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अरुणाचल में सियांग नदी के पानी का रंग बदलने से बढ़ी चिंता
10-Nov-2022 12:26 PM
अरुणाचल में सियांग नदी के पानी का रंग बदलने से बढ़ी चिंता

तिब्बत से सटे अरुणाचल प्रदेश की नदी सियांग का पानी अचानक मटमैला हो गया है. इलाके के लोग और प्रशासन इससे चिंता में हैं. सीमापार चीन के निर्माण कार्यों के कारण वहां से बहकर आने वाली मिट्टी को कारण माना जा रहा है.

    डॉयचे वैले पर प्रभाकर मणि तिवारी की रिपोर्ट

चीन में इस नदी को यारलुंग सांगपो कहा जाता है. इलाके के लोगों की आजीविका इसी नदी पर निर्भर है. प्रशासन की चिंता की वजह यह है कि फिलहाल इलाके में बारिश भी नहीं हुई है ताकि उसके कारण पहाड़ी मिट्टी के नदी में आने की संभावना हो. पूर्वी सियांग के प्रशासनिक अधिकारियों का कहना है कि फिलहाल परिस्थिति पर निगाह रखी जा रही है और असल कारण का पता लगाया जा रहा है. इससे पहले 2017 में भी नदी के पानी का रंग बदलने के बाद केंद्र ने चीन सरकार के समक्ष यह मुद्दा उठाया था.

तिब्बत के इलाके से निकलने वाली ब्रह्मपुत्र नदी भारत के अरुणाचल प्रदेश के जरिए देश की सीमा में प्रवेश करती है. अरुणाचल प्रदेश में इस नदी को सियांग कहा जाता है. इसके बाद यह नदी असम पहुंचती है जहां इसे ब्रह्मपुत्र कहा जाता है. भारत में इसकी लंबाई 918 किलोमीटर है. नदी का बाकी का 337 किलोमीटर का हिस्सा बांग्लादेश से होकर गुजरता है. असम से होकर ब्रह्मपुत्र बांग्लादेश में प्रवेश करती है. बांग्लादेश में ब्रह्मपुत्र नदी गंगा में मिल जाती है. ब्रह्मपुत्र को भारत के पूर्वोत्तर राज्यों और बांग्लादेश की जीवन रेखा माना जाता है. लाखों लोग अपनी आजीविका के लिए इस नदी के पानी पर निर्भर हैं.

ताजा समस्या
कुछ दिन पहले पूर्वी सियांग जिले में लोगों ने देखा कि सियांग नदी का पानी अचानक मटमैला हो गया है. इससे पहले वर्ष 2017 में भी यह समस्या हुई थी. तब केंद्र सरकार ने चीनी विदेश मंत्रालय के समक्ष इस मुद्दे को उठाया था. दो साल पहले यानी वर्ष 2020 में भी यह समस्या सामने आई थी. हाल के वर्षों में खासकर गलवान घाटी में हुए संघर्ष के बाद चीन ने अरुणाचल प्रदेश से लगे सीमावर्ती इलाको में बड़े पैमाने पर निर्माण परियोजनाएं शुरू की हैं. इनमें यारलुंग सांगपो पर एक पनबिजली परियोजना और विशालकाय बांध के अलावा हाईवे और रेलवे लाइनों का निर्माण शामिल है.

पानी का रंग मटमैला होने के पीछे आशंका जताई जा रही है कि शायद चीन सीमा पार फिर कोई बड़ा निर्माण कर रहा है और उसी वजह से वहां की मिट्टी बहकर नदी में आ रही है. इसी कारण उसके पानी का रंग मटमैला हो गया है.

पूर्वी सियांग जिले के उपायुक्त टी. तग्गु बताते हैं, ‘‘पानी में गाद बह रही है. यह सामान्य बात नहीं है. हाल के दिनों में इस इलाके में बारिश नहीं हुई है. हम जल संसाधन विभाग के अधिकारियों की मदद से स्थिति पर नजर रख रहे हैं.'' सियांग नदी राज्य का मुख्य जल स्रोत है.

तग्गु के मुताबिक हो सकता है कि चीन में इस नदी के तटवर्ती इलाके में मिट्टी कटाई का कोई काम हो रहा हो. उनका कहना था, "लग रहा है कि  तिब्बत से निकलने वाली इस नदी से सटे इलाके में कुछ निर्माण गतिविधियां हो रही हैं. इसके अलावा ऊपरी इलाकों में भूस्खलन भी इसकी वजह हो सकती है.''

लोगों की चिंता
मछली और खेती के लिए नदी पर आश्रित स्थानीय लोग सियांग नदी के पानी का रंग बदलने से चिंतित हैं. स्थानीय निवासी नाथन डोले कहते, "इस असामान्य बदलाव की वजह तो हम नहीं जानते, लेकिन इससे हमारी चिंता बढ़ गई है. हमारे मवेशियों के अलावा कुछ गांव वाले भी सियांग का ही पानी पीने के लिए भी इस्तेमाल करते हैं." डोले का कहना था कि पिछले कुछ दिनों से ना तो बारिश हुई है और ना ही जलस्तर में कोई बदलाव हुआ है, लेकिन पानी का रंग रातों रात बदल गया.

इसी इलाके में रहने वाले जी.के. मिजे बताते हैं, "पांच साल पहले तक सियांग के पानी का रंग कभी नहीं बदला था, लेकिन अब अक्सर यह समस्या पैदा हो रही है. इससे हम काफी चिंतित हैं. हमारा जीवन ही इस नदी पर निर्भर है. सरकार को इस मामले को गंभीरता से लेते हुए चीन के समक्ष इस मुद्दे को उठाना चाहिए."

इससे पहले दिसंबर, 2017 में भी इस नदी का पानी अचानक काला हो गया था, जिससे राज्यभर में सनसनी फैल गई थी. उस समय अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने कहा था कि वह निजी तौर पर हालात पर नजर रख रहे हैं. उन्होंने केंद्र से भी इसपर ध्यान देने का अनुरोध किया था. उसके बाद भारत की ओर से तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने चीन में अपने समकक्ष वांग यी के सामने यह मामला उठाया था. वर्ष 2020 में भी इसी तरह इस नदी का पानी असामान्य रूप से गंदा हो गया था.

चीन भारत की तमाम आपत्तियों को दरकिनार करते हुए वर्ष 2015 से ही तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में इस नदी के किनारे बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य कर रहा है. इसकी वजह से जहां नदी का पानी प्रदूषित हुआ है वहीं उसका जलस्तर भी लगातार घट रहा है. वह तिब्बत में 11 हजार 130 करोड़ रुपए की लागत से एक पनबिजली केंद्र बना चुका है. वर्ष 2015 में बना यह चीन का सबसे बड़ा बांध है. (dw.com)

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