बनानी पड़ती है. इसके साथ ही यह फ़िज़िकल गेम भी है क्योंकि ये शारीरिक रूप से काफ़ी थका सकता है. थकान आपके प्रदर्शन पर असर डाल सकती है.

हमें ध्यान रखना पड़ता है कि कब कौन सा दांव चलें. हमें उस दांव को याद रखना पड़ता है ताकि उसे सही वक़्त पर चला जा सके. हमें इसके लिए ट्रेनिंग की ज़रूरत पड़ती है. इसी वजह से शतरंज का खिलाड़ी दूसरे क्षेत्रों में भी अच्छा प्रदर्शन कर सकता है.

आपने बचपन में अपनी एकाग्रता बढ़ाने के लिए क्या किया?

मैं प्रैक्टिस करता रहता था. शतरंज खेलने से दिमाग़ी एकाग्रता का बढ़ना स्वाभाविक है. किसी किताब को पढ़ते हुए भी दिमाग़ में कुछ न कुछ चलता रहता था जैसे कि दूसरे लोग किस तरह अपना खेल खेलते हैं? वे अपने मोहरों को कैसे आगे बढ़ाते हैं? मैं अपनी चाल ठीक से क्यों नहीं चल पाता हूँ? मैं अपने खेल को कैसे सुधार सकता हूँ.

ये विचार मेरे ज़हन में आते रहते थे.

मैं सोचता था कि मैं चेस खेलने में कैसे बेहतर हो सकता हूँ और क्या दूसरे खिलाड़ियों ने भी ऐसे ही दांव चले हैं.

लगातार सोचने-विचारने की वजह से ही मैं प्रेक्टिस के दौरान इन चालों को चल पाता था.

चेस ओलंपियाड पहली बार तमिलनाडु में आयोजित होने जा रहा है, कितना ख़ास है ये टूर्नामेंट?

ये काफ़ी ख़ास है. भारत पहली बार इस प्रतियोगिता का आयोजन करने जा रहा है. ये काफ़ी अहम है कि इसका आयोजन तमिलनाडु में होने जा रहा है. हम इसे अपनी प्रतियोगिता कह सकते हैं. एशिया में इस तरह के बड़े टूर्नामेंट्स एक लंबे समय से आयोजित नहीं हुए हैं. ये बहुत ख़ास अवसर है.

ये देखना काफ़ी दिलचस्प होगा कि बहुत सारे लोग काफ़ी कम समय में चेस सीख जाएंगे. इस इवेंट के आयोजन का समय भी काफ़ी ख़ास है. हमारे पास काफ़ी अच्छे खिलाड़ी हैं.

भारत में काफ़ी अच्छे चेस प्लेयर हैं और 73 ग्रैंड मास्टर हैं. ऐसे में हमें इस अवसर का फ़ायदा उठाना है. तमिलनाडु सरकार इस इवेंट के आयोजन की ज़िम्मेदारी निभाकर महत्वपूर्ण काम कर रही है.

सामान्य रूप से इस तरह के आयोजन में लगभग दो साल का समय लगता है. लेकिन तमिलनाडु सरकार ने काफ़ी कम समय में ये करके दिखाया है. ऐसे में मुझे लगता है कि ये टूर्नामेंट शतरंज के खेल और तमिलनाडु दोनों के लिए एक बड़े अवसर जैसा है.

आपने युवा खिलाड़ियों का ज़िक्र किया, ऐसे युवा खिलाड़ियों को सामने लाने के लिए सरकार से किस तरह के प्रोत्साहन की ज़रूरत है?

खेल प्राधिकरण अगर ग्रामीण खिलाड़ियों को ट्रेनिंग और टूर्नामेंट में शामिल होने के लिए लॉजिस्टिक और आर्थिक मदद दे सकें तो इतना बहुत होगा. मुझे लगता है कि तमिलनाडु में पहले से सामान्य स्तर की एक सुविधा उपलब्ध है.

तमिलनाडु में बच्चों को पहले से ट्रेनिंग दी जा रही है. आरबी रमेश एक उदारहण हैं. अगर तमिलनाडु सरकार आरबी रमेश जैसों का समर्थन करे तो हम बहुत कुछ हासिल कर सकते हैं.

क्रिकेट या बैडमिंटन की बात करें तो हमें पता है कि ट्रेनिंग कैसे होनी है और उसके बाद खिलाड़ियों को आगे लेकर कैसे जाना है. क्या आपको लगता है कि लोगों में चेस को लेकर भी इस तरह की समझ है?

हाँ, बिल्कुल, हमें पता है कि इस क्षेत्र में आगे कैसे जाना है. फ़िलहाल, चेस के खेल में कम्प्यूटर की काफ़ी आवश्यकता है. किसी खिलाड़ी के अंतरराष्ट्रीय मास्टर या ग्रैंड मास्टर बनने के बाद आगे का रास्ता अपने आप स्पष्ट हो जाता है.

हम इसके ज़रिए वर्ल्ड चैंपियनशिप में शामिल हो सकते हैं. चेस की दुनिया में ये सफर स्वाभाविक है. चैंपियनशिप में भाग लेते हुए हम कई चीज़ें सीखते हैं. मैंने भी इसी तरह सीखा है.

स्कूली बच्चों को चेस खेलने के लिए प्रोत्साहित करके हम युवा खिलाड़ियों को पैदा कर सकतै हैं.

राज्य स्तर पर मौजूद वर्तमान स्पोर्ट्स फेसिलिटी का भी इस्तेमाल किया जा सकता है.

आप तमिलनाडु सरकार की शिक्षा-नीति टीम के सदस्य हैं. आपने इस टीम को खेलों को लेकर क्या सुझाव दिए?

मेरा सुझाव ये है कि खिलाड़ियों को आने-जाने और आर्थिक चुनौतियों से जुड़ी मदद मिलनी चाहिए.

शतरंज सीखने में दिलचस्पी रखने वाले छात्र पढ़ाई में भी अच्छे निकलते हैं.

ऐसे में मुझे लगता है कि चेस को शिक्षा के साथ जोड़ना चाहिए.

क्योंकि जब ये बच्चे चेस की बारीकियों के बारे में सोचेंगे तो उनकी बुद्धि पाठ्यक्रम को सीखने में भी लगेगी.

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस टेक्नॉलजी तेज़ी से बढ़ रही है. शतरंज की दुनिया पर इसका क्या असर होगा? क्या आने वाले दिनों में लोग एक-दूसरे की बजाय आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के साथ खेलना पसंद करेंगे?

जब किसी चेस मैच की बात आती है तो लोग दो इंसानों के बीच मैच होता हुआ देखना चाहते हैं. दो कम्प्यूटरों को एक दूसरे के साथ खेलते हुए देखना रोमांचकारी और दिलचस्प नहीं है.

अनुभवी खिलाड़ी चेस की बारीकियां सीखने के लिए ऐसा मैच देखना चाहेंगे लेकिन इस तरह का मैच रोमांचकारी नहीं होगा. लोग ये देखना चाहते हैं कि उनके देश के खिलाड़ी ने किस तरह विरोधी को परास्त किया.

लेकिन आर्टिफिशियल ट्रेनिंग के लिहाज़ से काफ़ी अहम है. इस समय खेल की बारीकियां सीखने में तकनीक काफ़ी मददगार साबित होती है.

ये एक नए तरह की चीज़ है. मुझे अपना पैटर्न काफ़ी बदलना पड़ा. मैं अब अपना 20 साल पुराना गेम नहीं खेल सकता. तकनीक काफ़ी विकसित हो गई है और सभी फ़ैसले बदल गए हैं. लेकिन एआई के ज़रिए हासिल किए गए चेस से जुड़े ज्ञान को किनारे रखा जाए तो इस खेल का असली रोमांच दो लोगों को खेलते हुए देखने से मिलता है.

क्रिकेट और फुटबॉल में आईपीएल, आईएसएल आदि आ रहे हैं...आपको क्या लगता है कि चेस में किस तरह के बदलाव लाए जाने की ज़रूरत है?

लोग चेस की दुनिया में भी इस तरह के बदलाव ला रहे हैं. क्लासिक चेस में 5 से 7 घंटे का फॉर्मेट हुआ करता था. रैपिड चेस एक घंटे में ख़त्म हो जाता है. हम इसकी तुलना टेस्ट और वनडे क्रिकेट से कर सकते हैं.

चेस के ब्लिट्ज़ फॉर्मेट में एक खिलाड़ी को 5, 3 और 1 मिनट मिलेगा. हमें ये सोचना होगा कि हम कितनी जल्दी गेम ख़त्म कर सकते हैं. जैसे-जैसे समय कम होता जाएगा, तनाव बढ़ता जाएगा और हमारे विचार धूमिल होते जाएंगे. और हमें उन चालों को चलना होगा जो स्वाभाविक रूप से हमारे ज़हन में आएंगी.

ये चेस की प्रैक्टिस जैसा है क्योंकि समय कम होता जाता है. जो लोग ब्लिट्ज़ खेलते हैं, उन्हें लगातार प्रैक्टिस करने का मौका मिलता रहता है और वे इसका इस्तेमाल क्लासिक मैच में करते है.

पॉइंट्स को लेकर भी काफ़ी बदलाव हुए हैं. पहले 1-1/2-0 हुआ करते थे जिसका मतलब जीत, हार या ड्रॉ हुआ करती थी. अब अंक भी 2-1-0, 3-1-0, 3-1/2-0 के फॉर्मेट में आ गए हैं. हम अंकों में इस तरह बदलाव कर सकते हैं. इस खेल के रोमांच को बढ़ाने की संभावनाएं असीमित हैं.

आप पिछले 25 सालों से ये खेल खेल रहे हैं, और आपकी उम्र बिल्कुल नहीं बढ़ी है. आख़िर क्या राज़ है?

मैं ख़ुश हूँ. और मैं अच्छी तरह सोता हूँ. मैं रोज़ व्यायाम करता हूँ. मैं अब 50 की उमर को पार कर गया हूँ, इसलिए मैं कुछ चीज़ें पहले की तरह नहीं कर पाता. लगातार खेलने के बाद मैं भी थक जाता हूँ. इसमें कोई राज़ की बात नहीं है. (bbc.com)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news